मंगलवार, 12 जुलाई 2011

बरसे घन सारी रात, संग सो जाओ, आओ रे, लता मंगेशकर, वनराज भ‍ाटिया और रघुवीर सहाय की अनोखी तिकड़ी का फिल्‍म तरंग का ये वर्षा गीत सुनें ।

इस गीत में क्‍या है ये कभी नहीं जान पाया । क्‍यों ये गीत मन को इतना भाता है । पता ही नहीं चलता । ये गीत 1984 में आई फिल्‍म तरंग का है । फिल्‍म को कुमार शाहनी ने निर्देशित किया था और ये राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम की फिल्‍म थी । लम्‍बे समय तक मैं इस गीत को गुलज़ार साहब का ही गीत समझता रहा । ग़ुलज़ार साहब कि किसी वेब साईट पर इसे उनके गीत के रूप में दिखाया भी गया है । और फिल्‍म के गीतकार के रूप में गुलज़ार साहब का नाम आता भी है । लेकिन ये गीत गुलज़ार साहब ने नहीं लिखा था । इसी फिल्‍म का एक और गीत था जो कि गुलज़ार साहब ने लिखा था । लेकिन ये गीत, ये कमाल का गीत लिखा था रघुवीर सहाय ने, रघुवीर सहाय ? जी हां वही सशक्‍त हिंदी कवि । उन्‍होंने और फिल्‍मी गीत ? दरअसल में वे इस फिल्‍म के लेखन से जुड़े थे । और उसी के चलते  ये गीत अस्तित्‍व में आया ।

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श्री रघुवीर सहाय  

रघुवीर सहाय के बारे में बस ये कि  जन्म: 09 दिसंबर 1929,  निधन: 30 दिसंबर 1990 , जन्म स्थान
लखनऊ, प्रमुख  कृतियाँ दूसरा सप्तक, सीढियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो, हँसो, जल्दी हँसो, लोग भूल गये हैं, कुछ पते कुछ चठ्ठियाँ, एक समय था कविता संग्रह लोग भूल गये हैं के लिये 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार। बाकी उनके काव्‍य का क्‍या परिचय दूं । उतनी मेरी हैसियत नहीं है ।

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श्री वनराज भाटिया

तरंग वैसे तो ये फिल्‍म एक आर्ट फिल्‍म थी लेकिन फिर भी इसमें गीत थे । और गीतों का सृजन किया था वनराज भाटिया ने । वनराज भाटिया को तो आप जानते ही होंगें । वही वनराज भाटिया जिन्‍होंने अंकुर, निशांत, मंथन, भुमिका, जुनून, कलयुग जैसी फिल्‍मों में संगीत दिया । 1977 में आई भूमिका के दो गीत 'तुम्‍हारे बिन जी न लगे घर में' और ' सावन के दिन आये सजनवा आन मिलो' तो आपको याद ही होंगें । प्रीती सागर की आवाज़ में ये दो गीत अनोखे हैं । या फिर जुनून का वह कभी न भूलने वाला गीत 'घिर आई कारी घटा मतवारी सावन की आई बहार रे' । तो वही वनराज भाटिया इस फिलम के संगीतकार थे । फिलम के कलाकार थे अमोल पालेकर और स्मिता पाटिल । हालांकि ये गीत स्मिता पाटील पर नहीं फिल्‍माया गया था । किस पर फिल्‍माया गया था मैं नहीं बता सकता क्‍योंक‍ि कलाकार को मैं नहीं जानता ।

Lata Mangeshkar आदरणीया लता मंगेशकर जी

अब लता जी के लिये क्‍या लिखूं । कितना कुछ तो उन पर लिखा जा चुका है फिर भी ये गीत सुनने से ही लग जाता है कि लता जी क्‍यों लता जी हैं । इस गीत में उनकी आवाज़ कोहसारों से आती हुई प्रतीत होती है । कभी ऐसा लगता है कि धूंध से ढंके दरख्‍़तों के साथ ये आवाज़ सरगोशी करती हुई बह रही है । और एक अजीब सी अपूर्णता को समपूरन करने की चाह लिये ये गीत लता जी की आवाज़ की बाहें थामें भटकता है और अंत में शांत हो जाता है । क्‍या कहूं ।

गीत रघुवीर सहाय का

है और गीत भी क्‍या है एक यात्रा है । यात्रा उस आनंद की जिसकी तलाश में हर कोई बरसों से भटक रहा है ।

गीत सुनें 

( गीत श्री नीरज गोस्‍वामी जी के सहयोग से तलाशा गया है )

डाउनलोड लिंक

http://www.divshare.com/download/15292631-f73

http://www.archive.org/details/BarseGhanSariRatLataMangeshkarFilmTarang

गीत देखें

 

बरसे घन सारी रात, सारी रात

संग सो जाओ रे, आओ रे, संग सो जाओ, आओ रे

प्रियतम आओ, प्रिय आओ रे

संग सो जाओ, संग सो जाओ

 

नहलाओ,  सांसों से,  तन मेरा

शीतल पानी,  याद न आये

सागर नदिया, याद आये

शबनम धुला सबेरा,

शबनम धुला

होठों से तपन बुझाओ,  बुझाओ

प्रियतम आओ,  आओ रे

संग सो जाओ

 

कुम्‍हलाया,  उजियारा,  मेरे मन में

अंधियारा,   घिर आया दर्पण में

क्‍यूं तन सिहरे,  छाया डोले

क्‍या तुम आये,  बांहें खोले

नींद न आई,  मधुर समर्पण में

मधुर समर्पण में

नींद आई

अंतिम सिसकी, अंतिम सिसकी

चुंबन से, चुप कर जाओ

कर जाओ

प्रियतम आओ, आओ रे

संग सो जाओ,  संग सो जाओ

बरसे घन सारी रात

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

ग्रीष्‍म तरही मुशायरा समाप्‍त हो चुका है और आज उस पूरे मुशायरे में से अपनी पसंद के एक एक शेर छांटे हैं मीनाक्षी धनवंतरी जी ।

वैसे तो तरही मुशायरा समाप्‍त हो चुका है लेकिन आज एक विशेष आलेख । इस आलेख में मीनाक्षी धनवंतरी जी ने पूरे तरही मुशायरे से अपने पसंद के शेर छांटे हैं । मीनाक्षी जी पहले तरही में स्‍वयं भी भाग लेती रहीं हैं, लेकिन आजकल श्रोता की हैसियत से मुशायरे का आनंद लेती हैं । वे अपना स्‍वयं का ब्‍लाग प्रेम ही सत्‍य है चलाती हैं । वरिष्‍ठ ब्‍लागर हैं । सुबीर संवाद सेवा के पहले प्रयोग शरद पूर्णिमा पर आयोजित आन लाइन कवि सम्‍मेलन में उन्‍होंने भाग लिया था जिसकी स्‍मृति को उन्‍होंने आज भी अपने ब्‍लाग पर सजा रखा है । तो आइये मीनाक्षी जी से ही एक श्रोता की हैसियत से जानते हैं कि तरही में उनके पसंदीदा शेर कौन कौन से रहे । 

meenakshi ji मीनाक्षी धनवंतरी जी

पंकज जी...नमस्कार ... आपके मुशायरे में हम शुरु से ही शरीक़ थे  और आज आपको अपनी प्रतिक्रिया भेज रहे हैं... चाह नहीं है पोस्ट बने, चाह यही बस समझा जाए, पाठक हरदम श्रद्धा से पढ़ता

पंकज जी मुशायरे की शुरुआत में ही आपने अपनी पहली पोस्‍ट  में लिखा था कि “केवल सूचना के लिये बताना चाह रहा हूं कि इस प्रकार की एक पोस्‍ट को लगाने में मुझे पूरा  दो घंटा लगता है, इसलिये यदि आप यहां केवल 'वाह, बहुत सुंदर, नाइस' जैसी टिप्‍पणी लगाने आएं हों तो क्षमा करें उससे आप टिप्‍पणी नहीं ही लगाएं तो बेहतर है । गीतों को पढ़ें आनंद लें और फिर टिप्‍पणी करें तो लेखक की और मेरी दोनों की मेहनत सफल होगी....”

मैंने आपकी उसी बात को याद रखा ...सोचा कि एक नायाब टिप्पणी कैसे की जाए जिसमें पूरे मुशायरे की बात हो...प्रत्येक पाठक की एक ही रचना पर अलग अलग प्रतिक्रिया हो सकती है, हम हर गज़ल और लिखने वाले का परिचय पढ़ते और आनन्द लेते लेकिन जो शेर दिल मे उतर जाता उसे यहाँ उतार देते...

श्री राकेश खंडेलवाल जी

राह सूनी ज्यों कि हो सिन्दूर के बिन मांग कोई

एक खामोशी लगे जो आप अपने आप खोई

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह

हर तरफ अब शोर इतना मन सहम कर चुप हुआ है

''और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी''

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प्रकाश पाखी

बात बंटवारे की लाई गर्मियों की वो दुपहरी

शूल सी दिल में चुभी थी गर्मियों की वो दुपहरी

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रविकांत पांडेय

गंध महुवे की वो मादक, वो टिकोरे आमवाले

याद फ़िर उनकी दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी

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डॉ. आज़म

यू.डब्‍ल्‍यू.एम. : किसी हिन्दू को नमाज़ पढ़ते देखा है ...?

हम जवाब दें कि हाँ हमने पढ़ी है और रोज़े भी ऊपर वाले के रहम से तीस के तीस रख पाए...

लू की लपटें, धूप तीखी, और कभी आंधी बवंडर
साथ लाए संगी साथी, गर्मियों की ये दुपहरी

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राजीव भरोल 'राज़'

चिलचिलाती धूप थी और सायबाँ कोई नहीं था,

पूछिए मत कैसे गुज़री गर्मियों की वो दुपहरी.

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लेफ्टिनेंट कर्नल गौतम राजरिशी

चाँद के माथे से टपकेगा पसीना रात भर अब

दे गई है ऐसी धमकी गर्मियों की ये दुपहरी

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कंचन सिंह चौहान

गुड़ छिपा आले में, मटके में मलाई की दही है,
राज़ नानी के बताती, गर्मियों की वो दुपहरी।

“ऐसा मानती हूँ कि कबिरा के ढाई अक्षर का सही अर्थ सिर्फ मैं जानती हूँ और सब बस ऐसे ही कहते हैं। जिंदगी ने बहुत से रिश्ते दिये। खुद को दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति मानती हूँ और सबसे खुश भी”

(इस गौरेया की इसी बात के हम कायल हैं.कंचन को ढेरों शुभकामनाएँ)

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श्री तिलक राज कपूर जी

अब कहॉं मुमकिन मगर दिन काश फिर वो लौट आयें

धूप थी जब चॉंदनी सी, गर्मियों की वो दुपहरी।

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संजय दानी

और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी,

याद नानी की दिलाती, गर्मियों की ये दुपहरी।

निर्मल सिद्धू

दूर तक ख़ामोशियां हैं जिस्म सबका है पिघलता

जान सबकी टांग देती गर्मियों की ये दोपहरी

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अंकित सफर

आसमां अब हुक्म दे बस, बारिशें देहलीज़ पर हैं,

लग रही मेहमान जैसी गर्मियों की ये दुपहरी.

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नवीन सी चतुर्वेदी

गर्म कर के आमियाँ, दादी बनाती थी पना जो,

उस पने से मात खाती, गर्मियों की वो दुपहरी.

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दिगम्‍बर नासवा

खींच के मारा किसी ने आसमाँ पे आज पत्थर
सुबह की डाली से टूटी गर्मियों की ये दोपहरी

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लावण्‍या दीदी

न बदलीं चाहतें ही , न रंजिशे ही

बदली है तो सर्द हवाएं ,

आज तब्दील हुईं जो लू बन

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श्री गिरीश पंकज जी

तोड़ते हैं पत्थरों को ज़िंदगी के वास्ते कुछ
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी

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राणा प्रताप सिंह

पुरसुकूं है गर मिले तो छाँव का बस एक टुकड़ा

पी गई है छाँव सारी गर्मियों की ये दुपहरी

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श्री नीरज गोस्‍वामी जी

थे पिता बरगद सरीखे और शीतल सी हवा माँ

तो लगा करती थी ठंडी, गर्मियों की वो दुपहरी

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प्रकाश अर्श

रात भी ख़ामोश थी , कोने में दुबकी कसमसाती ,

और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की वो दुपहरी !

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आदरणीया निर्मला कपिला दी

है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे
औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी

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शार्दुला नोगजा दीदी

था समय उजली शमीजें पहन कर आती थी गरमी,

जामुनी आँखों में रसमय स्‍वप्‍न की भीगी सी नरमी,

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अनन्या सिंह ( हिमांशी )

जो नज़र नीची किये, लिपटी हया की चादरों में

उस नई दुल्हन को लागे शांत, कोमल ये दुपहरी।

वीनस केशरी

आदमी ने किस कदर धरती को लूटा, देख कर अब,

हो रही है लाल-पीली गर्मियों की ये दुपहरी |

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इस्‍मत जैदी जी

रिश्तों नातों कि वो चाहत ,कुछ नसीहत और दुआएं

इस दफ़ा बस याद लाई , गर्मियों की वो दुपहरी

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सुलभ जायसवाल

टीन की छप्पर जलाती गर्मियों की वो दुपहरी
ताल झरने सब सुखाती गर्मियों की वो दुपहरी

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डॉ. सुधा ओम ढींगरा जी

अलसाए मन का मौन,
और सन्नाटे में डूबी, गर्मियों की ये दुपहरी.

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डॉ. अज़मल हुसैन ख़ान 'माहक'

थी तपिश अन्दर कि बाहर होश पर काबू न था, उफ़
बेखुदी ही बेखुदी थी गर्मियों की वो दुपहरी.

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विनोद कुमार पांडेय

नहर-नदियों ने बुझाई प्यास खुद के नीर से जब

नभचरों के नैन में दिखने लगी है बेबसी सी

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आदरणीया देवी नागरानी जी

अपनी लू के ही थपेड़े गोया कि खाने लगी है
पानी - पानी गिड़गिड़ाती गर्मियों की ये दुपहरी

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श्री शेष धर तिवारी जी

वो लिपे कमरे की ठंढक और सोंधी सी महक भी

बंद हो कमरे में काटी गर्मियों की वो दुपहरी

नमस्कार सुबीरजी.... अब आपका मेल पढ़ कर रहा नही गया और जवाबी मेल भेज रहे हैं... बताइएगा कैसा लगा...... ज़ुरूरी सूचना: यदि समय की कमी हो तो फिलहाल पोस्‍ट को न पढ़ें, ये पोस्‍ट थोड़ा अतिरिक्‍त समय मांगती है . इस सूचना को पढ़ कर तो एक महीना भी कम रहेगा :)  अभी तो सिर्फ 15 दिन हुए हैं आपकी पोस्ट को आए... कम से कम एक महीना तो चाहिए उस पर टिप्पणी करने के लिए... गज़ल लिखना और कहना आपके लिए आसान होगा लेकिन मुझ से पाठक को समझने में बहुत वक्त लगता है...गहरे में जो डुबकी लगानी होती है समझने के लिए ....  यादों के गलियारों से आपको देखते हुए परिवार को मिलना सुखद अनुभव रहा...परिवार में सबको यथा योग्य...ख़ास तौर पर खूब सारा प्यार और आशीर्वाद आपकी दो नन्ही परियों को ...  अब आपकी सतरंगी गज़लों की इन्द्रधनुषी आभा का चित्र उकेरते हैं....   मेरी पसन्द के सात रंग... जिनमें एक एक शेर छांट कर कुल सात शेरों की ग़ज़ल ( मतला, मकता और गिरह मिलाकर) की कोई सीमा नहीं है...

हर छुअन में इक तपिश है, हर किनारा जल रहा है
है तुम्‍हारे जिस्‍म जैसी, गर्मियों की ये दुपहरी

जब तलक तुम थे तो कितनी ख़ुशनुमा लगती थी लेकिन
लग रही अब कितनी सूनी, गर्मियों की ये दुपहरी

है विरहिनी उर्मिला सी, गर्मियों की ये दुपहरी
इसलिये दिन रात जलती, गर्मियों की ये दुपहरी

ख़ुशनुमा मौसम सभी कुछ ख़ास तक महदूद हैं बस
आम इन्‍सानों को मिलती, गर्मियों की ये दुपहरी

है खड़ी बन कर चुनौती, गर्मियों की ये दुपहरी
आज़माइश की कसौटी, गर्मियों की ये दुपहरी

बुदबुदाई पत्‍थरों को तोड़ती मज़दूर औरत
राम जाने कब ढलेगी, गर्मियों की ये दुपहरी

याद की गलियों में जाकर, ले रही है चुपके चुपके
बर्फ के गोले की चुसकी, गर्मियों की ये दुपहरी

एक शेर हमारा भी गुरु पंकज के नाम

तन्हाँ खड़ी अकेली जलते देखती जब भी उसे

बेदख़ल सी लगती है गर्मियों की ये दुपहरी

उम्मीद है एक पाठक की टिप्पणी करने का यह अन्दाज़ कुछ तो पसन्द आएगा ही

मीनाक्षी

परिवार