मित्रों नया साल बिल्कुल पास आ गया है। और इस पास आने के क्रम में हमारा तरही मुशायरा भी पास आ गया है। जैसा कि हमने तय किया है कि हम नये साल के आने के कए दो दिन पूर्व में ही अपने मुशायरे को प्रारंभ करेंगे। तो आज की ये पोस्ट एक रिमाइण्डर के रूप में है कि जागो सोने वालों और भेजो अपनी ग़ज़ल।
जैसा कि आपको पिछली बार बताया था कि आने वाले दो माह बहुत व्यस्तता के होने वाले हैं। इन दो महीनों में शिवना के आयोजन होने हैं। सबसे पहले तो जनवरी में 19 तारीख को शिवना प्रकाशन का वार्षिक आयोजन होना है। इस आयोजन में शिवना द्वारा दिये जाने सम्मान प्रदान किये जाएंगे। एक सम्मान तो पूर्व घोषित किया जा चुका है जो आदरणीया इस्मत ज़ैदी जी को प्रदान किया जाएगा। और दो सम्मान भी कार्यक्रम में प्रदान किये जाने हैं जिनकी घोषणा जल्द ही की जाएगी। एक सम्मान पत्रकारिता अथवा शोध पुस्तक को लेकर दिया जाना है जिसके लिये चयन प्रक्रिया अब अंतिम दौर में है। दूसरा सम्मान कविता को लेकर दिया जाना है जिसके नाम की भी बस औपाचारिक घोषणा ही की जानी है । तो ये तीन सम्मान कार्यक्रम में दिये जाने हैं और साथ में एक छोटी सी नशिश्त भी होनी है। कार्यक्रम में आने को लेकर अभी तक इस्मत जी, अंकित सफ़र, वंदना अवस्थी जी आदि की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। आशा है और लोगों की भी सूचना आएगी।
मित्रों इस बार दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में शायद शिवना प्रकाशन का प्रथम बार स्टॉल लगेगा। 14 फरवरी से 22 फरवरी तक दिल्ली ही मुकाम रहेगा। शिवना प्रकाशन शायद कुछ आयोजन भी वहां करे। हो सकता है कि कोई आयोजन हिन्दी ग़ज़ल की नई पीढ़ी पर भी हो। अभी कुछ भी तय नहीं है लेकिन हां ये तय है कि शिवना प्रकाशन वहां पर कुछ आयोजन करने जा रहा है । और अपने राम तो दस दिन तक दिल्ली में रहेंगे ही। आप सब से मिलने का एक मौका होगा। यदि आप भी उस दौरान दिल्ली में हों तो आइये। शिवना प्रकाशन आप सब का है तो आप अपने ही स्टाल पर आइयेगा ।
इस बार का मिसरा काफी सराहा गया है और कुछ लोगों की विशेष टिप्पणी ये भी आई है कि इस बार का मिसरा जो है वो रंगे नीरज गोस्वामी लिये हुए है। क्योंकि उसमें मोगरे का फूल आ गया है। मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई। जो ग़ज़लें मिली हैं उनमें मिसरे पर गिरह ऐसी कमाल लगी है कि बस मज़ा ही आ गया। कुछ लोगों का कहना है कि मिसरे में यदि भूतकाल की जगह वर्तमान काल होता अर्थात 'थी' के स्थान पर 'है' होता तो बात कुछ और सुंदर बनती । मेरा मानना है कि उस स्थिति में मिसरा कुछ सरल हो जाता। पहले जो मिसरा रचा गया था वो है के साथ ही था, लेकिन उसमें यही लगा कि कुछ सरल हो रहा है। सो कठिनता को बढ़ाने के लिये भूतकाल किया गया।
तो ये सुंदर मिसरा आपकी क़लम का परस पाने को बेचैन है
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई