बुधवार, 27 मार्च 2024

आइए आज मनाते हैं बासी होली डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर और तिलक राज कपूर जी के साथ।

हर बार की तरह इस बार भी हम बासी होली मना रहे हैं। पिछले अंक में आपने देखा कि किस प्रकार से सारे रचनाकारों ने आदरणीय राकेश जी के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। राकेश जी की स्मृति में ही हमने इस बार का मुशायरा आयोजित किया है। उनकी कमी हमेशा इस ब्लॉग परिवार में बनी रहेगी। आइए आज की बासी होली में क्रम को आगे बढ़ाते हैं।

"रंग इतने कभी नहीं होते”
आइए आज मनाते हैं बासी होली डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर और तिलक राज कपूर जी के साथ।

डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर

लोग यूँ पारखी नहीं होते
आप जैसे सभी नहीं होते
इश्क़ होता नहीं तो ग़ज़लों में
रंग इतने कभी नहीं होते
ज़िंदगी होती जब बहुत आसाँ
कायदे लाज़िमी नहीं होते
चूक होती है खुदा से भी तो
फैसले सब सही नहीं होते
 
मतले में बहुत अच्छे से तुलनात्मक बात कही है। सच है कि दुनिया में पारखी नज़रों वाले बहुत कम होते हैं। और यह भी सच है कि गीतों में ग़ज़लों में जो कुछ भी रंग होते हैं, प्रेम के कारण होते हैं। ज़िंदगी जब बहुत आसान होती है तब क़ायदों की ज़रूरत सच में नहीं होती है। और अंत में यह भी यही है कि फ़ैसले सब सही कभी नहीं हो सकते, ग़ल​तियाँ सभी से होती हैं। बहुत ही शानदार ग़ज़ल वाह वाह वाह।

तिलक राज कपूर

हम अगर आरसी नहीं होते
आंख की किरकिरी नहीं होते।
तेरी रुसवाई भूल जाते तो
बेबसी में कभी नहीं होते।
वक्त लेते हैं ये सुलझने में
मस्अले दिल-लगी नहीं होते।
होश रखिए ख़राब मौसम में
इस कदर आतिशी नहीं होते।
कर्ज़ से छूट पा ही जाता गर
झूठ खाता बही नहीं होते।
कुछ हक़ीक़त भी देख लेते गर
वायदे कागज़ी नहीं होते।
लब हमारे गुनाह क्यों करते
तुम अगर शरबती नहीं होते।
मान भी लो कि तुम न होते तो
हम न होते अजी नहीं होते।
गीत में रंग जो दिए तुमने
“रंग इतने कभी नहीं होते”।
मतला ही इतना शानदार है कि आज के समय की पूरी कहानी कह रहा है। जो आरसी होते हैं वे ही किरकिरी हो जाते हैं। मस्अले सच में दिल्लगी नहीं होते है, बहुत अच्छे से इस बात को शेर में पिरोया गया है। मौसम जब ख़राब हो रहा हो तो हमें अपने आप को तो संभालना ही पड़ेगा, क्योंकि उसके बाद ही अच्छा मौसम है। और एक शेर तो एकदम जानलेवा टाइप का बन पड़ा है- जिसमें गुनाह का दोष किसी के होंठों के शरबती होने को दिया जा रहा है। कमाल। अगले ही शेर में मिसरा सानी में दोहराव से सौंदर्य पैदा करने का प्रयास बहुत सुंदर है। अंत में गिरह का शेर राकेश जी को समर्पित है, बहुत ही सुंदर गिरह है। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।

आज के दोनों शायरों ने रंग जमा दिया है। दाद देते रहिए और इंतज़ार कीजिए कि बासी होली का एक अंक और आ जाये शायद।

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