सोमवार, 22 दिसंबर 2014

मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई, अभी कुछ गज़लें प्राप्‍त हो गई हैं तो कई प्राप्‍त होने की प्रक्रिया में हैं ।

मित्रों नया साल बिल्‍कुल पास आ गया है। और इस पास आने के क्रम में हमारा तरही मुशायरा भी पास आ गया है। जैसा कि हमने तय किया है कि हम नये साल के आने के कए दो दिन पूर्व में ही अपने मुशायरे को प्रारंभ करेंगे। तो आज की ये पोस्‍ट एक रिमाइण्‍डर के रूप में है कि जागो सोने वालों और भेजो अपनी ग़ज़ल।

जैसा कि आपको पिछली बार बताया था कि आने वाले  दो माह बहुत व्‍यस्‍तता के होने वाले हैं। इन दो महीनों में शिवना के आयोजन होने हैं। सबसे पहले तो जनवरी में 19 तारीख को शिवना प्रकाशन का वार्षिक आयोजन होना है। इस आयोजन में शिवना द्वारा दिये जाने सम्‍मान प्रदान किये जाएंगे। एक सम्‍मान तो पूर्व घोषित किया जा चुका है जो आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी को प्रदान किया जाएगा। और दो सम्‍मान भी कार्यक्रम में प्रदान किये जाने हैं जिनकी घोषणा जल्‍द ही की जाएगी। एक सम्‍मान पत्रकारिता अथवा शोध पुस्‍तक को लेकर दिया जाना है जिसके लिये चयन प्रक्रिया अब अंतिम दौर में है। दूसरा सम्‍मान कविता को लेकर दिया जाना है जिसके नाम की भी बस औपाचारिक घोषणा ही की जानी है । तो ये तीन सम्‍मान कार्यक्रम में दिये जाने हैं और साथ में एक छोटी सी नशिश्‍त भी होनी है। कार्यक्रम में आने को लेकर अभी तक इस्‍मत जी, अंकित सफ़र, वंदना अवस्‍थी जी आदि की स्‍वीकृति प्राप्‍त हो चुकी है। आशा है और लोगों की भी सूचना आएगी।

मित्रों इस बार दिल्‍ली के विश्‍व पुस्‍तक मेले में शायद शिवना प्रकाशन का प्रथम बार स्‍टॉल लगेगा। 14 फरवरी से 22 फरवरी तक दिल्‍ली ही मुकाम रहेगा। शिवना प्रकाशन शायद कुछ आयोजन भी वहां करे। हो सकता है कि कोई आयोजन हिन्‍दी ग़ज़ल की नई पीढ़ी पर भी हो। अभी कुछ भी तय नहीं है लेकिन हां ये तय है कि शिवना प्रकाशन वहां पर कुछ आयोजन करने जा रहा है । और अपने राम तो दस दिन तक दिल्‍ली में रहेंगे ही। आप सब से मिलने का एक मौका होगा। यदि आप भी उस दौरान दिल्‍ली में हों तो आइये। शिवना प्रकाशन आप सब का है तो आप अपने ही स्‍टाल पर आइयेगा ।

इस बार का मिसरा काफी सराहा गया है और कुछ लोगों की विशेष टिप्‍पणी ये भी आई है कि इस बार का मिसरा जो है वो रंगे नीरज गोस्‍वामी लिये हुए है। क्‍योंकि उसमें मोगरे का फूल आ गया है। मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई। जो ग़ज़लें मिली हैं उनमें मिसरे पर गिरह ऐसी कमाल लगी है कि बस मज़ा ही आ गया। कुछ लोगों का कहना है कि मिसरे में यदि भूतकाल की जगह वर्तमान काल होता अर्थात 'थी' के स्‍थान पर 'है' होता तो बात कुछ और सुंदर बनती । मेरा मानना है कि उस स्थिति में मिसरा कुछ सरल हो जाता। पहले जो मिसरा रचा गया था वो है के साथ ही था, लेकिन उसमें यही लगा कि कुछ सरल हो रहा है। सो कठिनता को बढ़ाने के लिये भूतकाल किया गया।

तो ये सुंदर मिसरा आपकी क़लम का परस पाने को बेचैन है

मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

चलिए नए साल के आने पर कुछ नया काम काज शुरू करते हैं कुछ नया लिखते पढ़ते हैं। जानकारी 19 जनवरी शिवना सम्‍मान की, पुस्‍तक मेले की और तरही मुशायरे की।

मित्रों दीपावली को तरही मुशायरा बहुत अच्‍छे से संपन्‍न हुआ । सभी ने बहुत कम समय में बहुत अच्‍छी ग़ज़लें लिख कर भेजीं । सबसे अच्‍छी बात ये लगी कि सबमें उत्‍साह बहुत था। जीवन में उत्‍साह ही सबसे ज़रूरी चीज़ है । यदि उत्‍साह है तो फिर सब कुछ संभव है। जीवन में सबसे बड़ी समस्‍या तब पैदा होती है जब हममें उत्‍साह की कमी होने लगती है। यदि हम लेखक हैं तो हमें कुछ समय बाद ये लगने लगता है कि हओ.... अब किसके लिये लिखें। इत्‍ता तो लिख दिया । जो एक चार्म था लेखक बनने का वो तो पूरा हो ही गया है अब किसके लिये और क्‍यों लिखा जाए। इसका मतलब ये था कि हम लिखने के लिये नहीं बल्कि कुछ बनने के लिये लिख रहे थे। एक मुकाम हासिल करने के लिये। यही सबसे ख़तरनाक होता है। पाश की कविता है-

सबसे ख़तरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना, सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर, और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना

यह कविता काफी कुछ कहती है। और इसकी अंतिम पंक्तियों मुझे बार बार कुरेदती रहती हैं। सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना। सचमुच एक कलाकार के लिए सबसे ख़तरनाक होता है उसके सपनों का मर जाना । क्‍योंकि सपने ही तो हमें उत्‍साह देते हैं । और जैसा मैंने पहले कहा कि उत्‍साह से ही सब कुछ होता है। सुबीर संवाद सेवा के पिछले मुशायरे में मुझे यह अनुभव हुआ कि उत्‍साह तो अभी तक बाकी है। निरंतरता में कुछ कमी है जिसे पूरा करने का प्रयास करना है । तो उसी क्रम में आइये शुरू करते हैं नये साल का मुशायरा। मुशायरे के लिये आसान बहर पर आसान सा मिसरा बनाया गया है। बहर तो पुरानी ही है । बहरे रमल मुसमन महजूफ अर्थात 2122-2122-2122-212 फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन । और इस बहर पर जो मिसरा बनाया गया है वो इस प्रकार है

''मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई''

इसमें चांदनी की जो 'ई' की मात्रा है वो है क़ाफिये की ध्‍वनि और उसके बाद जो 'सोई हुई' है वो रदीफ है। कुछ कठिन हो सकता है ये कॉम्बिनेशन लेकिन अब हमें कुछ कठिन करने की आदत तो डालनी ही होगी। बहर तो आसान है इसलिये मुझे नहीं लगता कि आप जैसे माहिरों को कोई परेशानी आनी चाहिये। मेरे विचार में यदि आप सब लोग दिसम्‍बर अंत तक अपनी रचनाएं भेज देते हैं तो फिर हम जनवरी में आयोजन कर सकते हैं।

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एक समाचार ये है कि 19 जनवरी 2015 को शिवना प्रकाशन के वार्षिक आयोजन में इस्‍मत ज़ैदी जी को शिवना सम्‍मान प्रदान किया जाएगा। अन्‍य दो नामों की जिनमें एक पत्रकार तथा एक कवि हैं उनके नामों की घोषणा शीघ्र की जाएगी। सम्‍मान समारोह तथा काव्‍य पाठ इस प्रकार दो चरणों में कार्यक्रम का आयोजन होगा। आप सब इस कार्यक्रम में सादर साग्रह आमंत्रित हैं। आपके आने से कार्यक्रम की शोभा बढ़ेगी। क्‍योंकि आप सब शिवना के सदस्‍य है। तो रिजर्वेशन आदि करवा लीजिए। और आने की तैयारी कर लीजिए।

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एक और समाचार ये है कि शिवना प्रकाशन इस बार संभवत: विश्‍व पुस्‍तक मेले दिल्‍ली में 14 फरवरी से 22 फरवरी तक अपना स्‍टॉल लगायेगा। आप सब वहां पर भी सादर साग्रह आमंत्रित हैं। वहां पर भी शिवना द्वारा कुछ कार्यक्रम किये जाएंगे लेकिन क्‍या होंगे इसका प्रारूप अभी तय नहीं किया गया है। अभी स्‍टॉल अलाटमेंट नहीं हुआ है जैसे ही होता है वैसे ही आपको सूचित किया जाएगा।

तो ये सारी सूचनाएं आपके लिये हैं। इनको दर्ज कीजिए और इनके अनुसार कुछ समय निकालने की कोशिश कीजिए।

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