सोमवार, 21 मार्च 2022

आइए आज चरणजीत लाल जी, तिलक राज कपूर जी, राकेश खंडेलवाल जी और सौरभ पाण्डेय जी के साथ मनाते हैं बासी होली।

बासी होली का अपना ही आनंद होता है। हर त्यौहार का एक बासी संस्करण होता है। यह संस्करण इसलिए होता है कि हम एकदम से त्यौहारों के ख़ुमार से बाहर नहीं आना चाहते हैं। हमारे यहाँ तो हर त्यौहार लगभग सात-आठ दिन तक मनाया जाता है। और यह जो बाद में मनाया जाता है यही तो बासी त्यौहार होता है। जिस प्रकार बासी पूरियों को बासी कढ़ी या बासी रायते के साथ खाने का आनंद होता है इसी प्रकार बासी त्यौहार का भी आनंद होता है। और होली के पर्व का समापन तो वैसे भी एक ऐसे त्यौहार से होता है जिसमें बासी भोजन किया जाता है, शीतला सप्तमी का त्यौहार।

ले गुलाबी दुआ जा तुझे इश्क़ हो

आइए आज चरणजीत लाल जी, तिलक राज कपूर जी, राकेश खंडेलवाल जी और सौरभ पाण्डेय जी के साथ मनाते हैं बासी होली।

चरनजीत लाल

 ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो
गुंचा-ए-दिल खिला, जा तुझे इश्क़ हो
साज़-ए-दिल पे कोई रागिनी छेड़ दे
रंग-ए-महफ़िल जमा, जा तुझे इश्क़ हो
इस रंगीली सी होली की मस्ती में तू
बस गुलाल उड़ा, जा तुझे इश्क़ हो
चाँद पूनम का बरसा रहा चाँदनी
भीग इसमें ज़रा, जा तुझे इश्क़ हो
सातरंगा धनक, भीगी-भीगी फ़ज़ा
महज़बीं को झुला, जा तुझे इश्क़ हो
ज़ुल्फ़ की बदलियों से जो है झाँकता
उस क़मर पे फ़िदा, जा तुझे इश्क़ हो
नर्गिसी आँखों से ज़ौक़-ए-बादा-कशी
भूल जा मय-कदा, जा तुझे इश्क़ हो
ज़िंदगी में मुक़ाबिल मुसीबत हैं जो
सब धुएं में उड़ा, जा तुझे इश्क़ हो
इश्क़ आशिक़ भी है और माशूक़ भी
ये पहेली बुझा, जा तुझे इश्क़ हो
तिश्ना-लब ज़िंदगी में हों जब भी ‘चरन’
जाम-ए-उलफ़त पिला जा तुझे इश्क़ हो

मतले में ही बहुत अच्छे से गिरह को बाँधा गया है। सच कहा है कि दिल का गुंचा खिलने के लिए सबसे ज़रूरी होता है इश्क़ का होना। और जो रागिनी साज़े दिल पर छेड़ी जाती है उसी से महफ़िल का रंग सजता है। जब पूनम का चाँद चाँदनी बरसाने लगता है तो उसमें भीग जाने का नाम ही मुहब्बत होता है।जब सात रंगों का धनक खिल उठता है और फ़ज़ा ख़ुशनुमा हो जाती है, तब उसे ही इश्क़ का मौसम कहा जाता है। नर्गिसी आँखों से जो मय पी ली जाती है तो मयकदा फिर भूली बिसरी बात हो जाता है। और फिर वही एक बात कि जब इश्क़ में हो तो उसके बाद हर फ़िक्र को धुँए में उड़ाना ही चाहिए। इश्क़ आशिक़ भी होता है और माशूक भी और इसी पहेली को सुलझाने का नाम ही इश्क़ होता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

तिलक राज कपूर
रंग ले इक नया, जा तुझे इश्क़ हो
मन बना बावरा, जा तुझे इश्क़ हो।
रास राधा किशन का लिये सोच में
रंग में डूब जा, जा तुझे इश्क़ हो।
हर तरफ़ खुद में खोये हुए लोग थे
में किसे बोलता, "जा तुझे इश्क़ हो"।
दर्प के रंग में डूब कर क्या मिला
रंग ले प्यार का, जा तुझे इश्क़ हो।
मकतबे इश्क़ है इक सज़ा या मज़ा
खुद लगाले पता, जा तुझे इश्क़ हो।
एक झोंका हवा का हुआ फागुनी
कान में कह गया, "जा तुझे इश्क़ हो"।
इश्क़ की ये फुहारें तो शुरुआत हैं
डुबकियाँ कुछ लगा, जा तुझे इश्क़ हो।
वो फकीरों सी मस्ती में नाचा किया
और गाता रहा, "जा तुझे इश्क़ हो"।
जो तुझे चाहिये वो मुझे है पता
"ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो।"

ज़िंदगी के रंगों से अलग जब कोई नया रंग हम अपने लिए चुनते हैं तभी तो हम इश्क़ में होते हैं, यही तो मतले की भाव से पता चल रहा है। होली के चिरंतन नायक-नायिका राधा और कृष्ण को अपने ध्यान में लाए बिना कैसी होली। जब तक आप अपने आप में ही खोए हैं, तब तक आपको इश्क़ हो ही नहीं सकता क्या सुंदर बात कही है। और अगले ही शेर में प्रेम ओर दर्प की तुलना क्या कमाल तरीके से की गई है। मकतबे इश्क़ सज़ा है या मज़ा यह तो वहाँ दाखिला लेने के बाद ही पता चलेगा क्या ही सुंदर बात। हवा के फागुनी झोंके का कान में कहना कि जा तुझे इश्क़ हो वाह। इश्क़ फुहारों का नाम नहीं, इश्क़ तो डुबकी लगाने का नाम है। फ़कीरों की मस्ती में नाचते हुए दुआ देना कि जा तुझे इश्क़ हो वाह क्या बात है। और अंत में गिरह का शेर भी बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ कहा गया है। वाह वाह वाह सुुदर ग़ज़ल।
 

राकेश खण्डेलवाल
अपने यौवन की सीढ़ी पे पग जब धरे
अपनी रफ़्तार से और आगे बढ़े
तब तुझे इश्क़ हो, अपने परिवेश से
अपने वातावरण और निज देश से
इश्क़ उससे हो जो न प्रदूषण करे
अपने संग दूसरों के दुखो को हरे
निष्ठ रह काम में चाहे जो रिस्क हो
है गुलाबी दुआ, इस तरह इश्क़ हो

इश्क़ उससे जो नारे लगाए नहीं
काम के वास्ते, हिचकिचाए नहीं
भ्रष्ट हर आचरण का विरोधी रहे
सत्य हो शब्द में, जो अधर से बहे
अगली पीढ़ी की चिंता अभी से करे
वायु में, जल में कोई भी विष न भरे
तेरे व्यवहार में, कुछ न संदिग्ध हो
है गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो

इश्क़ परवान तेरा निरंतर चढ़े
कोई जिसके असर से न बच कर रहे
वादियाँ हों नई, हों फ़िज़ाएँ नई
नव दिशा ढूँढ चल दे घड़ी की सुई
तुझको आदर्श दुनिया को देने नए
कामयाबी तेरे पाँव आदर छुए
एक संकल्प हो, और कुछ मिक्स हो
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो

क्या ही कमाल का गीत है। पूरा गीत एक मुकम्मल इंसान को बनाने के लिए लिखा गया है। प्रकृति के साथ रहने के लिए जिस प्रकार का इंसान चाहिए इसकी पूरी वयाख्या है इस गीत में। एक जवान होते लड़के को इसके अलावा और क्या दुआ दी जा सकती है। कि वह प्रकृति से भी प्रेम करे और देश से भी। उससे इश्क़ करे जो भ्रष्ट न हो, जो नारे नहीं लगवाता हो, जो सच बोलता हो। जिसके मन में अगली पीढ़ी की चिंता हो। जो जल और वायु को प्रदूषित न करे। एकदम नए आदर्शों का पाठ लेकर यह गीत कुछ नए तरीके से इन्सान को गढ़ने की बात कर रहा है। नई​ दिशा में चल रही घड़ी की सूई भी इसी की तरफ़ इशारा कर रही है। एकदम नए तरीके से लिखा गया गीत है, नए इंसान का गीत है। बहुत सुंदर गीत वाह वाह वाह। 


 सौरभ पाण्डेय
पुतलियों ने कहा जा तुझे इश्क हो
फागुनी है हवा, जा तुझे इश्क हो
हैं कई मायने रंग औ’ गंध के
गर नहीं ये पता, जा तुझे इश्क हो
चुन रहे थे सदा कौडियाँ, शंख-सीप
फिर समुंदर हँसा, ’जा तुझे इश्क हो’
चैत्र-बैसाख की थिर-मदिर साँझ में
टेरती है हवा.. ’जा तुझे इश्क हो’
देख कर ये गगन गेरुआ-गेरुआ
गा उठी है धरा, जा तुझे इश्क हो
उपनिषद गा रहे सुन सखे, बावरे,
एक ही फलसफा --जा तुझे इश्क हो !
दे किताबें मुझे जो मुहब्बत पढ़ें,
या रहूँ अनपढ़ा, जा तुझे इश्क हो
जिंदगी बस नहीं निरगुनी धुन-लगन
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क हो

पुतलियों के कहने के साथ शुरू हो रहा मतला फागुन की हवा के पास तक पहुँचता है। सच कहा कि रंग और गंध के कई अर्थ होते हैं लेकिन उनको समझने के लिए इश्क़ करना बहुत ज़रूरी होता है। कौड़ियाँ और सीप तलाश रहे लोगों पर समंदर का हँस कर कहना कि जा तुझे इश्क़ हो और तू गहरे डूब के मोती निकाले। वाह। चैत्र की मदिर साँझ में हवा का टेर कर कहना कि जा तुझे इश्क़ हो बहुत सुंदर दृश्य चित्र। गगन को गेरुए रंग में रँगे हुए देख कर धरा का कहना कि जा तुझे इश्क़ हो, बहुत ही सुंदर। उनपनिषद से लेकर सारे धर्म ग्रंथ एक ही बात कहते हैं कि जा तुझे इश्क़ हो। सच कहा कि वही किताबों को मुझे दो जो मुहब्बत पढ़ाती हों नहीं तो मुझे अनपढ़ा रहने दो। और अंत में यह कि ज़िंदगी केवल निरगुन नहीं बहुत कुछ सगुन भी है, मगर उसके लिए इश्क़ करना होता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

 

आज के चारों रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से बासी होली को सार्थक कर दिया है। आपका काम है कि दिल से दाद दीजिए इन तीनों रचनाकारों को। इसके बाद अगर भभ्भड़ कवि आते हैं तो उनके साथ समापन होगा मुशायरे का।

गुरुवार, 17 मार्च 2022

आइए होली का यह त्योहार मनाते हैं अपने छह रचनाकारों के साथ, संजय दानी, सर्वजीत सर्व, सुलभ जायसवाल, मंसूर अली हाशमी, डॉ. सुधीर त्यागी और राकेश खण्डेलवाल जी के साथ

होली के इस रंग भरे पर्व की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आपके जीवन में सदा रंग रहे, उमंग रहे, आनंद और उल्लास रहे। होली का यह त्योहार आप सभी के जीवन में ख़ुशियों की बरसात लाए यही शुभकामना है। आपके जीवन में रचनाधर्मिता का गुलाल तथा शब्दों का अबीर यूँ ही बरसता रहे। आप ख़ूब लिखें और आपकी रचनाओं का रंग सभी के मन पर चढ़ता रहे। होली है भई होली है रंगों वाली होली है।
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो
आइए होली का यह त्योहार मनाते हैं अपने छह रचनाकारों के साथ, संजय दानी, सर्वजीत सर्व, सुलभ जायसवाल, मंसूर अली हाशमी, डॉ. सुधीर त्यागी और राकेश खण्डेलवाल जी के साथ

डॉ संजय दानी दुर्ग
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो,
रंगों का वास्ता, जा तुझे इश्क़ हो।
भांग खाना बुरा भी नहीं, भांग पर
रख तू भी आस्था, जा तुझे इश्क़ हो।
होली में फाग गाया करो बेझिझक,
माज़ी की है प्रथा, जा तुझे इश्क़ हो।
घर के कामों से डरना नहीं, दूर हो,
बाइयों की अदा, जा तुझे इश्क हो।
सीख ले बाबा का योग भी, लेना है ,
इश्क़ में गर मज़ा, जा तुझे इश्क हो।
मतले में रंगों का वास्ता देकर दुआ दी जा रही है कि जा तुझे इश्क़ हो। होली का एक अवयव भांग भी होता है ऐसे में भांग खाना बुरा नहीं है होली में यह अच्छे से समझाया गया है। होली पर फाग गायन की हमारी परंपरा सचमुच बहुत पुरानी है ऐसे में होली के समय फाग गाने की सलाह शेर में प्रदान की जा रही है। और अगले शेर में बाइयों से बचते हुए घर के काम करने के लिए प्रेरणा प्रदान की जा रही है। और अंत में इश्क़ में मज़ा लेने के लिए योग की आवश्यकता पर बल दिया गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह
 
सर्वजीत 'सर्व'
हर सू गूंजी सदा, जा तूझे इश्क़ हो,
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो,
मुस्कुराते हुये, गुनगुनाते हुये
बोली बादे-सबा, जा तुझे इश्क़ हो,
तू न समझेगा जब तक न होगा तुझे,
है ये इक मोजज़ा, जा तुझे इश्क़ हो,
काम इससे कोई भी नहीं है अहम,
और करना है क्या, जा तुझे इश्क़ हो,
इश्क़ ही बन्दगी, इश्क़ ही ज़िन्दगी,
इश्क़ ही है ख़ुदा, जा तुझे इश्क़ हो,
सर्वजीत जी बहुत दिनों बाद हमारे मुशायरे में तशरीफ़ लाई हैं। बहुत अच्छी शायर हैं वे। हर तरफ़ एक ही सदा के गूँजने कि जा तुझे इश्क़ हो की बात बहुत अच्छे से कही है सर्वजीत जी ने। मुस्कुराते हुए और गुनगुनाते हुए बादे सबा का बोलना कि जा तुझे इश्क़ हो, बहुत अच्छी मंज़रकशी है, ऐसा लगता है जैसे पूरा का पूरा दृश्य ही सामने उपस्थित हो गया है। और अगले शेर में तू न समझेगा जब तक न होगा तुझे.. वाह क्या कमाल का मिसरा कहा है। और उतना ही सुंदर मिसरा सानी। अगला शेर जिसमें कहा गया है कि काम इश्क़ से ज़रूरी दूसरा कोई नहीं है ज़िंदगी में, वाह क्या बात कही है। अंतिम शेर में इश्क़ को ख़ुदा के पास बिठा दिया गया है। सच में इश्क़ ही तो ख़ुदा होता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
 
सुलभ जायसवाल
ओ रे ओ बावरा जा तुझे इश्क हो
दिल में रख ले खुदा जा तुझे इश्क हो
मान सम्मान सौगात सब कुछ मिले
ज्ञान की लौ जला जा तुझे इश्क हो
रच नये शब्द तू लिख नयी आस्था
गीत गा गीत गा जा तुझे इश्क हो
यह समर काल है जीतना है तुझे
त्याग दे हीनता जा तुझे इश्क हो
रात दिन हर पहर तू कला साध ले
है यही साधना जा तुझे इश्क हो
मांग सिन्दूर हो साथ भरपूर हो
ले गुलाबी दुआ जा तुझे इश्क हो
तीरगी दे मिटा ले शपथ आज तू
नौकरी छोड़ जा जा तुझे इश्क हो
फेसबुक बंद कर वाटसप से निकल
जा 'सुलभ' रंग जा, जा तुझे इश्क हो 
मतले में ही बहुत अच्छे से इश्क़ हो जाने की दुआ दी गई है। सच में जब दिल में ख़ुदा होता है तभी वहाँ इश्क़ का प्रवेश होता है। ज्ञान की लौ जलाने के बाद ही जीवन में मान सम्मान मिलता है इसकी बात बहुत अच्छे से कही गई है। नए शब्दों और नई आस्था के गीत गाने की बात भी बहुत सुंदर बन गई है। अगले ही शेर में समर काल को जीतने के लिए हीनता बोध को समाप्त करने की बात बहुत सुंदरता के साथ सामने आई है। कला की साधना ही सबसे बड़ी साधना है और उससे बड़ा इश्क़ कोई नहीं है। और नौकरी को छोड़ने वाला शेर जीवन से जोड़ने वाला शेर है। सोशल मीडिया से निकले बिना आप इश्क़ के रंग में नहीं रँगा सकते यह बात अंतिम शेर में बहुत अच्छे से कही गई है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
मन्सूर अली हाश्मी
लिखने बैठा ग़ज़ल, 'जा तुझे इश्क़ हो'
बड़बड़ाता रहा, जा तुझे इश्क़ हो
भाई 'पंकज' ने यह कैसा मिसरा दिया!
मैं तो बूढ़ा हुआ, "जा तुझे इश्क़ हो"
तू है 'निर्मल' ए 'बाबा' 'कृपा'
दे मुझे
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो
मैंने मांगी दुआ, कर भला या ख़ुदा
उसने फर्मा दिया, जा तुझे इश्क़ हो
कूचे गलियों में ढूंढा मगर न मिला
फेसबुक पर दिखा? जा तुझे इश्क़ हो
हाथ मांगा दिखा दी अंगूठी मुझे
मुस्कुरा कर कहा, जा तुझे इश्क़ हो
इश्क़ ने कर दिया है दिवाना मुझे
है तेरी ही अता, जा तुझे इश्क़ हो
डाल कर रंग मुझ पे ये क्या कर दिया
अपने रंग में रंगा, जा तुझे इश्क़ हो
आ भी जा-आ भी जा, दे रहा हूँ सदा
जा बे जा-जा बे जा, जा तुझे इश्क़ हो
वैलेंटाइन पे फरियाद करता रहा
कर दिया अनसुना, जा तुझे इश्क़ हो
तू भला सब बुरे, खोटे सब तू खरा
ख़ुद को ही आज़मा, जा तुझे इश्क़ हो
तू इलेक्शन में हारा अगर क्या हुआ
पिछला दर है खुला जा तुझे इश्क़ हो
तोता-मेना मिले, बात जब कर चुके
उड़ते - उड़ते कहा, जा तुझे इश्क़ हो
अब हिजाबों की हम को ज़रूरत कहाँ
'कोरोना' जा चुका, जा तुझे इश्क़ हो
हमने दरप्रदा इज़हार उनसे किया
बोले वों बरमला, जा तुझे इश्क़ हो
'हाश्मी' ने कहा, और सच ही कहा
इश्क़ तो है ख़ुदा, जा तुझे इश्क़ हो।
हाशमी जी की ग़ज़लें हास्य के रंग में रँगी हुई होती हैं। यह ग़ज़ल भी वैसी ही है। होली पर हास्य हो तो मज़ा दोगुना हो जाता है। मतला और उसके बाद का शेर इस बार के मिसरे को समर्पित हैं। और उसके बाद निर्मल बाबा से कृपा माँगने का शेर कमाल है। और अगले शेर में ख़ुदा से दुआ माँगने पर उसका कहना कि जा तुझे इश्क़ हो, बहुत सुंदर है। किसी का हाथ माँगने पर पहले उसका अँगूठी दिखाना और उसके बाद कहना जा तुझे इश्क़ हो, बहुत सुंदर।किसी ने रंग डाल कर अपने रंग में रँग लिया है और कह रहा है जा तुझे इश्क़ हो। वैलेंटाइन डे पर की गई फरियाद होली तक चली आ रही है और शायर दुआ दे रहा है कि जा तुझे इश्क़ हो। चुनाव हार जाने वाले नेता के लिए पिछला दर खुला होने का व्यंग्य भी बहुत सुुंदर है। हिजाबों की ज़रूरत और कोरोना की बात बहुत बढ़िया है। और अंत में इश्क़ के ख़ुदा होने का विचार बहुत सुंदरता से आया है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
 
डॉ सुधीर त्यागी
तुझसे भी हो ख़ता, जा तुझे इश्क़ हो।
कर तू भी रतजगा, जा तुझे इश्क़ हो।
कीमती जिंदगी मुश्किलों से मिली।
क्यूं मिटाने तुला, जा तुझे इश्क़ हो।
चुप रहे या कहे, तय नहीं क्या करे।
कश्मकश भी मजा, जा तुझे इश्क़ हो।
जिस्म से क्यों नहीं आ रही खुशबुएं।
अब तलक क्या किया, जा तुझे इश्क़ हो।
देखना चाहता है ज़मीं पर इरम।
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो।
मतले में ही इश्क़ नाम की ख़ता करने और उसके बाद रतजगा करने की बात बहुत ख़ूबसूरती  के साथ कही है डॉक्टर साहब ने। ज़िंदगी एक नेमत की तरह होती है, उसे मिटाने की बजाय इश्क़ करने की सलाह कितनी सुंदरता के साथ अगले शेर में प्रदान की गई है। और अगला शेर कश्मकश के बीच फँसे मन की दशा को बहुत सुंदरता के साथ सामने ला रहा है। जिस्म से ख़ुश्बुएँ अगर नहीं आ रही हैं तो इसका मतलब अब तक का जीवन व्यर्थ है, इश्क़ की ज़रूरत पर इससे अच्छी बात और क्या कही जा सकती है। और धरती पर इरम देखने के लिए इश्क़ तो करना ही होगा, क्या कमाल की बात। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
राकेश खण्डेलवाल
बंद घर में ही बैठा हुआ नेट पर
बेफ़िज़ूली की करता हुआ चेट पर
काम धंधा तेरे वास्ते कुछ नहीं
और कोशिश पे तुझ को यकीं ही नहीं
रौब भाई बहन पर जताता सदा
ज़िंदगी कुछ किए बिन लगे इक सजा
या खुदा तुझ सा कोई ना बदवक्त हो
ले गुलाबी दुआ जा तुझे इश्क़ हो

रात को जाग कर तू सितारे गिने
रोज़ ही तेरी बढ़ती रहें उलझने
भूख से दुश्मनी तेरी होती रहे
उसके ख्यालों से ही प्यास बुझती रहे
फिर किसी काम में तेरा मन न लगे
रात दिन नाम की एक, माला जपे
केस को, तुझसे फ़रहाद को रश्क हो
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो

रोज़ दफ़्तर में झिड़कन सुने बास की
दिख न पाएँ तुझे फायलें पास की
दृष्टि खिड़की के बाहर अटकती रहे
घंटियाँ फ़ोन की खूब बजती रहें
कोई भी रंग तुझको न अच्छा लगे
नाम होली का सुन, दूर ही तू भगे
फिर तेरी टाँय टाँय सभी फिस्स हो
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो 
पूरा गीत एक जवान होते लड़के के लिए लिखा गया एक पूरा का पूरा भविष्य है। सबसे पहले ही छंद में घर में नेट पर भटकता हुआ निठल्ला लड़का दिखता है, न काम धंधा न कोशिश। भाई बहनों पर रौब जमाता हुआ, ज़िंदगी से दूर भागता हुआ। और फिर अगले छंद में रातों को जाग कर सितारे गिनने, उलझनों में रहने की दुआ। भूख से दुश्मनी की दुआ कितनी सुंदरता के साथ कही जा रही है। रात दिन एक ही नाम की माला जपने और केस फरहाद को उससे रश्क़ होने की बात बहुत अच्छे से कही जा रही है। और अंतिम छंद तो इश्क़ की इंतिहा है, बास की झिड़की, खिड़की के पार अटकी नज़र, फ़ोन की बजती हुई घंटियाँ, ऐसा लग रहा है जैसे इश्क़ अपने चरम पर पहुँच चुका है। और उसमें टाँय टाँय फिस्स का प्रयोग तो बहुत ही कमाल है। बहुत ही सुंदर गीत है, वाह वाह वाह।
आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आज के रचनाकारों की शानदार रचनाओं का आनंद लीजिए और दाद देते रहिए। मिलते हैं बासी होली के अंक में।


आइए आज रजनी मल्होत्रा नैयर, अश्विनी रमेश, धर्मेंद्र कुमार सिंह, गिरीश पंकज, निर्मल सिद्धू और राकेश खंडेलवाल जी के साथ मनाते हैं होली का उत्सव

मित्रो इस बार ज़रा व्यस्तता का समय चल रहा है। असल में घर में विवाह आ गया है। अप्रैल के प्रारंभ में होना है इसलिए बहुत व्यस्तता बनी हुई है। इसलिए इस होली पर हर बार की तरह हास्य व्यंग्य से भरी पोस्ट लगा पाना संभव नहीं हो पा रहा है। हालाँकि मुझे पता है कि वह पोस्ट इस ब्लॉग की पहचान होती है और उसकी प्रतीक्षा की जाती है लेकिन इस बार उसके लिए समय निकाल पाना संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि उसके लिए बहुत समय देना पड़ता है। तो इस बार इसी प्रकार की पोस्ट जो सामान्य रूप से लगाई जाती है। 

 आइए आज रजनी मल्होत्रा नैयर, अश्विनी रमेश, धर्मेंद्र कुमार सिंह, गिरीश पंकज, निर्मल सिद्धू और राकेश खंडेलवाल जी के साथ मनाते हैं होली का उत्सव
 
डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर
आज उसने कहा, जा तुझे इश्क़ हो
हाल दिल का सुना, जा तुझे इश्क़ हो
दिलरुबा कोई तुझको मिले प्यार से
तू भी हो बावरा, जा तुझे इश्क़ हो
हिज्र का ग़म तुझे भी सताये कभी
तू करे रतजगा, जा तुझे इश्क़ हो
क्यों दहलता है तू प्यार के नाम से
इश्क़ में डूब जा, जा तुझे इश्क़ हो
कौन देता किसी को हसीं ये दुआ
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो
 मतले में ही बहुत सुंदरता के साथ रदीफ़ का उपयोग किया गया है। असल में इस बार रदीफ़ की एक बड़ी चुनौती थी, जिसके कारण ग़ज़ल कहना उतना आसान नहीं था। मगर इसके बाद भी अच्छी ग़ज़लें आई हैं। अगले ही शेर में किसी को यह दुआ देना कि जा तू बावरा हो जाए बहुत अच्छे मिसरे में गूँथी गई है। हिज्र और रतजगा इश्क़ का सबसे ज़रूरी हिस्सा हैं, ऐसे में हिज्र और रतजगे की दुआ बहुत सुंदर बन पड़ी है। प्यार के नाम से दहलने वाले को इश्क़ में डूब जाने की दुआ भी सुंदर है। और अंत में गिरह का शेर भी अच्छा बना है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

अश्विनी रमेश
नींद जो ले उड़ा जा तुझे इश्क हो
तू मना रतजगा जा तुझे इश्क हो
मौज कर नाच गा जा तुझे इश्क हो
जश्न अब तू मना जा तुझे इश्क हो
 जो किसी का कभी भी हुआ ही नहीं
अपनी उसको दुआ जा तुझे इश्क हो
जामुनी बैंगनी लाल पीला हरा
सब रँगों में रँगा जा तुझे इश्क हो
रुत फ़िज़ा की हसीं और दिलकश लगे
इस फ़ज़ा में ढला जा तुझे इश्क हो
तू है बस दिलजला तू बड़ा सिरफिरा
गर नहीं मानता जा तुझे इश्क हो
मतला और हुस्ने मतला दोनों ही बहुत सुंदरता से कहे गए हैं। जो नींद ले उड़ा है उसी को रतजगे के साथ इश्क़ हो जाने की दुआ देना बहुत सुंदर बात है और हुस्ने मतला में भी जश्न मनाने की बात बहुत अच्छे से कही गई है। और जो कभी किसी का नहीं हुआ उसको यह दुआ देना कि जा तुझे इश्क़ हो जाए बहुत सुंदर। और अगले शेर में होली के अवसर पर सभी रंगों में रँगा हुआ इश्क़ होन की बात अच्छी है। और अंत में किसी दिलजले और सिरफिरे को यह कहना कि तू किसी की कुछ नहीं सुनता तो जा तुझे इश्क़ हो जाए। बहुत ही सुंदरता के साथ ग़ज़ल कही गई है वाह वाह वाह। 

धर्मेन्द्र कुमार सिंह
कह गया मुझसे ख़्वाजा तुझे इश्क़ हो
तू भी देखे ख़ुदा जा तुझे इश्क़ हो
मैंने पूछा परम सत्य क्या है प्रभो
बुद्ध ने कह दिया जा तुझे इश्क़ हो
जान मैं ने बचाई थी जिस शख़्स की
उसने दिल से कहा जा तुझे इश्क़ हो
मंदिरों मस्जिदों में भटकते हुये
हो गया बावरा जा तुझे इश्क़ हो
कैसे पानी से पत्थर तराशा गया
तू भी समझे ज़रा जा तुझे इश्क़ हो
मैंने बोला कि दिल मेरा कमजोर है
चारागर ने कहा जा तुझे इश्क़ हो
मूस की दौड़ में जीतकर भी तो तू
मूस ही रह गया जा तुझे इश्क़ हो
तू भी सीखे वफ़ा ऐ सनम बेवफ़ा
ले गुलाबी दुआ जा तुझे इश्क़ हो
मुझको होगी मुहब्बत तुझी से सनम
तूने कह तो दिया जा तुझे इश्क़ हो
धर्मेंद्र जी की ग़ज़लें बहुत परिपक्वता के साथ बात करती हैं और एकदम नए विचारों के साथ सामने आती हैं। जैसे इसमें एक बहुत बारीक प्रयोग मतले में ही है, ख़्वा क़ाफ़िया है और जा रदीफ़ का हिस्सा है। बहुत कमाल का प्रयोग किया है। और अगले ही शेर में बुद्ध का मिसरा सानी स्तब्ध करने वाला है, निशब्द...। जान जिसकी बचाई उसकी दुआ कि तुझे इश्क़ हो बहुत कमाल है। मंदिरों और मस्जिदों में भटकते फिरने वाले को दुआ देना कि जा तुझे इश्क़ हो.. कमाल एकदम कमाल। और पानी से पत्थर तराशे जाने वाले शेर पर एक बार फिर से शब्द समाप्त हो जाते हैं कुछ कहने के लिए। दिल को मज़बूत करने के लिए चारागर का कहना कि जा तुझे इश्क़ हो... एकदम उस्तादाना रंग है शेर में। मूस वाला शेर और गिरह का शेर भी सुंदर बने हैं, लेकिन अंतिम शेर का विरोधाभास तो एकदम कमाल है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

गिरीश पंकज
रंग जम के लगा, जा तुझे इश्क हो
रुख से पर्दा हटा, जा तुझे इश्क हो
जिनसे कह न सका हालेदिल तू कभी
आज उनको सुना, जा तुझे इश्क हो
रंग सारे मिले मस्त होली हुई
फाग तू गुनगुना, जा तुझे इश्क हो
रंग कहते सभी के लिए हम बने
फलसफा ये सिखा, जा तुझे इश्क हो
बेशरम बन के जी रंग में डूब जा
सब कहें बावरा, जा तुझे इश्क हो
दिल की जो बात है बोल दे आज तू
लाज का पट हटा, जा तुझे इश्क हो
मुँह न काला करो, रंग हो लाल बस!
दिल से सब को लगा, जा तुझे इश्क हो
वो अभागा जिसे प्यार मिलता नहीं
बस तू हिम्मत दिखा, जा तुझे इश्क हो
जो थे रूठे हुए रंग उनको लगा
जैसे-तैसे मना, जा तुझे इश्क हो
जब से बाबा फरीदे को मैंने सुना
सब से बढ़कर कहा, जा तुझे इश्क हो
तू न शरमा लगा रंग जम के उसे
"ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क हो"
मतले में ही होली का रंग घुल गया है। रंग सारे मिले और मस्त होली होने पर फाग गुनगुनाने के लिए इश्क़ का होना बहुत ज़रूरी है। रंग में डूबने के लिए अपने अंदर की झिझक शर्म सब भुलानी पड़ती है और उसके लिए इश्क़ होना बहुत ज़रूरी है। होली का अवसर सच में अपने दिल की बात कहने के लिए सबसे अच्छा अवसर होता है, इसीलिए शायद कहा है कि आज ही कह दे मन की बात। होली का अवसर रूठे हुओं को मनाने के लिए सबसे अच्छा अवसर होता है ऐसे में रूठों को मनाने के लिए इससे अच्छा समय और कब हो सकता है। और बाबा फरीद की इस दुआ को बहुत अच्छे से शेर में गूँथा गया है। अंत में गिरह का शेर भी बहुत सुंदर बन पड़ा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
निर्मल सिद्धू
नाच रे मन ज़रा, जा तुझे इश्क़ हो
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो
आओ खेलें होली भूल के सारे ग़म
आयेगा फिर मज़ा, जा तुझे इश्क़ हो
रंग ही रंग हैं उड़ रहें हर तरफ़
आ रही है सदा, जा तुझे इश्क़ हो
लाल पीला हरा ,झूमती हर छटा
हर रंग कह रहा, जा तुझे इश्क़ हो
सब नशों मे खरा इश्क़ का ये नशा
तू मेरी बन वफ़ा , जा तुझे इश्क़ हो
रंग दी ख़ुद में ही उसने काया मेरी
सच हुआ जो कहा, जा तुझे इश्क़ हो
मतले में ही गिरह बहुत सुंदरता के साथ लगाई गई है। अपने ही मन को दुआ देना कि जा तुझे इश्क़ हो बहुत ही सुंदर बन पड़ी है। रंग ही रंग जब उड़ रहे होते हैं चारों तरफ़ तब सचमुच एक ही सदा आती है कि जा तुझे इश्क़ हो। जब चारों तरफ़ रंग ही रंग होते हैं तो हर रंग हमारे शरीर पर लग कर एक ही बात कहता है कि जा तुझे इश्क़ हो जाए। सब नशों से बढ़ कर इश्क़ का नशा होता है इसमें  कोई शक नहीं है। और अंत में कहा गया शेर कि रंग दी ख़ुद में ही उसने काया मेरी, बहुत सुंदरता और इशारों में गहरी बात कह दी गई है और उसके बाद मिसरा सानी भी बहुत सुंदरता के साथ आया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

राकेश खण्डेलवाल
आज तरही मिली ले गुलाबी दुआ
जा तुझे इश्क़ हो, आज तक ना हुआ
इश्क़ में डूब कर आज कह दे ग़ज़ल
अपनी हालत पे कह और कर ना नक़ल
जो न आते है। बहरो वज़न क़ाफ़िया
जा के हाशिम से कर तू तनिक मशवरा
तुझको ग़ज़लें सिखाएँगे पंकज गुरु
उनके पांवों को सर को झुका के तू छू
नॉट कर करना तुझको जरूरी है जो
तब ही लिख पायेगा-जा तुझे इश्क हो

हलवा आधा किलो ले के आ गाजरी
और सौरभ से जा मांग ला रसभरी
भाई नीरज से घेवर मंगा जयपुरी
फालसे - जिनकी रंगत रहे सांवरी
हलवा गुरप्रीत से मूंग की दाल का
और देंगे तिलक तोहफा भोपाल का
ला दिगंबर से चमचम तू बंगाल की
अश्विनी से प्लेटें मोहनथाल की
रेखा, रजनी से श्रद्धा से मिल जाए जो
तब ही कहना ग़ज़ल, जा तुझे इश्क हो

देख ले सामने आके सज्जन खड़े
उनसे मथुरा के पेड़े दजन माँग ले
साथ ले आना थोड़ी बहुत खुरचनें
देख कर गिरीश अपने सर को धुनें
सुन ये, दानी के संग में नकुल साथ है
उनके संग सोन हलवे की बरात है
इस सभी को लिए साथ, सीहोर जा
फिर गुरूजी को अपना चढ़ावा चढ़ा
तुझपे नुसरत का, इशरत का आशीष हो
है गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क हो
राकेश जी अपने शब्दों का रंग लेकर सारे रचनाकारों के साथ होली ज़रूर खेलते हैं। इस बार भी उन्होंने अपनी इस रचना में सारे रचनाकारों के साथ होली खेली है। इस प्रकार की रचनाएँ इस परिवार को आपस में जोड़ने वाली रचनाएँ होती हैं। यह एक सूत्र में सबको बाँधने वाली रचनाएँ होती हैं। और सबसे अच्छी बात यह है कि इस रचना में हास्य का तड़का लगाते हुए बहुत शालीनता के साथ एक-एक को उन्होंने रंग लगाया है। किसी को भी नहीं छोड़ा है, उनको भी नहीं जो बहुत दिनों से मुशायरे में शिरकत करने नहीं आ रहे हैं। बहुत ही सुंदरता के साथ राकेश जी ने होली के रंगों को चारों तरफ़ बिखेर दिया है। क्या कहा जाए इस रचना पर? कहीं कहीं जाकर शब्द साथ छोड़ देते हैं और भावुकता में कंठ रुंध जाता है। बहुत ही सुंदर रचना वाह वाह वाह।
आज तो सभी रचनाकारों ने बहुत सुंदरता के साथ प्रस्तुतियाँ देकर होली का माहौल बना दिया है। बहुत सुंदर। आप दाद देते रहिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।





वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका विभोम-स्वर का वर्ष : 7, अंक : 25, त्रैमासिक : अप्रैल-जून 2022 अंक

मित्रो, संरक्षक तथा प्रमुख संपादक सुधा ओम ढींगरा एवं संपादक पंकज सुबीर के संपादन में वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका विभोम-स्वर का वर्ष : 7, अंक : 25, त्रैमासिक : अप्रैल-जून 2022 अंक अब उपलब्ध है। इस अंक में शामिल है- संपादकीय, मित्रनामा, विस्मृति के द्वार- छोटी-छोटी ख़ुशियाँ, उषा प्रियम्वदा, कथा कहानी- झंझट ख़त्म- शिखा वार्ष्णेय, बहूजी और वह बंद कमरा- डॉ. रमाकांत शर्मा, पड़ोस- कमलेश भारतीय, अदृश्य डोरियाँ- डॉ.गरिमा संजय दुबे, भैड़ी औरत- डॉ.मंजु शर्मा, प्लेट में लड़की- उपेंद्र कुमार मिश्र, सुरक्षा- डॉ. सुनीता जाजोदिया, वृंदा का फैसला- टीना रावल, भाषांतर- माँ री!- पंजाबी कहानी, मूल लेखक- कुलबीर बडेसरों, अनुवाद- सुभाष नीरव, दिन जो पख़ेरू होते- आह ! बिरजू भय्या...!, ज़ेबा अलवी, शहरों की रूह- पहाड़ मुझे बड़े आत्मिक लगते हैं, रेखा भाटिया, व्यंग्य- यक्ष फिर हाज़िर है..!!- अलंकार रस्तोगी, हम बे रीढ़ ही भले- डॉ.अनीता यादव, लघुकथा- आपदा में अवसर- मुकेश पोपली, माँ का शॉल- ऋतु गुप्ता, अतिक्रमण- भारती शर्मा, रेस- सरिता गुप्ता, संस्मरण- पुष्प-प्रेम- सेवक नैयर, पहाड़ों में पतंगबाज़ी- मदन गुप्ता सपाटू, यात्रा डायरी- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे- मुरारी गुप्ता, पहली कहानी- फूफी- सुनील चौधरी, ललित निबंध- भाषाई सवाल- डॉ. वंदना मुकेश, ग़ज़ल- विज्ञान व्रत, कविताएँ- खेमकरण 'सोमन', सुमित दहिया, अर्चना गौतम मीरा, मोतीलाल दास, नवगीत- गरिमा सक्सेना, आख़िरी पन्ना, आवरण चित्र- पंकज सुबीर, रेखाचित्र – रोहित प्रसाद, डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी, शहरयार अमजद ख़ान, सुनील पेरवाल, शिवम गोस्वामी, आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्क़रण भी समय पर आपके हाथों में होगा।

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बुधवार, 16 मार्च 2022

आइए आज से शुरू करते हैं होली का तरही मुशायरा, आज अमेरिका के दो कवियों राकेश खंडेलवाल जी और रेखा भाटिया जी की रचनाओं के साथ करते हैं शुभारंभ

समय की अपनी ही गति होती है और वह उसी गति से चलता रहता है। होली का त्यौहार एक बार फिर सामने आ गया है। ऐसा लगता है जैसे अभी तो हमने मनाया था यह त्यौहार। हर मौसम के अपने ही त्यौहार हैं हमारे देश में, और शायद यही इस देश की सबसे बड़ी विशेषता है। हम उल्लास और आनंद में बने रहने का अवसर तलाश लेते हैं। समय की गति के बीच अपने लिए कुछ समय चुरा लेते हैं। यही हमें जीवन के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो
आइए आज से शुरू करते हैं होली का तरही मुशायरा, आज अमेरिका के  दो कवियों राकेश खंडेलवाल जी और रेखा भाटिया जी की रचनाओं के साथ करते हैं शुभारंभ
 
रेखा भाटिया
बावरी पवन मन बना वसंत

ओह बावरी पवन ! क्यों सता रही हो
मैं परदेसन हूँ सौतेलापन जता रही हो
पीहर देस में वसंत बाद फागुन आ गया री  .....
बाबुल के आँगन में पंछी गाते होंगे मिलन गीत
चुन सुखी लकड़ियाँ पेड़ों से ,कोमल पत्ते बेलों से
बनाते होगें घरौंदें और पुकारते होगें माँ को गुड़ बोली में
फुदकते होगें मुंडेरों पर अम्मा के आगे -पीछे
माँ भी झट पल्लू से हाथ पोंछती रोटी लाती होगी
गैया माँ को पुचकारती पंछियों को निहारती होगी
धूप में दादा अम्मा की खटिया पीपल तले सरकाते थे
फिर खुद पसर पंचायत करते चाय की चुस्कियाँ लेते
आँगन को बुहारकर रानी जतन से निहारती थी बगिया  
माली बगिया में खड़ा पसीज रहा होगा न पसीने से
अम्मा धरती होगी पीठ पर ढोल देख नैन-मटक्का
मेरी हंसी छूटती थी और भैया परेशान होते थे राग से
बावली कुहुकिनी के हर साल लौटती थी परीक्षा दिनों
रंग-बिरंगे फूलों और बादामी तितलियों बीच माँ की लाडो मैं
उन बहारों को अब भी मेरी याद आती ही होगी कहो न
उन गुलाबी,पीले ,सतरंगी रंगों में होली के रंगों की मिठास
बदरंगी फिसलन भरा पानी का हौज ,बच्चों का हुदंगड़
भाभी की खनकती हंसी ,शरमाकर चिटकनी चढ़ा लेना
याद है कभी-कभी मोर उड़कर आते थे पास जंगलों से
यहाँ मेरे देश में भी हैं नदियाँ ,झरने,पहाड़ ,जंगल, बगिया
रेशम की सूखी घास ,बिन पत्तियों के ऊँचे-ऊँचे रेड मेपल
श्यामल बादलों के पीछे शरमाती धूप ,शीत की सिरहन
बर्फ से ढकी श्वेत वादियों में उजास गुलाबी धूप नहीं
रंग-बिरंगी बहारों बिना होली के रंग भी पड़ जाते फीके
देखो न पंछी भी बावरे गा रहे बेरंगी नीरस बगिया में
साथी के इश्क़ में तड़पते उतावले ,पीड़ा समझो इनकी
ओह बावरी पवन ! ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो
इन बदरंगें पहाड़ों से, जा चुरा ला बहारें बाबुल देस से
मन बना वसंत शीघ्र लौट आना, संग-संग होली मनाएँगे !
 स्मृतियों के ख़ज़ाने में क्या-क्या नहीं होता है, दूश्य, शब्द, चित्र... ऐसा लगता है जैसे हमारी स्मृतियाँ एक यात्रा पर ही रहती हैं हमेशा... विगत की यात्रा पर। इस कविता में भी शब्द चित्र बने हुए हैं। वंसत को एक पूरा चित्र बना दिया गया है। माँ का पल्लू से हाथ पोंछना, खटिया का पीपल के तेल सरकाना और चाय की चुस्कियों के बीच पंचायत करना... यह किसी एक के नहीं हम सभी के स्मृति कोश से ली गई बातें हैं। गुलाबी पीले रंगों के बीच खेली जा रही होली और बदरंगी फिसलन से भरा पानी का हौज... ऐसा लग रहा है जैसे कोई फ़िल्म सी चल रही है, जो माज़ी से एक-एक दृश्य चुन के ला रही है। और इन सब के बीच नायिका अब देस में नहीं परदेस में है। परदेस केवल सात समंदर पार ही नहीं होता, परदेस तो देस में अंदर भी होता है। जो छूट गया वही देस होता है, और छूटने के बाद जो भी मिला वही परदेस होता है। बहुत ही सुंदर शब्दों में पूरी बात कह दी है रेखा जी ने। बहुत सुंदर गीत, वाह वाह वाह।
 
राकेश खंडेलवाल
 
आइ बासंतिया ऋतु मचलती हुई
रंगतें पीली सरसों की  चढ़ती हुई
अब दहकने लगी टेसुओं की अग़न
एक उल्लास में मन हुआ है मगन
सारे संशय घिरे, आज मिटने लगे
जो बिछुड़ थे गए ,फिर से मिलने लगे
आज तन मन सभी फाग़ूनी हो गया
रंग तुझ पे भी मस्ती का आये ज़रा
इश्क़ जो तू करे हो गुलाबी सदा
जा तुझे इश्क़ हो ले गुलाबी दुआ

रंग बिखरे फ़िज़ाओं में ले कत्थई
जामुनी, नीला, पीला, हरा चंपई
रंग नयनों। में कुछ आसमानी घिरे
और धानी लिपट चूनरी से उड़े
रंग नारंगियों का भरे  बाँह में
लाल बिखरे तेरे पंथ में , राह में
रंग बादल में भर कर उड़ा व्योम में
रंग भर ले बदन के हर इक रोम में
फाग बस डूब कर मस्तियों में उड़ा
हो गुलाबी तेरा इश्क़ ले ले दुआ

छोड़ अपना नगर, आज ब्रजधाम चल
होली होने लगी है वहीं आजकल
नंद के गाँव से ढाल अपनी उठा
देख ले चल के बरसानियों की अदा
नाँद में घोल कर शिव की बूटी हरी
कर ले तू रूप से कुछ ज़रा मसखरी
भरके पिचकारियाँ यो सराबोर हो
तन  बदन मन सब रंगे कुछ अछूता न हो
रंग भाभी के साली के मुख पर लगा
रंग हो प्रीत का है गुलाबी दुआ 
 राकेश जी का अपना ही अंदाज़ होता है गीत लिखने का। राकेश जी के गीत परिमल काव्य की परंपरा का सुंदर उदाहरण होते हैं। इन गीतों में शब्दों का चयन भी इतनी नाज़ुकी के साथ किया जाता है कि गीत पानी की धार की तरह गुज़रता है। बासंतिया ऋतु में मन का मचलना, पीली सरसों और दहकते हुए टेसू... प्रकृति द्वारा खेली जा रही होली का पूरा का पूरा चित्र बना हुआ है इन पंक्तियों में। आँखों में आसमानी रंग, चूनर में धानी रंग, बाँहों में नारंगी रंग और फिर इन रंगों को अपने रोम-रोम में भरने की बात, बहुत ही सुंदरता के साथ प्रकृति और पुरुष के मिलना चित्र बनाया गया है। और फिर होली के लिए ब्रज धाम की ओर चल पड़ने की बात कहना, लट‍्ठ मार होली के लिए बरसानियों की अदा का सामना करना, शिव बूटी का सेवन करना.... होली का हर रंग तो है इस गीत में। और फिर यह कि तन बदन से मन तक सब कुछ रंग जाए ऐसी दुआ भी रंगों के साथ में ही आ रही है। बहुत ही सुंदर गीत, वाह वाह वाह।
 
आज तो दोनों ही रचनाकारों ने होली का माहौल बना दिया है। ऐसा लग रहा है जैसे होली के रंग उत्सव की शुरुआत हो गई है। तो आनंद लीजिए इन रचनाओं का, दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

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