विगत का विदा देना और आगत का स्वागत करना जीवन इन दोनों घटनाओं से ही मिल कर बनता है । जीवन का आनंद ही इसमें, यही तो जीवन रस हैं । कहते हैं हमारा शरीर पांच रसों से मिल कर बना है कड़वा, मीठा, खट्टा, खारा और तीखा । आयुर्वेद कहता है कि किसी भी रस की यदि कमी हो जाये या अधिकता हो जाये तो बीमारी हो जाती है । इसीलिये बूढ़े सयाने कहते थे कि नीम की पत्ती, करेले और मेथी दाने भी खाते रहना चाहिये । उससे शरीर में कड़वे रस की मात्रा बनी रहती है । वे कहते थे कि भोजन की थाली में सभी रस होने चाहिये, कुछ मीठा हो, कुछ नमकीन हो, कुछ तीखा हो, कुछ खट्टा हो और कुछ कड़वा भी हो । मगर हम आजकल ऐसे हो गये हैं कि हमारी थाली में रसों का संतुलन ही नहीं है । ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन में भी रसों का संतुलन नहीं है । हम उन्हीं रसों को चाहते हैं जो हमें अच्छे लगते हैं उन रसों को नहीं चाहते जो हमारे लिये अच्छे हैं । मीठा हमें अच्छा लगता है और कड़वा हमारे लिये अच्छा है । खैर चलिये बात को आगे बढ़ाते हैं ।
स्व. श्री रमेश हठीला जी
गुरू साहब ( इसी नाम से पुकारता था पूरा शहर उनको ) के नाम के आगे स्वर्गीय लगाते हुए कलम कांपने लगती है । जिंदगी से भरे हुए इन्सान के नाम के आगे कोई कैसे स्वर्गीय लगा दे । जन्म से केवल एक किडनी, हृदय की जबरदस्त बीमारी और तिस पर ये कि मजाल जो कभी अपनी शुगर को 200 से नीचे उतर आने दें । अर्थाभाव के कारण कक्षा आठ से अधिक नहीं पढ़ पाये, लेकिन भले ही स्कूल कालेज की शिक्षा अधूरी रह गई हो किन्तु पढ़ना लिखना कभी नहीं छोड़ा । स्वाभिमान ऐसा कि जब किसी मित्र ने दौड़ भाग करके मुख्यमंत्री सहायता कोष से बीमारी के उपचार के लिये एक लाख रुपये स्वीकृत करवा दिये तो चैक को धन्यवाद के पत्र के साथ कलेक्टर को वापस कर आये । शिवना संस्था की आत्मा थे वे । सारे कार्यक्रम एक उनके खड़े रहने से हो जाते थे । और अब जब वे नहीं हैं तो पिछले एक साल से सब कुछ मानो थम सा गया है । वे जनकवि थे । जनकवि इस मामले में कि वे लगातार दस सालों तक प्रतिदिन एक स्थानीय समाचार पत्र में कुडलियां लिखते रहे । और कुंडलियां भी कैसीं, शहर की समस्या, अफसरों के भ्रष्टाचार और नेताओं की अकर्मण्यता के खिलाफ ।खूब विरोध सहा किन्तु लिखते रहे । जनता की आवाज़ को अपनी क़लम से उतारते रहे । प्रेम और विद्रोह ये उनकी कविताओं के स्थाई भाव थे । उनकी एक ग़ज़ल यहां प्रस्तुत है ।
प्यार से तेरा अभी परिचय नहीं है
ये समर्पण है कोई विनिमय नहीं है
मात्र मोहरे हैं सभी शतरंज के हम
मौत कब हो जाये ये निश्चय नहीं है
मत उड़ाओ भावानाओं की हंसी तुम
प्यार मेरा प्यार है अभिनय नहीं है
इस जहाँ की ऑंधियों से मत डराओ
प्यार तो वट वृक्ष है किसलय नहीं है
प्यार शाश्वत सत्य शिव, सुन्दर, सनातन
रूप यौवन कोष तो अक्षय नहीं है
जो मिला उनमुक्त हाथों से लुटाओ
अर्थ जीवन का कभी संचय नहीं है
इस बार का तरही मुशायरा श्री रमेश हठीला जी की पुण्य स्मृतियों को ही समर्पित है । और जैसा कि पहले बताया है कि इस बार दो मिसरे हैं
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गांव में
दोनों में से जो भी आपको पसंद आये आप उस पर अपनी ग़ज़ल कह सकते हैं । काफी ग़जलें आ चुकी हैं । और जो आईं हैं वे यक़ीनन काफी बेहतरीन हैं । इस बार का रदीफ 'है अभी तक गांव में' लिखने वालों के लिये एक सुंदर चुनौती है कि मुझे बांध सको तो बांध लो । सुंदर इसलिये कि इस रदीफ पर बहुत सुंदर प्रयोग हो सकते हैं । अभी तक जो ग़ज़लें मिली हैं वे बहुत सुंदर हैं और विविधता लिये हुए हैं । जिन लोगों ने अभी तक ग़ज़लें नहीं भेजी हैं वे कृपया 5 जनवरी तक भेज दें ताकि हम सही समय पर मुशायरे को शुरू कर सकें ।
और सीहोर आइये ठंड के मौसम में आपको आंगन में अमरूद के पेड़ के नीचे झूले पर बिठा कर चूल्हे की गरम गरम ज्वार की रोटियां टमाटर की चुर्री की साथ खिलाईं जाएंगीं और साथ में ताजे अमरूद भी । ( टमाटर की चुर्री की रेसिपी - एक बर्तन में पका टमाटर साबुत डालो, साथ में साबुत हरी मिर्ची, हरा धनिया, नमक, अब थोड़ा सा पानी डाल कर सामग्री को हाथों से मसलना शुरू कर दो, चूर डालो, जब पूरी तरह से चूर दो तो समझो चुर्री हो गई तैयार । और हां उसमें दिमाग बिल्कुल मत लगाओ । )