प्रिय दोस्तो, मिसरा देने के बाद ही कुछ सदस्य तो एकदम जल्दी से ग़ज़ल कह कर भेज देते हैं, लेकिन कुछ सदस्य इंतज़ार करते हैं कि मुशायरा प्रारंभ हो जाए उसके बाद भेजेंगे। इस बार भी यही हो रहा है, कुछ सदस्यों ने तुरंत ही भेज दी ग़ज़ल और कुछ इंतज़ार में ही हैं। जो ग़ज़लें आई हैं, उनको पढ़ कर लग रहा है कि क़ाफ़िये को लेकर कितनी मेहनत की है सदस्यों ने। बहुत ही अलग तरह के क़ाफ़िये सामने आ रहे हैं। तरही ग़ज़ल का सबसे आनंददायक पहलू यही तो होता है कि हम यह देखें कि किस प्रकार के क़ाफ़िये सामने आ रहे हैं। तरही में सबसे आकर्षण क़ाफ़ियों का चयन ही होता है। इस बार के क़ाफ़िये में ईता को दोष बन जाने की संभावना है। अभी कहीं किसी प्लेटफ़ार्म पर चल रहे तरही मुशायरे में वहाँ प्रकाशित किसी ग़ज़ल पर चर्चा में मेरे नाम का उल्लेख करते हुए कहा गया कि पंकज सुबीर के अनुसार -“दिलों में उमीदें जगाने चला हूँ, बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ” इसमें ईता का दोष नहीं है। मुझे नहीं मालूम कि मेरे नाम का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया। उसमें इस ब्लॉग का भी संदर्भ दिया गया था। मेरे पास किसी का मैसेज आया तो मैंने कहा कि इसमें तो बिलकुल ईता का दोष बन रहा है, मेरे संदर्भ से जो भी कह रहे हैं, वह बिलकुल ग़लत कह रहे हैं। इसमें “आने” ध्वनि क़ाफ़िया की ध्वनि है। यदि हम आने को हटा दें तो बचता है जग और जल, जो संपूर्ण शब्द हैं शब्दकोश के। मगर यह दोनों शब्द समान ध्वनि वाले शब्द हैं इसलिए ईता को दोष बन रहा है। जैसे हस्तीमल हस्ती की मशहूर ग़ज़ल “प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है, नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है”, में भी ईता का दोष है।
उसी प्रकार इस बार के मिसरे में भी यही समस्या आ सकती है यदि आपने क़ाफ़िया चयन मतले में करते समय सावधानी नहीं बरती।
छोटी ईता दोष
जैसे यदि आपने मतला यह कहा-
उजाले के हैं सैनिक हौसलों से ये भरे दीपक, अँधेरा हो न पाएगा, वो देखो जल उठे दीपक
इसमें क्या हो रहा है कि क़ाफ़िया बनाया गया है “भरे” और “उठे” को, जिनमें से “ए” की मात्रा हटाने के बाद जो शब्द बचते हैं वो हैं “भर” और “उठ”, जो कि मुकम्मल शब्द हैं शब्दकोश के। इसलिए आप यदि ऐसा करते हैं तो ईता दोष आ जाएगा। यह छोटी ईता का दोष कहलाएगा। अब आप कहेंगे कि ए की मात्रा को हटाया क्यों जा रहा है? वह इसलिए कि यदि मतले के दोनों मिसरों में क़ाफ़िया की ध्वनि को शब्द से हटने के बाद यदि कोई अर्थपूर्ण शब्द बचता है तो वह हट कर रदीफ़ का हिस्सा बन जाएगी। जैसे यहाँ रदीफ़ हो गया है “ए दीपक”। यदि किसी एक मिसरे में भी उसके हटने के बाद कोई निरर्थक शब्द बचता है तो उसे क़ाफ़िये के शब्द से नहीं हटाया जाएगा और वह रदीफ़ की हिस्सा नहीं बनेगी। ईता दोष से बचने के लिए मतले के किसी एक मिसरे में क़ाफ़िया ऐसा होना चाहिए जिसमें से क़ाफ़िया ध्वनि हटाने के बाद निरर्थक शब्द बचे।
अब इसे कैसे ठीक किया जाएगा, ऐसे
उजाले के हैं सैनिक हौसलों से ये भरे दीपक, अँधेरा हो न पाएगा वो देखो जल गए दीपक
अब “गए” में से “ए” की मात्रा हटाने पर केवल “ग” बचेगा जो अर्थहीन है, इसलिए ईता का दोष नहीं बनेगा। हमने केवल एक ही मिसरे में ऐसा किया है और ईता का दोष हट गया। पहले मिसरे में अभी भी “भरे” ही है जिसको हमने नहीं बदला है।
ऊपर जिस शेर का संदर्भ मैंने दिया है, उस तरह का मतला भी आपने बनाया तो उसमें भी समस्या आ सकती है।
उजाले के ये सैनिक रात भर हैं जागते दीपक, अँधेरा हो न पाए बस यही हैं सोचते दीपक
अब इसमें क्या हुआ है कि रदीफ़ हो गया “ते दीपक” और बचे हुए “सोच” तथा “जाग” जो कि संपूर्ण शब्द हैं, मगर समान ध्वनि वाले नहीं है इसलिए ईता का दोष बनेगा।
अब इसे कैसे ठीक किया जाएगा, ऐसे
उजाले के ये सैनिक रात भर हैं जागते दीपक, अँधेरा हो न पाएगा अगर जलते रहे दीपक
या अगर आप कहें कि नहीं जी हमको तो “ते दीपक” के साथ ही ग़ज़ल कहनी है तो कुछ ऐसे, मगर इसमें आगे पूरी ग़ज़ल में आपको यही “ते दीपक” की बंदिश निभानी होगी।
उजाले के ये सैनिक रात भर हैं जागते दीपक, वो देखो चल पड़े फिर से शहीदी रास्ते दीपक
बड़ी ईता दोष
इसी ग़ज़ल में यदि आपने बड़ी ग़लती कर दी तो बड़ा ईता दोष भी बन सकता है।
जैसे आपने मतला कहा
उजाले के हैं सैनिक हौसलों से ये भरे दीपक, भले कितना अँधेरा हो मगर हैं कब डरे दीपक
इसमें आपने “डरे” और “भरे” को मतले में लेकर क़ाफ़िया “ए” की जगह “रे” कर दिया है, अब आगे आपको करे, झरे, खरे, तरे, ही क़ाफ़िया बनाना है, अगर आपने आगे कहीं भी जले, कहे, जैसे क़ाफ़िये लगा लिए तो बड़ी ईता का दोष बन जाएगा। यदि आपने आगे “रे” के ही क़ाफ़िये बनाए तो ईता का दोष नहीं बनेगा।
अब इससे कैसे बचा जा सकता है-
उजाले के हैं सैनिक हौसलों से ये भरे दीपक, भले कितना अँधेरा हो नहीं हैं हारते दीपक
अब बातें हम पिछले कई अध्याय में कर चुके हैं,, मगर चूँकि मेरा नाम लेकर कहीं कुछ ग़लत संदर्भ दिया गया था, इसलिए मैंने यहाँ स्पष्ट करना ज़रूरी समझा। ईता का दोष वह दोष है, जिसको लेकर पिछले कई सालों से बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोग कहते हैं कि इसे तो अब मानना ही नहीं चाहिए। मगर ज़रा सी सावधानी रख कर इससे बचा जा सकता है।
ऊपर तो मतले कहे हैं उनमें केवल व्याकरण देखें, कहन नहीं देखें क्योंकि यह व्याकरण समझाने के लिए लिखे गए हैं।
और हाँ अपनी ग़ज़लें जल्द भेज देंगे तो अच्छा रहेगा।