जनम से कृष्ण के हर्षित दसों दिशाएं हैं
हौले हौले हम अपने मुकाम पर पहुंच रहे हैं । बरसात का मौसम तो अभी चल ही रहा है । लेकिन हां ये बात ज़ुरूर है कि इस बार हमारे इलाके में बरसात ठीक नहीं हुई है अभी तक । इस बार शहर से होकर बहने वाली नदी एक बार भी बह कर नहीं निकली है उससे ही पता चलता है कि बरसात की स्थिति क्या है । खैर अभी तो भादों का माह शेष है । भादों के माह के बारे कहा जाता है कि इसमें खूब बिजली चमकती है । सावन में तो बिना गरज चमक के वर्षा होती है । अब तो त्यौहार भी खूब चल रहे हैं । परसों ही सातूड़ी तीज गई है और मैंने सातू खाने का खूब आनंद उठाया है । हल षष्ठी है फिर जन्माष्टमी है और फिर तो त्यौहारों की झडी़ ही लगने वाली है । यहां से लेकर अब देव उठनी ग्यारस तक त्यौहार ही त्यौहार होने हैं । तो चलिये आज तीन शायरों की ग़ज़लें सुनते हैं और आनंद उठाते हैं । आज भी बीच बीच में मैं नहीं आऊंगा आप सुनिये और दाद दीजिये ।
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
अभिनव शुक्ल
अभिनव की सक्रियता इन दिनों ब्लाग जगत में वो पहले वाली नहीं है । लेकिन हां ये पता है कि साहित्य सृजन में वो सक्रिय है । अभिनव ग़ज़ल की कक्षाओं से सबसे शुरुआत से ही जुड़ा हुआ है । नये चित्र को देखकर लगता है कि पिछले दिनों काया का विस्तार हो चुका है । आइये सुनते हैं अभिनव की ग़ज़ल ।
ग़ज़ल बनाय रहे आंय बांय सांय हैं ,
नए ज़माने की नूतन विभीषिकाएं हैं,
नरक की झेल रहे चाहे यातनाएं हैं,
हमारे लोगों के सपनों में अप्सराएं हैं,
महानगर की बड़ी कुछ ये मूर्खताएं हैं,
वो मल्टीप्लेक्स में भी पापकार्न खाएं हैं,
जो अपने दिल के निकट से नहीं गुज़रते हैं
वो गीत सारे गुरु फिस्स फिस्स टांय हैं,
ये प्यार, दोस्ती, विश्वास, त्याग, अपनापन,
ये शब्द, शब्द नहीं हैं, कड़ी दवाएं हैं,
ज़रा मैं देखूं तो किसने संदेस भेजा है,
''फलक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं.''
हूं अच्छे शेर निकाले हैं लेकिन ये भी नज़र आ रहा है कि बहुत जल्दी में काम किया गया है । रंग-ए-अभिनव गिरह के शेर में दीख पड़ रहा है लेकिन बाकी के शेर अभी और काम तथा मेहनत मांग रहे हैं । नरक की झेल रहे चाहे यातनाएं हैं में भी बहुत सुंदर प्रयोग है ।
प्रकाश अर्श
प्रकाश को इस बार की बहर काफी मुश्किल लग रही थी । मगर मुश्किल के हिसाब से ग़ज़ल बहुत ही सुंदर निकाल कर भेजी है । हां इस बार ये कमी रह गई कि प्रकाश ने जामुनी नारंगी हरी पीली रंग की लड़कियों पर कोई शेर नहीं निकाला ।
ये ज़िंदगी से मिलीं जो भी यातनाएँ हैं
गुरेज क्यूँ हों,लिखीं सब की पटकथाएँ हैं
चला था घर से मैं जब तो ये ज़ेब खाली थी
हूं जिस मुकाम पे सब माँ की ये दुआएँ हैं
समझता है तू ही साकी के मर्ज क्या है मेरा
तेरे ही पास मेरे ग़म की सब दवाएँ हैं
वो प्यास कैसी रही होगी जिसको सुनकर ये
''फलक पे झूम रहीं सांवलीं घटाएँ हैं''
चलो लिबास ये अपना उतार कर रख दें
छलक न जाएं कहीं जो भी भावनाएँ हैं
बदल रही हैं हवाएं भी शक्ल अब अपनी
वो जानती हैं निशाने पे सब दिशाएं हैं
हूं गिरह का शेर एक बार फिर अच्छा बंधा है । मतला भी अच्छा बांधा है । चला था घर से मैं जब तो ये जेब खाली थी ये शेर भी मन का शेर बन गया है । लेकिन हां कंचन जैसे लोगों को उम्मीद ये थी कि पिछली बार जामुनी लड़कियां थी तो इस बार नारंगी होंगीं ।
वीनस केशरी
वीनस ने गिरह के चार शेर भेजे थे । चारों शेर अलग अलग मूड के थे । उनमें से मुझे सबसे अच्छा जो लगा उसे ही मैंने शामिल किया है ।
हमें जो अर्थ प्रजातंत्र के बताएं हैं,
उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाएं हैं
अभी तो गाँव में, पानी चढ़ा है, कन्धों तक
अभी से केन्द्र में क्यों हो रही सभाएं हैं
भला-बुरा न समझते हम इतने हैं नादाँ
सही, सही है गलत को गलत बताएं हैं
मुझे सफर में कोई हमसफ़र नहीं दिखता
ये जब से रूठ गई, मुझसे सब दिशाएं हैं
ए कहकशाँ तेरे आँगन में कौन रोता है
फलक पे झूम रही साँवली घटाएं हैं
तरस रहे हैं, जिसे देखने को सब, ‘‘वीनस’’
“ये वो सहर तो नहीं” , जिसकी कामनाएं हैं
हूं क्रियाओं का सही प्रयोग किया गया है और बहुत ही अच्छा है । मतले के दोनो ही मिसरों में क्रियाओं का काफिया बना कर बहुत सटीक निर्वाह किया है । मगर हां गिरह का शेर बहुत ही उसतादाना रंग लिये है । और मकते में मिसरा सानी के प्रयोग ने मुझे भावुक कर दिया ।
चलिये आज तीनों का आनंद लीजिये और अगला अंक जो शायद समापन हो सकता है उसका इंतज़ार कीजिये ।