शनिवार, 24 नवंबर 2012

आज देव प्रबोधिनी एकादशी को हम दीपावली के मुशायरे का समापन करते हैं । दो गीतों और एक ग़ज़ल के साथ ।

जैसा कि आपको पूर्व में ही सूचित किया जा चुका है कि दिनांक 2 दिसंबर को शिवना प्रकाशन के कार्यक्रम में श्री नीरज गोस्‍वामी जी को वर्ष 2012 का सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान प्रदान किया जायेगा । कार्यक्रम में अभी तक जिनके आने की स्‍वीकृति प्राप्‍त हो चुकी है उनमें श्री तिलकराज कपूर जी, श्री मुकेश कुमार तिवारी, गौतम राजरिशी, कंचन सिंह चौहान, प्रकाश अर्श, अंकित सफर, वीनस केशरी आदि हैं । कार्यक्रम दो चरण में होगा । नीरज जी की इच्‍छा थी कि कार्यक्रम छोटे स्‍तर पर सादे तरीके से हो, सो वैसा ही किया जा रहा है । प्रथम खंड में सम्‍मान समारोह होगा तथा दूसरे खंड में मुशायरा । मुशायरे में ऊपर दिये गये नाम तथा अन्‍य जो आते हैं वे डॉ आज़म के संचालन में काव्‍य पाठ करेंगे । कार्यक्रम में मध्‍य प्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव आदरणीया नुसरत मेहदी जी मुख्‍य अतिथि के रूप में उपस्थ्ति रहेंगीं । आप यदि आ रहे हैं तो अपने आने की स्‍वीकृति भेजने का कष्‍ट करें ।

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घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

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आज हम दो गीतों और एक ग़ज़ल के साथ मुशायरे का समापन कर रहे हैं । दो गीत आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी के और एक बिल्‍कुल नये शायर की ग़ज़ल । इन शायर के बारे में बहुत अधिक नहीं जानता हूं । बस ये कि इनसे पहला ही परिचय है । तो आइये देव प्रबोधिनी एकादशी पर समापन करते हैं दीपावली के तरही मुशायरे का ।

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आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी

(1)

ये दीप दीप पर्व के जलें हैं बन चुनौतियाँ
घना जो अन्धकार है तो हो रहे तो हो रहे
किरन किरन प्रखर बनी है ज्योति की ये कैंचियाँ
न शेष अन्धकार अब कहीं रहे कहीं रहे

ये राजवंश आज का उगल रहा है नित धुंआ
किये हुये तिमिर से अनदिखी हजार संधियां
हुआ है अन्ध डूब मद में ये सकल निशा दिवस
मगध नरेश से उधार ले रखी हैं नीतियाँ
तो आज का युवा बने जो यादवों का वंशजी
तो दूर मानसी क्लेश हो रहे ये हो रहे

छलक रहीं हैं धीर की भरी हुई सुराहियाँ
ये रोग कर्क है मिलें इसे नई दवाईयाँ
उठो हे पार्थ पुत्र तुमको है समर बुला रहा
चलो कि शत्रु के मुखों पे अब उड़ें हवाईयाँ
ना सूर्य ढल सके उठाओ शस्त्र अपने हाथ में
तो गर्व जयद्रथी ये चूर हो रहे हाँ हो रहे

जो रह गये तटस्थ, वे रहेंगे खो अनन्त में
जो आहुती चढ़ाये उसका यश फ़िरे दिगन्त में
उठो कि सामने तुम्हारे निर्णयों की है घड़ी
वरण हो मंज़िलों का या विलीन हो लो पंथ में
उठो जलो कि दीप की बुला रही है वर्त्तिका
ये ज्योति कल के अन्त तक जो हो रहे तो हो रहे

बहुत सुंदर गीत है । एक एक पंक्ति स्‍वयं को गा लेने के लिये आमंत्रित कर रही है । विशेष कर अंतिम बंद तो मानो एक ललकार की तरह आ रहा है । अब राकेश जी के गीतों पर क्‍या लिखा जाये । मगध, जयद्रथ जैसे प्रतीकों का सुंदर प्रयोग है । आनंद ।

(2)

घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
अठन्नियां तो देखने को भी नहीं मिली कहीं
चवन्नियां सुबीर की कथाओं में खिली नहीं
हजार का जो नोट था वो एक पल में तुड गया
हमारा होश सब्जियों के भाव देख उड़ गया
प्रतिनिधी अकाउंटों  का देश आज स्विस हुआ
हों वान्टिड  या जेल में ये स्वप्न एक विश हुआ
दो रोटियों के जोड़ में हमें मुगालते रहे
चिकन की टाँग तोड़ के थे वो डकारते रहे
हमें जो बस अचार हो तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे

ये खेल राजा रानियों का रात दिन चला किया
हमें था सब्जबाग एक दूर से छला किया
पलट के पांव आ गये हैं फ़िर सड़क के मोड़ पर
गये थे पांच साल हमको जिस जगह पे छोड़ कर
ये डोरियां कभी कोई है  खींचता कभी कोई
मगर जो शै नसीब की है आज तक रही सोई
अंधेरा रात भर का है बताया जा रहा हमें
नहीं किसी के रोकने से रुक सका है ये समय
जो आज लख उधार हो, तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे

भला हो ये सुबीर जी का क्या तरही बनाई है
औ तुर्रा उसपे बोलते हैं लो दिवाली आई है
लगाओ फोटो खील के, बताशे स्वप्न में चखो
गणेश लक्ष्मी चीन के हैं सामने सजा रखो
दिलासे तुमने पाये हैं दिलासे सबको बाँटिये
उगा के बातचीत की फ़सल को रोज काटिये
लगाओ आस एक दिन उतर के कृष्ण आयेगा
या रामराज्य कल सुबह के संग चला आयेगा
तुम्हें जो एतबार हो, तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे

लगाओ आस एक दिन उतर के कृष्‍ण आयेगा या रामराज्‍य कल सुबह के संग चला आयेगा । बहुत सुंदर व्‍यंग्‍य किया है इस पूरे गीत में । विविध रंगों और भावों को साधना किसी गुणी साहित्‍यकार के ही बस की बात है । आनंद परमानंद ।

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अरुन शर्मा "अनंत"

ये हमारे मुशायरे में पहली बार आ रहे हैं । इनके बारे में बहुत जानकारी मुझे नहीं है बस इतना कि गुडगाँव में रहते हैं और एक इन्वेस्टमेंट कंपनी में मार्केटिंग प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं। इन्‍होंने एक ग़ज़ल भेजी मुशायरे के लिये और इस ब्‍लाग पर युवाओं को प्रोत्‍साहन देने की जो परंपरा है उसके चलते ग़ज़ल को शामिल किया जा रहा  है । 

नज़र में रात पार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
नसीबा चूर यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,

बजी है धुन गिटार की, लगा है मन को रोग फिर,
जो टूटा प्रेम तार हो तो हो रहे, तो हो रहे,

सबेरे-शाम-रात-दिन है, याद तेरी साथ बस
यही अगर जो प्यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,

नहीं हुआ है दर्द कम, दवा भी ली दुआ भी की,
ये ज़ख्म बार-बार हो तो हो रहे, तो हो रहे,

जला है दिल "अनंत" का, कुछ इस तरह से दोस्तों,
जलन ये जोरदार हो तो हो रहे, तो हो रहे,

युवाओं की ग़ज़लों में नये शब्‍द आ रहे हैं जो अच्‍छे लगते हैं । जैसे इसमें गिटार आया है । युवा अपने साथ अपनी शब्‍दावली लेकर आते हैं । अरुन पहली बार आये हैं । पहला प्रयास अच्‍छा है । आगे और निखरेंगे ऐसी कामना है ।

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तो मित्रों आज दीपावली का मुशायरा विधिवत समाप्‍त हो रहा है । आनंद लीजिये आज की रचनाओं का और दाद दीजिये । अगले मुशायरे की घोषणा जल्‍द ही की जायेगी । 2 दिसंबर के कार्यक्रम की विस्‍तार से जानकारी भी अगली पोस्‍ट में ।

सोमवार, 19 नवंबर 2012

बासी दीपावली को लेकर काफी बातें हुईं हैं । हमारे मालवांचल में बासी दीपावली और बासी ईद दोनों मनाई जाती हैं । तो आइये मुस्‍तफा माहिर तथा तिलक राज जी के साथ मनाते हैं बासी दीपावली ।

एक अधिकारिक सूचना पहले प्रदान की जाती है । वो सूचना ये कि दिनांक 2 दिसम्‍बर को सीहोर में शिवना प्रकाशन का आयोजन होने जा रहा है । कार्यक्रम में शिवना द्वारा दिये जाने वाले सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान तथा सुकवि मोहन राय युवा पुरस्‍कार प्रदान किये जाएंगे । कार्यक्रम दो चरणों में होगा । प्रथम खंड में सम्‍मान समारोह होगा तथा दूसरे खंड में सुबीर संवाद सेवा परिवार मुशायरा होगा । इसमें सुबीर संवाद सेवा से जुड़े रचनाकार काव्‍य पाठ करेंगें । विधिवत कोई सूची नहीं है कि कितने शायर होंगे । बस ये कि सुबीर संवाद सेवा से जुड़े जो भी रचनाकार उपस्‍ि‍थत रहेंगे वे सब दूसरे चरण में काव्‍य पाठ करेंगे । सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान की घोषणा पिछले वर्ष जनवरी में की जा चुकी है । यह सम्‍मान सुप्रसिद्ध रचनाकार श्री नीरज गोस्‍वामी को प्रदान किया जायेगा । सुकवि मोहन राय युवा पुरस्‍कार हेतु नाम शीघ्र ही घोषित किया जायेगा । मैं आपको आमंत्रित करने की औपचारिकताओं में इसलिये नहीं पड़ूंगा कि सुबीर संवाद सेवा मेरा ब्‍लाग नहीं है, वो आप सबका है, सो ये कार्यक्रम भी आप सबका है । अपने ही कार्यक्रम में आने के लिये किसी आमंत्रण की आवश्‍यकता नहीं होती है । आप आएंगे तो मुझे अच्‍छा लगेगा ।

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''सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान 2012'' श्री नीरज गोस्‍वामी

आइये आज बासी परंपरा को और आगे बढ़ाते हैं । आज बासी में एक ताज़ा माल भी है । ताज़ा इस मामले में कि ये मुख्‍य मुशायरे की बस पकड़ते पकड़ते चूक गये थे । बाकी बासी मुशायरे में वे रचनाकार आ रहे हैं जो मुख्‍य मुशायरे में भी रचनापाठ कर चुके हैं, इस कारण वे बासी हैं । मुस्‍तफा माहिर ताज़ा ताज़ा आ रहे हैं बासी मुशायरे में । तो आज तिलक जी के साथ मुस्‍तफा की जुगलबंदी ।

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घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

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मुस्तफ़ा माहिर

वो बाइसे-क़रार हो तो हो रहे तो हो रहे
रक़ीब हो कि यार  हो तो हो रहे तो हो रहे

हमें तो बोलना है सच, हमें तो खोलना है सच
भले ही जान ख़्वार  हो तो हो रहे तो हो रहे

विसाल का यकीन था विसाल का यकीन है
तवील इंतज़ार हो तो हो रहे तो हो रहे

फ़क़ीर तो फ़क़ीर है जो कह दिया सो कह दिया
ये शाह का दयार  हो तो हो रहे तो हो रहे

ये प्यार पाक है मगर है पत्थरों पे बेअसर
ये याद यादगार  हो तो हो रहे तो हो रहे

तुम्हारे लफ्ज़ थे दुआ, तुम्हारा लम्स था दवा
ज़माना ग़मगुसार हो तो हो रहे तो हो रहे

गुलों ने खूब जी लिया हयात का हर एक पल
ये आखिरी बहार हो तो हो रहे तो हो रहे

तुम्हारी याद के दिए जो दिन ढला जला लिए
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे

सबसे पहले बात उस शेर की जो क्‍य खूब बन पड़ा है 'विसाल का यकीन था विसाल का यकीन है' अहा क्‍या कह दिया है । मिसरा सानी में रदीफ और काफिया कमाल कमाल निभाये गये हैं । ये बात मैं पहले भी कह चुका हूं कि इस बार के मिसरे पर ग़ज़ल कहना कठिन नहीं है, कठिन है रदीफ और काफिये को ठीक प्रकार से निभाना । विशेषकर 'हो रहे तो हो रहे' में जो एक प्रकार की लापरवाही है जो इग्‍नोर करने का भाव है उसे ठीक प्रकार से निभा ले जाना । ये लापरवाही ही मुख्‍य है जिसका स्‍वर कुछ कुछ 'भाड़ में जाओ' से मिलता है । और उस लापरवाही को विसाल के मुकाबले खड़े इंतज़ार में बहुत सुंदर तरीके से निभाया है मुस्‍तफा ने । फकीर तो फकीर है में एक बार फिर से शाह के दयार के प्रति वह लापरवाही या इग्‍नोर करने की भावना बहुत सुंदर तरीके से व्‍यक्‍त हुई है । तुम्‍हारे लफ़्ज़ थे दुआ बहुत सुंदर मिसरा है । गुलों ने खूब जी लिया में एक बार फिर से रदीफ काफिया को बेहतर तरीके से निभा ले गये है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह । देर आयद दुरुस्‍त आयद ।

Tilak Raj Kapoor

तिलकराज कपूर

लड़ाई आर-पार हो तो हो रहे तो हो रहे
इसी तरह सुधार हो तो हो रहे तो हो रहे।

दहेज दानवों के हाथ जल रही हैं बेटियॉं
दिलों में इनसे रार हो तो हो रहे तो हो रहे।

मिटा रहे है गर्भ में जो मॉं बहन औ बेटियॉं
खुदा की उनपे मार हो तो हो रहे तो हो रहे।

पढ़ो लिखो बढ़ो सभी को साथ में लिये हुए
कठिन ये राह यार हो तो हो रहे तो हो रहे।

न भेद नस्ल का रहे न धर्म जाति रंग का
इसी पे जॉं निसार हो तो हो रहे तो हो रहे।

कतार देख कर कभी खुशी नहीं मिली मगर
ये दीप की कतार हो तो हो रहे तो हो रहे।

बुराईयों पे जीत की प्रतीक दीप रौशनी
ये जिंदगी का सार हो तो हो रहे तो हो रहे।

आज के माहौल पर करारी चोट करता हुआ मतला आर पार की लड़ाई के बाद सुधार की रौशनी को तलाशता हुआ मतला । ये पूरी ग़ज़ल समाज सुधार की ग़ज़ल है । पूरी ग़ज़ल हर सामाजिक बुराई पर करारी चोट करते हुए चलती है । और हां, केवल चोट करते हुए नहीं बल्कि उसका एक हल निकालते हुए भी । मसलन अशिक्षा मिटाने की राह भले ही कठिन हो किन्‍तु सभी को साथ लेकर चलने से उसका हल हो सकता है । कतार के कन्‍ट्रास्‍ट को दीप की कतार के माध्‍यम से बहुत सुंदर तरीके से व्‍यक्‍त किया गया है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

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तो चलिये आनंद लीजिये बासी दीपावली के अंक का । अभी कुछ और रचनाएं हमारे पास हैं सकता है कि देव प्रबोधिनी एकादशी तक हम बासी दीपावली के क्रम को जारी रख पाएं । आप आनंद लीजिये आज के दोनों रचनाकारों की रचनाओं का और देते रहिये दाद ।

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

बासी दीपावली का अर्थ होता है कि बचे खुचे पटाखों को चलाना और बची खुची मिठाई को खाना ।

दीपावली का त्‍यौहार सकुशल और सानंद संपन्‍न हो गया । अंकित और गौतम के आने से और आनंद आ गया । दीपावली के एक दिन पहले तो दोनों का संदेश आ गया था कि आना संभव नहीं है । मुझ से अधिक निराशा परी और पंखुरी को हुई थी । किन्‍तु फिर दोनों का आने का तय हो गया । खूब आनंद किये गये । लोगों ने गिर गिर कर ( अंकित) पटाखे चलाये । तो मतलब ये कि दीपावली खूब आनंद से मनी ।

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अब कुछ दिनों तक कार्यक्रमों की व्‍यस्‍तता रहेगी । आज शहर में उत्‍तराखंड के राज्‍यपाल महामहिम श्री अज़ीज़ क़ुरैशी का नागरिक अभिनंदन है उसमें जाना है । कल शहर में एक कवि सम्‍मेलन का भी आयोजन किया जा रहा है । जिसमें श्री प्रदीप चौबे, श्री विष्‍णु सक्‍सेना, श्री शशिकांत यादव, सुश्री अना देहलवी और शायद पंकज सुबीर काव्‍य पाठ करेंगे । आप सब इस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं ।

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एक और महत्‍वपूर्ण सूचना ये है कि दिनांक 2 दिसम्‍बर को शिवना प्रकाशन एक सम्‍मान समारोह तथा मुशायरे का आयोजन सीहोर में करने जा रहा है । कार्यक्रम में सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान तथा सुकवि मोहन राय स्‍मृति युवा पुरस्‍कार प्रदान किया जायेगा । कार्यक्रम को लेकर कुछ ही दिनों में अधिकारिक घोषणा कर दी जायेगी । यदि आप उन तारीखों में भोपाल हों तो सीहोर आने का कार्यक्रम बना रखिये ।

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घना जो अंधकार हो तो हो रहे, तो हो रहे

आज बासी दीपावली को मनाया जा रहा है राकेश खंडेलवाल जी, तिलक राज कपूर जी और कंचन सिंह चौहान के साथ । बासी दीपावली का ये क्रम आगे भी जारी रहेगा । हमारे यहां देव प्रबोधनी एकादशी तक दीपावली मनाई जाती है । ठीक उसी प्रकार जैसे रंगपंचमी तक होली तथा जन्‍माष्‍टमी तक रक्षा बंधन मनाया जाता है । कुछ और रचनाएं भी हैं जो आने वाले समय में हम पढ़ेंगे, सुनेंगे । आज सुनते हैं इन तीनों को । आज दाद देने का कार्य आप ही लोगों को करना है  ।

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कंचन सिंह चौहान

जुबान का बयान कुछ, दिलों की दास्तान कुछ
अजीब से महौल में, ये दिन और रात हो रहे,
सभी के मन को तौलता, कुटिल सा मौन बोलता,
बिना नियम बिसात पर श और मात हो रहे,

शुआ से नाउम्मीद मन, सहर की आस क्या करे ?
घना जो अंधकार है, तो हो रहे, तो हो रहे।

सुखन की राह दिल नही दिमाग पर है चल रही,
ना जाने क्यों, मुझे ये बात बार बार खल रही।
मुकाम पर खड़े सभी डरा रहे हैं इस क़दर,
मुक़ाम पाने की ललक हदस में है बदल रही।

जो माहताब शत्रु है, तो किसका आसरा करें ?
घना जो अंधकार है, तो हो रहे, तो हो रहे।

उसूल ना किसी में ना किसी में रूह रह गई,
ख़लूस की दीवार रेत रेत जैसी ढह गई।
ना जाने कैसी आँधियो से इसका सामना हुआ,
कि रंग सारे बह गये औ तूलिका ही रह गईं।

ये शर्मसार आँख कैसे दिन का सामना करे ?
घना ये  अंधकार, यूँ ही हो रहे, हाँ हो रहे।

शुआ से नाउम्‍मीद मन सहर की आस क्‍या करे, में मिसरे के साथ बहुत खूबसूरती के साथ गिरह लगाई गई है । एक और बड़ी बात कही है सुखन की राह दिल नहीं दिमाग पर है चल रही । सभी के मन को तौलता, कुटिल सा मौन बोलता, बहुत प्रभावशाली गीत लिखा है । कई सारी चीजों को समेटा है । जुबान का बयान कुछ दिलों की दास्‍तान कुछ । बहुत सुंदर बहुत सुंदर ।

Tilak Raj Kapoor

आदरणीय तिलक राज कपूर जी  

नदी में तेज धार हो तो हो रहे तो हो रहे
यही नसीबे प्यारर हो तो हो रहे तो हो रहे

किसी की जिंदगी में हो बहार इसके वासते 
खज़ॉं को मुझसे प्याहर हो तो हो रहे तो हो रहे।

अगर सफ़र की राह में मनाज़िल-ए-सुकूँ मिलें  
तमाम राह खार हो तो हो रहे तो हो रहे।
(मनाज़िल: मंज़िल का बहुवचन)

मुझे निंबौरियों से प्याहर है तेरे नसीब में
बहारे हरसिंगार हो तो हो रहे तो हो रहे।

तेरी नियामतों को बॉंटने की राह में खुदा
खुला हरेक द्वार हो तो हो रहे तो हो रहे।

निज़ाम को बदल न पायेगा कभी बयान भर
मगर ये धारदार हो तो हो रहे तो हो रहे।

चलो हथेलियों में धूप सूर्य की समेट लें
ख़फ़ा जो अंधकार हो तो हो रहे तो हो रहे।

चलो हथेलियों में धूप सूर्य की समेट लें, बहुत ही सुंदर मिसरा गढ़ा है । एक और मिसरा बहुत सुंदर बना है हरसिंगार हो तो हो रहे । तेरी नियामतों को बांटने की राह में अलग तरीके से कहा गया शेर है । जितनी सुंदर मूल मुशायरे की ग़ज़ल थी उतनी ही सुंदर बासी मुशायरे की ग़ज़ल है । बहुत सुंदर ।

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आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी

ना आपकी नजर से ही नजर मिलाई है कभी
ना आपकी कोई गज़ल ही गुनगुनाई है कभी
ना आप और हम कहीं किसी भी मोड़ पर मिले
जुड़े नहीं कभी कहीं भी परिचयों के सिलसिले
तो किसलिये हैं आप आये आज मेरे द्वार पर
हजार वायदे रखे हो सामने संवार कर
जो अब चुनाव में तुम्हारी हार हो तो हो रहे
किसी को तुम से प्यार हो तो हो रहे तो हो रहे

गये जो वर्ष पैंसठों की हैं कहानियाँ यही
जमा किया हथेलियों पे आज तक है बस दही
जनाब आपको पता क्या सब्जियों का भाव है
औ'  दूध, गैस, तेल, दाल का यहाँ अभाव है
सुबह से शाम तक रही हैं बिजलियां भी लापता
गईं शहर वो रात में हमें बता के बस धता
पड़ा  है नल बिमार जो तो हो रहे तो हो रहे
तुम्हारा क्या विचार है ? जो हो रहे सो हो रहे ?

ये देश जो कथाओं में था स्वर्ण से जड़ा हुआ
यहां बिरज में बन नदी था दूध नित बहा हुआ
यहाँ पे न्यायपूर्ण शिवियों विक्रमों का राज्य था
यहां पे देवताओं को भी जन्म लेना भाग्य था
उजाड़ दीं विरासतें तुम्हारे एक स्वार्थ ने
धनुष कहो उठाया था इसीलिये क्या पार्थ ने
तो फिर से चमत्कार हो तो हो रहे तो हो रहे
तुम्हारा घर तिहाड़ हो....तो हो रहे तो हो रहे.

बहुत सुंदर, भारत की वर्तमान स्थिति को पूरे गीत में समेट लिया है । ये एक मुकम्‍मल ओज का गीत है जिसे मंच से खूब खूब गाया जा सकता है । ये देश जो कथाओं में था स्‍वर्ण से जड़ा हुआ । बहुत सुंदर बंद बांधा गया है । गये जो वर्ष पैंसठों की बस कहानियां यहीं में आज के आम आदमी का दर्द भर दिया गया है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर ।

तो आंनद लीजिये इन ग़जल़ों गीतों का और दाद देते रहिये । अगले बासी दीपावली अंक में मिलते हैं कुछ और रचनाओं के साथ ।

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

सबको दीपावली का ये त्‍यौहार शुभ हो मंगलमय हो । हर तरफ खुशियां हों आनंद हो । आज बहुत से रंग हैं तरही में । तिलक जी, नीरज जी, सुधा जी, लावण्‍या जी और अश्विन जी की रचनाओं के रंग ।

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आ गई आ गई दीपावली अपने रंगों और प्रकाश की छटा बिखेरती हुई आ गई है । उल्‍लास और उमंग का ये पर्व अपने पूरे सौंदर्य के साथ पूरे भारतवर्ष में और भारत के बाहर जहां जहां भी भारतीय हैं वहां वहां जगमगा उठेगा । दीप जल उठे हैं और अंधकार को चुनौती देने का दायित्‍व अपने सिर पर उठा लिया है वर्तिकाओं ने । ये प्रकाश पर्व आप सबके जीवन में सुख शांति और समृद्धि लाये । सबके जीवन में प्रकाश हो । सबका जीवन सुखमय हो । आरोग्‍य का धन सबके घर में हो । ये रौनक यूं ही लगी रहे । ये सिलसिला यूं ही चलता रहे । सबको मंगल कामनाएं, शुभकामनाएं, शुभ दीपावली ।

Tilak Raj Kapoor

आदरणीय तिलक राज कपूर जी

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मुझे तुम्हीं  से प्यार हो तो हो रहे तो हो रहे
तुम्हें ये नागवार हो तो हो रहे तो हो रहे।

सभी को साथ देखने की चाह में मेरा अगर
वज़ूद दरकिनार हो तो हो रहे तो हो रहे।

अधर पे मुस्कराहटें, नज़र खुलूस से भरी
अगर यही ख़ुमार हो तो हो रहे तो हो रहे।

लगाम सौंप कर किसी के हाथ सोचना नहीं
वो सरफिरा सवार हो तो हो रहे तो हो रहे।

सजा के दीप द्वार पर खुले नयन निहारती
प्रिये से अपनी हार हो तो हो रहे तो हो रहे।

अदा के साथ अपका नयन के तीर छोड़ना
किसी के दिल के पार हो तो हो रहे तो हो रहे।

चले हैं राह पर तेरी लिये तेरी ही रौशनी
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।

सजा के दीप द्वार पर अहा क्‍या कहा है । और उसी प्रिये से अपनी हार हो तो हो रहे तो हो रहे । इस बार के कुछ कठिन से रदीफ को बहुत सुगमता के साथ निभाता हुआ मिसरा । चले हैं राह पर तेरी लिये तेरी ही रौशनी में बहुत सुंदर तरीके से गिरह को बांधा है । गिरह की गांठ इतनी नफासत से बांधी है कि दिख ही नहीं रही है । एक कुछ अलग तरह का शेर है लगाम सौंप कर किसी के हाथ, ये शेर बहुत व्‍यापक अर्थ लिये हुए है । और इसे कई कई संदर्भों में उपयोग किया जा सकता है । सुंदर ग़ज़ल । बासी दीपावली में तिलक जी की दो और ग़ज़लें शामिल होंगीं । पर आज की ग़ज़ल के लिये तो बस वाह वाह वाह ।

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आदरणीय नीरज गोस्वामी जी

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तुझे किसी से प्यार हो तो हो रहे तो हो रहे
चढ़ा हुआ ख़ुमार हो तो हो रहे तो हो रहे

जहाँ पे फूल हों खिले वहां तलक जो ले चले
वो राह, खारज़ार हो तो हो रहे तो हो रहे

उजास हौसलों की साथ में लिये चले चलो
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे

बशर को क्या दिया नहीं खुदा ने फिर भी वो अगर
बिना ही बात ख़्वार हो तो हो रहे तो हो रहे

मेरा मिजाज़ है कि मैं खुली हवा में सांस लूं
किसी को नागवार हो तो हो रहे तो हो रहे

चमक है जुगनूओं में कम, मगर उधार की नहीं
तू चाँद आबदार हो तो हो रहे तो हो रहे
आबदार: चमकीला

फ़कीर हैं मगर कभी गुलाम मत हमें समझ
भले तू ताज़दार हो तो हो रहे तो हो रहे  

पकड़ तू सच की राह को भले ही झूठ की तरफ
लगी हुई कतार हो तो हो रहे तो हो रहे

जहाँ उसूल दांव पर लगे वहां उठा धनुष
न डर जो कारज़ार हो तो हो रहे तो हो रहे
कारज़ार: युद्ध

चमक है जुगनुओं में कम मगर उधार की नहीं । ये रंग-ए-नीरज से भरा हुआ शेर है । इस प्रकार चांद की हंसी उड़ाना सिर्फ उनके ही बस की बात है । जुगनू की मौलिकता पर अनोखा शेर । और इसी प्रकार का शेर है फकीर हैं भले मगर, बहुत सुंदर शेर है । उस अंतर को स्‍पष्‍ट कर रहा है जो फकीर और गुलाम के बीच का है । बाद के दोनों ही शेर उसी कमाल से लिखे गये हैं जैसे जहां उसूल दांव पर लगे वहां उठा धनुष बहुत सुंदर शेर है और उसी प्रकार का शेर है पकड़ तू राह सच । नीरज जी के साथ एक बात अच्‍छी है वे अपनी मौलिकता कभी नहीं छोड़ते । और ये ग़ज़ल उनके अपने ही रंग की ग़ज़ल है । सुंदर अति सुंदर ।

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आदरणीया लावण्या दीपक शाह जी

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घना जो अन्धकार हो तो हो रहे, हो रहे

तिमिर से पूर्ण मावसी भले ही फैली हो निशा
वो चंद्रमा अमा का लुप्त नभ से है तो क्या हुआ  
सनातनी हूं चिर नवीन बिंदु इक रहस्य हूं
मनुष्‍य हूँ विधाता का सृजन मैं अग्नि शस्य हूँ
तिमिर को काट क्रोड़ फोड़ तज कठिन ये बंध मैं,
नये सृजन से सृष्टि का पुन: करूं प्रबंध मैं !
तेरे ही शक्ति पीठ का है बल भुजाओं में भरा
हे माँ ! मुझे दुलार दे शिशु अबोध हूं तेरा
मैं तोड़ दूं हरेक बंध, कंदराएं फोड़ दूं  
जो बंद लौहद्वार हो तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे, हो रहे

अमावसी ये कालिमा हटे जो तेरी हो कृपा
जगर मगर जलें जो दीप जगमगा उठे निशा
कनक की दिव्‍य कांति सा परम शुभम स्वरूप है 
कृपा कटाक्ष तेरा  पाके रंक  क्षण में भूप है
ये चन्द्र सूर्य तारागण, ये सृष्टि का हरेक कण
तेरी  विभा से दीप्‍त हैं ये वर्ष, मास,  दिन ये क्षण
तेरी प्रभा ही ले के हर दिशा प्रकाशमान है
तुझी से ही प्रलय है और तुझी से नव विहान है
प्रकाश की विजय का पर्व बार बार आयेगा
अंधेरा बार बार हो तो हो रहे तो हो रहे 
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे, हो रहे

गीत के मिसरे पर यदि गीत ही लिखा जाये तो उसका आनंद अलग ही होता है । ये गीत उसका ही उदाहरण है । सनातनी हूं चिर नवीन बिंदु बहुत सुंदर है । पूरा का पूरा गीत एक अलग मूड का गीत है । दोनों बंद अपनी अपनी तरह से बात कह रहे हैं, एक स्‍वयं के लिये और दूसरा उस परमपिता के लिये । एक स्‍वयं प्रकाश होना है और दूसरा उसके प्रकाश की कामना लिये है । यही तो है जीवन थोड़ा अपना प्रयास और थोड़ा उस परमपिता का आशीष । ये गीत उन्‍हीं दोनों का सम्मिश्रण है ये गीत । बहुत सुंदर बहुत सुंदर ।

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sudhajinew

आदरणीया सुधा ओम ढींगरा जी 

newderg

विदेश के आकाश पर
भारतीयता का झंडा
फहरा रहे हो तो हो रहे तो हो रहे
गीता की सौगंध ले
पद ग्रहण
कर रहे हो तो हो रहे तो हो रहे
देश छोड़ परदेश जा बसे ,
'प्रवासी' सुन
पीड़ित हो तो हो रहे तो हो रहे
देश द्रोही नहीं,
न कहेंगे देश प्रेमी
दुखित हो तो हो रहे तो हो रहे
पूर्वग्रह  हैं, डालेंगे हाशिये पर
लेखन तुम्हारा
व्याकुल हो तो हो रहे तो हो रहे
विदेश का तेल, देश की बाती
जला लो जितनी
हृदय में घना जो अंधकार हो
तो हो रहे तो हो रहे ।।

'प्रवासी' शब्‍द की पीड़ा केवल प्रवासी ही जान सकता है । और उस एक शब्‍द के दंश को कहां कहां भोगना पड़ता है । साहित्‍य में जिस प्रकार से एक पूरा खंड अलग कर दिया गया है प्रवासी नाम से उस खंड से खंड खंड होने की पीड़ा को समेटे है ये छंदमुक्‍त कविता । विदेशों में बसे भारतीय अपने साथ भारतीयता का परचम लेकर गये हैं जिसे वे विदेश में फहरा रहे हैं किन्‍तु यहां अपने ही देश में उनको हाशिये पर डाला जा रहा है । वे वहां हिन्‍दी की बिन्‍दी पूरे विश्‍व के माथे पर लगा रहे हैं और हम उनको प्रवासी ठहरा कर खारिज कर रहे हैं । बहुत सुंदर कविता ।

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ashwini ramesh ji

अश्विनी रमेश

newderg

फ़ज़ा जो  खुशगवार हो, तो हो रहे ,तो हो रहे
बहार ही बहार हो, तो हो रहे,तो हो रहे

तुम्‍हारे  इंतजार में  ये रात बीत जायेगी
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
 

चमन अगर उजाड़ हो तो क्‍या है तेरा फायदा
तू गुलशने बहार हो, तो हो रहे, तो हो रहे 

तुम्हारे साथ  जो गुज़ारे पल, सदा वो साथ हों 
तुम्‍हारी यादगार हो, तो हो रहे,  तो हो रहे
 

छोटी मगर सुंदर ग़ज़ल । अपने तरीके से बात कही गईं हैं जिसमें । भले ही चमन के उजाड़ होने पर बहार के न होने की बात हो या किसी के इंतजार में रात को काटने की बात हो । बहुत सुंदर तरीके से बात कही गई हैं । बहुत  सुंदर ।

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तो मित्रों आनंद लीजिये इन रचनाओं का । और दाद देते रहिये । आप सबको दीपावली की मंगल कामनाएं । याद रखिये इस बार हमारे पास बासी दीपावली के लिये भी पटाखों का स्‍टाक है जो हम दीपावली के बाद चलाएंगे । उनमें भी काफी दमदार पटाखें हैं । तो आज की रचनाओं पर आनंदित होइये । एक बार फिर से मंगल कामनाएं, शुभ शुभ, जय जय ।

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