पिछले दिनों से काफी व्यस्त हूं इस कारण न तो मेल का जवाब दे रहा हूं और ना ही ब्लागों पर कमेंट कर पा रहा हूं । अपने ही ब्लाग पर काफी काफी दिनों में पोस्ट लगा रहा हूं । आशा है कुछ दिन के लिये मुझे इस व्यस्तता के कारण क्षमा करेंगें ।
इस बार तरही के निर्णायक पद पर आसीन होने का मेरा अनुरोध परम आदरणीय दादा भाई महावीर शर्मा जी ने स्वीकार कर मुझे उपकृत किया । उन्होनें बहुत ही बेहतरीन तरीके से पूरे मुशायरे की समीक्षा की है । हालंकि स्वास्थ्य को लेकर उनको कुछ समस्याएं हैं फिर भी नयी प्रतिभाओं को लेकर उनके मन में जो भाव है उसके चलते उन्होंने मेरे अनुरोध को स्वीकार किया । मैं आभारी हूं । पिछली बार श्रद्धेय प्राण शर्मा साहब ने इस कार्य को हमें उपकृत करते हुए स्वीकार किया था और इस बार दादा भाई ने ये कार्य किया है । हमारे तरही मुशायरे की सफलता का और क्या सुबूत हो सकता है ।
पहले तो आदरणीय समीर लाल जी और आदरणीया भाभीजी को आज उनकी विवाह की वर्षगांठ के अवसर पर बधाई । पूरे ब्लाग जगत की ओर से ईश्वर से कामना करते हैं कि इस युगल जोड़ी को अपने आशीर्वाद और करम से नवाजे । समीर लाल जी पूरे ब्लाग जगत के चहेते हैं और उनका अपना एक मुकाम है । ये अलग बात है कि इन दिनों काली पैंट और लाल शर्ट में घूम रहें हैं ।
समूचे ब्लाग जगत की ओर से युगल को वर्षगांठ की शुभकामनाएं
तरही मुशायरे का परिणाम :-
इस बार दादा भाई महावीर शर्मा जी ने तरही के निणार्यक का पद स्वीकार किया था । वैसे वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं किन्तु परम्परा है कि परिचय दिय जाता है सो मैं दे रहा हूं ।
दादा भाई आदरणीय महावीर शर्मा जी
जन्म : 20 अप्रैल 1933 दिल्ली, भारत में। शिक्षा : एम. ए. हिंदी। लंदन यूनिवर्सिटी तथा ब्राइटन यूनिवर्सिटी में मॉडर्न गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स। उर्दू का भी अध्ययन। कार्यक्षेत्र : 1962 से 1964 तक स्व: श्री ढेबर भाई जी के प्रधानत्व में "भारतीय घुमंतू जन सेवक संघ" के अंतर्गत "राजस्थान रीजनल ऑर्गनाइज़र" के रूप में कार्य किया। 1965 में इंग्लैंड प्रस्थान। 1982 तक भारत, इंग्लैंड तथा नाइजीरिया में अध्यापन। 1992 स्वैच्छिक पद से निवृत्ति के बाद लंदन ही मेरा स्थाई निवास स्थान है। 1960 से 1964 तक की अवधि में हिंदी और उर्दू की मासिक तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ और लेख ''महावीर यात्रिक'' नाम से प्रकाशित।
दादा भाई के दो ब्लाग हैं महावीर और मंथन जहां विशुद्ध साहित्यिक आयोजन वर्ष भर होते रहते हैं । दादा भाई के बारे में और जानने के लिये आप यहां और यहां पर देख सकते हैं ।
तो पेश है आदरणीय महावीर जी द्वारा की गई तरही मुशायरे की समीक्षा जस की तस :-
सुबीर जी ने जुलाई का तरही मुशायरा एक अनोखे अंदाज़ से पेश किया है. इस मुशायरे के हासिले मुशायरा शेर के चयन करने का दायित्व मुझे दिया है. सच तो बात यह है कि यह दायित्व पूरी तरह से निभाना एक बहुत कठिन कार्य है. आप शायद जानते हों कि सुबीर जी मुझे 'दादा भाई' से संबोधित करते हैं. 'दादा भाई' के नाते अनुज सुबीर को मुझ पर पूरा अधिकार है और इसी कारण यह ज़िम्मेदारी लेनी ही पड़ी.
अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार तरही की ग़ज़लों में से सर्वश्रष्ठ शेर चुनने का प्रयत्न करता हूँ.
यह कहना आवश्यक है कि वरिष्ठ साहित्यकारों डॉ. सुधा ढींगरा जी, देवी नागरानी जी और नीरज गोस्वामी जी तथा विख्यात ग़ज़लकार डॉ. मोहम्मद आज़म साहेब को इस प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जा रहा है. ऐसे साहित्यकारों की रचनाएँ तो प्रेरणात्मक और प्रोत्साहक होती हैं जन्हें पढ़कर कुछ सीखा जाता है.
सामूहिक रूप से तरही की सारी ही ग़ज़लें खूबसूरत, सार्थक और प्रभावशाली हैं, हृदयगत भावनाओं, सुन्दर विचारों, कल्पनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति है, ऐसे तेवर हैं कि क़फ़िये बोल उठे हैं. अधिकाँश ग़ज़लों में यह गुण देखा गया है ग़ज़लकार ने जैसे सोचा-समझा है, पढ़ने वालों तक उसी रूप में संप्रेषित हुई है. अक्सर, अन्दाज़े-बयां दिलकश हैं, शेर के दोनों मिसरे एक दूसरे से संबद्ध हैं और व्याकरण सम्मत हैं. कुछ ग़ज़लें अलिफ़ वस्ल लयात्मक संधि, तक़रार, बहरों की पेचीदगियों की अच्छी मिसालें हैं.
आप जानते ही हैं कि कभी-कभी बड़े शायरों की ग़ज़लों में भी कोई छोटी सी त्रुटि नज़र आ जाती है. इस प्रतियोगिता में भी कहीं एकाध ग़ज़लों में ऎसी बातें देखी जा सकती हैं जैसे एक जगह ग़ज़ल कहते कहते एक मिस्रा बहर से ख़रिज होगया है. दो जगह ऐसा भी देखा गया है कि शायर ने जिस ख़याल को लेकर मिस्रा लिखा है, अस्पष्टता के कारण पढ़ने वाले के हृदय-पटल पर उसी प्रकार से अंकित नहीं हो सका. ख़याल पाठक तक उसी प्रकार से संप्रेषित नहीं हो पाया. कुछ मिसरे क्रिया-हीन के कारण अपना असर खो बैठे. वचन, लिंग, काल और देश को सभी ने भलीभांति निभाया है.
अब बारी आती है कि कौन सा शेर चुना जाये जो तख़य्युल और तग़ज़्ज़ुल में अपना कमाल दिखा सके, हृदयगत भावनाएं दिल की गहरायी को छू लें, सरल और संयत भाषा हो, शब्द नगीनों की तरह जड़े हों, बहर और वज़न सही रूप में इस्तेमाल किये गए हों. भाव और शब्दों का मेल ताल ऐसा हो कि ग़ज़ल में तरन्नुम और गेयता हो. तग़ज़्ज़ुल तरन्नुम के बिना अधूरा सा लगता है. ऐसे ही गुणों को ध्यान में रखते हुए अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार अपना मत दे रहा हूँ. यह आवश्यक नहीं है कि आप भी इससे सहमत हों. इस असहमति का आपको पूरा पूरा अधिकार है.
अपनी राय देने से पहले यह भी कहना चाहता हूँ कि कभी कभी नव-शिक्षु ऐसा शेर कह जाता है कि अनायास ही मुंह से 'वाह!' निकल जाता है और बड़े बड़े शायर कुर्सी से उठकर असकी सराहना करने लगते हैं. काफ़ी दिनों की बात है, फ़ोन पर बात करते हुए प्राण शर्मा जी ने एक किस्सा सुनाया. संभवत: यह घटना १९वी शताब्दी के ८०वे दशक की है. एक महफ़िल में एक बड़े शायर अपना कलाम पढ़ रहे थे. मिस्रा पढ़ा:
'दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग़ से'
लेकिन किस्मत की मार, वो अगला मिस्रा भूल गए, कोशिश के बावजूद भी ज़बान तक नहीं आ पाया. कुछ घबराहट, हलकी सी शर्मिंदगी भी, परेशान होगये. उसी वक़्त एक छोटी उम्र का लड़का उठा और उसी बहर में शेर पूरा कर दिया:
'इस घर को आग लग गयी घर के चराग़ से.'
बुजुर्ग शायर ने लड़के को सीने से लगा लिया और कहा: 'आज से तू मेरा उस्ताद है.'
हो सकता है कि शायद आज भी आपको कुछ ऐसा लगे.
मुझे ऊपर लिखी बातों के आधार पर ३ आशा'र पसंद आये हैं.
रविकांत पाण्डेय जी की ग़ज़ल का मतला:
"मुग्ध होना बाद में उसकी मधुर झंकार से
दर्द पहले पूछना वीणा के घायल तार से."
वीनस केसरी जी का यह शेर:
"हम किताबे-ज़िन्दगी के उस वरक़ को क्या पढ़ें
जो शुरू हो प्यार से औ ख़त्म हो तक़रार से"
(लगता है वीनस जी ने टाइपिंग में 'पढ़ें' की जगह 'पढ़े' लिख दिया है.)
मेजर संजय चतुर्वेदी की ग़ज़ल का मतला भी बहुत पसंद आया:
"माँ से छत, रिश्तों से चौखट और हद है प्यार से
ईंट गारे से नहीं बनता है घर, परिवार से."
१० के स्केल पर रविकांत पाण्डेय जी और वीनस केसरी जी को १०,१० और मेजर संजय चतुर्वेदी जी को ९ नंबर दिए हैं. यदि सुबीर जी आज्ञा दें तो इस प्रतियोगिता में रविकांत जी और वीनस जी दोनों के उक्त शेरों को 'हासिले मुशायरा शेर' कहे जायें.
अंत में मेरी ओर से प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी ग़ज़लकारों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी बेहतरीन ग़ज़लों से इस मुशायरे का मान बढ़ाया है. साथ ही सुबीर जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे निर्णायक की कुर्सी पर आसीन कर दिया. आशा है डॉ. सुधा ढींगरा जी, देवी नागरानी जी, नीरज गोस्वामी जी और डॉ. मोहम्मद आज़म जी जैसे गुणी साहित्यकारों की रचनाओं से नए कवियों/ग़ज़लकारों को प्रेरणा मिलती रहेगी. महावीर शर्मा
बधाई हो बधाई दोनों को वीनस को भी और रविकांत को भी । दोनों ने मिल कर मैदान मारा है । संजय चतुर्वेदी भी बधाई के हकदार हैं । तो दादा भाई घोषित कर ही चुके हैं कि इस बार तरही के विजेता दो युवा शायर वीनस केसरी और रविकांत पाण्डेय हैं । बधाई दोनों को ।
और मुझे दीजिये आज्ञा ।