जैसा कि आपको पूर्व में ही सूचित किया जा चुका है कि दिनांक 2 दिसंबर को शिवना प्रकाशन के कार्यक्रम में श्री नीरज गोस्वामी जी को वर्ष 2012 का सुकवि रमेश हठीला सम्मान प्रदान किया जायेगा । कार्यक्रम में अभी तक जिनके आने की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है उनमें श्री तिलकराज कपूर जी, श्री मुकेश कुमार तिवारी, गौतम राजरिशी, कंचन सिंह चौहान, प्रकाश अर्श, अंकित सफर, वीनस केशरी आदि हैं । कार्यक्रम दो चरण में होगा । नीरज जी की इच्छा थी कि कार्यक्रम छोटे स्तर पर सादे तरीके से हो, सो वैसा ही किया जा रहा है । प्रथम खंड में सम्मान समारोह होगा तथा दूसरे खंड में मुशायरा । मुशायरे में ऊपर दिये गये नाम तथा अन्य जो आते हैं वे डॉ आज़म के संचालन में काव्य पाठ करेंगे । कार्यक्रम में मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव आदरणीया नुसरत मेहदी जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थ्ति रहेंगीं । आप यदि आ रहे हैं तो अपने आने की स्वीकृति भेजने का कष्ट करें ।
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
आज हम दो गीतों और एक ग़ज़ल के साथ मुशायरे का समापन कर रहे हैं । दो गीत आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी के और एक बिल्कुल नये शायर की ग़ज़ल । इन शायर के बारे में बहुत अधिक नहीं जानता हूं । बस ये कि इनसे पहला ही परिचय है । तो आइये देव प्रबोधिनी एकादशी पर समापन करते हैं दीपावली के तरही मुशायरे का ।
आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी
(1)
ये दीप दीप पर्व के जलें हैं बन चुनौतियाँ
घना जो अन्धकार है तो हो रहे तो हो रहे
किरन किरन प्रखर बनी है ज्योति की ये कैंचियाँ
न शेष अन्धकार अब कहीं रहे कहीं रहे
ये राजवंश आज का उगल रहा है नित धुंआ
किये हुये तिमिर से अनदिखी हजार संधियां
हुआ है अन्ध डूब मद में ये सकल निशा दिवस
मगध नरेश से उधार ले रखी हैं नीतियाँ
तो आज का युवा बने जो यादवों का वंशजी
तो दूर मानसी क्लेश हो रहे ये हो रहे
छलक रहीं हैं धीर की भरी हुई सुराहियाँ
ये रोग कर्क है मिलें इसे नई दवाईयाँ
उठो हे पार्थ पुत्र तुमको है समर बुला रहा
चलो कि शत्रु के मुखों पे अब उड़ें हवाईयाँ
ना सूर्य ढल सके उठाओ शस्त्र अपने हाथ में
तो गर्व जयद्रथी ये चूर हो रहे हाँ हो रहे
जो रह गये तटस्थ, वे रहेंगे खो अनन्त में
जो आहुती चढ़ाये उसका यश फ़िरे दिगन्त में
उठो कि सामने तुम्हारे निर्णयों की है घड़ी
वरण हो मंज़िलों का या विलीन हो लो पंथ में
उठो जलो कि दीप की बुला रही है वर्त्तिका
ये ज्योति कल के अन्त तक जो हो रहे तो हो रहे
बहुत सुंदर गीत है । एक एक पंक्ति स्वयं को गा लेने के लिये आमंत्रित कर रही है । विशेष कर अंतिम बंद तो मानो एक ललकार की तरह आ रहा है । अब राकेश जी के गीतों पर क्या लिखा जाये । मगध, जयद्रथ जैसे प्रतीकों का सुंदर प्रयोग है । आनंद ।
(2)
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
अठन्नियां तो देखने को भी नहीं मिली कहीं
चवन्नियां सुबीर की कथाओं में खिली नहीं
हजार का जो नोट था वो एक पल में तुड गया
हमारा होश सब्जियों के भाव देख उड़ गया
प्रतिनिधी अकाउंटों का देश आज स्विस हुआ
हों वान्टिड या जेल में ये स्वप्न एक विश हुआ
दो रोटियों के जोड़ में हमें मुगालते रहे
चिकन की टाँग तोड़ के थे वो डकारते रहे
हमें जो बस अचार हो तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
ये खेल राजा रानियों का रात दिन चला किया
हमें था सब्जबाग एक दूर से छला किया
पलट के पांव आ गये हैं फ़िर सड़क के मोड़ पर
गये थे पांच साल हमको जिस जगह पे छोड़ कर
ये डोरियां कभी कोई है खींचता कभी कोई
मगर जो शै नसीब की है आज तक रही सोई
अंधेरा रात भर का है बताया जा रहा हमें
नहीं किसी के रोकने से रुक सका है ये समय
जो आज लख उधार हो, तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
भला हो ये सुबीर जी का क्या तरही बनाई है
औ तुर्रा उसपे बोलते हैं लो दिवाली आई है
लगाओ फोटो खील के, बताशे स्वप्न में चखो
गणेश लक्ष्मी चीन के हैं सामने सजा रखो
दिलासे तुमने पाये हैं दिलासे सबको बाँटिये
उगा के बातचीत की फ़सल को रोज काटिये
लगाओ आस एक दिन उतर के कृष्ण आयेगा
या रामराज्य कल सुबह के संग चला आयेगा
तुम्हें जो एतबार हो, तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
लगाओ आस एक दिन उतर के कृष्ण आयेगा या रामराज्य कल सुबह के संग चला आयेगा । बहुत सुंदर व्यंग्य किया है इस पूरे गीत में । विविध रंगों और भावों को साधना किसी गुणी साहित्यकार के ही बस की बात है । आनंद परमानंद ।
अरुन शर्मा "अनंत"
ये हमारे मुशायरे में पहली बार आ रहे हैं । इनके बारे में बहुत जानकारी मुझे नहीं है बस इतना कि गुडगाँव में रहते हैं और एक इन्वेस्टमेंट कंपनी में मार्केटिंग प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं। इन्होंने एक ग़ज़ल भेजी मुशायरे के लिये और इस ब्लाग पर युवाओं को प्रोत्साहन देने की जो परंपरा है उसके चलते ग़ज़ल को शामिल किया जा रहा है ।
नज़र में रात पार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
नसीबा चूर यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
बजी है धुन गिटार की, लगा है मन को रोग फिर,
जो टूटा प्रेम तार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
सबेरे-शाम-रात-दिन है, याद तेरी साथ बस
यही अगर जो प्यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
नहीं हुआ है दर्द कम, दवा भी ली दुआ भी की,
ये ज़ख्म बार-बार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
जला है दिल "अनंत" का, कुछ इस तरह से दोस्तों,
जलन ये जोरदार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
युवाओं की ग़ज़लों में नये शब्द आ रहे हैं जो अच्छे लगते हैं । जैसे इसमें गिटार आया है । युवा अपने साथ अपनी शब्दावली लेकर आते हैं । अरुन पहली बार आये हैं । पहला प्रयास अच्छा है । आगे और निखरेंगे ऐसी कामना है ।
तो मित्रों आज दीपावली का मुशायरा विधिवत समाप्त हो रहा है । आनंद लीजिये आज की रचनाओं का और दाद दीजिये । अगले मुशायरे की घोषणा जल्द ही की जायेगी । 2 दिसंबर के कार्यक्रम की विस्तार से जानकारी भी अगली पोस्ट में ।