मित्रों का नेह कभी कभी मन को छू जाता है । अाप सब जानते ही हैं कि डॉ आज़म मेरे परम मित्रों में से हैं । उसी प्रकार से मेरे एक और मित्र हैं जनाब अनवारे इस्लाम जी जो कि भोपाल से एक शानदार पत्रिका सुखनवर निकालते हैं । अपने स्तर पर निकाली जाने वाली ये पत्रिका बहुत ही सुंदर पत्रिका है । ये पत्रिका हिंदी और उर्दू के साझे मंच के रूप में काम करती है । ज्ञानपीठ नवलेखन के बाद से ही मेरे ये दोनों मित्र लगे थे कि अब आपका एक कार्यक्रम भोपाल में रखना है । मित्रों की भावना को स्वीकार करने के अलावा और कुछ किया भी नहीं जा सकता है । खैर कार्यक्रम 18 अप्रैल को शाम पांच बजे भोपाल के दुष्यंत संग्रहालय के सभागार में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था ।
बाद में भीषण गर्मी को देखते हुए कार्यक्रम को शाम 6 बजे कर दिया गया । जब मैं वहां पहुंचा तो शाम के 6 ही बज रहे थे लोगों के आने का सिलसिला जारी था । धीरे धीरे लोग आते रहे और परिचय होता गया । कार्यक्रम भोपाल के साहित्यकारों के बीच था । सो जाहिर सी बात है कि एक के बाद एक जो लोग आ रहे थे वे सब दिग्गज थे ।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ विजय बहादुर सिंह जी थे मेरे गुरू । विशेष अतिथि के रूप में प्रो अजहर राही और अध्यक्षता श्री मुकेश वर्मा जी को करनी थी । विजय बहादुर सिंह जी ने बरसों पहले मुझे कहा था कि पंकज अपनी उर्जा बचा कर रखो फालतू के कामों तथा विवादों में उसे खर्च मत करो । उसी वाक्य का ध्येय बना कर ही मैं आज तक काम कर रहा हूं । उनका वहां होना मेरे लिये बहुत बड़ी बात था । धीरे धीरे सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री विजय वाते, उर्दू अकादमी की सचिव नुसरत मेहदी जी, सह सचिव जनाब इकबाल मसूद साहब जी, शायर राम मेश्राम जी, वीरेन्द्र जैन जी, देश के शीर्ष व्यंग्य कवि माणिक वर्मा जी और ऐसे ही कई नाम आने शुरू हो गये । पता चला कि ये सब तो श्रोताओं में बैठने वाले हें । मेरे अभिन्न मित्र और बहुत अच्छे शायर जनाब अशोक मिज़ाज साहब आते आते कहीं फंस गये तो नहीं आ पाये । लेकि धीरे धीरे हाल पूरा भर गया । डॉ विजय बहादुर सिंह जी का आना हुआ । ईस्ट इडिया और नवलेखन के बाद पहली बारत उनसे मिल रहा था । मैंने झुक कर उनके पैर छुए । उन्होंने ढेर सारे आशीर्वाद एक साथ दिये । उनकी आंखों में एक विशेष चमक थी ।
डॉ आजम ने कार्यक्रम का संचालन संभाला और कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । जनाब अनावरे इस्लाम साहब ने सबका स्वागत किया और विशेष कर मुझे शाल और स्मृति चिन्ह प्रदान करवाया विजय बहादुर सिंह जी के हाथों ।
मुझे कहानी पाठ करनी थी जब माइक पर आया तो सामने वे सब थे जिनको आज तक सुनता आया था । नर्वस हो गया । जब श्रोताओं में माणिक वर्मा, विजय वाते, राम मेश्राम, नुसरत मेहदी, वीरेंद्र जैन, रमेश यादव, इकबाल मसूद और ऐसे ही कई नाम हों तो कौन न नर्वस होगा । तुम लोग कहानी मुझे विशेष पसंद आती है क्योंकि उसमें हिन्दू मुस्लिम एकता की बात बिना किसी ताम झाक के की गई है । तो उसी कहानी तुम लोग का पाठ किया । लोगों ने उसे खूब सराहा भी । श्री विजय वाते जी ने आदेश दिया कि ग़ज़ल भी पढ़ो तो खैर एक नई गज़ल के कुछ शेर भी पढ़े ।
सबसे पहले श्री अज़हर राही जी ने कहानी पर विस्तृत चर्चा की तथा तुम लोग कहानी पर अपने विचार रखे । अब बोलना था डॉ विजय बहादुर सिह जी को वे बोले तो बोलते ही गये । मेरे लिये स्वप्न था कि मेरे गुरू मुझ पर बोल रहे हैं और वो भी विस्तार से । वे बोले कि मैं सीहोर पंकज के पास अक्सर जाता रहा लेकिन इसने कभी भी अपनी कहानी मुझे नहीं सुनाई । बस मेरी ही सुनता रहा । उन्होंने सांप्रदायिकता पर मेरे लेखन का सराहा । ईस्ट इंडिया कम्पनी पर भी चर्चा की और तब मैं हैरत में पड़ गया जब उन्होंने दस मिनिट तक कहानी अंधेरे का गणित पर चर्चा की । उसके शिल्प को सरहाते रहे और उसके प्रतीकों की प्रशंसा करते रहे । जिस कहानी को मैं एकबारगी संग्रह से हटाने पर विचार कर चुका था वहीं कहानी संग्रह की सबसे चर्चित कहानी साबित हो रही है । जो बात दीदी सुधा ढींगरा जी ने कही वहीं डॉ विजय बहादुर जी ने कही अंधेरे का गणित के बारे में । डा विजय बहादुर जी का पूरा भाषण जल्द ही वीडियो की शक्ल में आपको सुनवाता हूं ।
अध्यक्षीय उदबोधन में श्री मुकेश वर्मा ने कहानी और कार्यक्रम पर विस्तार से बात की । तो ये हुआ कार्यक्रम ।
अब एक विशेष बात
शिवना प्रकाशन का पुस्तक विमोचन समारोह 8 मई को प्रस्तावित है अखिल भारतीय मुशायरे में । अभी तक पदम श्री डा बशीर बद्र साहब, पदमश्रीजनाब बेकल उत्साही जी, डा राहत इन्दौरी साहब, अख्तर ग्वलियरी जी, राना जेबा जी, शाकिर रजा जी, शकील जमाली जी के आने की स्वीकृति मिल चुकी है । और कुछ नामों की स्वीकृति आना बाकी है । कार्यक्रम में मोनिका हठीला की पुस्तक एक खुशबू टहलती रही, सीमा गुप्ता जी की विरह के रंग, संजय चतुर्वेदी जी के चांद पर चांदनी नहीं होती और एक सरप्राइज पुस्तक का विमोचन होना है । आप सब कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं ।