सोमवार, 11 नवंबर 2024

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं मन्सूर अली हाश्मी जी के साथ, जो अपनी दूसरी ग़ज़ल लेकर हमारे बीच उप​स्थित हुए हैं

बस अब दीपावली का पर्व बीत रहा है। कल देव प्रबोधिनी एकादशी है जिसके साथ ही आंशिक रूप से दीपावली का पर्व समाप्त हो जाता है। कहीं-कहीं यह कार्तिक पूर्णिमा तक भी चलता है। इस प्रकार हमारे यहाँ भी दीपावली का पर्व अभी भी चल रहा है।

इन चराग़ों को जलना है अब रात भर

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं मन्सूर अली हाश्मी जी के साथ, जो अपनी दूसरी ग़ज़ल लेकर हमारे बीच उप​स्थित हुए हैं।  

मन्सूर अली हाश्मी
 
इन चराग़ों को जलना है अब रात भर
आरज़ूओं को पलना है अब रात भर
तेज़ रफ्तार ख़रगोश सोया हुआ
चाल कछुए को चलना है अब रात भर

दोपहर, सह पहर बल्कि आठों पहर
दिल ए नादां मचलना है अब रात भर
दिन मटर गश्तियों में गुज़ारा तो फिर
बच्चा तुतलाया, 'ढुलना है अब लात भल'

दिन में खेला किये है जो गैजेट्स से
थक के आंखें मसलना है अब रात भर
'ट्रम्प' का कार्ड चल ही गया बिल अख़ीर
सब उथलना-पुथलना है अब रात भर

जब बुढ़ऊ कह दिया है तो देखे गुलांट
बंदरों को उछलना है अब रात भर !
कच्चा-पक्का पढ़ा, कुछ तो लिख भी दिया
'हाश्मी' को उगलना है अब रात भर


इस बार हाश्मी जी सिरदार ग़ज़ल लेकर उपस्थित हुए हैं। पिछली बार बेमतला ग़ज़ल लेकर आये थे। मतले में ही चरागों के माध्यम से आरज़ुओं के पलने का दृश्य बहुत सुंदरता के साथ उपस्थित किया गया है। और अगले ही शेर में ख़रगोश का सोना और कछुए का आगे निकलना प्रतीक के माध्यम से बहुत अच्छे से आया है। इश्क़ में दिल का आठों पहर मचलना ख़ूब है। और बच्चे के तुतलाने को अगले शेर में बहुत अच्छे से पिरोया गया है। यह अपनी तरह का अनूठा प्रयोग है। फिर दिन भर मोबाइल पर आँखें दुखाने के बाद रात का मंज़र भी अगले शेर में सुंदर आया है। ट्रम्प के साथ ग़ज़ल का शेर ग्लोबल होकर सामने आ रहा है। बंदर की गुलाँट को भी अगले शेर में बहुत अच्छे से पिरोया है। मकते में अपने आप को ही कें​द्र में रख कर अपनी ही आलोचना करने का अच्छा प्रयास है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

तो आज की इस सुंदर ग़ज़ल ने जैसे दीपावली का माहौल ही रच दिया है। आप दिल खोल कर दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं प्रवासी रचनाकार गुणी कवयित्री रेखा भाटिया के साथ, जो अमेरिका से हमारे बीच उप​स्थित हुई हैं

चूँकि अभी देव प्रबोधिनी एकादशी नहीं हुई है, इसलिए हम कह सकते हैं कि दीपवली का पर्व अभी भी जारी है। वैसे तो दीपावली का पर्व पूरे अठारह दिन का होता है, जो धन तेरस से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस हिसाब तो अभी दीपावली के इस पर्व के और भी कुछ दिन बचे हुए हैं। अभी तो हम कार्तिक पूर्णिमा तक दीपावली का पर्व मना सकते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान के बाद पर्व संपन्न होता है।

इन चराग़ों को जलना है अब रात भर

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं प्रवासी रचनाकार गुणी कवयित्री रेखा भाटिया के साथ, जो अमेरिका से हमारे बीच उप​स्थित हुई हैं। 

रेखा भाटिया
 
दिन के फूलों को ढलना है अब रात भर
और कलियों को खिलना है अब रात भर
मछलियाँ पेड़ पर, पानियों में विहग
सृष्टि को ही बदलना है अब रात भर

नींद तो उड़ चुकी, ख़्वाब भी गुम हुए
सिर्फ़ डर को ही पलना है अब रात भर
ज़िंदगी के नशे में है घायल ये मन
मोम बन कर पिघलना है अब रात भर

उत्सवों का है मेला फ़कत ज़िंदगी
रौशनी से बहलना है अब रात भर
है चुनावों की बेला, खरा क्या करे
खोटा सिक्का उछलना है अब रात भर

जाग उठे हैं वो जो कब से सोए ही थे
जाग कर उनको चलना है अब रात भर
रौशनी तेरे हिस्से की मुझसे है ली
'इन चराग़ों को जलना है अब रात भर'


मतले में ही दिन भर के खिले हुए फूलों के रात भर मुरझाकर ढलने और नयी कलियों के खिलने के बहाने बहुत अच्छे से ज़िंदगी का दर्शन प्रस्तुत किया गया है। और अगले ही शेर में उलटबाँसी विधा का बहुत अच्छे से प्रयोग कर स्वप्न विज्ञान को दिखाया है। जब आँखों से नींद और ख़्वाब दोनों चले जायें तो सिर्फ़ डर ही शेष रह जाता है। ज़िंदगी का अपना ही एक नशा है जो जब उतरता है तो घायल मन मोम सा पिघलता रहता है। हमारी ज़िंदगी उत्सवों का एक मेला ही तो है, हम सब रौशनी से जिसमें रात भर बहलते रहते हैं, बहुत ही सुंदर। अमेरिका में भी चुनाव का समय है, ऐसे में चुनाव के दौरान खरों का छुप जाना और खोटे का सामने आ जाना, बहुत सुंदर। जब तब इंसान सोया रहता है, तब तक सफ़र उसके हिस्से में नहीं आता, मगर जागते ही उसको सफ़र में उतर जाना पड़ता है, सुंदर दर्शन जीवन का। और अंत में प्रेम के शेर में बहुत ही सुंदर गिरह बाँधी गयी है तरही मिसरे की। वाह वाह वाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल।

तो आज की इस सुंदर ग़ज़ल ने जैसे दीपावली का माहौल ही रच दिया है। आप दिल खोल कर दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

सोमवार, 4 नवंबर 2024

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीन रचनाकारों तिलक राज कपूर, मन्सूर अली हाशमी, और पारुल सिंह के साथ।

दीपावली का पर्व बीत भी गया और उसके साथ ही पाँच दिनों का रौशनी का पर्व समाप्त हो गया। मगर देर से गाड़ी पकड़ने वालों को देर से ही गाड़ी पकड़ कर बासी त्योहार मनाने में आनंद आता है। तो आज भी कुछ रचनकार अपनी रचनाएँ लेकर आ रहे हैं, इन्होंने देर से गाड़ी पकड़ी है, मगर रचनाएँ दुरुस्त हैं। मतलब यह कि कहावत को पूरा किया है कि देर आयद दुरुस्त आयद। वैसे भी हमारे यहाँ तो परंपरा रही है बासी त्योहार मनाने की। तो आइए आज बासी दीपावली के पटाखे चलाते हैं।

इन चराग़ों को जलना है अब रात भर  
आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीन रचनाकारों तिलक राज कपूर, मन्सूर अली हाशमी, और पारुल सिंह के साथ।

तिलक राज कपूर

आदतों को बदलना है अब रात भर
उलझनों से निकलना है अब रात भर।
अवसरों से भरी दोपहर में उठी
चाहतों को कुचलना है अब रात भर।

सूर्य की रौशनी में जमी बर्फ़ ने
धीरे-धीरे पिघलना है अब रात भर।
ख़्वाब की जिंदगी हम बहुत जी लिए
इक हक़ीक़त में ढलना है अब रात भर।

दिल को समझा रहा हूँ कि ए दिल तुझे
पिय मिलन को मचलना है अब रात भर।
शाम तक तो न जाने कहाँ गुम रहे
तेरी राहों पे चलना है अब रात भर।

युग प्रवर्तन की आशा इन्हें सौंप दी
'इन चराग़ों को जलना है अब रात भर।

मतले में ही बहुत अच्छे से आदतों को बदल कर उलझनें समाप्त करने की बात कही गयी है। और उसके बाद दिन के उजाले में जागी हसरतों को रात के अँधेरे में कुचलने का प्रयोग बहुत अच्छा है। एक विरोधाभास के रूप में सूर्य की रौशनी में बर्फ़ का जमना और रात को पिघलना बहुत सुंदर है। और ख़्वाब की दुनिया से वापस हक़ीक़त में आना बहुत​ अच्छे से शेर में आया है। पिय मिलन को मचलने को उतारू दिल को रात की सच्चाई बताने का शेर भी सुंदर बना है। जो शाम तक कहीं दिखाई दिए उनकी राहों पर चलने का प्रयोग अच्छा है। और अंतिम शेर में गिरह के साथ मिसरा ऊला बहुत सुंदर बना है। विशेष कर युग-प्रवर्तन यह शब्द युग्म बहुत सुंदरता के साथ मिसरे में बाँधा गया है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
 
 
मन्सूर अली हाश्मी

शौर कर के पटाख़े तो बुझ भी गये
'इन चराग़ों को जलना है अब रात भर'
कुछ मुरादें न बर आईं दिन ढल गया
कुछ इरादों को टलना है अब रात भर

जूँए* होतीं अमल-पैरा क्यूँ रात में *Lice
करवटें ही बदलना है अब रात भर
शब्द के अर्थ दिन में, न ढूँढे मिले
काफ़िये में तो ढलना है अब रात भर

गर्मी-ए-शम्स, शबनम उड़ा ना सकी
चाँदनी में पिघलना है अब रात भर
बन सके ना दरोग़ा न सैनिक तो फिर
लठ ही लेकर टहलना है अब रात भर

'हाश्मी' दिन में सोये! चलो ठीक है
ग़फ़्लतों से निकलना है अब रात भर

हाश्मी जी की ग़ज़लों में व्यंग्य का पुट हमेशा होता है, इस बार भी है। उनकी व्यंग्य की ही भाषा में कहा जाये तो उन्होंने इस बार सिरकटी (बे-मतला) ग़ज़ल कही है। पहले ही शेर में पटाखों और दीपक की तुलना के साथ सुंदर गिरह बाँधी है। और अगले ही शेर में मुरादों में दिन का बीतना और इरादों को रात आने पर टालना, बहुत अच्छे से व्यक्त हुआ है। रात भर अगर सिर में जूँए काटती रहेंगी तो करवटें बदलने के अलाव और चारा ही क्या है। सूरज की तपिश को शबनम उड़ाने में असमर्थ हो जाये तो चाँद की चाँदनी में पिघलना ही होता है। और यदि आप दरोग़ा या सैनिक नहीं बन सके तो लठ हाथ में लेकर यूँ ही टहलना है। और मकते में दिन में सोने वालों को रात की ग़फ़लतों से होशियार करने की बात अच्छी है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

पारुल सिंह

रौशनी ले के चलना है अब रात भर
इन चरागों को जलना है अब रात भर
मेहँदी लगने लगी है किसी नाम की
ख़्वाब आँखों में पलना है अब रात भर

चेहरा उनका है और हैं दो आँखें मेरी
सुब्ह को तो टलना है अब रात भर
चाँद आया तो छक कर के पी चाँदनी
बाँहों में ही पिघलना है अब रात भर

बेख़ुदी पूछ बैठी पता आपका
हमको काँटों पे चलना है अब रात भर
जिस पे दुनिया मरे मुझपे मरता है वो
मुझको मुझ से ही जलना है अब रात भर

ज़िन्दगी रात काली, बुझी दोस्ती
हिम्मतों को ही बलना है अब रात भर
चारा-गर कह गया रात भारी है ये
दिल को गिरना सँभालना है अब रात भर

चराग़ रात भर जलते नहीं हैं, वे तो रौशनी का एक कारवाँ लेकर चलते हैं, यह बात मतले में बहुत अच्छे से सामने आयी है। और जब हाथों में किसी के नाम की मेहँदी लग जाये तो आँखों में ख़्वाब ही पलते हैं। अगले ही शेर में किसी का चेहरा और उसे देखते हुए सुब्ह के टलने की बात बहुत सुंदर है। बेखुदी ने किसी का पता पूछ लिया तो रात भर काँटों पर चलना, बहुत सुंदर। अगले शेर में सारी दुनिया के चहेते की चाहत पाकर ख़ुद से ही जलने की बात बहुत ही सुंदरता के साथ कही गयी है। ज़िंदगी और दोस्ती ये दोनों जब साथ छोड़ दें तो हिम्मतों के सहारे रात काटी जाती है, बहुत ही सुंदर। और अंतिम शेर में चिकित्सक के कहने पर कि आज की रात भारी है, दिल को रात भर गिरना और सँभलना ही तो है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह, वाह वाह।

तो ये आज के तीनों शायरों की दीपावली है। बहुत सुंदर ग़ज़लें तीनों ने कही हैं। आप दिल खोल कर इनको दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

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