सब लोग लुगाइन खों सूचित किया जाता हेगा कि होली को मुसायरो, जो कि जा बार कछु देर से मिसरा देने के कारण कुछ कम सायरों के साथ हो रओ है। जा बार हमने मिसरो दो प्रकार को दओ हतो। मिसरो तो एक ही हतो, पर दो इस्टाइल से बा में काम करबे की कही हती।
मिसरो हतो - फागुनी मस्ती में डूबी आ गई होली
जा मिसरा के बारे में कोउ ने कमेंट करो हतो कि जा मिसरा पे एक भोत ही फेमस गानो बनो हतो, बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ, आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ। जे गानो हमने नहीं बताओ है, जिनने बताओ है उनसे ही पूछो कि कोउ दूसरो गानो नहीं मिलो उनको ? पर हमें का करनो है। चलो हम तो अपनो मुसायरो सुरू करते हैं।
राकेश खंडेलवाल
ऐ मुन्ना जे का कर रए हो ? का तुमें पता नहीं है कि कोरोना चल रओ है ? जे का हात में झुनझुना ले के सड़क पे निकल पड़े हो ? जे बात हमने पेले ही बता दी थी कि जा बार को मुसायरो सोसल डिस्टेंपिंग के साथ होयगो। जा में कोउ को भी किसी की भी गजल पे कोउ दाद-फाद देने की झरूरत नहीं है। ऐ दद्दा तुम तो नाच गा के दाद दे रए हो। का बोले ? कोउ दूसरे की रचना पे दाद नहीं दे रए हो, अपने ही गीत पे दे रए हो। तब तो ठीक है, जा में सोसल डिस्टेंपिंग टूटने को कोउ भी खतरो नहीं हेगो। देते रओ मुन्ना अपने गीत पे दाद। कोउ नहीं रोकबे बालो तुमखों।
आज है सम्वाद सेवा का नया जलवा
बन रहा हर ओर केवल गाजरी हलवा
श्वेत वर्णी पंकजों के मुख हुए नीले
जामुनी कत्थई गुलाबी और कुछ पीले
ताल में भोपाल के शिव बूटियाँ घोली
फागुनी मस्ती में डूबी आ गई होली
पाई रहे गुरमीत बस स्काट की गंगा
अश्विनी के नाम है हर एक हुड़दंगा
हाशमी ने पान का बीड़ा चबा कर के
और फिर वसुदेव को रसिए सुना कर के
है ग़ज़ल पंसेरियों के भाव पर तोली
फागुनी मस्ती में डूबी आ गयी होली
कह रहे नीरज, सिखाऊँ मैं ग़ज़ल कहना
ओढ़ कर बासंतिया अब शायरी करना
छोड़ कर बहरो वजन की मुश्किली बंदिश
क़ाफ़ियों को नाँद में दे फेंक औ फिर लिख
खा रहे खुद रसमलाई बंद कर खोली
फागुनो मस्ती में डूबी आ गयी होली
एक पाखी कह रहा है पंख फैलाकर
धर तिलक, हो जा तियागी रंग में रंग कर
ढूँढ ले सौरभ छुपा है जो गुलालों में
अब नहीं ग़िरिईश रहता है शिवालों में
दे दिगम्बर को कोई लंहगों कोई चोली
फागुनी मस्ती में डूबी आ गई होली
घाट पर विश्राम के बैठे हुए हैं द्विज
देखते सिल बट्टियों पर। क्या रहा है पिस
कोई लेकर आएगा पूए मलाई के
थाल भर रबड़ी, इनरसे भी कढ़ाई के
देह पर चंदन उँडेला शीश पर रोली
फागुनी मस्ती में डूबी आ गयी होली
छोड़ करके लुम्बिनी आ तो गया गौतम
पर सताती सालियों की याद हर पल क्षण
रचे नुसरत हाथ पर बूते जिंसों के
लिख रहा राजीव कुछ अब अल्पनाओं पे
इस तरह से आज तरही झूम कर बोली
फागुनी मस्ती में डूबी आ गयी होली
ओरे मोरे दद्दा जो को सुनाओ तुमने ? मूड़ को नाम कपाल ? हाय मोरी मैया, जो करो का है तुमने। कछु पतो भी है कित्ती ख़राब बात कर दी हेगी तुमने। इते सारे सरोता बेहोस पड़े हैं। कछु ने तो अपने मुँह पे से मास्क हेड़-हेड़ के फेंक दए हेंगे कि जा गीत से अच्छो तो जे है कि कोरोना ही हो जाए। इत्ती बुरी बात केने की का झरूरत हती ? इते लोग-लुगाइन को सँभालबो ही मुस्किल पड़ रओ हेगो। तुमने इत्तो बुरो काम करो हेगो कि सब लोग लुगाइन चिल्ला रए हैं कि देस का नेता कैसा हो राकेश भैया जैसा हो। समझ नहीं आई जे बात ? नहीं समझ आएगी, काय के तुम अमरीका में रेते हो, भाँ पे ट्रम्प चलो गओ, पर झाँ पे ..... छोड़ो दद्दा पर जे बात सच्ची में ऐसी हो गई है कि हम बस झाँ बैठ के गालियाँ बक सके हैं और किछु नाय कर सकत।
सूचना- जा बारी भोत से सायर नहीं आए हेंगे। मोगरे की वेणी पहनने वाले गुलाबी जगह के शायर के बारे में कोउ ने बताई हेगी कि उनने गजल को टीका गजलीशील्ड लगबा लओ हेगा। लगबाने के बाद से उनके अंदर गजल के वायरस पैदा होने बंद हो गए हैं। सूचना समापत भई। ताकि तिट धिन धिन ना।
गिरीश पंकज
आपखों सादी की भोत-भोत सुभकामनाएँ। पर जे का बात भई कि इते सादी हो रही हेगी और उते आप गजल भी लिखने लगीं। एक बात सच्ची बताएँ आपको। असल में सादी और गजल में कोई अंतर नहीं हेगा। बा में भी पहले एक मतला हेता है जिसमें काफिये से दोनों मिसरे जुड़े रहते हैं, सादी में भी पहले पति-पत्नी मतले की तरह एक दूसरे से जुड़े रहते हैं काफिये से। कछु दिन बाद पत्नी ऊला हो जाती है और पति सानी हो जाता है। ऊ ला ला, ऊ लाला.... । आख़िरी में मकता होता है, जिसमें पत्नी तख़ल्लुस बन कर बैठ जाती है और पति ..... छोड़िये हम ने कुछ भी नहीं कही। आपको सादी की मुबारक बाद हो। भेनजी, कोरोना चल रओ है, आपसे नरम निवेदन है कि मास्क लगा लेतीं। ओ..... लिपिस्टक.....
लोग करते हैं ठिठोली आ गई होली
''फागुनी मस्ती में डूबी आ गई होली''
बच के रहना ये मुहल्ले के हैं हुरियारे
फिर से निकली है वो टोली आ गई होली
कब तलक रंगों से बच के रह सकोगे तुम
रँग दिया भोजाई बोली आ गई होली
कौन ऐसा है न भींगेगा यहां अब तो
रंग की सरिता बहाती आ गई होली
ऐसी आंधी-सी चली सब बंध टूटे हैं
धूल रंगों की उड़ाती आ गई होली
जिंदगी में रंग खुशियों के भरे इसने
रौशनी-सी जगमगाती आ गई होली
अब कहां मनहूसियत का काम है पंकज
देख लो न खिलखिलाती आ गई होली
एकदम मारूँ घुटना फूटे आँख टाइप की बात की हेगी आपने। आपके गले की कसम के रए हैं कि हमें जा में एक भी मिसरो... समज में नहीं पड़ो हेगो। काय के हम भौजाई बाले मिसरे को समझने की कोसिस किए थे, पर दो बार कोसिस करने के बाद हमाए अंदर कछु-कछु होने लगो। हमें पेले तो समझ में नहीं आई कि का हो रओ है, पर बाद में पतो चलो कि कोई भी भोत बुरी बात पे हमाए अंदर एकदम सिलबिलाहट सी होने लगती हेगी। जे हमें बचपन से ही होतो हेगो। भिल्कुल बैसी ही फीलिंग आ रही हती जेसी बचपन में चंकी पांडे की पिक्चर देखते समय आती हती। हम आपको कम्परीजन चंकी पांडे से नहीं कर रहेग हेंगे, बुरो मत मानियो दद्दा आपकी जे गजल तो चंकी की पिक्चर से भी बुरी है। आपकी गजल सुनने के बाद तो हम चंकी को आस्कर दे सकत हैं।
सूचना – सीहोर के प्रधानमंत्री श्री भभ्भड़ कवि भौंचक्के बताय रहे कि कोरोना के लिए कोई बैक्सीन-फैक्सीन की झरूरत नहीं हेगी। बस उनकी गजलें लाउड सपीकर पे झोर-झोर से बजाई जाएँ, कोरोना का भायरस सुन के ही खतम हो जाएगो। सूचना एकदम खल्लास भई। धागी नाकि तक धिन....
तिलकराज कपूर
पंछी बनूँ उड़ती फिरूँ मस्त गगन में। भोत ही सानदार टाइप की लग रही हो आप जा डिरेस में। सब एक बात हम जो बचपन से जाना चाय रहे हेंगे, बो बात हमको बता दो कि जा गाने में जो बार-बार बोलते हेंगे हिल्लोरी, हिलो री, हिलो, हिलो री, बा को मतलब का हेगो। काय के बचपन में पेले तो हम जा समझत रय कि जा को मतलब गिल्लोरी है, पान की गिल्लोरी। पर बाद में हमाए मूढ़ में जा बात आई कि गिल्लौरी तक तो ठीक है, पर बाद में गिलो, गिलो री का का मतलब हो सकते हैं। फिर हमें लगा कि कोई दही बिलोने बाली लडक़ी बिल्लोरी है जिससे कोई कह रओ है कि बिल्लोरी, बिलो री, बिलो बिलो री। आप सच्ची बता दो कि असल बात क्या है। और हाँ सुनो एक बात, कल तलक जिसे मैदान पर एक तिनका भी नहीं दिख रओ हतो, भाँ पे जे सुनहरी घास कहाँ से लहलहा गई। चलो छोड़ो सब बातें और पेलो अपनी गज़ल
याद है क्या आज तुमको भी वही होली
वो छुअन पहली लिये, मस्ती भरी होली।
पूछ मत क्या हाल था उस पल मेरे दिल का
जब सजी तेरे बदन रंगों भरी होली।
जानता था कौन ऐसे दिन भी आएंगे
बंद कमरों में मनाएंगे सभी होली।
दर्द गहरा और मेरा वायदा तुमसे
तुम नहीं तो हो नहीं सकती मेरी होली।
दीप से पूछो नहीं क्या आग है दिल में
खुद करो महसूस इक जलती हुई होली।
उत्सवी उल्लास का हक़ है इसे लेकिन
काश् मेरे दिल के अंदर झांकती होली।
राह में आंखें बिछी हैं, तुम नहीं आये
"फागुनी मस्ती में डूबी आ गयी होली"
ओ मोरे दद्दा जो का कर दओ तुमने ? जे होली है कि मोहर्रम है ? इत्ती रोने धोने बाली गजल। सबसे से पहले सब लोग-लुगाइन को सूचीत करो जातो है कि सब टिसू पेपर साथ में लेकर जा गजल को पढ़ें। काय कि बाद में हमाई कोई जिम्मेदारी नहीं है कि अगर कोई ने बोलो कि आँसुअन से हमारी साड़ी खराब हो गई जा गजल को सुन के। सुनो दद्दा जा उमर में तो हम पेली बार सुन रए हैं कि कोउ का जा उमर में भी दिल टूट सकत है। अभी तक तो हमने जवानी को ही सुनो है कि टूटने-फूटने को सारो काम जवानी में ही होत है। और तुम पे तो जवानी देस के आझाद होने से दस साल पेले आई थी और ता करके चली गई थी। सच्ची बताओ जे ऐसी गजल लिखबे के पीछे को असली कारण का हेगो। दर्द, काश, बंद, जे सब जो तुमने सबद लिए हैं न जे होली के दिन परतिबंधित होते हैंगे। भोत बुरी गजल।
सूचना- सड़ीमान राकेस खंड-खंडबाल जी, जो हर साल में दो ही बार नहाते हेंगे, होली पर और दीवाली पर, उनकी दीवाली के बाद से नहीं उतारी गई बनियान के मास्क बनाए जा रहे हेंगे। जे मास्क से कोरोना, सुवाइन फ़्लू, सबके भाईरस सौ मीटर दूर ही मर जाते हेंगे। एक बनियान में बस बीस मास्क बन रए हैं, जा कारण भोत महँगे हैं मास्क। सूचना एकदम्मे समापत हो चुकी हेगी। निकल लो सब। धा धिन धिन धा।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
सबसे पेले तो जे बताओ कि जे कोन सी डिरेस पेनी है तुमने। नीचे से आदमी और ऊपर से महिला। जे बात बिलकुल भी बरदास्त नहीं की जाएगी। और एक बात तो जे भी पूछनी हती कि हमने तो देखों तो कि एकदम सपाट मैदान हतो, फिर जे तुमाए माथे पर एकदम से इत्ते काली घनी जुल्फें टाइप की काँ से आ गईं। और सबसे बड़ी बात जे हेगी कि जे रंग जो तुमने चुनरी के नाम पे हाथ में ले रखो है, जे रंग अब पोल्टीक्स को रंग हेगो। झाँ पे कोऊ को भी पोल्टीक्स करनो अलाउ नहीं हेगो। बस हम चाय जित्ती पोल्टीकस कर सकते हैं। और तुमने अपनी उमर देखी है ? जा उमर में नाचने गाने से कमर को कोउ गुरिया सरक गओ, तो बैठे-बैठे मंदिर में माला को गुरिया सरकनो पड़ेगो। जो ठुमका लगानी की उमर नहीं हेगी, आराम से बैठो और गजल सुनाओ।
पर्वों में सब से सुहानी आ गयी होली,
फागुनी रस में नहाई आ गयी होली।
टेसुओं की ले के लाली आ गयी होली,
रंग बिखराती बसंती आ गयी होली।
देखिए अमराइयों में कोयलों के संग,
मंजरी की ओढ़ चुनरी आ गयी होली।
चंग की थापों से गुंजित फाग की धुन में,
होलियारों की ले टोली आ गयी होली।
दूर जो परदेश में हैं उनके भावों में,
याद अपनों की जगाती आ गयी होली।
होलिका के संग सारे हम जला कर भेद,
भंग पी लें देश-हित की आ गयी होली।
एकता के सूत्र में बँध हम 'नमन' झूमें,
प्रीत की अनुभूति देती आ गयी होली।
अभी हमने जे कुछ जो अपने सुनाओ है, जे हमने अमित आह अंकल को भेज दओ हेगो, कि जे दद्दा भी हर किछु के रए हेंगे, इनकी सरकार गिरा दो। काय कि कछु तो समझ में पड़े कि धोती है कि पजामा है। जा में तो कछु भी नहीं हेगा। हमें तो जे ही बात सिमझ में नहीं आ रही हेगी कि जे मंजरी, गुंजित, सूत्र, बसंती, जे सब को मतलब का हेगो ? सुनो दद्दा गजल केनी हती, कोउ मौसम को हाल नहीं सुनानो हतो, कि आज फलाँ जगे पे बरसात होगी, ने फलाँ जगे पे ओले पड़ेंगे। सुनो दद्दा एक काम करो, सबसे पेले तो तुम किसी टीवी पे चले जाओ, भाँ पे मौसम को हाल सुनाते रहियो। भाँ पे बोलना जा के कि आज दिल्ली में मौसम मंजरी की ओढ़ चुनरी रहबे बालो है और मुम्बई में किछु-किछु प्रीत की अनुभूति रहबे बाली है। सच्ची के रए हैं दद्दा तुमाई खुपरिया के एक-एक बाल सरोता उखाड़ के ले जाएँगे। का ...? बाल हैं ही नहीं खुपरिया पे ? बच गए फिर तो तुम।
सूचना- जा बार होलीका दहन के लिए कोई भी पूर्णिमा के चाँद को इंतेजार नहीं करे। काय के जा बारी सरकार ने कोरोना के कारण अलग से भ्यभस्था की हेगी। भोत ही कुख्यात सायर तिलकराज कपूर की खुपरिया को लाइव दिखाया जायगा, देख के सब लोग होलिका दहन कर सकते हैं। अब जे बात अलग से केनी पड़ेगी कि सूचना एकदम फिनिस हो चुकी है। निकल्लो सब। धा तिरकिट धा।
मन्सूर अली हाश्मी
ओ रे मोरे राम जी, जे क्या हाल बना रखो है तुमने ? तुमाई तो खूबइ घनेरी सुफेद कलर दाढ़ी हती, काँ गई । का मोई जी को दे दई तुमने अपनी दाढ़ी? काय के रंग तो एकदम तुमाई दाढ़ी जैसो ही है मोई जी की दाढ़ा को भी। कित्ते में दी दाढ़ी तुमने ? हमें झल्दी से बताओ नहीं तो हम सबको बता देंगे कि मोई ने हसमिया की दाढ़ी के बाल खरीद के इस्टाइल बनाई है। और बदले में हसमिया को असमिया का मुखमनन्तरी बनाबे को कोई अंदर ही अंदर समझौता कर लओ है। एक दद्दा जे करने से पेले तुमने जरा भी नहीं सोची कि बिना दाढ़ी के तुम केसे लगोगे। सही करो है तुमने जो अब भाभीजी की रिदा पेन ली है, काय के तुम अब इसी के ही लायक बचे हो। का के रए हो ? मोई जी बंगाल के बाद भापस कर देंगे तुमाई दाढ़ी ? काय मजाक कर रए हो, मोई जी और वापस करेंगे ? भोत बड़ी ग़लतफैमिली हो रही है तुमको। चलो हमें क्या है, गजल सुनाओ तुम तो।
'कोरोना' के हमक़दम ही चल रही होली
गुज़रे बारह मास लो फिर आ गयी होली
रंज पर, ग़म पर अलम पर छा गयी होली
फागुनी मस्ती में डूबी आ गयी होली
ऑनलाइन ले के पिचकारी खड़े बालम
बिन गुलालो रंग यह कैसी सखी होली
लकड़ी जल कोयला भयी, न ही उससे राख
इस तरह भी मन रही वर्च्युअली होली!
नफ़रतों को छोड़ अब हो जाओं इक रंग में
दिल मिलाने के लिये अब आ गयी होली
थे गधे बदनाम अबकि बार यह देखा
गाली की बौछार में खेली गधी होली* (*सियासी मैदान में )
'हाश्मी' लिखता रहा है तू हज़ल हर दम
चुप है क्युं हंगामा करती आ गयी होली
चार लाईना:
पूछा जब क़ाज़ी ने उसने झट से हाँ कर दी
मैं तो उसका था ही अब वह भी मेरी हो ली
चुलबुलापन, शौख़ी, मस्ती सब हुए काफ़ूर
लाज का मतलब जो समझाया बड़ी हो ली!
सुनो पेले तो एक बात हमारी, जे तुम केते हो न कि हमने जे हजल लिखी है, तो सबसे पेले तो अपनी ये वाली गलतफैमिली भी दूर कर लो कि जा के एक मिसरे पर भी किसी को हँसी तो छोड़ो छोटी सी तबस्सुम भी आई हो। हाँ जे बात एकदम पक्की है कि एक-एक मिसरे पर सब लोग-लुगाइन फूट-फूट के रोबे लगे थे। कछु तो इत्ते इमोसनल हो गए कि उनको इमोशनल कंट्रोल करबे के लाने अलग से टीको लगबानो पड़ो। अब सुनो हमाई एक बात, तुम आगे से जा को नाम हजल मत रखियो, जा को नाम रखियो रुअल। और सुनो एक बात कान में, कोउ से जे मत कहियो कि जे हमने हँसी की गजल लिखी है, सबसे कहियो कि जे रुअल है, जो भी सुनेगो बो फूट-फूट के रोबे लगेगो। अब जे बात तो तुम्को और हमको पता है न कि असल में तो हँसने के लिए लिखी थी। लोग-लुगाइन को कौन पतो है। लोग रोएँगे और तुमको पक्की में जा बार को खाँसकर पुरस्कार मिल जाएगो।
सूचना- जा बार को होली को #@##@ पुरस्कार अगर आपको प्रापत करनो है, तो आपको ऊपर दी गई हजल को पढ़ कर हँस कर आभश्यक रूप से दिखाना है। जो भी हँसने की कोसिस करेगा उसको हशमिया हासपीटल में एकदम्मे फ्री में टीका लगवाया जाएगा। अब क्या लिख के दें कि सूचना समाप्त हो चुकी है, चलो भाई काम करने दो। अटक-अटक झटपट पनघट पर।
निर्मल सिद्धू
ओरी मोरी मैया, जो का कर रही आप ? सच्ची बात हेगी कि जा माइक बोई माइक है जिससे कल रात को राकेश खंड-खंडबाल ने पूरी रात गीत पेल-पेल के सारे सरोता मार डाले और आप अकेली इसलिए बच गईं कि आप बहरी हतीं। पर जा बात पर इत्तो डिपरेशन करने की का झरूरत हेगी। हो जातो है ऐसो कभी-कभी। इसमें सूसाइड करने की कोनो बात नहीं है। आप सुन नहीं पाईं जा कारणे से आप बच गईं, जो सुन सकते थे, बे सब निकल लिये। आप बिलकुल भी इस बात को अपने हिरदय पर मत लीजिए, हम अगली बार आपके लिए भी पूरी भ्यभस्था कर रहे हेंगे, अगली बार होली पर खंड-खंडबाल जी साइन लैंगुएज मतलब मूक-बधिरों वाली भाषा में पूरी रात अपने गीत सुनाएँगे। मल्लब जे कि अगली बार आपके भी पूरे चाँस है, सुअर्ग के दरसन करने के। एक साल इंतेजार कर लीजिए और आप तो गजल सुनाइये अपनी पेले।
गीत ख़ुशियों के सुनाती आ गई होली
फागुनी मस्ती में डूबी आ गई होली
हर अदा हो ली रंगीली आ गई होली
भींगे कुर्ता भींगे चोली आ गई होली
बिन पिये मदहोशियों का दौर है यारा
हो चले सारे शराबी आ गई होली
रंग सपनों में भरे उसने मुहब्बत के
हाथ पे धर हाथ बोली आ गई होली
चाल मद्धम हो चली है ज़िन्दगी की अब
जोश उसमे फिर जगाती आ गई होली
दौर ये कुछ ख़ास 'निर्मल' हो भले ना पर
प्यार के मोती लुटाती आ गई होली
एक बात सुनो दद्दा, सबसे पेले तो हमाई एक बात को अपनी सर्ट में गठान बाँध के रख लो। जब भी कभी ग़जल लिखो तो सिर पर टोपी पहन कर लिखा करो। हमाई पूरी बात तो सुनो बाद में घुस्सा हो लेना गाली बक देना। हम जे कहना चाह रहे हैं कि जे तुमाई गजलों में जो भाव की कमी पड़ जाती है न उसके लिए भोत जरूरी है कि सिर पर टोपी लगा कर गजल लिखी जाए। काय ? उसके पीछे कारण जे हेगा कि भाव तो भोत आते हैं, पर एकदम सिलपट्टी खुपरिया पे से खिसल जाते हैं और गजल तक पहुँच ही नहीं पाते हैं, जा के लाने ही हमने तुमसे कही है कि जब भी गजल लिखो तो सबसे पहले सिर पर टोपी पेन लो। बा से का होगा कि जब भिचार आएगा, भाव आएगा तो चिकनी जगे पे खिसलेगा नहीं, और टोपी के कारण हिलग जाएगा, जैसे कटी पतंग पेड़ पर हिलगी रहती है। बस भहीं से भिचार को उठा के अपनी गजल में पेल देना। लाख टके की बात मुफत में बता दी है तुमको।
सूचना- पिछौती वाली बीड़ के परसोत्तम को छोटो लड़को छोटोमल अपने पास के खेत में सिर के बल खड़ो पाओ गओ है, गुपत सूचना से पराप्त जानकारी के अनुसार बाने कोई डाली मोगरे की नाम की किताब पूरी पड़ ली थी, जा के कारण बाकी खुपरिया फिर गई और बाको सब किछु उल्टो दिखाई दे रहो है। फूलिस ने किताब जपत कर ली हेगी। और.... ? का पूरा दिन सूचना ही सुनाते रेंगे हम ? चलो भाई पच्चीस झूठ हमसे बुलवा रहे हो। ता थैया, ता थैया हो।
संजय दानी
दिल चीज क्या है आप ज़रा पान लीजिए। हमें सबसे पेले तो जे बात बताई जाए कि जब सारी तरफ कोरोना हो रओ है तो आप जे का कर रही हेंगी। इत्ता सज धज के बैठने पर 27 मार्च की रात बारह बजे से रोक लग गई है। रोक लगने को कारण जे हेगा कि कोरोना को भाइरस भोत ही अलग तरे को हेगो। जा को कोई भरोसो नहीं है। इत्तो सारो सोनो-चाँदी देख के बाको दिल भी खराब हो सके है। और दूसरी बात जे हेगी कि आप जैसी इत्ती ज्यादा सुंदर सन्नारियों को इत्ता सारा मेकअप करने पर एकदम परतिबंध ही लग चुका है। काय कि कोरोना का दिल गहने पर न आ के आप पे ही आ गया तो भोत गजब हो जाएगा। फिर तो उसको धरती से भगाना एकदम्मे असंभव हो जाएगा। तो हमाई बात सुनिये कोरोना के भाइरस से दो गज की दूरी बनाए रखिये, बाकी तो आप की बुद्धि के बारे में दुनिया को सब पता ही हेगा।
सखियों स्वागत करना घर आई है हमजोली
फ़ागुनी मस्ती में डूबी आ गई होली
डूबी मस्ती में वतन की हर फ़िज़ा ऐसी
मेरे वाली ने भी बोली प्यार की बोली
इस तरह का है नशा त्यौहार का दानी
आज वह बेदर्द लड़की भी मेरी हो ली
ना चली गोली न दहशत गर्दी हो पायी
हिन्द में मानवता ने अपनी ज़ुबां तौली
जात मज़हब की रिवायत टूटने को है,
हिन्दू मुस्लिम नाचेंगे यारो बना टोली
दुश्मनी की बात सारी ख़त्म हो मौला
प्यार से सरहद की भर दे आज हर झोली
सुनो तो दद्दा, जा जो आपकी गजल है, जे एकदम ऐसी लग रइ है, जैसे किचिन में रखा हुआ मसाले का डिब्बा हो। बा में सब तरे के मसाले छोटी-छोटी कटोरियन में रखे रेते हैं न, बैसे ही आपने भी भोत सारे मिसरों को एक गजल के डब्बे में बंद कर दिया है। कोई मिसरा एकदम धनिये जैसा है तो कोई एकदम हल्दी जैसा, कोई मिर्ची जैसा। पर दद्दा एक बात तो बताओ आप डाकटर हो तो क्या आपको मिसरे में काफिया सरकाने की कला भी आती है ऑपरेशन कर के। काय के हमने तो काफिया दो इंच पीछे दिया था, आपने उसका ऑपरेशन कर उसे खिसका कर एकदम अंत में कर दिया। और एक बात हम आपको बता रय हैं, आप डाकटर हो सो हमाई बात को धियान से सुन लो। आपके पास वो हुनर है कि आप मरीज को बिना दवाई के बस अपनी गजल सुना कर ही ठीक कर सकते हो। कैसे ? वो ऐसे कि मरीज को बिसवास हो जाएगा कि उसकी बीमारी से भी भयानक कोई चीज है दुनिया में और वो कानफीडेनस में ही ठीक हो जाएगा। नहीं डाकसाब ये गाली तो आपने पिछली होली पर दी थी, इस बार तो कोई नई दो।
सूचना- भभ्भड़ कवि भौंचक्के ने घोसना की है कि जो लोग-लुगाइन इस बार मुसायरे में नहीं आए हेंगे, उनके नाम से बुरी-बुरी गजलें वो खुद लिख कर लगाएँगे। कौन बोला कि भभ्भड़ को अलग से बुरी लिखने की झरूरत नहीं है ? अच्छा ? जो बोला उसके नाम से इस्पेसल लिखेंगे। सूचना समापत भई, झिगिटाटा, थो थुडंग धिग धा।