अभी रविवार को ही बैठकर एक ग़ज़ल पर काम कर रहा था । जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं कि आजकल हिंदी की ग़ज़लें लिखने का काम कर रहा हूं । उस पर भी ऐसी ग़ज़लें जिनमें हुस्न इश्क, जामो मीना, जैसी बातें न आयें केवल वर्तमान हालात की बातें हों । लिखते लिखते ही उस ग़जल में ये शेर भी बन गया जो ऊपर शीर्षक में लगाया है मिला हो रक्त मानव का भले ही, मगर भोजन निरामिष है महोदय एक और शेर उसमें कुछ ऐसा बना है समंदर ताल नदियां आप रख लो, हमारे पास बारिश है महोदय ।
खैर ये तो हुई अपनी बात अब चलिये विषय को आगे खिसकाते हैं । बात चल रही थी पिछली बार बहरे हजज़ की जिसके बारे में मैंने बताया था कि ये एक गाई जाने वाली बहर है । जिसमें कई सारी उप बहरें ऐसी हैं जिनको कि गाने के लिये ही उपयोग किया जाता है । आज के शीर्षक में जो शेर लगा है वो भी एक ऐसी ही बहर है जिसका नाम है बहरे हजज़ मुसद्दस महज़ूफ और इसके रुक्न हैं मुफाईलुन-मुफाईलुन-फऊलनु । अब पिछले सबक को देखकर आप ये तो कह ही सकते हैं कि स्थिर रुक्न मुफाईलुन है सो ये हजज़ है । तीन रुक्न हैं सो ये मुसद्दस है । मगर ये महज़ूफ क्या बला है । आइये आज इसी के बारे में कुछ बातें करते हैं कि ये महज़ूफ क्या बला है । दरअस्ल में जब बहरों का नाम करण किया जाता है तो उसमें ये देखा जाता है कि बहर के सामिल रुक्न के अलावा परदेशी रुक्न कौन कौन से हैं । सालिम रुक्न का मतलब होता है कि उसे बहर का स्थिर रुक्न जैसे कि बहरे हजज़ का स्थिर रुक्न है मुफाईलुन । तो सबसे पहले तो उन परदेशियों की पहचान की जाती है और फिर उनका नाम तलाश जाता है । नाम तलाशा जाता है से मतलब ये कि बहरे हजज़ में आने वाले रुक्नों की एक फेहरिस्त है उस फेहरिस्त में ये ढूंढा जाता है कि इस रुक्न का नाम क्या है । अब एक और सवाल ये आ गया कि बहरे हजज़ में आने वाले रुक्न से क्या अर्थ । दरअस्ल में बहरे हजज़ में कुछ निश्चित रुक्न ही आ सकते हैं । आप ऐसा नहीं कर सकते कि अपने मन से एक रुक्न को मुफाईलुन के साथ लगा दें और कह दें कि ये बहरे हजज़ हैं क्योंकि इसमें रुक्न है मुफाईलुन और साथ में एक परदेशी रुक्न है ।
दरअस्ल में हजज़ में मुफाईलुन जैसी ही ध्वनियों वाले रुक्न आ सकते हैं । जैसे मफऊलु 221, फऊलुन 122, मुफाईलु 1221, फाएलुन 212, मुफाएलुन 1212, मफऊलुन 222, ये सारे के सारे रुक्न जो हैं ये उसी प्रकार की ध्वनि के हैं जो कि मुफाईलुन की है । इसीलिये इनका उपयोग हजज़ में किया जाता है । अब ये जा परदेशी हैं उनके कुछ तय नाम हैं । ये याद रखें के ये नाम हजज़ में ही हैं मुफाएलुन रुक्न का नाम जो हजज़ बहर में है वो ज़रूरी नहीं कि उसका वही नाम बहरे रजज़ में भी हो । अर्थात हर रुक्न का नाम बहर में जाकर बदल जाता है । कभी कभी ये एक ही हो सकता है ।
अब जैसे मफऊलु भाई साहब का नाम है अख़रब भैया अब जिस भी हजज़ की बहर में ये अखरब भैया आ जाएंगें उस बहर में बहरे हजज़ के साथ एक नाम और लगेगा अख़रब । ये जो फऊलुन भाई हैं इनको कहा जाता है महज़ूफ भाई मतलब जिस भी बहर में ये आयेंगें उसके नाम में इनका नाम महज़ूफ भी लगेगा जो कि ऊपर शीर्षक वाले शेर के नाम में लगाया गया है । अब बात करते हैं फाएलुन की ये जब भी बहरे हजज़ में पाये जायेंगें तो इनका नाम होगा अशतर और ये नाम जुड़ जायेगा बहरे हजज़ के साथ भी । मुफाएलुन का नाम है मकबूज़ और मफऊलनु का नाम है अख़रम, मुफाईलु को कहीं कहीं मकसूर कहा जाता है और कहीं मकफूफ । इस प्रकार से ये कुछ ऐसे ना म हैं जिनका उपयोग नामकरण के दौरान किया जाता है । अब वापस ऊपर वाले शेर की बात करें कि उसका नाम वही क्यों है ।
मिला हो रक्त मानव का भले ही, मगर भोजन निरामिष है महोदय
1222-1222-122 1222-1222-122
ऊपर से देखने में ये तो समझ में आ रहा है कि स्थाई रुक्न है मुफाईलुन सो ये हो गई बहरे हजज़ तीन रुक्न हैं सो ये हो गई मुसद्दस बहर परदेशी रुक्न उसमें आ रहा है फऊलुन जिसका नाम है महज़ूफ सो इस बहर का नाम हो गया बहरे हजज़ मुसद्दस महज़ूफ । यदि किसी बहर में दो या जियादह परदेशी रुक्न आ रहे हों तो उसके नाम में सभी परदेशीयों के नाम उनके आने के क्रम में शामिल कर लिये जाते हैं । चलिये अगली बार तक के लिये जय हो । कुछ लोगों ने जाना चाहा है मेरे बारे में सोचता हूं कि बता ही दूं ताकि लोगों का भरम तो टूटे । मगर किश्तों में बताना कैसा रहेगा तो चलिये आज अपने बारे में एक जानकारी देता हूं ।
एक समय वो था जब में मुंबई में रहा था । लगभग एक साल तक वहां रहा था । अब ये पूछिये कि मैं वहां क्यों गया था । दरअस्ल में मैं वहां माडलिंग के लिये गया था । कुछ छोटे मोटे एसाइन्मेंट किये थे । एक दो छोटे मोटे सीरियल्स में भी काम किया था जो टेलिकास्ट ही नहीं हो पाये । मुम्बई में रहना मुझे सूट नहीं हुआ । दरअस्ल में वहां का भारी वातावरण जमता ही नहीं था । उस पर ये कि वहां रहकर जो काम छोटा मोटा कर रहा था उससे अपना ही खर्च नहीं निकल पा रहा था । बस इन सब कारणों के चलते लौट कर बुद्धू घर को आ गये । ये उस समय की बात है जब मेरे सिर पर बाल हुआ करते थे जो कि अब केवल मोहन जोदड़ो की तरह यत्र तत्र खुदाई में पाये जाते हैं । माडलिंग के काम से ही एक दो बार बैंगलोर भी गया था । उसके बाद जो लौटा तो फिर उस तरफ कभी देखा भी नहीं । वहां के सारे फोटोग्राफ, पत्र, जो कुछ भी था वो सब जला दिया । तो आप ये कह सकते हैं कि ये वो जगह थी जहां से मैं असफल होकर लौटा । हो सका तो अगली पोस्ट में उस समय का एकाध फोटो दिखाने का प्रयास करूंगा ।
पिछले सप्ताह अपनी पसंद के गीत आवाज पर यहां लगाये http://podcast.hindyugm.com/2009/04/rare-songs-of-film-ek-pal-bhupen.html
और नीरज जी ने अंतत: कोर्ट कचहरी की धमकी देकर एक ग़ज़ल बुलाकर यहां लगाई
http://ngoswami.blogspot.com/2009/04/blog-post_20.html
और यहां पर मेरे एक कमेंट के अर्थ का अनर्थ निकाला गया
http://aajkeeghazal.blogspot.com/2009/04/blog-post_12.html
तरही को लेकर अभी कुछ ही लोगों की ग़ज़लें आईं हैं । शीघ्र करें ।