बहुत दिन हुए ग़ज़ल की कक्षा लगाए । मगर क्या करें ये जो ग़मे दौरा और ग़मे जानां है ये आदमी को बड़ा परेशान करता है । और कहा तो ये ही गया है कि भूल गए राग रंग भूल गए छकड़ी, तीन चीज़ याद रहीं नोन, तेल, लकड़ी । हालंकि बात ये भी नहीं है कि कोई इन के बिना नहीं ही रहा सकता हो पर फिर भी दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा ।
चलिये मैं आज कुछ रिविज़न करवा दूं ताकि आपको पुराना याद हो जाए फिर हम आगे से तो शुरू कर ही सकते हैं । हां एक बात जो दुख की है वो ये कि वरिष्ठ कवि श्रद्धेय राकेश खंडेलवाल जी के अनुज का दुखद निधन हो गया है ग़ज़ल की पूरी कक्षा की और से हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं प्रेषित करते हैं । राकेश जी 3 मार्च को दिल्ली आ रहे हैं अवसर हुआ तो उस समय व्यक्तिगत रूप से भी हम अपनी श्रद्धांजलि पहुंचाने का प्रयास करेंगें ।
आज जो ग़ज़ल शीर्षक में लगी है वो अज़ीम शायर जनाब मुज़फ्फर हनफी साहब की है और हनफी साहब का सीहोर से तआल्लुक रहा है वे कई वर्षों तक सीहोर में रहे हैं । खैर तो बात चल रही थी बहरों की जिनके बारे में मैंने कहा था कि बहरों में दो प्रकार की बहरे होती हैं पहली तो मुफरद बहरें और दूसरी मुरक्कब बहरें । मैंने बताया था कि मुफरद बहरें वे हाती है जो एक ही प्रकार के रुक्नों से बनती हैं और मुरक्कब बहरें वे होती हैं जो कि एक से अधिक रुक्नों की तकरार से बनती हैं । इसमें भी हरेक बहर में फिर से दो प्रकार होते हैं एक तो सालिम बहरें और दूसरी मुजाहिफ बहरें । बहरें निकालना एक दुश्कर कार्य है और कभी कभी बड़ी मुश्किलें आ जाती हैं और ये मुश्किलें आती हैं उसीको लेकर जिसको लेकर कई सारे छात्र अभी भी परेशानी में पड़े हैं और परेशानी है कि दीर्घ का लघु कैसे और कब हो जाएगा । और इसीको लेकर मैंने कहा है कि किसी भी ग़ज़ल का एक शेर देख कर उसका वज्न नहीं निकाला जा सकता है हमें कम अ स कम दो या तीन शेरों की तकतीई तो करनी ही होगी ताकि हम सही वज्न तक पहुंच पाएं । ऐसा इसलिये क्योंकि जब हम वज्न निकालने बैठते हैं तो ये समझना मुश्किल हो जाता है कि यहां पर शेर में जो दीर्घ है वो दीर्घ ही है या फिर उसे लघु माना गया है । लेकिन हम आगे के किसी शेर में जाते हैं तो देख्ते हैं कि उस स्थान पर एक स्थिर दीर्घ आया है तो हम जान जाते हैं कि ऊपर भी दीर्घ ही था । इसको मैं उदाहरण देकर समझाना चाहता हूं
ये मकतल ख्वाब हो जाए तो अच्छा 1222-1222-122
अब बात वही आई कि मैंने कैसे कह दिया कि तो एक लघु है जो आखिर के रुक्न में आया है । तो उसके लिये हमने आगे का शेर देखा
लहु में जल तरंगें बज रहीं हैं 1222-1222-122
अब क्या हुआ कि जिस स्थान पर ऊपर तो आया था आखिर के रुक्न में उसी जगह पर दूसरे शेर में आया है र और जो कि लघु हैं । बस यहीं से हम तय कर लेते हैं कि जो ऊपर था वो भी लघु ही था । तो अच्छा 122 और रहीं हैं 122 ।
तो जान लीजिये कि आपको कम से कम एक से ज्यादा शेर तो चाहिये ही ताकि आप उसकी तकतीई कर सकें । केवल एक से तो काम अक्सर ठीक नहीं बन पाता है ।
ऊपर जो बहर है वो है हजज़ पर ये सालिम या समग्र नहीं हो पा रही है क्योंकि इसमें आखिर का रुक्न अधूरा है उसमें से एक पूरी दीर्घ मात्रा की कमी हो गई है । अगर शेर यूं होता ये मकतल ख्वाब हो जाए तो अच्छा हो तो बात पूरी हो जाती है और फिर ये एक सालिम बहर हो जाती है जिसमें रुक्न है मुफाईलुन और तीनों में वही रुक्न है । तीन रुक्न हैं इसलिये मुसद्दस बहर हो गई मुफाईलुन है इसलिये हजज और चूंकि तीनों की समग्र हैं इसलिये ये एक सालिम बहर हो जाती । पर ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि आखिर का रुक्न जो है वो अधूरा रह गया उसमें एक दीर्घ की कमी हो गई । लेकिन वो भी अपने मेल के समान ही धवनि उत्पन्न कर रहा है अत: उसको भी हजज का रुक्न माना जाता है । ये है फऊलुन रुक्न जिसके कारण ये मुजाहिफ बहर हो गई है । तो ये फर्क है सालिम और मुजाहिफ बहरों के बीच का । अभी तो हम के वल मुफरद बहरों की ही बात कर रहे हैं अभी मुरक्कब बहरों पर तो आए ही नहीं हैं क्योंकि वहां जाकर तो मामला और भी उलझ जाएगा । आज का पाठ इतना ही कल आगे का जै राम जी की ।