मंगलवार, 12 अगस्त 2008

ईश्‍वर का एक खुला पत्र उड़न तश्‍तरी ( समीर लाल) के नाम

प्रति,

उड़न तश्‍तरी ( समीर लाल) या जो भी हो

कनाडा या जबलपुर जहां भी हों

पृथ्‍वी

विषय : अगले जन्‍म में स्‍त्री के रूप में पैदा होने के आपके आवेदन के संबंध में ।

संदर्भ : आपका पत्र क्रमांक http://udantashtari.blogspot.com/2008/08/blog-post_08.html 

महोदय,

उपरोक्‍त विषय में लेख है कि आपका  आवेदन प्राप्‍त हुआ और चूंकि ये भारत का कोई सरकारी कार्यालय न होकर स्‍वर्ग का कार्यालय है इसलिये ये बताने की जरूरत नहीं है कि आपके आवेदन पर आते ही विचार किया गया । आपका आवेदन प्राप्‍त होते ही एक उच्‍च स्‍तरीय समिति बनाई गई और ये बताने की जरूरत नहीं है कि ये समिति भारत की जांच समितियों की तरह नहीं थी जो कि बनने के बीस पच्‍चीस साल बाद भी ये ही कहती हैं कि जांच चल रही है । खैर तो आपके आवेदन पर जो समिति बनाई गई थी उसमें मेरे समेत विश्‍वकर्मा जी, चित्रगुप्‍त जी को लिया गया था । आपके आवेदन पर सबसे पहली आपत्‍ती विश्‍वकर्मा जी की थी उनका कहना था कि सुपरवाइजरी ड्राइंग के रूप में आपने जो चित्र http://www.flickr.com/photos/23984160@N06/2743028976/ संलग्‍न किया है  उसे आपने स्‍वर्ग के मानदंडों के हिसाब से नहीं भेजा है माना कि हमारे यहां पर अप्‍सराएं ऐसे ही कपड़े पहनती हैं किन्‍तु वो इंद्र का मामला है और आपको विश्‍वकर्मा जी जैसे बुजुर्ग की उम्र का लिहाज करते हुए ऐसा अल्‍पवस्‍त्रांगना का चित्र प्रेषित नहीं करना था । दूसरे चित्रगुप्‍त का ये कहना था कि आपने जो सुपरवाइजरी ड्राइंग दी है उस पर आप से पूर्व ही करीब दो लाख आवेदन लंबित हैं अत: या तो आप कोई नया विकल्‍प भेजें या फिर आप कतार में हैं और आपका नम्‍बर 2015103 है । प्रतीक्षा करें । ( प्रतीक्षा के बाहर जाकर प्रतीक्षा ना करें ) । हमारा स्‍वयं का ये मानना है कि आपने  आवेदन करते समय जो सुपरवाइजरी ड्राइंग दी है उससे पूर्व आपने स्‍वयं का आपाद मस्‍तक दर्पण विलोकन नहीं किया है, यदि करते तो आप ऐसा नहीं करते ।

फिर भी हमने आपके आवेदन पर अंतिम निर्णय लेने से पहले विश्‍वकर्मा जी के कम्‍प्‍यूटर प्रभाग के प्रभारी को बुलाकर आपके छाया चित्र दिखाये तथा आपके आवेदन का भी अवलोकन करवाया तो उन्‍होंने आपके वर्तमान को आवेदन के अनुरूप में बदलने की कोशिश की । काफी सारे साफ्टवेयरों को प्रयोग करने के बाद जो परिणाम आया वो आपके लिये निराशाजनक है । कुछ नमूने यहां संलग्‍न किये जा रहे हैं ।2699395055_98023100ba_o आप वर्तमान में ऐसे नजर आते हैं

1 मूंछ हटाने पर ऐसे दिखे

2 आप जो चाहते हैं वो

2682455486_2b87e86da2_o या फिर ऐसा भी हो सकता है 2700207098_93c838c7dd_o copy  बच्‍चों क्‍या ऐसी मम्‍मी चाहेंगें

इन चित्रों को देखने के बाद स्‍वर्ग के बच्‍चों में खलबली है और वे कल से ही सो नहीं रहे हैं रात में सोते सोते उठ जाते हैं और डर के रोते हैं । इन सभी आधारो पर विचार करते हुए और ये ध्‍यान में रखते हुए कि महिला के रूप में जनम लेने के पीछे लोकप्रिय होना एक कारण होता है और वो तो आप आज भी हैं । आपकी पोस्टिंग पर पुरूष होने के बाद भी सौ से ज्‍यादा टिप्‍पणियां आ रही हैं । अत: तकनीकी आधार पर आपका आवेदन खेद के साथ खारिज किया जाता है । आपका मूल आवेदन आपको भेजा जा रहा है अत: इस संदर्भ में आगे पत्र व्‍यवहार न करें ।

संलग्‍न : मूल आवेदन                                             आपका ही

                                                                              भगवान

बुधवार, 6 अगस्त 2008

आज अपने अपने क्षेत्र के नेताओं को दूध अवश्‍य पिलायें और कहें कि कृपया देश को डंसना छोड़ दें

आज नाग पंचमी है और नाग पंचमी का मतलब होता  है कि नागों को दूध पिलाने का दिन अब विज्ञान भले ही कहता रहे कि सांप दूध पी ही नहीं सकता है मगर उससे क्‍या हम तो पिलायेंगें । वैसे तो विज्ञान ये भी कह‍ता है कि आदमी सीमेंट गिट्टी नहीं खा सकता मगर आजादी के बाद से आज तक हमारे नेता और अफसर बाकायदा ये चीजें खा भी रहे हैं और पचा भी रहे हैं । हमारी ये भूमि पुण्‍य भूमि है यहां पर वो सब हो जाता है जो किसी और जगह पर नहीं हो सकता है । हमारे यहां पर पुल खा लिये जाते हैं कुए चोरी हो जाते हैं और सड़कें कागज पर ही बनाकर चमत्‍कार किये जाते हैं ।

तो आज नागपंचमी है और आज सांपों को दूध पिलाने का दिन है कहता रहा विज्ञान कि सांप दूध नहीं पीता कहती रहें मेनका जी क‍ि सापों को इस तरह से नहीं रखें, उससे क्‍या हम तो सांपों को दूध पिलायेंगें धार्मिक आस्‍था का प्रश्‍न है । तो आजकल हो ये गया है कि एन नांगपंचमी के दिन ही सांप वाले नहीं आते उनका ये कहना है कि उस दिन व्‍यस्‍तता रहती है सो नहीं आ पाते हैं । आप के साथ भी ये ही समस्‍या आ रही हो तो कोई बात नहीं है आप तो अपने आस पास के सांपों को ही दूध पिला कर ये काम पूरा कर लें । आपके पास ही हर तरह के सापं मिल जाऐंगें मसलन पनियारे सांप ( छुटभैये नेता) जो दिखने में सांप ही होते हैं पर कुछ नहीं करते । या फिर धामन सांप ( विधायक ) या फिर कोबरा ( सांसद) और या फिर सब कुछ लील जाने वाले अजगर सांप ( अफसर) । मित्रों आपको केवल ये करना है कि पूरी श्रद्धा के साथ इन सांपों को स्‍मरण करें और फिर एक कटोरा दूध इनके दरवाजे के सामने रख कर आ जायें और ये प्रार्थना कर आयें कि हे नागराज हमारे देश को डसना बंद करो हे अजगर देव हमारे देश को साबुत निगलना बंद करों ।

कुछ सालों पहले हम कुछ मित्रो ने हमारे इलाके के बड़े नेता जी के घर के बाहर अल सुबह जाकर दूध के पैकेट रख दिये थे हमारी देखा देखी वहां कुछ और लोग भी रख गये और देखते ही देखते दूध के अच्‍छे खासे पैकेट हो गये । हमें लग रहा था कि नेता जी नाराज होंगें और भला बुरा कहेंगें मगर कुछ नहीं हुआ सुबह होते ही दरवाजा खुला और दूध के पैकेट उठा लिये गये । तो आप भी इस घटना से सबक लें और अपने अपने नेताओं को दूध पिलायें ताकि साल भर सुख शांति बनी रहे ।

मंगलवार, 5 अगस्त 2008

ये सब क्‍या हो रहा है क्‍या किसी की कोई भी निजता अब बाकी नहीं रही है

अब लगता है कि ब्‍लागिंग से मोह भंग होंने लगा है । उसके पीछे कारण ये है कि  जो कुछ अच्‍छे मित्र बने हैं उनके ई मेल के स्‍थान पर अब दिन भर ऐसे मेल देखने होते हैं जो कि बिना सिर पैर के होते हैं । ये मुझे क्‍यों भेजे जा रहे हैं मैं भी नहीं जानता । बस चले आ रहे हैं । कई में आमंत्रण है कि उसने कुछ ऐसा लिख दिया है जो तुलसी और सूर के स्‍तर का है और आप उसे पढ़ के अपना जीवन धन्‍य कर लें कोई अपनी व्‍यक्तिगत राय हमारे मेल बाक्‍स में ठूंस रहा है । हम इधर प्रतिक्षा कर रहे हैं अपने मित्रों राकेश खंडेलवाल जी, सजीव सारथी जी, समीर लाल जी, अभिनव शुक्‍ला जी, शैलेष भारतवासी जी, नीरज गोस्‍वामी जी, कंचन चौहान जी, वीनस केसरी जी और हिन्‍द युग्‍म, ई कविता, हिन्‍दी भाषा समूहों सहित ऐसे ही कई सारे मित्रों के पत्रों की और इनके स्‍थान पर आ रहे हैं जाने किस किस के पत्र । क्‍या कहीं कोई नियंत्रण नहीं है इस ईमेलिया व्‍याभिचार का । और अभी तो और ऊंची हो गई है किसी सज्‍जन ने हमारे ग़ज़ल की कक्षाओं के सारे पोस्‍ट उड़ा कर अपने ब्‍लाग पर पूरी बेशर्मी के साथ लगाने प्रारंभ कर दिये हैं http://sangeetmasoom.blogspot.com  यहां पर । इसका मतलब ये है कि अब कुछ भी विशेष ब्‍लाग पर लगाना नहीं चाहिये क्‍योंकि जो आपका है वो तो चोरी होने की संभवना से भरा हुआ है । ये सब क्‍या है मैं नहीं जानता क्‍योंकि ये सब तो हो रहा है और किसी का कोई नियंत्रण ही नहीं है । अच्‍छा होगा कि सारे के सारे ब्‍लाग एग्रीगेटर अब मिलकर एक फोरम का निर्माण करें जिसमें तय किया जाए इस तरह की चोरी चकारी पर कैसे नियंत्रण हो ।

जहां तक मेल का सवाल है तो कुछ बानगी देखें

|| विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है।||

||Those who wish to Sing will always find a Song.||

जन मानस परिष्कार मंच

अपना डेस्कटोप बेकग्राउंड अनमोल बनाइये

--
आपके स्नेहाधीन
राजेंद्र माहेश्वरी
पोस्ट- आगूंचा , जिला - भीलवाडा, पिन - ३११०२९ ( राजस्थान ) भारत

Hello

apne hero calum ke antargat padhen Ram Kripal singh jee ko yahan click karen

http://www.bhadas4media.com/index.php/hamara-hero/31-hamara-hero/277-ramkripal-singh

     amit 09911045467

जिस दिन मैं धरती से जाऊं, मुझे कोई याद न करे

ये सब क्‍या है और इसको कैसे रोका जाए ये सोचना अब जरूरी हो गया हे ।

शनिवार, 2 अगस्त 2008

अगर आप कवि हैं शायर हैं तो कहीं ये बातें आप में भी तो नहीं हैं अगर हैं तो समय रहते दूर कर लीजिये

पिछले दिनों एक मुशायरे में जाने का मौका मिला और वहां पर एक सज्‍जन से मिलने को अवसर भी मिला इनसे मिलने की इच्‍छा काफी दिनों से थी । ये सज्‍जन ग़ज़ल को लेकर काफी काम कर रहे हैं । मगर मिलने के बाद एक ही बात मन में आई कि इनसे फिर न ही मिलना हो तो अच्‍छा है । क्‍यों लगा ये तो हम आगे बात करेंगें पर  मुझे ऐसा लगा कि कहीं मैं ग़लत तो नहीं हूं पर जब मेरी दूसरे शायरों से बात हुई तो लगभग सभी का ये ही मत था जो मेरा था । मैंने सोचा कि आखिर क्‍या ग़लत था उस व्‍यक्ति में जो कि इतने अच्‍छे काम करने के बाद भी लोग उसे इस तरह से ले रहे हैं । दरससल में उसमें कुछ ऐसी कमियां थीं जो कि किसी को भी समस्‍या दे सकती हैं । आइये उनमें से कुछ के बारे में बात करते हैं

1) कहीं भी किसी भी स्‍थान पर कविता या शेर सुनाने से बचें

हर शायर अपना नया कलाम सबको सुनाना चाहता है और उस पर सबकी प्रतिक्रिया चाहता है परन्‍तु उसके लिये अवसर की प्रतिक्षा करनी चाहिये ये नहीं कि कहीं भी किसी भी स्‍थान पर सुनाने लग जाएं । अंग्रेजी का एक शब्‍द है इरीटेट करना । दरअसल में हम सामने वाले को ये ही कर देते हैं जब हम ऐसा कुछ करते हैं । हर आदमी हर समय कविता के मूड में नहीं होता है । मेरे एक और शायर मित्र हैं वे तो नई ग़ज़ल लिखने के बाद इतने उत्‍तेजित हो जाते हैं कि तुरंत निकल पड़ते हैं और जो भी पहला आदमी मिलता है पान की दुकान पे चाय के स्‍टाल पर उसे वहीं सुना देते हैं । इससे दो नुकसान होते हैं पहला व्‍यक्तिगत और दूसरा साहित्‍य का । व्‍यक्तिगत तो ये कि आपसे लोग कतराने लगते हैं । और दूसरा ये कि आप साहित्‍य को इतना हल्‍का कर रह हैं कि स्‍थान भी नहीं देख रहे हैं । कविता इतनी सस्‍ती चीज नहीं है कि कहीं भी हो जाए । कविता तो सबसे गरिमामय शै: है जिसे हर कहीं पढ़ कर आप अपना और कविता दोनों का ही नुकसान कर रहे हैं ।

2 अपनी तारीफ करने का मौका दूसरों को दें

 ये एक बड़ी बुराई है जो कवियों और शायरों में आ जाती है । ये उन सज्‍जन में तो कूट कूट कर भरी थ्‍ज्ञी जिनका जिक्र पहले पेरा में किया है । भोपाल में रहने वाले एक विश्‍व विख्‍यात शायर में तो ये इतनी है कि जब भी आप उनसे बात करेंगें तो विषय एक ही होगा वे स्‍वयं । वे कहते हैं कि ग़ालिब और मीर के तो कुछ ही शेर लोगों को याद हैं पर मेरे तो कई कई शेर लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं । हांलकि से सच भी है पर बात वहीं है कि ये कहने का मौका दूसरों को दें । जब मैा उनसे बात करता हूं तो बस उन पर ही बात होती है । पहले ऊपर जिन शायर का जिक्र मैंने किया है उनमें भी ये ही ख्‍ब्‍त थी वे भी केवल अपनी ही बात करना पसंद करते थे । बात का विषय घूम कर वापस वे अपने पर ही ले आते थे । मैंने ऐसा किया मैंने वैसा किया वगैरह वगैरह । इतना मैं कि परेशानी ही हो जाए । वो ये नहीं जानते कि मैं मैं करने वाले बकरे को आखिरकार ईद पर काट ही दिया जाता है ।

अब नहीं कोई सुखनवर सब यहां हैं बकरियां, देखिये तो कर रहा मैं मैं यहां पर हर कोई

3 शेर कहने से पहले ये भी ध्‍यान दें

 मेरे एक मित्र हैं जो शेर कहने से पहले ये जरूर कहते हैं कि ये शेर मैंने बहुत अच्‍छा लिखा है । अब ये कहने की क्‍या जरूरत है । शेर तो संसद के पटल पर आ रहा है अच्‍छा है या बुरा ये तो श्रोता खुद ही तय कर देंगें । आप खुद न कहें । कई बार क्‍या होता है कि हम कोई शेर कहने ये पहले ही इतनी भूमिका बांध देते हैं कि लोगों को उससे बहुत उम्‍मीद हो जाती है और अगर खोदा पहाड़ वाली कहावत जैसा कुछ हो जाता है तो आपको दिक्‍कत हो जाती है । कई बार आपके तारीफ करने के कारण आपके शेरों को वो दाद नहीं मिल पाती जो मिलना है । मरे एक बुजुर्ग शायर मित्र हैं जो काफी अच्‍छे शेर कहते हैं और लहजा भी अच्‍छा है उनकी एक विशेषता ये है कि वे बस शेर पढ़तें हैं बातचीत नहीं करते हैं ।  मेरे पूछने पर उन्‍होंने कहा कि मियां सामईन खुद ही तय करेगा ना कि आप कितने पानी में हैं । और फिर जब आप कोई बहुत अच्‍छा शेर बिना किसी भूमिका के पढ़ देते हैं तो श्रोता जो अचानक चौंक कर मजे लेता है वो आनंद ही अलग होता है ।

4 विनम्र रहें

 न बन पा रहे हों तो कुछ दिन के लिये  राकेश खण्‍डेलवाल जी, नीरज गोस्‍वामी जी, समीर लाल जी और अभिनव शुक्‍ला  से कक्षाएं ले और सीखें कि विनम्र कैसे बना जाता है । विनम्रता हमें हमेशा ही फायदा पहुचाती है । कई बार ये होता है कि हम अपने अंदर के साहित्‍यकार को मार देते हैं केवल इसलिये ही क्‍योंकि हम विनम्र नहीं होते हैं । एक पुरानी कहावत को हमेशा याद रखें कि फलों से लदा हुआ पेड़ हमेशा झुका रहता है ( उदाहरण : राकेश खण्‍डेलवाल जी )  ।  अपने को ऐसा बनाएं कि लोग एक बार मिलने के बाद आपसे फिर मिलने कि इच्‍छा रखें ( उदाहरण : समीर लाल जी ) ।

5 दूसरों को भी सुनें

 ये एक बड़ी समस्‍या है जो इन दिनों के कवियों और शायरों में आ रही है कि वे ये तो चाहते हैं कि उनको सब सुनें पर वे किसी को भी नहीं सुनें । जब दूसरा पढ़ रहा होता है तो या तो वे ध्‍यान नहीं देते हैं या बात चीत में लग जाते हैं । आप अपने लिये जो चाहते हैं वो ही दूसरों को भी दें हमारा व्‍यवहार एक रबर की गेंद होता जितनी ताकत से दीवार पर मारेंगें उतनी ही गति से वापस हमारे पास आएगा । दूसरों की हौसला अफजाई करें और इस तरह के भाव रखें कि उसे लगे कि आपका पूरा ध्‍यान उस पर ही केन्द्रित है आप पूरे गौर से उसको सुन रहे हैं । विशेष्कर नई प्रतिभाओं को प्रोत्‍साहन ज्‍रूर दें । मेरे एक बुजुर्ग शायर मित्र हैं वे एक दिन एक नए शायर की ग़ज़ल पर झूम झूम कर दाद दे रहे थे । बाद में मैंने कहा कि चचा मियां लड़का तो बेबहर था और इस कदर दाद तो वे बोले मियां लौंडा आज ग़ज़ल में आया है कल बहर में भी आ जाएगा अगर आज ही हमने उसका हौसला तोड़ दिया तो कहींका नहीं रहेगा वो ।

6 सलाह और सुझाव सुनें जरूर

 कई बार ऐसा होता है कि हमारा कोई मित्र शायर हमें कुछ सुझाव देता है कि फलां शेर कमजोर है उसे फिर से करके देखों या बात पूरी नहीं हो रही है तो हम उसको ऐसे देखते हैं जैसे कि कोई दुश्‍मन हो । हम अपने लिखे को सर्वश्रेष्‍ठ मानते हैं और उस चक्‍कर में अपना ही नुकसान कर लेते हैं । पिछले दिनों कहीं पर मैंने ग़ज़ल सिखाने का काम शुरू किया था पर वही समस्‍या आई कि हर कोई अपने लिखे को ही श्रेष्‍ठ माने तो कैसे काम चलेगा । जो ये कह रहा है कि कुछ बात जमी नहीं उस पर ध्‍यान दें और ये सोचें के उसने ये क्‍यों कहा । सीखने की प्रक्रिया को जीवन भर जारी रखें ( उदाहरण : नीरज गोस्‍वामी जी )  और अपने लिखे को कभी भी अंतिम न माने । कई मशहूर शायरों की आप जीवनी पढ़ेंगें तो पता चलेगा कि वे लिखते थे फाड़ देते थे तब तक जब तक कुछ मुकम्‍मल सा  न बन जाए ।

चलिये आज के लिये इतना ही अगले अंक में और कुछ कमियों की चर्चा करेंगें ।

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