सोमवार, 28 दिसंबर 2009

तरही मुशायरा ठीक नये साल से प्रारंभ होगा और ठीक नये साल से ही प्रारंभ होगा ग़ज़ल का नया ब्‍लाग । तरही को लेकर कई सारी ग़ज़लें मिल चुकी हैं कई बाकी हैं ।

तरही मुशायरे को लेकर रोज एक दो ग़ज़लें मिल रही हैं । बहुत ही अच्‍छी और सुंदर ग़ज़लें मिल रही हैं । लेकिन कुछ नियमित लिखने वाले अभी भी सो ही रहे हैं और जाने किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं । रविकांत ने मुशायरे की तारीख को लेकर कई बार प्रश्‍न किया है मेरे विचार से सीहोर में होने वाला मुशायरा वसंत पंचमी यानि 20 जनवरी को होने की संभावना है । क्‍योंकि उस दिन ही शिवना प्रकाशन द्वारा सरस्‍वती पूजन भी किया जाता है । उस दिन ही ये मुशायरा भी आयोजित किया जायेगा । शिवना प्रकाशन द्वारा पिछले कई सालों से ये सरस्‍वती पूजन आयोजित किया जाता है । इस बार चूंकि वसंत पंचमी कुछ पीछे आ गई है इसलिये नव वर्ष का आयोजन और मुशायरा दोनों ही उस दिन किये जा सकते हैं । फरवरी में आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी की सीहोर यात्रा प्रस्‍तावित है तथा उस दिन भी शिवना द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है ।

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ग़ज़ल की कक्षाओं को लेकर कई दिनों से ऊहापोह हो रही थी । उसके पीछे भी एक कारण ये था कि अब जो बहुत ही गूढ़ बातें शेष हैं वे इस प्रकार से सार्वजनिक रूप से नहीं बताई जा सकती । जिन लोगों ने अभी तक लगभग तीन सालों तक तप किया है वे ही उसके पात्र हैं । ऐसा नहीं है कि नये लोगों को इस ब्‍लाग पर जाने का मौका नहीं मिलेगा । लेकिन उनको ही मिलेगा जो सुपात्र भी हैं और जिनके मन में सीखने की कुछ इच्‍छा भी है । कई सारी बातें ऐसी हुई जिनसे कि मन खिन्‍न हो गया था । फिर लगा कि सर्वाजनिक न करके यदि इस प्रकार से आगे का काम किया जाये तो उससे मन को शांति मिलेगी कि जो कुछ भी ज्ञान है वो कम से कम वितरित तो हो रहा है । ये ब्‍लाग जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि आमंत्रण के द्वारा पढ़ा जाने वाला ब्‍लाग होगा । जिन लोगों को आमंत्रण भेजा जायेगा केवल वे ही अपने जीमेल एकाउंट से लागिन करके इसको पढ़ सकेंगें । दरअसल में ये ब्‍लाग कुल मिलाकर वह पुस्‍तक ही होगी जिसे मैं लिख रहा हूं । इसमें कुछ भी दूसरा कार्य नहीं होगा केवल ग़ज़ल की तकनीक पर ही चर्चा होगी । ब्‍लाग का नाम रखा गया है ग़ज़ल का सफर । इसमें कोई विजेट या साइड बार नहीं है । बहुत ही सीधा सा ब्‍लाग है । बाकी का सारा काम जिसमें तरही मुशायरा आद‍ि सब कुछ होता है वो इस ब्‍लाग पर पूर्ववत ही चलता रहेगा ।

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तरही के आयोजन के लिये ले जा रहा हूं घूरो मत कोई भी

तरही को लेकर कई सारी ग़ज़लें मिल चुकी हैं और कई सारे लोगों ने कहा है कि वे जलदी ही भेज रहे हैं । प्रयास ये है कि ठीक एक जनवरी 2010 को तरही का आयोजन प्रारंभ हो जाये और उसके साथ ही ग़ज़ल का सफर की अधिकारिक रूप से लान्चिंग भी हो जाये । वैसे इस बार पिछली बार के मुकाबले में कुछ अधिक ग़ज़लें मिलने की संभावना है । उसके पीछे कारण ये है कि पिछली बार त्‍यौहार की व्‍यस्‍तता थी । इस बार छुट्टियां चल रहीं हैं । इस बार का मिसरा  न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए  बहरे मुतकारिब पर है । बहरे मुतदारिक के बारे में मैं पहले ही बात चुका हूं कि ये एक गाई जाने वाली बहर है । और ये सालिम तथा मुजाहिब सारी बहरों में गाई जाने वाली होती है । बहरे मुतकारिब और बहरे मुत‍दारिक ये दोनों ही पंचाक्षरी रुक्‍नों से बनी मुफरद बहरें हैं । बाकी सारी मुफरद बहरें सप्‍ताक्षरी रुक्‍नों से बनी हैं । पिछली बार जो जुजबंदी के बारे में बताया गया था उसको आधार बना कर हम बहरे मुतकारिब के रुक्‍न के जुज़ निकाल सकते हैं । बाकी बातें तो हम ग़ज़ल के सफर पर करेंगें ही ।

मन खिन्‍न है । मन खिन्‍न है कल  आये  कुछ मेल पढ़कर । दरअसल में ऐसा लगता है कि अब मानवीय मूल्‍यों, रिश्‍तों नातों का युग बीत ही चुका है । अब सब कुछ पैसा ही हो चुका है । मन दुखी है बहुत दुखी है । पता नहीं हम किस ओर जा रहे हैं । यद्यपि इस विषय में एक बार सुधा दीदी से विस्‍तार से चर्चा हुई थी तथा उन्‍होंने भी इस मामले को लेकर दुख व्‍यक्‍त किया था । किन्‍तु अब जब उसी प्रकार के मामले में मुझे भी घसीट लिया गया तो मुझे ऐसा लगा कि मैं भी अपराधी हो गया हूं । हम कब इन्‍सानों को इन्‍सान समझना प्रारंभ करेंगें । हम कब रिश्‍तों से ऊपर पैसा होता है ये मानना बंद करेंगें । बहुत बहुत दुख होता है इस प्रकार के मामलों में । ऐसा लगता है कि वास्‍तव में जीवन मूल्‍य समाप्‍त होते जा रहे हैं । यद्यपि मैं अपराधी नहीं हूं फिर भी चूंकि मेरा नाम उपयोग में लाया गया है इसलिये मैं क्षमाप्रार्थी हूं । इस विषय पर एक तीखी ग़ज़ल लिख रहा हूं जिसमें अपनी पूरी पीड़ा को पूरी ताकत के साथ झोंक दूंगा । इस विषय पर आज इतना दुखी हूं कि बस । लेकिन पीड़ा से जन्‍म होता है रचनाओं का सो हो सकता है कुछ अच्‍छा हो जाये । 

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

तरही मुशायरे को लेकर कुछ लोगों की ग़ज़लें मिल चुकी हैं क्रिसमस से प्रारंभ करने की इच्‍छा है । आज जानिये ये कि कैसे बनती हैं ग़ज़लें, उसके मूल तत्‍व क्‍या होते हैं ।

इस बार के तरही को लेकर कुछ विशेष करने की इच्‍छा है । इच्‍छा ये है कि इस बार तरही का आयोजन दोनों प्रकार से हो । हालंकि तारीख को लेकर कुछ असमंजस है फिर भी वसंत पंचमी को शिवना प्रकाशन का एक आयोजन होता है सरस्‍वती पूजन का, जो कि पिछले कई सालों से होता आ रहा है । इस बार वसंत पंचमी 20 जनवरी को है सो हो सकता है कि उसी दिन आयोजन किया जाये । बाकी जैसा समय के हाथ में हो जाये । खैर अभी तो उसमें काफी दिन हैं । सरस्‍वती पूजन का कार्यक्रम पिछले पांच छ: सालों से शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित किया जाता रहा है । और उसमें एक शिवना सारस्‍वत सम्‍मान भी प्रदान किया जाता है । डॉ विजय बहादुर जी जब तक भोपाल में थे तब तक वे इस कार्यक्रम में ज़रूर आते थे । तो संभावित तारीख बीस जनवरी हो सकती है मुशायरे की ।

शिवना प्रकाशन को मिला पीआइएन आदरणीय सुधा दीदी शिवना प्रकाशन के पीआइएन नंबर को लेकर हमेशा ही मुझे बोलती थीं । उन्‍होंने ही इसको लेकर काफी जानकारी मुझे प्रदान की । शिवना को अपना पीआइएन नंबर मिला है तो उसके पीछे सुधा दीदी का प्रोत्‍साहन ही है । पीआइएन नंबर होता है पब्लिशरस आइडेंटिफिकेशन नंबर, जो कि विश्‍व स्‍तर पर ग्रंथालयों द्वारा उपयोग किया जाता है । इसी आधार पर बनता है आइएसबीएन नंबर । अभी तक शिवना की पुस्‍तकों पर ISBN नहीं जाता था। अब चूंकि शिवना प्रकाशन को अपना पीआइएन मिल चुका है सो अब आने वाली सारी पुस्‍तकों पर ISBN  जायेगा । शिवना के लिये एक और महत्‍वपूर्ण पल है इसलिये आप सब को इसमें सहभागी बना रहा हूं । क्‍योंकि शिवना प्रकाशन आप सब का है ।

श्री नारायण कासट का आना  मैं बता चुका हूं कि श्री नारायण कासट जी से मैंने कविता का क ख ग सीखा है । पिछले ढाइ सालों से वे बिस्‍तर पर हैं । रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्‍से में समस्‍या आ जाने के कारण वे उठ नहीं पा रहे थे । किन्‍तु अपनी जीजिविषा के चलते वे खड़े होने में कामयाब रहे तथा कल लगभग ढाइ साल बाद वे चलते हुए मेरे कार्यालय आये तो मेरे हर्ष का ठिकाना ही नहीं रहा । वे बहुत अच्‍छे कवि हैं किन्‍तु उससे भी अच्‍छे मार्गदर्शक हैं । दादा बालकवि बैरागी और नीरज जी के मित्र हैं । कैफ भोपाली साहब से उनका खासा याराना रहा । शिवना संस्‍था उनकी ही खड़ी की हुई है । पिछले ढाई सालों में जो कार्यक्रम हुए उनमें उनकी कमी बहुत खलती थी । लेकिन अब आशा है कि उनकी उपस्थिति से कार्यक्रमों की गरिमा बढ़ेगी ।

ग़ज़ल का ढांचा मुझे भी ये लग रहा है कि कुछ नया बताना ही चाहिये ताकि कुछ आगे सिलसिला बढ़े । कई लोग इस बात से नाराज़ हैं कि अब आगे के पाठ नहीं हो रहे हैं तरही के चक्‍कर में । खैर जो भी हो हम कुछ बातें करते हैं आगे की । ग़ज़ल की विस्‍तृत जानकारी के लिये एक ब्‍लाग अलग बनाया जा रहा है जिसे केवल आमंत्रण के द्वारा ही पढ़ा जा सकेगा । वह ब्‍लाग सार्वजनिक नहीं होगा । आज हम बात करते हैं ग़ज़ल के सबसे छोटे हिस्‍से की । असल में पूर्व की कक्षाओं में मैंने ये बताया है कि रुक्‍नों से मिसरा, मिसरो से शेर और शेरों से ग़ज़ल बनती है । तो उस हिसाब से रुक्‍न सबसे छोटा हिस्‍सा होता है । किन्‍तु आज हम उस रुक्‍न के भी खंड करते हैं । खंड को उर्दू में जुज़ कहते हैं सो यहां पर भी रुक्‍नों के जो छोटे हिस्‍से होते हैं उनको जुज़ ही कहा जाता है । जिस प्रकार शेर का बहुवचन अशआर होता है, रुक्‍न का बहुवचन अरकान होता है वैसे ही जुज़ का बहुवचन अजज़ा होता है । इसलिये याद रखें कि जब कोई कह रहा है अरकान तो उसका मतलब है कि वह रुक्‍नों कह रहा है रुक्‍न का बहुवचन । कोई कह रहा है अशआर तो उसका मतलब वह एक से ज्‍यादा शेरों की बात कर रहा है । और अजज़ा का मतलब कई खंड । तो बात करते हैं इन अजज़ा की । ये तो मैं बहुत पहले ही बता चुका हूं रुक्‍न मात्राओं के गुच्‍छे होते हैं । तथा एक से लेकर आठ मात्रा तक के ये गुच्‍छे ग़ज़ल में या कविता में उपयोग किये जाते हैं । अब जब हम जुज़ की बात कर रहे हैं तो उसका मतलब ये कि एक ही रुक्‍न में मात्राओं के एक से ज्‍यादा गुच्‍छे होते हैं जिनको मिलाकर रुक्‍न बनते हैं । ग़ज़ल के पिंगल में जो मात्राओं के गुच्‍छे रुक्‍न बनाने के लिये उपयोग किये जाते हैं वे कुल छ: हैं जो इस प्रकार से हैं । 11, 2, 12, 21, 112, 1112, इन सबके कुछ विशिष्‍ट नाम भी हैं ।पहले दो जुज़ दो मात्रिक हैं, फिर दो जुज़ तीन मात्रिक हैं फिर एक चार मात्राओं का जुज़ और फिर एक पंचमात्रिक जुज़ है । उदाहरण

11 2 12 21 112 1112
तफ लुन,ई, मुस्‍, ला मुफा, एलुन,फऊ फाए,लातु मुतफा, एलतुन फएलतुन

अब तीन जुज़ लेकर एक रुक्‍न बनाते हैं 12+2+2=1222 ( मुफा + ई + लुन = मुफाईलुन ) बहरे हजज का रुक्‍न

इन सबके नाम और साथ में इता के दोष की विस्‍तृत जानकारी अगले अंक में ।

तरही मुशायरा  इस बार का तरही मुशायरा बहरे मुतकारिब  की मुस्‍मन सालिम पर है और उसके कई सारे उदाहरण पूर्व में ही दिये जा चुके हैं । कई सारे लोगों की ग़ज़लें मिल भी चुकी हैं । कुछ लोग अभी सो रहे हैं तथा समय आने पर ही जागेंगे । हम हिन्‍दुस्‍तानी तो वैसे भी बिजली, टेलीफोन के बिल तक अंतिम तारीख में ही जमा करते हैं । मिसरा एक बार फिर याद कर लें  न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए ( 122-122-122-122) ये तो पूर्व में ही बता चुका हूं कि यदि आपने मतले में खिलाए और मिलाए की तुक मिलाई है तो फिर पूरी ग़ज़ल में हिलाए, दिलाए, जलाए, गलाए ही लेकर चलना है । अर्थात यदि आपको स्‍वतंत्र होकर ग़ज़ल लिखनी है तो फिर आप मतले में ही स्‍वतंत्र हो जाएं । दिलाए के साथ गिराए को ले लिया तो पूरी ग़ज़ल में आप आए उच्‍चारण वाला कोई भी काफिया रख सकते हैं ।

तो चलिये मिलते हैं अगले अंक में बहरे मुतकारिब की जानकारी के साथ और साथ में इता की जानकारी के साथ । ( नोट : जिन लोगों ने व्‍यस्सता का बहाना बना कर मुशायरे से अनुपस्थित रहने की एप्‍लीकेशन दी है उनकी एप्‍लीकेशन नामंजूर कर दी गई है । )  

कुछ वेब साइटों पर कार्य चल रहा है पत्रिका परिकथा की वेबसाइट http://www.parikathahindi.com/  कल ही बनाकर अपलोड की है हालंकि अभी काम चल रहा है फिर भी एक बार देख कर बताएं कि कहां कहां क्‍या कमी हैं ।

सोमवार, 14 दिसंबर 2009

नीरज गोस्‍वामी जी और आदरणीय भाभीजी को विवा‍ह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं, और कुछ बातें इस बार के तरही मुशायरे के मिसरे की मुश्किलों के बारे में ।

नीरज जी ये बात हो रही थी उस दिन तो उन्‍होंने मुझसे पूछा कि आपने 10 दिसंबर को ही शादी क्‍यों की मैंने कहा कि नीरज जी दरअसल में बात ये है कि दो दिसंबर की रात को भोपाल गैस कांड हुआ, फिर उसके बाद में छ: दिसंबर को बाबरी मस्जिद कांड हुआ तो मुझे लगा कि अपना कांड करने के लिये भी दिसंबर का माह ही ठीक है । तो मैंने दो दिसंबर और छ: दिसंबर की कन्‍टीन्‍यूटी को बरकरार रखने के लिये छ: दिसंबर के ठीक चार दिन बाद अर्थात दस दिसंबर को शादी की । इस पर नीरज जी ने हंसते हुए बताया कि ये बहुत अच्‍छा है क्‍योंकि ठीक चार दिन बाद अर्थात चौदह दिसंबर को मेरी शादी की वर्षगांठ है । ये भी खूब रही कि चार चार दिन के अंतर से सारी घटनाएं हुईं ।

विवाह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं

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नीरज जी का जन्‍मदिन भी चौदह को होता है और विवाह की वर्षगांठ भी चौदह को है । और एक बात ये कि नीरज जी का विवाह ठीक पच्‍चीस की उम्र में हो गया था । 1975 के चौदह दिसंबर को जब उनका विवाह हुआ तो वे पच्‍चीस वर्ष पूरा कर चुके थे । उनका जन्‍मदिन चौदह अगस्‍त को आता है । नीरज जी के बारे में यदि लिखने बैठूं तो शायद शब्‍दों का ही टोटा पड़ जायेगा । उनके जैसा व्‍यक्ति दूसरा मैंने नहीं देखा है । मैं बहुत दिनों से उनके लिये कोई ठीक सा विश्‍लेषण ढूंढ़ रहा था लेकिन मिल ही नहीं रहा था । अचानक ही कल रात को टीवी पर देखा तो सांताक्‍लाज नजर आ रहे थे । बस मुझे मेरा नाम मिल गया । तो नीरज जी की तुलना सांता क्‍लाज से की जा सकती है । ( बेशक वे इतने बूढ़े नहीं हैं ) किनतु सबके ब्‍लागों पर वे जिस प्रकार खुशियों के तोहफे बांटते फिरते हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि ये एक ऐसे सांताक्‍लाज हैं जो आने के लिये किसी क्रिसमस का इंतजार नहीं करते ।

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मुझे तो सांताक्‍लाज ने कुछ तोहफे सचमुचे के भी दिये हैं जो मेरे लिये अमूल्‍य हैं । ( हां चिक्‍की का पैकेट अभी तक नहीं मिला और पूरी ठंड बीती जा रही है । ) आदरणीया भाभीजी से अभी तक मुलाकात नहीं हो पाई है किन्‍तु वे भी साहित्‍य की शौकीन हैं ये मुझे पता है । क्‍योंकि मेरी पुस्‍तक ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी की कहानियों पर जिस प्रकार के उनके कमेंट मुझे नीरज जी के माध्‍यम से मिले वो कमेंट कोई स्‍थापित साहित्‍यकार ही दे सकता है । ( कही ऐसा तो नहीं कि ग़ज़लें वास्‍तव में आदरणीय भाभीजी ही लिखती हों और नीरज जी उनको अपने नाम से ब्‍लाग पर पेल देते हैं । ) विशेषकर कुछ जटिल कहानियों पर जिस प्रकार से उनके कमेंट मिले मैं हैरत में रह गया । आदरणीय भाभीजी आलू के परांठे बहुत अच्‍छे बनाती हैं ये मैंने सुना है किन्‍तु ज्ञात नहीं कि उन परांठों को चखने का सौभाग्‍य कब मिलेगा । मिष्‍टी के बारे में क्‍या कहूं मिष्‍टी तो अपने दादा दादी की जान है, वो है ही इतनी सुंदर और प्‍यारी । तो हम सबकी तरफ से नीरज जी को और आदरणीया भाभी जी को विवाह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं । और ये दो सर्वकालिक महान गीत हम सबकी तरफ से दोनों को सप्रेम भेंट ।

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गीत क्रमांक 1

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गीत क्रमांक 2

चलिये अब पूरी कक्षा प्रतीक्षा कर रही है कि कब विवाह की वर्षगांठ की पार्टी की बची खुची मिठाई खाने को मिले ।

इस बार के तरही को लेकर कई सारे मेल मिले हैं । कई लोगों ने काफिये को जानने के बारे में लिखा है । वैसे तो मैंने उस पोस्‍ट में ही लिख दिया था कि यदि आपने मतले में कोई बंदिश लगाई तो उसको पूरी ग़ज़ल में निभाना होगा । जैसे यदि मतले में आपने लिया चलाए और खिलाए  तो फिर आपको पूरी ग़ज़ल में यही निभाना होगा मसलन हिलाए, दिलाए, मिलाए,  । और यदि आपने ले लिया डराए गिराए  तो फिर अब आप बंध गये हैं  राए साथ । वैसे तो हम देवनागरी में ग़ज़ल लिखते हैं अत: ईता का दोष कोई मायने नहीं रखता क्‍योंकि वह उर्दू लिपि के साथ ही होता है । किन्‍तु फिर भी यदि कोई ईता का दोष नहीं रखना चाहता तो वो हर्फे रवी ( तुक का अक्षर ) काफिये से हटा के फिर काफिये को देखे यदि अक्षर समान अर्थ उत्‍पन्‍न कर रहा होता है तो इसका अर्थ है कि ये काफिया नहीं चल सकता है । किन्‍तु ये पूरी तरह से उर्दू के लिये है ।

तुम्‍हीं ने दर्द दिया है तुम्‍ही दवा देना :  जिसने भी काफिया दिया है वही सारे सवालों का उत्‍तर भी देगा और हासिले मुशायरे का चयन भी वही करेगा । तो इस बार डॉ आज़म का मिसरा है इसलिये अगली पोस्‍ट में उनके ही द्वारा इस मिसरे पर काफियों की जानकारी दी जाएगी । ये क्रम आगे भी चलेगा कि जो भी व्‍यक्ति मिसरा देगा वही बताएगा कि काफिये क्‍या होंगें और अन्‍य तकनीकी जानकारी क्‍या होगी । ( जिन्‍होंने इस बार का मिसरा नहीं दिया वे सोच रहे होंगें बच गये रे )

इस बार का मुशायरा होगा भी :  इस बार नववर्ष के प्रथम या द्वितीय रविवार को मुशायरे का बाकायदा सीहोर में आयोजन भी किया जाएगा । इसमें भोपाल और सीहोर के शायर काव्‍य पाठ करेंगें । आप सब भी सादर आमंत्रित हैं । प्रत्‍यक्ष न आ सकें तो नेट के माध्‍यम से काव्‍य पाठ करें ।

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

और ये रहा नये साल के तरही मुशायरे के लिये मिसरा 'न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए' बहरे मुतकारिब पर एक गैर मुरद्दफ मिसरा

पिछली बार का तरही मुशायरा काफी शानदार रहा है और उसके बाद से ही ग़ज़ल की कक्षाओं में कुछ सुस्‍ती आ गई है । किसी भी सफल आयोजन के बाद ऐसा होता ही है कि कुछ दिनों के लिये मन कुछ करने को नहीं होता है । ग़ज़ल की कक्षाओं में वैसे तो हम काफी कुछ काम करते ही रहते हैं लेकिन फिर भी कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि अप्रत्‍यक्ष की जगह पर प्रत्‍यक्ष रूप से कार्य करना चाहिये । वैसे तरही मुशायरा एक बहुत ही अच्‍छा तरीका होता है अपने आप को निखारने का । अलग अलग बहरों पर काम करते समय हम बहुत कुछ सीख जाते हैं उन बहरों के बारे में । दूसरा ये कि जब हम दूसरों को अच्‍छे शेर निकाल के लाते देखते हैं तो हमें भी लगता है कि उफ हम क्‍यों नहीं सोच पाये इस एंगल से । वैसे भी ग़ज़ल की कक्षाओं में हम हर बार एक नयी बहर पर काम कर रहे हैं और उस बहर की उप बहरों के बारे में भी जानने का प्रयास करते हैं । हम अब तक काफी बहरों पर काम कर चुके हैं तथा अभी भी काफी बहरें शेष हैं । मेरे विचार में तरही मुशायरे के माध्‍यम से बहरों के बारे में जानने का ये कार्य ज्‍यादा बेहतर है फिर भी आप सबके विचार आमंत्रित हैं कि आप क्‍या चाहते हैं । यदि आप चाहें तो तरही को बंद करके सीधे सीधे कक्षाओं के माध्‍यम से भी कार्य किया जा सकता है ।

खैर 2009 भी बीत रहा है और देहरी पर आकर खड़ा हो रहा है 2010 । साल बीतते रहते हैं और नये साल आते रहते हैं । ऐसा लगता है कि अभी तो आया था 2009 और इतनी जलदी बीत भी गया । दिसंबर के भी सात दिन बीत गये और अब केवल 23 दिन बाकी हैं वर्ष के समापन में । पृथ्‍वी ने अपना चक्र पूरा भी कर लिया और हमारे कई वे सारे काम जो हमने 2009 में करने के सोचे थे अभी अधूरे ही हैं । 2010 के स्‍वागत के लिये जनवरी के प्रथम दिन से ही तरही मुशायरे का आयोजन किया जायेगा । अनुरोध है कि अंतिम समय में भेजने की प्रतीक्षा न करें । दीपावली में भी ये ही हुआ कि कई लोगों ने तरही की अंतिम किश्‍त लगने के बाद भी ग़ज़लें भेजीं, जिनको शामिल करना फिर संभव नहीं था ।

इस बार के तरही के लिये बहर तो पूर्व में ही बताई जा चुकी थी । मेरी सबसे पसंदीदा बहर बहरे मुतक़ारिब । और उसमें भी मुसमन सालिम बहर । इसी बहर पर मिसरा बनाने का प्रयास कर रहा थ नये साल को लेकर । कुछ सूझ नहीं रहा था । तभी डॉ आज़म का आगमन हुआ और उनको समस्‍या बताई गई । कुछ देर की माथा पच्‍ची के बाद उन्‍होंने ही मिसरा बना दिया । न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए मिसरे को लेकर फिर दोनों ने विचार किया तो निर्णय लिया कि इसको ग़ैर मुरद्दफ ही जाने देते हें । अर्थात बिना रदीफ की ग़ज़ल जिसमें केवल काफिया है खिलाए । अर्थात आए  की ध्‍वनि पर ही काम करना है । ये बात बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिये कि यदि आपने मतले में मिलाए  और खिलाए  जैसा काम्बिनेशन ले लिया दोनों मिसरों में तो फिर आपका काफिया लाए  हो जाएगा ।

बहरे मुतक़ारिब मुसमन सालिम का वज़न 122-122-122-122 होता है जिसे हम फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन  या सामान्‍य भाषा में  ललाला-ललाला-ललाला-ललाला  कह सकते हैं । मुगले आज़म का गीत मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोए  त‍था  नमामी शमीशान निर्वाण रूपं तो हम सबके लिये परिचित हैं हीं । मुहब्‍बत ( ललाला) की झूठी ( ललाला) कहानी ( ललाला) पे रोए ( ललाला)

पहले सुनिये शिव रुद्राष्‍टक नमामी शमीशान निर्वाण रूपं श्री रमेश भाई ओझा जी की आवाज़ में

रविकांत ने इस पर कई उदाहरण छांट के भेजे हैं ये सब कुछ रविकांत के सौजन्‍य से हैं आपकी सुविधा के‍ लिये ताकि आपको बहर समझ में आ जाये । उदाहरणों के लिये धन्‍यवाद देना हो तो रवि को ही दें

१. तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं ,वफ़ा कर रहा हूं वफ़ा चाहता हूं २. तुम्ही मेरी मंदिर तुम्ही मेरी पूजा, तुम्ही देवता हो, तुम्ही देवता हो, ३. बहुत देर से दर पे आंखें लगी थीं, हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी, ४. तेरी याद दिल से भुलाने चला हूं, कि खुद अपनी हस्ती मिटाने चला हूं, ५. यूं ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना, तेरी याद तो बन गई इक बहाना, ६. चुरा ले न तुमको ये मौसम सुहाना, खुली वादियों में अकेली न जाना ,७. ये माना मेरी जां मुहब्बत सज़ा है, मज़ा इसमें इतना मगर किसलिये है, और इसी धुन पर ये भजन भी जो हिंदी प्रदेशों में अच्छा लोकप्रिय है- अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है, भटकते-भटकते न जाने कहां से, तुम्हारे महल के करीब आ गया है
यह छंद हिंदी में भी समादृत है, कुछ उदाहरण-
८. आचार्य शंकर का चर्चित श्लोक-
न पुण्य़ं न पापं न सौख्यं न दुःखं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदाः न यज्ञाः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता, चिदानंद रूपः शि्वोऽहं शिवोऽहं
९. शिवाष्टक, जो पंडित जसराज जी की आवाज में यहां उपलब्ध है-

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं, जगन्नाथ्नाथं सदानंदभाजं
भवत्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शंकरं शम्भुमीशानमीडे

और वेद सार शिव स्‍तोत्र सुनिये श्री रमेश भाई ओझा जी के स्‍वर में


१०. एक उदाहरण जो संभवतः बच्चन जी की कविता से है-
अकेला चला था अकेला चलूंगा, सफ़र के सहारों न दो साथ मेरा
सहज मिल सके वो नहीं लक्ष्य मेरा, बहुत दूर मेरी निशा का सवेरा
अगर थक गये हो तो तुम लौट जाओ, गगन के सितारों न दो साथ मेरा

तो होमवर्क दिया जा चुका है और अब काम प्रारंभ करने का समय है । उदाहरण इतने सारे दिये जा चुके हैं कि कुछ और बताने की आवश्‍यकता नहीं है । सब कुछ तैयार है । अब तो आपको जल्‍दी से अपनी अपनी रचनाएं तैयार करके भेजनी हैं । तो चलिये शुरू करिये होमवर्क ।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

फिर कुछ आनंद के पल जुड़े हैं, कल गौतम राजरिशी और संजीता की शादी की वर्षगांठ है, रविकांत पांडे के आंगन में गत रविवार को एक नन्‍हीं परी का आगमन हुआ, बधाई, बधाई

वीनस का मेल मिला है कि ग़ज़ल की कक्षाएं क्‍यों बंद हैं । मेरे विचार में ग़ज़ल की कक्षाएं अभी भी चल रही हैं और अभी जो चल रहा है वो अभ्‍यास कार्य चल रहा है । तरही के माध्‍यम से अभ्‍यास किया जा रहा है और उसी दौरान ही सीखा भी जा रहा है । चूंकि काफी कार्य हो चुका है बहरों को लेकर इसलिये अब अभ्‍यास करना जरूरी है । तरही के माध्‍यम से वहीं लिखते समय सीखने की एक प्रक्रिया होती है । ये जो प्रक्रिया होती है इसके द्वारा काफी कुछ सीखने को मिल जाता है । ग़लतियां पता चलती हैं और दूसरों ने क्‍या अच्‍छा किया ये जानने को मिलता है । इस बार फिर से जो नये साल का तरही होने को है उसमें एक बिल्‍कुल नयी बहर दी जायेगी । और तरही के दौरान ही उस बहर के बारे में काफी जानकारी दी जायेगी ।

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गौतम राजरिशी और संजीता  इन दोनों के विवाह की कल 28 नवंबर को वर्षगांठ है । ये तो मुझे मालूम है कि दोनों ने प्रेम विवाह किया है किन्‍तु बाकी की कथा मुझे नहीं मालूम । चूंकि अनुज है इसलिये मर्यादाओं के चलते पूछ भी नहीं सकता । संजीता से पिछले दिनों कई बार बात हुई । और ये ज्ञात हुआ कि गौतम बहुत सौभाग्‍यशाली है कि उसे एक बहुत ही समझदार और धैर्यवान जीवन साथी मिला है । गौतम के बारे में ये मैं जानता हूं कि उसे ये पता है कि रिश्‍तों का क्‍या अर्थ होता है । जीवन में जो भी रिश्‍तों का अर्थ समझ जाता है वो हर क्षण का आनंद लेता है । गौतम रिश्‍तों और वस्‍तुओं में अर्थ समझता है जानता है । ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं ।

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और नन्‍हीं तनया इस पूरक का फल है ।  गौतम और संजीता  इन दोनों को बहुत बहुत शुभकामनाएं इस गाने के माध्‍यम से 

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विकांत पाण्‍डे और बहूरानी  आनंदित हैं क्‍योंकि उनके घर एक नन्‍हीं परी का आगमन पिछले शनिवार अर्थात 21 नवंबर की रात्रि को हुआ है । रवि के लिये वर्ष 2009 सुखद रहा है क्‍योंकि इसी वर्ष विवाह हुआ और इसी वर्ष नन्‍हीं का आगमन भी हुआ है । समाचार ये है कि मां और बेटी दोनों ही स्‍वस्‍थ हैं तथा दोनों का घर आगमन हो चुका है । बधाइयां हो ढेर सारी । कंचन बुआ सबसे पास में हैं सो वे जाकर हम सबकी तरफ से बधाइयां प्रतयक्ष में देने का और नन्‍हीं परी को सबकी तरफ से आशीर्वाद देने का कार्य संभलें । ( बस ये डर है कि इन सबमें वो नन्‍हीं भी बुआ की तरह से बातूनी न हो जाए ) दोनों को बधाइयां इस गाने के माध्‍यम से ।

और अंत में ये कि दीपावली का तरही मुशायरा चूंकि एक आनंद का पर्व था सो उस मुशायरे में कोई हासिले मुशायरा छांटने का काम नहीं किया जा रहा है । सबने दीपावली को लेकर काम किया था और बहुत ही अच्‍छा किया था । अब जो तरही होना है वो होना है नये साल को लेकर । और उसके लिये बहर भी सोच ली है कि अभी तक मुतकारिब बहर पर बहुत काम नहीं हुआ हे सो इस बार का मिसरा बहरे मुतकारिब पर ही होगा । मिसरा बनाने का काम चल रहा है और नये साल के स्‍वागत पर ही कोई मिसरा बनाया जायेगा । बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम पर यदि आपके मन में कोई मिसरा स्‍वयं का बनाया हुआ हो तो भेजें । चूंकि हम स्‍थापित ग़ज़लों के मिसरे लेना बंद कर चुके हैं इसलिये अपने बनाये हुए मिसरे ही भेजें । बहरे मुतकारिब के बारे में आप जानते ही होंगें कि ये 122 या फऊलुन के स्‍थायी वाली बहर है । बहर का एक लोकप्रिय गीत मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोये  या नमामी शमीशान निर्वाण रूपं है । 122 के स्‍थायी वाली बहर है सो मुसमन सालिम में 122-122-122-122 का विन्‍यास होगा । तिस पर ये कि नये साल के आगमन या स्‍वागत की बात हो । पुराने साल के विदा की बात हो, जीवन की बात हो, दर्शन की बात हो । आपके भेजे हुए मिसरों में से ही एक मिसरे को तरही के लिये चयन किया जायेगा । उदाहरण के लिये मिसरा कुछ यूं हो सकता है नया साल द्वारे पे आकर खड़ा है ।

शनिवार, 21 नवंबर 2009

आज राकेश खंडेलवाल जी और आदरणीय मधु खंडेलवाल जी की शादी की वर्षगांठ है उन्‍हें बधाई । कल यानी 22 नवंबर को लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है उनको भी बहुत बहुत बधाइयां ।

नवंबर का महीना बहुत से आयोजनों का महीना होता है ।कल परी का जन्‍मदिन था । आज आदरणीय राकेश जी और मधु भाभी की शादी की वर्षगांठ है और कल लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है । सो मैंने बीच का दिन तय किया पोस्‍ट लगाने के लिये । परी का जन्‍म दिन कल मनाया गया । अंकित सफर इन दिनों भोपाल में है सो अंकित का आगमन भी हुआ । आगमन क्‍या हुआ परी ने बाकायदा डरा धमका कर उसे सीहोर बुला लिया । परी और पंखुरी इन दोनों की भारी दादागिरी चलती है । नीरज जी जिस प्रकार की ग़ज़लें कभी कभी लिखते हैं न मुम्‍बइया टाइप की उस टाइप की दादागिरी चलती है । तो परी ने बाकायदा डरा कर अंकित को अपने जन्‍मदिन पर बुलाया । तो देखिये उसी अवसर के चित्र ।

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राकेश खंडेलवाल जी और आदरणीय मधु खंडेलवाल जी की शादी की वर्षगांठ है आज ।

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आदरणीय राकेश जी और मधु भाभी जी, राकेश जी बिटिया डॉ आकांक्षा खंडेलवाल के साथ

मैं उनको गीतों का सम्राट कह कर बुलाता हूं । मुझे लगता है कि आदरणीय राकेश जी एक पूरी परंपरा को लेकर चल रहे हैं अपने गीतों में । वो परंपरा जो माधुर्य की है । वो परंपरा जो कोमल शब्‍दों की है । वो परंपरा जो भारतीय गीतों की है । राकेश जी के गीत हर बार एक नया रूप लेकर आते हैं । मैं उनका बड़ा फैन हूं । आज उनकी विवाह  की वर्ष गांठ है । आदरणीय मधु भाभी जी और राकेश जी को ग़ज़ल की पूरी पाठशाला के तरफ से बहुत बहुत बधाइयां हों । दूसरे चित्र में आदरणीय राकेश जी की बिटिया डॉ आकांक्षा खंडेलवाल दिखाई दे रही हैं । राकेश जी को जितना जाना है उससे ये तो कह ही सकता हूं कि राकेश जी एक बहुत ही संवेदनशील इन्‍सान हैं । वे रिश्‍तों को निभाना बहुत खूब जानते हैं । जब भी मेरे ब्‍लाग पर कभी दस पन्‍द्रह दिन कोई पोस्‍ट नहीं लगती है जो सबसे पहला फोन उनका ही आता है ' पंकज जी स्‍वास्‍थ्‍य ठीक है ' । वे गीतों के मामले में मेरे आदर्श हैं । उनके जैसा लिखना हर किसी का स्‍वप्‍न होता है । एक बार फिर ढेरों शुभकामनाएं ।

कल लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है

22 नवंबर

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कल यानि 22 नवंबर को मेरी एक बड़ी बहन आदरणीय लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है । आदरणीय दीदी साहब के संस्‍मरण जादू जगाने का काम करते हैं । उनके ब्‍लाग पर उनके लिखे हुए संस्‍मरण पढ़ने आता हूं और बस उन्‍हीं में उलझ कर रह जाता हूं । मैने उनसे हमेशा ही अनुरोध किया है कि वे संस्‍मरणों की एक पुस्‍तक अवश्‍य लिखें । डोंगरी कवियित्री आदरणीय पद्मा सचदेव जी और लावण्‍य दीदी साहब इन दोंनों के संस्‍मरण लेखन की कला अद्भुत है । दीदी साहब बहुत अच्‍छी कवियित्री भी हैं । आपकी कविताओं में भारतीय स्‍वर हमेशा विद्यमान होते हैं । मुझे लावण्‍य दीदी साहब से हमेशा ही ढेर सा स्‍नेह मिला है । कल उनका जन्‍मदिन है सो पूरी ग़ज़ल की पाठशाला की तरफ से उनको ढेर सारी शुभकामनाएं ।

ग़ज़ल की कक्षाएं कुछ रुकी हैं क्‍योंकि इन दिनों प्रकाशन की पांच पुस्‍तकों पर एक साथ काम चल रहा है । फिर भी जल्‍द ही आगे का काम प्रारंभ होगा । और हां नये साल का तरही मुशायरा भी प्रारंभ होना है । उसके लिये मिसरा भी दिया जाना है । तो आज तो आप सब दीजिये राकेश जी और मधु भाभी को शुभकामनांए । और कल आदरणीय दीदी साहब से केक खाने को तैयार रहिये । और चलते चलते देखिये परी पंखुरी का स्‍कूल के वार्षिक उतसव में किया गया नृत्‍य का चित्र ।

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शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

"वक्त की पाठशाला में एक साधक"-श्री समीर लाल ’समीर' , बिखरे मोती की समीक्षा सुप्रसिद्ध शायरा आदरणीया देवी नागरानी जी की क़लम से । पंकज सुबीर

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श्री समीर लाल समीर काव्‍य संग्रह बिखरे मोती समीक्षक देवी नागरानी जी

कलम आम इन्सान की ख़ामोशियों की ज़ुबान बन गई है. कविता लिखना एक स्वभाविक क्रिया है, शायद इसलिये कि हर इन्सान में कहीं न कहीं एक कवि, एक कलाकार, एक चित्रकार और शिल्पकार छुपा हुआ होता है. ऐसे ही रचनात्मक संभावनाओं में जब एक कवि की निशब्द सोच शब्दों का पैरहन पहन कर थिरकती है तो शब्द बोल उठते हैं. यह अहसास हू-ब-हू पाया, जब श्री समीर लाल की रचनात्मक अनुभूति ’बिखरे मोती’ से रुबरु हुई. उनकी बानगी में ज़िन्दगी के हर अनछुए पहलू को कलम की रवानगी में खूब पेश किया है-

हाथ में लेकर कलम, मैं हाले-दिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता, आप ही बहता गया.

यह संदेश उनकी पुस्तक के आखिरी पन्ने पर कलमबद्ध है. ज़िन्दगी की किताब को उधेड़ कर बुनने का उनका आगाज़ भी पाठनीय है-

मेरी छत न जाने कहाँ गई
छांव पाने को मन मचलता है!

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( श्री समीर लाल  को शिवना सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान करते श्री राकेश खंडेलवाल तथा श्री अनूप भार्गव )

इन्सान का दिल भी अजब गहरा सागर है, जहाँ हर लहर मन के तट पर टकराकर बीते हुए हर पल की आहट सुना जाती है. हर तह के नीचे अंगड़ाइयां लेती हुई पीड़ा को शब्द स्पष्ट रुप में ज़ाहिर कर रहे हैं, जिनमें समोहित है उस छत के नीचे गुजारे बचपन के दिन, वो खुशी के खिलखिलाते पल, वो रुठना, वो मनाना. साथ साथ गुजरे वो क्षण यादों में साए बनकर साथ पनपते हैं. कहाँ इतना आसान होता है निकल पाना उस वादी से, उस अनकही तड़प से, जिनको समीर जी शब्द में बांधते हुए ’मां’ नामक रचना में वो कहते हैं:

वो तेरा मुझको अपनी बाहों मे भरना
माथे पे चुम्बन का टीका वो जड़ना..

जिन्दगी में कई यादें आती है. कई यादें मन के आइने में धुंधली पड़कर मिट जाती हैं, पर एक जननी से यह अलौकिक नाता जो ममता कें आंचल की छांव तले बीता, हर तपती राह पर उस शीतलता के अहसास को दिल ढूंढता रहता है. उसी अहसास की अंगड़ाइयों का दर्द समीर जी के रचनाओं का ज़ामिन बना है-

जिन्दगी, जो रंग मिले/ हर रंग से भरता गया,
वक्त की है पाठशाला/ पाठ सब पढ़ता गया...

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पुस्‍तक का अमेरिका में विमोचन

इस पुस्तक में अपने अभिमत में हर दिल अज़ीज श्री पंकज सुबीर की पारखी नज़र इन सारगर्भित रचनाओं के गर्भ से एक पोशीदा सच को सामने लाने में सफल हुई है. उनके शब्दों में ’पीर के पर्वत की हंसी के बादलों से ढंकने की एक कोशिश है और कभी कभी हवा जब इन बादलों को इधर उधर करती है तो साफ नज़र आता है पर्वत’. माना हुआ सत्य है, ज़िन्दगी कोई फूलों की सेज तो नहीं, अहसासों का गुलदस्ता है जिसमें शामिल है धूप-छांव, गम-खुशी और उतार-चढ़ाव की ढलानें. ज़िन्दगी के इसी झूले में झूलते हुए समीर जी का सफ़र कनाडा के टोरंटो, अमरीका से लेकर हिन्दोस्तान के अपने उस घर के आंगन से लेकर हर दिल को टटोलता हुआ वो उस गांव की नुक्कड़ पर फिर यादों के झरोखे से सजीव चित्रकारी पेश कर रहा है अपनी यादगार रचना में ’मीर की गजल सा’-

सुना है वो पेड़ कट गया है/ उसी शाम माई नहीं रही
अब वहां पेड़ की जगह मॉल बनेगा/ और सड़क पार माई की कोठरी
अब सुलभ शौचालय कहलाती है,
मेरा बचपन खत्म हुआ!
कुछ बूढ़ा सा लग रहा हूँ मैं!!
मीर की गज़ल सा...!

दर्द की दहलीज़ पर आकर मन थम सा जाता है. इन रचनाओं के अन्दर के मर्म से कौन अनजान है? वही राह है, वही पथिक और आगे इन्तजार करती मंजिल भी वही-जानी सी, पहचानी सी, जिस पर सफ़र करते हुए समीर जी एक साधना के बहाव में पुरअसर शब्दावली में सुनिये क्या कह रहे हैं-

गिनता जाता हूँ मैं अपनी/ आती जाती इन सांसों को
नहीं भूल पाता हूँ फिर भी/ प्यार भरी उन बातों को
लिखता हूँ बस अब लिखने को/ लिखने जैसी बात नहीं है.

अनगिनत इन्द्रधनुषी पहुलुओं से हमें रुबरु कराते हुए हमें हर मोड़ पर वो रिश्तों की जकड़न, हालात की घुटन, मन की वेदना और तन की कैद में एक छटपटाहट का संकेत भी दे रहे हैं जो रिहाई के लिये मुंतजिर है. मानव मन की संवेदनशीलता, कोमलता और भावनात्मक उदगारों की कथा-व्यथा का एक नया आयाम प्रेषित करते हैं- ’मेरा वजूद’ और ’मौत’ नामक रचनाओं में:

मेरा वजूद एक सूखा दरख़्त / तू मेरा सहारा न ले
मेरे नसीब में तो / एक दिन गिर जाना है
मगर मैं/ तुम्हें गिरते नहीं देख सकता, प्रिये!!

एक अदभुत शैली मन में तरंगे पैदा करती हुई अपने ही शोर में फिर ’मौत’  की आहट से जाग उठती है-

उस रात नींद में धीमे से आकर/ थामा जो उसने मेरा हाथ...
और हुआ एक अदभुत अहसास/ पहली बार नींद से जागने का...

माना ज़िन्दगी हमें जिस तरह जी पाती है वैसे हम उसे नहीं जी पाते हैं, पर समीर जी के मन का परिंदा अपनी बेबाक उड़ान से जोश का रंग, देखिये किस कदर सरलता से भरता चला जा रहा है. उनकी रचना ’वियोगी सोच’ की निशब्दता कितने सरल शब्दों की बुनावट में पेश हुई है-

पूर्णिमा की चांदनी जो छत पर चढ़ रही होगी..
खत मेरी ही यादों के तब पढ़ रही होगी...

हकीकत में ये ’बिखरे मोती’ हमारे बचपन से अब तक की जी हुई जिन्दगी के अनमोम लम्हात है, जिनको सफल प्रयासों से समीर जी ने एक वजूद प्रदान किया है. ब्लॉग की दुनिया के सम्राट समीर लाल ने गद्य और पद्य पर अपनी कलम आज़माई है. अपने हृदय के मनोभावों को, उनकी जटिलताओं को सरलता से अपने गीतों, मुक्त कविता, मुक्तक, क्षणिकाओं और ग़ज़ल स्वरुप पेश किया है. मन के मंथन के उपरांत, वस्तु व शिल्प के अनोखे अक्स!!

उनकी गज़ल का मक्ता परिपक्वता में कुछ कह गया-

शब्द मोती से पिरोकर, गीत गढ़ता रह गया
पी मिलन की आस लेकर, रात जगता रह गया.

वक्त की पाठशाला के शागिर्द ’समीर’ की इबारत, पुख़्तगी से रखा गया यह पहला क़दम...आगे और आगे बढ़ता हुआ साहित्य के विस्तार में अपनी पहचान पा लेगा इसी विश्वास और शुभकामना के साथ....

शब्द मोती के पिरोकर, गीत तुमने जो गढ़ा
मुग्ध हो कर मन मेरा ’देवी’ उसे पढ़ने लगा

तुम कलम के हो सिपाही, जाना जब मोती चुने
ऐ समीर! इनमें मिलेगी दाद बनकर हर दुआ..

देवी नागरानी
न्यू जर्सी, dnangrani@gmail.com

॰॰
कृति: बिखरे मोती, लेखक: समीर लाल ’समीर’, पृष्ठ : १०४, मूल्य: रु २००/ ,
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, पी.सी. लेब, सम्राट कॉम्पलैक्स बेसमेन्ट, बस स्टैंड के सामने, सिहोर, म.प्र. ४६६ ००१

शिवना प्रकाशन की आगामी पुस्‍तकें : विरह के रंग- सीमा गुप्‍ता, चांद पर चांदनी नहीं होती- संजय चतुर्वेदी, खुश्‍बू टहलती रही- मोनिका हठीला, अनाम- दीपक मशाल

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

शिवना प्रकाशन सीहोर द्वारा युवा शायर अंकित सफर तथा कवियित्री मोनिका हठीला के सम्‍मान में काव्य गोष्ठी आयोजित, पढि़ये कार्यक्रम की एक चित्रमय रपट -पंकज सुबीर

दीपावली का त्‍यौहार बीत गया और एक वर्ष के बीत जाने के संकेत मिल रहे हैं । दीपावली का तरही मुशायरा बहुत अच्‍छा हुआ है तथा श्रोताओं ने खूब आनंद लिया । दादा भाई आदरणीय महावीर जी का आदेश था कि अज्ञात को सामने आना चाहिये सो उस आदेश का पालन कर रहा हूं । वैसे तो आप सब ने ही पता लगा लिया था कि वो अज्ञात कौन है लेकिन फिर भी केवल स्‍वीकृति कि वो अज्ञात आपका ये मित्र ही था।

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अंकित सफर का सीहोर आगमन हुआ, मैं समझता था कि जो लोग फोटो में सुंदर दिखते हैं वे  वास्‍तव में सुंदर नहीं होते, अंकित ने ये धारणा तोड़ी । अंकित सफर और मोनिका हठीला के सम्‍मान में एक गोष्‍ठी का आयोजन किया गया जिसकी रपट नीचे संलगन है । इसी बीच ज्ञात हुआ है कि परम आदरणीय श्री रवीन्‍द्र कालिया जी को आधारशिला में प्रकाशित  महुआ घटवारिन कहानी इतनी पसंद आई कि उन्‍होंने हंस में प्रकाशित श्री भारत भारद्वाज जी के आलेख के साथ उसे नया ज्ञानोदय के नवंबर अंक में प्रकाशित किया है । इस प्रकार ज्ञानोदय के लगातार दो अंकों अक्‍टूबर ( क्‍या होता है प्रेम ) तथा नवंबर ( महुआ घटवारिन ) में आपके इस मित्र को प्रकाशित होने का अवसर मिला है । और ये भी कम होता है कि किसी पत्रिका में प्रकाशित एक कहानी का पुनर्पाठ इतनी जल्‍दी किसी प्रतिष्ठित पत्रिका ने किया हो तथा अन्‍य पत्रिका में प्रकाशित समीक्षा को भी प्रकाशित किया है । नैनीताल में आयोजित समकालीन कहानी के कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध आलोचक श्रीमती साधना अग्रवाल जी ने इसी कहानी पर अपना लम्‍बा आलेख पढ़ा तथा उस पर काफी चर्चा भी हुई ।  ये सब आपकी दुआएं हैं शुभकामनाएं हैं आप सबका आभार । और अब पढि़ये रपट । ( विशेष बात ये है कि तीन शायरों ने दीपावली के तरही की ग़ज़लों का पाठ किया जिनमें अज्ञात शायर भी शामिल था । )

साहित्यिक संस्था शिवना द्वारा दीपावली मिलन समारोह का आयोजन कर एक काव्य गोष्ठी आयोजित की गई । काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता सृजन साहित्य परिषद के अध्यक्ष श्री बृजेश शर्मा ने की । आयोजन में स्थानीय तथा बाहर से पधारे अतिथि कवियों द्वारा काव्य पाठ किया गया ।

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स्थानीय पीसी लैब पर आयोजित कार्यक्रम में सर्वप्रथम अध्यक्ष द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रावलित करके मां सरस्वती का पूजन अर्चन किया गया । सुप्रसिध्द कवियित्री मोनिका हठीला ने मां सरस्वती की वंदना प्यार दे दुलार दे का सस्वर पाठ किया । युवा कवि तथा नई विधा के हस्ताक्षर लक्ष्मण सिंह चौकसे ने अपनी छंद मुक्त विधा की कुछ कविताओं का पाठ किया ।

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वरिष्ठ कवि हरिओम शर्मा दाऊ ने पल पल अपलक निहारा करेंगें सहित कई गीत प्रस्तुत किये जिनको श्रोताओं ने खूब सराहा । युवा व्यंग्य कार जोरावर सिंह ने राजनीति पर कटाक्ष करते हुए अपनी रचना सात पीढ़ियों का इंतजाम कर लीजिये पढ़ कर दाद बटोरी । पत्रकार शैलेष तिवारी ने अपनी व्यंग्य रचना कल्लू तांगे वाला के माध्यम से यातायात पुलिस की व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया ।

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सुमधुर गीतकार रमेश हठीला ने कई छंद  तथा गीत पढ़े । केश यमुना की लहर रूप तेरा ताजमहल बनाने वाले ने ली तुझसे अजंता की शकल जैसे  सुप्रसिध्द गीतों को उन्होंने सस्वर प्रस्तुत किया ।

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युवा शायर डॉ. मोहम्म्द आज़म ने अपनी ग़ज़ल हम हथेली पर सरसों जमाते रहे साथ यूं जिंदगी का निभाते रहे  के शेरों को अत्यंत प्रभावशाली अंदाज में प्रस्तुत किया जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा ।

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पंकज सुबीर ( अज्ञात ) ने अपनी ग़ज़ल धर्मधारी युधिष्ठिर हर इक दौर में दांव पर द्रोपदी को लगाते रहे सहित अपना गीत भारत कहानी पढ़ा ।

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मुंबई से पधारे युवा शायर अंकित सफर ने अपनी कई सारी ग़ज़लें पढ़ कर समां बांध दिया । उनकी ग़ज़लों कुछ न कुछ मैं सीखता हूं अपनी हर इक हार से, हजारों ढूंढती नजरें कहां आखिर नजर वो इक को श्रोताओं ने खूब पसंद किया ।

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भुज से पधारी कवियित्री मोनिका हठीला ने अपने कई मुक्तक तथा कई गीत पढ़े । यहां हर शख्स हरजाई नमक लेकर के बैठा है हरे जख्मों को भूले से किसी को मत दिखाना तुम जैसे शेरों को पसंद किया गया ।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सृजन साहित्य परिषद के अध्यक्ष तथा व्यंग्यकार बृजेश शर्मा ने भी अपनी ग़ज़लों का पाठ किया । श्री शर्मा ने श्रोताओं के अनुरोध पर अपनी छंदमुक्त व्यंग्य रचनाओं का भी पाठ किया । उनकी जीवन दर्शन पर प्रस्तुत ग़ज़लों को श्रोताओं ने विशेष रूप से सराहा । अंत में आभार शिवना के सुरेंद्र सिंह ठाकुर ने व्यक्त किया ।

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कार्यक्रम में धर्मेंद्र कौशल, अब्दुल कादिर, सनी गोस्वामी, सुधीर मालवीय सहित अन्य श्रोता गण उपस्थित थे ।

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ग़ज़ल की कक्षा में अंकित की भौतिक उपस्थिति

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

और तरही मुशायरे के अंत में सुनिये एक स्‍थापित शायरा लता हया जी को, दीपक मशाल को तथा एक अज्ञात शायर को जिन्‍होंने ग़ज़ल तो भेजी किन्‍तु कोई नाम या परिचय नहीं भेजा ।

इस बार का तरही मुशायरा इस मामले में सफल कहा जा सकता है कि इस बार कई दिग्‍गज लोगों ने स्‍वयं आकर अपना आशिर्वाद दिया । कुछ ग़ज़लें देर से प्राप्‍त हुईं इसलिये दीपावली के पहले उपयोग में नहीं आ सकीं । सो वो ग़ज़लें अब लगाई जा रहीं हैं । एक शायर ने अपना नाम नहीं भेजा तथा उनकी ग़ज़ल के साथ कोई परिचय नहीं था इसलिये उसे यूं ही लगाया जा रहा है । उनके मेल पर कई मेल किये किन्‍तु कोई जवाब नहीं मिला सो अब अज्ञात नाम से ही ये ग़ज़ल लगाई जा रही है । यदि आप को पता हो कि ये ग़ज़ल किसकी है तो बताने का कष्‍ट करें ताकि उनका नाम लगाया जा सके ।

दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें

लता हया जी का नाम कोई परिचय का मोहताज नहीं है। वे एक स्‍थापित शायरा हैं तथा मंचों पर अपनी शालीनता तथा गरिमा के कारण पहचानी जाती हैं । वे उन कुछ कवियित्रिओं में से हैं जिन्‍होंने आज भी मंच पर कवियित्रियों की गरिमा को बचा रखा है । आइये तरही के समापन में पहले उनकी ही एक सुंदर ग़ज़ल का आनंद लें ।

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लता हया जी

जब अँधेरे अना में नहाते रहे

दीप जलते रहे ,झिलमिलाते रहे

रात लैला की तरह हो गर बावरी

बन के मजनूं ये जुगनू भी आते रहे

रुह रौशन करो तो कोई बात हो

कब तलक सिर्फ चेहरे लुभाते रहे ?

इक पिघलती हुई शम्म कहने लगी

उम्र के चार दिन जगमगाते रहे

फ़िक्र की गोपियाँ रक्स करती रहीं

गीत बन श्याम बंसी बजाते रहे

कोई बच्चों के हाथों में बम दे चले

वो पटाखा  समझ खिलखिलाते रहे

दूध ,घी ,नोट ,मावा के दिल हो "हया".

अब तो हर शै मिलावट ही पाते रहे

नोट;;लैल रात को कहते हैं और रात काली होती है ;लैला का नाम इसीलिए लैला हुआ के वो काली थी

अना –घमंड  रक्स –नृत्य

दीपक मशाल

दीपक मशाल की ये तरही में पहली प्रस्‍तुति है और चूंकि इनकी भी प्रस्‍तुति कुछ बिलम्‍ब से मिली इसलिये दीपावली के मुशायरे में नहीं लग पाई अब लग रही है ।

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दीप जलते रहे, झिलमिलाते रहे,
लोग मिलते रहे मुस्कुराते रहे.
चाँद आया नहीं आसमां में तो क्या,
तारे धरती के ही टिमटिमाते रहे.

भूखे बच्चे कई पेट खाली लिए,
नींद में रात भर कुलबुलाते रहे.

जो भी मदहोश थे वो तो सम्हले रहे,
होश वाले मगर डगमगाते रहे.
कुछ पलों को जो ख्वाबों से कुट्टी हुई,
भूली यादों को बस गुनगुनाते रहे.
आज रिश्ते 'मशाल' उनसे टूटे सभी,
खून जिनके लिए तुम जलाते रहे.

अज्ञात शायर

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परिचय इसलिये नहीं दे सकता कि जिसका नाम ही नहीं पता हो उसका क्‍या परिचय हो भला । किन्‍तु बस ये कि दीपावली के तरही मुशायरे का इस अज्ञात शायर के साथ विधिवत समापन हो रहा है । चूंकि अब समापन हो रहा है इसलिये अब इस मिसरे पर कोई ग़ज़ल न भेजें । अगले तरही का मिसरा शीघ्र ही दिया जायेगा । तब तक सुनिये अज्ञात को । अज्ञात भी कोई विशुद्ध फुरसतिया प्राणी है जो थोक में एक सौ पचहत्‍तर शेर भेज कर नाम तक नहीं बता रहा है । खैर आप झेलिये अज्ञात को और मुझे आज्ञा दीजिये ।

सर झुकाते रहे, मुंह छुपाते रहे
कनखियों से नज़र भी मिलाते रहे

झूठे वादों से हमको लुभाते रहे
तीन रंगों का बाजा बजाते रहे

रात भर इक समंदर उमड़ता रहा
रात भर हम नदी बन समाते रहे

ठेकेदारी मिली रोशनी की उन्‍हें
जो चराग़ों को कल तक बुझाते रहे

जैसे भेड़ों के रेवड़ को हांके कोई
रहनुमा मुल्‍क को यूं चलाते रहे

उर्मिला का विरह किसने देखा भला
लोग सीता का गुणगान गाते रहे

मौत बच्‍चों की होती रही भूख से
देवता दूध घी से नहाते रहे

हो गई रक्‍त रंजित थी वर्दी हरी ( मेजर गौतम के लिये )
मौत से फिर भी पंजा लड़ाते रहे

कर भी सकते थे गांधी भला और क्‍या
छप के नोटों पे बस मुस्‍कुराते रहे

धर्मधारी युधिष्ठिर हर इक दौर में
दांव पर द्रोपदी को लगाते रहे

सांवला सा सलोना सा बादल था इक
वो बरसता रहा, हम नहाते रहे

जिस दिशा में थे बस दोस्‍तों के ही घर
सारे पत्‍थर वहीं से ही आते रहे

कोई काबा गया, कोई काशी गया
मां के चरणों में हम सर झुकाते रहे 

आंधियों की चुनौती को स्‍वीकार कर
दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे

 

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

दादा भाई महावीर शर्मा जी, प्राण शर्मा भाई साहब, राकेश खण्‍डेलवाल भाई साहब, नीरज गोस्‍वामी भैया और लावण्‍य शाह दीदी साहब, सुधा ढींगरा दीदी, निर्मला कपिला दीदी, शार्दूला नोगजा दीदी, की रचनाएं, इससे बेहतर दीपावली और क्‍या हो सकती है भला ।

सबको दीपावली के इस पावन पर्व पर शुभकामनाएं

आज दीपावली के दिन मेरी चार अग्रजाओं तथा चार अग्रजों की रचनाएं, इससे बेहतर दीपावली और क्‍या हो सकती है । वैसे पहले मैं दो पोस्‍ट में इन आठों को लगाना चाहता था लेकिन मलेरिया के वार ने और तेज बुखार ने उसकी अनुमति नहीं दी, सो एक ही पोस्‍ट में लगा रहा हूं । ( इनमें से दो रचनाएं कानूनी नोटिस भेज कर निकलवाई गईं हैं । ) तेज बुखार है अत: कोई गलती हो तो पूर्व में ही क्षमा । आज की पोस्‍ट में कई रंग हैं ग़ज़ल हैं, गीत हैं, मुक्‍तक हैं और मुक्‍त काव्‍य भी है ।

deepawalideepawalideepawali deepawali दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें deepawalideepawalideepawalideepawali

dada bhai

श्री महावीर शर्मा जी 'दादा भाई'

हर दिशा में अँधेरे मिटाते रहें

दीपमाला से धरती सजाते रहें

गर किसी झोंपड़ी में अँधेरा मिले

प्रेम का दीप उसमें जलाते रहें

भूल जाएँ गिले हम सभी आज दिन

बस दिलों से दिलों को मिलाते रहें

ईद हो या दिवाली जहां में कहीं

सब गले मिलके उत्सव मनाते रहें.

आज दीपावली का ये सन्देश है

प्यार की जोत दिल में जगाते रहें.

दीपमाला पहन कर सजी है धरा 

दीप जलते रहे झिलमिलाते रहें 

बस 'महावीर' की तो यही है दुआ

प्यार का हम ख़ज़ाना लुटाते रहें.

lavnya di

लावण्‍य दीदी साहब

मोरे  आँगन में आई दीवाली की रात

मन में उमंगों  के रंग , मुस्कुराने लगे हैं,

रहेंगें ~ रहेंगें , सदा , मुस्कुराते

है दीवाली की रात, बिछी रंगोली की बिछात,

जश्न की रात  में ,रंग , जगमगाने  लगे हैं

रहेंगें ~ रहेंगें, सदा जगमगाते

स्याह आसमान पर, चांदनी तो नहीं,

दीप भूमि पर सैंकडों, झिलमिलाने  लगे हैं

रहेंगें ~ रहेंगें, सदा झिलमिलाते

बजे आरती की धुन,  दीप धुप से भवन

पाकर  लक्ष्मी का वर , हरषाने  लगे हैं

रहेंगें ~ रहेंगें,   हर्षाते रहेंगें

किये  निछावर ये मन प्राण और तन

दिया ~ बाती बन , सजन , सुख पाने लगे हैं

रहेंगें ~ रहेंगें, हम , सदा सुख पाते

आस का दीप है, आस्था  धृत से जला

भाव गीत बन मेरे गुनगुनाने लगे हैं

रहेंगें ~ रहेंगें, हाँ सदा गुनगुनाते

pran_sharma

आदरणीय प्राण शर्मा भाई साहब

रोशनी हर तरफ ही लुटाते रहें

लौ से अपनी सभीको लुभाते रहें

हर किसी की तमन्ना है अब साथियो

दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें

deepawali

दीप जलते रहें और जलाते रहें

धज्जियाँ हम तिमिर की उडाते रहें

आज दीवाली का भव्य त्यौहार है

भव्य बनकर सभी को सुहाते रहें

सब के चेहरों पे मुस्कान की है छटा

मन करे,हम भी यूँ मुस्कराते रहें

यूँ ही दिल में रहें प्यार के वलवले

जश्न नजदीकियों के मनाते रहें

प्यार जैसा निभा है खुशी से भरा

साथ ऐसा सदा हम निभाते रहें

एक दिन के लिए घर सजाया तो क्या

बात तब है कि घर नित सजाते रहें

यादगार आज की रात हो साथियो

कंठ लगते रहें और लगाते रहें

रोज़ ही " प्राण" दीवाली की रात हो

रोज़ ही हम पटाखें चलाते रहें

Sudha_Om_Dhingra

आदरणीय सुधा दीदी

आतंक से पीड़ित मानवता
सूखे से भूखा किसान,
धर्म के नाम पर कटता मनुष्य
राजनीति की बलि चढ़ता युवा.
विश्व में झगड़ते देश और
मिटता निरीह मानव,
अहम् संतुष्ट करते नेता
और जान लुटाते सैनिक,
कुलों के बुझते दीए
और बिलखते परिवारजन.
इंतज़ार करती आँखें,
पुकारती आँखें,
आशा की जोत जलाए आँखें,
क्रांति पुरुष को खोजती आँखें
जो आए और
मनुष्यता का तेल,
शांति की बाती डाल,
इंसानियत,
प्रेम से भरपूर
सुरक्षा के दीप जलाए,
वे दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें.

Rakesh ji

श्रद्धेय राकेश भाई साहब

दीप दीवली के जलें इस बरस

यूँ जलें फिर न आकर अँधेरा घिरे

बूटियाँ बन टँगें रात की ओढ़नी

चाँद बन कर सदा जगमगाते रहें

तीलियाँ हाथ में आ मशालें बनें

औ तिमिर पाप का क्षीण होने लगे

होंठ पर शब्द जयघोष बन कर रहें

और ब्रह्मांड सातों गुँजाते रहें

दांव तो खेलती है अमावस सदा

राहु के केतु के साथ षड़यंत्र कर

और अदॄश्य से श्याम विवरों तले

है अँधेरा घना भर रही सींच कर

द्दॄष्टि के क्षेत्र से अपनी नजरें चुरा

करती घुसपैठ है दोपहर की गली

बाँध कर पट्टियां अपने नयनों खड़ी

सूर समझे सभी को हुई मनचली

उस अमावस की रग रग में नूतन दिया

इस दिवाली में आओ जला कर धरें

रश्मियां जिसकी रंग इसको पूनम करें

पांव से सर सभी झिलमिलाते रहें

रेख सीमाओं की युग रहा खींचता

आज की ये नहीं कुछ नई बात है

और सीमायें, सीमाओं से बढ़ गईं

जानते हैं सभी, सबको आभास है

ये कुहासों में लिपट हुए दायरे

जाति के धर्म के देश के काल के

एक गहरा कलुष बन लगे हैं हुए

सभ्यता के चमकते हुए भाल पे

ज्योति की कूचियों से कुहासा मिटा

तोड़ दें बन्द यूँ सारे रेखाओं के

पीढ़ियों के सपन आँख में आँज कर

होम्ठ नव गीत बस गुनगुनाते रहें

भोजपत्रों पे लिक्खी हुई संस्कॄति

का नहीं मोल कौड़ी बराबर रहा

लोभ लिप्सा लिये स्वार्थ हो दैत्य सा

ज़िन्दगी भोर से सांझ तक डँस रहा

कामना न ले पाई सन्यास है

लालसा और ज्यादा बढ़ी जा रही

देव के होम की शुभ्र अँगनाई में

बस अराजकता होकर खड़ी गा रही

आओ नवदीप की ज्योति की चेतना

का लिये खड्ग इनका हनन हम करें

और बौरायें अमराईयाँ फिर नई

सावनी हो मरुत सरसराते रहें

Nirmla Kapila

आदरणीय निर्मला दी

फूल यूँ ही सदा खिलखिलाते रहें
बाग ये इस तरह लहलहाते रहें

इस ज़ुबां पे रहे तू गज़ल की तरह
हम हमेशा इसे गुनगुनाते रहें

राह जितनी कठिन क्यों न हो यूँ चलें
होंठ अपने सदा मुस्कुराते रहें
प्यार से बैठ कर यूँ निहारो हमे
मौज़ आती रहे हम नहाते रहें

कुछ शेर रहे रदीफ पर
याद उस की हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते रहे
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे
वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे

शाख से टूट कर हम जमीं पे गिरे
लोग आते रहे रोंद जाते रहे
जब चली तोप सीना तना ही रह (ये गौतम राज रिशी जी के लिये है)
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे

   neeraj ji

आदरणीय नीरज भैया

दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें

तम सभी के दिलों से मिटाते रहें

हर अमावस दिवाली लगे आप जब 

पास बैठे रहें, मुस्कुराते रहें

प्यार बासी हमारा न होगा अगर

हम बुलाते रहें, वो लजाते रहें

बात सच्ची कही तो लगेगी बुरी

झूठ ये सोच कर क्यूँ सुनाते रहें

दर्द में बिलबिलाना तो आसान है

लुल्फ़ है, दर्द में खिलखिलाते रहें

भूलने की सभी को है आदत यहाँ

कर भलाई उसे मत गिनाते रहें

सच कहूँ तो सफल वो ग़ज़ल है जिसे

लोग गाते रहें, गुनगुनाते रहें

हैं पुराने भी ‘नीरज’ बहुत कारगर

पर तरीके नये आज़माते रहें

   Shardula_saree_Aug09

शार्दूला दीदी

प्रीत के खेत में नेह की बालियाँ

ज्योति पूरित फसल नित उगाते रहें

वर्तिका बोध देती रहे हर निशा
दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें

बालपन की गली निष्कपट चुलबुली

बन सरल बारिशों में नहाते रहें

भाव से शून्य हो जो विलग हो गए

खोल उनको भुजाएं बुलाते रहें

मानती हूँ सहज भाष्य, करना जटिल

जोड़ आंगुर कड़ी पर बढ़ाते रहें

और माँगें दुआ विश्व भर के लिए

दीप का पर्व  यूँ ही मनाते रहें !

सभी को दीपावली की शुभकामनाएं । आनंद लीजिये इन आठ श्रेष्‍ठ रचनाकारों का और दीपावली के दीपों का एहसास कीजिये ।

 

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