बुधवार, 28 नवंबर 2007
कुछ दिन और अनुपस्थित रहूंगा अभी मैं
शुक्रवार, 16 नवंबर 2007
सुकवि रमेश हठीला के शिवना प्रकाशन से प्रकाशित काव्य संग्रह बँजारे गीत का विमोचन 17 नवम्बर को आप सभी सादर आमंत्रित हैं कृपया अवश्य पधारिये ।
सीहोर के अग्रणी साहित्यिक प्रकाशन शिवना प्रकाशन के तीसरे काव्य संग्रह सुकवि रमेश हठीला के बँजारे गीत का विमोचन आगामी 17 नवम्बर को लीसा टॉकीज़ प्रांगण में होने वाले अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के मंच पर किया जाएगा । उल्लेखनीय है कि शिवना प्रकाशन द्वारा इससे पूर्व स्व. मोहन राय के दो काव्य संग्रहों झील का पानी और गुलमोहर के तले का प्रकाशन किया जा चुका है ।
शिवना प्रकाशन के प्रकाशक पंकज सुबीर ने जानकारी देते हुए बताया कि सीहोर के सुप्रसिध्द कवि श्री रमेश हठीला का काव्य सँग्रह बँजारे गीत के नाम से प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है । इस काव्य सँग्रह का विमोचन पुलिस महानिरीक्षक तथा कवि श्री पवन जैन, सीहोर के प्रथम नागरिक नगर पालिका अध्यक्ष श्री राकेश राय, वरिष्ठ व्यंग्यकार माणिक वर्मा द्वारा अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन के मंच पर किया जाएगा । हिंदी में श्रंगार गीतों के लिये तथा उनका सुमधुर कंठ से गायन करने के लिये प्रसिध्द श्री हठीला का ये प्रथम काव्य संग्रह है । वे विभिन्न समाचार पत्रों में समसामयिक विषयों पर प्रकाशित अपनी कुंडलियों के लिये भी चर्चित रहे हैं ।देश के कई नगरों में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के मंचों पर उन्होंने काव्य पाठ कर सीहोर को गौरवान्वित किया है । सीहोर में साहित्यिक गतिविधियों में चेतना जागृत करने के लिये उन्होंने काफी कार्य किया है तथा अभी भी शिवना एवं शहर की अन्य साहित्यिक संस्थाओं से जुड़कर वे साहित्य की सेवा कर रहे हैं । श्री हठीला को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये कई संस्थाओं द्वारा समय समय पर सम्मानित किया जा चुका है आपको जिले का प्रतिष्ठित पं जनार्दन सम्मान, सिध्दपुर सारस्वत सम्मान, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा हिंदी दिवस पर सम्मान, शिवाराध्या समिति द्वारा सम्मान, लायंस क्लब द्वारा साहित्य सम्मान, बोहरा समाज द्वारा सम्मान आदि दिये जा चुके हैं । विमोचन के अवसर पर श्री हठीला को सम्मानित भी किया जाएगा । श्री हठीला के काव्य संग्रह की भूमिका हिंदी के सुप्रसिध्द कवि श्री चंद्रसेन विराट ने लिखी है । काव्य संग्रह में उनके गीतों गजलों मुक्तकों और छंदों का संकलन है । उल्लेखनीय है कि 17 नवम्बर को लीसा टॉकी प्रांगण में होने वाले अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में देश के दिग्गज हास्य कवि पधार रहे हैं । शिवना प्रकाशन सभी सुधी श्रोताओं से विमोचन एवं कवि सम्मेलन में पधारने की अपील करता है ।
सोमवार, 12 नवंबर 2007
बहुत दिनों के बाद चलिये अब फिर से शुरू करते हैं अपनी ग़ज़ल की क्लास को कुछ विघ्न आ गए थे और फिर त्यौहारों का मौसम भी आ गया था
संभवत: हमने जहां पर छोड़ा था वो था रुक्न और उस में भी हम चौकल तक का काम पूरा कर ही चुके थे । अब बारी आती है पंचकल की पंचकल माने कि वो रुक्न जिसमें पांच मात्राएं हों ये सबसे ज्यादा आने वाल रुक्न है । इसकी कुल मिलाकर आठ सूरतें होती हैं ।
1 : पांच लघु मात्राएं और पांचों ही अपने आप में स्वतंत्र हों जैसे मफउलुन इसके उदाहरण कम ही मिलते हैं एक साथ पांच लघु मात्राएं आ जाना ये संयोग कम होता है । 11111
2 : तीन लघु मात्राएं और एक गुरू मात्रा । या फिर पांचों ही लघु मात्राएं जिसमें से पहली तीन स्वतंत्र हों और बाद की दो संयुक्त होकर एक लघु हो रही हों । मफउलू 1112 या ( 111,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्वतंत्र हैं ।
3 : दो लघु एक गुरू फिर एक लघु मात्रा या फिर पांच लघु मात्राएं शुरू की दो स्वतंत्र बीच की दो संयुक्त और आखिर की एक स्वतंत्र । फएलातु 1121 या फिर (11,11,1) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्वतंत्र हैं ।
4: एक लघु एक गुरू और फिर दो लघु या फिर पांच लघु पहला स्वतंत्र दूसरा और तीसरा संयुक्त चौथ और पांचवां फिर स्वतंत्र । मफाएलु 1211 या फिर (1,11,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्वतंत्र हैं ।
5: एक लघु और दो गुरू या फिर पांच लघु मात्राएं जिसमें से पहली ऐ स्वतंत्र हो और बाद में दूसरी और तीसरी संयुक्त हो तथा चौथी और पांचवी भी संयुक्त हो । फऊलुन 122 या फिर (1,11,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्वतंत्र हैं ।
6: एक गुरू और तीन लघु या फिर पांच लघु जिसमें से पहली और दूसरी संयुक्त हो और बाकी की तीन स्वतंत्र हों । फाएलतु 2111 या फि र (11,111) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्वतंत्र हैं ।
7: एक गुरू एक लघु और फिर एक गुरू या फिर पांच लघु मात्राएं जिसमें से पहली और दूसरी संयुक्त हो तीसरी स्वतंत्र हो और चौथी और पांचवी पुन: संयंक्त हो । फाएलुन 212 या फिर ( 11,1,11) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्वतंत्र हैं ।
8: दो गुरू और एक लघु या फिर पांचों लघु हों पहली और दूसरी संयुक्त हो तीसरी और चौथी संयुक्त हो और पांचवी स्वतंत्र हो । मफऊलु 221 या फिर ( 11, 11,1) लाल रंग के लघु मिलकर दीर्घ हो रहे हैं जबकि काले स्वतंत्र हैं ।
आज उदाहरण नहीं दिये जा रहे हैं इस उम्मीद पर कि छात्र गण ही सारे रुक्नों के उदाहरण छांटने का प्रयास करेंगें और नहीं मिल पाए तो कल तो फिर बताए ही जाऐंगें
एक उदाहरण दिया जा रहा है मफऊलु को
1 दो गुरू और एक लघु ' जाना न'
2 पांच लघु ' हम तुम न '
शुक्रवार, 9 नवंबर 2007
सीहोर के कवियों के बाद अब सुनिये लखनऊ की कवियित्री कंचन चौहान से दीवाली पर दो कविताएं ।
1
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
जिस रात नयन के दीवट में , भावों का तेल भरा होगा,
आँसू की लौ दिप -दिप कर के, सारी रजनी दमकाएगी,
तुम दीप मालिका बन कर के जब लौटोगे इस मावस में,
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
आँखों के आगे तुम होगे, तन-मन में इक सिहरन होगी,
मेरी उस पल की गतिविधियाँ, क्या फूलझड़ी से कम होगी?
तेरी बाहों में आने को, इकदम बढ़ कर रुक जाऊँगी,
मै दीपशिखा बन कर साजन बस मचल मचल रह जाऊँगी।
वाणी तो बोल न पाएगी , आँखें वाणी बन जाएगी।
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
तुम एक राम बन कर आओ, मैं पूर्ण अयोध्या बन जाऊँ,
तुम अगर अमावस रात बनो, मै दीपमालिका बन जाऊँ,
तुमको आँखौं से देखूँ मै, मेरा श्री पूजन हो जाये,
हर अश्रु आचमन हो जाये, हर भाव समर्पण हो जाये।
लेकिन तुम बिन पूनम भी तो मावस काली बन जायेगी!
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
2
वो आ भी सकता है , थोड़ी सी रात बाकी है।
अपने हाथों की लकीरों में ढूढ़ती हूँ जिसे
, वो भला कौन है, किसकी तलाश बाकी है,
रात होने को है दीयों में तेल भरती हूँ
, तमन्ना तुझको अभी किसकी आस बाकी है।
किया जितनी भी बार ऐतबार है सच्चा
, हुए उतनी ही बार अपनी नज़र में झूठे,
न जाने कितने गलासों को चख के देखा है
, हुए है हर दफा अपने ही होंठ फिर जूठे।
मगर सूखे हुए, पपड़ी पड़े इन होठों को,
न जाने चाहिये कया अब भी प्यास बाकी है?
गिरे हैं इस क़दर उठने को जी नही करता
, बहुत हताश कर रही हैं मेरी साँसे मुझे,
बहुत थकी हूँ कि चलने को जी नही करता
, मगर तलाश मेरी रुकने नही देती मुझे,
गुज़र चुका है सभी कुछ भला , बुरा क्या क्या?
बड़ी हूँ ढीठ कि अब भी तलाश बाकी है।
सितारे सो चुके है साथ मेरे चल के मगर
, मैं अब भी चाँद की आहट पे कान रखे हूँ।
वो धीमे कदमों से आ के मुझे चौंकायेगा
, सम्हलना है मुझे धड़कन का ध्यान रखे हूँ।
बढ़ा दो लौ -ए-शमा की ज़रा सी और उमर,
वो आ भी सकता है, थोड़ी सी रात बाकी है।
सीहोर के कवियों की ओर से सभी को दीपावली की शुभकामनाएं और प्रस्तुत हैं दीप पर्व पर विशेष रूप से लिखे गए कुछ छंद और मुक्तक
सीहोर मध्य प्रदेश के ये कवि अपनी शुभकामनाएं आपको दे रहे हैं । कुछ कवि पारंगत हैं तो कुछ अभी सीखने के दौर में हैं तो कुछ दिवंगत भी हो चुके हैं ।
जब दीपावली के दीप जले ।
जन-जन के मन में प्रीत पले ॥
घर ऑंगन लगते बडे भले ।
कहीं ढोल बजे फुलझड़ी चले ॥
स्व.कैलाश रावत ''कैलाश''
नभ के सारे दीप उतर आये हैं धरती पर ।
नये भोर की ओर चले हम केवल स्याही पर॥
पर कुटियों का अंधकार जैसे का तैसा है ।
मुड़कर जब देखा तो है तो खडे थल उसी पर॥
कृष्ण हरि पचौरी
आओ दीपों को फिर जलायें हम ।
दीप धरती पे फिर सजायें हम ॥
हिंसा की जल रही है चिंगारी ।
प्रीत के नीर से बुझायें हम ॥
रमेश हठीला
दीप जलते रहें शुभ प्रकाश हो।
पूर्ण आलोकमय धरती आकाश हो॥
हो अमन चैन खुशियाँ मेरे देश में।
और चारों तरफ हर्ष उल्लास हो ॥
रमेश गोहिया
दीपकों की यह जगमग बारात ।
कहीं ठग न ले ये अमावस की रात ॥
उन निगाहों पे लाजिम हैं पहरे ।
जो लगाये हैं रोशनी पर घात ॥
स्व. श्री मोहन राय
जगमग दीप अवलि को लख हर्षाया मन मयूर ।
खुशियाँ महकें तेरे घर ऑंगन समृद्धि हो भरपूर ॥
माँ लक्ष्मी प्रसन्न दुख दरिद्र का हो नाश लक्ष्मन ।
करूँ आरती माँ भारती अर्पित रोली अक्षत कपूर ॥
लक्ष्मी नारायण राय
आओ खुशी के दीप जलायें रात अमाँ की है काली ।
मानवता का फर्ज निभाएँ और मनाएँ खुशहाली ॥
देख धरा पर दीपमालिका चाँद सितारे मौन खड़े ।
अंतस का तम दूर भगाएँ मन जावेगी दीवाली ॥
मोनिका हठीला मोना
नव प्रकाश नूतन किरनों का ।
शत शत वंदन है अभिनंदन ।
नव प्रभात नव ज्ञान ज्योति का ।
शत् शत् वंदन है अभिनंदन ।
हरिओम शर्मा दाऊ
दीप माटी का समर तम से है देखो कर रहा ।
हर अंधेरे में उजाले की किरण है भर रहा ॥
रात मावस की अंधेरी हो भले कितनी ही ये ।
हर दिये से रोशनी का एक निर्झर झर रहा ॥
पंकज सुबीर
दीप मालिकाओं का पर्व अद्भुत निराला ।
ज्योति पुंज उत्सर्जित कर फैला उजियारा ॥
अंधियारे को रोशनी की आभा भरता ।
अन्तस की वेदनाओं की पीड़ा को हरता ॥
प्रदीप एस चौहान
दीप तेल के अस्तित्व में जलता है ।
जीवन आशा के प्रवाह में बहता है ॥
समय की ऑंधी में कभी लौ डगमगाती है ।
धीरज की ओट दे आशा फिर जलाती है ॥
श्रीमति सूर्यकान्ती चंदेल कान्ति
रोशनी का पर्व ये उमंग और उल्लास भरा ।
खुशियों के दीप घर घर में जलाइये ॥
रोशन ख्याल बन दूर करो कालिमा ।
भीतर का अंधेरा सारा ही मिटाइये ॥
प्रदीप कश्यप
दीपावली पर दीपों के संग में
दिल भी हो जाये झिल मिल ।
समृद्धि सुख शांति हो जाये ॥
और रहें सब हिल मिल ॥
विवेकपाराशर
हे मन के दीप सदा उजियारा करना तुम ।
हर तम की निशा उदित बसेरा करना तुम ॥
पाया है ज्योति सा पावन अमर जीवन ।
सागर सा गहराता रतन पारस से चुनना तुम ॥
द्वारका बाँसुरिया
नफरत के सिक्के न ढाला कीजिए ।
कर्म न कोई अब काला कीजिए ॥
जग में अमन और शांति के लिए ।
दीप बन हमेशा उजाला कीजिए॥
विनोद पंसारी
सुख सहित सौ साल तक देखो दीवाली की छटा ।
न कभी छाये ह्रदय आकाश में दुख की घटा ॥
चौथमल वर्मा
भूख गरीबी बेकारी का तम हरने इक दीप जलाओ ।
सबके जीवन से अंधियारा कम करने इक दीप जलाओ॥
घर ऑंगन में चैन अमन खुशहाली और समृद्धी हो।
हर ऑंगन उजियारे के मोती भरने इक दीप जलाओ॥
ब्रजेश शर्मा
हरी-भरी फिर प्रेम की डाली हो ।
जन-जन के अधरों पर लाली हो ॥
तम की छाया ऑंगन द्वार न झाँके।
हर दिवस रंगोली रात दिवाली हो ॥
जोरावर सिंह
झिलमिल झिलमिल दीप बनें हम हो रोशनी भारत में ॥
भारत माँ सब को समेटे अपने प्यारे ऑंचल में ॥
ओमप्रकाश तिवारी
इस बार की दीवाली हम ऐसे मनाएँगे ।
जनजन में भाई चारा खुशियाँ बरसाएँगे ॥
मिठाई सी मिठास सभी के जीवन में भर जाए ।
लक्ष्मी प्रसन्न हो सुख शांति सबके घर में आये ॥
ममता दुबे
बुधवार, 7 नवंबर 2007
स्व. शैल चतुर्वेदी जी की स्मृति में आयोजित एक कवि सम्मेलन की रिपोर्ट
हिंदी में हास्य के पुरौधा कवि श्री शैल चतुर्वेदी जी का पिछले दिनों निधन हो गया । ग्वालियर से उनका पुराना नाता रहा है । उनकी स्मृति में उनको ही समर्पित एक कवि सम्मेलन का आयोजन ग्वालियर के होटल सेंट्रल पार्क में स्व बाबूलाल जी जैन स्मृति न्यास तथा सार्थक संस्था द्वारा किया गया । हिंदी के वरिष्ठ कवि तथा टेक्नो कवि श्री अशोक चक्रधर जी की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न कवि सम्मेलन में देश के ख्यात कवि उपस्थित थे ।कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ हिंदी कवि तथा शैल जी के अनुज श्री प्रदीप चौबे जी ने की । कार्यक्रम का संचालन हास्य सम्राट ओम व्यास ओम ने किया ।
आगरा की कवियित्री श्रीमति मंजू दीक्षित ने वीणापाणी मां सरस्वती की आराधना करते हुए ' वीणा वादिनी अब ऐसा वरदान दे देश की आन बान शान बचाने वीणा के स्वरों को मां नई झंकार दे ' । जौरा के कवि तेजनारायण बैचेन ने हनुमान जी द्वारा एक लीटर मिट्टी का तेल ना ला पाने की कविता को करारे व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया । उन्होने काफी तालियां बटोरीं । सीहोर मध्य प्रदेश के कवि पंकज सुबीर ने अपनी कविता स्व शैल जी को समर्पित करते हुए कहा ' दरख्तों से गिरते हुए ज़र्द पत्ते हवाओं में यूं ही बिखरते रहेंगें, ये मौसम हैं मौसम कहां ये रुके हैं गुजरते रहे हैं गुजरते रहेंगें'' । लखनऊ सें आए और आज के सबसे सशक्त हिंदी के गीतकार आशीष देवल ने अपने राधा और कृष्ण के छंद पढ़कर ग्वालियर की गुलाबी सर्दी में आध्यात्म की गंध बिखरा दी ' लाख मनाया कान्हा ने पर ना गई तो फिर ना गई राधा '' जैसी पंक्तियों पर जम कर दाद लूटी । जयपुर के कवि संपत सरल ने शरद जोशी जी की शैली में गद्य पढ़ा और '' बातचीत'' व्यंग्य लेख के माध्यम से श्रोताओं को जमकर गुदगुदाया । दिल्ली के गजेंद्र सोलंकी ने अपनी ओजपूर्ण वाणी में गंगा की धार है कविता के माध्यम से भारत वंदना की । उनके छंद ''रामसेतू क्या तुम्हारे बाप ने बनाया है '' को जमकर तालियां मिलीं । भोपाल के मदन मोहन समर ने ओज की कविता 'एक रस्सी पर फांसी टांगों अफजल और जलाल को '' पढ़कर चेतना जागृत की । मप्र पुलिस में आइ जी तथा कार्यक्रम के सूत्रधार श्री पवन जैन ने कविता मैंने अपनी पूरी नौकरी के दौरान कोई ऐसा कार्यालय नहीं देखा में पुलिस वाले की अंतिम इच्छा को प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का हास्यमय तथा गुदगुदाते हुए संचालन दकर रहे हास्य सम्राट ओम व्यास ओम ने पूरे समय श्रोताओं को हंसते रहने पर मजबूर किया । हकले साले की कविता पर तो श्रोता हंस हंस कर लोट पोट हो गए । बेतूल के कवि नीरज पुरी ने हास्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बाबा रामदेव को लेकर अपनी हास्य रचना सुनाई । मंजू दीक्षित ने वृद्धाश्रम पर अपनी मार्मिक कविता का पाठ किया । अंत में हिंदी के वरिष्ठ कवि श्री अशोक चक्रधर ने मंच संभाला और '' रूठा बेलन देखकर गुमसुम तवा परात, बिखर जाएगी रसोई ठोके ताल करात, ठोके ताल करात न पकने देंगें रोटी , अमरीका के संग चल रही गुपचुप गोटी '' पढ़कर उनहोंने परमाणु करार पर व्यंग्य कसा । उनकी निठारी पर लिखी कविता को काफी पसंद किया गया । देर रात तक चले कवि सम्मेलन में बड़ी संख्या में श्रोता उपस्िथित थे उसपर कवि ओम व्यास ओम के संचालन ने रोताओं को बांधे रखा ।
मंगलवार, 6 नवंबर 2007
श्री अशोक चक्रधर की नई कविता जो निठारी पर है वह अद्भुत है
पिछले दिनों दो कवि सम्मेलनों में काव्य पाट करने का मौका मिला और दोनों ही हास्य सम्राट श्री ओम व्यास के संचालन में । एक था राजाखेड़ा राजस्थान में और दूसरा ग्वालियर में । दोनों ही कवि सम्मेलन काफी अच्छे थे । ग्वालियर में तो श्री अशोक चक्रधर श्री प्रदीप चौबे और श्री ओम व्यास जी के साथ काव्य पाठ करने का एक अलग ही अनुभव था । वहां पर श्री चक्रधर ने जो कविता पढ़ी वो अद्भुत थी और उसमें जो निठारी को लेकर पैना व्यंग्य किया गया था वो भी सुनने लायक था । एक बात जो अच्छी लगी वो ये थी कि मंच पर उपस्थ्ति सभी कवियों ने श्री चक्रधर को खूब सम्मान दिया । श्री ओम व्यास ने तो उनको आदरणीय गुरूजी कहकर ही काम किया । वैसे वहां पर श्री चक्रधर को ही संचालन करना था पर उन्होंने स्वयं ही गुरूता दिखाते हुए श्री व्यास को आदेश दिया संचालन का। कवि सम्मेलन के अनुभव और काव्य पाठ के बारे में विस्तार से कल बताउंगा क्योंकि काफी कुछ है बताने के लिये । श्री अशोक जी ने मिलते ही एक बात कही जो मुझे छू गई मैंने जैसे ही पैर छुए उन्होंने कहा ' हूं सुबीर आजकल तो छाए हुए हो ब्लाग की दुनिया में । मैं तुम्हारे सारे लेख पढ़ता हूं ' । अच्छा लगा जानकर कि जिनको आदर्श मान कर सारा काम कर रहा हूं वो मेरे काम पर नज़र रखे हैं । अब शायद ज्यादा संभल कर लिखना होगा ।