सोमवार, 24 जुलाई 2017

शिवना साहित्यिकी का जुलाई-सितम्बर 2017 अंक

मित्रों, संरक्षक तथा सलाहकार संपादक सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra प्रबंध संपादक नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , संपादक पंकज सुबीर, कार्यकारी संपादक- शहरयार Shaharyar तथा सह संपादक पारुल सिंह Parul Singh के संपादन में शिवना साहित्यिकी का जुलाई-सितम्बर 2017 अंक अब ऑनलाइन उपलब्धl है। इस अंक में शामिल है संपादकीय, शहरयार Shaharyar । व्यंग्य चित्र -काजल कुमार Kajal Kumar । आवरण कविता - शमशेर बहादुर सिंह, आवरण चित्र के बारे में....- विस्मय / पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi , उपन्यास अंश- पागलखाना / डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी Gyan Chaturvedi , संस्मरण आख्यान- होता है शबोरोज़ तमाशा मिरे आगे, सुशील सिद्धार्थ Sushil Siddharth , कथा-एकाग्र- नीलाक्षी फुकन Nilakshi Phukan कहानी विखंडन Ajay Navaria , अनीता सक्सेना Anita Saxena कहानी Mehrunnisa Parvez , पुस्तक चर्चा- हँसी की चीखें / कांता राय Kanta Roy Santosh Supekar , एक वह कोना / गोविंद भारद्वाज Govind Bhardwaj Govind Sharma , पहाड़ पर धूप / यादवेंद्र शर्मा Murari Sharma , फिल्म समीक्षा के बहाने- हिन्दी मीडियम, माम, वीरेन्द्र जैन Virendra Jain , बातें-मुलाक़ातें- कृष्णा अग्निहोत्री Krishna Agnihotri , ज्योति जैन Jyoti Jain , रंगमंच- आर्यभट्ट और नाटक ‘अन्वेषक’, प्रज्ञा Pragya Rohini , पेपर से पर्दे तक- कृष्णकांत पंड्या Krishna Kant Pandya, पुस्तक-आलोचन- यादों के गलियारे से / कैलाश मण्डलेकर Kailash Mandlekar , समीक्षा, वंदना गुप्ता Vandana Gupta Maitreyi Pushpa / वो सफ़र था कि मुकाम था, शिखा वार्ष्णेय Shikha Varshney Aruna Sabharwal / उडारी, डॉ. ज्योति गोगिया @jyoti gogiya Sudha Om Dhingra / धूप से रूठी चाँदनी, योगिता यादव Yogita Yadav Shashi Padha / लौट आया मधुमास, शरद सिंह Sharad Singh@manohar agnani / अंदर का स्कूल, तरही मुशायरा Digamber Naswa Nusrat Mehdi @mahesh khalish Saurabh Pandey Nirmal Sidhu Girish Pankaj Tilak Raj Kapoor @sudhir tyagi @vasudeo agrwal Rakesh Khandelwal , आवरण चित्र- पल्लवी त्रिवेदी Pallavi trivedi photography photography - डिज़ायनिंग-सनी गोस्वामी Sunny Goswami । आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्करण भी समय पर आपके हाथों में होगा।
ऑन लाइन पढ़ें-

https://www.slideshare.net/shivnaprakashan/shivna-sahityiki-july-september-2017
https://issuu.com/shivnaprakashan/docs/shivna_sahityiki_july_september_201

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

आइये आज हम ईद के मुशायरे का समापन करते हैं चार रचनाकारों के साथ शेख चिल्ली जी, बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी, महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’ जी और राकेश खंडेलवाल जी की रचनाओं के साथ हम ईद की दुआओं में विश्व शांति की कामना करते हैं।

मित्रों चूँकि त्यौहार के बाद उसके मनाए जाने की एक सीमा होती है। और उसके बाद हमें अपने अपने कार्यों पर लौटना ही होता है। इसीलिए आज हम ईद के मुशायरे का समापन कर रहे हैं। हालांकि अपेक्षाकृत रूप से कम ग़ज़लें आईं इस बार लेकिन उसके पीछे मेरे विचार में बहर का मुश्किल होना और रदीफ काफिये के कॉमिब्नेशन का भी कुछ उलझन भरा होना एक कारण है। लेकिन एक बात तो है कि जो ग़ज़लें आईं वो बहुत अच्छी आईं। बहुत ही अच्छे प्रयोग शायरों ने किये। और एक अच्छी बात ये भी हुई है कि ईद मुबारक को लेकर सबके पास अच्छी ग़ज़लें भी हो गईं हैं। ईद के मुबारक मौके पर यदि आपको किसी मुशायरे में शिरकत करने जाना हो तो ये खूबसूरत ग़ज़ल आपके काम आएगी।

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आइये आज हम ईद के मुशायरे का समापन करते हैं चार रचनाकारों के साथ शेख चिल्ली जी, बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी, महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’ जी और राकेश खंडेलवाल जी की रचनाओं के साथ हम ईद की दुआओं में विश्व शांति की कामना करते हैं।

कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक

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शेख़ चिल्ली

सावन की झड़ी लायी ख़बर ईद मुबारक़
हो काश दुआओं में असर, ईद मुबारक

सलफास निगल कर भी वो बोला, मेरे बच्चों
रखना मेरे खेतों पे नज़र, ईद मुबारक़

मायूस खड़े काकभगोड़े ने बताया
कह कर था गया मुझ से बशर "ईद मुबारक़"

सुनकर ये टपकती हुई छत फूट के रोई,
चलता हूँ मैं लम्बा है सफ़र, ईद मुबारक़

क्रिसमस न, दीवाली न तो होली न गुरुपर्व
मज़दूर की किस्मत में किधर ईद मुबारक़

सरकार की नीयत पे लगे दाग धुलेंगे
हो जाय किसानों की अगर ईद मुबारक़

बक़वास है, सौ फ़ीसदी झूटी ये ख़बर है
कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक?

मतले में सकारात्मक नोट के साथ शुरू होकर पूरी ग़ज़ल व्यथा की कहानी कहती हुई एक लगभग मुसलसल ग़ज़ल है। जिसमें किसान और मजदूर की कहानी को आँसुओं से लिखा गया है। पहला ही शेर कलेजे को चीर कर उतर गया। मेरे जिले में पिछले पन्द्रह दिनों में बीस के लगभग किसान आत्म हत्या कर चुके हैं। और मिसरा सानी जैसा हूबहू एक वाकया हुआ भी है। एक किसान ने सल्फास खाकर अपने बच्चों से यही कहा था। उफ़्फ। और उसके बाद काकभगोड़े का दृश्य भी उसी कहानी को आगे बढ़ाता है। घर की टूटी हुई छत अपने मालिक को लम्बे सफ़र पर जाते हुए देख कर रो रही है बहुत ही मार्मिक दृश्य बन पड़ा है। अकाल में उत्सव लिखने वाले लेखक के लिए यह दृश्य कैसा होगा आप समझ सकते हैं। और यह भी सच है कि मजदूर के किस्मत में कोई त्यौहार नहीं होता। आखिरी शेर में जिस अंदाज़ में गिरह लगाई है वो अंदाज़ सबसे हट के है। सच में जो सबसे हट कर करे वो ही तो देर तक याद रहता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

रमजान गया आई नज़र ईद मुबारक,
खुशियों का ये दे सबको असर ईद मुबारक।

घुल आज फ़िज़ा में हैं गये रंग नये से,
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक।

पाँवों से ले सर तक है धवल आज नज़ारा,
दे कर के दुआ कहता है हर ईद मुबारक।

सब भेद भुला ईद गले लग के मनायें,
ये पर्व रहे जग में अमर ईद मुबारक।

ये ईद है त्योहार मिलापों का अनोखा,
दूँ सब को 'नमन' आज मैं कर ईद मुबारक।

बासुदेव जी ने ईद की पारंपरिक ग़ज़ल बहुत सलीक़े के साथ कही है। पाँवों से से ले सर तक है धवल आज नज़ारा में मानों ईदगाह का दृश्य ही सामने आ गया है जहाँ श्वेत परिधान पहने रोज़ेदार रमज़ान के समापन पर नमाज़ अदा कर रहे हैं। कितनी शांति होती है इस दृश्य में। श्वेत रंग वैसे भी शांति का प्रतीक है उसमें एक प्रकार की शीतलता होती है। सब भेद भुला कर ईद मनाने की बात और ईद के त्यौहार को अमर करने की बात बहुत अच्छे ढंग से कही गई है। मकते का शेर भी अच्छा बना है सच में ये त्यौहार मिलने मिलाने का ही तो त्यौहार है। इसमें बस एक ही काम करना चाहिए कि खूब मिलना मिलाना चाहिए। सबसे हँस कर मिलना ही तो ईद है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात वाह वाह वाह।

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महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’

कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक
है झूम उठा सारा शहर, ईद मुबारक

दो दोस्तियों का सदा पैग़ाम सभी को
मन में न रहे आज ज़हर, ईद मुबारक

दिल खोल के बाँटें सिवैयाँ, शौक अजब है
उल्फ़त की उठी दिल में लहर, ईद मुबारक

आया है हसीं वक़्त मेरे दोस्त ज़रा सुन
कुछ देर अभी और ठहर, ईद मुबारक

रंगीन नज़ारों में ख़लिश रब न भुलाना
कर लो जो इबादत दो पहर, ईद मुबारक.

खलिश जी ने छोटी लेकिन सुंदर ग़ज़ल कही है। दिल खोल के बाँटे सिवैयाँ शौक अजब है में उल्फत की दिल में उठी लहर की बात ही अलग है। सच में ये त्यौहार यही तो बताता है कि मेहमान को घर में बुला कर उसकी खातिर करो। उसका आपके घर आना आपकी बरकत में इज़ाफा होना ही है। कहते हैं खुदा आपसे खुश होता है तो आपके घर मेहमान भेजता है। और अगले शेर में प्रेम की भावना का वही चिरंतन भाव कि अभी न जाओ छोड़ कर। प्रेम में सबसे ज्यादा एक ही बात कही जाती है कुछ देर और ठहर जाओ। यही तो प्रेम है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।

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राकेश खंडेलवाल
रह रह के हुलसता है  जिगर ईद मुबारक
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक

विस्फोट ही विस्फोट हैं हर सिम्त जहां में
रब की नसीहतों के सफे जाने कहाँ है
इस्लाम का ले नाम उठाते है जलजला
चाहे है हर एक गांव में बन जाए कर्बला
कोशिश है कि रमजान में घोल आ मोहर्रम
अब और मलाला नहीं सह पाएगी सितम
आज़िज़ हो नफ़रतों से ये कहने लगा है दिल
अब और न घुल पाये ज़हर  ईद मुबारक
कहती है ये  खुशियों की सहर ईद मुबारक

अल कायदा को आज सिखाना है कायदा
हम्मास में यदि हम नहीं तो क्या है फायदा
कश्मीर में गूंजे चलो अब मीर की गज़लें
बोको-हरम का अब कोइ भी नाम तक न ले
काबुल हो या बगदाद हो या मानचेस्टर
पेरिस मे न हो खौफ़ की ज़द मे कोइ बशर
उतरे फलक से इश्क़ में डूबी जो आ बहे
आबे हयात की हो नहर, ईद मुबारक
कहती है ये खुशियों की सुबह ईद मुबारक

राकेश जी हमेशा नए प्रयोगो के साथ मुशायरे में आते हैं इस बार भी उन्होंने नए प्रयोग किये हैं। पहला बंद गीत का उन लोगों को कठघरे में खड़ा करता है जो धर्म की आड़ में हिंसा के बीज बो रहे हैं और अपने कृत्यों से धर्म को बदनाम कर रहे हैं। हर गाँव में कर्बला बनाना चाहते हैं। तभी तो रचनाकार कहता है कि नफ़रतों से आज़िज़ आ चुकी है अब दुनिया। दूसरा बंद पहले बंदी की नकारात्मकता का हल तलाशता हुआ आता है। कश्मीर से लेकर काबुल और बगदाद हर जगह पर रचनाकार चाहता है कि फलक से उतर कर आई आबे हयात की नहर सारी दुनिया में बहे और सारी नफरतें उस नहर के प्रेम भरे पानी में बह जाएँ। सारी दुनिया खुशरंग हो जाए। बहुत ही सुंदर गीत क्या बात है वाह वाह वाह।

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तो मित्रों आप सब को ईद मुबारक। आज की चारों रचनाओं पर खुलकर दाद दीजिए। वैसे तो मुशायरे का अधिकारिक समापन हो चुका है लेकिन भभभड़ कवि का क्य है वो तो कभी भी आ सकते हैं। तब तक जय हो।

शनिवार, 1 जुलाई 2017

ईद का त्यौहार हमारे मोहल्ले में अभी भी मनाया जा रहा है आज तिलकराज कपूर जी, गिरीश पंकज जी और डॉ. सुधीर त्यागी जी के साथ हम चलते हैं ईद की धूम में।

ईद का त्यौहार इसी सप्ताह आया और चला गया। लेकिन हम अभी भी उसके आनंद में डूबे हुए हैं। हमारे लिए तो ईद अभी भी चल रही है। हमारे मोहल्ले में ईद का त्यौहार अभी भी मनाया जा रहा है। असल में हम लोग ज़रा पुराने किस्म के लोग हैं हमारे लिए त्यौहार एक दस दिन तक चलने वाला उत्सव होता है। कम से कम दस से पन्द्रह दिनों तक नहीं मने तो वह त्यौहार ही कैसा। हम दीपावली को देव प्रबोधिनी एकादशी तक मनाते हैं, क्रिसमस को एक जनवरी तक मनाते हैं तो फिर ईद को क्यों नहीं। त्यौहार एक मनोदशा है जिसमें हम केवल आनंद ही तलाशते हैं। तो आइये आज भी हम इसी आनंद की खोज में निकलते हैं ईद के बहाने से।

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कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक

आज हम तीन शायरों के साथ तरही के क्रम को आगे बढ़ा रहे हैं। तिलकराज कपूर जी, गिरीश पंकज जी और डॉ. सुधीर त्यागी के साथ हम ईद का आनंद मना रहे हैं।

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तिलक राज कपूर

माँ तेरी दुआओं का असर "ईद मुबारक"
हैं दूर बहुत मुझसे ख़तर - ईद मुबारक

किस चाँद पे किसका है असर "ईद मुबारक"
पूछा तो ये कहती है सहर - ईद मुबारक़

अल्लाह की बंदों पे नज़र "ईद मुबारक"
आसान करे सबका सफ़र "ईद मुबारक"

दहकां तेरी मुश्किल नहीं समझेगा ज़माना
है भूख इधर और उधर "ईद मुबारक"

हर मोड़ पे कुछ प्रश्न खड़े रोक रहे थे
मुमकिन हुआ फिर भी ये सफ़र - ईद मुबारक

जो सुब्ह का भूला हुआ घर छोड़ गया था
आया है वही लौट के घर - ईद मुबारक

प्रश्नों की क़तारों में खड़ी भीड़ को देखो
मिलती है जिसे बनके सिफ़र "ईद मुबारक"

इक बार सभी दर्द भुलाकर उन्हें कहदे
"खुशियों से भरे आपका घर" - ईद मुबारक

कोशिश तो बहुत है कि कभी उनसे कहूं मैं
"हम पर हो इनायत की नज़र" - ईद मुबारक

पूरब में दिखा चाँद ये ऐलान हुआ है
जाते हैं भला आप किधर - ईद मुबारक

आग़ोश में इक ख़्वाब भरे सोच रहा हूँ
वो चांद कहे देख क़मर - ईद मुबारक

हम राह के काँटों को हटा उनसे कहेंगे
अब तुमको मुबारक हो डगर - ईद मुबारक

तन्हाई में डूबे हुए इंसा के लिए है
बीते हुए लम्हों का सफ़र "ईद मुबारक"

तिलक जी हर बार अपने शेरों से महफिल में चार चाँद लगा देते हैं। इस बार भी उन्होंने मतले में ही माँ की दुआओं के साथ शुरूआत की है। सच में माँ की दुआएँ साथ हों तो हर दुख हर गम दूर ही रहता है। जो सुब्ह का भूला हुआ घर छोड़ गया था में मिसरा सानी बहुत उम्दा बना है किसी के लौट के घर आ जाने पर सबकी ईद हो जाती है। किसी से बिछड़ कर भला कैसे ईद मन सकती है। और अगले शेर में प्रश्नों की कतारों में खड़ी भीड़ जिसे सिफर बन कर ईद मिल रही है उसका दर्द भी बहुत अच्छे से अभिव्यक्त हुआ है। बहुत खूब। अगले दोनों शेरों में दो वाक्यों को बहुत खूबी के साथ मिसरे में गूँथा गया है। खुशियों से भरे आपका घर और हम पर हो इनायत की नज़र ये दोनों वाक्य बहुत ही सुंदरता के साथ मिसरे में गूँथे गए हैं। बहुत ही सुंदर प्रयोग। पूरब में चाँद के दिखने के साथ हुआ ऐलान बहुत खूब है। अगले दोनों शेर प्रेम के शेर हैं। चाँद का क़मर को देख कर ईद मुबाकर कहना, वाह और हम राह के काँटों को हटा उनसे कहेंगे बहुत ही सुंदर प्रयोग। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।

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गिरीश पंकज

खुशहाल रहे आपका दर ईद मुबारक
"कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक"

हिद्दत सही रमजान में दय्यान के लिए
महका रहा है तुमको इतर ईद मुबारक
(दय्यान - स्वर्ग का वो दरवाज़ा जो रोजेदारों के लिए खुलता है)

तुमको नहीं देखा है ज़माने से दोस्तो
इस बार तो आना मेरे घर ईद मुबारक

अल्लाह ने बख्शी है हमें एक ये नेमत
मिलजुल के ज़िन्दगी हो बसर ईद मुबारक

छोटा - बड़ा है कोई नहीं सब हैं बराबर
रमजान दे रहा है ख़बर ईद मुबारक

गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल हर मुशायरे में सबसे पहले प्राप्त होती है और इस बार भी ऐसा ही हुआ। मतले में ही गिरह को बहुत कमाल के साथ लगाया गया है। खुशहाल रहे आपका दर और उसके बाद गिरह का मिसरा बहुत सुंदर। अगला शेर रवायती शेर का एक बहुत ही खूबसूरत उदाहरण है। ईश की इबादत और उसके बाद खुलने वाला स्वर्ग का दरवाज़ा जिसके कारण रोज़ेदार इतर से महक रहा है। बहुत सुंदर। अगला शेर गहरे ​अर्थ की बात कह रहा है। इन दिनों जो कुछ हवाओं में फैला हुआ है उसकी और इशारा कर रहा है यह शेर। और अगला शेर एक दुआ है, एक प्रार्थना है, एक सीख है जो हम सबके लिए है। अंतिम शेर में सब के बराबर होने सबके इन्सान होने और  मिल जुल कर जीने की जो बात कही गई है वो सारी दुनिया को समझने की ज़रूरत है। बहुत सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।

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डॉ. सुधीर त्यागी

खुशहाल हो हर एक बशर ईद मुबारक।
बख्शे खुदा रहमत की नज़र ईद मुबारक।

दुश्मन भी अगर हो तो गले उसको लगा ले।
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक।

कुछ लोग जो भटके हुए हैं राहे नबी से।
उनको भी चलो कह दें मगर ईद मुबारक।

कल छत पे मेरी चाँद लगा आ के टहलने,
और हँस के कहा जाने जिगर ईद मुबारक।

मिलने से गले पहले ज़रा आँख मिलाओ।
कहने का ज़रा सीखो हुनर ईद मुबारक।

इस बार गले लगने में दोनों को झिझक है।
सोलहवें बरस का है असर ईद मुबारक।

मतला एक दुआ के साथ खुलता है और दुनिया के हर इन्सान के लिए खुदा से खुशियों की और रहमत की माँग करता है। सच में त्यौहार का यही तो मतलब है कि हम सब एक स्वर में सभी के लिए खुशियों की माँग करें। अगले शेर में दुश्मन को भी गले लगाकर ईद के असली संदेश प्रेम को फैलाने की बात कह कर गिरह को लगाया गया है जो बहुत सुंदर बन पड़ा है। राहे नबी से भटके हुए लोगों को भी ईद मुबारक कहना और उनको भी अमन की राह पर लाने की बात करना ही तो असली ईद है। जाने जिगर काफिया इस मिसरे पर सबसे सटीक काफिया है जिसे बहुत सुंदर तरीके से सुधीर जी ने लगाया है। चाँद का छत पर टहलना और हंस के कहना वाह क्या बात है। और अगला शेर जिसमें मिलने से पहले आँख मिलाने का हुनर सीखने की नसीहत है बहुत ही सुंदर है। अंतिम शेर हम सबके जीवन की कहानी है मानों, बचपन से लेकर किशोरावस्था तक का साथा अचानक अजनबी क्यों बना देता है सोलहवें तक आते आते, क्यों ऐसा हो जाता है। यह झिझक ही सारी कहानी कह रही है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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तो यह हैं आज की तीनों शानदार ग़ज़लें। तीनों शायरों ने कमाल के प्रयोग किये हैं। अब आपको भी टिप्प्णियों में कमाल करना है, यदि आपके पास समय हो तो। क्योंकि इन दिनों लगता है कि आपके पास बहुत व्यस्तता है। खैर मिलते हैं अगले अंक में।

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