सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

शिवना प्रकाशन की नई पुस्तक अंधेरी रात का सूरज का हुआ वैश्विक विमोचन - एक रिपोर्ट

सीहोर के शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित  वाशिंगटन के भारतीय मूल के कवि श्री राकेश खण्डेलवाल के काव्य संग्रह अंधेरी रात का सूरज का विमोचन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ तीन स्थानों पर किया गया इंटरनेट पर हिंद युगम द्वारा सीहोर में शिवना प्रकाशन के  कार्यक्रम में तथा अमेरिका के वर्जीनिया में वाशिंगटन हिंदी समिति के आयोजन में । सीहोर में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता स्थानीय कालेज में हिंदी की प्राध्यापक डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे ने की, आयोजन में अखिल भारतीय कवियित्री मोनिका हठीला मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं । विशेष अतिथि के रूप में नई दुनिया के ब्‍यूरो प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार वसंत दासवानी तथा कृषि वैज्ञानिक श्री डॉ आर सी जैन  उपस्थित थे । आयोजन शिवना प्रकाशन के सम्राट काम्प्लैक्स स्थित कार्यालय पर आयोजित किया गया  जहां पर स्थानीय कवियों तथा साहित्यकारों के मध्य अंधेरी रात का सूरज का विमोचन किया गया  । कार्यक्रम का संचालन दैनिक जागरण के ब्‍यूरो प्रमुख युवा पत्रकार प्रदीप चौहान ने किया ।

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सर्वप्रथम अतिथियों ने ज्ञान की देवी मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर तथा पूजन अर्चन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया । तत्पश्चात सीहोर के युवा कवि जोरावर सिंह ने मां सरस्वती की वंदना का सस्वर पाठ किया । शिवना प्रकाशन की ओर से श्री कृष्ण हरी पचौरी,  श्री शंकर प्रजापति, श्री अशोक सुन्दरानी, श्री सुभाष चौहन, श्री लक्ष्मीनारायण राय,  आदि ने अतिथियों का स्वागत पुष्प माला से किया । वरिष्ठ शायर डॉ. कैलाश गुरू स्वामी ने स्वागत भाषण देते हुए शिवना की ओर से सभी का स्वागत किया । शिवना की ओर से जानकारी देते हुए प्रकाशक पंकज सुबीर ने अंधेरी रात का सूरज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि शिवना का ये चौथा संग्रह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि ये सात समंदर पार जाने का शिवना का प्रयास है । 

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तत्पश्चात काव्य संग्रह का विमोचन सीहोर के प्रबुध्द जनों की उपस्थिति में किया गया ।  इस अवसर पर कवियित्री मोनिका हठीला ने श्री राकेश खण्डेलवाल के गीतों का सस्वर पाठ किया । अपने संबोधन में श्री वसंत दासवानी ने कहा कि शिवना ने ये जो प्रयास किया है ये गौरवपूर्ण उपलब्धि है सीहोर शहर के लिये । उन्होंने साहित्य और तकनीक का समन्वय करने की आवश्यकता पर जोर दिया ।    श्री आर सी जैन ने कहा कि सीहोर के कवियों के संग्रह सामने लाकर शिवना ने एक अच्छा काम किया है और अब विश्व साहित्य से जुड़ कर शिवना भी एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था बन चुकी है । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं स्थानीय कालेज में हिंदी की विद्वान प्राध्यापक डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे ने अंधेरी रात का सूरज पर बोलते हुए संग्रह के गीतों को भारतीय परम्परा का वाहक निरूपित किया और कहा कि राकेश खण्डेलवाल जी ने आज के समय में हिंदीके गीतों पर जो कार्य किया है वह इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज हिंदी के छंदों की परम्परा के साधक कम नजर आते हैं । उन्होंने कहा कि श्री खण्डेलवाल के गीत वास्तव में अंधेरी रात का सूरज ही हैं क्योंकि वे क्लांत मानव मन को प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करते हैं । शिवना की ओर से राजस्‍थान पत्रिका के ब्‍यूरो प्रमुख पत्रकार श्री शैलेष तिवारी ने मंगल तिलक कर तथा शाल भेंट कर अध्यक्षता कर रहीं डॉ. पुष्पा दुबे तथा मुख्य अतिथि मोनिका हठीला को सम्मानित किया । आभार प्रदर्शन करते हुए वरिष्ठ कवि श्री हरिओम शर्मा दाऊ ने सभी पधारे हुए अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया । कार्यक्रम का गरिमामय संचालन युवा पत्रकार प्रदीप चौहान ने किया ।   इसके अलावा इस विमोचन को इंटरनेट पर हिंदी के प्रमुख जाल समूहों में से एक हिंद युग्म पर भी आयोजित किया गया जहां पर विश्व भर में फैले हिंदी के लाखों पाठकों ने हिंद युग्म की साइट पर जाकर विमोचन में भाग लिया  । कार्यक्रम में बड़ी संख्या में  स्थानीय साहित्यकार पत्रकार और कवि भी उपस्थित रहे ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. 'aayojkon shett sbhee ko bhut bhut bdhaee, how to get this book, please let me know'

    regards

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  2. ...कुछ जल्द ही बेताबी दिखा दी मैंने...और इधर आपके रपट आ भी गयी.
    मुझे सर तीन-चार प्रतियों की जरुरत है.कितने का ड्राफ्ट वगैरह भेजना पड़ेगा?

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  3. एक तो कवि राकेश खंडेलवाल जी की कवितायें दूसरे शिवना प्रकाशन का प्रयास...याने सोने में सुहागा...कार्यक्रम तो सफल होना ही था...अफ़सोस हम न हुए वहां...चलिए भरपायी स्वरुप रिपोर्ट मिल गयी...अब किताब का इंतज़ार है...
    नीरज

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  4. ''अधेरी रात का सूरज'' प्राप्त कर पाने के साधन पर यदि प्रकाश डालें तो अतिशय कृपा होगी.
    आभार.

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  5. Subeer g,
    राकेश जी के शिवना विमोचन की रपट की इंतज़ार थी...
    क्या बात है बड़े भाई...
    रिपोर्ट पढ़ कर बड़ा आनन्द आया..

    एक दिन में एक किताब का तीन तीन जगह विमोचन
    यह आप ही के बस की बात थी

    आपको इस आयोजन की बधाई

    इस प्रकाशन की बधाई

    और हां आपके ब्लाग पर घूमता हुआ पीछे चला गया
    to एक हिमाक़त और कर दी
    देख लीजियेगा
    दो-चार शेर कहने की हिम्मत की है
    जल्दबाज़ी को नज़रअंदाज़ करें

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  6. बहुत बहुत बधाई और आपकी मेहनत सफल हुई उसकी खुशी है ~~
    -लावण्या

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  7. रिपोर्ट पढ़ कर बड़ा आनन्द आया..

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  8. इतनी सारी शुभकामनायें, इतना अपनापन और बिखरते हुए शब्द हाथ में पकड़े
    व्यस्तताओं से जूझता मैं. यद्यपि मेरा प्रयास होता है कि सभी को व्यक्तिगत
    तौर पर संदेशों के उत्तर लिखूँ. इस बार ऐसा होना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है
    इसलिये सभी को सादर प्रणाम सहित आभार व्यक्त कर रहा हूँ. भाई समीरजी,
    पंकज सुबीरजी, सतीश सक्सेनाजी. नीरज गोस्वामी जी, कंचन चौहान जी,
    गौतमजी, रविकान्तजी, मीतजी, राजीव रंजन प्रसादजी, पारुलजी संजय पटेलजी.
    पुष्पाजी, मोनिकाजी, रमेशजी, रंजनाजी, रंजूजी, सीमाजी,अविनाशजी,फ़ुरसतियाजी,
    लवलीजी,अजितजी,योगेन्द्रजी,पल्लवीजी,लावण्यजी,शारजी,संगीताजी,अनुरागजी,मोहनजी,
    तथा अन्य सभी मेरे मित्रों और अग्रजों को अपने किंचित शब्द भेंट कर रहा हूँ

    मन को विह्वल किया आज अनुराग ने
    सनसनी सी शिरा में विचरने लगी
    डबडबाई हुई हर्ष अतिरेक से
    दॄष्टि में बिजलियाँ सी चमकने लगीं
    रोमकूपों में संचार कुछ यूँ हुआ
    थरथराने लगा मेरा सारा बदन
    शुक्रिया लिख सकूँ, ये न संभव हुआ
    लेखनी हाथ में से फ़िसलने लगी

    आपने जो लिखा उसको पढ़, सोचता
    रह गया भाग्यशाली भला कौन है
    आपके मन के आकर निकट है खड़ा
    बात करता हुआ, ओढ़ कर मौन है
    नाम देखा जो अपना सा मुझको लगा
    जो पढ़ा , टूट सारा भरम तब गया
    शब्द साधक कोई और है, मैं नहीं
    पूर्ण वह, मेरा अस्तित्व तो गौण है

    जानता मैं नहीं कौन हूँ मैं, स्वयं
    घाटियों में घुली एक आवाज़ हूँ
    उंगलिया थक गईं छेड़ते छेड़ते
    पर न झंकॄत हुआ, मैं वही साज हूँ
    अधखुले होंठ पर जो तड़प, रह गई
    अनकही, एक मैं हूँ अधूरी गज़ल
    डूब कर भाव में, पार पा न सका
    रह गया अनखुला, एक वह राज हूँ

    आप हैं ज्योत्सना, वर्त्तिका आप हैं,
    मैं तले दीप के एक परछाईं हूँ
    घिर रहे थाप के अनवरत शोर में
    रह गई मौन जो एक शहनाई हूँ
    आप पारस हैं, बस आपके स्पर्श ने
    एक पत्थर छुआ और प्रतिमा बनी
    आपके स्नेह की गंध की छाँह में
    जो सुवासित हुई, मैं वो अरुणाई हूँ.

    सादर

    राकेश खंडेलवाल

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