नवरात्रि के पहले दिन की ही शुरुआत दिल्ली के कवि सम्मेलन से हुई और पूरे नौ दिन कवि सम्मेलनों में ही बीते । इन दिनों सीमा पर तनाव होने के कारण वैसे भी वीर रस के कवियों की पूछ परख थोड़ी बढ़ी हुई है । भारतीय जन मानस आग लगने पर कुंए खोदने में विश्वास रखता है । बाद के कुछ कवि सम्मेलनों में जब गले ने साथ छोड़ा तो फिर कविताओं को तहत में ही पढ़ना पड़ा । लोगों ने पसंद किया तो लगा कि चलो ये भी ठीक है । दिल्ली के कवि सम्मेलन में पहले तो सोचा कि वीर रस ही पढ़ूं फिर लगा कि नहीं यहां पर कुछ प्रबुद्ध श्रोता हैं सो वहां पर चार छंदों वाली भारत कहानी पढ़ी । लोगों ने उसे और उसकी धुन को पसंद किया तो मेहनत सार्थक हो गई ।
गौतम का कमेंट - गौतम की लगन का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि उसने पिछली पोस्ट को न केवल पूरा पढ़ा बल्कि उस पर अपना कमेंट भी एसएमएस के माध्यम से भेजा ।
ठीक हूं सर । दर्द कम है । इन्फेक्शन का पता एक हफ्ते बाद चलेगा । आपको, भाभी मां को और परी पंखुरी को विजया दशमी की समस्त शुभकामनाएं । ब्लाग पढ़ा है, मोबाइल पे है । तरही का मिसरा बेहद खूबसूरत है सर। रहें रदीफ कुछ मुश्किल पैदा करेगा दो गाने जो अभी याद आते हैं इस बहर पे 'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिये ' और एक मेरा फेवरेट देश भक्ति गीत ' ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम । मेरे एसएमएस को कमेंट में डाल देना गुरूजी ।
बस यही तो वो जज्बा है जो गौतम जैसे लोगों को सबसे अलग करता है । इस बीच बहू संजिता से भी मेरी कई बार बात हुई और मैं हैरान हूं कि कितनी सुलझी हुई और धैर्यवान है वो । गौतम ने जो गीत पसंद किया है वो, और एक और गीत जो इसी बहर पर है उसे सुना जाये पहले
पहले गौतम की पसंद का गीत
दूसरा गीत जो मुझे बहुत पसंद है वो भी इसी बहर पर है और वो भी देशभक्ति गीत ही है ।
ब्लाग वाणी का बंद होकर प्रारंभ होना -
ब्लाग वाणी का बंद होना अर्थात हिंदी ब्लागों की वाणी का बंद हो जाना । मेरी सुब्ह की रोज की आदत है कि मैं सबसे पहले ब्लागवाणी को खोलता हूं फिर अपने ब्लाग को । आज जब रोज की तरह खोला तो ज्ञात हुआ कि ब्लागवाणी बंद हो गई है । धक्का लगा । मगर फिर सोचा कि ब्लाग वाणी तो हमारी है उसे मैथिल जी कैसे बंद कर सकते हैं । किया तो प्रेम की अदालत में हम उन पर दोस्ती का मुकदमा लगा देंगें । खैर उसकी नौबत नहीं आई और ब्लाग वाणी प्रारंभ हो गई । मेरे गुरू कहा करते थे कि जब भी कोई अच्छा काम प्रारंभ होता है तो कुछ नहीं करने वाले लोगों को सबसे पहला लक्ष्य होता है कि उसका विरोध कर उसको बंद करवा दो । कई बार ये लोग सफल भी हो जाते हैं । मेरा ब्लाग वाणी की पूरी टीम से अनुरोध है कि धैर्य न खोयें और कुछ भी ऐसा न करें जिससे विध्न संतोषियों के हौसले बढ़ें । आप अपना काम करते रहें उनके काम को उन्हें करने दें ।
तरही मुशायरा – अनुरोध है कि तरही मुशायरे को लेकर दी गई बहर पर जल्दी काम करें । क्योंकि अब समय बहुत ही कम है दीपावली के एक सप्ताह पहले से मुशायरा प्रारंभ होना है । और अब उसमें समय बहुत कम है । मेरे विचार से यदि दस तारीख तक काम भेज दें तो बहुत ही अच्छा रहेगा । अच्छी बात ये है कि निर्मला कपिला जी की ग़ज़ल प्राप्त हो भी चुकी है । बाकी के लोग भी जल्द करें तो अच्छा होगा ।
मिसरे में रदीफ 'रहें ' है । अर्थात अं की बिंदी लगी है । यदि आप अं की बिंदी नहीं लेना चाहते हैं अर्थात 'रहे' ही रखना चाहते हैं तो वैसा कर लें लेकिन फिर पूरी ग़ज़ल में वही रखें । ये गौतम के सुझाव पर ।
दीप जलते रहे, झिलमिलाते रहे या दीप जलते रहें, झिलमिलाते रहें
दोनों में से चाहे जो मिसरा रख लें । लेकिन उसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करें । इस बार दीवाली का मुशायरा है इसलिये हमारा प्रयास होगा कि श्री महावीर शर्मा जी, श्री राकेश खण्डेलवाल जी, श्री प्राण शर्मा जी, श्री समीर लाल जी, श्री डॉ मोहम्मद आज़म, श्री योगेंद्र मोदगिल, लावण्य दीदी साहब, देवी नागरानी जी, सुधा ढींगरा दीदी, शार्दूला दीदी, जैसे अतिथि रचनाकारों की रचनाएं भी हमकों मिलें ताकि वे भी सनद की तरह मुशायरे में रहें । भले ही ये रचनाएं मुक्तकों के रूप में मिले चाहे एक मतले और एक शेर के रूप में ।
आदरणीय राकेश जी का तो एक गीत है इसी बहर पर जिसे बहन मोनिका हठीला ने अंधेरी रात का सूरज के विमोचन के अवसर पर गाया भी था । उसे सुनिये । ये अंधेरी रात का सूरज से लिया गया गीत है ।
गीत को यहां http://www.archive.org/details/BansuriKeAdhure जाकर डाउनलोड कर सकते हैं ।
बहरे मुतदारिक - बहरे मुतदारिक गाने वाली बहर है विशेषकर जो बहर हमने ली है वो तो पूरी तरह से इसी प्रकार की है । मुझे अभिनव ने बताया कि कवि श्री विष्णु सक्सेना तो इसी बहर पर बहुत सुंदर मुक्तक पढ़ते हैं । रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा । विष्णु सक्सेना बहुत मधुर गीतकार हैं । बहुत ही सुरीले कंठ से गाते हैं । इसी बहर पर उनके गीत को आप यहां पर जाकर सुनें ताकि आपको बहर समझ में आ सके ।
बहरे मुतदारिक का स्थाई रुक्न तो फाएलुन है । लेकिन मुजाहिब बहरों में कई और रुक्न भी आते हैं । जैसे फाएलान, फएलुन, फालुन, फा, । इस हिसाब से देखा जाये तो कम ही रुक्न होते हैं उसमें । सबसे पहली बहर की तो हम बात कर ही चुके हैं जो इस बार के तरही में मिसरे के रूप में मिली है । बहरे मुतदारिक मुसमन सालिम । फालुन और फएलुन दोनों भले ही मात्रा के हिसाब से एक बराबर रुक्न हैं लेकिन उनमें अंतर होता है वो क्या होता है उसकी चर्चा आगे करेंगें । तो बहरे मुतदारिक का ये सफर आगे की चर्चाओं में जारी रहेगा । फिर से वही बात कि अपनी रचनाएं जल्द भेजें ।