हठीला जी के बिना जो सबसे पीड़ादायी समय होगा वो होगा फागुन का । एक माह पहले सेही उनका उपाधियां देने का काम शुरू हो जाता था । हर किसी को उसके अनुरूप उपाधियां देना । होली के हास्य समाचार लिखना और होली की कविताएं लिखना । पूरी तरह से होली के रंग में डूब जाते थे वे । मैंने फैसला लिया है कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो इस बार भी होली का विशेषांक निकलेगा । जिसके संपादक श्री रमेश हठीला जी ही रहेंगें । इस बार का होली विशेषांक दो अंकों में बंटा रहेगा । पहला अंक सीहोर शहर के लिये होगा । और दूसरा अंक पीडीएफ फार्मेट में इंटरनेट के मित्रगणों के लिये रहेगा । सीहोर के प्रिंट संस्करण में सीहोर के लोगों के लिये हास्य समाचार तथा उपाधियां रहेंगीं तो इंटरनेट संस्करण में इंटरनेट के लोगों के लिये उपाधियां तथा समाचार । यही वे चाहते थे । वे कहते थे कि पंकज होली का समाचार पत्र निकालते रहना और खबरदार जो मेरे अलावा किसी और को संपादक बनाया तो । खैर उसमें तो अभी समय है अभी तो हम तरही को बढ़ाते हैं आज कुछ और आगे ।
नव वर्ष तरही मुशायरा
नये साल में नये गुल खिलें, नई खुश्बुएं नया रंग हो
( फोटो सौजन्य श्री बब्बल गुरू )
आज के तरही मुशायरे में तीन युवा शायरों की तिकड़ी जमा हो रही है । तीनों ही प्रतिभावान हैं और अपने अपने तरीके से ग़ज़ल कहते हैं । तो मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीनों के साथ ।
गौतम राजरिशी
लीजिये हाजिर है हमारी तरही। काफ़िये ने बहुत तंग किया। हर शेर को नये साल की शुभकामना बना कर लिखा है और इसे कंचन,अर्श,रवि,वीनस और अंकित को समर्पित कर रहा हूँ। मेरी तरही जब लगाइयेगा तो इस बात का जिक्र कर दीजियेगा प्लीज। पेश है:-
हो नया-नया तेरा जोश और नयी-नयी सी उमंग हो
नये साल में नये गुल खिलें, नयी हो महक, नया रंग हो
रहे बरकरार जुनून ये, तू छुये तमाम बुलंदियाँ
जो कदम तेरे चले सच की राह तो हौसला तेरे संग हो
है जो आसमान वो दूर कुछ, तो हुआ करे, तो हुआ करे
तेरे पंख हो नया दम लिये, नयी कोशिशें, नया ढ़ंग हो
कई आँधियाँ अभी आयेंगी, तेरी डोर को जरा तौलने
है यही दुआ, तेरे नाम की यहाँ सबसे ऊँची पतंग हो
चलें सर्द-सर्द हवायें जब तेरे खूं में शूल चुभोने को
हो उबाल तेरी रगों में औ’ कोई खौलती-सी तरंग हो
हो कलम तेरी जरा और तेज, निखर उठे तेरे लफ़्ज़ और
तेरे शेर पर मिले दाद सौ, तुझे सुन के दुनिया ये दंग हो
अंकित सफ़र
मेरी ओर से हठीला जी को एक साहित्यिक श्रद्धांजलि इस तरही ग़ज़ल की शक्ल में.
"तेरे ज़िक्र से कई मुश्किलों में भी हँस रही है ये ज़िन्दगी,
वो खुदा करे, तेरी चाहतों की भी खुशबुएँ मेरे संग हों."
ये शेर आप के लिए, आप का आशीर्वाद, प्यार हम सभी(गुरुकुल) को सदैव मिलता रहे.
"तेरा बाग़ है ये जो बागवां इसे अपने प्यार से सींच यूँ,
नए साल में, नए गुल खिलें, नयी खुशबुएँ नए रंग हों."
तरही ग़ज़ल
कोई रुख हवाएं ये तय करें, मेरे हौसलों से वो दंग हों.
चढ़े डोर जब ये उम्मीद की, मेरी कोशिशें भी पतंग हों.
तेरे ज़िक्र से कई मुश्किलों में भी हँस रही है ये ज़िन्दगी,
वो खुदा करे, तेरी चाहतों की भी खुशबुएँ मेरे संग हों.
ये जो आड़ी तिरछी लकीरें हैं, मेरे हाथ में तेरे हाथ में,
किसी ख्वाब की कई सूरतें, किसी ख्वाब के कई रंग हों.
कई ख्वाहिशों, कई हसरतों की निबाह के लिए उम्र-भर,
इसी ज़िन्दगी से ही दोस्ती, इसी ज़िन्दगी से ही जंग हों.
जो रिवाज और रवायतें यूँ रखे हुए हैं सम्हाल के,
वो लिबास वक़्त की उम्र संग बदन कसें कहीं तंग हों.
तेरा बाग़ है ये जो बागवां इसे अपने प्यार से सींच यूँ,
नए साल में नए गुल खिलें नयी खुशबुएँ नए रंग हों.
ये फकीर की दुआ ही है, जो मुझे इस मकाम पे लाई है,
तू जहाँ भी जाएगा ऐ "सफ़र", तेरी हिम्मतें तेरे संग हों.
वीनस केशरी
नये साल में, नये गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो
नई हो कहन, नये शेर हों, नई हो ग़ज़ल, नया ढंग हो
तू ही हमसफ़र, तू ही राहबर, तू ही रह्गुज़र, तू ही कारवां
यही ख़्वाब है, यही है दुआ, मेरा हर सफ़र, तेरे संग हो
खुले दिल से तुम, कभी मिल तो लो, न निराश मैं, करूंगा तुम्हें
तो ये क्या कि मैं, कोई आईना, तो ये क्या कि तुम, कोई संग हो
किसी ख़्वाब में, मेरा नाम ले, पशेमान है, मेरा मोतबर
मेरी ख़्वाहिशें, जो बता दूं तो, कहीं होश खो, न दे दंग हो
वहां जीत कर, खुशी क्या मिले, वहां हार कर, करूं क्या गिला
जहां दांव पर, मेरी सोच हो, मेरी मुझ से ही, छिडी जंग हो
गुरु जी कभी, हमें दीजिये, कोइ मिसरा वो, जो हो कुछ सरल
न तो काफ़िये, लगें तंग से, न कहन से ही, मेरी जंग हो
बच्चे तो उस्ताद होते जा रहे हैं । एक मिसरा तो सन्न से तीर की तरह आकर कलेजे में फिर से धंस गया है । क्या कहूं इन ग़ज़लों पर खुशी होती है कि चलो पौधे अब वृक्ष बन कर फल देने लगे हैं । तो दीजिये दाद तीनों को और इंतजार कीजिये अगली तरही का ।