शनिवार, 17 मार्च 2018

आइए आज होली के तरही मुशायरे को अपने अंजाम तक पहुँचाते हैं दो शायरों शेख चिल्ली और नकुल गौतम के साथ

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मित्रो नहीं नहीं करके भी शायर जुट जाते हैं और मुशायरा हो जाता है। शुरूआत में तो ऐसा लगता है कि जैसे इस बार तो बहुत कम ही रहने वाले हैं शायर, लेकिन धीरे-धीरे उत्साह बढ़ता है और आमद शुरू हो जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ, लोग पहले तो नहीं आए और फिर आए तो आते ही चले गए। आज हम होली के मुशायरे का समापन कर रहे हैं दो शायरों के साथ शेख चिल्ली और नकुल गौतम के साथ। नकुल गौतम तो पूर्व में भी अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर चुके हैं। इस बार वो हज़ल लेकर आ रहे हैं और शेख चिल्ली वो जिनके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते कि वो कौन हैं। वे अपना परिचय देने में संकोच करते हैं। यहाँ तक कि फोटो भी नहीं देते। कोई बात नहीं, कभी तो सामने आएँगे।

इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

आइए आज होली के तरही मुशायरे को अपने अंजाम तक पहुँचाते हैं दो शायरों शेख चिल्ली और नकुल गौतम के साथ

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शेख चिल्ली
बुढ़ापे में हमें जब बेमकानी याद आयेगी
हमें अक्सर तुम्हारी मेज़बानी याद आयेगी

मुझे पहले खिला कर खुद वो खाली पेट सोती थी
सदा अम्मा की हमको बेईमानी याद आयेगी

"बहुत कमज़ोर हो" कह कर खिलाती थी मुझे मक्खन
मुझे मिक्सी की खड़ खड़ में मथानी याद आयेगी

सुनाई देंगी बेतरतीब सी जब धड़कनें दिल की
हमें दिल पर किसी की हुक्मरानी याद आयेगी

मैं  तुमको भूल जाऊँगा, ये वादा है मेरा तुमसे
मगर अक्सर तुम्हारी याद आनी याद आयेगी

पियाली चाय की तन्हा पड़ी मायूस है देखो,
इसे तेरे लबों की मेह्रबानी याद आयेगी

गिरह के शे'र में हम डायरी का ज़िक्र करते हैं
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आयेगी

बुढ़ापे में जब बेमकानी होती है तो जवानी की मेज़बानियाँ तो याद आती ही हैं। मगर मतले के बाद का जो शेर है उसमें दुनिया की जिस सबसे पवित्र बेईमानी का ज़िक्र है उसको पढ़कर किसकी आँख न भर आए। भगवान, ईश्वर, ख़ुदा, गॉड सब यही चाहेंगे कि यह दुनिया इस प्रकार की बेईमानियों से भर जाए। तकनीक के दौर में पुरानी याद आना कुछ ऐसा है जैसे अचानक कोई पुराना गाना याद आ जाए और मथानी की याद तो हर दौर में आएगी, हम वो लोग होंगे जिन्होंने मथानी को अंतिम बार देखा था। और बेतरतीब सी धड़कनों के बहाने उम्र के ढलते समय में जवानी का वो समय याद आना जब किसी की हुक्मरानी हुआ करती थी। अगले शेर में जो सौंदर्य है वो याद आनी याद आएगी का है। बहुत ही सुंदर प्रयोग है, कहते हैं कि कविता कब कैसे बन जाती है बनाने वाले को भी पता नहीं चलता। चाय की प्याली के बहाने किसी के लबों की मेह्रबानी को याद करना बहुत ही रूमानी अंदाज़ में कहा गया शेर है । और गिरह भी सबसे अलग तरीक़े से लगाई गई । बहुत ही सुंदर ग़ज़ब का प्रयोग। बहुत ही सुंदर वाह वाह वाह।

Nakul Gautam

नकुल गौतम
बुढ़ापे में हमें जब भी जवानी याद आयेगी
फिसल जाने की फितरत खानदानी याद आयेगी

कभी शीला, कभी श्वेता, कभी सपना, कभी शीतल
मुहब्बत की अधूरी हर कहानी याद आयेगी

मेरा खत जब तेरे डैडी के हाथ आया था गलती से
बुढ़ापे में वो उनकी बदज़ुबानी याद आयेगी

तेरी तारीफ़ में हमने कहे थे शे'र जो इतने
कसम से डायरी से बेईमानी याद आएगी

सजा रक्खी है घर में मूछ वाली आखिरी फ़ोटो
"इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी"

तुम्हें रँगने के चक्कर में पिटे थे हम मोहल्ले में
बमुश्किल बच सकी वो शेरवानी याद आयेगी

हमारी आँख के नीचे अभी तक है निशां कट का
मेरे मुँह पर तेरी सैंडिल पुरानी याद आयेगी

तेरी शादी के दिन बेख़ौफ़ घुस जाना तेरे घर में
पुलिस थाने की शब भर मेज़बानी याद आयेगी

क्या कमाल है कि दोनों शायरों का मतले का मिसरा ऊला लगभग एक सा है, लेकिन यहाँ वह बात अपनी ही ठिठौली करने के लिए कही जा रही है। फिसल जाने की फितरत खानदानी का क्या कहना। और उसी फितरत को अगले शेर में एक लम्म्म्म्बी सी सूची से स्पष्ट किया गया है शीला, श्वेता, सपना और शीतल मतलब यह कि एस अक्षर को छोड़ा नहीं है शायर ने। और बुढ़ापे में बदज़बानी करते हुए ससुर जी से किसका पाला नहीं पड़ा है ? वाह क्या याद दिलाया एक मूँछ वाली फोटो तो मेरी भी रखी है, शेर को पढ़ने के बाद उसे देखा तो सचमुच अपनी जवानी याद आ गई। क्या ठाठ हैं बंदे के कि होली खेलने भी शेरवानी पहन कर ही जा रहे हैं। अब गए हो तो भुगतो भी। और यह जो आँख के नीचे सैंडल का निशान है यह तो आशिक़ी का वह तोहफा है जो क़िस्मत वालों को ही मिलता है, सबको कहाँ मिलता है ये। हाँ लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि जब शादी तय ही हो गई तो अब वस्तुस्थिति को स्वीकार किया जाए नहीं तो थाने की मेहमानी करने के अलावा कोई चारा होता भी नहीं है। बहुत ही सुंदर हज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।

7

मित्रो आज के दोनों शायरों ने बहुत सुंदर तरीके से मुशायरे का समापन किया है। आपका अब फ़र्ज़ बनता है कि ख़ूब दाद देकर मुशायरे को विध्वित समाप्त करें। और इंतज़ार करें अगले मुशायरे का। जो संभवतः अब गर्मियों में पवित्र रमज़ान के अवसर पर होगा और ईद पर हम जश्न मनाएँगे। तब तक जय हो।

सोमवार, 12 मार्च 2018

बासी होली, आज इसमें शामिल है देश के महान शायर नीरज गोस्वामी और उतने ही महान दूसरे शायर भभ्भड़ कवि भौंचक्के का ग़ज़लिया मुकाबला ।

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वो निर्णायक को देकर घूस तेरा जीतना ज़ालिम
चली थी चाल तूने जो सयानी याद आएगी

होली के तरही मिसरे पर भभ्भड़ कवि भौंचक्के और देश के कुख्यात शायर नीरज गोस्वामी के बीच एक ग़ज़लिया मुकाबला संपन्न हुआ। शिवना प्रकाशन के श्री शहरयार ख़ान इस मुकाबले के निर्णायक थे। प्रारंभिक रूझान के मुताबिक श्री नीरज गोस्वामी ने यह मुकाबला जीत लिया है। प्रारंभिक रूझान इसलिए क्योंकि अभी अभी पता चला है कि गोस्वामी जी ने शिवना प्रकाशन को ऑफर किया था कि यदि उनको विजेता घोषित किया जाता है तो वे पुरस्कार में मिलने वाली शॉल, गुलदस्ते को स्वयं ख़रीद कर ले आएँगे तथा शिवना प्रकाशन पर किसी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं पड़ने देंगे। साथ ही वे अपनी ही पुस्तक यायावरी यादों की को सम्मान के रूप में प्राप्त करने को भी तैयार हैं। चूँकि शहरयार ख़ान ऑफर के कच्चे माने जाते हैं, इसलिए यह मुकाबला श्री नीरज गोस्वामी के पक्ष में जीता हुआ उनके द्वारा घोषित कर दिया गया है। एक श्रोताओं से खचाखच भरे सभागृह में जिसमें इन तीनों के अलावा केवल एक फोटोग्राफर और था, मुकाबले के विजेता रहने पर श्री नीरज गोस्वामी को उनकी ही लाई हुई शॉल, गुलदस्ते और उनकी ही किताब यायावरी यादों की देकर सम्मानित किया गया।

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वो ब्राउन ब्रेड जो थी घूस की और जेम रिश्वत का
वो भ्रष्टाचार की इक शादमानी याद आएगी

कार्यक्रम के पश्चात एक शानदार डिनर पार्टी का आयोजन भी किया गया। डिनर पार्टी में श्री नीरज गोस्वामी द्वारा लाई गई ब्राउन ब्रेड पर उनके ही द्वारा लाए गए टमाटर, ककड़ी जो उनके ही द्वारा काटे भी गए थे सजाकर सैंडविच बना कर खाए गए। यह रात्रिभोज श्री नीरज गोस्वामी द्वारा मुकाबला जीतने की खुशी में दिया गया ​था। इस डिनर पार्टी में बड़ी संख्या में यह तीनों शामिल हुए तथा करीब चार ब्राउन ब्रेड के पैकेट साफ कर दिये गए।

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गुलाब इस वाहियात अंदाज़ में जब कोई सूँघेगा
हमें तब आपकी ज़िल्ले सुभानी याद आएगी

आज इसमें शामिल है देश के महान शायर नीरज गोस्वामी और उतने ही महान दूसरे शायर भभ्भड़ कवि भौंचक्के का ग़ज़लिया मुकाबला। मुकाबले की ग़ज़ल में पहला शेर श्री नीरज गोस्वामी जी द्वारा कहा जा रहा है तथा उसका उत्तर भभ्भड़ कवि भौंचक्के द्वारा दिया जा रहा है। पहचान के लिए दोनों के शेरों को अलग अलग रंगों में दिया जा रहा है।

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हुई भभ्भड़ की नीरज से जहाँ पर ग़ज़लिया टक्कर
हमें वो इंडिया की राजधानी याद आएगी

नीरज गोस्वामी जी और भभ्भड़ कवि भौंचक्के के बीच कुल दस चक्रों में मुकाबला संपन्न हुआ जिसमें मतला और मकता भी शामिल है। दसों चक्र आपके सामने दिये जा रहे हैं।

1
ग़ज़ल छाती पर चढ़कर वो सुनानी याद आएगी
वो भभ्भड़ तेरी हरक़त तालिबानी याद आएगी

हमें नीरज तुम्हारी बदगुमानी याद आएगी
ग़लतफ़हमी की इक लंबी कहानी याद आएगी

2

नाशिस्त-ए-भभ्भड़ी में हाय श्रोताओं का वो ग़ुस्सा
वो भभ्भड़ दाद जूतों से पिलानी याद आएगी

वो सामाइन का घटिया शेर पर तुमको पटक देना
बदन की खाट नीरज चरमरानी याद आएगी

3

अमाँ रहने भी दो जाओ हमारा मुँह न खुलवाओ
खुला भभ्भड़ हमारा मुँह तो नानी याद आएगी

हैं नीरज चाहते हम भी यही के मुँह न खोलो तुम
जो तुमने मुँह को खोला नाबदानी याद आएगी

4

जवानी जा चुकी कब की अभी तुम इश्क़ में ही हो
ऐ भभ्भड़ कब तलक बीती जवानी याद आएगी

ये डाली मोगरे की में हैं चूहे, शेर मत कहिये
कोई पढ़ ले तो नीरज चूहेदानी याद आएगी

5

किसी मजनूँ को चौराहे पे पिटता जब भी देखेंगे
हमें भभ्भड़ फटी इक शेरवानी याद आएगी

किसी की जब भी उतरेगी ज़नाना सैंडिलों से लू
हमें नीरज की इक घटना पुरानी याद आएगी

6

अचानक बीट कर देगा कोई कव्वा अगर सिर पर
वो भभ्भड़ तेरी ग़ज़ल-ए-नागहानी याद आएगी

ग़ज़ल ये आपकी नीरज बहत्तर फुट है लम्बी जो
इसे सुन कर बला-ए-आसमानी याद आएगी

7

ये जो दीवान भभ्भड़ है तेरा इसको पढ़ेंगे जब
हमें दादी की अपनी पीकदानी याद आएगी

हमें भी रस्म-ए-इजरा आपके दीवान की नीरज
थी महफ़िल शर्म से जो पानी-पानी याद आएगी

8

सुभान अल्लाह भभ्भड़ आबनूसी रंग ये तेरा
तुझे देखे कोई तो सुरमेदानी याद आएगी

मिलेगा जब भी गैंडे-सा कोई, तो फिर ख़ुदा की ये
तुम्हारे साथ नीरज बेईमानी याद आएगी

9

हमें भी याद आएगी फ़िदा जिस पर तू था भभ्भड़
तुझे भी तो चुड़ैलों की वो रानी याद आएगी

तुम अपने भी तो नीरज याद कॉलेज के करो वो दिन
तुम्हें मोहतरमा कोई मरकटानी याद आएगी

10

सवा सौ गालियाँ 'नीरज' को घण्टे भर में दीं तूने
तेरी भभ्भड़ ज़बाँ ये ख़ानदानी याद आएगी

बुला 'भभ्भड़' को नीरज घर कटाना अपने कुत्ते से
हमेशा आपकी ये मेज़बानी याद आएगी

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दुखी है शहरयार अब और हँसते खिलखिलाते तुम
हमें सच्चाई से ये छेड़खानी याद आएगी

मित्रों आज के यह दोनों शायर आपके चिर परिचित हैं। दोनो ही आपकी दाद पाने के हक़दार हैं। देर से आए हैं लेकिन दुरुस्त आए हैं। तरही में बस एक दो ग़ज़ल और बची हैं, उसके साथ ही हम तरही का समापन अगले अंक में कर देंगे। लेकिन आज तो बस आपकी दाद के लिए एक ही बात दे दाता के नाम तुझको…….

सोमवार, 5 मार्च 2018

बासी होली का अपना ही आनंद होता है, बासी होली का अपना मज़ा होता है। तो आइये आज पाँच रचनाकारों के साथ मनाते हैं बासी होली। तिलक राज कपूर जी, मंसूर अली हाशमी जी, सुमित्रा शर्मा जी, दिनेश नायडू और पारुल सिंह के साथ आनंद लेते हैं बासी होली का।

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होली का पर्व भी बीत गया, हालाँकि हमारे यहाँ मालवांचल में अभी नहीं बीता है अभी तो रंग पंचमी कल होनी है। मालवांचल में सबसे ज़्यादा रंग रंगपंचमी पर ही होता है। इसके बाद शीतला सप्तमी के दिन होली की आग को ठंडा किया जाएगा और उसी के साथ ही होली के पर्व का समापन होगा। उस दिन पिछली रात को ही सारा भोजन बना कर रख लिया जाएगा। शीतला सप्तमी के दिन कुछ भी नहीं पकाया जाता, पिछली रात का ठंडा और बासी खाना ही खाया जाता है। पंरपराएँ यूँ ही तो नहीं बनती हैं, कोई न कोई बात तो उनके पीछे होती है। असल में मुझे लगता है कि यह जो ठंडा खाना खाने की परंपरा है इसका अर्थ गलत निकाल लिया गया है। मुझे लगता है कि वास्तव में यह रहा होगा कि शीतला सप्तमी के साथ ही शीत ऋतु विदा हो जाती है और ग्रीष्म् का आगमन हो जाता है। तो यह जो ठंडा खाने की बात है वह ये है कि आज से ठंडी तासीर वाला  भोजन करना शुरू करना है, अब गरम तासीर वाला भोजन नहीं करना है। जैसे अब बाजरे के स्थान पर ज्वार खाना शुरू करना है। गुड़ के स्थान पर बेल का सेवन करना है। आदि आदि। लेकिन अब बस एक दिन ही रात का बासी खाना खाकर ठंडा खाने की परंपरा को निभा लिया जाता है। और अब तो हमें यह भी नहीं पता कि किस पदार्थ की तासीर ठंडी है और किसकी गर्म है। पर आज तो यह पता चल गया है आपको कि शीतला सप्तमी के दिन से आपको गर्म तासीर वाला भोजन करना बंद करना है।

इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

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होली की तरही की ट्रेन झकड़-पकड़ गति से चल रही है। इतनी धीमी गति से कि बुज़ुर्ग मुसाफ़िर भी आसानी से चलते हुए इस पर सवार हो रहे हैं। आज कुछ इसी प्रकार के मुसाफ़िरों को हम ले रहे हैं जो दरवाज़े का डंडा पकड़ कर लटके हुए हैं। और हाँ अभी तो कुछ और भी बाक़ी रहेंगे इसके बाद भी । बासी होली कुछ दिनों तक तो चलेगी ऐसा अनुमान है। बासी होली का अपना ही आनंद होता है, बासी होली का अपना मज़ा होता है। तो आइये आज पाँच रचनाकारों के साथ मनाते हैं बासी होली। तिलक राज कपूर जी, मंसूर अली हाशमी जी, सुमित्रा शर्मा जी, दिनेश नायडू और पारुल सिंह के साथ आनंद लेते हैं बासी होली का।

TILAK RAJ KAPORR JI

तिलक राज कपूर जी
क़त्आ
नई यादों से छनकर जब पुरानी याद आएगी
हमारे साथ बीती ऋतु सुहानी याद आएगी।
झपकते ही पलक, बेबात हमसे दूर हो जाना
बहुत पछताओगे जब बदगुमानी याद आएगी।

ग़ज़ल
कुरेदे ज़ख़्म तो फिर वो कहानी याद आएगी
ज़माने की निगाहे-तर्जुमानी याद आएगी।

तराने उन दिनों के छेड़, जब आज़ाद फिरते थे
जवाँ होती हुई गुड़ियों की रानी याद आएगी।

मिलेगी शह्र में जब बंद बोतल में भरी ख़ुश्बू
यहाँ आंगन में फैली रातरानी याद आएगी।

नज़रिया है नया इसका, नई ऊंचाई ख्वाबों की
"इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी।"

नज़र का फेर है, फिर से; नज़र को फेर कर देखो
हवस की आंख को बिटिया सयानी याद आएगी।

न जाने किस दिशा में, कौनसी, कब, चाल चल दे ये
सियासत का पियादा देख रानी याद आएगी।

हमारी उम्र थी कच्ची, कबीरा याद क्या रखते
बुढ़ापे में ही अब शायद वो बानी याद आएगी।

तिलक जी जनरल कोच के डब्बे के डंडे से लटकर कर यहाँ तक आए हैं, स्वागत किया जाए इनका। सबसे पहले तो बहुत ही ख़ूबसूरत क़त्आ है, बिछड़न के रंग से रंगा हुआ क़त्आ। और उसके बाद ग़ज़ल भी रंगे-तिलक में रँगी हुई है। ज़ख़्म कुरेदे जाने पर किसी कहानी का याद आ जाना, वाह क्या सुंदर मिसरा है। अगले शेर में पहले मिसरे में –जब आज़ाद फिरते थे तो मानों किसी फाँस की तरह कलेजे में धँस गया और उसके बाद जवाँ होती हुई गुड़ियों की रानी, वाह वाह क्या बात है। अगले शेर में बोतल में बंद ख़ुशबू के मिलने पर गाँव की रातरानी याद आ जाना प्रतीकों के माध्यम से दो जीवन शैलियों के बीच के अंतर को ख़ूब रेखांकित करता है। और गिरह का शेर बिल्कुल अलग ही अंदाज़ में सकारात्मक तरीक़े से लगाया गया है। नज़र का फेर में मिसरा ऊला विशुद्ध कविता है, कलात्मक कविता, शब्दों की कारीगरी का सौंदर्य। और उसके बाद मिसरा सानी थप्पड़ सा लगता है हमारे समय और समाज पर। सियासत को समर्पित शेर में पियादे को देख कर रानी का याद आना उलटबाँसी प्रयोग है और खूब बन पड़ा है। और अंत में वही सच कि हमको कबीर उस उम्र में पढ़ाया गया जब हम उसे रट ही सकते थे। आज उसका अर्थ समझ सकते हैं। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है, वाह वाह वाह।

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मन्सूर अली हाश्मी जी
कहानी दर कहानी दर कहानी याद आएगी
पलटते रहिये सफहे ज़िंदगानी याद आएगी।

शरारत से भरी आंखें, दबी पिचकारी हाथों में
कईं बातें 'पुरानी से पुरानी' याद आएगी

किसी मजनूँ पे हंस लेना बहुत आसान है लेकिन
हुए जो मुब्तलाए इश्क़ नानी याद आएगी ।

फ़साने को हक़ीक़त में बदलते अपने शब्दों से
हमें मिथ्यागरों की लंतरानी याद आएगी।

दिवा स्वप्नों ही में गोचर हुई 'नर्गिस' या 'नन्दा' गर
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी।

लिपट जाती है गाजर घास से भी बेल फूलों की
भंगेडी को तो दिन में 'रातरानी' याद आएगी

गुरु चाणक्य में जागा अगर जो मोह सत्ता का
तो तक़दीरे 'मनोहर', 'आडवाणी' याद आएगी

हया दारों की आंखें तो अंगूठे पर टिकी रहती
कहाँ 'प्रिया'* की आंखें मिचमिचानी याद आएगी?
(*प्रिया प्रकाश)

बचाने को तुम्हें ही सायकल से मेरा गिर जाना
औ' तिस पर सैंडल से मार खानी याद आएगी!

दिवाना 'हाश्मी' को कह रही है भीड़ होली की
उसे अब भी नही  क्या वो जवानी याद आएगी?

दोहराव का सौंदर्य मुझे हमेशा से भाता रहा है। जैसे इसमें कहानी दर कहानी दर कहानी ने मिसरे को बहुत सुंदर बना दिया है। और उसके बाद मिसरा ऊला , वाह क्या बाता है। और अगले ही शेर में पुरानी  से पुरानी, क्या ख़ूब प्रयोग किया गया है। साहित्य प्रयोगधर्मिता का ही नाम है, जब तक आप प्रयोग कर रहे हैं, तब तक आप रच रहे हैं। अगला शेर मजनूँ पे हँसने वालों को जिस मासूमियत से नानी याद आने की चेतावनी दे रहा है, वह चेतावनी पढ़कर मुस्कुराए बिन कोई कैसे रह सकता है ? और अगले शेर में मिथ्यागरों की लंतरानी ग़ज़ब है, सलीक़ा तो यही है कि बिना किसी का नाम लिए सब कुछ कह दिया जाए। दिवास्वप्न में न​र्गिस तथा नंदा का आना तो उम्र का तक़ाज़ा है, हर उम्र की अपनी नर्गिंसें और नंदाएँ होती हैं। यहाँ से ग़ज़ल हजल के ट्रेक पर आती है। और बताती है कि गाजर घास से लिपटी बेल की तरह भँगेड़ी को दिन में रातरानी याद आती है। प्रिया प्रकाश का मिचमिचाना सफेद दाढ़ी के बाद भी हाशमी साहब को  दिख रहा है यह बड़ी बात है। इसी से पता चलता है कि जवानी अभी गई नहीं है। सायकल से उसे ही बचाते हुए गिरना और उसकी ही सेंडिलों से मार खाना, उफ़्फ इससे बड़ी दुर्घटना और क्या हो सकती है भला। और मकते में होली की मस्ती को सुंदरता से गूँथा गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

DINESH NAYDU

दिनेश नायडू
ख़लाओं में भी अपनी बेमकानी याद आएगी
मुझे ऐ जिस्म तेरी मेज़बानी याद आएगी

समंदर उम्र भर ताज़ा रहेगा मेरी आँखों में
ये जो मौजों में रहती है रवानी याद आएगी

वो चुप लम्हा की जब उसका बदन मुझसे मुख़ातिब था !
मुझे ताउम्र अपनी बेज़बानी याद आएगी

मनाएंगे सहर का जश्न कितनी देर हम शबज़ाद
चुभेगी धूप तो वो रातरानी याद आएगी

वो क्या दिन थे तुम्हारे ध्यान में जब ख़ाक उड़ाता था 
अब अपने बाद अपनी ख़ुश गुमानी याद आएगी

बगूलों की तरह फिरता रहूंगा तेरे सहरा में
कभी तो तुझको मेरी क़द्र दानी याद आएगी

जब आँखें अश्क रो रो कर बदल जाएंगी पत्थर में 
ये दावा है तुम्हे मेरी कहानी याद आएगी

ये पहला ख़त है पहले प्यार का यारों, संभालेंगे !
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

दिनेश जी पहली बार तरही में शामिल हो रहे हैं तो सबसे पहले तो तालियों से उनका स्वागत किया जाए। मतले के साथ ही ग़ज़ल ने ग़ज़ब का स्टार्ट लिया है, जिस्म की मेज़बानी के तो कहने ही क्या हैं पूरा शेर सुगंध से भर गया है। समंदर का उम्र भर ताज़ा रहने वाला पहला ही शेर और उसके बहाने मौजों की रवानी याद आना बहुत ख़ूब। लेकिन अगला शेर जिसमें बदन मुख़ातिब था और बेज़बानी याद आ रही है, यह हासिले ग़़ज़ल शेर है, मिसरा ऊला तो जैसे कटार की तरह जिगर कलेजे दिल सबमें बिना घाव किये उतर जा रहा है। बहुत ही सुंदर शेर, ग़ज़ब, कमाल। उस्तादाना अंदाज़ का शेर है। इसके बाद किसी अन्य शेर की चर्चा करने की इच्छा ही नहीं हो रही है। मगर आगे के शेर भी कमाल हैं तो करना पड़गी चर्चा तो। सहर के जश्न के बाद जब धूप चुभती है तो रातरानी याद आती है, अगर इस शेर को राजनैतिक संदर्भ में देखा जाए तो कितना गहरा है यह शेर, तीखे कटाक्ष के साथ उतरता है। फिर आगे के तीनों विरह के शेर…. अब अपने बाद अपनी खुशगुमानी….. “अपने बाद” वाह वाह वाह…. क्या कहन है भाई, सदक़े….. फिर अगले ही शेर में बगूलों की तरह उड़ते फिरने का अंदाज़ कमाल कमाल है। फिर उसके साथ क़ाफिया भी ऐसा जोड़ा है कि अश अश। जब आँखें अश्क रो रो कर…. यह शेर उस प्रकार का है कि इस पर कोई प्रतिक्रिया शब्दों से दी ही नहीं जा सकती बस पलकों की कोरों पर आई नमी है प्रतिक्रिया देती है। अंतिम शेर में गिरह…. ग़ज़ब… इस बार अधिकांश गिरहों में काल की समस्या बनी है। लेकिन यह शेर उस समस्या से बेदाग़ निकल कर आता है। सर्रर्रर्र से निकल जाता है शेर और हम स्तब्ध से रह जाते हैं। पहली ही आमद और आते ही ऐसी कमाल की ग़ज़ल… मुकम्मल ग़ज़ल, हर शेर बोलता हुआ…. वाह वाह वाह।

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पारूल सिंह
कभी वो शाम पलकों से गिरानी याद आएगी
कभी फिर सुब्ह पलकों पर उठानी याद आएगी

रखे हैं होंठ तेरे आज भी जैसे वो माथे पर
उमर की धूप में ठंडक सुहानी याद आएगी

पलट कर देखना उसका, महब्बत है समझ लेना
बहुत मासूम सी वो बदगुमानी याद आएगी

सयानी हो रही बेटी हक़ों की बात करती है
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

सितम दिल पर खमोशी से हैं झेले रात-दिन उसने
मुझे यूँ दोस्ती उसकी निभानी याद आएगी

मुझे दिल पे सितम मंजूर हैं सबके, मगर  तेरे
तग़ाफुल की हमेशा गुलफ़िशानी याद आएगी

किताबे इश्क़ में तो नाम तेरा है नहीं पारुल
वफ़ा के नाम पर तेरी कहानी याद आएगी

पारुल जी बीच बीच में हाजिरी लगाने आ जाती हैं। बीच में एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या से दो-चार हुई हैं। और अब उनकी यह ग़ज़ल। मतला किसी तूलिका से निकला हुआ चित्र हो मानों जिसमें अलग-अलग रंगों से कमाल दिखाया गया है। पहला ही शेर प्रेम की स्म़ृतियों में खोया हुआ ख़ूबसूरत शेर है। रखे हैं होंठ तेरे आज भी जैसे वो माथे पर…. वाह वाह वाह क्या भाव है। उमर की धूप में ठंडक सुहानी की याद आ जाना कमाल है बस। पलट कर देखना उसका में कितनी मासूमियत भरी हुई है, मासूम सी बदगुमानी के तो कहने ही क्या हैं, बहुत ही सुंदर है। सयानी हो रही बेटियाँ जब भी अपने हक़ों की बात करती हैं तो सचमुच माँ को अपनी जवानी याद आती है जब वो अपने लिए नहीं लड़ पाई, इमोशनल कर देने वाला शेर है। कई बार हम दोस्ती को नहीं याद रखते हैं, लेकिन याद रखते हैँ कि किसी ने दोस्ती को किस प्रकार निभाया था। बहुत सुंदर। मुझे दिल पे सितम शेर रवायती अंदाज़ में कहा गया शेर है, नई तकनीक के बीच रवायती अंदाज़ का शेर आनंद देता है। और मकते का शेर तो बहुत सुंदर बना है, क्या उदासी से भरा हुआ शेर है… उदासी जो जब शेर में करेक्ट तरीक़े से आ जाए तो काट देती है। बहुत ही सुंदर शेर है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है, वाह वाह वाह।

sumitra sharma

सुमित्रा शर्मा जी
नदी के तीर से चुनरी चुरानी याद आएगी
तुम्हारी वो मधुर बंसी बजानी याद आएगी

चले जाओ किशन यूं छोड़ गोकुल तुम विमोही बन
मुहब्बत ये तुम्हें भी तो पुरानी याद आएगी

पुरानी डायरी से जो गिरा सूखा हुआ इक गुल
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

जो खोली याद की गठरी तो अंखियां भीग जाएंगी
मनाने रूसने की सब कहानी याद आएंगी

तुम्हारे साथ तो हर पल दिवाली,ईद, होली था
तुम्हारी छुअन की अब बस, सुहानी याद आएगी

महक फूलों की, रंग होली, उजाले आफताबी थे
इबादत सी मुहब्बत की सुहानी याद आएगी

कृष्ण और होली तो मानों एक दूसरे के पूरक ही हैं। और कृष्ण से जुड़ी हुई कहानियों का काव्य में प्रयोग करना हमेशा से होता आया है। यहाँ भी मतले में गोपियों के वस्त्र चुराने और उसके बाद बंशी बजाने का प्रयोग बहुत सुंदर तरीके से किया गया है। अगले ही शेर में कृष्ण को विमोही बन कर जाते हुए चेतावनी दी जा रही है कि तुमको यह भूली हुई पुरानी कहानी हमेशा याद आएगी, आती रहेगी। पुरानी डायरी में सूखे हुए फूल जाने कब से सहेजे जा रहे हैं और जाने कब तक सहेजे जाते रहेंगे और उनको देख कर जवानी याद आती रहेगी। यादों की गठरी में सचमुच मनाने और रूठने की कुछ ऐसी कहानियाँ बँधी होती हैं, जो गठरी के खुलते ही आँखों में पानी ला देती हैं। अगले ही शेर में किसी के साथ से दीवाली, ईद और होली का आनंद और बिछड़ने के बाद उस सुहानी छुअन का याद आना। यादें। मुहब्बत वास्तव में एक इबादत ही तो है जिसकी सुहानी यादें हमेशा हमारे अंदर बसी रहती हैं। अज़ल से बसी हैं। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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ऐसा पहली बार हुआ है कि मुख्य के मुकाबले में बासी आयोजन अधिक भारी पड़ रहा है। आज के पाँचों शायरों ने बहुत ही कमाल की ग़ज़लें कही हैं। अभी भी कुछ ग़ज़लें और हैं जो आने वाले दिनों में शामिल होंगी। और शायद इस बीच भभ्भड़ कवि भौंचक्के भी शामिल हो जाएँ। इस बार हो सकता है कि वो पार्टनर के साथ आएँ नीरज गोस्वामी जी के साथ। कुछ भी हो सकता है। प्रतीक्षा करें। और हाँ आज की ग़ज़लों पर दाद देते रहें। उत्साह बनाए रखें मिलते हैँ अगले अंक में।

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

होली है भई होली है हम मस्तों की टोली है, सबको रंग भरी शुभकामनाएँ और आज हम सात रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, गिरीश पंकज जी, द्विजेन्द्र द्विज जी, नकुल गौतम, अनीता तहज़ीब जी और रजनी नैयर मल्होत्रा जी के साथ होली का यह त्योहार मनाते हैं। 


होली है भइ होली है हम मस्तों की टोली है आज नहीं टकराए कोई रंग से भर ली झोली है। आप सभी को रंगों की मस्ती से भरे हुए पर्व होली की मंगल कामनाएँ। होली का यह त्योहार आप सभी के जीवन में खुशियों की, सुखों की गुलाल बिखेरे। शांति का हरा रंग, यश का लाल रंग, आनंद का नीला रंग, अपनेपन का पीला रंग, रस का केसरिया रंग, मिलन का फिरोजी रंग, स्वाभिमान का बैंगनी रंग और प्रेम का गुलाबी रंग आपके जीवन में सदा बिखरे रहें, कभी आपको इनकी कमी महसूस नहीं हो। आप हमेशा रंगीले रतन बने रहें। होली के रसिया बने रहें। क्योंकि रंगीले रतन होने का ही मतलब है कि आप जीवन को जीवन की ही तरह जीते रहेंगे। आनंद से भरे रहेंगे। इस बार की होली में आपको ऐसा रंग लगे जो जीवन भर उतरे ही नहीं। आप सारी दुनिया को अपने रंग में रँग लें। आपकी रचनाओं, आपकी ग़ज़लों आपके शेरों की  पिचकारियाँ इस प्रकार चलें कि सुनने वाले उनमें भीगते रहें, और अंदर तक उस रंग की छुअन को महसूस करते रहें। आप होली के हर रंग के आनंद को हर समय महसूस करते रहें। रंगों से भरी, उमंगों से भरी, तरंगों से भरी हुई इस होली पर आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ। होली है भई होली है रंगों वाली होली है, होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।



होली है भई होली है हम मस्तों की टोली है, सबको रंग भरी शुभकामनाएँ और आज हम सात रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, गिरीश पंकज जी, द्विजेन्द्र द्विज जी, नकुल गौतम, अनीता तहज़ीब जी और रजनी नैयर मल्होत्रा जी के साथ होली का यह त्योहार मनाते हैं।
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी




राकेश खंडेलवाल जी

खुनक में भंग पीकर के ये तरही दी है होली में
लगा ननदी लगी कहने ये भावज से ठिठोली में
ब्लागर जो हैं कवि शायर कभी बूढ़े नहीं होते
भला किस तरह तरही में है सम्भव फिर ग़ज़ल होते
सुने ' ये रस्म हमसे तो नहीं निभने में आएगी
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

अभी कल शाम हो को तो ज़रा सा मश्क भीगी हैं
अभी उतरी है आँखों में गुलाबों की रंगीनी है
अभी तो दास्ताँ ए इश्क़ को आगाज करना है
अभी तो हुस्न के आगे नई परवाज़ भरना है
इबारत किस तरह बतलाए फिर होंठों पे आएगी
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

अभी परसों ही तो हमने है कलिज की गली देखी
अभी कल शाम ही को तो कोई खिलते कली देखी
जो मिलते हैं किताबों में अभी वे पत्र लिखने है
अभी उपवन से जूड़े के लिए कुछ फूल चुनने हैं
ये तरही आपके दर पर पलट कर ख़ाली जाएगी
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

लिखे तरही पे वो कैसे जिसे लिखना नही आता
रदीफों काफिया से है न बहरो वज़्न से नाता
हुआ परिचय न कविता से न रिश्ता गीत से जिसका
भला कैसे रहेगा फिर ग़ज़ल पर कोई बस उसका
ये होली तो बिना ग़ज़लें लिए इस बार जाएगी
कि जब हो जाएंगे बूढ़े जवानी याद आयेगी
होली का हास्य और व्यंग्य से भरा हुआ यह गीत मानों होली के आगमन की सूचना दे रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे होली तो आ ही गई है और सच कहा है कि कवि और शायर तो कभी भी बूढ़े नहीं होते हैं और वह तो बार-बार लौट कर आते हैं त्यौहार को मनाने । जरा सी मश्क़ भीगी हो और आंखों में गुलाब की रंगीनी हो तो फिर होली तो हो ही जाती है । कॉलेज की वह गली जो हमने आज ही देखी है और वहां पर कोई कली खिलते हुए देखी है  तो फिर होली का यह रंग भला आंखों में क्यों नहीं खिलेगा । किताबों में अभी तो पत्र रखे हुए देखे ही जा रहे हैं  और अभी  किसी के  लिए फूल चुनने  जाता हुआ यह  प्रेमी होली  अपने ही अंदाज में मनाना चाह रहा है । ग़ज़ल लिखने के लिए रदीफ़ काफिया से ज्यादा जरूरत होती है अंदर शायर के होने की और वह इस शायर में कूट कूट कर भरा है इसीलिए इतना सुंदर गीत जन्म ले चुका है । वाह वाह वाह, बहुत ही सुंदर गीत कहा है होली की मस्ती में भरा हुआ गीत



सौरभ पाण्डेय जी

अभी इग्नोर कर दो, पर, ज़ुबानी याद आयेगी
अकेले में तुम्हें मेरी कहानी याद आयेगी

चढ़ा फागुन, खिली कलियाँ, नज़ारों का गुलाबीपन
कभी तो यार को ये बाग़वानी याद आयेगी

मसें फूटी अभी हैं, शोखियाँ, ज़ुल्फ़ें, निखरता रंग
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

मुबाइल नेट दफ़्तर के परे भी है कोई दुनिया
ठहर कर सोचिए, वो ज़िंदग़ानी याद आयेगी

कभी पगडंडियों से राजपथ के प्रश्न मत पूछो
सियासत की उसे हर बदग़ुमानी याद आयेगी

मुकाबिल हो अगर दुश्मन निहायत काँइयाँ फिर तो
बरत तुर्की-ब-तुर्की ताकि नानी याद आयेगी

बहुत संतोष औ’ आराम से है ज़िन्दग़ी कच की
मगर कैसे कहे, कब देवयानी याद आयेगी ?

सदा रौशन रहे पापा.. चिराग़ों की तरह ’सौरभ’
मगर माँ से सुनो तो धूपदानी याद आयेगी
 
अभी इग्नोर कर दो पर जुबानी याद आएगी अंग्रेजी के शब्द का बहुत ही खूबसूरती के साथ उपयोग किया गया है और फिर अकेले में हमारी कहानी का याद आना बहुत सुंदर बन पड़ा है। चढ़ता हुआ फागुन खिलती हुई कलियां और नजारों का गुलाबीपन यह बागवानी सचमुच ऐसी है जो रहती उम्र तक हर किसी को याद रहने वाली है बहुत ही अच्छा शेर वाह। और अगला ही शेर किसी की टूटती हुई मसें और जुल्फों को देखकर आती याद अपनी जवानी के नाम जवानी जो बीत गई है और याद आ रही है। मोबाइल और नेट के परे एक दुनिया है जो सचमुच की हमारी जिंदगी है जिसको हम भूल चुके हैं और उसको याद दिलाता हुआ यह शेर बहुत खूबसूरत बन पड़ा है। और राजपथ की पगडंडियों से प्रश्न नहीं पूछने में जो व्यंग शायर कस रहा है वह हमारे समय पर तीखा कटाक्ष है। और जब मुकाबिल दुश्मन काया हो तो उसको नानी याद दिलाने की बात हमारे समय का एक कड़वा सच है लेकिन हम सबको ऐसा बनना पड़ता है। बहुत खूबसूरत। और निशब्द करता हुआ मकते का शेर जिसमें दीपक और धूप दानी के साथ मां और पिता का बहुत श्रद्धा के साथ जिक्र है। इस शेर पर शायद कोई कमेंट नहीं किया जा सकता। ये आत्मा का शेर है इसे रूह से महसूस करना पड़ेगा बहुत खूबसूरत शेर। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।




द्विजेंद्र द्विज

घड़ी जब मैं हुआ था पानी-पानी, याद आएगी
मुझे अक्सर वो इक होली पुरानी याद आएगी

मेरे दिल से तेरी वो छेड़खानी याद आएगी
जो मुझसे की थी तूने बेइमानी याद आएगी


तेरी तहज़ीब सारी ख़ानदानी याद आएगी
हुई जो साथ मेरे बदज़ुबानी याद आएगी

बुला कर घर मुझे तूने तमाशा जो बनाया था
मुहल्ले भर को मेरी वो कहानी याद आएगी


तेरी मम्मी ने वो मुझ पर जो दे मारा था गमला ही
मुझे उसकी अदा-ए-गुलफ़िशानी* याद आएगी
(फूल बरसाने की अदा)

“लफ़ंगा तू , हरामी तू, फ़रेबी तू , मवाली तू”
तेरे पापा की मुझको प्रेम- बानी याद आएगी


जकड़ कर काँख में गर्दन, मला मुँह पर मेरे गोबर
तेरे भाई की मुझको पहलवानी याद आएगी

वो धक्कमपेल थी कैसी बताऊँ किस तरह यारो
फटी कैसे मेरी थी शेरवानी याद आएगी


तमंचे पर किया मैंने वहाँ जो देर तक डिस्को
तेरे घर की मुझे वो मेज़बानी याद आएगी

चबा कर वो मेरी पिंडली रफ़ूचक्कर हुई जानम !
तेरे बंगले में थी कुतिया जो कानी याद आएगी


फिर उसके बाद जब आने लगा था घर को मैं अपने
तेरे जीजा ने की जो छेड़खानी याद आएगी

तेरा बनकर यूँ बुत ऐसे तमाशा देखना मेरा
मेरी गत पर तुम्हारी बेज़बानी याद आएगी


कभी होली पे यूँ महबूब के घर मत चले जाना
घसीटेंगे जो कीचड़ में तो नानी याद आएगी
ग़ज़ल हुस्ने मतला तीसरे वाले से शुरू होती है जब हमें उनकी तहजीब सारी खानदानी एक बदजुबानी से ही याद आ जाती है बहुत ही खूबसूरत और मजा देने वाला शेर है। और उसके बाद धमाके की तरह आता है शेर जिसमें घर बुलाकर तमाशा बनाने की वह कहानी जो सारे मोहल्ले को पता है। और अम्मा द्वारा गमला फेंक फूल बरसाने का जो दृश्य है वह तो अकेले में अगर दिमाग में आ जाए तो हंस हंस के लोटपोट होने के अलावा और क्या किया जा सकता है । कमाल का दृश्य बनाया है। और फिर लगा हुआ शेर जिसमें पिताजी द्वारा की गई कमाल की तारीफें भांति-भांति की उपमाओं द्वारा संकलित की गई हैं हा हा हा क्या बात है। मां और पिता के बाद भाई द्वारा कांख में दबा कर गोबर मलना और पहलवानी दिखाना तत्पश्चात शेरवानी का शहीद हो जाना सारी शेर एक के बाद एक मानो आशिक के बारे में तफ़सील से जानकारी प्रदान कर रहे हैं बहुत खूब बहुत खूब। तमंचे पर किए गए डिस्को का इतना बेहतरीन प्रयोग इससे पूर्व किसी शहर में नहीं किया गया होगा यहां आकर शायर ने कमाल ही कर दिया है आनंद का मंगलमय शेर है यह। फिर आशिक की खबर लेता जीजा और रही सही कसर निकालती मोहल्ले की कानी कुतिया, मतलब हर एक ने मिलकर उसके बैंड बजाए। इसीलिए वह कह उठता है कि मत जाना उस गली में वरना नानी याद आ जाएगी। होली की अति सुंदर हजल, हंस-हंसकर पेट दुखने वाली। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह




गिरीश पंकज जी

वो होली में दिखेगी फिर तो नानी याद आएगी
मोहल्ले की वो मोटी और सयानी याद आएगी

गज़ब त्योहार होली का हमें रंगीन कर देता
हमें हर बार बचपन की कहानी याद आएगी


मज़े से रंग जो खेले वही बच्चा लुभाता है
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

मुझे होली में इक लड़की ने लोटा फेंक मारा था
मेरे माथे पे है उसकी निशानी याद आएगी


बड़ी मस्ती से खेलो रंग सबके संग में यारो
तुम्हें हर पल यही मस्ती सुहानी याद आएगी

अभी तुम जिंदगी में रंग जितने हो सको भर लो
बुढ़ापे में तुम्हें यह जिंदगानी याद आएगी


तुम्हारे दिल की जो रानी उसे होली में रंग देना
हमेशा फिर वही हरकत पुरानी याद आएगी

बड़ा रंगीन है त्योहार इसमें भंग मस्ती की
जरा इसका मज़ा लो नौजवानी याद आएगी


ये होली ढाई आखर प्यार के पंकज सिखाती है
हमें ताउम्र कबिरा की ये बानी याद आएगी
न जाने वह कौन है जिसको होली में देख कर शायर को नानी याद आ रही है हालांकि मिसरा सानी में बता दिया गया है कि वह किस शारीरिक संरचना की बात कर रहा है। यह बिल्कुल सच है कि होली का त्योहार हमें बार-बार बचपन की कहानी की याद दिला देता है। और जो बच्चा मजे से रंग खेलता हुआ दिखता है उसे देखते हैं तो हमें अपनी जवानी अपना बचपन अपना लड़कपन याद आ जाता है, वह जो बीत चुका है। बहुत सुंदर दोनों शेर। शायर को भी वह निशानी याद आती है जो बचपन में किसी के द्वारा होली पर लोटा फेंक कर मारने से बनी है। यह निशानियां ही जिंदगी का सरमाया होती हैं और तो क्या होता है हमारे जीवन में। आगे के तीनों शेर मानो होली का पूरा फ़लसफ़ा लिए हैं सच बात यही है कि आज मस्ती से रंगो में डूब जाइए क्योंकि आज जिंदगी में जितने रंग भर सकेंगे वही रंग बुढ़ापे में हमें इस जिंदगानी की याद दिलाएंगे। और जो कोई आपका है उसे होली में रंग दो क्योंकि फिर हमेशा वही हरकत पुरानी याद आती रहती है। और अंत में होली के बहाने दिया जाने वाला वही प्रेम का संदेश जो कबीर ने दिया था कि ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय उसी के साथ समाप्त होती है यह सुंदर ग़ज़ल। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह


नकुल गौतम

जुड़ी हर इक हमें उससे कहानी याद आएगी
जो बक्से में रखी कोई निशानी याद आयेगी

हमारा दम घुटेगा जब कभी शहरों की सड़कों पर
हवा हमको पहाड़ों की सुहानी याद आएगी


हम अब के गाँव लौटेंगे तो उन बचपन की गलियों में
किसी नुक्कड़ पे खोयी शादमानी याद आएगी

गली के मोड़ पर जिस घर की घण्टी हम बजाते थे
वहाँ रहती थी जो बूढ़ी सी नानी, याद आएगी


कुछ आलू काट कर खेतों में हमने गाड़ कर की थी
महीनों तक चली वो बाग़बानी याद आएगी

वो लड़की वक़्त से लड़कर अब औरत बन गयी होगी
लड़कपन की वो पहली छेड़खानी, याद आएगी


उसी छत से पतंगें इश्क़ की हमने उड़ाई थीं
अजी बस कीजिये, फिर वो कहानी याद आएगी

हमारे गाँव के रस्ते पर अब पुल बन गया लेकिन
नदी, जिस में कभी बहता था पानी, याद आएगी


बुढ़ापे के लिये अमरुद का इक पेड़ रक्खा है
"इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी"

गुज़रना उस गली से गर हुआ फाल्गुन महीने में
हमें पिचकारियों की मेज़बानी याद आएगी
सचमुच बक्से में रखी हुई उस निशानी को जब भी देखते हैं तो उससे जुड़ी हुई हर एक कहानी याद आ जाती है। यह नॉस्टेल्जिया का शेर है और हम सबके अंदर जो अतीत से जुड़े रहने का भाव है उसे गहरा कर रहा है। और गांव की ओर लौटने की याद दिलाते वह दोनों शेर जिसमें शहर की सड़कों पर दम घुट रहा है और गांव में बचपन की गलियों में किसी नुक्कड़ पर कोई शादमानी आज याद आ रही है। यह बचपन और गांव ही है जो हमारे अवचेतन में हमेशा एक मीठी याद बनकर बसा रहता है। और गली के मोड़ पर वह बूढ़ी नानी जिसके घर की घंटी बजा कर हम भागते थे वह किसके बचपन में नहीं हुई है हम सबके बचपन में यह कहानी घटित हुई है। बहुत सुंदर। और जिस छत से इश्क की पतंगे लड़ाई गई उस छत का जिक्र भी आना ऐसा लगता है मानो किसी ने जख्मों को खोल दिया है और हम कह उठते हैं मत बात करिए हमें पुरानी यादें आ जाएंगी। और उतनी ही खूबसूरती से बांधा गया है गिरह का शेर जिसमें बचा कर रखे गए एक अमरुद के पेड़ को इसलिए रखा है क्योंकि उसे देखकर अपनी जवानी शायद याद आ जाए। बहुत खूबसूरत सुंदर । और आखिर में उस गली से जब भी गुजरना होगा फागुन के महीने में तो याद आएगी वह मेजबानी जो पिचकारियों ने की थी। यादों में बसी हुई एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल जिसका गज़ल जिसका एक एक शेर यादों के गलियारे में हमें उंगली थाम कर टहलाता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।



अनिता तहज़ीब

कन्हैया तुमको गोकुल की कहानी याद आएगी
मिलोगे देवकी से,नंदरानी याद आएगी।

तुम्हें उल्फ़त की जब भी तर्जुमानी याद आएगी
जड़ों पर नाज़ होगा बागबानी याद आएगी


सुनाने को कहेंगे बच्चे जब क़िस्से फ़रिश्तों के
शहीदों की हमें तब ज़िंदगानी याद आएगी

मेरे कंधे सर अपना चाँद की परछाई रख देगी
तुम्हारे साथ गुज़री शब सुहानी याद आएगी


कली डाली पे मुरझाई मिलेगी सुब्ह उठने पर
उदास आँखों की भूली सी कहानी याद आएगी

यूं ही इक शाम थामे हाथ सूरज ढलता देखा था
नहीं सोचा था रंगत जाफरानी याद आएगी


दुशाला सात रंगों का बना बूँदों से मिल किरणें
हमें तो सीनरी वो आसमानी याद आएगी

महकती थी तुम्हारी बातें सुन के पास खिड़की के
नहाती चाँदनी से रातरानी याद आएगी


परिन्दे घर बनाने को लगे करने जमा तिनके
इन्हें देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
मतले का शेर कृष्ण और देवकी के साथ नंदरानी की याद दिलाता हुआ एक ऐसा शेर है जो बहुत खूबसूरती के साथ अपनी बात कह जाता है और मन में कहीं स्पर्श कर जाता है। अगला शेर जिसमें उल्फत की तर्जुमानी याद आने पर जड़ों पर नाज होना और बागवानी के याद आने की बात कही गई है बहुत अच्छे से कहा गया शेर है। अगले ही शेर में बच्चों के द्वारा फरिश्तों की कहानी सुनाई जाने पर अमर शहीदों की कहानी याद आ जाना, बहुत खूबसूरत बहुत सुंदर। उसके बाद के तीन शेर जो प्रेम के सुंदर रंगों से रंगे गए शेर हैं, कंधे पर चांद की परछाई का सर रख देना और किसी के साथ गुजारी हुई रात सुहानी याद आ जाना ।सुबह उठने पर डाली पर मुरझाई हुई कली मिलने पर उदास आंखों की भूली हुई कहानी याद आ जाना। किसी के साथ हाथों में हाथ थामे सूरज को ढलता हुआ देखा था कभी और तब नहीं सोचा था कि बाद में जब हाथों से हाथ छूट जाएगा तो बस यह जाफरानी रंग यादों में बसा रह जाएगा। सात रंगों का बना हुआ यह दुशाला और आसमानी सीनरी का याद आना, अंग्रेजी के शब्द का बहुत खूबसूरती के साथ उपयोग किया गया है। किसी की बातें सुनकर खिड़की के पास चांदनी से नहाई हुई रातरानी का जगमगा जाना, नजाकत से कहा गया खूबसूरत शेर। अंत में तिनके  जमा करते हुए परिंदों को देखकर अपनी जवानी का याद आ जाना गजब का दृश्य रचा गया है इस शेर में बहुत खूबसूरत। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।




रजनी नैयर मल्होत्रा

इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
वही बीती हुई फिर से कहानी याद आएगी

तेरे बिन फीकी होगी मेरी होली और दीवाली
जो तेरे संग बीती ज़िंदगानी याद आएगी


तेरे जाने से आँगन ये मेरा सूना रहेगा अब
महकती थी कभी जो रातरानी याद आएगी

खिलेंगे मन में फिर यादों के गुंचे सुन मेरी बिटिया
मुझे जब तोतली तेरी ज़ुबानी याद आएगी


नहीं अश्कों को तब ये रोक पाएँगी मेरी पलकें
मुझे बीते पलों की जब सुहानी याद आएगी
किसी को देख कर अपनी जवानी का याद आ जाना और जवानी के याद आते हैं किसी बीती हुई कहानी का याद आ जाना यही तो जीवन होता है। हम उम्र भर कुछ बीती हुई कहानियों को याद करके ही तो बिताते आते हैं। किसी एक के नहीं होने से हमारा सारा संसार फीका हो जाता है ना होली और ना दिवाली हमें वह आनंद देती है और हमेशा याद आती है वही जिंदगानी जो किसी खास के साथ देती थी। यह दोनों शेर शायद घर से विदा ले चुकी बेटी के लिए कहे गए हैं जिसमें मां कह रही है कि तेरे जाने से आंगन यह मेरा सूना रहेगा क्योंकि तू यहां रात रानी बनकर महकती थी चहकती थी और मन में यादों के गुंचे खिला उठेंगे जब बेटी की तोतली जुबान के बारे में मां अकेले में बैठकर याद करेगी और जब याद आएगी तो पलकें भला अश्कों को कैसे रोक पायेंगी, वह याद सुहानी दिल में पीड़ा बनकर उभरेगी और आंखों से आंसू बनकर बरसेगी। बहुत सुंदर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।



तो मित्रो ये आज के सात रचनाकार जिन्होंने आपको रंगों में सराबोर कर दिया है। होली का रंग इतना बिखर गया है कि यह रंग अब सिर चढ़ कर बोल रहा है। और हाँ अभी भी बहुत से लोग ऐसी सूचना प्राप्त हुई है कि होली की ग़ज़ल कहने में व्यस्त हैं। उनका भी बासी होली में स्वागत किया जाएगा। हमारी होली का रंग इसी प्रकार बरसता रहे। इसी प्रकार हम इस परिवार के साथ होली मनाते रहें। हम सब साथ-साथ रहें। हम सब में प्रेम और आत्मीयता के रंग इसी प्रकार बने रहें। बस यही प्रार्थना है। होली के बहाने हमारे इस पुराने चौपाल पर कुछ चहल-पहल हो जाती है। लोग आते हैं अपनी सुनाते हैं, दूसरों की सुनते हैं और उत्सव का रंग जम जाता है। आइये प्रार्थना करें, दुआ करें कि यह आवागमन बना रहे। हम यूँ ही हर त्योहार पर एकत्र होकर आनंद मनाते रहें। होली हो, दीवाली हो, ईद हो कोई भी त्योहार हो, हम सब आत्मीयता के साथ मिलजुल कर मनाते रहें। आनंद सब के साथ ही आता है। आनंद एक दूसरे के साथ ही आता है। आनंद वास्तव में साथ होने का ही दूसरा नाम है। तो आइये आनंद उठाते हैं। आज के इन सात रचनाकारों ने हमारे आनंद को बढ़ाने में जो अपनी तरफ़ से योगदान दिया है उसके लिए इनको दाद देते हैं, वाह वाह करते हैं। होली शुभ हो मंगलमय हो।












गुरुवार, 1 मार्च 2018

आज होलिका दहन की फाल्गुनी पूर्णिमा है आज से होली का पर्व प्रारंभ हो जाता है, आइये आज हम नुसरत मेहदी जी, द्विजेंद्र द्विज जी, निर्मल सिद्धू जी, धर्मेंद्र कुमार सिंह, राजीव भरोल और दिगंबर नासवा के साथ तरही के क्रम को आगे बढ़ाते हैं।

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होली का त्योहार भी आ ही गया। और इसके साथ ही हर तरफ़ रंग ही रंग बिखरते दिखाई दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानों आसमान के इंद्रधनुष ने कुछ समय के लिए हमारे देश की धरती पर उतर कर विश्राम करने का निर्णय ले लिया हो। हर तरफ़ रंगों का उल्लास बिखरता दिखाई दे रहा है। जैसे प्रक़ृति के सारे रंगों को चुरा कर हम एक दूसरे को आज हर रंग में रँगने को तैयार हो गए हों। आज रात होलिका दहन होगा और कल से रंग का पर्व प्रारंभ हो जाएगा। प्रारंभ शब्द इसलिए क्योंकि हमारे यहाँ मालवा में धुलेंडी को और दूज को रंग होता है। फिर रंग पंचमी को महा रंग होता है। इस बीच होली के फाग गायन, होली मिलन आदि के कार्यक्रम तो बहुत दिनों तक चलते रहते हैं। तो हम भी इस पाँच दिन के रंग पर्व में आज से सराबोर होने जा रहे हैं। हमारे लिए भी अब सब कुछ भूल कर बस उल्लास और उमंग में खो जाने का समय आ चुका है। हो लीजिए होली के रसिया। होली है।

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इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

मित्रो आज होलिका दहन की फाल्गुनी पूर्णिमा है आज से होली का पर्व प्रारंभ हो जाता है, आइये आज हम नुसरत मेहदी जी, द्विजेंद्र द्विज जी,  निर्मल सिद्धू जी, धर्मेंद्र कुमार सिंह, राजीव भरोल और दिगंबर नासवा के साथ तरही के क्रम को आगे बढ़ाते हैं।

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सबसे पहले तो हम सबकी ओर से आदरणीया नुसरत मेहदी जी को जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ, और गौतम राजरिशी के शब्दों में “हमारी अपनी परवीन शाकिर” को यशस्वी जीवन की दीर्घ मंगल कामनाएँ। वे इसी प्रकार खूब सृजन करती रहें, अपनी ग़ज़लों से, अपने शेरों से, अपने गीतों से हम सबको रंग से सराबोर करती रहें। उनके शेरों में जो ताज़गी और जो अपने पर अपने होने पर एक प्रकार का स्वा​भिमान होता है, वह देर तक हमें उनकी कहन के रंग में ​भिगोए रखता है। और सबसे महत्तवपूर्ण बात यह कि बावजूद इसके कि वे उर्दू अकादमी की सचिव, नेशनल बुक ट्रस्ट की सदस्य और और बहुत पदों पर हैं, लेकिन वे तरही मुशायरे के लिए समय निकाल कर हमेशा अपनी ग़ज़ल समय पर भेज देती हैं। यही वो बात है जो किसी भी रचनाकार को विशिष्ट बना देती है। ऊँचाइयों की ओर बढ़ते समय सहज और सरल बने रहना ही सबसे ख़ास बात होती है। और नुसरत मेहदी जी में वो खास बात इतनी है कि यह सरलता ही उनके शेरों को अपनेपन की महक से भर देती है। वे इसी प्रकार अपनी ग़ज़लों से हमारे समय को रौशन करती रहें, उनके होने से हमारे जीवन में कुछ ख़ूबसूरत ग़ज़लें होती हैं। हम सबकी ओर से उनको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

नुसरत मेहदी जी

कहीं जाओ बसंती रुत सुहानी याद आएगी
नए मौसम में इक ख़ुशबू पुरानी याद आएगी

वो आंगन में महकती रातरानी याद आएगी
तुम्हे गांव की अपनी ज़िन्दगानी याद आएगी

वो हुलियारों की टोली और वो हुड़दंग घर घर में
शरारत से किसी की छेड़खानी याद आएगी

वो होली के बहाने लम्स के जादू जगा देना
दिलों की बात रंगों की ज़बानी याद आएगी

तुम्हारे नाम से जिसने बसा रक्खी थी इक दुनिया
वो अल्हड़ उम्र की लड़की दिवानी याद आएगी

घने पीपल तले तन्हाई में क़िस्से मोहब्बत के
वो पनघट पर जो पनपी थी कहानी याद आएगी

वो चेहरा ज़ाफ़रानी वस्ल के रंगी तसव्वुर से
उड़ी जाती थी इक चूनर जो धानी याद आएगी

वो उजले पैरहन पर रंग होली के उभर आना
वो पल में ख़्वाहिशों की खुशबयानी, याद आएगी

नई एक दास्ताँ जब भी लिखोगे तुम ज़माने में
तो इक आधी अधूरी सी कहानी याद आएगी

नए मौसम में आने वाली उस पुरानी ख़ुशबू का ज़िक्र जैसे ग़ज़ल के प्रारंभ होते ही हमें यादों के गलियारे में ले जा रहा है। ख़ूबसूरत मतला। और उसके बाद उतना ही सुंदर हुस्ने मतला गाँव जिसे हम छोड़ आए हैं उस गाँव के घर में महकती रातरानी की बात आते ही साँसों में सुगंध समा गई जैसे। होली के पूरे रंग में रंगी हुई है यह ग़ज़ल। ऐसा लगता है जैसे रंगों से ही लिखी हुई हो। शरारत से किसी की छेड़खानी के याद आने में जो मासूमियत है, वह बार बार शेर को सुनने पर मजबूर कर रही है। और होली के बहाने लम्स के जादू……. उफ़्फ़….. सच में यही तो होली थी। ग़ज़ब का शेर। और अगले दोनों शेर जो प्रेम के रस में सराबोर हैं तुम्हारे नाम से जिसे बसा रक्खी थी में अल्हड़ उम्र की लड़की….. ये तो हम सबकी कहानी है….. और घने पीपल वाला शेर एकदम कलेजे में उतर जा रहा है। हम सबके जीवन में यह घना पीपल ज़रूर आया है। ज़ाफ़रानी वस्ल के रंगी तसव्वुर….. वाह उस्तादाना अंदाज़ और किसे कहेंगे ? ख़्वाहिशों की ख़ुशबयानी का उम्र के किसी मोड़ पर याद आना।  नई एक दास्ताँ जब भी लिखोगे में आधी अधूरी सी कहानी….. होली में रोना मना होता है मगर यह सुन कर पलकें खुद ब खुद भीग जाएँ तो कोई क्या करे ? बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल, शानदार, वाह वाह वाह।

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द्विजेन्द्र द्विज

किसी होली की वो पहली निशानी याद आएगी
घड़ी, जिसमें हुई थी आग पानी, याद आएगी

सुलगते मौसमों में रुत सुहानी याद आएगी
नई दुनिया में वो दुनिया पुरानी याद आएगी

हवा का जोश, मौजों की रवानी याद आएगी
बुढ़ापे में जवानी की कहानी याद आएगी

छुपी है पंखुड़ी इक आज जो इस दिल के पन्नों में
इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी

बहुत बेताब करती थी ख़याले यार की ख़ुशबू
जुनूँ के मौसमों की रातरानी याद आएगी

जो सिर चढ़ कर कभी बोला किसी के प्यार का जादू
तो पतझड़ में भी ख़ुश्बू ज़ाफ़रानी याद आएगी

करिश्मासाज़ होती है बड़ी दिल में बसी सूरत
हर इक सूरत से सूरत आसमानी याद आएगी

जिसे लश्कर भी ख़ुशियों के न छू पाए कभी आकर
ग़मों की उम्र भर वो राजधानी याद आएगी

मुझे रह-रह अकेलेपन के सन्नाटे के जंगल में
तुम्हारे साथ बीती ज़िन्दगानी याद आएगी

बदलती है दुपट्टे ज़िन्दगी ! कितने ही तू लेकिन
हमें अक्सर तेरी चुनरी वो धानी याद आएगी

ख़ुदा ना ख़्वास्ता हालात जब तेरी ज़ुबाँ सिल दें
बुज़ुर्गों की तुम्हें ’द्विज’ बेज़ुबानी याद आएगी

आज तो लगता है कि उस्तादों का ही दिन है। भाई द्विज तो वैसे भी उस्ताद शायर ही हैं। मतला और उसके बाद के दोनों हुस्ने मतला एक दम एक दूसरे से बढ़कर हैं। मतले में होली की वो पहली निशानी जिसमें आग का पानी होना….. उफ़्फ़ क्या उस्तादाना सलीक़े से बात कह दी है। ग़ज़ब। और नाज़ुक सा शेर जिसमे दिल के पन्नों में छिपी हुई फूल की पंखुड़ी का ज़िक्र है… क्या नफ़ासत है, याद का इससे सुंदर चित्रण और क्या होगा भला ? जूनूँ के मौसमों की रातरानी…… ऐसा लगता है कि आज शेरों से ही मार डालने का इरादा लेकर निकले हैं, ग़ज़्ज़्ज़्ज़ब…. क्या शब्दों की कारीगरी है भई। और अगले ही शेर में पतझड़ में महकती जाफ़रानी ख़ुशबू साँसों में गहरे उतर गई। प्रेम के कितने रंग भरे हैं भाई द्विज ने इस ग़ज़ल में, दिल में बसी सूरत को सूरत आसमानी तक लेकर जाना बस शायर के तसव्वुर का ही कमाल होता है।  और अगले तीनों शेरों में विरह के रंग भरे हुए हैं। उदासी के भूरे रंग से लिखे हुए हैं ये शेर। ग़मों की राजधानी हो या अकेलेपन के सन्नाटे के जंगल हों हमें हमेशा एक चुनरी धानी याद आती ही है। और मकते का शेर तो जैसे सबकी ज़ुबाँ पर ताला लगाने वाला है। क्या बड़ी बात एक शेर में कह दी है भाई जियो… बहुत ही सुंदर ग़ज़ल… ग़ज़ब वाह वाह वाह

nirmal sidhu

निर्मल सिद्धू जी

गुलों की इक हसीं दिलकश कहानी याद आयेगी
मुहब्बत की मिली थी जो, निशानी याद आयेगी,

ये होली के नज़ारे हैं, ये रंगो की बहारें हैं
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आयेगी
,

उड़ा करते थे हम तो इश्क की रंगी फिज़ाओं मे
वो मस्ती का समां वो रुत सुहानी याद आयेगी,

कभी जब रंग बरसेगा युं माज़ी के झरोखों से
सकूं दिल को मिलेगा जब पुरानी याद आयेगी
,

जो रहती थी सदा गुमसुम मेरे ही प्यार मे हरदम
जलेगी दिल मे जब होली, दिवानी याद आयेगी ।

नशे मे डूबे ' निर्मल ' को हसीं चेहरा दिखेगा जब
उसे अपनी वो गुजरी ज़िन्दगानी याद आयेगी ।।

गुलों की हसीं दिलकश कहानी में बसा हुआ मतला जो मुहब्बत की पहली निशानी के मिसरा सानी तक पहुँच रहा है, बहुत प्रेमिल अंदाज़ में अपनी बात कह रहा है। प्रेम सचमुच काव्य का, जीवन का, हम सबका स्थाई भाव होना ही चाहिए। प्रेम को यदि स्थाई भाव बना लिया जाए तो जीवन आसान हो जाए और इश्क़ की रंगी फिज़ाओं को उस मस्ती के समाँ को याद न करना पड़े जिसमें हम उड़ा करते थे। बहुत सुंदर शेर। और माज़ी के झरोखे से बरसते हुए रंग से दिल का सुकूं पा जाना यही तो जीवन है और यही तो प्रेम है। कबीर भी इस ही वर्षा की बात करते हैं। इस कान्फिडेंस पर कौन न क़ुर्बान जाए कि वो मेरे ही प्यार में गुमसुम रहती थी, यह बिल्कुल पक्का है। हाँ लेकिन यह भी सच है कि जब भी दिल में होली जलती है तब वही एक चेहरा सबसे पहले याद आ जाता है। होली असल में हमारे दिल में बरसों बरस से सुलग रही है और बरसों बरस तक सुलगती रहेगी, यह बुझ जाएगी तो हमारा जीवन भी समाप्त हो जाएगा। और मकते तक आते-आते हर शायर कान्फिडेंस से कन्फ़ेशन की मुद्रा में आ ही जाता है। नशे में डूबे निर्मल को हसीं चेहरा दिखते ही पुराना समय याद आ रहा है। किसको नहीं याद आता है वह बीता समय, वह बीती ज़िंदगानी। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

RAJIV BHAROL

राजीव भरोल

पुराने दोस्तों की मेज़बानी याद आयेगी
तुम्हें महलों में भी बस्ती पुरानी याद आयेगी

वो फुर्सत की दुपहरी और वो फरमाइशी नगमे
तुम्हें परदेस में आकाशवाणी याद आएगी

समंदर का सुकूं बेचैन कर देगा तुम्हें जिस दिन
नदी की शोख लहरों की रवानी याद आएगी

फकीरी सल्त्नत है हम फकीरों की तुम्हें इक दिन
हमारी सल्तनत की राजधानी याद आएगी

कभी जब आसमानों की हदों का ज़िक्र होगा तो
थके हारे परिंदों की कहानी याद आएगी

गले लग जाएगा आकर वो इक दिन देख लेना तुम
उसे खुद दी हुई अपनी निशानी याद आएगी

बहारे गुल हसीं चेहरे गुलो गुलफाम क्या देखें
इन्हें देखेंगे तो अपनी जवानी याद आयेगी

मतले के साथ ही ग़ज़ल नॉस्टेल्जिया लेकर आती है। एक नए मेज़बानी पुराने दोस्तों की…. वाह वाह क्या बात कही है। कभी कभी किसी मिसरे में एक दो शब्द ही इस प्रकार संगठित होते हैं कि वो मुकम्मल ग़ज़ल ही हो जाते हैं। अगला शेर पढ़कर ऐसा लग रहा है कि बस बुक्का फाड़ के रो ही दिया जाए। यादों का इससे सुंदर चित्रण और क्या हो सकता है, फुर्सत की दुपहरी, फरमाइशी नगमे और आकाशवाणी…. बस कर पगले रुलाएगा क्या? और फिर अगला ही शेर दो तुलनाएँ लिए खड़ा है, नदी की शोखी और समंदर का सुकून…. जैसे हम सबके जीवन का फ़लसफ़ा लिख दिया गया हो दो मिसरों में। ग़ज़ब। और अगला शेर उस्तादाना अंदाज़ में कहा गया है। जिसमें अपने दिल को अपनी सल्तनत की राजधानी बताते हुए चैलेंज है कि तुम चाहे जहाँ रहो तुमको इसकी याद आएगी ही आएगी। आसमानों की हदों का ज़िक्र और परिंदों की कहानी, यह एक बार फिर पलकों की कोरों को नम करने वाला गीत है। और अगला शेर दुष्यंत और शकुंतला के बीच की कहानी को ही मानों अभिव्यकत कर रहा है। लेकिन समय का पहिया अक्सर यही करता है कि याद आते आते बहुत देर हो जाती है। निशानी पुरानी हो चुकी होती है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है, वाह वाह वाह ।

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह

रगों को ख़ून की जब-जब रवानी याद आयेगी
नसों में गुम हुई है जो कहानी याद आयेगी

किसी के हुस्न पर चढ़ जाएगा जब इश्क़ का जादू
मुझे तेरी ही रंगत ज़ाफ़रानी याद आयेगी

महक उट्ठेंगे मन के ज़ख़्म जब-जब चाँदनी छूकर
खिली जो दोपहर में रातरानी याद आयेगी

मैं भूखा और प्यासा जिस्म के सहरा में भटकूँगा
तो तेरे लब की नाज़ुक मेज़बानी याद आयेगी

बड़े होकर ये दोनों पेड़ देंगे वायु, फल, छाया
तो दुनिया को हमारी बाग़बानी याद आयेगी

निरंतर सींचते रहिए है नाज़ुक प्यार का पौधा
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आयेगी

धमेंद्र के तेवर हमेशा अलग ही रहते हैं। कुछ तल्ख़ और सवाल पैदा करते हुए शेर कहना इनकी फितरत है। मतला ही ऐसे ज़बरदस्त अंदाज़ के साथ शुरू हो रहा है कि बस, रगों को ख़ून की रवानी याद आना और उस बहाने से गुम हो चुकी कहानी…. ग़ज़ब है भाई… ग़ज़ब। और उसके बाद एकदम प्रेम का शेर जिसमें किसी दूसरे पर किसी तीसरे का रंग, जादू चढ़ जाने पर हमें किसी अपने की रंगत ज़ाफ़रानी याद आ रही है। मुझे लगता है कि प्रेम का रंग इस बार के मुशायरे के बाद गुलाबी से बदल कर ज़ाफ़रानी कर दिया जाना चाहिए। और….. दोपहर में रातरानी का खिलना… ग़ज़ब का सलीक़ा है भाई कहने का…. क्या ज़रूरी है कि हर बात को खुल कर कहा जाए, ग़ज़ल का सलीक़ा और तरीक़ा क्या होता है यह इस शेर से पता चल रहा है। और फिर एक बार उस्तादाना अंदाज़ में कहन आई है तेरे लब की नाज़ुक मेज़बानी….. इन शब्दों के गूँथने का प्रभाव केवल कोई रसिक प्राणी ही बता सकता है। और अगला शेर दाम्पत्य जीवन, गृहस्थाश्रम की सजीली बानगी प्रस्तुत कर रहा है। हम सबकी बाग़बानी हमारे बाद याद आती है। अंत में गिरह का शेर प्यार के पौधे के सींचने के साथ बहुत ख़ूबी से बना है। जवानी उसी को देखकर याद आएगी। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है। वाह वाह वाह।

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दिगंबर नासवा

झुकी पलकें चुनरिया आसमानी याद आएगी
छुपा कर दिल में रक्खी हर कहानी याद आएगी

हमारे प्रेम के सच पर जिसे विश्वास था पूरा
गुज़रते वक़्त की परियों सी नानी याद आएगी

न गर्मी की ही है पदचाप ना सर्दी की हलचल है
हवा धूली ही होली की निशानी याद आएगी

ये ढोंगी मीडिया पानी की बर्बादी पे रोएगा
इन्हें ये बात होली पर उठानी याद आएगी

गुलालों से के कीचड़ से इसे होली से मत रोको
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

भले मामा कहेंगे उसके बच्चे देख के मुझको
वो मिल जाएगी तो होली पुरानी याद आएगी

चढ़ा के भांग देसी रम विलेती सोमरस हाला
गटर के गंद में ही रुत सुहानी याद आएगी

और अंत में एक शेर जो पूरी तरह से होली के रंग में रँगी हुई है। मतले में प्रेम की वो आसमानी चुनरिया लहरा रही है, जिसके लहराने से मन के अंदर हर तरफ़ आसमानी रंग फैल जाता है। जब वो लहराती है तो छिपा कर रखी हुई हर कहानी का याद आना तो बनता है। और अगले शेर में प्रेम के सच पर विश्वास, वाह तीन शब्दों को आपस में गूँथ कर क्या कमाल का टुकड़ा बनाया है, हमारे समय के तीन बड़े शब्द हैं ये प्रेम, सच और विश्वास, ग़ज़ब जोड़ा है तीनों को। शेर की हाइट है ये कि नानी परियों सी हैं, हम सबकी नानियाँ परियों सी ही होती हैँ। और अगला शेर मानों मेरे दिल की बात कह रहा है। सच में मुझे भी बहुत क्रोध आता है जब ऐन होली के समय ही मीडिया को पानी की बर्बादी की बात सूझती है। जिनकी कारें हज़ारों लीटर पानी से धुलती हैं, वो पानी की बर्बादी की बात करते हैं। और बचपन की मासूमियत को होली मनाने से नहीं रोकने की बात करने वाला शेर बहुत अच्छे से गिरह का शेर बन गया है। और अगले ही शेर में बहुत ही मासूमियत के साथ स्वीकार कर लेना कि अब उसके बच्चे मामा कह कर बुलाते हैं। इस मासूमियत पर तो सब कुछ क़ुर्बान। आय हाय टाइप का शेर बन गया है यह। और अंत के शेर की रुत सुहानी। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है, वाह वाह वाह

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तो मित्रो आज तो छह रचनाकारों ने मिल कर होली का ज़बरदस्त रंग जमा दिया है। यही तो वह रंग है जिसके लिए बार-बार हम अपने तरही मुशायरे की तरफ़ लौटते हैं। हर बार लगता है कि इस बार उत्साह की कमी है, लेकिन जैसे-जैसे समय आता है, वैसे-वैसे लोग उत्साह से भरने लगते हैँ। और एक से बढ़कर एक ग़ज़लें आने लगती हैं।  कई लोगों का उत्साह तो तरही मुशायरा शुरू हो जाने के बाद एकदम से बढ़ता है। मैंने तो पहले ही कहा है कि हमारी तो यह शिमला वाल खिलौना ट्रेन है, इसमें आपकी जब भी इच्छा हो, आप तब आकर बैठ सकते हैँ। हम तो धीमी रफ़्तार से चलते रहेंगे। और तो और हम तो कई दिनों तक बासी मुशायरा भी चलाते रहते हैं। मतलब यह कि अगर आप बाद में भी उत्साह में आ रहे हैं तो बाद में भी कह दीजिए ग़ज़ल, उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। आपके लिए बासी होली का आयोजन भी कर दिया जाएगा। हमारा मक़सद तो बस यही है कि आपके अंदर की रचनाधर्मिता बनी रहे। वह रचनाधर्मिता जो आपको अंदर से नम बनाए रखेगी, आपको सुंदर बनाए रखेगी। ख़ैर यह तो तय है कि आज के छहों शायरों ने कमाल किया है। तो आपकी ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ी हुई है अब आपको देर तक तालियाँ बजानी हैं और देर तक वाह वाह करनी है। करते रहिये।

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