पहला तरही मुशायरा
पहला तरही मुशायरा इस मायने में ठीक रहा है कि केवल एक ही शेर बहर से बाहर प्राप्त हुआ है और उससे ये तो पता चलता ही है कि बहर क्या होती है ये बात अब छात्र छात्राओं को समझ में आने लगी है । हां ये बात अलग है कि अभी कहन डवलप उतनी नहीं हो पाई है जितनी कि हो जानी चाहिये । उसके पीछे माड़साब की एक ग़लती तो ये है कि माड़साब ने काम करने के लिये काफी कम समय दिया है । तो अब माड़साब ने ये तय किया है कि तरही मुशायरे अब माह में केवल दो ही होंगें अर्थात अब काम करने के लिये 15 दिनों का समय दिया जाएगा । क्योंकि पहले मुशायरे में जो ग़ज़लें प्राप्त हुईं हैं वो सारी ऐसा लग रही हैं कि जल्दी जल्दी तैयार करके भेजी गईं हैं । एक और काम हमको ये करना होगा कि जो ग़ज़लें भेजी जाएंगीं वो टिप्पणी में नहीं लगाकर सीधे माड़साब को मेल करनी होंगीं । टिप्पणी पर लगाई गई ग़ज़लें क्योंकि सब पहले ही पढ़ लेंगें अत: मुशायरे का चार्म खत्म हो जाएगा कि किसने क्या लिखा । आज के तरही मुशायरे में कुछ शेर अच्छे मिले हैं आज शीर्षक में जो दो शेर लगाये हैं वे भी दो अलग अलग शायरों के हैं । अभिनव और वीनस ने मज़ाहिया शायरी की है किन्तु सटीक की है ।
माड़साब :- चलिये शुरू करते हैं आज का मुशायरा । सबसे पहले लेडीज फर्स्ट आ रहीं हैं कंचन इनके लिये दो पंक्तियां
उसकी तारीफ करे कोई तो करे कैसे,
जिसकी आवाज़ में फूलों की महक आती हो
कंचन सिंह चौहान
अरे भगवान बड़ा टफ कंपटीसन हो गया है गुरू जी ये तो ....अबकि बार तो सारे के सारे सटूडेंटै एक से बढ़ कर एक लिखे पड़े हैं .... सब का होमवर्क बेमिसाल....! लीजिये रात में हम ने भी दिया जला के कुछ लिखा है..!
जान बस जायेगी मेरी और क्या हो जायेगा,
इम्तिहाँ ले कर तुझे तो हौसला हो जायेगा।
रोज समझाया सभी को, ना कभी समझे मगर,
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा।
हर नफस रोशन किये है, जिंदगी को आज जो, कल वो जायेगा तो स्यापा इक घना हो जायेगा।
इतना ज्यादा खुद को, उसमें ढालते जाते हो क्यो,
जबकि तुम भी जानते हो, गैर वो हो जाएगा।
कौन छोड़ेगा सड़क पर घूमना डर मौत से,
आज फोड़ो बम, शहर कल आम सा हो जाएगा।
माड़साब : तालियां तालियां पूरी ग़ज़ल बहर पर फैंक के मारी है । दिया जला के ऐसी लिखी तो सूरज के उजाले में कैसी लिखेंगीं आप । बस मोहतरमा चौथे शेर में काफिये का गच्चा खा गईं हैं । जबकि तुम भी जानता हो गैर वो हो जाएगा । मैडम जी काफिया कहां गया । चलिये अब आ रहें हैं एक और नौजवान शायर जिनके बारे में कहा जा सकता है कि पूत के लक्षण पालने में ही नज़र आ जाते हैं । इनके लिये यहीं कहूंगा ''वही लोग रहते हैं ख़ामोश अक्सर ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं ''
वीनस केसरी
ग्रहकार्य के अनुरूप गज़ल लिखी है जैसी भी बन पडीं है आपके सामने प्रस्तुत है
मत मनाओ उसको इतना वो खफा हो जायेगा ।
रुठेगा शामोसहर ये कायदा हो जायेगा ॥
लिख बहर में पेश की तो इक गज़ल अच्छी लगी ।
सोचता था ये करिश्मा बारहा हो जयेगा ॥
तोड़ दूंगा जब हदों को आपके सम्मान की ।
तब कयामत आयेगी तब जलजला हो जायेगा
इतनी गाली इतने जूते इतनी सारी बद्दुआ ।
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा
आज मैने मय के प्याले हाशिये पर रख दिये ।
अपनी कुछ गज़लें सुना दो कुछ नशा हो जायेगा ॥
फ़िर मतों की थी ज़रूरत फ़िर बहायी रहमतें ।
चार पैसे दे के वो सबका खुदा हो जायेगा ॥
जब तिलावत की हमारे राम को अच्छा लगा ।
मत कहो तुम फ़िर से ऐसा फ़िर दंगा हो जायेगा ॥
माड़साब :- आपने अच्छी ग़ज़ल निकाली है विशेष कर गिरह अच्छी बांधी है जो मैंने शीर्षक में लगाई है । मगर आप आख़ीर के शेर में मात खा गये ''दंगा '' वज्न में नहीं आ रहा है ''दगा'' होता तो चल जाता पर दंगा का वज्न 22 है । और अब आ रहे हैं अभिनव जो कई दिनों से कहीं गायब थे और अब दिखाई दिये हैं इनके लिये दो पंक्तियां '' थी ग़ज़ब की मुझमें फुर्ती तेरी ग़मे आशिकी के पहले, मैं घसीटता था ठेला तेरी दोस्ती के पहले ''
अभिनव
रात भर जग कर पढ़ेंगे तो भी क्या हो जायेगा,
हाथ में आते ही पर्चा सब सफा हो जायेगा,
उनको है इस बात का पूरा भरोसा दोस्तों,
बाल काले कर के खरबूजा नया हो जायेगा,
तुम तो लड्डू देख कर पूरे गनेसी हो गए,
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा,
आदमी हो या अजायबघर लकड़बग्घे मियां,
बम लगाकर सोचते हो सब हरा हो जायेगा.
माड़साब :- पूरी ग़ज़ल मज़ेदार है और पूरी बहर में है साथ में कहन में भी है । और जो डायबिटिक गिरह बांधी है वो तो मस्त है । आज के लिये इतना ही अभी परिणाम रोक के रखे जा रहे हैं क्योंकि कल हम बात करेंगें कुछ और ग़ज़लों की और साथ ही परिणाम की । जिन लोगों ने माड़साब की ग़ज़ल सुनने की फरमाइश की है उनको धन्यवाद । और लीजिये पेश है माड़साब की ग़ज़ल
माड़साब ( और माड़साब का विश्व सुंदरी युक्ता मुखी के साथ का फोटो भी देखिये)
कौडि़यों में बिक रही संसद है मेरे मुल्क की
दो टके की हो गई संसद है मेरे मुल्क की
डाकुओं, चोरों, लुटेरों, जाहिलों, नालायकों
बेइमानों से भरी संसद है मेरे मुल्क की
लोग गन्दे, सोच गन्दी, काम भी गन्दे हैं सब
गन्दगी ही गन्दगी संसद है मेरे मुल्क की
ये कभी यूं पाक थी जैसे के हो मंदिर कोई
अब तो कोठा बन चुकी संसद है मेरे मुल्क की
कोई पप्पू, कोई फूलन, कोई शहबुद्दीन है
कैसे खंभों पर टिकी संसद है मेरे मुल्क की
बस इशारे पर कभी इसके कभी उसके यूंही
बांध घुंघरू नाचती संसद है मेरे मुल्क की
जिनको हमने चुन के भेजा बिक गए बाज़ार में
सबकी क़ीमत लग चुकी, संसद है मेरे मुल्क की
मुझको भी लगता तो है पर किससे पूछूं सच है क्या
शोर है के मर गई संसद है मेरे मुल्क की
हो कहां गांधी चले भी आओ देखो तो तुम्हें
याद करके रो रही संसद है मेरे मुल्क की
चलिये कल मिलते हैं कुछ और ग़ज़लों के साथ ।