तरही मुशायरे को लेकर जिस प्रकार लोग प्रतिक्षा कर रहे थे उसको देख कर मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ कि वास्तव में मैंने जो इंतेजार करवाया वो कुछ ज्याद ही हो गया है । खैर कहा जाता है ना कि देर आयद दुरुस्त आयद । और पिछले अंकों को लोगों ने हाथों हाथ लिया है ये अच्छी बात है । चलिये आज हम चलते हैं अपने समापन अंक की ओर जिसमें आज दो कवि और एक कवियित्री शामिल हैं । आज के अंक में जैसा कि मैंने पहले कहा था कि एक भारी भरकम कवि भी शामिल हैं जो कि विशेष रूप से कनाडा से इंडिया इसी कार्यक्रम के लिये पधारे हैं । तो चलिये हम प्रारंभ करते हैं आज का ।
माड़साब : आज सबसे पहले आ रहे हैं तरुण गोयल । तरुण पहली बार हमारे तरही मुशायरे में आ रहे हैं इसलिये जोरदार तालियां इनके लिये ।
तरुण गोयल -
गूंगी बहरी अंधी जनता,
लड़ती और झगड़ती जनता|
अंधियारों में खोई खोई,
गलियारों में उलझी जनता|
माया के आँचल से लिपटी,
लुटी हुई बेचैन सी जनता|
क्यूँ सर के ही बल दौडे है,
पागल और बेचारी जनता|
हर एक आहट पे घबराती,
डरी हुई और सहमी जनता|
क्यूँ न बदले रोज ये पासा,
वादों से न चलती जनता|
माड़साब : भई तरुण ने बहुत अच्छे शेर निकाले हैं । विशेषकर वो शेर जिसमें कहा है हर एक आहट पर घबराती डरी हुई और सहमी जनता बहुत अच्छा कहा है । तालियां तालियां तालियां । और तरुण के बाद आ रही हैं मुशायरे की दूसरी कवियित्री । पहले दौर में कंचन ने अपनी ग़ज़ल पढ़ी थी और आज पारुल आ रही हैं अपनी ग़ज़ल को लेकर पारुल एक अच्व्छी कवियित्री हैं और ग़ज़ल की कक्षाओं से कुछ दिनों पूर्व ही जुड़ी हैं । इन दिनों ग़ज़लें भी लिख रही हैं । तो तालियों के साथ स्वागत कीजिये पारुल का ।
पारुल :
गूंगी बहरी अन्धी जनता
भोली कभी सयानी जनता
शहर फूंक कर हाथ तापती
मन्द मन्द मुस्काती जनता
मुँह मे राम बगल में छूरी
नित चरि्तार्थ कराती जनता
नेकी कर दरिया मे डालो
ऐसा पाठ पढ़ाती जनता
उगते सूर्य को पीठ दिखाकर
तमस तमस चिल्लाती जनता
माड़साब : अच्छा प्रयास है पहला ही प्रयास । हालंकि बहर की कुछ समस्याएं कहीं कहीं दिखाई दे रहीं हैं मगर फिर भी चूंकि पहला प्रयास है इसलिये साधुवाद और ये भी कि करत करत अभ्यास के सब हो जाता है । और अब आ रहे हैं वो जिनका हम सब को इंतेजार है वो जो कि कनाडा से केवल हमारे तरही मूशायरे के लिये भारत पधारे हैं और जिनका हम सब को बेसब्री से इंतेजार है । चलिये तालियों के साथ स्वागत कीजिये उड़न तश्तरी उर्फ समीर लाल जी का ।
समीर लाल :
ऊप्स मुशायरा प्रारंभ भी हो गया चलिये बस ये एक डिश और बाकी रह गई है होटल की इसको नहीं खाया तो होटल वाले भी बुरा मानेंगें और डिश को भी बुरा लगेगा कि आखिर मुझसे ही क्यों दूरी । बस आता हूं ।
लो मैं आ गया भरे पेट कविता पेलने का आनंद ही कुछ और है क्षमा करें मैं दूर से आया हूं इसलिये तीन ग़ज़लें पेलूंगा अगर आप बुरा न मानें तो । और बुरा मानें तो भी मुझे तो तीन पेलना है ।
तकलीफों को सहती जनता
उम्मीदों पर पलती जनता
दुश्मन की पहचान नहीं है
अपनों को ही छलती जनता.
खाते पीते महलों वाले
मछली उनकी तलती जनता.
सुनने वाला कोई नहीं है
गज़ल भला क्यूँ लिखती जनता.
गाँवों में अब काम नही है
शहरों में जा बसती जनता.
बाढ़ों में जब सपने बहते
अनुदानों को तकती जनता.
ग़ज़ल बदले काफिये के साथ
जख्मों को दिखलाती जनता
अपना हाल सुनाती जनता
झोली उनकी भरती जाती
कर्जा माफ कराती जनता
धोखा देते नेता सारे
चुनती उनको जाती जनता
रोते रोते आंसू सूखे
बेबस हो चिल्लाती जनता
( (मजाकिया (5))
नेताओं की पोल खुली जब
उनको धूल चटाती जनता
अपने वोटों की लालच दे
उनसे पैर छुलाती जनता
साईकिल से दफ्तर जाने
पंचर ठीक कराती जनता.
मोटर से इम्प्रेशन पड़ता
डीज़ल खूब भराती जनता.
( यूपी स्पेशल)
अपने घर में बिजली लाने
कटिया रोज फसाती जनता.
माड़साब : वाह वाह वाह । लगता है कि खा पीकर कोसने का आनंद ही कुछ और है । धोखा देते नेता सारे चुनती उनको जाती जनता । काफी अच्छे तेवर हैं समीर जी । तो श्रोताओं समीर जी के इस धांसू प्रदर्शन के साथ ही हम तरही का समापन करते हैं । अब श्री नीरज जी गोस्वामी के पाले में गेंद है कि कब वे इस तरही मुशायरे का हासिले मुशायरा शेर घोषित करते हैं । जै राम जी की ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही हैं सब ग़ज़ल-कारों ने, तरुण और पारुल की ग़ज़लें जानदार हैं, सम्मर भाई की गज़लों ने तो सोने पर सुहागा साख दिया. तीन हि धमाके ज़ोरदार थे,
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंतरून जी को पहली बार पढ़ा और बहुत अच्छा लगा... पारुल तो लिखती है, गज़ल ही होती है.....! और विदेश से आये लोगो को गुरू जी की कक्षा में आरक्षण....???? ये अच्छी बात नही है....!!!!! :) :) :)
जवाब देंहटाएंये अलग बात है कि हमें मौका भी मिले तो हमारी तो एक ही गज़ल लिखने में हालत खराब हो जाती है...!!!!!!!!!!!!!
तरही मुशायरे के माध्यम से गजल की भरी-पूरी कक्षा का एहसास होना लाजिमी है। बधाई तरूण जी एवं पारूल जी को। पहली बार में ही इतना सुंदर लिख डाला। आनंद आ गया। समीर जी तो महारथी हैं और खानेवाली बात से तो मुझे याद आ रहा है (कवि का पता नहीं पर बचपन से सुनता आया हूँ)-
जवाब देंहटाएंदूसरों का अन्न हो
तो मन सदा प्रसन्न हो
पेट चाहे फट चले
खिलानेवाले हट चलें
सामने पत्तल* रहे
तो बैठकी अटल रहे
*पत्तल= पत्तों से बना हुआ थालीनुमा प्लेट
खैर बधाई इस बात का कि खिलाने में भी उन्होने कोई कोताही नहीं बरती है और तीन स्वादिष्ट गजलें परोसी हैं।
ये लिजिये इन आखिरी तीन प्रस्तुतियों ने तो सब्के छक्के छुड़वा दिये...यूं समीर जी की एक गज़ल तो हम पहले ही पढ़ चुके थे मगर मुशायरे में सुनने का आनंद ही कुछ और है...
जवाब देंहटाएंगुरू जी का बहुत-बहुत शुक्रिया,लेकिन अगले मुशायरे क सबक तो मिला ही नही
गुरुदेव आपने फंसा दिया...जब शेर उम्दा हों शायर कमाल के हों ऐसे में हासिल ग़ज़ल शेर निकलना कितना मुश्किल काम है आप तो जानते ही हैं....फ़िर भी जब जिम्मेदारी दी है तो निभानी ही पड़ेगी...मेरी नजर में इस मुशायरे का हासिल ग़ज़ल शेर है:
जवाब देंहटाएंसिंहासन हिल उठ्ठे गा जब
लावा बन फूटेगी जनता
इस शेर में जनता की ताकत को बहुत खूबसूरत अंदाज में पेश किया है...ये सच है की हम जनता को लाचार मानते आए हैं जबकि ऐसा नहीं है...जब जब जनता के गुस्से के लावा फूटा है तब तब सत्ता धारियों के होश उड़ गए हैं...ईमर्जेंसी के बाद देश की सबसे ताक़तवर नेता स्व.इन्द्राजी का जनता ने जो हश्र किया वो आज भी याद किया जाता है...
मेरी ढेरों बधाईयाँ मेजर गौतम जी को.
इसका अर्थ ये नहीं की बाकि शायरों ने जो कहा है वो उन्नीस है...सभी अपनी जगह अव्वल हैं...इसलिए मेरे निर्णय को अन्यथा न लें...मुझे युवाओं के जो तेवर इस मुशायरे में नजर आए हैं वो बहुत हिम्मत बंधाने वाले हैं... बेमिसाल है...
नीरज
bahut kathin hai dagar panghat kii...:)
जवाब देंहटाएंगुरु जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंतीनो शायरों की रचना खूब रही ढेरो बधाई इनको.....
आभार
अर्श
सर बिटिया रानी का जन्म-दिन बहुत-बहुत मुबारक हो..!!! ईश्वर उसके सारे सपने पूरे करे !
जवाब देंहटाएंढ़ेर सारा प्यार
wah ji ghar baithe maje dila diye
जवाब देंहटाएंmarry christmas