चा करें होली आ रइ है तो । होली तो हर साल ही आती है । इस बार हम इस्कूल से टुछ्छी करके आई हैं । हमारा नाम है भड़भड़ी कबूतरी भौंचक्की । हमारा नाम ई जो भौंचक्की है ई की भी एक लम्बी कहानी है । काहे के बचपन में जो हमारी शकल देखे रहा ऊ भौंचक्का रह जात रहा । काहे कि ऊपर वाले ने हमारी सूरत ही इतनी खबसूरत बनाई है । हमार मताई बप्पा ने कई की मोड़ी नीक खबसूरत है तो काजल का ठिढौना लगा दें । तो हमाय नाम में भौंचक्की जुड़ गओ । आज हम आईं हैं होली की पंचायत लेके । हम कवजित्री भी हैं । हमने एक कविता लिखी थी मिलती है जिन्नगी में मोयब्बत कदी कदी, और एक वो कदी कदी मेरे दिल में खियाल आता हेगा । तो अब तो आप पैचान गये होंगें । आप सोच रय होंगे कि भड़भड़ी की भाषा मिली जुली चौं है । वो ऐसे कि हमाय बप्पा रहिस भोपाल के और अम्मा रहिस गांव की । दोनों की भाषा मिली तो हम बनीं, भड़भड़ी । हम भीच भीच में गांव की भासा छोड़ के भोपाली बोलने लगें तो कोन्हो अचरज की बात नहीं होनी चइये ।
सुश्री पिरकाश अश्र
जिनकी भी जिन्नगी अब स्यादी के बाद बदलने बारी है । इनखों लग रओ है कि लड्डू मिलबे बारो है पर इनखो कोई बताये कि लड्डू नई मिल रओ है चुइंगगम मिल रयी है । चबाते रओ चबाते रओ । हां नी तो । सगरे लोग सुन लो जब तब भड़भड़ी बैठी है इधर तब तक कोई मस्ती नई होनी चइये । अभी जब भड़भड़ी आ रई थी तो पिच्छु से किसी ने सीटी मारी, भड़भड़ी को पिच्छू से सीटी सुनना पसंद नइ है ।
कोई धानी चुनर ओढे गली से जब भी गुज़रा है !
ग़ुलालों का ये रंग फिर उतरा उतरा फीका फीका है !
रे आया फाग़ का मौसम तू गोरी मत जा पनघट पे,
वहाँ टोली लिये कान्हा हमारी राह तकता है !
मेरी फितरत ही बन जाती है होली में कि क्या कहने,
कोई जूते लगाता है, कोई चप्प्ल जमाता है !
बयारों मे अलग सी गन्ध है ये फाग है या क्या ?
या यूँ कह दूँ तेरी खुश्बू से सारा जग ये महका है !
चले आओ हमारी ज़िन्दगी में इस तरह जैसे,
हज़ारो रेंज लेकर चाँद छ्त पे आज उतरा है !
मेरी सखियों ने मेरा कर दिया दुश्वार जीना अब,
तुम्हरे नाम का जब से दुपट्टा हमने रंगा है !!
मुहब्बत का ये रंग जब से चढा है दोनों पे तब से,
लगे मैं तेरे जैसा हूँ लगे तू मेरे जैसा है !1
इनकी गजल किस मरदूद ने तरही में शामिल करली, नू मानो तो भिल्कुल ही दूसरे टाइप की । चांद को छत पर उतार रये हैं । जैसे चांद इनकी सुसराल का पुष्पक भिमान हो । अय हय बिन्नी देखो तो जरा डुपट्टा रंग रइ है, अरी गुइंया जब रंगा रंगाया मिल रा हो तो काय को रंगवाना । चला बढ़ो आगे ।
सुसरी रबिकांता पंडियाइन
अय हय, जिरा भाव तो देखो पंडियाइन के, अरी जा री तेरे जैसी भौत देखी । दीदे निकाल के चौं देख रई है । एक चनकटा देऊंगी तो चश्मा उश्मा सब तोड़ दूंगी । बड़ी आई । खुदा झूठ न बिलवाए जवानी में तेरी जैसियों को नल पे पानी भरती टैम पछीट पछीट के मारती थी । अब तो मुआ घुटने का दर्द, जान हलकान किये जा रया है । चल री चल सुना तू अपनी ।
जूते गिनकर सौ पड़े, चप्प्ल पड़े हजार
लातों की गिनती नहीं, गजब हुआ सत्कार
गजब हुआ सत्कार, बनाया मुझको भुरता
इतना पीटा हाय़! फटा कोट और कुरता
धीर रखो रविकांत, प्रेम-नभ वे ही छूते
लोक-लाज सब छोड़, प्यार में खाते जूते
जूता सबके घर मिले, निर्धन या धनवान
कहीं पांव में तो कहीं, सिर पर मिलत निशान
सिर पर मिलत निशान, गले माला सुखदाई
मिरगी दौरा दूर, करे डाक्टर की नाईं
या से तीनों लोक, नहीं कछु रहे अछूता
समदर्शी विख्यात, क्लेशमोचन यह जूता
सुसरी क्या सुना रई है । मुशायरा चल रिया हेगा और जाने क्या क्य सुना रई हेगी । अरी कमबखत मारी करती क्या है तू । क्या श्रोता भगायेगी सारे । और सुन री ये गा गा के क्यों सुना रई है । खुदा ने गला नी दिया तो गा काय को रई है । ऐ...... से पीछे से मेरी बीड़ी का बंडल कौन उठा के ले गया । भभ्भड़ी नइ कर रइ संचालन, करवा लो कोई भी मरदूद से । बीड़ी के बिना किछू न होता है भभ्भड़ी से । चल री हट सामने ने आने दे दूसरी को ।
मुकेश तिवाड़ी
चौं गुड्डू तुम कां से आये, अपने अब्बू अम्मी को छोड़ के किधर आ गये इधर । जानी ये गजल है बच्चों के खेलने की चीज नई है लग जाये तो श्रोता के कान से खून निकल आता है । किसी ने परची भेजी है कि संचालन में गाली नइ बकनी है, सुन लो रे सब भभ्भड़ी भोपाल में पैदा हुई है, गाली उसके खून में है । जिसको नई सुनना हो वो अपने कान बंद कर ले । चलसुना रे गुड्डू तू भी सुना ले ।
कोई टूटी हुई खटिया पे ही मैय्यत बनाता है
कोई फूटी हुई ढोलक कोई झंझा बजाता है
किसी का थोबड़ा काला किसी मूँह सफेदा है
ये होली की है मस्ती यां तमाशा बन ही जाता है
हदें टूटें न क्यों ऐसे ये मस्ती रंग दिखाती है
रचाके स्वाँग भौंचक्का ये भभ्भड़ छा ही जाता है
खुदाया हाथ उसके भी भला क्योंकर न टूटें जो
गुलाबी गाल पे कालिख को मलके भाग जाता है
तरीकें मान के सम्मान के नायाब हैं निकलें
कोई जूते लगाता है कोई चप्पल जमाता है
फटे कपड़े गले झाडू बढ़ाती शान है उसकी
सजा बाना गधे पे शान से नखरे दिखाता है
किसी की याद फागुन में भिगोती है जलाती है
कोई भूला हुआ सा शख्स जब भी याद आता है
सुना दिया अब हटो सामने से । कसम से कां कां से आ जाते हैं । दूध के दांत टूटे नइ हैं और गाल पे कालिख मल रय हैं । सुनो रे सब लोग अभी किसी ने फिर से पीछे से आके भभ्भड़ी को धप्पा मारा है, नालायकों, जाहिलों, नासपीटों हाथ लग गये तो चमड़ी खिंचवां के जूतियां बनवा लूंगी । चलो रे अगला कौन है सामने आ जाये ।
सुसरी सुलभ जैसवाल
अरी मेरी पाकीजा की मीना कुमारी, घाघरा तो ऐसे घेरा के बैठी है कि जैसे लोग तेरे घाघरे का घेर ही देखने आये हैं । अरी कलमुंही कुछ सुनायगी भी कि नू ही बैठी रहेगी । सुबू सुबू से कोई ने चा की तो पूछी नइ हेगी उस पे ये चली आ रही है नवाब जादियां घाघरा फैला फैला के । अरी अब सुनायेगी भी कुछ कि नू ही बैठी रहेगी ।
कली बोली कबूतर से तू मुझको आजमाता है
मोहब्बत तू नहीं करता मेरा दिल तू भुखाता है
समंदर में उतर गहरे किनारे से न जाया कर
ये क्या तू सोच कर बस भेजा अपना खुजाता है
है कवियों का मोहल्ला ये ज़रा बचके निकलना जी
कोई जूते लगाता है, कोई चप्पल जमाता है
सिखाया था जिसे हमने बहुत भोला समझ कर के
चतुर सुज्जान निकला वो, मुझे आँखें दिखाता है
बड़ा इंजीनियर है वो है मेरे वार्ड का नेता
सड़क पहले बनाता है वो फिर नाला खुदाता है
वो एक दिन लात खायेगा ये तो मालूम था सबको
फटे में क्यूँ किसी के टांग वो अपनी अड़ाता है
नशे में तुम नशे में हम नशीला यह ज़माना है
नशा कितना भी गहरा हो सुबह तक टूट जाता है
लगाता है बुझाता है सिखाता है पढाता है
ये धंधा है ठगी का हाथ पर सरसों उगाता है
किया था प्यार मजनू ने कियामत से कियामत तक
मगर लैला की डोली को कोई दूजा ले जाता है
जवानी से बुढापे तक इधर करवट उधर करवट
लड़कपन याद आता है लड़कपन याद आता है
ये दिल्ली की फ्लैटों में बबुआ रस अधूरा है
जोगीरा भांग शरबत बिन होली सूखा मनाता है
कहीं गीतों की बरखा है कहीं दोहा ठुमकता है
'ग़ज़ल' में रंग घुलता है 'सुबीरा' जब घुलाता है
चल हट री, इत्ती बड़ी गजल लेके आ गई है और पेले जा रइ है, अपने चच्चा का माइक समझ रखा है । चल हट तो अब सामने से । सूरत की तो ऐसी नइ लग रइ थी पर हीटी कैसी । इधर करवट, उधर करवट, अरी मरदूदी किसी हकीम को दिखा, कायको करवट बदल रइ है रात भर । चल निकल आने दे अगले को ।
वीनस केशरी
च्यों इनीसपेट्टर साब च्यों घुसे चले आ रय हो अंदर । मुशायरा चल रया है, मुजरा नइ कि पुलिस आ जाये । अरे किधर घुसे चले आ रय हो । जनानियां बैठी हैं इधर, चिलमन के इधर टांग धरी तो घुल्ले घुल्ले कर दूंगी, पठान की बेटी हूं समझ लेना । ऐ सुनो री पुलिस आई है सब अंदर हो जाओ । सुना लो निसपेट्टर साब तुम भी अपनी ।
टुच्ची सामाजिकता, खुडपेंची की साईंस, कुकुरपन्ती वाली फिलासफी के उच्च कोटि मिश्रण से निर्मित, " एक बार इस्तेमाल करो दोबारा इस्तेमाल के लायक नहीं बचोगे" के वादे के साथ माननीय वीनस केसरी जी, जो कि किसी को मुंह दिखने के काबिल नहीं रहे हैं अपनी ग़ज़ल पेल रहे हैं
चम्पू लोग, ग़ज़ल का रेलै से पाहिले पेलू पंडित वीनस जी महराज के बतावा गवा मंत्र जपना बहुते जरूरी है
तो चलो मन्त्र के जाप ११ बार करो ....
बुरा मानो तो मानो तुम, हमारा का बिगडता है
अबे कूकुर के मूते से कहूँ खम्भा उखडता है
मन्त्र जाप के बाद हमार ग़ज़ल रेलों
कभी देखे है मुझको और कभी वो मुस्कुराता है
दिखे है 'आदमी' पर जाने ससुरा किस नसल का है
जो एडा बन के पेडा खा रहा है सीख उनसे कुछ
बनो पगला, करेगा काम अगला ये ज़माना है
मेरे कानों से उल्टी हो न जाए डर मुझे है ये
मेरा माशूक मेरी ही ग़ज़ल मुझको सुनाता है
भरा बैठा हूँ मैं, उस पर मुक़दमा ठोंक ही दूंगा
जरा देखूं तो कैसे बर्थ डे विष भूल जाता है
हजारों रंग हैं उसमें मगर गिरगिट नहीं है वो
मेरे नेता को गिरगिट देख ले तो भाग जाता है
मुझे देसी से नफरत हो गई है जब से पी विस्की
मुझे सपने में अब बस वोदका औ' रम ही दिखता है
कहाँ हम और कहाँ ग़ालिब मगर तुम लिख के ये ले लो
जिसे अद्धी पीला दो तुम वही ग़ालिब का चाचा है
मैं सपने में घिरा पाता हूँ खुद को और न जाने क्यों
कोंई जूते लगता है कोंई चप्पल जमाता है
मियां 'भभ्भड़' सुधर जाओ नहीं तो हम सुधारेंगे
हमारे दोस्त की दूकान में कुछ 'खास' बिकता है
अमें 'वीनस' तुम अपनी शाईरी को भाड़ में झोंको
करो तुम चुटकुलेबाजी वही पैसे दिलाता है
सेवा समाप्त, मुन्ना लोग निकल लो पर झार के ...
निकल लो निसपेट्टर साब तुम भी । सुनो रे समाइन होन, अभी जब भभ्भड़ी निसपेट्टर से बात कर रइ थी तब भभ्भड़ी को सूचना मिली हेगी कि भंतेलाल की पांचवी लड़की छठी बार सांतवे टोरे के साथ भाग गई है । तो ऊपर वाला आपको नेकी दे आप सब भी भंतेलाल को ये सुचना परदान कर दें । चल आओ रे अगले ।
राजीव भरी भराई
किस बात पे भरी भराई बैठी है तू । गजल सुनाने आई है गाली गलौज करने आई है । हां नइ तो । बशीरन की घरवाली से पूछना एक बार उसने भी गाली गलौज करी थी मेरे संग, मैंने जिस बखत दारी का मूं नोंचा था, आज तक मूं पे निशान बने हैं । अकड़ मत दिखा समझ गई ।
अजी अब पूछिए मत आप हमसे हाल कैसा है,
समझिए दौर-ए-कंगाली में अपना आटा गीला है.
कठिन है राह उल्फत की बस इतना ही समझ लीजै,
वो बेटी है दरोगा की पहलवान उसका मामा है.
तेरी मम्मी, तेरे भाई न जाने क्या करेंगे जब,
तेरे इक पालतू कुत्ते ने ही इतना भगाया है.
कमीने दोस्त, खूसट बॉस, रिश्तेदार लीचड़ से,
मेरे अल्लाह तूने क्यों मुझे इतना नवाज़ा है,
रकीबों के बुलाने पर किया शिकवा तो वो बोले,
नहीं आना तो मत आओ तुम्हें किसने बुलाया है?
अब ऐसा क्या किया है हमने बिन पूछे ही जो हमको,
"कोई जूते लगाता है कोई चप्पल जमाता है.
नू मानो तो गजल तो ठीक कई है री तूने पर सुन ले भभ्भड़ी से पंगा मती लीजो भभ्भडी़ मारती कम है घसीटती ज्यादा है समझी । सुबू से भभ्भड़ी आके बैठी है झां पे, मगर कोई तो आके पूछ ले कि भभ्भड़ी कुछ चा वा पियेगी, पोया भजिया खायेगी । मगर नइ झां तो वो इ बात हो गई की घर के पूत कुंवारे और पडोसी के फेरे । चल अगला कौन है ।
भिनोद खुमार भांडे
चों री मुनिया घर से पूछ के आ री है कि बिना पूछे इ आ गी है । सब सामइन को चूसित किया जाता है कि तेल वाली गली के मल्थूमल के कुत्ते को एक नेता ने काट लिया है सो वो कुत्ता पागल भया है, सब लोग लुगाइन अपनी पैंट संभालते हुए मुशायरे से वापस जाएं । सुचना समापत भई । चल रे सुना ।
ये दुश्मन के लिए भी प्रीत की सौगात लाता है,
ये उत्सव प्यार के रंगों में सबको रंग जाता है,
किसी को रंग से नफ़रत,किसी को प्यार है रंग से,
कोई रंगों में खोकर बस, रंगों में डूब जाता है|
सना कीचड़ में पप्पू और रंगों में रंगी मुनियाँ,
बना लंगूर छन्नू हाथ से चेहरा छुपाता है
कोई बनियान,चढ्ढी पर,कबड्डी खेलने निकला,
कोई जूते लगाता है,कोई चप्पल जमाता है,
किसी की फट गई लूँगी,किसी का फट गया कुर्ता,
कोई गाता-बजाता है,कोई हँसता-हँसाता है
शहर में रंग भरे बैलून से है खेलते होली,
उधर गाँवों में गोबर और कीचड़ काम आता है|
चढ़ाकर भाँग नख से सिर, हैं आँखे लाल दारू से,
चवन्नी लाल होकर मस्त,फिल्मी गीत गाता है,
नही रहता है कोई गैर सभी अपने से लगते है,
मुहब्बत की ठंडाई पीके हर मन मुस्कुराता है|
हक़ीकत में जहाँ पैसा है,होली है वहीं हर दिन,
ग़रीबों को तो ये त्योहार भी अक्सर सताता है|
मेरा संदेश है सबसे रहे, रहें खुशहाल हर प्राणी,
सभी हँस कर जिए जीवन हर यही यह दिन बताता है|
क्यों मुनिया क्या यूपी के चुनाव से आ रइ है । बड़ी ऊंची ऊंची बात कर रइ हेगी । गरीबों की अमीरों की । दुर्र । होली के दिन एतना ऊंचा बात नइ करनी चइये कि लोगों के माथे के ऊपर से हीट पड़े । सूचना - बाखल वाल भौजाइ ने आके शिकायत की है कि उनको कुत्ते ने काट लिया है । उनका कहना है कि सूचना में पैंट संभालने की बात कइ थी पन उनने साड़ी पैनी थी । तो सूचना बदली जाती हेगी । साड़ी भी संभालें । चलो कौन है आगे ।
डंकित सफर
अरे अरे अरे, अरे यां कां घुसा आ रिया है घोड़े पे बैठ कर इदर कोई ब्या शादी हा रइ है क्या । इधर तो मुशायरा चल रिया है अरे अरे अरे, अरे बिलकीस के अब्बू को बुलाओ कोई, पकड़ के दो लगाएंगे तो घोड़ी ओडी सब भूल जायेगा । अरे निकालो बाहर ।
वो बन्दर की तरह अपने बदन को जब खुजाता है.
समझते लोग हैं सारे कि वो करतब दिखाता है.
चढ़ावे की जगह पहले से है निश्चित यहाँ पर ही,
भले मानुष हैं ऑफिस के, सभी का जोइन्ट खाता है.
ये हिन्दुस्तान की संसद है या अड्डा लफंगों का,
कोई जूते लगाता है, कोई चप्पल जमाता है.
हमें तो दर्द में सुध-बुध नहीं रहती है अपनी ही,
मगर फिल्मों में हीरो कैसे क्लास्सिक गीत गाता है.
लगे मौर्टीन, औडोमौस, कछुआछाप या कुछ भी,
ये रिश्वतखोर मच्छर खून आखिर चूस जाता है.
ये अमबुलंस शायद देर से पहुंचे तेरे घर पर,
ये पिज़्ज़ा बॉय लेकिन ऑन-टाइम पिज़्ज़ा लाता है.
चों रे बच्चे घोड़ी पे चढ़ के देश भक्ति कर रिया है । सुन रे अभी उमर देश भक्ति करने की नइ है । और होय भी तो ये टैम नइ है अभी घोड़ी समेत निकल तो ले इदर से । सूचना - भभ्भड़ी जब चा पीने के लिये पीछे गइ थी तो किसी ने इंधेरे में छुप के उसको किंकोरी से मारा है, भभ्भडी़ का केना है कि अपनी गाय का दूध पिया है तो उजाले में आ के मारे । चलो आओ कौन है आगे ।
डाग-टर संजय दानी
चौं मियां ये कौन सा भेस बना रखा है । बने क्या हो ये तो बता दो । नू लग रया है कि सीधे माभारत से निकल के चले आ रिये हो सीधी सड़क से । किशन बने हो चा, हाथ में बंसुरी तो पकड़ी है, पर जे तो बताओ कि चश्मे वाला कन्हैया कौन से जुग में हुआ । चलो पेलो तुम भी ।
कोई जूते लगाता है कोई चप्पल जमाता है,
ज़माना बारहा मेरे अहम को आजमाता है।
मुहब्बत के सफ़र का राही है ये कल्ब सदियों से,
मेरा हर रास्ता तेरे ही घर पे थम सा जाता है।
गो तामीरे- समंदर इश्क़ वाले करते हैं यारो,
नज़ारा साहिलों का हुस्न ही अक्सर दिखाता है।
उजालों की गली में मैंने अक्सर धोखा खाया है,
अंधेरा ही मेरे किरदार को अब बेश भाता है।
ज़मीं पर आने में गो चांदनी ही देर करती है,
मगर लोगों के मुख से गालियां तो चांद खाता है।
हमें मालूम है इंसानों को ईश्वर बनाता है,
मगर वो भेद दो इंसानों में क्यूं, कैसे लाता है।
गई है साक़ी जब से छोड़ कर मयखाने को दानी,
मज़ा पीने का मेरे दिल के थोड़ा भी न आता है।
चों खां आप तो ऐसे न थे । मुहब्बत, अंधेरा, चांद, साहिल, तामीर, उइ मां ये टोले टोले से लफ्ज़ कां से लाये हो डाग साब । जिनको गजल समझ में आ गइ हो वो ताली ठोंक दें और जिनको नइ समझ में आइ हो वो शायर को ठोंक दें । चलो रे आओ ।
काना परपात
उइ मां ये कौन है री । हाथ में पेन पकड़े रंग बिरंग कपड़े और ऊपर से गंजी । सूचना बदामीलाल के घर के बाहर किसी का बच्चा पड़ा मिला है, जिसे किसी खातून को हो वो बच्चे की पैचान बता कर ले आये । सूचना खतम हुई । चल री रंग बिरंगी पेल दे ।
उसे खाने में भाता सिर्फ चटनी और समोसा है
पहनने में पसंद उसकी फकत ललका लंगोटा है
महक उठाता है मेरा आशियाना उसके आने से
सुना है साल में मुश्किल से वो इक दिन नहाता है
मिले जब गाल पर तुमको पड़ाका तब समझ लेना
तुम्हारी प्रेमिका ने अपने फादर से मिलाया है
हमारे गाँव की सरहद में कोई घुस नहीं सकता
यहाँ का बच्चा बच्चा दौडकर कूकुर लुहाता है
कोई मंदिर के बाहर इक रुपैया दान में दे तो
चिपटते हैं भिखारी ऐसे फिर वो लुट ही जाता है
मिसेज शर्मा से सब डरते हैं यारों इस मोहल्ले में
मगर छोटी सी बिस्तुइया ने ही उनको डराया है
सदन अपनी अखाड़ा बन गई है अब यहाँ पर तो
कोई जूते लगता है कोई चप्पल जमाता है
कभी इस शह्र में देखो तो वैलेंटाइनों को जी
कोई लप्पड लगाता है कोई मुर्गा बनाता है
उइ मां महक उठने वला शेर तो मरी ने भोत ही अच्छा हेड़ा है । ला री आ के गले तो लग जा । भोत अच्छा । चल आगे बढ़ अब दूसरे को आने दे ।
चुकंदर नासवा अपने पति के साथ
चों री तेरे भी बाल उड़ गये और उड़े तो उड़े तू तो सर पे पल्लू रख के छुपा भी नई री है । अरी बिन्नो बहू बेटी के लच्छन से तो आती । सूचना - चुकंदर जब मंच पे आ रइ थी तो किसी ने पीछे से टकली बोला था । ये मुशायरे की तहजीब के खिलाप है आइंदे से आप सलपट बोलो, गंजी बोलो, उजड़ा चमन बोलो, पर टकली नइ बोलोगे नई तो.........
कोई जूता चलाता है कोई चप्पल जमाता है
तेरा बापू चला के बैंत पिछवाड़ा सुजाता है
कभी कीचड़ कभी गोबर कभी थप्पड़ लगाने को
वो होली के बहाने से मुझे घर पर बुलाता है
तेरा भाई बनाऊंगा जिसे इक रोज मैं साला
सभी कुत्ते गली के वो मेरे पीछे भगाता है
वो रंगों के बहाने से छुए थे गाल जब तेरे
उतर आई थी कितनी मैल मुझको याद आता है
तेरा आशिक हुवा करता था जो अपना पडोसी है
तभी तो देख के तुझको अभी भी हिनहिनाता है
तेरी चुन्नी उड़ा के ले गया था याद है तुझको
जहां मिलता है वो आशिक अभी भी मार खाता है
गुलाबी लाल पीले रंग से मैं खेलना चाहूँ
मेरा साला मगर हर बार ही चूना लगाता है
कहाँ वो गीत फागुन के कहाँ रंगों की वो टोली
यहाँ परदेस में गुजिया खिलाने कौन आता है
अरी क्या कै दिया री। पिछवाड़े सुजाने वाले शेर पर तो भभ्भडी लहालोट हो हो के फिदा हो रइ है । मुच्ची में क्या सुजाया है री तूने तो पिछवाड़ा । भभ्भड़ी के पेसे वुसूल हो गये री । चल अब हट सामने से दूसरे को आन दे ।
धरमेन्दर दुर्जन और सौरभ छेकड़
चों रे दोनों लोग लुगाई क्या मंडप से ही उठ के चले आ रय हो । चौं तुम दोनों गजल लिखते हो । सूचना - समाइन को चूसित किया जाता है कि पिछले साल दशहरे की राम लीला पर रावण गुस्से में भाग गया था और जिस कारण से उसका वध नहीं हो पाया था । अभी रावण गांव में दिखा है तो पटेल साब का केना है कि होली पर ही उसका वध किया जायेगा । सूचना समाप्त होती भई ।
धरमेन्दर दुर्जन
करे जो नंगई होली में वो बेकार बंदा है
कराओ सैर नाली की उसे यह पाक धंधा है
न उसका कुछ भी बिगड़ेगा तुम्हारा हाल बद होगा
न पंगा लो, करो सम्मान, होली में, वो टकला है
है थानेदारनी पर आ गया ये दिल मुआँ जबसे
बता सकता नहीं है लाल क्या? पीला हुआ क्या है?
हरा हमको लुभाता है सुना जबसे पड़ोसी ने
पड़ोसन की हरी साड़ी को पीला लाल रंगा है
बड़े बालों सफाचट मूँछ दाढ़ी ने दिया धोखा
जिसे रंगा पकड़ हमने मुहल्ले का वो दादा है
खरीदा एक ही दूकान से है बात इतनी सी
पड़ोसन और मेरा रंग यूँ ही एक जैसा है
मिले हैं अबके होली में तो देखें हाल नालों का
यही कहकर विधायक जी को नाले में ढकेला है
हर इक होली में मल कालिख गधे पे हैं बिठाते पर
चढ़ा इक बार तो कब भूत गालिब का उतरता है
‘बुरा मत मानिए होली है’ मंत्री को यही कहकर
कोई जूते लगाता है, कोई चप्पमल जमाता है
वो होली में मुई भीगी सड़क और छत पे भीगी तुम
इसी के बाद बदबूदार नाला याद आता है
सौरभ छेकड़
कोई जूता चलाता है,कोई चप्पल चलाता है
कोई नाले में धकिया के अचानक भाग जाता है .
जिधर मुड़ते हैं हम पिचकारियाँ फुंफकार उठती हैं
गुलाल-ओ-धूल का लश्कर हमें बेहद डराता है
अजी ये भाभियाँ हैं या किसी शैतान की खाला
भला यूँ घोल मैदे का किसी पे डाला जाता है
हजम कर भांग की गुझिया तेरा दर ढूंढ लें कैसे
सरापा रंग में डूबा हुआ हर इक आहाता है
शरीफों की गली है यह यकीं हमको भी था पहले
मगर यूँ देख कर हुल्लड़ यकीं अब डोल जाता है
हमें ऐसे में सच कहते हैं नानी याद आती हैं
मुआ यह जश्न फागुन का हमें कितना रुलाता है
फटे कुरते में इतना ख़ूबसूरत तू लगे जालिम
सिला कुरता बता क्यूँ जेब पर फिर जुल्म ढाता है
सभी बूढों के सिर चढ़ कर जवानी बैठ जाती है
जवां यारों का जैसे फिर लड़कपन लौट आता है
हवा बेशर्मियों से सब दुपट्टे फेंक देती है
लफंगा आसमां यह देख कर सीटी बजाता है
पिया है दूध माँ का तो नज़र के सामने भी आ
निशाना छुप के गुब्बारे का हमको क्यूँ बनाता है?
सुना है सालियों,सलहज की तुमको याद आई थी
अगर ससुराल में हो तो मियां मालिक विधाता है
'ग़ज़ल' जिसके फज़ल से है 'हज़ल' के रूप में आई
खिला है सब दिलों में शख्श वो 'पंकज' कहाता है
चों रे दोनो लोग लुगाई मिल के भी नी कै पाये । खाक डालो दोनों जने गजल उजल पे और अभी तो मनीहून मनाने निकल लो । कम से कम कुछ तो अच्छा होगा। चलो रे अब अखिरी वाले को लाओ । आज का काम खतम करो । अब कल की कल देखी जायगी।
डाग टर आजम
चों रे सरदार गजल केता है । चों मजाक कर रया है रे । मुच्ची में गज़ल केगा । नी मानेगा । चल के लेना पर पेले मेरेका सूचना दे देने दे । सूचना - इमरती बाई के घर मेहमान आये हैं सो उनको चूसित किया जाता है कि वो मुशायरे के बाद घर नइ जायें झंइ रुकी रयें । मेहमान खुद ही वापस हो जायंगे ।
ग़ज़ल अपनी किसी स्टेज पर जब वो सुनाता है
कोई है झांकता बगलें ,कोई सर को खुजाता है
ज़लील उस को किया सब ने मगर कब बाज़ आता है
ग़ज़ल इन की, ग़ज़ल उन की चुराकर वो सुनाता है
कभी तो अपने पैसों से कोई महफ़िल सजाता है
किसी नेता को मेहमान -ए -खुसूसी वो बनाता है
वहां जो चाहे सुनता है वो जो चाहे सुनाता है
कुछ अपने जैसे लोगों को खिलाता है पिलाता है
सभी एहसां तले दब कर बजाहिर दाद देते हैं
छुपा कर मुंह हर इक लेकिन हंसी उस की उडाता है
उसे जब दाद देते हैं तो छप्पर फाड़ देते हैं
किसी महफ़िल में जाता है तो चमचे साथ लाता है
बड़ा चालाक शायर है ,सुना कर शायरी अपनी
वो महफ़िल छोड़कर मौक़ा मिले तो भाग जाता है
तरन्नुम लाजवाब उस का ,जिसे लगता है ये सुन कर
गधा हो रेंकता जैसे कि घोडा हिनहिनाता है
कभी बिजली चली जाए तो मौक़ा भांप कर उस को
''कोई जूते लगता है ,कोई चप्पल जमता है ''
हर इक कस्बे में हर इक शहर में ,हर बज़्म में आज़म
ज़रा सा ढूँढने पर ऐसा शायर मिल ही जाता है
अरे वा रे डाग टर हजल तो अच्छी हेड़ी है रे । खुद के ही तरन्नुम की क्या बात कइ है रे । मिजा आ ही गया हेगा । अंदर तक मिजा आ गिया है ।
सूचना - सब लोगों को चूसित किया जाता है कि दाद देना और वो भी लम्बी लम्बी दाद देना भेत जिरूरी है । जो नइ देंगे उनकी ....... । आगे जो नइ लिखा उसे आप खुदइ समझ लो । भभ्भड़ी भोपाल की है कोई ऐसी वैसी जगे की नइ है ।
सूचना - होली की पीड़ी एफ फाइल समाइन के अनुरोध पे होली के बाद जारी होगी । या हो सकता है एन होली के दिन जारी हो । अपने दिल जिगर गुर्दे संभाल के बैठे रें ।
सूचना - भभ्भड़ी को अभी किसी ने ईंटा फैंक के मारा है । जिस भी सामाइन ने ये किया है उनको भभ्भड़ी की तरफ से केना है कि '' सारी सामाइन -फिलिम लूट का मीका द्वारा गाया गया गाना'' । आप सब सिमझदार है ।