मित्रों होली का मुशायरा बहुत ही अच्छा रहा। सबने ख़ूब कमाल की ग़ज़लें कहीं। और सबसे अच्छी बात तो यह रही कि क़फिये की परेशानी बताने वालों ने भी ग़ज़ब की ग़ज़लें कहीं। अब मुझे लगता है कि हम यहाँ पर और कठिन प्रयोग भी कर सकते हैं। आप सब जिस अपनेपन से आकर यहाँ पर महफ़िल सजाते हैं उसके लिए आप सबको लाखों लाख सलाम प्रणाम। असल में तो यह ब्लॉग है ही आप सबका, यह एक परिवार है जिसमें हम सब वार-त्योहार मिलते हैं एक साथ एकत्र होते हैं और ख़ुशियाँ मनाते हैं। अब अगला त्योहार ईद का आएगा जून में तो हम अगला त्योहार वही मनाएँगे। चूँकि हमें शिवना साहित्यिकी हेतु हर चौथे माह एक मुशायरा चाहिए ही तो हमें अब इस प्रकार से ही करना होगा। ईद इस बार जून के अंतिम सप्ताह में है तो हम पवित्र रमज़ान के माह में अपना मुशायरा प्रारंभ कर देंगे और ईद तक उसको जारी रखेंगे। जुलाई के अंक हेतु हमें ग़ज़लें प्राप्त हो जाएँगी।
आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में
आज भभ्भड़ कवि अपनी ठंडी ग़ज़ल लेकर आ रहे हैं ताकि बहुत अच्छी और गर्मा गर्म ग़ज़लों से रचनाकारों ने जो होली की आग भड़का रखी है वह शीतला सप्तमी के दिन ठंडी हो जाए। कुछ शेर भभ्भड़ कवि ने घोर श्रंगार में लिख दिये हैं होली के अवसर का लाभ उठाते हुए, आप इस बात पर उनकी ख़ूब लानत-मलानत कर सकते हैं। मित्रों इस बार का जो क़ाफिया था वह ज़रा सी असावधानी से मिसरे से असंबद्ध हो सकता था और भर्ती के क़ाफिये में बदल सकता था। भभ्भड़ कवि ने केवल यह देखने की कोशिश की है कि वह कौन से क़ाफिये हैं जो बिना असंबद्ध हुए उपयोग किए जा सकते हैं और किस प्रकार से उपयोग किये जा सकते हैं। इस बार का रदीफ़ बहुअर्थी रदीफ़ था। रंग शब्द के कई अर्थ होते हैं। पहला तो वही रंग मतलब एक वस्तु जैसे ‘लाल रंग’, दूसरा रंग रंगने की क्रिया जैसे ‘मुझे रँग दे’, तीसरा रंग एक अवसर जैसे ‘आज रंग है’, चौथा रंग एटीट्यूड में होना, फुल फार्म में होना, प्रतिभा का पूरा प्रदर्शन जैसे यह कि ‘आज तो वह पूरे रंग में है’, पाँचवा रंग होता है असर, किसी का असर, जैसे ‘मैं हमेशा उसके रंग में रहा’। इसलिए इस बार सबसे ज़्यादा प्रयोग करने के अवसर थे, और रचनाकारों ने किए भी। भभ्भड़ कवि ने अलग-अलग क़ाफियों के साथ अलग-अलग प्रयोग करने की टुच्ची-सी कोशिश की है। बहुत सारे शेर कह डाले हैं, कौन रोकने वाला है, उस्ताद कहा करते थे कि बेटा बुरा ही करना है तो ख़ूब सारा करो, गुंजाइश रहेगी कि उस ख़ूब सारे बुरे में एकाध कुछ अच्छा भी हो जाए। कुल 32 क़ाफियों का उपयोग इस ग़ज़ल में किया गया है। जो क़ाफिये असंबद्ध होने के ख़तरे से भरे थे उनको छोड़ दिया गया है। तो आइये इतनी अच्छी ग़ज़लों के बाद यह कड़वा किमाम का पान भी खा लिया जाए। तो लीजिए प्रस्तुत है भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल।
भभ्भड़ कवि ‘भौंचक्के’
जिसको देखो वही है तेरे रंग में
कुछ तो है इस तेरे साँवले रंग में
इक दुपट्टा है बरसों से लहरा रहा
सारी यादें रँगी हैं हरे रंग में
दिल की अर्ज़ी पे भी ग़ौर फ़रमाइये
कह रहा है रँगो भी मेरे रंग में
रंग डाला था होली पे उसने कभी
आज तक हम हैं भीगे हुए रंग में
बस इसी डर से बोसे नहीं ले सके
दाग़ पड़ जाएँगे चाँद-से रंग में
तुम भी रँगरेज़ी देखो हमारी ज़रा
"आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में"
जिस्म से रूह तक रंग चढ़ जाएगा
थोड़ा गहरे तो कुछ डूबिये रंग में
थक गया है सफ़ेदी को ढोते हुए
अब रँगो चाँद को दूसरे रंग में
आज रोको लबों की न आवारगी
बाद मुद्दत के आए हैं ये रंग में
ख़ूब बचते रहे रंग से अब तलक
सोलहवाँ जब लगा, आ गिरे रंग में
हम दिवानों की होली तो बस यूँ मनी
उनको देखा किये भीगते रंग में
इक दिवाना कहीं रोज़ बढ़ जाएगा
रोज़ निकलोगे गर यूँ नए रंग में
दिल को मासूम बच्चा न समझो, सुनो
तुमने देखा कहाँ है इसे रंग में
दोस्ती का जो करते थे दावा बहुत
एक सच जो कहा, आ गए रंग में
रिंद प्यासे हैं तब तक ही ख़ामोश हैं
थोड़ी मिल जाए तो आएँगे रंग में
उसके रँग में रँगे लौट आए हैं घर
घर से निकले थे रँगने उसे रंग में
उफ़ ! लबों की ये सुर्ख़ी, ये काजल ग़ज़ब !
आज रँगने चले हो किसे रंग में
शर्म से जो लरजते थे दिन में वही
रात को अपने असली दिखे रंग में
मन में कोंपल-सी फूटी प्रथम प्रेम की
कच्चे-कच्चे सुआपंखिये रंग में
वस्ल की शब बरसती रही चाँदनी
हम नहाते रहे दूधिये रंग में
तब समझना कि तुमको मुहब्बत हुई
मन जो रँगने लगे जोगिए रंग में
ज़ाफ़रान एक चुटकी है शायद मिली
इस तेरे चाँदनी से धुले रंग में
ज़िंदगी ने थी पहनाई वर्दी हरी
मौत ने रँग दिया गेरुए रंग में
आसमाँ, फूल, तितली, धनक, चाँदनी
है हर इक शै रँगी आपके रंग में
फिर कोई दूसरा रंग भाया नहीं
उम्र भर हम उसीके रहे रंग में
वस्ल की रात उसका वो कहना ये, उफ़ !
'आज रंग डालो अपने मुझे रंग में'
हैं कभी वो ख़फ़ा, तो कभी मेहरबाँ
हमने देखा नहीं तीसरे रंग में
आपका वक़्त है, कौन रोके भला
आप रँग डालें चाहे जिसे रंग में
कल की शब हाय महफ़िल में हम ही न थे
सुन रहे हैं के कल आप थे रंग में
रूह पर वस्ल का रँग चढ़े, हाँ मगर
जिस्म भी धीरे-धीरे घुले रंग में
है 'सुबीर' उम्र का भी तक़ाज़ा यही
ख़ुश्बुए इश्क़ भी अब मिले रंग में
तो मित्रों यह है भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल। दाद खाज खुजली जो कुछ भी आपको देना है आप उसके लिए स्वतंत्र हैं। सड़े अंडे, टमाटर आदि जो कुछ आपको देना है वह आप कोरियर भी भेज सकते हैं। भभ्भड़ कवि पूरे मन से उन सबको स्वीकार करेंगे। तो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों। होली के मुशायरे का इसी के साथ समापन घोषित किया जाता है। भभ्भड़ कवि ने पूरे बत्तीस लोटे पानी डाल कर उस आग को बुझाया है जिसे आप लोगों ने मेहनत से सुलगाया था। तो मिलते हैं अगले मुशायरे में।