मित्रों कुछ कारणों से मन बहुत व्यथित है, लेकिन बस यह लगता है कि आने वाला समय हो सकता है इन सब नफरतों को समाप्त कर दे। जो कांटे हमारी सुंदर बगिया में पैदा हो गए हैं समय की तेज हवा शायद उनको हटा दे। असल में इन्सान की आदत है कि वह कम से कम एक अवस्था में तो रहना चाहता ही है। या तो प्रेम की अवस्था या नफरत की अवस्था। यदि आप उसे प्रेम की अवस्था में रखेंगे तो वह नफरत की अवस्था में नहीं जाएगा लेकिन यदि आपने उसे प्रेम की अवस्था में नहीं रखा तो वह नफरत की अवस्था में जाएगा ही जाएगा यह तय है। इन दिनों हमारे साथ भी यही हो रहा है। हमने अपने आास पास से प्रेम को लगभग समाप्त ही कर दिया है और यही कारण है कि कमोबेश हर कोई अब नफरत की अवस्था में है। यह नफरत आज अपनी चरम सीमा पर है। लेकिन अभी भी मुझे लगता है कि हर बुरे समय में कुछ मुट्ठी भर लोग ऐसे होते हैं जो अपने समय को ठीक करने का माद्दा रखते हैं। और हमें उन ही लोगों में शामिल रहना है। घबराइये मत, डरिए मत, दुनिया में जब भी अँधेरे ने ऐसा माहौल बनाया है कि अब उसका ही साम्राज्य होगा तब तब कोई उजाले का दूत, फरिश्ता सामने आया है। तो हम सब भी उजालों के पक्ष में खड़े हैं और हमें इस पक्ष में खड़े ही रहना है यह तय कीजिए।
कल की दोनों ग़ज़लें बहुत शानदार थीं और दोनों ही ग़ज़लों ने इब्तिदा का रंग खूब जमाया। ईद का त्यौहार जैसा कि सौरभ जी ने अपने एक कमेंट में कहा कि यह तो महीने भर मनाया जाने वाला त्यौहार है तो हम आने वाले समय में इसे मनाते रहेंगे। आइये आज सौरभ पाण्डेय जी और निर्मल सिद्धू जी के साथ ईद के त्यौहार का यह जश्न आगे बढ़ाते हैं।
कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक
सौरभ पाण्डेय
पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़
इन्सान पे रहमत का असर ईद मुबारक़
पास आए मेरे और जो ’आदाब’ सुना मैं
मेरे लिए अब आठों पहर ईद मुबारक़
हर वक़्त निग़ाहें टिकी रहती हैं उसी दर
पर्दे में उधर चाँद, इधर ईद मुबारक़ !
जिस दौर में इन्सान को इन्सान डराये
उस दौर में बनती है ख़बर, ’ईद मुबारक़’ !
जब धान उगा कर मिले सल्फ़ास की पुड़िया
समझो अभी रमज़ान है, पर ईद मुबारक़ !
इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?
भइ, आप हैं मालिक तो कहाँ आपसे तुलना
कह उठती है रह-रह के कमर.. ईद मुबारक़ !
तू ढीठ है बहका हुआ, मालूम है, लेकिन
सुन प्यार से.. बकवास न कर.. ’ईद मुबारक़’ !
जो बीत गयी रात थी, ’सौरभ’ उठो फिर से
कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक
बहुत ही अच्छे मतले के साथ सौरभ जी ने ग़ज़ल की शुरुआत की है। पिस्तौल तमंचे से ज़बर ईद मुबारक और अगले मिसरे में रहमत का असर बहुत खूब बना है। प्रेम तो ईद का स्थायी भाव है किसी के आदाब कहते ही आठों पहर ईद हो जाना यही तो प्रेम है। प्रेम में रहो तो हर दिन ईद का ही दिन है। और अगले ही शेर में कहीं पर निगाहें टिका कर परदे में छिपे चाँद को देखने की इच्छा रखना बहुत ही सुंदर भाव है शेर में। और अगले ही शेर में उसी चिंता की बात है जिस चिंता का ज़िक्र मैंने आज शुरूआत में किया है। सच में जिस दौर में इंसान को इंसान ही डराता है उस दौर में ईद मुबारक भी एक खबर ही तो होती है। और इंसान की यदि इंसान ही इज़्ज़त न कर रहा हो तो भला कैसे कोई कह सकता है ईद मुबारक। बहुत ही सामयिक चिंताओं से भरे शेर। किसानों के फाके और रोज़े से भरी जिंदगी का शेर भी बहुत अच्छा है। मकते में गिरह को बहुत ही सुंदर तरीके से बाँधा है सौरभ जी ने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।
निर्मल सिद्धू
सब उसका करम उसकी मेहर ईद मुबारक
हर शय का है पैग़ामे-नज़र ईद मुबारक
फूलों ने दिया कलियों को जो ईद का तुहफ़ा
मख़मूर हुये गाँव-नगर ईद मुबारक
जन्नत का संदेशा, है दिया चाँद ने शब को
कहती है ये ख़ुशियों की सहर ईद मुबारक
नफ़रत को मिटा कर ये मुहब्बत को बसा दे
ऐसा जो कहीं कर दे असर, ईद मुबारक
तस्वीर संवर जायेगी उस पल ही जहां की
निकले जो दुआ बनके अगर ईद मुबारक
‘ निर्मल ’ भी हुआ आज तो मस्ती में दिवाना
जब उसने कहा जाने-जिगर ईद मुबारक
वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है निर्मल जी ने। मतले में ही ऊपर वाले के प्रति शुक्रिया जताने का जो अंदाज़ है वो बहुत ही सुंदर है। सच में हम सब यदि प्रेम सीख जाएँ तो हर दिन,हर शय का पैगाम ईद मुबारक ही होगा। जन्नत का संदेशा जो चांद ने दिया रात को और उसके बाद की सुबह मे ईद मुबारक का संदेश चारों तरफ फैलना बहुत ही सुंदर चित्र बनाया है शब्दों से। और अगले ही शेर में हम सबकी दुआ को स्वर मिलते हैं कि नफरत को मिटा कर हर तरफ यदि मुहब्बत को बसा दिया जाए तो उससे अच्छी ईद और कोई हो ही नहीं सकती। सचमुच इस दुनिया की तस्वीर उसी पल सँवर जाए यदि हम सबके होंठों पर दुआओं के रूप में प्रार्थना आ जाए। यह दुनिया अब यही चाहती है। और मकते के शेर में प्रेम को बहुत सुंदर ढंग से पिरो दिया है। बहुत ही अच्छे से काफिया निभाया गया है। मुझे लगता है कि यह काफिया बाँधने का बहुत खूब उदाहरण है। काफिया वाक्य का हिस्सा ही बन गया है। खूब। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।
तो यह हैं आज के दोनों शायर जिन्होंने बहुत ही सुंदर ग़ज़लें कही हैं। कमाल के शेर दोनों ने निकाले हैं। आपका काम है कि आप इन कमाल के शेरों पर दाद दीजिए और खुल कर दाद दीजिए। मिलते हैँ अगले अंक में। ईद मुबारक।