गुरुवार, 6 नवंबर 2008

केंकड़ों की कहानी ब्‍लाग जगत पर भी, चुनावों को मौसम और तरही मुशायरा होना तय

लग रहा होगा न कि मैं आजकल ग़ज़ल सिखाना छोड़ कर फालतू के काम में लगा हूं कुछ तो भी पोस्‍ट लगा रहा हूं । दरअसल में हो ये रहा है कि बिजली ऐसे आ रही है जैसे मेहबूबा आती हो । इधर  आती है उधर आते ही कहने लगती है कि जाऊं । हमारे यहां पर चुनावों का मौसम चल रहा है । कल हमारे प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अपनी पत्‍नी के साथ 1 अपना नामांकन भरने हमारे शहर में पधारे । जब वे पत्रकारों से मुखातिब हुए तो एकबारगी तो इच्‍छा हुई थी कि पूछ ही डालें कि महोदय ये बिजली नाम की जो वस्‍तु हमारे प्रदेश में हुआ करती थी उसका क्‍या हुआ । पर फिर लगा कि किसी को भी उसकी पत्‍नी के सामने नहीं लताड़ना चाहिये उससे एक नुकसान तो ये होता है उसकी पत्‍नी भी ये काम करने लगती है और दूसरा ये कि पत्‍नी के सामने की लताड़ आदमी कभी नहीं भूलता कभी भी बदला निकाल लेता है । सो हमने भी कुछ टुच्‍चे से सवाल ही पूछ लिये मसलन आप जीत को लेकर क्‍या सोच रहे हैं , उमा भारती के बारे में आपका क्‍या खयाल है और प्रज्ञा भारती के मामले पर आप क्‍या सोचते हैं । टुच्‍चे सवाल थे सो टुच्‍चे ही उत्‍तर मिले वे भी हंसे हम भी हंसे, आदरणीय साधना भाभी मुस्‍कुराईं और वे रवाना हो गये । हम वापस लौटे तो देखा कि बिजली पूर्व की ही तरह गायब थी । हो सकता है कि हम एक दो दिन में गायब हो जायें, गायब से अर्थ ये कि चुनाव के काम में लग जायें । चुनाव के डाटा पर काम करने में हमें बहुत आनंद आता है कि उस चुनाव में उसको इतने प्रतिशत मत मिले थे और इसको इतने । वीडियों कैमरा खरीदने का मन था किन्‍तु कीमत सुन कर मन बेमन हो गया । सो बिना वीडियो कैमरे के ही काम चलायेंगें ।

तरही मुशायरे को लेकर अब एक बार फिर से सारी ग़जलें आ गईं हैं अंकित जोशी "सफ़र",गौतम वीनस और समीर जी ने भी ग़ज़लें भेज दी हैं ।सो अब अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो हम इसी सप्‍ताह तरही मुशायरा आयोजित करेंगें । बिजली कल हमारे शहर में कुछ इस प्रकार कटी थी प्रात: 6 से 2 कटौती 3 से 4 बिजली आई फिर 4 से 6 कटौती फिर 6 से 7 आई और फिर 7 से लेकर तब तक नहीं आई जब तक हम सो नहीं गये । इसीलिये कह रहा हूं कि यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो ।

केंकडों की कहानी का इसलिये कहा कि कहीं पर किसी ब्‍लाग पर मैंने देखा कि आदरणीय राकेश खण्‍डेलवाल और श्री नीरज गोस्‍वामी को लेकर एक अशालीन टिप्‍पणी की गई थी । राकेश जी के फोन आने पर मैंने उन्‍हें बताया तो उन्‍होंने अपने स्‍वभाव के अनुसार सहजता से टाल दिया । किन्‍तु मुझे लगा कि अब केंकड़ों की कहानी यहां पर भी चालू हो गई है । हम सहजता के साथ सफलताओं को स्‍वीकार नहीं कर पा रहे हैं । पहले मैंने अपने ब्‍लाग पर माडरेशन नहीं लगाया था किन्‍तु एक दिन एक कमेंट आया जिसमें किसी अज्ञात ने बहुत ही भद्र ( अ ) भाषा में काफी कुछ लिखा था । उसके बाद मैंने अपने सारे ब्‍लाग पर माडरेशन लगा दिया । हम यहां पर मित्रता को बढ़ाने आये हैं कुं‍ठित लोगों की कुठाओं का निवारण करने के लिये नहीं । मेरी आदत है कि यदि किसी सीनीयर ब्‍लागर की किसी बात पर सलाह या सुझाव देना होता है तो मैं मेल करके ही करता हूं, जूनीयर ब्‍लागरों को कमेंट में इसलिये करता हूं कि वे गलती करने से बचें । फिर भी मेरा मानना है कि सभीको अपने ब्‍लाग पर माडरेशन लगाना ही चाहिये । ये  अधिकार सबके पास होना ही चाहिये क‍ि वे कमेंट को प्रकाशित करें या नहीं, आखिरको ब्‍लाग तो उन्‍हीं का है । खैर बात को विराम देते हैं । अगले बार मिलेंगें तरही मुशायरे में । जै राम जी की

शनिवार, 1 नवंबर 2008

केंकड़ों के श्‍ाहर की कहानी, लावण्‍य जी से जी टाक पर बातें और तरही मुशायरे की उलझन का सुलझना

पहले तो बात की जाये केंकड़ों के शहर के बारे में ही । दरअसल में ये मेरे अपने ही शहर सीहोर के बारे में है । मेरे शहर के बारे में एक कहानी है कि एक बार पानी के जहाज में कई सारे शहरों के अलग अलग प्राणियों को भर कर ले जाया जा रहा था । ये सारे प्राणी ड्रमों में रखे गये थे जिन पर सुरक्षा के लिहाज से ढक्‍कन लगे हुए थे । किन्‍तु आश्‍चर्य की बात ये थी कि एक ड्रम पर ढक्‍कन नहीं लगा था । और उस ड्रम  में केंकड़े भरे हुए थे । किसी ने ये देखा तो आश्‍चर्य हुआ कि क्‍या बात है सारे ड्रमों पर ढक्‍कन लगे हैं केवल इसी पर क्‍यों नहीं लगे हैं । उसने किसी से पूछा कि भई क्‍या बात है सारे ड्रम ढंके हुए हैं पर केवल एक पर ही ढक्‍कन नहीं लगा है, इस ड्रम में भरे हुए प्राणी निकल के भाग नहीं जायेंगें । इस पर उत्‍तर मिला कि नहीं इस ड्रम में केंकड़े भरे हैं जो कहीं नहीं भागेंगें । वो व्‍यक्ति फिर आश्‍चर्य में डूब गया कि क्‍यों नहीं भागेंगें । इस पर उत्‍तर मिला कि ये केंकड़े सीहोर के हैं और इसीलिये नहीं भागेंगें । उसने पूछा कि क्‍या सीहोर  के केंकड़े इतने अनुशासित होते हैं । फिर उत्‍तर मिला कि अनुशासन जैसी कोई बात नहीं हैं दरअसल में बात ये है कि ये केंकड़े सीहोर के हैं और इसीलिये ये भाग नहीं पायेंगें क्‍योंकि जैसे ही एक केंकड़ा ऊपर उठेगा चार उसकी टांग खींच कर गिरा लेंगें । और इसी चक्‍कर में कोई नहीं  उठ पायेगा । कहानी सुनाने के पीछे अपने शहर का परिचय देने की भावना अधिक है । अपने शहर के इस गुण के बारे में मुझे पहले जानकारी तब मिली जब मैंने सहारा समय के स्‍ट्रिंगर के रूप में काम करना प्रारंभ किया था । जैसे ही मैंने काम प्रारंभ किया पता चला कि नोएडा में सहारा के कार्यालय में मेरे खिलाफ सीहोर से करीब 200 फैक्‍स और इतने ही फोन काल पहुंच गये । मैं हैरत में कि मेरे इतने विरोधी इस श्‍ाहर में कहां से आ गये । पता ये चला के फैक्‍स करने वालों में कई ऐसे भी थे जो मुझे जानते तक नहीं थे पर चूंकि केंकड़े की कहानी वाली बात है सो विरोध करने के लिये विरोध कर रहे थे कि ये केंकड़ा कैसे ऊपर जा रहा है । खैर सहारा समय तो मैंने दो माह के अंदर ही छोड़ दिया पर ये सबक मिल गया कि यहां पर  कोई आपका क्‍यों विरोध करता है ये उसको भी पता नहीं होता । समीर लाल जी जब सीहोर आये थे तब आने से पहले उन्‍होंने भी इस केंकड़ा कथा का अनुभव किया था । वे अभी सीहोर पहुंचे भी नहीं थे कि उनके पास भाई लोगों ने नम्‍बर ढूंढ ढांढ के फोन कर दिये थे । आप पंकज को कैसे जानते हैं , पहले मिले हैं कि नहीं , जाने क्‍या क्‍या । समीर जी ने विदा होते समय जब किस्‍सा सुनाया तो खूब हंसी भी आई और रोना भी ।  वो तो गनीमत है कि राकेश खण्‍डेलवाल जी भारत में नहीं रहते नहीं तो अभी तक तो वे मेरे विरुद्ध गुमनाम पत्र, फैक्‍स, फोन, मोबाइल अटेंड कर कर के थक गये होते । फिर भी मैं अपने शहर को जानता हूं  उसके अनुसार ये तो तय है कि राकेश जी को भाई लोगों ने ईमेल तो जरूर किये होंगें । मेरे शहर का सिद्धांत है केवल विरोध के लिये विरोध करो । मेरे शहर में एक कवि सम्‍मेलन होता था जिसे नमक चौराहा सीहोर का कवि सम्‍मेलन  कहा जाता था । उसकी इतनी ख्‍याति थी कि यदि आप पिछली पीढ़ी के कवियों से पूछेंगें तो उनका एक ही जवाब होगा कि वो कवि सम्‍मेलन भारत के हर कवि के लिये काबा और काशी के समान होता था । बच्‍चन जी से लेकर भरत व्‍यास जी तक कोई ऐसा दिग्‍गज कवि नहीं है जो नहीं आया हो । नये कवि इस कवि सम्‍मेलन में काव्‍य पाठ के लिये बाकायदा आयोजकों को चंदा प्रदान करते थे । खैर उसका भी हश्र वहीं हुआ निर्भय हाथरसी नाम के कवि को भड़का कर सीहोर के ही कुछ लोगों ने आयोजकों के खिलाफ हाथरस में मुकदमा लगवा दिया और कवि सम्‍मेलन बंद हुआ । कहानी बहुत लम्‍बी है  और कई सारे किस्‍से हैं पर मेरे खयाल से आप इतने से समझ गये होंगें कि मैं कैसे शहर में रहता हूं । और ये पूरी कहानी सुनाने के पीछे कारण ये है कि आप सब लोगों से मिल रहा स्‍नेह मुझे इसलिये अनमोल लगता है कि ये स्‍नेह मुझे अपने शहर से कभी नहीं मिला, और मुझे क्‍या किसी को भी नहीं मिला है । इसीलिये डर लगता है कि नेह का ये खजाना कोई लूट न ले जाये ।

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किसी ने मुझे कहा था कि जीटाक पर लागिन रहा करो । मुझे समझ में नहीं आया कि क्‍या होगा उससे । पर दो तीन दिन से मैं लागिन रहता हूं । तो उसके फायदे पता चल रहे हैं । कल दीदी साहिब लावण्‍य जी  चैट कर रहा था तभी स्‍क्रीन पर उनके काल की जानकारी आई मैंने उस काल को एक्‍सेप्‍ट किया तो दीदी साहिब से बात होना प्रारंभ हो गई । इतनी साफ बातचीत हो रही थी कि विश्‍वास ही नहीं हो रहा था । और दीदी साहिब की आवाज इतनी मधुर है कि सुनते ही रहो । उनसे कई सारी जानकारियां मिलीं ।  धन्‍य हो गूगल भैया कि ।

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तरही मुशायरे के लिये कई सारी ग़ज़लें पुन: मिल गईं हैं सबको धन्‍यवाद कि उन्‍होनें माड़साब की ग़लती का निवारण कर दिया । अब मैं उस पर ही लगा हूं । जल्‍द ही मुशायरे का आयोजन होगा ।

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आप लोग सोच रहे होंगें कि मैं दो दिन से इतनी लम्‍बी लम्‍बी पोस्‍ट क्‍यों लगा रहा हूं । दरअसल रेगिस्‍तान से आये व्‍यक्ति को पानी मिल जाये तो वो पागलों की तरह पीता है । यही हाल मेरा है दो दिन से मेरे शहर में बिजली नहीं जा रही है । दुआ करें कि ऐसा हमेशा हो ।

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