बुधवार, 14 नवंबर 2018

बासी दीपावली मनाने की इस ब्लॉग की परंपरा रही है तो आइये आज सर्वश्री बासुदेव अग्रवाल 'नमन', कृष्णसिंह पेला, तिलक राज कपूर, शेख चिल्ली, मन्सूर अली हाश्मी, गुरप्रीत सिंह और राकेश खंडेलवाल जी के साथ मनाते हैं बासी दीपावली।

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दीपावली का त्यौहार बीत गया है और आज छठ का पवित्र पर्व है, उदित होते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने लिए शक्ति संचय करने का पर्व। देश के पूर्वी हिस्से में यह त्यौहार मनाया जाता रहा है किन्तु अब तो पूरे देश में ही मनाया जाता है। त्यौहारों को धर्म से अलग कर देना चा​हिए, तभी इनमें आनंद आएगा। फिर कोई नहीं कहेगा कि दीपावली हिन्दू का, ईद मुस्लिम का, क्रिसमस ईसाइयों का, बैसाखी सिक्खों का त्यौहार है। असल में त्यौहार तो इन्सान के होते हैं, धर्मों के नहीं। कितना अच्छा हो कि धर्म से सारे त्यौहार मुक्त हो जाएँ। किन्तु यह बस एक सुनहरी आशा है। आमीन।

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deepawali-164_thumb_thumb1_thumb1ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे deepawali-16_thumb_thumb1_thumb1

बासी दीपावली मनाने की इस ब्लॉग की परंपरा रही है तो आइये आज सर्वश्री बासुदेव अग्रवाल 'नमन', कृष्णसिंह पेला,  तिलक राज कपूर, शेख चिल्ली, मन्सूर अली हाश्मी, गुरप्रीत सिंह और राकेश खंडेलवाल जी के साथ मनाते हैं बासी दीपावली।

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

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दिवाली पर यही व्रत धार लेंगे,
भुला नफ़रत सभी को प्यार देंगे।

रहें झूठी अना में जी के हरदम,
भले ही घूँट कड़वे हम पियेंगे,

इसी उम्मीद में हैं जी रहे अब,
कभी तो आसमाँ हम भी छुयेंगे।

रे मन परवाह जग की छोड़ करना,
भले तुझको दिखाएँ लोग ठेंगे।

रहो बारिश में अच्छे दिन की तुम तर,
मगर हम पे जरा ये कब चुयेंगे।

नए ख्वाबों की झड़ लगने ही वाली,
उन्हीं पे पाँच वर्षों तक जियेंगे।

वे ही घोड़े, वही मैदान, दर्शक,
नतीज़े भी क्या फिर वे ही रहेंगे?

तु सुध ले या न ले, यादों के तेरी,
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

सभी को दीप उत्सव की बधाई,
'नमन' अगली दिवाली फिर मिलेंगे।

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बहुत ही सुंदर मतले के साथ यह ग़ज़ल प्रारंभ हुई है। ज़ाहिर सी बात है कि यहाँ भी छोटी ईता से बचने की व्यवस्था की गई है। झूठी अना में जीने वालों का कड़वे घूँट पीना अच्छा तंज़ है ऐसे लोगों पर। और आसमाँ छूने की कामना का सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ शेर है। फिर सारी दुनिया की परवाह किए बिना अपने काम करते रहने का बेफिक्र शेर भी बहुत अच्छा है। राजनीति में नए ख़्वाबों की झड़ी लगने वाली है और शायर पाँच वर्ष की कल्पना कर रहा है। घोड़े, मैदान और दर्शक में भी अच्छा तेंज़ है। मकता बहुत अच्छा बना है। अच्छी ग़ज़ल वाह वाह वाह । 

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KRISHAN SINGH PELA_thumb[1]

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कृष्णसिंह पेला
धनगढी, नेपाल

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हमेशा लोग गूँगे क्यों रहेंगे ?
कभी तो राज़ से पर्दे उठेंगे ।

वो मेरे रुक्न से ही थम गए हैं
ग़ज़ल पूरी कहूँ तो गिर पडेंगे ।

है पहरा नूर का पूरी धरा पर
“ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे” ।

दीये छोडो, करो रौशन दिलों को
असल में ये अँधेरे तब मिटेंगे ।

खुदा ने ये कभी सोचा न होगा
जहाँ में नेकी के भी दिन लदेंगे ।

तुम्हारे काम आखिर चाँद आया
सितारे दूर हैं वो क्या करेंगे ?

सदा काँटे ही बोते आ रहे हो
तुम्हें तो हर तरफ कैक्टस दिखेंगे ।

अभी जब धूप हो जायेगी रुख़सत
तो आँगन में ये साये ही बचेंगे ।

जो धब्बे लग चुके हैं आबरु पर
उजालों में भला कैसे छिपेंगे

तुम्हारे त्याग की फ़िहरिस्त लाओ
हमारे पास जो है हम तजेंगे ।

अभी तुम मंजिलों पर हँस रहे हो
किसी दिन रास्ते तुम पर हँसेंगे ।

कुरेदो और ज़ख़्मों को हरे रख्खो
वगर्ना बेजुबाँ लगने लगेंगे ।

अकेला मैं तनिक थक सा गया हूँ
चलो हम साथ में सपने बुनेंगे ।

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पेला जी पहली बार हमारे मुशायरे में नेपाल से तशरीफ़ लाए हैं, उनके स्वागत में तालियाँ। राज़ की बात को उजागर कहता बहुत सुंदर मतला बना है। गिरह के शेर में नूर का पूरी धरा पर बिखरना दीपावली को साकार कर रहा है। सितारों का दूर होना और अंततः चाँद का ही काम आना कई कई अर्थों को समेटे हुए है। काँटे बोते आने वाले लोगों को हर तरफ़ केक्टस दिखना अच्छा प्रयोग है। तुम्हारे त्याग की सूचि माँगने वाला शेर आज की बाबागिरी की दुनिया के लिए आँखों को खोलने वाला है। मंज़िलों पर हँसने वालों पर रास्तों का हँसना भी कमाल है। बहुत ही अच्छी ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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TILAK RAJ KAPORR JI_thumb[1]

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तिलक राज कपूर

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खुशी अपनी हम उन में बांट देंगे
और उनके दर्द उनसे मांग लेंगे।

खरे सिक्कों रखो तुम सब्र थोड़ा
समय की बात है खोटे चलेंगे।

लहू से सुर्ख़ है शफ़्फ़ाफ़ चादर
सरू के पेड़ कब तक चुप रहेंगे।

हवाई वायदों से कुछ न होगा
अमल की बात करिये, कब करेंगे।

तेरी आंखों में दिखता है समंदर
हमें तू डूबने दे, थाह लेंगे।

मनाने रूठने के खेल में वो
नए इल्ज़ाम मेरे सर धरेंगे।

अरे अंधियार तू ठहरेगा कब तक
"ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे"।

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तिलक जी का नियम है कि बासी दीपावली में तो वे आते ही हैं, भले ही ताज़ी में भी आ चुके हों। बहुत ही सुंदर मतला है जिसमें प्रेम की ​शिद्दत को महसूस किया जा सकता है। खरे और खोटे वाला शेर तो कमाल का है आज के समय पर पूरी तरह से सटीक। सरू के पेड़ों का चुप रहना, उफ़ ग़ज़ब है। और हवाई वायदों के साथ शायर एक बार फिर से तीखा तंज़ कस रहा है । पलट कर प्रेम में आता शायर आँखों में डूब कर थाह लेना चाह रहा है सुंदर। अंत में गिरह का शेर बहुत अलग तरीक़े से बाँधा है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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शेख चिल्ली

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यूँ कहने को तो हम सच कह भी देंगे
किसी के कान पर जूँ भी तो रेंगे

हुए हैं ग्रीन बेचारे पटाखे
सुना है अब ये चुपके से फटेंगे

यहाँ पर्यावरण के सब पटाखे
गरीबों के ही कांधों पर फटेंगे

भला क्या सोच कर बोली अदालत
पटाखे दस बजे तक ही चलेंगे

ये आँखें मुन्तज़िर हैं साल भर से
"ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे"

मुझे वो तौलने तो आ गये हैं
तराज़ू में मुक़ाबिल क्या धरेंगे

चलो यह तय रहा दीपावली पर
पटाखे देख कर ही दिल भरेंगे

क़सम खायी है हमने 'शेख चिल्ली'
निठल्ले थे, निठल्ले ही रहेंगे

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शेख चिल्ली ने मतला ही बहुत कमाल बाँधा है। और उसके बाद ग्रीन पटाखे में मिसरा सानी तो एकदम ग़ज़ब बना है। उसके बाद की दोनो शेर त्यौहारों में छेड़छाड़ को लेकर शायर के ग़ुस्से को बता रहा है। गिरह का शेर बहुत बहुत कमाल बना है, रात भर की प्रतीक्षा को बहुत अच्छे से समेटा है। और तराज़ू वाला शेर तो उस्तादाना शेर है, क्या ग़ज़ब वाह वाह। और मकते का शेर तो एकदम ऐसा है कि बस आदमी को अंदर तक आनंद से भर दे। ग़ज़ब भाई ग़ज़ब बहुत सुंदर ग़़ज़ल वाह वाह वाह।

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मन्सूर अली हाश्मी

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करेंगे याद माज़ी की करेंगे
यह दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

मुझे 'मी टू' पे 'मिठ्ठु' याद आया
गवाही उसकी ली तो हम फसेंगे!

ढली है उम्र अब आया है 'मी टू'
फ़क़त अल्लाह ही अल्लाह अब करेंगे!

कहा 'मी टू' तो कह दूंगा मैं 'यू टू'
क़फ़स में भी रहे तो संग रहेंगे।

इलाही पत्रकारिता से तौबा
न लिखवाएंगे उनसे ना लिखेंगे

है हमदर्दी हमें भी 'मीटूओं' से
लड़ो तुम तो! वकालत हम करेंगे।

यह दीपों की है संध्या औ' Me-You
सदा ही साथ अब हमतुम रहेंगे

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हाशमी जी इस बार मीटू के पीछे पड़े हैं। मिट्ठू की गवाही और उसके रटंत पर बहुत ही अच्छा शेर कहा है। ढलती उम्र में मीटू का आना शायर को उम्र का एहसास करवा रहा है। यूटू में क़फ़स में साथ रहने की जो मासूम ख़्वाहिश है वह बहुत कमाल है। और पत्र​कारिता से तौबा करता हुआ शायर उस गली जाना ही नहीं चाह रहा है। वकालत का चोगा पहनना चाह रहा है शायर क्योंकि उसे मीटूओं से हमदर्दी है, यह ग़ज़ल तो वायरल शायरल टाइप की हो जाने वाली है सोशल मीडिया पर । लेकिन अंत में बहुत सकारात्मक तरीक़े से ग़ज़ल को अंजाम तक पहुँचाया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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गुरप्रीत सिंह

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वो पहले हम से सब कुछ छीन लेंगे ।
फ़िर उसमें से हमें किश्तों में देंगे ।

जो सपने भी उधारे देखते हों,
कोई सच्चाई कैसे मोल लेंगे ।

सुनो ऐ ज़िन्दगी मैं थक गया हूँ ,
ज़रा आराम कर लूँ ? फ़िर चलेंगे..

तुझे हम जानते हैं यूँ , कि तुझको,
तेरी ख़ामोशी से पहचान लेंगे ।

वो मिसरा-ए-गिरह क्या था ..अरे हाँ,
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे ।

हमारा छीन लो चाहे सभी कुछ,
पर अपने ख़्वाब हम हरगिज़ न देंगे ।

चलो अब चाँद को छूते हैं यारो,
यूँ कब तक दूर से तकते रहेंगे ।

गीत
युवा हैं देश के हम, क्या करेंगे ।। 
ये लगता हैं पकौड़े ही तलेंगे ।।

इसी ख़ातिर है ये दिन रात खपना,
कि पूरा कर सकें इक-आध सपना,
हम अपना वक़्त और सम्मान अपना,
किसी आफिस में जाकर बेच देंगे।
हमें कागज़ के कुछ टुकड़े मिलेंगे ।।

ये हैं इस युग की टैंशन के नतीजे,
सफेदी आई बालों में सभी के,
लगा बढ़ने है बी.पी. भी अभी से,
बुढ़ापे में बताओ क्या करेंगे ।
बुढ़ापे तक तो शायद ही बचेंगे ।। 

ये वातावर्ण है कितना विषैला,
कि सब दिखता है धुँदला और मैला,
प्रदूषण इस तरह हर ओर फ़ैला,
कि मर ही जाएंगे गर सांस लेंगे ।
भला ऐसे में हम कब तक जिएंगे।। 

जो हम समझे हैं वो सब को बताएं,
पटाखे इस दफ़ा हम ना चलाएं,
फ़क़त दीपक बनेरों पर जलाएं,
यही दीपक अंधेरों से लड़ेंगे ।
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे ।।

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गुरप्रीत ने पहले भी एक कमाल की ग़ज़ल कही है और आज भी सुंदर ग़ज़ल लेकर आए हैं। मतला ही ऐसा ग़ज़ब बना है कि तीखा होकर धंस जाता है कलेजे में। सुनो ऐ ज़िंदगी में मिसरा सानी बहुत ही अच्छा बना है एकदम ग़ज़ल के असली अंदाज़ में। यहाँ पर गिरह का शेर भी बहुत ही सुंदर बना है, बहुत बेफ़िक्र होकर कहा गया है यह शेर। ख़्वाब नहीं देने वाला शेर हो या चाँद को पास जाकर छूने का हौसले वाला शेर दोनों बहुत कमाल हैँ। गुरप्रीत ने एक गीत भी भेजा है यह राजनीति पर तंज़ कसते हुए कहा गया है। चार बंदों में अलग अलग प्रकार के भावों को बाँधा है। बहुत ही सुंदर वाह वाह वाह।

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राकेश खंडेलवाल

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तमस बढ़ता रहा चोले बदल कर
चले हैं ग़ोटिया अभिमंत्रिता  कर
उजाले की गली में डाल परदे
निरंतर हंस रहा है ये ठठाकर
सहज मन में निराशा उग रही है
तिमिर के मेघ कल क्या छँट सकेंगे
जिन्हें आश्वासनों ने नयन आँजे
कभी वे स्वप्न शिल्पित हो सकेंगे

लिया है स्नेह साँसों का निरंतर
बंटी है धड़कनों  ने वर्तिकाएँ
अंधेरों का न हो साहस तनिक भी
ज़रा सा सामने आ ठहर जाएँ
जली है तीलियाँ जो प्रज्ज्वलन को
उन्हें संकल्प ने ही अग्नि दी है
उन्हें थामे हुए जो उँगलियाँ हैं
सकल निष्ठाओं ने ही सृष्टि की है

ज़रा सा धीर रख ओ थक रहे मन
अंधेरे एक दीपक से सदा ही हारते हैं
उजालों को यहाँ का दे निमंत्रण
सतत तमयुद्ध में ही दीप जीवन वारते हैं
इन्ही  के एक सुर का मान रख कर
चढ़े  रथ भोर दिनकर चल पड़ेंगे
उन्ही की राह के बन मार्गदर्शन
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

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राकेश जी के गीत के साथ हम तरही मुशायरे का समापन कर रहे हैं। बहुत ही सुंदर गीत लेकर आए हैं राकेश जी। उजालों की और तमस की लड़ाई को चित्रित करता पहला ही बंद अंत में कई सारे प्रश्न लेकर खड़ा है। अगले बंद में अँधेरे को चुनौती देकर कवि कहता है कि ज़रा सामने आ ठहर तो जाएँ। और अंतिम बंद में एकदम सकारात्मक दृष्टि से अपने मन को समझाने का प्रयास है। धीरज धरने का कहा जा रहा है मन को कि यह सब तो चलता ही रहता है । बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह।

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चलिए तो दीपावली के तरही मुशायरे का आज हम विधिवत समापन करते हैं। आप इन शायरों को दाद देते रहिए। मिलते हैं अगले तरही मुशायरे में। और हाँ इस बीच अगर भभ्भड़ कवि का मन चला तो वो आ ही जाएँगे अपनी ग़ज़ल लेकर।

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बुधवार, 7 नवंबर 2018

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली… आज श्री राकेश खण्डेलवाल जी, श्रीमती लावण्या दीपक शाह जी, श्री नीरज गोस्वामी जी, श्री गिरीश पंकज जी, नुसरत मेहदी जी, श्री द्विजेन्द्र द्विज जी और श्री मंसूर अली हाशमी के साथ मनाते हैं दीवाली का पर्व ।

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शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली…

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शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली… आज श्री राकेश खण्डेलवाल जी, श्रीमती लावण्या दीपक शाह जी, श्री नीरज गोस्वामी जी, श्री गिरीश पंकज जी, नुसरत मेहदी जी, श्री द्विजेन्द्र द्विज जी और श्री मंसूर अली हाशमी के साथ मनाते हैं दीवाली का पर्व ।

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राकेश खंडेलवाल

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शरद की पूर्णिमा से हो शुरू यह
सुधाये है टपकती व्योम पर से
जड़े है प्रीत के अनुराग चुम्बन
लपेटे गंध अनुपम,पाटलों पे
किरण खोलेगी पट जब भोर के आ
नई इक प्रेरणा ले हंस पड़ेंगे
नयी परिपाटियों की रोशनी ले
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

यही पल हैं कि जब धन्वन्तरि के
चषक से तृप्त हो लेंगी त्रशाए
“नरक” के बंधनों से मुक्त होकर
खिलेंगी रूप की अपरिमित विभागों
भारत की पूर्ण हो लेगी प्रतीक्षा
वियोगि पादुका से पग मिलेंगे
नए इतिहास के अब पृष्ठ लिखने
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

मिटाकर इंद्र के अभिमान को जब
हुआ गिरिराज फिर  स्थिर धरा पर
बना छत्तीस व्यंजन भोग छप्पन
लगाएँ भोग उसका  सिर झुकाकर
मिलेंगे भाई जाकर के बहन से
नदी यमुना का तट। शोभित करेंगे
मनाएँगे उमंगों के पलों को
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे


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श्रीमती लावण्या शाह

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दीपावली की प्रतीक्षा में ~~
ज़रा सोचो, दिवाली, आ रही है
दीयों में, लौ, बनी, बलखा रही है
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .... ... 
सुनहरी शाम, आई है, घरों में,
रुपहली रात, नभ, मुस्कुरा रही है !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  ........
हों आतिशबाजियाँ, नीले गगन पे,
चेहरे, हों चमकते, जब, हर जन के !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  ........
मिठाई हो, हँसे, घर का हर कोना,
दिलों में प्यार, पलता हो, सलोना !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .......
रौनक हो, लगे सब कुछ, सुहाना
कलश पर हो, बाती संग, दियना
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .......
हो शुभ मंगल, करें, पूजन, हवन,
हो आरती, में मग्न, कुनबा, मगन !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .......


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नीरज गोस्वामी

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बदल कर भेष फूलों का, छलेंगे
ये काँटें जब मिला मौका, चुभेंगे

तुम्हारा जिस्म डाली मोगरे की
महक उट्ठेगा जब ये गुल खिलेंगे

बुजुर्गों की भी सुनते हैं ये बच्चे
मगर जो दिल कहेगा वो करेंगे

फटा जब ढोल खुद डाला गले में
बजेगा जब सुनेंगे , सर धुनेंगे

सिफर हमने किया ईजाद माना
सिफर से कब मगर आगे बढ़ेंगे

अंधेरों की सियासत को मिटाने
ये दीपक रात-भर यूँ ही जलेंगे

तसव्वुर में किसी के मुब्तला हैं
पुकारो मत, जमीं पे आ गिरेंगे

शजर की याद हो गहरी सफर में
तो रस्ते धूप के दिलकश लगेंगे

रखें निस्बत मगर कुछ फासले भी
तभी नीरज हरिक रिश्ते निभेंगे

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गिरीश पंकज

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अगर हिम्मत जुटा कर के उठेंगे
सितमगर एक दिन बेशक मिटेंगे

अंधेरे हाथ अपने अब मलेंगे
'ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे"

मुझे उम्मीद है मंजिल मिलेगी
हमारा काम है चलना, चलेंगे

मिटा देंगे जगत का हम अंधेरा
गिनूँगा हाथ अब कितने उठेंगे

भले दो चार खंडित हो गए हैं
मगर कुछ स्वप्न दोबारा पलेंगे

यहां है भूख, बेकारी, करप्शन
यही मुद्दे जरूरी क्यों टलेंगे
 

हमारे हाथ में जलता दिया है
अंधेरे क्या हमें अब भी छलेंगे

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द्विजेंद्र द्विज

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अँधेरे कब तलक अब दम भरेंगे
ये दीपक रात भर यूँ  ही जलेंगे

अँधेरे ही अगर  मन में रहेंगे
तो फिर ये दीप जल कर क्या करेंगे

अँधेरे आस्तीनों में पलेंगे
तो पग-पग पर हमें अक्सर डसेंगे

जो मायावी उजाले हैं, छलेंगे
उजालों पर तो वे फंदे कसेंगे

अँधेरों में कुछ ऐसे आ फँसेंगे
अँधेरों की ही सब माला जपेंगे

अँधेरे बैठ जाएँगे जड़ों में
अगर हम यूँ उन्हें ढोते रहेंगे

जो उनके रास्तों में आ रहे हैं
वो सारे पेड़ तो पहले कटेंगे

उजालों की सफ़ेदी के सिपाही
अँधेरों की सियाही से डरेंगे?

अँधेरे हैं अँधेरों की ज़रूरत
अँधेरों को उजाले तो खलेंगे

अँधेरे आदतों में आ बसे तो
हमेशा आदतों में ही बसेंगे

उजालों को तो आना ही है इक दिन
उजाले इस तरह कब तक टलेंगे

बपौती हैं किसी की क्या उजाले?
यहीं के हैं यहीं देने पड़ेंगे

अँधेरों ने जलाए हैं जो दीपक
वो दीपक क्या भला तम को हरेंगे

जलाओगे अगर दीपक से दीपक
अँधेरे कब तलक फिर यूँ टिकेंगे

भले हर रोज़ सूरज को है ढलना
नहीं ये आस के सूरज ढलेंगे

सिखाओ मत हमें यह क़ायदा तुम
जो कहना है हमें हम वो कहेंगे

उन्हें दरकार है कुछ तो उजाला
उजाले के लिए जो मर मिटेंगे

उजालों की तो मर्यादा यही है
ये कालिख पर भी उजियारा मलेंगे

उजालों का अगर हम साथ दें तो
अँधेरे इस तरह फूलें फलेंगे?

उजालों की नदी में डूब कर हम
उजाला अपने माथे पर मलेंगे

उजाले जिनके दम से हैं 'द्विज' उनके
नसीबों से अँधेरे कब छटेंगे?

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नुसरत मेहदी

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नई टकसाल में जाकर ढलेंगे
कई सिक्के यहां फिर से चलेंगे

ज़रा सी फ़िक्र की वुसअत बढ़ाकर
नए मफ़हूम में मानी ढलेंगे

ये होगा फिर कई किरदार एक दिन
कहानीकार को ख़ुद ही खलेंगे

बहुत भटका रही हैं क़ुरबतेँ अब
तो हम कुछ फ़ासला रख कर चलेंगे

जिसे आना है लौ से लौ जला ले
"ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे"

बढ़ा दी है तपिश सूरज ने अपनी
तो अब ये बर्फ़ से लम्हे गलेंगे

खुला रक्खो दरे उम्मीद नुसरत
दुआओं के शजर फूले फलेंगे

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Mansoor ali Hashmi

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मंसूर अली हाशमी

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हे ग़ुंचा तो अभी गुल भी खिलेंगे
खिले है फूल अब फल भी  मिलेंगे।

तेरी यादों की लेकर रोशनी अब
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

मैं गर्दिश में हूँ तुम ठहरे ही रहना
मिले थे फिर मिले है फिर मिलेंगे

यहीं सदियों से होता आ रहा है
गिरें हैं फिर उठेंगे फिर चढ़ेंगे।

अभी 'मी टू' का चर्चा हर तरफ है
उपेक्षित क्या मुझे अब भी करेंगे?

'पटाख़े' चल रहे है, फिर रहे है
जो छेड़ा तो यक़ीनन यें फटेंगे।

बदलते दौर में मअयार बदले
घटेगा कोई तब तो हम बढ़ेंगे

हुए जब रुबरु तो फिर वह बोले
चलो जी! फेसबुक पर ही मिलेंगे

नही यह क़ैस-ओ-लैला का ज़माना
सितम हर्गिज़ न अब तो हम सहेंगे।

ब्लॉगिंग, फेसबुक अब छोड़ बैठें
लिखेंगे हम न अब कुछ भी पढ़ेंगे।

दिवाली 'हाश्मी' तू भी मना ले
दुबाला इस तरह ख़ुशियां करेंगे।

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शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली… आप इन शायरों को दाद देते रहिए। मिलते हैं अगले अंक में।

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