पिछले दिनों एक मुशायरे में जाने का मौका मिला और वहां पर एक सज्जन से मिलने को अवसर भी मिला इनसे मिलने की इच्छा काफी दिनों से थी । ये सज्जन ग़ज़ल को लेकर काफी काम कर रहे हैं । मगर मिलने के बाद एक ही बात मन में आई कि इनसे फिर न ही मिलना हो तो अच्छा है । क्यों लगा ये तो हम आगे बात करेंगें पर मुझे ऐसा लगा कि कहीं मैं ग़लत तो नहीं हूं पर जब मेरी दूसरे शायरों से बात हुई तो लगभग सभी का ये ही मत था जो मेरा था । मैंने सोचा कि आखिर क्या ग़लत था उस व्यक्ति में जो कि इतने अच्छे काम करने के बाद भी लोग उसे इस तरह से ले रहे हैं । दरससल में उसमें कुछ ऐसी कमियां थीं जो कि किसी को भी समस्या दे सकती हैं । आइये उनमें से कुछ के बारे में बात करते हैं
1) कहीं भी किसी भी स्थान पर कविता या शेर सुनाने से बचें
हर शायर अपना नया कलाम सबको सुनाना चाहता है और उस पर सबकी प्रतिक्रिया चाहता है परन्तु उसके लिये अवसर की प्रतिक्षा करनी चाहिये ये नहीं कि कहीं भी किसी भी स्थान पर सुनाने लग जाएं । अंग्रेजी का एक शब्द है इरीटेट करना । दरअसल में हम सामने वाले को ये ही कर देते हैं जब हम ऐसा कुछ करते हैं । हर आदमी हर समय कविता के मूड में नहीं होता है । मेरे एक और शायर मित्र हैं वे तो नई ग़ज़ल लिखने के बाद इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि तुरंत निकल पड़ते हैं और जो भी पहला आदमी मिलता है पान की दुकान पे चाय के स्टाल पर उसे वहीं सुना देते हैं । इससे दो नुकसान होते हैं पहला व्यक्तिगत और दूसरा साहित्य का । व्यक्तिगत तो ये कि आपसे लोग कतराने लगते हैं । और दूसरा ये कि आप साहित्य को इतना हल्का कर रह हैं कि स्थान भी नहीं देख रहे हैं । कविता इतनी सस्ती चीज नहीं है कि कहीं भी हो जाए । कविता तो सबसे गरिमामय शै: है जिसे हर कहीं पढ़ कर आप अपना और कविता दोनों का ही नुकसान कर रहे हैं ।
2 अपनी तारीफ करने का मौका दूसरों को दें
ये एक बड़ी बुराई है जो कवियों और शायरों में आ जाती है । ये उन सज्जन में तो कूट कूट कर भरी थ्ज्ञी जिनका जिक्र पहले पेरा में किया है । भोपाल में रहने वाले एक विश्व विख्यात शायर में तो ये इतनी है कि जब भी आप उनसे बात करेंगें तो विषय एक ही होगा वे स्वयं । वे कहते हैं कि ग़ालिब और मीर के तो कुछ ही शेर लोगों को याद हैं पर मेरे तो कई कई शेर लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं । हांलकि से सच भी है पर बात वहीं है कि ये कहने का मौका दूसरों को दें । जब मैा उनसे बात करता हूं तो बस उन पर ही बात होती है । पहले ऊपर जिन शायर का जिक्र मैंने किया है उनमें भी ये ही ख्ब्त थी वे भी केवल अपनी ही बात करना पसंद करते थे । बात का विषय घूम कर वापस वे अपने पर ही ले आते थे । मैंने ऐसा किया मैंने वैसा किया वगैरह वगैरह । इतना मैं कि परेशानी ही हो जाए । वो ये नहीं जानते कि मैं मैं करने वाले बकरे को आखिरकार ईद पर काट ही दिया जाता है ।
अब नहीं कोई सुखनवर सब यहां हैं बकरियां, देखिये तो कर रहा मैं मैं यहां पर हर कोई
3 शेर कहने से पहले ये भी ध्यान दें
मेरे एक मित्र हैं जो शेर कहने से पहले ये जरूर कहते हैं कि ये शेर मैंने बहुत अच्छा लिखा है । अब ये कहने की क्या जरूरत है । शेर तो संसद के पटल पर आ रहा है अच्छा है या बुरा ये तो श्रोता खुद ही तय कर देंगें । आप खुद न कहें । कई बार क्या होता है कि हम कोई शेर कहने ये पहले ही इतनी भूमिका बांध देते हैं कि लोगों को उससे बहुत उम्मीद हो जाती है और अगर खोदा पहाड़ वाली कहावत जैसा कुछ हो जाता है तो आपको दिक्कत हो जाती है । कई बार आपके तारीफ करने के कारण आपके शेरों को वो दाद नहीं मिल पाती जो मिलना है । मरे एक बुजुर्ग शायर मित्र हैं जो काफी अच्छे शेर कहते हैं और लहजा भी अच्छा है उनकी एक विशेषता ये है कि वे बस शेर पढ़तें हैं बातचीत नहीं करते हैं । मेरे पूछने पर उन्होंने कहा कि मियां सामईन खुद ही तय करेगा ना कि आप कितने पानी में हैं । और फिर जब आप कोई बहुत अच्छा शेर बिना किसी भूमिका के पढ़ देते हैं तो श्रोता जो अचानक चौंक कर मजे लेता है वो आनंद ही अलग होता है ।
4 विनम्र रहें
न बन पा रहे हों तो कुछ दिन के लिये राकेश खण्डेलवाल जी, नीरज गोस्वामी जी, समीर लाल जी और अभिनव शुक्ला से कक्षाएं ले और सीखें कि विनम्र कैसे बना जाता है । विनम्रता हमें हमेशा ही फायदा पहुचाती है । कई बार ये होता है कि हम अपने अंदर के साहित्यकार को मार देते हैं केवल इसलिये ही क्योंकि हम विनम्र नहीं होते हैं । एक पुरानी कहावत को हमेशा याद रखें कि फलों से लदा हुआ पेड़ हमेशा झुका रहता है ( उदाहरण : राकेश खण्डेलवाल जी ) । अपने को ऐसा बनाएं कि लोग एक बार मिलने के बाद आपसे फिर मिलने कि इच्छा रखें ( उदाहरण : समीर लाल जी ) ।
5 दूसरों को भी सुनें
ये एक बड़ी समस्या है जो इन दिनों के कवियों और शायरों में आ रही है कि वे ये तो चाहते हैं कि उनको सब सुनें पर वे किसी को भी नहीं सुनें । जब दूसरा पढ़ रहा होता है तो या तो वे ध्यान नहीं देते हैं या बात चीत में लग जाते हैं । आप अपने लिये जो चाहते हैं वो ही दूसरों को भी दें हमारा व्यवहार एक रबर की गेंद होता जितनी ताकत से दीवार पर मारेंगें उतनी ही गति से वापस हमारे पास आएगा । दूसरों की हौसला अफजाई करें और इस तरह के भाव रखें कि उसे लगे कि आपका पूरा ध्यान उस पर ही केन्द्रित है आप पूरे गौर से उसको सुन रहे हैं । विशेष्कर नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन ज्रूर दें । मेरे एक बुजुर्ग शायर मित्र हैं वे एक दिन एक नए शायर की ग़ज़ल पर झूम झूम कर दाद दे रहे थे । बाद में मैंने कहा कि चचा मियां लड़का तो बेबहर था और इस कदर दाद तो वे बोले मियां लौंडा आज ग़ज़ल में आया है कल बहर में भी आ जाएगा अगर आज ही हमने उसका हौसला तोड़ दिया तो कहींका नहीं रहेगा वो ।
6 सलाह और सुझाव सुनें जरूर
कई बार ऐसा होता है कि हमारा कोई मित्र शायर हमें कुछ सुझाव देता है कि फलां शेर कमजोर है उसे फिर से करके देखों या बात पूरी नहीं हो रही है तो हम उसको ऐसे देखते हैं जैसे कि कोई दुश्मन हो । हम अपने लिखे को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और उस चक्कर में अपना ही नुकसान कर लेते हैं । पिछले दिनों कहीं पर मैंने ग़ज़ल सिखाने का काम शुरू किया था पर वही समस्या आई कि हर कोई अपने लिखे को ही श्रेष्ठ माने तो कैसे काम चलेगा । जो ये कह रहा है कि कुछ बात जमी नहीं उस पर ध्यान दें और ये सोचें के उसने ये क्यों कहा । सीखने की प्रक्रिया को जीवन भर जारी रखें ( उदाहरण : नीरज गोस्वामी जी ) और अपने लिखे को कभी भी अंतिम न माने । कई मशहूर शायरों की आप जीवनी पढ़ेंगें तो पता चलेगा कि वे लिखते थे फाड़ देते थे तब तक जब तक कुछ मुकम्मल सा न बन जाए ।
चलिये आज के लिये इतना ही अगले अंक में और कुछ कमियों की चर्चा करेंगें ।