त्योहार होते क्या हैं ? कुछ नहीं बस एक उमंग को अपने दिल में भर कर अपनों के साथ आनंदित होने का अवसर होते हैं। तो इसको मतलब यह कि दो बातें किसी भी त्योहार को मनाने के लिए सबसे ज़रूरी होती हैं, सबसे पहले तो मन में उमंग हो और दूसरा अपनों का संग हो। हमारे तरही मुशायरे में भी यही दो बातें आवश्यक होती हैं। यहाँ आकर मन में उमंग आ जाती है और ढेर से अपनों का संग तो यहाँ हर दम हम सब को मिलता ही है। यह अलग बात है कि अब कुछ लोग त्योहारों की मस्ती में शामिल होने के बजाय साइड में कुर्सी लगाकर बैठ कर देखना पसंद करते हैं। इन देखने वालों का भी अपना महत्व होता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कार्यक्रम स्थल तक नहीं आकर केवल अपने घर की खिड़की को अधखुला रख कर इस प्रकार देखते हैं कि उनको देखते हुए कोई देख न ले। हमारे लिए वे सब महत्वपूर्ण हैं, हमारा काम इन सबसे ही मिलकर चलता है। तो आइये अब होली के इस आनंद उत्सव को और आनंद से भर देते हैं। हमारे आस पास जो कुछ है उसे अपने रंग में रँग लेते हैं और हम उसके रंग में रँग जाते हैं। आइये होली मनाते हैं।
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
होली का रंग हवाओं में उड़ने लगा है, टेसू दहक कर कह रहे हैं कि आ जाओ होली में हमारे रंग रँग जाओ और हम तीन शायरों सुधीर त्यागी, प्रकाश पाखी तथा बासुदेव अग्रवाल नमन के हाथों में थमा रहे हैं पिचकारी।
सुधीर त्यागी
टपकती छत, गरीबी, नातवानी याद आएगी।
कमी में इश्क से यारी पुरानी याद आएगी।
फिजाँ में इश्क़ हो बिखरा तो फिर गुल भी महकते है।
मुहब्बत में महकती रात रानी याद आएगी।
चली जाओगी तुम छू कर, तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा।
न जी पाएँगे, खुशबू ज़ाफरानी याद आएगी।
जुबां पर जब किसी की, नाम तेरे शहर का होगा।
हमें तब हूर कोई आसमानी याद आएगी।
किताबों के बहाने हाथ छूकर मुस्कुरा देना।
घड़ी भर इश्क की पहली कहानी याद आएगी।
न देखो यूँ समंदर के किनारे बैठे जोड़ों को।
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी।
किसी ने सच कहा है कि प्रेम ही काव्य का सबसे स्थाई भाव है। प्रेम की कविता सबसे सुंदर कविता होती है। क्योंकि वह जीने का हौसला प्रदान करती है। जैसे सुधीर जी की ग़ज़ल में चली जाओगी तुम छूकर मिसरा बहुत ही ख़ूबसूरत बना है। इसमें तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा तो मानो सौंदर्य को दुगना कर रहा है। और उसके बाद मिसरा सानी में ज़ाफ़रानी ख़ुश्बू का ज़िक्र तो जैसे हम सबको यादों की यात्रा पर ले चलता है। इसी प्रकार किसी की ज़ुबाँ पर उसके शहर का नाम आते ही किसी आसमानी हूर की याद आ जाना, यह भी तो हम सबकी कहानी है। हम जो शहरों के नाम के साथ ही किसी विशिष्ट की याद में खो जाते हैं। और सबसे अच्छा शेर बना है किताबों के बहाने हाथ छूकर मुस्कुरा देना, वाह एकदम यादों के अंतिम छोर पर पहुँचा दिया इस शेर ने तो। और उसके बाद घड़ी भर इश्क़ की तो बात ही अलग है। सचमुच ये वो समय था जब घड़ी भर इश्क़ ही सबके नसीब में होता था। और उसके बाद कुछ नहीं। समंदर के किनारे बैठे जोड़ों को देखने में सचमुच यह होता है कि अपनी जवानी याद आती है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
प्रकाश पाखी
ललित, नीरव की, माल्या की कहानी याद आएगी
कमाता चल तुझे अब रोज नानी याद आएगी।
अदा की रोशनी बुझने पर अब मातम मनाना क्यूँ
मिटी सरहद पे कमसिन कब जवानी याद आएगी।
इसी तरही को करना याद जब अरसा गुजर जाए
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी।
बिना तरतीब घर मिलता, जगह पर कुछ नहीं मिलता
जरा गर दूर हो जाए, ज़नानी याद आएगी।
तुझे हासिल हुआ रुतबा, मुझे भी सब सिवा तेरे
नहीं है बस मुहब्बत वह पुरानी याद आएगी।
होली का एक रंग व्यंग्य का भी रंग होता है। तीखा और धारदार व्यंग्य जो कलेजे में कटार की तरह घुस जाए। और प्रकाश भाई ने मतले में ही जो व्यंग्य का गहरा रंग पिचकारी में भर कर सरसराया है तो मानों हमारे पूरे समय को ही रँग दिया है। मिसरा सानी तो अश-अश कमाल है, वाह वाह वाह। कमाता चल तुझे अब रोज़ नानी याद आएगी। एक दूसरे के लिए ही बने हुए मिसरे। और उसके बाद बात करता हूँ गिरह के शेर की बहुत ही अलग तरीके से और बहुत ही ख़ूबसूरत गिरह लगाई है। तरही को देखकर जवानी याद आ जाना, बहुत ही कमाल की गिरह है। कुछ लोगों को तो अभी से अपनी जवानी याद आ गई होगी, कि कभी वे भी तरही में अपनी ग़ज़लें भेजते थे, अब गठिया के कारण किनारे पर कुर्सी डाल कर बस ताली बजा रहे हैं। और घर की आत्मा, घर की रूह, घर की सब कुछ गृहस्वामिनी के लिए बहुत ही सुंदर शेर कहा है। सच में उसके ज़रा कहीं जाते ही पूरा घर अस्त व्यस्त हो जाता है। वो हमारे घर की तरतीब होती है, तहज़ीब होती है। उसके बिना हम बेतरतीब हो जाते हैं। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, क्या बात है वाह वाह वाह।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी,
हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।
तुम्हें भी जब हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन तुमको होली की सुहानी याद आएगी।
मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,
*इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।*
जमीं रंगीं फ़िज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,
झलक एक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।
नहीं कम ब्लॉग में मस्ती मज़ा लो खूब होली का,
'नमन' ग़ज़लों की सबको शेर-ख्वानी याद आएगी।
किसी को याद करना अकेले में बैठ कर और उसके बहाने बहुत कुछ याद आ जाना, यही तो हमारे इस बार के मिसरे की ध्वनि है। यादों में खोने के लिए ही इस बार का मिसरा है। होली और वो भी उस समय की होली जब उमर में जवानी की गंध घुल रही होती है। उस उमर की बात करता हुआ हुस्ने मतला तुम्हें भी जब हमारी छेड़खानी याद आएगी और उस छेड़खानी में बसी हुई होली की सुहानी याद। यादें, यादें और यादें। जीवन बस यही तो होता है। और गिरह के शेर में उन लोगों को जगाने की कोशिश जो होली के दिन भी अपने दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद करके बैठे हैं। उनको शायर जगा रहा है कि होली की इस धूम को देख कर अपनी जवानी को याद कर लो। और किसी एक के नहीं दिखने से होली की उमंग, मस्ती और आनंद का फीका होना और उससे अनुरोध करना कि झलक एक बार दिखला दे तो हर रंग में उमंग आ जाए। किसी एक के होने से ही तो होली होती है, वह नहीं तो कुछ नहीं होता। ग़ज़ल और होली का अनूठा संयोग किया है बासुदेव जी ने, होली के रंगों में रँगी हुई ग़ज़ल है पूरी। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
कहते हैं कि जब जागो तब ही सवेरा होता है और हमारे यहाँ भी ऐसा ही होता है कि बहुत से लोग देर से ही जागते हैं। कुछ लोगों ने कल तरही की पहली पोस्ट लगने के बाद अपनी ग़ज़ल भेज दी हैं। चूँकि यहाँ तो दरवाज़े अंतिम पोस्ट लगने तक खुले रहते हैं। कभी भी दौड़ते हुए आओ और दरवाज़े का डंडा पकड़ कर ट्रेन में चढ़ जाओ। अपनी यह तरही की ट्रेन तो शिमला वाली खिलौना ट्रेन है जिसमें आप कभी भी कहीं भी सवार हो सकते हैं। हमारी यह ट्रेन मद्धम गति से चलती है। तो अभी भी आप में से वो जन जो कि ट्रेन में सवार होने के लिए घर से निकलूँ या न निकलूँ के इंतज़ार में हैं, वे निकल ही पड़ें। हमारी यह ट्रेन अपने एक-एक यात्री के इंतज़ार में रहती है। आइये आपका इंतज़ार है। और हाँ आज के तीनों शायरों ने होली का बहुत ही सुंदर रंग जमा दिया है। लाल, नीले, हरे, पीले, गुलाबी, सिंदूरी सारे रंगों से रँगी हुई अपनी ग़ज़लों से महफ़िल में हर तरफ़ रंग ही रंग कर दिया है। और जब शायरों ने इतनी मेहनत की है तो आपको भी तो करनी होगी, दाद देने में वाह वाह करने में । तो देते रहिए दाद करते रहिए वाह वाह मिलते हैं अगले अंक में।