लगभग एक माह से आप सबसे दूर हूं । 8 नवंबर को पूज्यनीय दादीजी का स्वर्गलोक गमन हो गया । वैसे तो काफी समय से वे बीमार थीं किन्तु 8 नवंबर को अंतत: ईश्वर ने उनको बुला ही लिया । दादा-दादी के साथ बहुत कुछ चला जाता है । वो लाड़ वो दुलार वो सब कुछ चला जाता है । हुलस हुलस कर खिलाने का भाव दादी और नानी के पास ही होता है । दादी और नानी को अपना नाती या पोता हमेशा ही दूबरा लगता है । और हमेशा ही बहू को उलाहना कि कुछ खिलाती नहीं है बच्चे सींक समान हो रहे हैं । वो सब चला गया दादी के साथ ही । कई सारे मित्रों की संवेदनायें मिलीं सबको धन्यवाद । एक माह दूर रहा ब्लाग से नेट से और कम्प्यूटर से भी । एक अनोखी पुस्तक पढ़ी ''तुरपाई उधड़ते रिश्तों की'' श्री आलोक सेठी जी की ये पुस्तक पढ़ते समय कितनी बार रोया याद नहीं । माता और पिता के साथ बच्चों के संवेदनहीन रिश्तों पर लिखी किताब अपने आप में अनूठी है । ज़रूर ज़रूर पढ़ें ये किताब । ( इस किताब को पढ़वा कर कैसे मैंने एक मित्र का नजरिया बदला वो कहानी भी बताऊंगा )
मुंबई को दो दिन तक देखता रहा, मौन होकर देखता रहा ना तो अमिताभ बच्चन की तरह रिवाल्वर निकाली और ना आदरणीय लता जी की तरह रोया । किन्तु बस मौन होकर देखता रहा । मन में धूमिल की एक कविता गूंजती रही । गूंजती रही ऐसे मानो हर दिशा में बस वही कविता हो और कुछ भी न हो ।
बीस साल बाद ( धूमिल)
बीस साल बाद
मेरे चेहरे में
वे आंखें वापस लौट आईं हैं
जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है
हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड़ डूब गये हैं
और जहां हर चेतावनी
खतरे को टालने के बाद
एक हरी आंख बनकर रह गई है
बीस साल बाद
मैं अपने आप से एक सवाल करता हूं
जानवर बनने के लिये कितने सब्र की ज़रूरत होती है ?
और बिना किसी उत्तर के चुपचाप
आगे बढ़ जाता हूं
क्योंकि आजकल मौसम का मिजाज यूं है
कि खून में उड़ने वाली पत्तियों का पीछा करना
लगभग बेमानी है
दोपहर हो चुकी है
हर तरफ ताले लटक रहे हैं
दीवारों से चिपके गोली के छर्रों
और सड़कों पर बिखरे जूतों की भाषा में
एक दुर्घटना लिखी गई है
हवा से फड़फड़ाते हुए हिंदुस्तान के नक्शे पर
गाय ने गोबर कर दिया है
मगर यह वक्त घबराए हुए लोगों की शर्म
आंकने का नहीं है
और न यह पूछने का-
कि संत और राजनीति में
देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य कौन है ?
आह ! वापस लौटकर
छूटे हुए जूतों में पैर
डालने का वक्त यह नहीं है
बीस साल बाद और इस शरीर में
सुनसान गलियों से चोरों की तरह गुजरते हुए
अपने आप से सवाल करता हूं -
क्या आज़ादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है
और बिना किसी उत्तर के आगे बढ़ जाता हूं
चुपचाप ।
( कविता का एक शब्द बदला गया है )
गुरु जी सादर प्रणाम ,
जवाब देंहटाएंअपने दुःख में मुझे भी शामिल समझें,दादी और नानी का प्यार तो उनके साथ ही चला जाता है उनके साथ ही जो अविश्मरानिया होती है .....
दादीजी की मृत्यु पर दुख है । कविता बहुत अच्छी पढ़वाई । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
दादी जी की मृत्यु सुन कर दुख हुआ....! प्रतीक्षा कर रही थी इस घटना (मुंबई) पर आपकी प्रतिक्रिया की।
जवाब देंहटाएंचाहा था कुछ कहूँ मगर यह संभव नहीं हो सका मुझसे
जवाब देंहटाएंकई भाव ऐसे होते हैं व्यक्त कहे बिन हो जाते हैं
शब्दों की सीमायें होती, इसीलिये मन की बातों को
कहते कहते शब्दों के भी अक्सर अर्थ बदल जाते हैं
गुरू जी को दंडवत चरण-स्पर्श !!!
जवाब देंहटाएंनमस्कार गुरु जी,
जवाब देंहटाएंदादी जी को श्रधाजिंली.
मुंबई में जो हुआ वो बहुत ही शर्मनाक था हम सबके लिए, मगर शत शत नमन उन वीर शहीदों को जिन्होंने देश की अस्मिता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए.
दादी नानी का प्यार याद दिला दिया आपने...जिन्होंने अपना बचपन इनके बीच गुज़ारा है वो समझ सकते हैं इसका मूल्य...आज के दौर में जब घर छोटी छोटी इकाइयों में बाँट गए हैं दादी-नानी का प्यार सपना ही हो गया है...आज के इस आपा-धापी भरे युग में बच्चों ने क्या खोया है वे नहीं जानते...मेरी श्रधांजलि दादी माँ को...
जवाब देंहटाएंआप ने जिस किताब का जिक्र किया है वो कहाँ से और कैसे प्राप्त की जा सकती है बताये...
मुंबई फ़िर अपनी रफ़्तार पकड़ रही है...जीवन कहाँ रुकता है भला...जख्म भर जाते हैं लेकिन अपना निशान छोड़ जाते हैं....जम के राजनीति हो रही है...बताईये इन नेताओं और आतंक वादियों में क्या फर्क है? कुछ भी नहीं...दोनों ही ताड़न के अधिकारी हैं...अगर हमारे नेता शक्षम होते तो शायद बहुत से घरों के चिराग नहीं बुझते...
धूमिल जी की कविता बेमिसाल है....रोंगटे खड़े कर देने वाला सच कहा है उन्होंने....
नीरज
बस ठीक हूँ गुरू जी...अब आप वापस आ गये हैं तो और ठीक हो जाऊंगा...
जवाब देंहटाएंवो शेर आपको पसंद आया?गज़ल तो ठीक है ना सर?
we all were missing you.
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंआज लगभग १0 दिन के बाद ओन लाइन हुआ लैपटॉप बन कर मिल गया है देख कर अच्छा लगा की आप नेट पर फ़िर से सक्रीय हैं जब आप को नही पढता हूँ तो लगता है कुछ छूट गया हो आपकी नई पोस्ट नही आती थी तो पुरानी पोस्ट पढता था मगर पिछले दिनों ये सिलसिला टूट गया था अब नियमित रहने की कोशिश करूंगा
वीनस केसरी
गुरू जी अब और नहीं सहा जा रहा...
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरा!
तरही मुशायरा !!
तरही मुशायरा !!!
तरही मुशायरा !!!!
तरही मुशायरा !!!!!
नमस्कार सुबीर भाई, क्या लिखुं कुछ समझ नही पा रही हूँ,हादसों पर हादसे बाकी कुछ भी नही...
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