एक पागल सी चिड़िया कैसे एक घर बसाने का पागलपन करती है, और कुछ न कर के भी बहुत कुछ कर जाती है, वाह आपकी कल्पना को बधाई।
मीनाक्षी जी की पंक्तियाँ-
बड़ी बड़ी बातें नही चाहिए , जीवन उलझाने के लिए
छोटी-छोटी बातें ही चाहिए , प्रेम भाव लाने के लिए !
प्रेम व्यवसाय में उतरने वालों के लिये, छोटा लेकिन अचूक नुस्खा। फिर तालियाँ।
वीना जी की कविता
निकले चंदा रात मुस्कराए
झूम-झूम इठलाती है
तारों से आंचल भरकर
फिर दुल्हन सी शरमाती है
की कौन सी पंक्ति चुनी जाये हम समझ नही पा रहे, पूरी कविता ही एक अद्भूत भावुक कल्पना का नमूना।
तड़ तड़ तड़ तड़
सुनीता जी के तो क्या कहने ही है, और जोगलिखी ने भी हम श्रोताओं कौ खुश किया
अरविंद जी क्या बात है
चान्दनी ये तो जानती होगी
रोशनी चान्द से हुई होगी .
वाह वाह
बुरे बख्तों मे साथ छोड गयी
बेवफाओं के घर पली होगी.
बहुत खूब
आगे आगे चान्दनी ,पीछे पीछे चान्द
सीधे आंगन तक घुसे सभी छतों को फान्द.
भई वाह! तालियाँ तो आप हमारी सुन ही रहे होंगे।
और अब अंत में संचालक महोदय हमारे माननीय गुरू जी। क्या बात है! क्या बात है! इसीलिये कहा जाता है कि गुरू तो फिर गुरू ही होता है।
चांदनी बुला रही है सांझ से मुंडेर पर
प्रेम से मनुहार भरे स्वर में टेर टेर कर
ना ना तालियाँ नही बज रहीं, हम तो बस मगन हो कर सुन रहे हैं, ताली बजाने की सुध किसे है?
दूर कोई गा रहा है रस भीगा गीत रे
आ गया है लौट कर किसी के मन का मीत रे
कह रही है चांदनी के तू भी अब न देर कर
प्रेम से मनुहार भरे स्वर में टेर टेर कर
क्या बात है, जल्दी में बनाई तो ऐसी बनी कहीं बैठ कर ना दी होती तो हम सब को मंच से भागना ही पड़ जाता!
सच ही कहा
विश्व का पहला ब्लागीय शरद पूर्णिमा कवि सम्मेलन सफल रहा है
बधाई! बधाई!
बहुत-बहुत शुक्रिया...आप सभी का...और हमारे गुरूदेव का..
सुनीता(शानू)
काव्य पाठ तो हो गया पेमेंट ड्राफ़्ट से भेजेंगे या सीधे अकाउंट में जमा कर वाएंगे.मज़ाक कर रहा हूँ.आपने अपने ब्लॉग में शुमार कर लिया..साधुवाद.