सोमवार, 28 दिसंबर 2009

तरही मुशायरा ठीक नये साल से प्रारंभ होगा और ठीक नये साल से ही प्रारंभ होगा ग़ज़ल का नया ब्‍लाग । तरही को लेकर कई सारी ग़ज़लें मिल चुकी हैं कई बाकी हैं ।

तरही मुशायरे को लेकर रोज एक दो ग़ज़लें मिल रही हैं । बहुत ही अच्‍छी और सुंदर ग़ज़लें मिल रही हैं । लेकिन कुछ नियमित लिखने वाले अभी भी सो ही रहे हैं और जाने किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं । रविकांत ने मुशायरे की तारीख को लेकर कई बार प्रश्‍न किया है मेरे विचार से सीहोर में होने वाला मुशायरा वसंत पंचमी यानि 20 जनवरी को होने की संभावना है । क्‍योंकि उस दिन ही शिवना प्रकाशन द्वारा सरस्‍वती पूजन भी किया जाता है । उस दिन ही ये मुशायरा भी आयोजित किया जायेगा । शिवना प्रकाशन द्वारा पिछले कई सालों से ये सरस्‍वती पूजन आयोजित किया जाता है । इस बार चूंकि वसंत पंचमी कुछ पीछे आ गई है इसलिये नव वर्ष का आयोजन और मुशायरा दोनों ही उस दिन किये जा सकते हैं । फरवरी में आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी की सीहोर यात्रा प्रस्‍तावित है तथा उस दिन भी शिवना द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है ।

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ग़ज़ल की कक्षाओं को लेकर कई दिनों से ऊहापोह हो रही थी । उसके पीछे भी एक कारण ये था कि अब जो बहुत ही गूढ़ बातें शेष हैं वे इस प्रकार से सार्वजनिक रूप से नहीं बताई जा सकती । जिन लोगों ने अभी तक लगभग तीन सालों तक तप किया है वे ही उसके पात्र हैं । ऐसा नहीं है कि नये लोगों को इस ब्‍लाग पर जाने का मौका नहीं मिलेगा । लेकिन उनको ही मिलेगा जो सुपात्र भी हैं और जिनके मन में सीखने की कुछ इच्‍छा भी है । कई सारी बातें ऐसी हुई जिनसे कि मन खिन्‍न हो गया था । फिर लगा कि सर्वाजनिक न करके यदि इस प्रकार से आगे का काम किया जाये तो उससे मन को शांति मिलेगी कि जो कुछ भी ज्ञान है वो कम से कम वितरित तो हो रहा है । ये ब्‍लाग जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि आमंत्रण के द्वारा पढ़ा जाने वाला ब्‍लाग होगा । जिन लोगों को आमंत्रण भेजा जायेगा केवल वे ही अपने जीमेल एकाउंट से लागिन करके इसको पढ़ सकेंगें । दरअसल में ये ब्‍लाग कुल मिलाकर वह पुस्‍तक ही होगी जिसे मैं लिख रहा हूं । इसमें कुछ भी दूसरा कार्य नहीं होगा केवल ग़ज़ल की तकनीक पर ही चर्चा होगी । ब्‍लाग का नाम रखा गया है ग़ज़ल का सफर । इसमें कोई विजेट या साइड बार नहीं है । बहुत ही सीधा सा ब्‍लाग है । बाकी का सारा काम जिसमें तरही मुशायरा आद‍ि सब कुछ होता है वो इस ब्‍लाग पर पूर्ववत ही चलता रहेगा ।

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तरही के आयोजन के लिये ले जा रहा हूं घूरो मत कोई भी

तरही को लेकर कई सारी ग़ज़लें मिल चुकी हैं और कई सारे लोगों ने कहा है कि वे जलदी ही भेज रहे हैं । प्रयास ये है कि ठीक एक जनवरी 2010 को तरही का आयोजन प्रारंभ हो जाये और उसके साथ ही ग़ज़ल का सफर की अधिकारिक रूप से लान्चिंग भी हो जाये । वैसे इस बार पिछली बार के मुकाबले में कुछ अधिक ग़ज़लें मिलने की संभावना है । उसके पीछे कारण ये है कि पिछली बार त्‍यौहार की व्‍यस्‍तता थी । इस बार छुट्टियां चल रहीं हैं । इस बार का मिसरा  न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए  बहरे मुतकारिब पर है । बहरे मुतदारिक के बारे में मैं पहले ही बात चुका हूं कि ये एक गाई जाने वाली बहर है । और ये सालिम तथा मुजाहिब सारी बहरों में गाई जाने वाली होती है । बहरे मुतकारिब और बहरे मुत‍दारिक ये दोनों ही पंचाक्षरी रुक्‍नों से बनी मुफरद बहरें हैं । बाकी सारी मुफरद बहरें सप्‍ताक्षरी रुक्‍नों से बनी हैं । पिछली बार जो जुजबंदी के बारे में बताया गया था उसको आधार बना कर हम बहरे मुतकारिब के रुक्‍न के जुज़ निकाल सकते हैं । बाकी बातें तो हम ग़ज़ल के सफर पर करेंगें ही ।

मन खिन्‍न है । मन खिन्‍न है कल  आये  कुछ मेल पढ़कर । दरअसल में ऐसा लगता है कि अब मानवीय मूल्‍यों, रिश्‍तों नातों का युग बीत ही चुका है । अब सब कुछ पैसा ही हो चुका है । मन दुखी है बहुत दुखी है । पता नहीं हम किस ओर जा रहे हैं । यद्यपि इस विषय में एक बार सुधा दीदी से विस्‍तार से चर्चा हुई थी तथा उन्‍होंने भी इस मामले को लेकर दुख व्‍यक्‍त किया था । किन्‍तु अब जब उसी प्रकार के मामले में मुझे भी घसीट लिया गया तो मुझे ऐसा लगा कि मैं भी अपराधी हो गया हूं । हम कब इन्‍सानों को इन्‍सान समझना प्रारंभ करेंगें । हम कब रिश्‍तों से ऊपर पैसा होता है ये मानना बंद करेंगें । बहुत बहुत दुख होता है इस प्रकार के मामलों में । ऐसा लगता है कि वास्‍तव में जीवन मूल्‍य समाप्‍त होते जा रहे हैं । यद्यपि मैं अपराधी नहीं हूं फिर भी चूंकि मेरा नाम उपयोग में लाया गया है इसलिये मैं क्षमाप्रार्थी हूं । इस विषय पर एक तीखी ग़ज़ल लिख रहा हूं जिसमें अपनी पूरी पीड़ा को पूरी ताकत के साथ झोंक दूंगा । इस विषय पर आज इतना दुखी हूं कि बस । लेकिन पीड़ा से जन्‍म होता है रचनाओं का सो हो सकता है कुछ अच्‍छा हो जाये । 

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

तरही मुशायरे को लेकर कुछ लोगों की ग़ज़लें मिल चुकी हैं क्रिसमस से प्रारंभ करने की इच्‍छा है । आज जानिये ये कि कैसे बनती हैं ग़ज़लें, उसके मूल तत्‍व क्‍या होते हैं ।

इस बार के तरही को लेकर कुछ विशेष करने की इच्‍छा है । इच्‍छा ये है कि इस बार तरही का आयोजन दोनों प्रकार से हो । हालंकि तारीख को लेकर कुछ असमंजस है फिर भी वसंत पंचमी को शिवना प्रकाशन का एक आयोजन होता है सरस्‍वती पूजन का, जो कि पिछले कई सालों से होता आ रहा है । इस बार वसंत पंचमी 20 जनवरी को है सो हो सकता है कि उसी दिन आयोजन किया जाये । बाकी जैसा समय के हाथ में हो जाये । खैर अभी तो उसमें काफी दिन हैं । सरस्‍वती पूजन का कार्यक्रम पिछले पांच छ: सालों से शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित किया जाता रहा है । और उसमें एक शिवना सारस्‍वत सम्‍मान भी प्रदान किया जाता है । डॉ विजय बहादुर जी जब तक भोपाल में थे तब तक वे इस कार्यक्रम में ज़रूर आते थे । तो संभावित तारीख बीस जनवरी हो सकती है मुशायरे की ।

शिवना प्रकाशन को मिला पीआइएन आदरणीय सुधा दीदी शिवना प्रकाशन के पीआइएन नंबर को लेकर हमेशा ही मुझे बोलती थीं । उन्‍होंने ही इसको लेकर काफी जानकारी मुझे प्रदान की । शिवना को अपना पीआइएन नंबर मिला है तो उसके पीछे सुधा दीदी का प्रोत्‍साहन ही है । पीआइएन नंबर होता है पब्लिशरस आइडेंटिफिकेशन नंबर, जो कि विश्‍व स्‍तर पर ग्रंथालयों द्वारा उपयोग किया जाता है । इसी आधार पर बनता है आइएसबीएन नंबर । अभी तक शिवना की पुस्‍तकों पर ISBN नहीं जाता था। अब चूंकि शिवना प्रकाशन को अपना पीआइएन मिल चुका है सो अब आने वाली सारी पुस्‍तकों पर ISBN  जायेगा । शिवना के लिये एक और महत्‍वपूर्ण पल है इसलिये आप सब को इसमें सहभागी बना रहा हूं । क्‍योंकि शिवना प्रकाशन आप सब का है ।

श्री नारायण कासट का आना  मैं बता चुका हूं कि श्री नारायण कासट जी से मैंने कविता का क ख ग सीखा है । पिछले ढाइ सालों से वे बिस्‍तर पर हैं । रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्‍से में समस्‍या आ जाने के कारण वे उठ नहीं पा रहे थे । किन्‍तु अपनी जीजिविषा के चलते वे खड़े होने में कामयाब रहे तथा कल लगभग ढाइ साल बाद वे चलते हुए मेरे कार्यालय आये तो मेरे हर्ष का ठिकाना ही नहीं रहा । वे बहुत अच्‍छे कवि हैं किन्‍तु उससे भी अच्‍छे मार्गदर्शक हैं । दादा बालकवि बैरागी और नीरज जी के मित्र हैं । कैफ भोपाली साहब से उनका खासा याराना रहा । शिवना संस्‍था उनकी ही खड़ी की हुई है । पिछले ढाई सालों में जो कार्यक्रम हुए उनमें उनकी कमी बहुत खलती थी । लेकिन अब आशा है कि उनकी उपस्थिति से कार्यक्रमों की गरिमा बढ़ेगी ।

ग़ज़ल का ढांचा मुझे भी ये लग रहा है कि कुछ नया बताना ही चाहिये ताकि कुछ आगे सिलसिला बढ़े । कई लोग इस बात से नाराज़ हैं कि अब आगे के पाठ नहीं हो रहे हैं तरही के चक्‍कर में । खैर जो भी हो हम कुछ बातें करते हैं आगे की । ग़ज़ल की विस्‍तृत जानकारी के लिये एक ब्‍लाग अलग बनाया जा रहा है जिसे केवल आमंत्रण के द्वारा ही पढ़ा जा सकेगा । वह ब्‍लाग सार्वजनिक नहीं होगा । आज हम बात करते हैं ग़ज़ल के सबसे छोटे हिस्‍से की । असल में पूर्व की कक्षाओं में मैंने ये बताया है कि रुक्‍नों से मिसरा, मिसरो से शेर और शेरों से ग़ज़ल बनती है । तो उस हिसाब से रुक्‍न सबसे छोटा हिस्‍सा होता है । किन्‍तु आज हम उस रुक्‍न के भी खंड करते हैं । खंड को उर्दू में जुज़ कहते हैं सो यहां पर भी रुक्‍नों के जो छोटे हिस्‍से होते हैं उनको जुज़ ही कहा जाता है । जिस प्रकार शेर का बहुवचन अशआर होता है, रुक्‍न का बहुवचन अरकान होता है वैसे ही जुज़ का बहुवचन अजज़ा होता है । इसलिये याद रखें कि जब कोई कह रहा है अरकान तो उसका मतलब है कि वह रुक्‍नों कह रहा है रुक्‍न का बहुवचन । कोई कह रहा है अशआर तो उसका मतलब वह एक से ज्‍यादा शेरों की बात कर रहा है । और अजज़ा का मतलब कई खंड । तो बात करते हैं इन अजज़ा की । ये तो मैं बहुत पहले ही बता चुका हूं रुक्‍न मात्राओं के गुच्‍छे होते हैं । तथा एक से लेकर आठ मात्रा तक के ये गुच्‍छे ग़ज़ल में या कविता में उपयोग किये जाते हैं । अब जब हम जुज़ की बात कर रहे हैं तो उसका मतलब ये कि एक ही रुक्‍न में मात्राओं के एक से ज्‍यादा गुच्‍छे होते हैं जिनको मिलाकर रुक्‍न बनते हैं । ग़ज़ल के पिंगल में जो मात्राओं के गुच्‍छे रुक्‍न बनाने के लिये उपयोग किये जाते हैं वे कुल छ: हैं जो इस प्रकार से हैं । 11, 2, 12, 21, 112, 1112, इन सबके कुछ विशिष्‍ट नाम भी हैं ।पहले दो जुज़ दो मात्रिक हैं, फिर दो जुज़ तीन मात्रिक हैं फिर एक चार मात्राओं का जुज़ और फिर एक पंचमात्रिक जुज़ है । उदाहरण

11 2 12 21 112 1112
तफ लुन,ई, मुस्‍, ला मुफा, एलुन,फऊ फाए,लातु मुतफा, एलतुन फएलतुन

अब तीन जुज़ लेकर एक रुक्‍न बनाते हैं 12+2+2=1222 ( मुफा + ई + लुन = मुफाईलुन ) बहरे हजज का रुक्‍न

इन सबके नाम और साथ में इता के दोष की विस्‍तृत जानकारी अगले अंक में ।

तरही मुशायरा  इस बार का तरही मुशायरा बहरे मुतकारिब  की मुस्‍मन सालिम पर है और उसके कई सारे उदाहरण पूर्व में ही दिये जा चुके हैं । कई सारे लोगों की ग़ज़लें मिल भी चुकी हैं । कुछ लोग अभी सो रहे हैं तथा समय आने पर ही जागेंगे । हम हिन्‍दुस्‍तानी तो वैसे भी बिजली, टेलीफोन के बिल तक अंतिम तारीख में ही जमा करते हैं । मिसरा एक बार फिर याद कर लें  न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए ( 122-122-122-122) ये तो पूर्व में ही बता चुका हूं कि यदि आपने मतले में खिलाए और मिलाए की तुक मिलाई है तो फिर पूरी ग़ज़ल में हिलाए, दिलाए, जलाए, गलाए ही लेकर चलना है । अर्थात यदि आपको स्‍वतंत्र होकर ग़ज़ल लिखनी है तो फिर आप मतले में ही स्‍वतंत्र हो जाएं । दिलाए के साथ गिराए को ले लिया तो पूरी ग़ज़ल में आप आए उच्‍चारण वाला कोई भी काफिया रख सकते हैं ।

तो चलिये मिलते हैं अगले अंक में बहरे मुतकारिब की जानकारी के साथ और साथ में इता की जानकारी के साथ । ( नोट : जिन लोगों ने व्‍यस्सता का बहाना बना कर मुशायरे से अनुपस्थित रहने की एप्‍लीकेशन दी है उनकी एप्‍लीकेशन नामंजूर कर दी गई है । )  

कुछ वेब साइटों पर कार्य चल रहा है पत्रिका परिकथा की वेबसाइट http://www.parikathahindi.com/  कल ही बनाकर अपलोड की है हालंकि अभी काम चल रहा है फिर भी एक बार देख कर बताएं कि कहां कहां क्‍या कमी हैं ।

सोमवार, 14 दिसंबर 2009

नीरज गोस्‍वामी जी और आदरणीय भाभीजी को विवा‍ह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं, और कुछ बातें इस बार के तरही मुशायरे के मिसरे की मुश्किलों के बारे में ।

नीरज जी ये बात हो रही थी उस दिन तो उन्‍होंने मुझसे पूछा कि आपने 10 दिसंबर को ही शादी क्‍यों की मैंने कहा कि नीरज जी दरअसल में बात ये है कि दो दिसंबर की रात को भोपाल गैस कांड हुआ, फिर उसके बाद में छ: दिसंबर को बाबरी मस्जिद कांड हुआ तो मुझे लगा कि अपना कांड करने के लिये भी दिसंबर का माह ही ठीक है । तो मैंने दो दिसंबर और छ: दिसंबर की कन्‍टीन्‍यूटी को बरकरार रखने के लिये छ: दिसंबर के ठीक चार दिन बाद अर्थात दस दिसंबर को शादी की । इस पर नीरज जी ने हंसते हुए बताया कि ये बहुत अच्‍छा है क्‍योंकि ठीक चार दिन बाद अर्थात चौदह दिसंबर को मेरी शादी की वर्षगांठ है । ये भी खूब रही कि चार चार दिन के अंतर से सारी घटनाएं हुईं ।

विवाह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं

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नीरज जी का जन्‍मदिन भी चौदह को होता है और विवाह की वर्षगांठ भी चौदह को है । और एक बात ये कि नीरज जी का विवाह ठीक पच्‍चीस की उम्र में हो गया था । 1975 के चौदह दिसंबर को जब उनका विवाह हुआ तो वे पच्‍चीस वर्ष पूरा कर चुके थे । उनका जन्‍मदिन चौदह अगस्‍त को आता है । नीरज जी के बारे में यदि लिखने बैठूं तो शायद शब्‍दों का ही टोटा पड़ जायेगा । उनके जैसा व्‍यक्ति दूसरा मैंने नहीं देखा है । मैं बहुत दिनों से उनके लिये कोई ठीक सा विश्‍लेषण ढूंढ़ रहा था लेकिन मिल ही नहीं रहा था । अचानक ही कल रात को टीवी पर देखा तो सांताक्‍लाज नजर आ रहे थे । बस मुझे मेरा नाम मिल गया । तो नीरज जी की तुलना सांता क्‍लाज से की जा सकती है । ( बेशक वे इतने बूढ़े नहीं हैं ) किनतु सबके ब्‍लागों पर वे जिस प्रकार खुशियों के तोहफे बांटते फिरते हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि ये एक ऐसे सांताक्‍लाज हैं जो आने के लिये किसी क्रिसमस का इंतजार नहीं करते ।

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मुझे तो सांताक्‍लाज ने कुछ तोहफे सचमुचे के भी दिये हैं जो मेरे लिये अमूल्‍य हैं । ( हां चिक्‍की का पैकेट अभी तक नहीं मिला और पूरी ठंड बीती जा रही है । ) आदरणीया भाभीजी से अभी तक मुलाकात नहीं हो पाई है किन्‍तु वे भी साहित्‍य की शौकीन हैं ये मुझे पता है । क्‍योंकि मेरी पुस्‍तक ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी की कहानियों पर जिस प्रकार के उनके कमेंट मुझे नीरज जी के माध्‍यम से मिले वो कमेंट कोई स्‍थापित साहित्‍यकार ही दे सकता है । ( कही ऐसा तो नहीं कि ग़ज़लें वास्‍तव में आदरणीय भाभीजी ही लिखती हों और नीरज जी उनको अपने नाम से ब्‍लाग पर पेल देते हैं । ) विशेषकर कुछ जटिल कहानियों पर जिस प्रकार से उनके कमेंट मिले मैं हैरत में रह गया । आदरणीय भाभीजी आलू के परांठे बहुत अच्‍छे बनाती हैं ये मैंने सुना है किन्‍तु ज्ञात नहीं कि उन परांठों को चखने का सौभाग्‍य कब मिलेगा । मिष्‍टी के बारे में क्‍या कहूं मिष्‍टी तो अपने दादा दादी की जान है, वो है ही इतनी सुंदर और प्‍यारी । तो हम सबकी तरफ से नीरज जी को और आदरणीया भाभी जी को विवाह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं । और ये दो सर्वकालिक महान गीत हम सबकी तरफ से दोनों को सप्रेम भेंट ।

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गीत क्रमांक 1

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गीत क्रमांक 2

चलिये अब पूरी कक्षा प्रतीक्षा कर रही है कि कब विवाह की वर्षगांठ की पार्टी की बची खुची मिठाई खाने को मिले ।

इस बार के तरही को लेकर कई सारे मेल मिले हैं । कई लोगों ने काफिये को जानने के बारे में लिखा है । वैसे तो मैंने उस पोस्‍ट में ही लिख दिया था कि यदि आपने मतले में कोई बंदिश लगाई तो उसको पूरी ग़ज़ल में निभाना होगा । जैसे यदि मतले में आपने लिया चलाए और खिलाए  तो फिर आपको पूरी ग़ज़ल में यही निभाना होगा मसलन हिलाए, दिलाए, मिलाए,  । और यदि आपने ले लिया डराए गिराए  तो फिर अब आप बंध गये हैं  राए साथ । वैसे तो हम देवनागरी में ग़ज़ल लिखते हैं अत: ईता का दोष कोई मायने नहीं रखता क्‍योंकि वह उर्दू लिपि के साथ ही होता है । किन्‍तु फिर भी यदि कोई ईता का दोष नहीं रखना चाहता तो वो हर्फे रवी ( तुक का अक्षर ) काफिये से हटा के फिर काफिये को देखे यदि अक्षर समान अर्थ उत्‍पन्‍न कर रहा होता है तो इसका अर्थ है कि ये काफिया नहीं चल सकता है । किन्‍तु ये पूरी तरह से उर्दू के लिये है ।

तुम्‍हीं ने दर्द दिया है तुम्‍ही दवा देना :  जिसने भी काफिया दिया है वही सारे सवालों का उत्‍तर भी देगा और हासिले मुशायरे का चयन भी वही करेगा । तो इस बार डॉ आज़म का मिसरा है इसलिये अगली पोस्‍ट में उनके ही द्वारा इस मिसरे पर काफियों की जानकारी दी जाएगी । ये क्रम आगे भी चलेगा कि जो भी व्‍यक्ति मिसरा देगा वही बताएगा कि काफिये क्‍या होंगें और अन्‍य तकनीकी जानकारी क्‍या होगी । ( जिन्‍होंने इस बार का मिसरा नहीं दिया वे सोच रहे होंगें बच गये रे )

इस बार का मुशायरा होगा भी :  इस बार नववर्ष के प्रथम या द्वितीय रविवार को मुशायरे का बाकायदा सीहोर में आयोजन भी किया जाएगा । इसमें भोपाल और सीहोर के शायर काव्‍य पाठ करेंगें । आप सब भी सादर आमंत्रित हैं । प्रत्‍यक्ष न आ सकें तो नेट के माध्‍यम से काव्‍य पाठ करें ।

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

और ये रहा नये साल के तरही मुशायरे के लिये मिसरा 'न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए' बहरे मुतकारिब पर एक गैर मुरद्दफ मिसरा

पिछली बार का तरही मुशायरा काफी शानदार रहा है और उसके बाद से ही ग़ज़ल की कक्षाओं में कुछ सुस्‍ती आ गई है । किसी भी सफल आयोजन के बाद ऐसा होता ही है कि कुछ दिनों के लिये मन कुछ करने को नहीं होता है । ग़ज़ल की कक्षाओं में वैसे तो हम काफी कुछ काम करते ही रहते हैं लेकिन फिर भी कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि अप्रत्‍यक्ष की जगह पर प्रत्‍यक्ष रूप से कार्य करना चाहिये । वैसे तरही मुशायरा एक बहुत ही अच्‍छा तरीका होता है अपने आप को निखारने का । अलग अलग बहरों पर काम करते समय हम बहुत कुछ सीख जाते हैं उन बहरों के बारे में । दूसरा ये कि जब हम दूसरों को अच्‍छे शेर निकाल के लाते देखते हैं तो हमें भी लगता है कि उफ हम क्‍यों नहीं सोच पाये इस एंगल से । वैसे भी ग़ज़ल की कक्षाओं में हम हर बार एक नयी बहर पर काम कर रहे हैं और उस बहर की उप बहरों के बारे में भी जानने का प्रयास करते हैं । हम अब तक काफी बहरों पर काम कर चुके हैं तथा अभी भी काफी बहरें शेष हैं । मेरे विचार में तरही मुशायरे के माध्‍यम से बहरों के बारे में जानने का ये कार्य ज्‍यादा बेहतर है फिर भी आप सबके विचार आमंत्रित हैं कि आप क्‍या चाहते हैं । यदि आप चाहें तो तरही को बंद करके सीधे सीधे कक्षाओं के माध्‍यम से भी कार्य किया जा सकता है ।

खैर 2009 भी बीत रहा है और देहरी पर आकर खड़ा हो रहा है 2010 । साल बीतते रहते हैं और नये साल आते रहते हैं । ऐसा लगता है कि अभी तो आया था 2009 और इतनी जलदी बीत भी गया । दिसंबर के भी सात दिन बीत गये और अब केवल 23 दिन बाकी हैं वर्ष के समापन में । पृथ्‍वी ने अपना चक्र पूरा भी कर लिया और हमारे कई वे सारे काम जो हमने 2009 में करने के सोचे थे अभी अधूरे ही हैं । 2010 के स्‍वागत के लिये जनवरी के प्रथम दिन से ही तरही मुशायरे का आयोजन किया जायेगा । अनुरोध है कि अंतिम समय में भेजने की प्रतीक्षा न करें । दीपावली में भी ये ही हुआ कि कई लोगों ने तरही की अंतिम किश्‍त लगने के बाद भी ग़ज़लें भेजीं, जिनको शामिल करना फिर संभव नहीं था ।

इस बार के तरही के लिये बहर तो पूर्व में ही बताई जा चुकी थी । मेरी सबसे पसंदीदा बहर बहरे मुतक़ारिब । और उसमें भी मुसमन सालिम बहर । इसी बहर पर मिसरा बनाने का प्रयास कर रहा थ नये साल को लेकर । कुछ सूझ नहीं रहा था । तभी डॉ आज़म का आगमन हुआ और उनको समस्‍या बताई गई । कुछ देर की माथा पच्‍ची के बाद उन्‍होंने ही मिसरा बना दिया । न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए मिसरे को लेकर फिर दोनों ने विचार किया तो निर्णय लिया कि इसको ग़ैर मुरद्दफ ही जाने देते हें । अर्थात बिना रदीफ की ग़ज़ल जिसमें केवल काफिया है खिलाए । अर्थात आए  की ध्‍वनि पर ही काम करना है । ये बात बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिये कि यदि आपने मतले में मिलाए  और खिलाए  जैसा काम्बिनेशन ले लिया दोनों मिसरों में तो फिर आपका काफिया लाए  हो जाएगा ।

बहरे मुतक़ारिब मुसमन सालिम का वज़न 122-122-122-122 होता है जिसे हम फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन  या सामान्‍य भाषा में  ललाला-ललाला-ललाला-ललाला  कह सकते हैं । मुगले आज़म का गीत मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोए  त‍था  नमामी शमीशान निर्वाण रूपं तो हम सबके लिये परिचित हैं हीं । मुहब्‍बत ( ललाला) की झूठी ( ललाला) कहानी ( ललाला) पे रोए ( ललाला)

पहले सुनिये शिव रुद्राष्‍टक नमामी शमीशान निर्वाण रूपं श्री रमेश भाई ओझा जी की आवाज़ में

रविकांत ने इस पर कई उदाहरण छांट के भेजे हैं ये सब कुछ रविकांत के सौजन्‍य से हैं आपकी सुविधा के‍ लिये ताकि आपको बहर समझ में आ जाये । उदाहरणों के लिये धन्‍यवाद देना हो तो रवि को ही दें

१. तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं ,वफ़ा कर रहा हूं वफ़ा चाहता हूं २. तुम्ही मेरी मंदिर तुम्ही मेरी पूजा, तुम्ही देवता हो, तुम्ही देवता हो, ३. बहुत देर से दर पे आंखें लगी थीं, हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी, ४. तेरी याद दिल से भुलाने चला हूं, कि खुद अपनी हस्ती मिटाने चला हूं, ५. यूं ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना, तेरी याद तो बन गई इक बहाना, ६. चुरा ले न तुमको ये मौसम सुहाना, खुली वादियों में अकेली न जाना ,७. ये माना मेरी जां मुहब्बत सज़ा है, मज़ा इसमें इतना मगर किसलिये है, और इसी धुन पर ये भजन भी जो हिंदी प्रदेशों में अच्छा लोकप्रिय है- अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है, भटकते-भटकते न जाने कहां से, तुम्हारे महल के करीब आ गया है
यह छंद हिंदी में भी समादृत है, कुछ उदाहरण-
८. आचार्य शंकर का चर्चित श्लोक-
न पुण्य़ं न पापं न सौख्यं न दुःखं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदाः न यज्ञाः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता, चिदानंद रूपः शि्वोऽहं शिवोऽहं
९. शिवाष्टक, जो पंडित जसराज जी की आवाज में यहां उपलब्ध है-

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं, जगन्नाथ्नाथं सदानंदभाजं
भवत्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शंकरं शम्भुमीशानमीडे

और वेद सार शिव स्‍तोत्र सुनिये श्री रमेश भाई ओझा जी के स्‍वर में


१०. एक उदाहरण जो संभवतः बच्चन जी की कविता से है-
अकेला चला था अकेला चलूंगा, सफ़र के सहारों न दो साथ मेरा
सहज मिल सके वो नहीं लक्ष्य मेरा, बहुत दूर मेरी निशा का सवेरा
अगर थक गये हो तो तुम लौट जाओ, गगन के सितारों न दो साथ मेरा

तो होमवर्क दिया जा चुका है और अब काम प्रारंभ करने का समय है । उदाहरण इतने सारे दिये जा चुके हैं कि कुछ और बताने की आवश्‍यकता नहीं है । सब कुछ तैयार है । अब तो आपको जल्‍दी से अपनी अपनी रचनाएं तैयार करके भेजनी हैं । तो चलिये शुरू करिये होमवर्क ।

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