पहले तो बात की जाये केंकड़ों के शहर के बारे में ही । दरअसल में ये मेरे अपने ही शहर सीहोर के बारे में है । मेरे शहर के बारे में एक कहानी है कि एक बार पानी के जहाज में कई सारे शहरों के अलग अलग प्राणियों को भर कर ले जाया जा रहा था । ये सारे प्राणी ड्रमों में रखे गये थे जिन पर सुरक्षा के लिहाज से ढक्कन लगे हुए थे । किन्तु आश्चर्य की बात ये थी कि एक ड्रम पर ढक्कन नहीं लगा था । और उस ड्रम में केंकड़े भरे हुए थे । किसी ने ये देखा तो आश्चर्य हुआ कि क्या बात है सारे ड्रमों पर ढक्कन लगे हैं केवल इसी पर क्यों नहीं लगे हैं । उसने किसी से पूछा कि भई क्या बात है सारे ड्रम ढंके हुए हैं पर केवल एक पर ही ढक्कन नहीं लगा है, इस ड्रम में भरे हुए प्राणी निकल के भाग नहीं जायेंगें । इस पर उत्तर मिला कि नहीं इस ड्रम में केंकड़े भरे हैं जो कहीं नहीं भागेंगें । वो व्यक्ति फिर आश्चर्य में डूब गया कि क्यों नहीं भागेंगें । इस पर उत्तर मिला कि ये केंकड़े सीहोर के हैं और इसीलिये नहीं भागेंगें । उसने पूछा कि क्या सीहोर के केंकड़े इतने अनुशासित होते हैं । फिर उत्तर मिला कि अनुशासन जैसी कोई बात नहीं हैं दरअसल में बात ये है कि ये केंकड़े सीहोर के हैं और इसीलिये ये भाग नहीं पायेंगें क्योंकि जैसे ही एक केंकड़ा ऊपर उठेगा चार उसकी टांग खींच कर गिरा लेंगें । और इसी चक्कर में कोई नहीं उठ पायेगा । कहानी सुनाने के पीछे अपने शहर का परिचय देने की भावना अधिक है । अपने शहर के इस गुण के बारे में मुझे पहले जानकारी तब मिली जब मैंने सहारा समय के स्ट्रिंगर के रूप में काम करना प्रारंभ किया था । जैसे ही मैंने काम प्रारंभ किया पता चला कि नोएडा में सहारा के कार्यालय में मेरे खिलाफ सीहोर से करीब 200 फैक्स और इतने ही फोन काल पहुंच गये । मैं हैरत में कि मेरे इतने विरोधी इस श्ाहर में कहां से आ गये । पता ये चला के फैक्स करने वालों में कई ऐसे भी थे जो मुझे जानते तक नहीं थे पर चूंकि केंकड़े की कहानी वाली बात है सो विरोध करने के लिये विरोध कर रहे थे कि ये केंकड़ा कैसे ऊपर जा रहा है । खैर सहारा समय तो मैंने दो माह के अंदर ही छोड़ दिया पर ये सबक मिल गया कि यहां पर कोई आपका क्यों विरोध करता है ये उसको भी पता नहीं होता । समीर लाल जी जब सीहोर आये थे तब आने से पहले उन्होंने भी इस केंकड़ा कथा का अनुभव किया था । वे अभी सीहोर पहुंचे भी नहीं थे कि उनके पास भाई लोगों ने नम्बर ढूंढ ढांढ के फोन कर दिये थे । आप पंकज को कैसे जानते हैं , पहले मिले हैं कि नहीं , जाने क्या क्या । समीर जी ने विदा होते समय जब किस्सा सुनाया तो खूब हंसी भी आई और रोना भी । वो तो गनीमत है कि राकेश खण्डेलवाल जी भारत में नहीं रहते नहीं तो अभी तक तो वे मेरे विरुद्ध गुमनाम पत्र, फैक्स, फोन, मोबाइल अटेंड कर कर के थक गये होते । फिर भी मैं अपने शहर को जानता हूं उसके अनुसार ये तो तय है कि राकेश जी को भाई लोगों ने ईमेल तो जरूर किये होंगें । मेरे शहर का सिद्धांत है केवल विरोध के लिये विरोध करो । मेरे शहर में एक कवि सम्मेलन होता था जिसे नमक चौराहा सीहोर का कवि सम्मेलन कहा जाता था । उसकी इतनी ख्याति थी कि यदि आप पिछली पीढ़ी के कवियों से पूछेंगें तो उनका एक ही जवाब होगा कि वो कवि सम्मेलन भारत के हर कवि के लिये काबा और काशी के समान होता था । बच्चन जी से लेकर भरत व्यास जी तक कोई ऐसा दिग्गज कवि नहीं है जो नहीं आया हो । नये कवि इस कवि सम्मेलन में काव्य पाठ के लिये बाकायदा आयोजकों को चंदा प्रदान करते थे । खैर उसका भी हश्र वहीं हुआ निर्भय हाथरसी नाम के कवि को भड़का कर सीहोर के ही कुछ लोगों ने आयोजकों के खिलाफ हाथरस में मुकदमा लगवा दिया और कवि सम्मेलन बंद हुआ । कहानी बहुत लम्बी है और कई सारे किस्से हैं पर मेरे खयाल से आप इतने से समझ गये होंगें कि मैं कैसे शहर में रहता हूं । और ये पूरी कहानी सुनाने के पीछे कारण ये है कि आप सब लोगों से मिल रहा स्नेह मुझे इसलिये अनमोल लगता है कि ये स्नेह मुझे अपने शहर से कभी नहीं मिला, और मुझे क्या किसी को भी नहीं मिला है । इसीलिये डर लगता है कि नेह का ये खजाना कोई लूट न ले जाये ।
किसी ने मुझे कहा था कि जीटाक पर लागिन रहा करो । मुझे समझ में नहीं आया कि क्या होगा उससे । पर दो तीन दिन से मैं लागिन रहता हूं । तो उसके फायदे पता चल रहे हैं । कल दीदी साहिब लावण्य जी चैट कर रहा था तभी स्क्रीन पर उनके काल की जानकारी आई मैंने उस काल को एक्सेप्ट किया तो दीदी साहिब से बात होना प्रारंभ हो गई । इतनी साफ बातचीत हो रही थी कि विश्वास ही नहीं हो रहा था । और दीदी साहिब की आवाज इतनी मधुर है कि सुनते ही रहो । उनसे कई सारी जानकारियां मिलीं । धन्य हो गूगल भैया कि ।
तरही मुशायरे के लिये कई सारी ग़ज़लें पुन: मिल गईं हैं सबको धन्यवाद कि उन्होनें माड़साब की ग़लती का निवारण कर दिया । अब मैं उस पर ही लगा हूं । जल्द ही मुशायरे का आयोजन होगा ।
आप लोग सोच रहे होंगें कि मैं दो दिन से इतनी लम्बी लम्बी पोस्ट क्यों लगा रहा हूं । दरअसल रेगिस्तान से आये व्यक्ति को पानी मिल जाये तो वो पागलों की तरह पीता है । यही हाल मेरा है दो दिन से मेरे शहर में बिजली नहीं जा रही है । दुआ करें कि ऐसा हमेशा हो ।
पंकज जी आप तो ये शेर गुनगुनाईये और मस्त रहिये :
जवाब देंहटाएंयारब मेरे दुश्मन को सलामत रखना
वरना मेरे मरने की दुआ कौन करेगा
एक बात बता दीजियेगा सीहोर वासियों को की जो कोई आप के संपर्क में आएगा वो फ़िर और कहीं नहीं जा पायेगा. शायद इस बात का मलाल रहता हो सीहोर वासियों को और वो खिसियाए हुए खम्बा नोचते रहते हों. ये कमोबेश हर सज्जन व्यक्ति की कहानी है और इस कहानी का किसी जगह विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है.
अब हाथी को देख कर कुत्तों का भौकना स्वाभाविक है, आप तो चलते रहें, हम सब आप के पीछे हैं...
नीरज
केकड़े की कथा तो हमारे शहर की थी, आप्के यहाँ भी प्रचलित है. :) शायद अधिकतर शहरों में हो.
जवाब देंहटाएंआप काहे परेशान हो रहे हैं. आपको मिल रहा स्नेह आपने अपनी मेहनत और व्यवहार से कमाया है. यह विद्या जैसा धन है जिसे कोई नहीं लूट सकता.
लावण्या जी से आपकी बात हो गई-बहुत ही स्नेही हैं.
इन्तजार करते हैं अब तरही मुशायरे का.
ईश्वर आपके शहर में विद्युत व्यवस्था बनाये रखे.
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंएक दिन का नागा करने के बाद जब आज नेट पर आया तो आपकी पोस्ट मिली एक पढ़ी तो पता चला एक के साथ एक का दीपावली आफर चल रहा है :):)
बाकी तो जब कमेन्ट बॉक्स खोला तो पाया की नीरज जी ने मेरे दिल की बात कह दी है सो वही बात न दोहरा कर उनकी बात पर ही पूर्ण रूप से सहमती व्यक्त करता हूँ
आप तो चलते रहें, हम सब आप के पीछे हैं...
(मेरी तरही मुशायरे की गजल तो आपके पास है ही दीपावली पर जो भी लिखा था फ़िर से भेज रहा हूँ क्योकि मैंने उसे बाद में भेजा था)
आपका वीनस केसरी
अरे पंकज भाई साहब, ये कथा पहली बार ही सुनी ...ये तो गज़ब किस्म के लोग हैं ..और आप काम करते रहीये दूसरों को बद्दलना सम्भव नही - नामुमकिन है !
जवाब देंहटाएंNice pictures once again ..& ..thank you for putting my name in your post !!
हे भगवान हम तो समझते थे कि हम कोसी वाले ही इस गुण में माहिर हैं.शुक्र है आपसे पता चला कि इस बिजनेस में हम तन्हा नहीं हैं.सीहोर से अच्छा कंपिटिशन है.
जवाब देंहटाएं...आप तनिक भी ना टेंशनाइये गुरू देव.हम तमाम शिष्यों और हिंदी प्रेमियों की समस्त शुभकामनायें आपके साथ-साथ सदैव और अनवरत है....
सुबीरजी, आपका शहर कित्ता अच्छा है। आपको अकेले और गुमनाम नहीं रहने देता।
जवाब देंहटाएंरोचक लेख है, अपने ब्लाग पर मैं आपका लिंक दे रहा हूँ ! आप बहुत अच्छा कार्य व मार्गदर्शन दे रहे हैं ! शुभकामनायें ! राकेश जी की रचना की कापी देहली में कैसे उपलब्ध होगी ? अगर कूरिअर से भेज सकें तो अच्छा होगा, सारा अतिरिक्त खर्चा मैं दूँगा, आभार सहित !
जवाब देंहटाएंगुरू जी,केकड़ों की कहानी तो आजकल हर जगह कमोबेश एक सी है। और जीटाक तो बढ़िया चीज है लेकिन इधर कुछ दिनों से जीटाक वायरस भी चर्चा में है। दिक्कत ये है कि यह आसानी से डिटेक्ट भी नहीं हो पाता।
जवाब देंहटाएंdekhiye sabhi kah rahe hai.n aur shayad sahi kah rahe hai.n ki kekade ki kahaani sab jagah ek si laagu hoti hai..! tarahee mushayareki pratiksha.....!
जवाब देंहटाएंक्योंकि पुरानी कहावत है
जवाब देंहटाएंबैठे बैठे कुछ किया कर
कुछ न हो तो
पजामा फ़ाड़ कर सिया कर
तो साहब, अगर करने के लिये कुछ न हो तो क्या ऐसा भी न करें ? भाई साहब आप इन लोगों को इनके जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित क्यों रखना चाहते हैं. कुछ लोगों का मानना होता है, कि सफ़ल व्यक्ति की निन्दा करने से कुछ न कुछ सफ़लता उन्हें भी मिल जायेगी. वैसे मेरा कम्प्यूटर समझदार है जो ऐसे सन्देशों को सीधे junk folder में डाल देता है.
यह जो मेरा कम्प्यूटर है, मुझसे ज्यादा समझदार है
बे सिरपैरी, बिना अर्थ की मिलती ऊटपटांग कथायें
तो यह उनको लेजाकर के जंकबाक्स में रख देता है
और कसौटी पर जो इसकी उतरें खरी बिना संशय के
सिर्फ़ उन्हीं को यह आगत की श्रेणी में घुसने देता है
नया उपकरण इसने ओढ़ा, सुनी वक्त की जो पुकार है
आप तो अपनी साधना किये जायें.