शनिवार, 20 सितंबर 2008

प्‍यार के दो बोल सुनकर वो तेरा हो जायेगा, फिर भी इन्‍सां है किसी दिन वो जुदा हो जायेगा, नेकदिल है वो भला है हुक्‍मरां पर है नया, इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा

तरही मुशायरा भाग 2

आज तीन और शायरों की रचनायें प्रस्‍तुत हैं इस तरही मुशायरे के दूसरे और अंतिम दौर में । ग़ज़ल की कक्षाओं को शुरू करने से पहले इस तरह का तरही मुशायरा आयोजित करने के पीछे कारण कई हैं पर एक कारण तो ये है कि मानसिकता बन जाये और दूसरा वीनस केसरी ने मेल किया था कि कक्षायें प्रारंभ करने के पहले टेस्‍ट लिया जाये सो दोनों ही कारणों से ये तरही मुशायरा आयोजित किया गया । चलिये आज समापन करते है।

माड़साब : सबसे पहले आ रहे हैं गौतम राजरिशी जिनका शेर आज शीर्षक में लगा है इन्‍होने अच्‍छा प्रयास किया है और दो बार किया है । एक बार तो ग़ज़ल प्रस्‍तुत की और दूसरी बार भेड़ दी । इनके लिये ये ही कहा जा सकता है कि ये कलाकार है सारी कलायें रखता है, बंद मुट्ठी में आवारा हवायें रखता है ।

गौतम राजरिशी

gautam
गुरूजी होमवर्क के साथ हाजिर हूँ.जाने कैसी बन पड़ी है

मुख न खोलो गर जरा तो सब तेरा हो जायेगा
जो कहोगे सच यहाँ तो हादसा हो जायेगा 

भेद की ये बात है यूँ उठ गया पर्दा अगर
तो सरे-बाजार कोई माजरा हो जायेगा 

नेकदिल है वो भला है हुक्मरां पर है नया
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा 

इक जरा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख दिल
वो अगर दें धमकियाँ भी,मशवरा हो जायेगा 

ये नियम बाजार का है जो न बदलेगा कभी 
वो है सिक्का,जो कसौटी पर खरा हो जायेगा

होमवर्क पर चार और शेर पका लाये हैं.लगे हाथों भेड़ देता हूँ-

सोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है
जो भी चाहे,जो भी तू ने कह दिया,हो जायेगा 

यूँ निगाहों ही निगाहों में न हमको छेड़ तू
भोला-भाला मन हमारा मनचला हो जायेगा 

भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर
बढ़ न पायेगा कभी तू,गुमशुदा हो जायेगा

तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो
एक दिन ये इस जहाँ का तजकिरा हो जायेगा

माड़साब : अच्‍छे शेर निकाले हैं और गिरह भी अच्‍छी बांधी है । आप जानते हैं कि किसी के मिसरा सानी पर अपना मिसरा उला लगाने को गिरह बांधना क्‍यों कहते हैं । दरअस्‍ल में गिरह का अर्थ होता है गांठ और चूंकि आप किसी दूसरे की जमीन पर काम कर रहे हैं इसलिये ये जो शेर होता है ये दोनों ग़ज़लों के बीच गिरह का काम करता है । चलिये अब चलते हैं दूसरे शायर की और जो हैं रविकांत। इनके बारे में ये ही कहा जा सकता है कि ''ख़ुश्‍क पत्‍तों पे मेरा नाम यक़ीनन होगा, मैंने इक उम्र गुज़ारी है शजरकारी में ''

रविकांत पाण्डेय

ravikant
गुरू जी, होमवर्क हाजिर है-

प्यार के दो बोल सुनकर वो तिरा हो जायेगा
फ़िर भी इन्सां है किसी दिन वो जुदा हो जायेगा 

इश्क की नादानियों का सिलसिला मुझसे कहे
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा 

आग दिल में दे गया जो आज फ़िर है सामने
जीने मरने का नजर से फ़ैसला हो जायेगा 

बोलना सच हो अगर पहले जरा ये सोचना
जो भी अपना है यहाँ नाआशना हो जायेगा 

सर हथेली पे रखा है तुम पुकारो जिस घड़ी
जिंदगी का इस तरह से हक अदा हो जायेगा
 

माड़साब : मतला अच्‍छा निकाला है और बाकी के शेर भी मासूम  ( वैसे फोटो में भी बंदा मासूम लग रहा है ) अब जो आ रहे हैं उनके लिये ये ही कहना चाहूंगा '' ख़ुद से चल के कहां ये तर्जे सुख़न आया है, पांव दाबे हैं ब़ुज़ुर्गों के तो फन आया है '' । खड़े होकर तालियां बजाइये आज के दौर के स्‍थापित शायर नीरज जी का जिन्‍होंने इंटरनेट के बीमार होने के बाद भी तरही में भाग लिया । आ रहे हैं ग़जल सम्राट नीरज जी

नीरज गोस्‍वामी

neerajgoswami

गुरूजी
मानना पड़ेगा की नयी पीढी का कोई जवाब नहीं...जब तक हम होमवर्क पर दिमाग लगाते इन नौजवानों ने उसे पूरा कर के आप के पास भेज भी दिया और क्या खूब भेजा है...ऐसे शेर निकले हैं जो हमारे जेहन में शायद कभी आते ही नहीं...शायरी का भविष्य सुरक्षित है.इन जवान हाथों में....और आप की ग़ज़ल....क्या कहूँ...गदगद हूँ...शब्द नहीं मेरे पास...इसे पढ़कर जो लोग संसद में जाते हैं डूब मरना चाहिए...लेकिन डूब मरने के लिए गैरत की जरूरत होती है जो इनके पास है नहीं...ऐसी नायाब ग़ज़ल पढ़वाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...हम धन्य हुए...

आप के दिए होम वर्क पर पूरा काम हो नहीं पाया समय और नेट दोनों ने हाथ खींच रखा है...बड़ी मुश्किल से एक आध मिनट को चलता है और फ़िर गोल...बहुत काम बाकि है तरही ग़ज़ल का...एक आध शेर हुआ है सुनिए और हमारे कान मरोडिये ..

आदमी को आदमी सा मान देना ठीक है
सर झुका मिलते रहे तो वो खुदा हो जाएगा 

दोस्त से हमको मिला वो,भर गया मत सोचिये
जख्म को थोड़ा कुरेदो फ़िर हरा हो जाएगा
 

माड़साब : ज़ख्‍म को थोड़ा कुरेदो फिर हरा हो जायेगा, नीरज जी ये बात आप ही कह सकते हैं । बढि़या है भइ बढि़या है ।

चलिये अब परिणाम की ओर चलते हैं परिणाम में जिन चीज़ों पर ध्‍यान दिया गया है वो हैं बहर, कहन, मिसरा उला और सानी का तारतम्‍य ।

तो पहले तरही मुशायरे का सरताज शेर है

भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर 2122 2122 2122 212
बढ़ न पायेगा कभी तू,गुमशुदा हो जायेगा  2122 2122 2122 212

(गौतम राजरिशी)

हालंकि इसमें भी कहन का हल्‍का सा दोष है जिसको और सुधारा जा सकता है ताकि ये एक हासिले ग़ज़ल शेर हो जाये । सभीको बधाई और गौतम को खास तौर पर क्‍योंकि उनका शेर सरताज़ बना है ।

अगले तरही मुशायरे के लिये पंद्रह दिन दिये जा रहे हैं और मिसरा है माड़साब की ही ग़ज़ल का '' अंधी बहरी गूंगी जनता'' 22-22-22-22 फालुन-फालुन-फालुन-फालुन बहर है बहरे मुतदारिक मुसमन मकतूअ । काफिया है केवल ''ई'' की मात्रा और रदीफ है जनता । चलिये अगले सप्‍ताह मिलते हैं बहर की कक्षाओं के साथ ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूजी
    आप ने जिस शेर को सरताज के खिताब से नवाजा है वो यकीनन इस लायक है...आप की पारखी नज़र को सलाम बजा लाता हूँ...अगर आप जो दोष बता रहे हैं उस शेर में, उसका भी खुलासा कर देते तो हम जैसे रंगरूटों पर रहम होता.
    बहुत खुशी होती है जब वीनस जी, गौतम जी और रविकांत जैसे युवाओं को बेमिसाल शेर कहते देखता हूँ...ये नई पौध है मुरझाये नहीं और इनमें खूबसूरत फूल खिले ये देखने की जिम्मेवारी हम सब की है.
    नीरज
    पुनश्च: खाकसार के नाम के आगे ग़ज़ल सम्राट लिखना "टाट पर मखमल का पैबंद " लगाने जैसा है.

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  2. मजेदार! गौतम जी बधाईयाँ। ऐसे ही सुन्दर-सुन्दर शेर और सुनने की उम्मीद बढ़ गई है आपसे। नीरज जी की बात पर गुरूदेव ध्यान दें। जो कमी रह गई है गौतम जी के शेर में उसे बता दें तो हमारे सीखने की प्रक्रिया उत्तरोत्तर बढ़ती रहे।

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  3. अद्भुत..
    मुर्दा होते संस्कारों को पुनर्जीवन दे रहे हैं आप.
    बधाई सुबीर जी..

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  4. आह्हा!! आनन्दम-अति आनन्दम!! बहुत गजब रहा..सभी को बधाई और गौतम जी को दो बार. :) माड़स्साब को तीन बार!!! :)

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  5. गुरु जी प्रणाम
    आपने हमारी बात को ध्यान रखते हुए टेस्ट लिया इसके लिए कोटि कोटि धन्यवाद
    हम तो ग़ज़ल भेजे थे की सीखने की एक प्रक्रिया है
    हमको न पता था की परिणाम भी घोषित होंगे
    मगर फ़िर भी परिणाम के प्रति उत्सुक थे
    सरताज शेर पढ़ कर लगा की वाकई गौतम जी का ये शेर तो सरताज है
    आगे बढे तो परिणाम तो कही दिखा ही नही
    जैसे की आपने लिखा है
    (तो पहले तरही मुशायरे का सरताज शेर है)
    इससे लगा की ये तो परिणाम का एक अंश है
    मगर आगे तो कुछ था ही नही
    हमने तो सोंचा था की हमारे दोष पूर्ण शेर के लिए कोई कमेन्ट होगा या कोई हिदायद या शेर को सही करने का तरीका या शेर को ग़ज़ल से दूर करने की हिदायद
    नीरज जी की बात पर भी ध्यान दीजिये


    होम वर्क नोट कर लिए हैं जल्दी ही पूरा करके भेजते है

    कहने को बहुत कुछ है कम लिखा ज्यादा समझियेगा

    वीनस केसरी

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  6. ...हे ईश्वर.मुझे तो सहज ही विश्वास नहीं हो रहा इतने दिग्गजों के बीच मेरा ये अदना सा शेर .
    कंचन जी का "हर नफ़स रोशन किये..." और रविकांत जी का "सर हथेली पे रखा है..." और वीनस का लाजवाब शेर "आज मैने मय के प्याले..." इन सबके समक्ष हमारे शेर की तो बिसात ही क्या.नीरज जी के तो अभी हम चरण-धूल तक नहीं पहुँचे तो टिप्पणी क्या करूँ...
    बस आप्का आशिर्वाद बना रहे गुरूदेव.
    और इस बार के होमवर्क का रदीफ़ इतना मुश्किल दे दिया है आपने कि निर्वाहन में तो....
    करते हैं कोशिश..
    एक सवाल था गुरूजी,आपकी पुरानी कक्षायें देख रहा था.आपने बस चार रुक्कनों के बारे में बताया है.यानि कि हम एक मिश्रे में अधिक-से-अधिक चार रुउक्कन ही रख सकते हैं?

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  7. पुनश्चः- गुरूजी दोष का निवारण तो बता देते.और एक और सवाल कि मुतदारिक बहर मे २१२ के साथ २२२ जोड़ा जा सकता है क्या?

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