सबसे पहले तो ये कि मेरे विचार में कुछ ब्लाग ऐसे हैं जो कि इंटरनेट एक्सप्लोरर पर नहीं खुल पा रहे हैं शायद उनमें मेरा ब्लाग भी शामिल है । सो यदि आपके साथ भी ऐसा हो रहा हो तो एक काम करें कि इस ब्लाग को या तो मोजिला पर खोलें या फिर गूगल क्रोम पर । क्योंकि जो ब्लाग इंटरनेट एक्सप्लोरर पर नहीं खुल पा रहे हैं वे इन दोनों पर खुल रहे हैं ।
एक और अच्छी खबर है वो ये कि परम श्रद्धेय कुमार गंधर्व साहब के सुपुत्र श्री मुकुल शिवपुत्र जी के बारे में जो कुछ मैंने लिखा था कि वे फक्क्ड़ अवस्था में घूम रहे हैं तो वैसा होने के पीछे वही कारण था जो अक्सर कलाकारों में आ जाता है कि वे अचानक ही मोहभंग वाली स्थिति में आ जाते हैं और उनको ऐसा हो ही जाता है । वो कहते हैं ना जिंदगी को जो समझा जिंदगी पे रोता है तो वैसा ही कुछ कलाकारों के साथ भी हो जाता है । एक और शेर है जिंदगी को क़रीब से देखो इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा । बस वही बात कलाकारों के साथ भी हो जाती है वे जिंदगी को इतना करीब से देख लेते हैं कि उनको जिंदगी से मोह खत्म हो जाता है । कबीर का फक्कड़पन हो या सूफी संतों का फक्कड़पन उसमें एक प्रकार का जिंदगी पर हंसने का भाव होता है । खैर अच्छी खबर ये है कि मध्यप्रदेश के संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने एक बहुत अच्छा काम किया है । वैसे श्री शर्मा एक अत्यंत साहित्य अनुरागी प्राणी हैं । वे कवि सम्मेलन में स्वयं मंच से नीचे श्रोताओं में बैठ कर पूरा कवि सम्मेलन सुनते हैं । खैर तो श्री शर्मा ने श्री शिवपुत्र को भोपाल में रहने पर राजी कर लिया है और अब संस्कृति विभाग भोपाल के संस्कृति भवन में ही एक खयाल गायकी का प्रशिक्षण केन्द्र आज से प्रारंभ करने जा रहा है जहां पर श्री मुकुल शिवपुत्र नयी प्रतिभाओं को खयाल गायकी सिखाएंगें । आज शाम सात बजे उस केन्द्र का उद्घाटन है ।
चलिये आज बात करते हैं अंतिम दौर के शायरों की जिनमें दो शायराएं भी हैं ।
कंचन चौहान ग़ज़ल की पाठशाला की सबसे पुरानी सदस्य हैं कहें तो पिछले दो सालों से कक्षा में हैं । इनकी एक और विशेषता ये है कि ये खूब मन लगाकर पढ़ती तो हैं लेकिन होमवर्क करने का नाम जान पर बनती है । जितना मैं जानता हूं उससे तो ये ही पता चलता है कि ये पूरे ब्लाग जगत की सबसे चहेती कवियित्री हैं हां ये अलग बात है कि अपने ब्लाग पर कविता कम करती हैं चटर पटर बातें ज्यादा करती हैं । तो सुनिये इनकी ग़ज़ल ।
कंचन चौहान - तरही मुशायरा शुरू भी हो गया और हम वादा फिर नही पूरा कर पाये। मगर तरही मुशायरा में तकीतई और चीरफाड़ ना होने का फायदा उठा कर, कल रात के २ बजे जो सामने आया, वो भेज रही हूँ, इस डर से कि हर बार गोल करने से कहीं गुरुकुल से मुझे ही ना गोल कर दिया जाये। मीटर पर नही बैठाया है, बस लय में आ रहा था, लिखती चली गई।
जान ले के जायेगी, ये कहर की खामोशी,
कब खुदारा टूटेगी, उस नज़र की खामोशी।
आँख भीग कर सारे भेद खोल जाती है,
हम छिपा न पाते हैं, दिल जिगर की खामोशी।
पैर के निशाँ बेशक, ले गई लहर लेकिन,
मन में अब भी बैठी है, रेत पर की खामोशी।
रोज आप आते हैं, रोज सोचते हैं हम,
आज आप समझेंगे, इस नज़र की खामोशी।
आपके मिजाजों से, और गर्म लगती है,
कितनी जानलेवा है, दोपहर की खामोशी
पा के शोर करता है, है अजब ये सागर भी,
दे के कुछ नही कहती, है लहर की खामोशी
कंचन आपको लय छंद की जरूरत क्या है जो भी गा दो वो गीत हो जाये ।
दिगम्बर नासवा दिगम्बर नासवा की छंदमुक्त कविताओं का मैं जबरदस्त प्रशंसक हूं । विशेषकर प्रेम की कविताओं में वे जो बिम्ब लाते हैं वे अनोखे होते हैं । जहां तक ग़जल की बात है तो अभी बहुत लम्बा सफर तय करना है । किन्तु ये अच्छी बात है कि वे लिख रहे हैं और अब बहुत आत्म विश्वास के साथ लिख रहे हैं । और जो सबसे अच्छी बात है वो ये है कि उनके पास भाव हैं । जिसके पास भाव हैं उसे व्याकरण तो सिखाया जा सकता है लेकिन जिसके पास केवल व्याकरण हो उसे भाव कौन सिखायेगा । तो लीजिये ग़ज़ल
नफरतों से देखती तेरी नज़र की खामोशी
मार ना दे फिर मुझे तन्हा सफ़र की खामोशी
धूप की गठरी सरों पर बूँद भर पानी नहीं
कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी
चाहता हूँ खोलना दिल की किताबें बारहा
बोलने देती नहीं है उम्रभर की खामोशी
तू मेरी तन्हाई में चुपके से आ जाना कभी
में कहाँ सह पाऊंगा खूने-जिगर की खामोशी
तू जो मेरे साथ कर दे अपनी यादों के चिराग
काट लूँगा उम्र-भर मैं रह-गुज़र की खामोशी
शाम होते ही बुझा देता हूँ मैं घर के चिराग
जुगनुओं से महकती है मेरे घर की खामोशी
मीनाक्षी धनवंतरी जी आप ग़ज़ल की कक्षाओं की सबसे पुरानी स्टूडेंट हैं लेकिन कुछ दिनों से गायब थीं और इस मुशायरे के लिये अचानक ही प्रकट हुईं हैं । बीच में माड़साब ने काफी अनुपस्थिति लगाई है रजिस्टर में । मीनाक्षी जी ने ई की मात्रा को काफिया बनाकर एक कविता निकाली है । बहुत दिनों बाद आयीं हैं अत: आज काफिया गलत पकड़ने पर कोई सजा नहीं । सुनिये ग़ज़ल ।
मेरे बेजुबाँ लफ़्ज़ों पर हँसती सी खामोशी
कहती मुझे, तोड़ तू भी अपनी खामोशी
खुश्क आँखों में ठहर गई वीरान सी खामोशी
थरथराते होंठों पर ये सिसकती खामोशी
सूरज की मार से सहमी दिशाओं की खामोशी
तपते रेगिस्तान में ये जलाती खामोशी
कहती मुझे, तोड़ तू भी अपनी खामोशी
कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी
तो चलिये आनंद लीजिये इन ग़ज़लों का और मुझे आज्ञा दीजिये । अगली कक्षा में मिलते हैं कुछ नयी जानकारियों के साथ ।