सोमवार, 4 मार्च 2024

होली का यह तरही मुशायरा

दोस्तो, इस बार जब हम होली का यह तरही मुशायरा आयोजित करने जा रहे हैं तो एक दुख के साथ करने जा रहे हैं। दुख यह है कि वर्ष 2007 में जब हम सब ने मिलकर यह यात्रा प्रारंभ की तथा एक परिवार बनाया, तब से ही हमारे साथ लगातार पूरी सक्रियता से जुड़े रहने वाले आदरणीय राकेश खण्डेलवाल जी इस बार हमारे साथ नहीं होंगे। इस बार उनके गीतों की बस यादें ही हमारे साथ होंगी। हर बार तरही का मिसरा देने में यदि देर हो जाती थी तो राकेश जी का संदेश आ जाता था कि इस बार तरही मुशायरा नहीं आयोजित होने वाला है क्या। और बस तरही की भूमिका बन जाती थी। अधिकांशत: यही होता था कि राकेश जी के स्मरण दिलाने पर ही ऐसा होता था कि हाँ इस बार देर हो गयी है। इस बार याद दिलाने वाला कोई नहीं था इसलिए देर हो गयी। राकेश जी की तरही में भूमिका ऐसी रहती थी कि वे केवल एक रचना भेजने तक सीमित नहीं रहते थे, बल्कि तीन या चार सुंदर गीत उनकी तरफ़ से प्राप्त होते थे। उनके गीतों में हमारे परिवार के पूरे सदस्यों के नाम भी होते थे। अभी दीवाली पर उनके गीत प्राप्त हुए थे, जब एक गीत में कुछ टाइपो-एरर के बारे में मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य में ख़राबी के कारण लिखने में परेशानी हो रही है। तब से ही मुझे चिंता थी कि ऐसा क्या हो गया है स्वास्थ्य में। और पुस्तक मेले में ही सूचना प्राप्त हुई कि गीतों का राजकुमार चिर निद्रा में सो गया है। हमारे इस ब्लॉग परिवार का एक बड़ा स्तंभ ढह गया। इस ब्लॉग को निरंतर गतिमान रखने में प्रेरणा देने वाले राकेश जी अब नहीं होंगे हमारे साथ। मगर उनके गीत हमारे सा​थ हमेशा रहेंगे। एक गीत जो उनके संदेश के साथ दीवाली के मुशायरे के कुछ पहले प्राप्त हुआ था, वह अप्रकाशित है, हम उसे ही शामिल करेंगे और मानेंगे कि राकेश जी हमारे साथ हैं। 


पूरे ब्लाग परिवार की तरफ़ से विनम्र श्रद्धांजलि
होली के तरही मुशायरा का मिसरा, यह मिसरा इस बार केवल राकेश खण्डेलवाल जी को ही समर्पित है। इसलिए इस बार गिरह का शेर हमको राकेश जी के लिए ही कहने की कोशिश करना है। मिसरा सानी इसी प्रकार का है कि इसके मिसरा ऊला में आप आसानी से राकेश जी के कृतित्व और व्यक्तित्व को जोड़ सकते हैं।
“रंग इतने कभी नहीं होते”

2122-1212-22 फाएलातुन (फएलातुन) – मफाएलुन – फालुन (फएलुन, फालान, फएलान)
यह बहरे ख़फ़ीफ़ की एक बहर है, बहुत ही लचीली बहर है, इसमें पहले रुक्न में फाएलातुन 2122 की जगह पर फएलातुन 1122 भी कर सकते हैं, उसे भी मान्य किया जाता है। इसी प्रकार अंतिम रुक्न फालुन 22 के स्थान पर फएलुन 112, फालान 221 तथा फएलान 1121 भी कर सकते हैं।
इस बहर पर एक बहुत ही प्रचलित ग़ज़ल है – दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है। ग़ालिब की इस ग़ज़ल की आप तकतीई करेंगे तो बहुत मज़ा आयेगा और आपको पता चलेगा कि किस प्रकार से बहरों में मात्राओं का सुंदर प्रयोग होता है। आप ग़ालिब की इस पूरी ग़ज़ल को देखिए और देखिए कि अंतिम रुक्न किस प्रकार परिवर्तित हो रहा है, लगभग चारों मात्रिक रूपों में। तो अपनी ग़ज़ल भेजिए होली के तरही मुशायरे के लिए, और हाँ इस बहर की परिवर्तनशीलता का आनंद लीजिए ग़ालिब की इस ग़ज़ल में जो पूरी यहाँ दी जा रही है-

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दआ' क्या है
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है
ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं
ग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है
शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूँ है
निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है
सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
हाँ भला कर तिरा भला होगा
और दरवेश की सदा क्या है
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है


परिवार