गुरुवार, 12 मार्च 2015

बासी होली हो रही है। आइये होली के त्‍यौहार को विधिवत समापन करते हुए आज दो शायरों विनोद पाण्‍डेय और तिलक राज कपूर से सुनते हैं उनकी ग़ज़लें।

मित्रो होली का त्‍योहार भी बीत गया। ऐसे ही हमारे जीवन में समय का चक्र चलता रहेगा। त्‍योहार आते रहेंगे बीतते रहेंगे। लेकिन उन सबके बीच में बचा कर रखनी होगी हमें थोड़ी सी संभावना। संभावना अपने लिए अपने होने के लिए। उन लोगों के लिए जो हमारे अपने हैं। मुझे कई बार लगता है कि आज से लगभग आठ साल पहले किसी मित्र के कहने पर यदि मैं ब्‍लॉगिंग से नहीं जुड़ता तो आज क्‍या होता। आज मेरे हिस्‍से में मित्रता का वो धन नहीं होता जो है। आप सब ने मिलकर मुझे वह बनाया जो मैं आज हूं। आज साहित्‍य में जो भी मेरा स्‍थान है उसमें इस ब्‍लॉग और इस ब्‍लॉग के परिवार द्वारा दिए गए स्‍नेह का बहुत बड़ा योगदान है। आप सब द्वारा दिए गए स्‍नेह के कारण ही वह आत्‍म विश्‍वास मेरे अंदर आया कि मैं वह सब कर पाया। इसलिए इस ब्‍लॉग पर गतिविधियों का चलाए रखना मेरे ऊपर क़र्ज भी है और मेरा फ़र्ज भी है। जल्‍द ही हम गर्मियों की ऋतु का स्‍वागत करेंगे। आज कुछ स्‍वास्‍थ्‍य की गड़बड़ी के कारण लम्‍बी पोस्‍ट नहीं लगा पा रहा हूं। आप संभालिएगा।

मैं रंग मोहब्‍बत का थोड़ा सा लगा दूं तो

Vinod Pandsey (1)

विनोद पाण्डेय 

मुस्कान तेरे लब पे, अपनी मैं सजा दूं तो
सब दर्द तेरे पी लूं, अश्‍कों को सुखा दूं तो 

इकरार किया तुमने, हंगामा हुआ बरपा
अब अपने भी मैं दिल का, गर हाल बता दूं तो

पिचकारी लिए रंगो की निकले हैं सब देवर
भाभी  का कहां है घर,  मैं राह दिखा दूं तो

ससुराल गया नन्दू बीवी को लगाने रंग
गवना है अभी बाकी मै शोर मचा दूं तो 

चुपके से रघु धनिया के हाते में कूदा है 
धनिया के पिताजी को ऐसे में जगा दूं तो 

भुक्खड़ की तरह खाते पंडित जी हैं गुझिया को 
गुझिया में अगर उनकी कुछ भांग मिला दूं तो

सम्बन्ध नही बनते, बुनियाद   पे  रुपयों की 
बस्ती में गरीबों की गर प्यार दिखा दूं तो

है रंग बहुत सारे तुम डूबी हो जिनमें, पर 
मैं रंग मुहब्बत का, थोड़ा सा लगा दूं तो

माना कि ग़ज़लकारों के बीच अनाड़ी हूँ
शे'रों से मगर अपने, रोते को हँसा दूं तो

हम्‍म्‍म, देर आयद दुरुस्‍त आयद। होली के माहौल में डूबी हुई है पूरी की पूरी ग़ज़ल। सारे शेर होली के माहौल और उसके आनंद को दोगुना कर रहे हैं। होली का त्‍योहार होता ही ऐसा है जिसमें हम सब अपने अंदर कुछ उल्‍लास कुछ उमंग को बटोर लेते हैं। विनोद जी ने भी इस होली में इसी कार्य को करने की कोशिश की है और उस कोशिश में उनको सफलता भी मिली है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।

Tilak Raj Kapoor

तिलक राज क‍पूर

ठहरे हुए दरिया में, इक मौज उठा दूँ तो
फितरत जो रही इसकी, फिर इसको दिला दूँ तो।

कुछ दिल को करार आये, उम्मीद जगा दूँ तो
अंधियार में राही को, इक राह दिखा दूँ तो।

कुछ रंगे-बहार आये तारीक फि़ज़ाओं में
मैं रंग मुहब्बहत का थोड़ा सा लगा दूँ तो।

इक शोख़ हसीना की, अंगड़ाई में गुम हो कर
अपने ही बदन को गर, इक बेल बना दूँ तो।

इस राख़ की ढेरी में, कोई तो शरर होगा
मुमकिन है भड़क उट्ठे, गर इसको हवा दूँ तो।

परवाज़ न ठहरेगी, जो हमने शुरू की है
तू मुझ को लगा दे पर, मैं तुझ को लगा दूँ तो।

इक जंग मुसल्सल है, थमती ही नहीं दिखती
थमने न इसे देना, मैं खुद को मिटा दूँ तो।

हासिल न हुआ कुछ भी, मजहब की दीवारों से
ये बात समझ ले वो मजहब ही बना दूँ तो।

इक याद मुसल्सल है, सोने ही नहीं देती
कुछ नींद मुझे आये, मैं इसको सुला दूँ तो।

तिलक जी का अपना ही अलग अंदाज़ है ग़ज़लें कहने का। और हां यह भी कि वे हमेशा अलग अलग मूड पर ग़ज़लें कहते हैं। इस बार होली के माहौल पर उन्‍होंने एक ग़ज़ल कही थी और आज एक अलग अंदाज़ में यह उनकी ग़ज़ल। बहुत ही प्रभावी बन पड़े हैं सारे शेर।

तो आनंद लीजिए सारे शेरों का । और देते रहिए दाद। और हां एक सूचना यह कि शिवना प्रकाशन अब www.amazon.in/s/ref=nb_sb_noss_1?url=search-alias%3Daps&field-keywords=shivna+prakashan अमेजन पर है और बहुत जल्‍द ही वह फिल्‍पकार्ट पर भी होगा। साथ ही कुछ अन्‍य स्‍थानों पर भी।

गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली है भइ होली है। बुरा न मानो होली है और अगर जो बुरा ही मानो तो हमको क्‍या बस होली है। सा रा रा रा रा । जोगिरा सारा रा रा रा । होली है ।

कल के दिना तो हमओ माथा का नाम कपाल दिन भर पिरातो रओ । जित्‍ती मस्‍ती सब लोग लुगाइन ने मिल के करी है तो ऐसो लगो की एकाध की मुंडी ही मसक दें। पर फिर सोचा कि जाबे दो भिचारे लोग लुगाइन सब होली के दिना ही तो हंसते हैं। बाकी तो साल भर मुंडी उठाए काम पे गए, मुंडी उठाए काम से वापस । अबारे तो हमाओ भोत टैम खोटी हो गओ है। अब इत्‍ती बेला तो हमाओ रोटी बनावे को टैम होतो है। पर चा करे चा मर जाएं। इत्‍तो काम पड़ो है और सांस लेबे को भी टैम नी है। अब कोई भी जे नी पूछे कि फिर हम सांस कैसे ले रय हैं। जिन्‍ने भी जे प्रस्‍न पूछा उनके हम एक गुम्‍मा मार के माथो को नाम कपाल कर दे हैं। हम सब छोड़ छाड़ के चले जे हें काहू के संगे। चले जे हैं काहू के संगे । चले जे हैं काहू के संगे। हे राम हमने तीन तीन बार कही पर कोई नी आयो कि काहू के संगे काहे हमाए संगे चलो। हमें नी जाना काहू के संगे। चलो अब चलें होली को मजमा में।

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आज जदी कोइ ने भी घझलों की बहर चैक करबे की कोसिस भी करी तो हमाइ सों हम से बुरा कोइ नइ होबे बारो है। बहर को तो नाम भी लेबे की कोसिस नइ की जाए। जिन जिन के पास भोत सारा ज्ञान हो रओ है बे अपनी रजाई में घुस के सो रहें। होली के दिन ज्ञान फ्यान की कोनो झरूरत नहीं है।

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जे परतोयोगिता कल सबेरे भइ थी जिसमें सबसे झियादा सुफेद बालन के लिए 'सनसिल्‍क सुंदरी' का चुनाव किया जाना थ। हमें भोत भोत गरब है कि जिन्‍होंने जो इनाम जीत लओ है।

सुमित्रा शर्मा

मैं याद गये बरसो,की आज दिला दूं तो
बस भंग चढी मस्ती के घूंट पिला दूं तो

ये उम्र कहेगी क्या ये खाएगी फिर धोखा 
यौवन की लुका छिप्‍पी की याद दिला दूँ तो 

फागुन के महीने में सावन ही उतर आए 
इन श्वेत - लटों पर मैं इक  फूल सजा दूँ तो

इक बार सुनो फिर तुम अभिसारिका बन जाओ
मैं आज मधुर बंसी कान्हा सी बजा दूँ  तो

ये गाल तेरे सूने खिल जाएंगे पल भर में  
मैं  रंग मुहब्बत  का थोड़ा  सा लगा दूँ  तो

है तीखी जबां तेरी इक  टेप लगा दूँ  तो
शीरे  की जगह गुँजिया  में ,मैं मिर्च भरा दूँ तो

इकलव्य ने कूकर का ,ज्यों भोंकना रोका था
बड़बोले तिरे मुख में ,कुछ  तीर फँसा दूँ तो

नाली में पड़ा बेउड़ा  करता है यही ख्वाहिश 
इस शहर की टंकी में दारू मैं मिला दूँ तो

मन करता है नेता की औकात  बताने  को
होली पे मैं उसको गर " शू "-हार  पिन्हा दूँ तो

काय बिन्‍नी कबे सीखो तुमने घझल केना। किनसे सीखो पेले तो जे बताओ। काय कि तुमाए लाने तो हम किछू नइ कहेंगे पर तुम्‍हाए उस्‍ताद को तो किछू न किछू केना ही परेगो। काय कि उनने ही तो जे अत्‍याचार की बीमारी पैदा कइ है। काय बिन्‍नी काय तुमने हमको उदर पुस्‍तक मेले में किछु खिलाओ थो तो का खिलाबे को बदलो लोगी। सच्‍ची का नाम झुठ कहें पर इत्‍ती बुरी घझल तो हमाए सात पुश्‍तों में से किसी ने भी नइ सुनी हेगी। सुफेद बालन के कारण हम कोनो थोड़ा लिहाज फिहाज कर रए हेंगे नइ तो हम तो गुस्‍सा के भोत तेज हेंगे। हां नइ तो, इत्‍ती बुरी घझल, हम का फालतू बैठे हैं कि जो चाहे आके हमारे प्राण पिरा दे ।

सूचना - अभी अभी सिमाचार मिला हेगा कि हमाए एक भरिष्‍ठ साथी के पुलिस उठा ले गइ हेगी। काय कि उनने मोगरे की डाली में सारे मोगरे भर दिए और साउथ में महिलाओं को वेणी के लिए शार्टिज पड़ गई। सूचना सिमापत भई।

parul ji

सबरे लोग लुगाइन को सूचित किया जाता है कि जे बच्‍ची भोत खतरनाक हेगी। जे अपने साथ चार चार, पांच पांच खाने के टिफिन लेकर घूमती हेगी। जो मिल जाए उसे खाना खिला खिला के बेहोश कर देती है। धयान से देखिये इस चेहरे को इस मासूम से चेहरे को और बचिये ये जहां भी मिले ।

पारुल सिंह

आँखों में तुझे भर कर, इस दिल में सजा दूँ तो
मैं रंग मुहब्बत का, थोड़ा सा लगा दूँ तो?

सब पूछ रहे मुझसे, क्यों इतनी चहकती हूँ
ये राज़ इसक वाला, मैं हाय बता दूँ तो?

कुछ और कहानी हो, कुछ और फसाने हों
किरदार बदल जीवन, को मोड़ नया दूँ तो?

दिल झूम रहा जब से,मैं साथ हुई अपने
बेनूर निगाहों को,इक ख्वाब जुदा दूं तो?

दिल हार चुकी तुम पर, ये राज जता दूं तो?
मैं लाज भरी पलकों, को आज उठा दूं तो?

मसरुफ बहुत हो तुम, इक बार इधर देखो 
ये नेट कनेक्शन घर, से हाय कटा दूं तो?

जब राह चुनी सच की "पारुल" नही सुनती
तहज़ीब ,रिवाजों का, कुछ ख़ौफ़ दिखा दूं तो

काय बिन्‍नी तुम इत्‍ती सीरियस घझल लेके होली पे काय के लाने आईं। सिच्‍ची बताना कोनो डाकटर ने पर्ची लिखी है कि एक घझल सुबे और एक शाम को लिखना ही लिखना है। अरे और कोनो काम कर लो । ढाबा खोल लो चावल के परांठों को। काय के हम तो जे पूरी नइ पढ़ पा रहे हैं। हमें डाकटर ने मना की है कि होली के दिना में कोनो भी सीरियस बात ना सुनी जाए। तो हम तो जे घझल सुनबे से रए। हां इते भोत सारे लोग लुगाइन फालतू बैठे हेंगे। उनको सुना लो अपनी घझल और निकल लो पतरी गली पकड़ के । जो हमें सीरियस करबे की कोसिस की तो हम सीरियल में गाली बकबे के लाने तैयार बैठे हेंगे। हमें कोउ गुस्‍सा न दिलाबे । हम ने बोले काहूं से हमसे नो बोले कोय।

सूचना : उते भटोली के पेड़ के पास रेबे बारे मूलचंद मास्‍टर जी की बकरी कल इमरतीलाल जी के तोते के साथ उड़ कर भाग गई हेगी। जिस किसी को भी आकास में तोते के साथ बकरी उड़ती दिखे वो पत्‍थर मार कर गिराबे की कोसिस करे। गिराने बारे को तोता इनाम में दिया जाएगा। सूचना समापत भई ।

nakul gautam copy

ईमान से के रिये हैं कि हमें नइ मालूम है कि हाथ में इत्‍ते सारे रिंग पेन के जे काय का तमासा करबे जा रइ हेंगीं । हमे तो जेई बताया गया था कि घझल केंगी।

नकुल गौतम

नानी की रसोई की कुछ याद दिला दूँ तो
मैं दाल मखानी में घी थोड़ा मिला दूँ तो

फ़ाल्गुन का महीना है, होली का बहाना है
तू भूल ग़िले सारे, शिकवे मैं भुला दूँ तो

यह भांग भी होली पर  झूमेंगी नशे में धुत,
ले  नाम तिरा इसमें , जल थोड़ा मिला दूँ तो

कैसे हैं ये रासायन, चमड़ी ही  जला डालें,
चल छोड़ गुलालों को, जल पान करा दूँ तो?

बगिया की  महक  तुझको  फीकी  न  लगे  कहना ,
गर  बादे-सबा  तुझको , घर  उनका  दिखा दूँ तो

चांदी की मिरी ज़ुल्फ़ें चमकेंगी घटा बन कर,
गर ग्रीस ज़रा सी मैं बालों पे लगा दूँ तो

ग़ज़लें  ये मिरी  शायद , फूलों  सी  महक  जाएँ ,
इनको  मैं अगर  तेरी  यादों  से  सजा  दूँ  तो

आज तो आपके गलघोंटू की कसम सब हमाइ जान के पीछे ही नहा धोके पड़े हैं। कौन जाने कौन से ठेका ले लओ हेगो कि आज तो बुरी बुरी चीजें सुना सुना कर हमाइ जान ही लेनी हेगी। हमाए का पड़ी है कि तुम दाल मखानी में घी मिलाओ के डालडा। हमने कोइ जगत भर को ठेका ले रखो है कि तुमाए चूल्‍हा चौका में भी झांकते फिरेंगे। ठीक है हम होली के दिन में फालतू हो जाए हैं पर इत्‍ते भी नइ होते हैं कि जे काम भी करने लगें। तुमाए बालों पर तुम ग्रीस लगाओ चाए घासलेट का तेल छिड़को हमें का। हमें जदी गुस्‍सा आ गया तो हम कोस देंगे। कोस देंगे कि होली की रात को ठीक रात के साढ़े डेढ़ बजे तुमाइ प्रेमिका का कुत्‍ता तुमे सपने में आके काटे। तुमाइ पिंडली में पूरे दांत के निसान छोड़ दे। हां नइ तो ।

सूचना- लम्‍बरदार के हैंडपंप से पानी भरने वाले सगरे लोग लुगाइन को सूचित किया जाता है कि लम्‍बरदार का लड़का कवि हो गया है अब एक मटका भरने के लिए एक कविता सुननी पड़ेगी। सूचना समापत भई।

 ashwini ramesh copy

जे कौन आइ रे बप्‍पा गंजी दीपिका पादूकोण। हमउ तो आज तक ना देखी रे ऐसी हीरोइनी। हमें तो लगे कि कोनो फिल्‍म ऐसी बन रइ हेगी जिसमें लेडी शाकाल को रोल हेगा जे के लाने जे पादुकोण आई हेगी।

तिलकराज कपूर

शतरंज की बाज़ी के शौकीन मिला दूँ तो
अब्बा  को तेरे अपने अब्बा का पता दूँ तो।

अम्मा  ही तेरी है जो,  हामी ही नहीं भरती 
होली में अगर उसको, कुछ भंग चढ़ा दूँ तो।

दूल्हा लिये जो घोड़ी, आनी हो तेरे दर पे
उसके लिये रस्ते में,  घोड़ा मैं पटा दूँ तो।

मैं सोच रहा हूँ ये, क्या दृश्य बनेगा जब
हथिनि सा बदन तेरा, हथिनि पे बिठा दूँ तो।

मॅंहगाई के आलम में, कलियॉं हैं बहुत मँहगी
जूड़े में तेरे गोभी का फूल लगा दूँ तो।
  

बत्तीस अभी पूरे बाकी हैं मेरे मुँह में
ऐ पोपली शहज़ादी, कुछ तुझको लगा दूँ तो।

महताब तेरा चेहरा, कुछ सुर्ख़ न हो जाये
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो।

जे तो बो हेंगे जिनका काम एक घझल से तो चलता ही नहीं है। अभी तो इनकी एक और रखी हेगी। काय कि बासी होली भी तो मनानी है हम लोगन को । घोड़ा, हाथीकितने जिनावर भर रखे ह‍ैं अपनी घझल में । काय री पादुकोण का चिडि़याघरे से आ रह हेगी क्‍या। काय री कोन सी दुनिया में रेती हेगी। तेरे को पता नइ है कि इदर तो सोने चांदी से मंहगी सब्जियां हो रइ हैं। और तू जूड़े में गोभी का फूल लगाने की बात कर रइ हेगी। पता नहीं है कि गोभी़ का फूल खरीदने के लिए बैंक से लोन लेना पड़ता हेगा। हां नइ तो इत्‍ती झूठी घझल लिखी हेगी। मेरे से कोई बोले कि मेरे जूड़े में गोभी को फूल लगा दे तो मैं तो कहूं कि मैं तो प्रेमिका बदल लूं पर गोभी, न रे बप्‍पा जी कभी नइ।

सूचना : कल्‍लू की सास को रात कल्‍लू की भेंस ने सींग मार दिया है। जिन जिन लोग लुगाइन के घर में सास और भेंस दोनों हैं वे अपनी सास के सींग संभाल के रखें। सूचना समापत भई ।

 saurabh ji new copy

हमाए हस्‍पताल में एक नइ सिस्‍टर जी की भर्ती हुई हेगी। जे सिस्‍टर जी इल्‍लाहाबाद से आईं हेंगी। जे बचत के लाने रखी गईं हैं। काय कि जे अपनी आंख में दवाई डाल कर नज़रों से इंजेक्‍शन लगा देती हैं। तो सरकार को सूई सिरिंज का खर्चा बच रहा है।

सौरभ पाण्‍डेय

चुपचाप अगर तुमसे अरमान जता दूँ तो !
कितना हूँ ज़रूरी मैं, अहसास करा दूँ तो !

संकेत न समझोगी अल्हड़ है उमर, फिर भी.. 
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो

ये होंठ बदन बाहें रुख़सार बसंती हैं..
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो ..?

तुम आँख दिखाओ पर होली है हुलासों की
मेरा है असर तुम पर.. ये शोर मचा दूँ तो !

इक चोर नज़र उसकी उलझी है दुपट्टे में
उस मीन पियासी को कुछ बूँद पिला दूँ तो !

जब रात गयी उठ कर कुछ बोल दिखे बिखरे
बिस्तर से उठा उनके अनुवाद सुना दूँ तो

मौसम के इशारे, हाँ !.. मैं खूब समझता हूँ
हर ढंग निभाऊँगा, कुछ फ़र्ज़ निभा दूँ तो

काय कि उमर चाय कित्‍ती भी हो जाए लेकिन फिर भी आदमी का सुभाव तो बदलबे से रओ। होंठ बदन बाहें। बुढ़ापे में किछू भगवान की बात करो लल्‍ला जी, जे काम तो भोत कर लओ। हम तो बड़े हैं सो के रए हैंगे और कोउ तो केने बाला भी नहीं है। पर जे उमर में अब किछू माला वाला जपने की बात करो। और राम तुम्‍हारी भली करे इत्‍ती बुरी घझल केने से तो अच्‍छा है कि किछू भजन लिखो। इल्‍लाहाबाद के अमरूद भोत फेमस हेंगे तो एसा करो कि अमरूद को जेम बनाबे को काम सिरू कर दो। हम सीधे सीधे नइ के पा रए हैं कि घझल लिखबी तुमाए बस की बात नइ हेगी। हमाइ मानो तो मानो नइ तो जाओ नाली में ससुर हमे का है। हम कोइ सलाह देने का किसान सलाह केन्‍द्र खोले हैं का।

सूचना :  परतियोगिता है कि जो ऊपर से चौथे नंबर के कवि के सिर पर बरफ की डिल्‍ली टिका देगा उको एक ठो फ्रीज भेंटई में दिया जाएगा। फ्रिज उको फ्ल्पि कार्ट से कैश आन डिलेवरी में खुदई बुक करना होगा और पैसा देकर छुडा़ना होगा। सूचना सिमापत भई। 

 hashmi ji girish ji copy

गिरीश पंकज, मंसूर अली हाशमी

रे दद्दा जे का बात भई जे तो किछू लब झिहाद को मामलो लग रओ हेगो। काय के हमे तो भोत डर लगे है इन मामलो से । हम तो किछू भी नइ बोलेंगे।

गिरीश पंकज

रंगों की नदी फिर से , अपने में बसा  दूँ तो
जीवन है बड़ा रूखा, अब इसको सजा  दूँ तो

मनहूस बड़े चेहरे, हँसते ही नहीं लेकिन
क्या दोगे मुझे बोलो, पत्थर को हँसा  दूँ तो

टूटेंगे सितमगर भी, ये कांच के घर हैं ना
बढ़ कर के कोई पत्थर , मैं भी जो उठा  दूँ तो

जो दूर खड़े वे,  हैं लख्तेजिगर अपने
क्या दोगे अगर उनको, मैं अपना बना  दूँ तो

होली जो बने 'होली', क्यों भेद रहे कोई
अलगाव के ये परदे, अब बढ़ के  हटा  दूँ तो

हो जाएगा दिल सुन्दर,  कितना है सरल पंकज
मैं रंग मोहब्बत का, थोड़ा-सा लगा दूँ तो

उइ अम्‍मा, उइ अम्‍मा, उइ अम्‍मा उइ अम्‍मा, जै क्‍या घझल लिख दी। हमें तो किछू भी समझ ही नहीं पड़ रही है। आपमें से किसी को एक भी लाइन सिमझ में आ जाए तो हमें सिमझाने की किरपा करें किरपा करके। उते छत्‍तीसगढ़ में क्‍या इत्‍ते सारे फत्‍थर हेंगे कि दो दो सेरन में फत्‍थर आ गए हेंगे। अरे इत्‍ते फत्‍थर हैं तो गिट्टी क्रेशर लगा दो चार पैसे घर में आएंगे। उसके लिए घझलन में फत्‍थर लाके हम लोग लुगाइन पे फत्‍थर मारबे की क्‍या झरूरत हेगी। क्‍या फत्‍थर अकल पे पड़े हेंगे। चों हमने कुछ गलत बात बोली क्‍या। और जे परदे उरदे हटाबे की बात कोइ भी न करे। हमाए बाथरूम में दिरवाजा नइ है जे के लाने हमने परदे लगाए है कोनो अलगाव के परदे नइ है बाथरूम के परदे हैं।

सूचना : कीमती लाल भटियारे की चौथी घरवाली की पांचवी लड़की का बाजूबंद गली में खुल कर गिर गया था जिसको कल एक गाय ने खा लिया है । बाजूबंद को पुन: प्राप्‍त करने का तरीका बताएं। सूचना समापत भई ।

hashmi ji girish ji 2 copy

काय के जे फोटो फिर से लगाओ जा रओ हेगो।

मंसूर अली हाशमी

अब लाज का घूँघट जब, हट ही गया चेहरे से
मैं रंग मुहब्बन का, थोड़ा सा लगा दूं तो.. ?

दिलक़श हो हसीं भी तुम, इक रंगे हया भरने
रुख़्सार पे अधरों को थोड़ा सा सटा दूं तो  . . ?

पॉडर है लिपस्टिक है, क्या-क्या नही चेहरे पर !
गोबर सने हाथों को, गालो पे लगा दूँ तो ..?

'साहब' तो तुम्ही हो जी, क्या फर्क पड़ेगा अब
इक चाल उलट चल कर, 'प्यादे' को बिठा दूं तो..?

बिन पैसों के खाते भी, अब बैंक में खुलते है
'काले' ही को 'धौला' कर अब उसमें सजा दूं तो..?

होली के बहाने से,  छू कर तेरे जाने से
जो आग लगी दिल में, मैं उसको हवा दूँ तो..?

काय के जे का हो रओ हेगो। कोइ इते ए सर्टिफिकेट को मुशायरो चल रओ है का। हां नइ तो । रुखसार पे अधरों को सटाओगे जा उमर में। चचा मियां सारे रुखसार छिल जाएंगे आपकी दाढ़ी से हां नइ तो। सइ बात है कि दाढ़ी सुफेद होने के बाद कुछ मुलायम हो जाती है और पावडर के पफ का काम करती है। तो अच्‍छा होगा कि इस उमर में पाडर लगाओ अपनी दाढ़ी से उनके गालों पर। गोबर थेपने के लिए दाढ़ी की क्‍या झरूरत हेगी। आप तो अपनी घझल में ही इत्‍ते अच्‍छे गोबर थेपते हो कि क्‍या बोलें। इत्‍ते अच्‍छे उपले बन जाते हैं कि साल भर का काम चल जाता हेगा। उमर का लिहाज कर रए हेंगे नइ तो गुस्‍सा तो इत्‍ती आ रइ हेगी कि बस।

सूचना : हमाए घर के नल में से कल एक नेता हीटो हेगो । जिस किसी पारटी को बो नेता है बो पेचान के अपनो नेता ले जाए। हमाए घर के बागड़ पे सूख रओ है । पैचान : रंग काला, आत्‍मा काली, काम काले, पैसे काले। सूचना समापत भई ।

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जे कौन हेगा री मैया। जे किछू जाना पैचाना चेहरा तो दिख रहा है लेकिन जो जान पैचान वाले को हम जानते हैं उको तो पढ़बे लिखबे से कोनो दूर का रिश्‍ता नहीं है और इसके हाथ में तो पैन दिख रहा है। कौन है इ ससुर का नाती। माथा का नाम कपाल।

नीरज गोस्‍वामी

आँखों में तेरी अपने, कुछ ख़्वाब सजा दूँ तो
फिर ख़्वाब वही सारे, सच कर के दिखा दूँ तो

होली पे लगे हैं जो वो रंग भी निखरेंगे 
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो

जिस राह से गुजरो तुम, सब फूल बिछाते हैं
उस राह प मैं अपनी, पलकें ही बिछा दूँ तो

कहते हैं वो बारिश में, बा-होश नहायेंगे
बादल में अगर मदिरा, चुपके से मिला दूँ तो ?

फागुन की बयारों में, कुचियाते हुए महुए
की छाँव तुझे दिल की, हर चाह बता दूँ तो

बस उसकी मुंडेरों तक, परवाज़ रही इनकी
चाहत के परिंदों को, मैं जब भी उड़ा दूँ तो

हो जाएगा टेसू के, फूलों सा तेरा चेहरा
उस पहली छुवन की मैं, गर याद दिला दूँ तो

उफ़! हाय हटो जाओ, कहते हुए लिपटेगी
मैं हाथ पकड़ उसका, हौले से दबा दूँ तो

इन उड़ते गुलालों के, सुन साथ धमक ढफ की
इल्ज़ाम नहीं देना , मैं होश गँवा  दूँ तो

मारूं घुटना फूटे आंख। इनकी एक डाली धतूरे की आई  है उसमें भी आपके गले की कसम इत्‍ती ही बुरी बुरी घझलें हैं। इमान से पुस्‍तक मेले में लोगों ने बुराइ को मिटाने की ऐसी कसम खाई कि डाली धतूरे की को खरीद खरीद के ही खतम कर दिया। हर कोई डाली धतूरे की खरीदता और गाता था। बुराई को मिटाना है जड़ से हमें मिटाना है। हमें पेले तो किछू सिमझ में नइ आओ कि कित्‍ती बुरी तो घझलें और उनको भी लोग बाग टूट टूट के खरीद रए हैं। बो तो जब हमने ध्‍यान से गाना सुना तो हमें सिमझ में आई कि ओ तेरी..... जो तो लोग पुण्‍य का काम करने के लिए खरीद रए हैं। अपन को क्‍या अपनी तो चज बिक रही थी। जे बात तो समझ में आई कि लोग आज भी बुराई को खतम करने के लिए कमर वमर सब कस के आते हैं।

सूचना : सिबना परकासन द्वारा परकासित 'डाली धतूरे की' को राष्‍ट्रीय आपदा घोसित कर दिया गया हेगा। इससे पेले की ये फैले इसकी रोकथाम के लिए काली गाय का सफेद गोबर लें उसे माइक्रोवेव में सुखाएं और फिर जला कर धूनी दें । सूचना समापत भई । 

rakesh ji 2

इनका भी एक घझल से काम नइ चलता है आप सबको पता ही हेगा कि कल भी सुरुआत में इनने एक पेली थी और आज अंत में एक और पेलने सज धज के आ गइ हेंगी। हमें का है कान तो आप लोग लुगाइन के खराब होने हैं।

राकेश खंडेलवाल

अभिनव की नई  शैली,अंदाजे बयाँ नीरज
माथे पे चमकता है, बन कर के तिलक सूरज
बिखराती सुधा बूँदें, हाथों की रची मेंहदी
ये सब मैं किताबों में शिवना से छपा दूँ तो
होली की चढ़ी मस्ती
ये रंग मोहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो

सिंगापुर में ब्रज है, सीहोर में बरसाना
राजर्षि बने गौतम, गाते हुए दोगाना
खोपोली में चंगों को, मस्ती में बजाता है
उसकी ये धुनें फ़िल्मी संगीत बना दूँ तो
मौसम का असर है अब
ये रंग मोहब्बत का चहरे पे लगा दूँ तो

बादामी चेहरों की, रंगत से गिरी ला के
तेवर की मिरच काली, फिर उसमें मिला कर के
दिल के सिलबट्टे पर, रख कर के उसे पीसूं
स्कॉच की गंगा की ठंडाई बना दूँ तो
फ़ागुन का तकाजा है
फिर रंग मुहब्बत का चहरे पे लगा दूँ तो

शाहिद का फटा कुरता, सौरभ है चढ़ा अंटा
द्विज छानें शिवबूटी, मंदिर में बजा घंटा
पूजा की सुलभ थाली, में छोले भठूरे रख 
पारुल की बनी गुझिया दस बीस उड़ा लूँ  तो
पिचकारी में भर खुनकें
फिर रंग लगा कर मैं खुद को ही छुपा लूँ तो ?

जे का है भैया, जे का है, हमें कोइ बताए कि जे का है । ठीक है कि हम कबाड़ का धंधा करते हैं । पर कबाड़ का धंधा करते हैं कचरे का नहीं। आपके गले की कसम इत्‍ता बुरा कचरा तो पूरे वाशिंगटन में भी वाश करो तो टन भर ना मिले। काय की भैया हम तो पक गए थक गए। सब लोग लुगाइन ने जे सोच ली है कि हमाए पास तो कोई ठेका है बुरी बुरी चीजों को सुनने का। हम अब नइ सुनेंगे। हमाए कान अब के रए हैं कि वो अन्‍ना हजारे के पास जा रए हैं आंदोलन करने के लाने। काय कि जो हमने कल बताई थी कि हमाए दोनों कानों से रात भर उल्‍टी होती रही। रात भर घझलें, शेर, मिसरे हमाए कानों में से निकलते रए, निकलते रए। हम तो जान भी नहीं पाए कि जे हो कां से रहा है। जे कल आए थे आज फिर आ गए एक लेके। हमाइ छोटी सी जान पे आफत पाड़ने।

सूचना:  कल्‍लन खां की जो लूंगी पिछली होली में गुम गई थी और जिसको लेकर भोत तनाव चल रिया था वो लूंगी मिल गई है। पता जे चला है कि कल्‍लन खां वो लूंगी पहने हुए थे। इस बार होली पर जब वो नहाए तो पता चला। सूचना समापत भई।

7

रंगों और उमंगों का यह पर्व होली आपके जीवन में सुख शांति समृद्धि और स्‍वास्‍थ्‍य के सभी रंग बिखेरे। आपका जीवन रंगों से सराबोर रहे, रसों से रसाबोर रहे। हर आपकी रचनाओं में सारे रस छलकते रहें, महकते रहें। आप यूं ही सिरजते रहें, लिखते रहें। सारे विश्‍व में शांति हो, सारे विश्‍व में हर दिन होली हो, ईद हो, हर रात दीवाली हो। सब हिलमिलकर रहें । यह दुनिया फिर से इन्‍सानों के रहने योग्‍य बने। हम सब फिर से इन्‍सान बनें। आमीन ।

होली है होली है बुरा न मानो होली है।

बुधवार, 4 मार्च 2015

होली नहीं ये होला है, ये बोफोर्स का गोला है । ढिंक चिका, ढिंक चिका, ढिंक चिका, ढिंक चिका होली है। होली की ये पहली किश्‍त भांग पी कर पिरस्‍तुत हेगी।

लो कल्‍लो बात, होली तो जे आन ठाड़ी हेगी माथे पे। इभी तक तो हमारे इते पानी गिर रओ है, ने ठंड भी पड़ रई है। कां से मनाएं होली। ऊपर से सुवाइन फूलू के कारण ओर डर लग रओ है। कजाने कब किधर से आके सुवाइन फूलू का भाई-रस  चेंट जाए। अपनी मानो तो जे दफा होली की जगे अपन लोग दिवाली मना लेते ह‍ेंगे। चोंकि मौसम भी तो बेसा ही हो रिया है। मगर नी नी नी, दिवाली में तो भोत ही खरचा होता हेगा। अपनी तो होली ही अच्‍छी हेगी कि कुछ मत करो और मना लो। तो जनाब पिरस्‍तुत हेगी होली की पहली पिरस्‍तुती । आज कुछेक जन आ रए हेंगे और फिर उसके बाद कल बाकी के लोग लुगाई आएंगे।

holi-cartoons 

आज के दिन सबसे पेले जो आ रिये हेंगे उनको पेले तो नइ आना चइये पर आ रय हैं। चोंकि उनको दो तीन रचना पेलने की बुरी आदत हेगी। तो आज एक पेलेंगे और सियाद कल भी एक पेलेंगे और भगवान आपको नेकी दे कि हो सकता है बासी होली में भी एकाध पेल दें।

राकेश खंडेलवाल

rakesh ji

जनाब श्री पंकज सुबीरजी गज़लों वाले श्री गिर्राज महाराज की जय. भईये किताबन की नुमाईश की भागा दौड़ी में भूल गये कि ई होली कौ त्योहार ठेठ ब्रज कौ है. जभी तो रसिया की जगह गज़ल घुसा दयी और तो और सबहीं कू लपेट लियो कि गज़ल लिखो. नांय हम तो न लिखें गज़ल फ़ज़ल. हम तो खालिस रसिया ही लिख भेजिन्गे

जय श्री पंकज जी महाराज, गज़लन की कथा उवाच रहे
नीरज तो ले भगो काफ़िया, तिलक संगठित करें माफ़िया
सौरभ गज़ल घोटवे कूँ सिल बट्टा अपनो जाँच रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

पाँच सेर की चढ़ी कढ़ैय्या, हाशिम के पौ बारह भईया
मोहड़े  पे मल रंगे मोहब्बत, सबहों दिखावत काँच रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

गौतम लिखिवे दुई अढैय्य्या, डिम्पल नाचै ता ता थैय्या
अंकित कोशिश करे शेर गिनती में केवल पाँच रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

पूजा लायै बना के डोसा, लाई पारुल बीस समोसा
सब के सब खा कै पंडित जी, पान मसालौ फ़ाँक रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

एक बार फिर बोलो गिर्राज महाराज की जय. बोल श्री राधे.
हमारे ब्रज में होली पे कहो जात है:-
बोल गिर्राज महाराज की जय
जो नहिं बोले, वई में दै
फिर खा लड्डू   चार कचौड़ी छह.

कसम से री गंगा मैया की इत्‍ती बुरी तो कविता लिखी हेगी कि कानन में से रात भर से उल्‍टी हे रइ हेगी। रात भर जेइ कविता कानन में से हीटती रइ है। चोंकि इनसे कोई कुछ बोल नहीं सकत है तो चाए जो पेल दो। हमऊं सुने रहे कि कोई जब भरिष्‍ठ हो जाए हे तो वो गरिष्‍ठ भी हो जाए है । हमाओ डाकटर कह है कि जियादा गरिष्‍ठ खाबे से पेट खराब होए है। राम जाने अब जियादा गरिष्‍ठ सुनबे से कजने का होगा। पर भैया अपनी जे कविता फविता जो है वो सब उदर ही रखो अपने अमरिका में । काय कि भारत के लोग लुगाई को अच्‍छी बुरी की समझ है। तो आगे से इत्‍ती बुरी कविता लाए तो समझो कि 'वई में दै' ।

होली की सूचना : हमाए इते के परधानमंत्री को केबो है कि बुरी कविता को कचरो भी साफ करबे लाने अभियान चलेगो। अब हम जे बात इस कविता के बाद चौं लिखे जे बात आप खुदई समझदार लोग जान लो।

dharmendra

घूंघट की आड़ से चश्‍मे का दीदार अधूरा रेता हेगा, जब तक ना पड़े आयकर की नजर काला धन अधूरा रेता हेगा। कोन के रिया हेगा कि काफिया भी नी मिला और बहर भी खराब हो गई हेगी। नहीं हुई हेगी। हमने लिखी है ।

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

तुमको भी जरा सी मैं ये भाँग पिला दूँ तो
दिल ने जो कहा मुझसे तुमको भी बता दूँ तो

ये रंग ये पिचकारी सबकुछ मैं छुपा दूँ तो
होंठों की तरफ तेरे मैं गाल बढ़ा दूँ तो

गोदाम है रंगों का हर अंग तेरा गोरी
होंठों से उठाकर कुछ गालों पे लगा दूँ तो

क्या अपनी मुहब्बत में मुझको न डुबो दोगी
तुमको ही ख़ुदा कहके मैं सर को झुका दूँ तो

ग्रन्थों में पढ़ा तुमने मरने पे मिले जन्नत
जन्नत मैं यहीं तुमको जीते जी दिखा दूँ तो

क्या आज ही मल मल के इसको भी छुड़ा दोगी
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो

अब भैया अपन को तो जे घझल कुछ खास नी लगी। ( बुरी लगी ऐसा केने से आदमी नराज हो जाता हेगा) काय कि पूरी ग़जल में के रय हैं कि रंग लगा दूं, रंग लगा दूं, पर लगा नइ पा रय हैं। काय हमें तो जे लग रओ है कि जे कछु थोक के भ्‍योपारी हैं, चोंकि गोदाम की बात तो थोक बाले ही करते हेंगे। अब इत्‍ती सी बात के लिए पूरी गजल के दी। काय रे लोग लुगाइयों, अपने इते अपने भारत में लोग जने कित्‍ती तो फुरसत में हो रय हेंगे। झटाक से सोचा ने फटाक से गजल लिख दी। काय कि अब जियादा किछु तो करना नइ है। अपने इते तो थोक में सब लोग लुगाई बैठे ही हैं वाह वाह करबे के लाने । कछु भी पेलो कभी भी पेलो।

सूचना - सिबना परकाशन की तरफ से सभी को सूचति किया जाता है कि इस बार जो भी सबसे अच्‍छी कभिता पेलेगा उसको सिबना की ओर से 'डाली धतूरे की' और 'पाल ले इक स्‍वाइन फूलू नादां' के कभर पेज की फोटो कॉपी भेजी जाएगी। सूचना समापत।

Digamber Dinesh 2

दिगंबर नासवा , दिनेश कुमार

अपने इदर होली पे जब तक किसी की लगन नी होय, सादी नी होय तो अपने को तो भैया मिजा ही नी आए है । तो इस बार जो सियादी हो रइ हेगी वो इन दोनों जनों की हेगी।  

दिगंबर नासवा

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूं तो
ये मांग तेरी जाना तारों से सज़ा दूं तो

तुम इश्क की गलियों से निकलोगे भला कैसे
मैं दिल में अगर सोए अरमान जगा दूं तो

लहरों का सुलग उठना मुश्किल तो नहीं इतना
ये ख़त जो अगर तेरे सागर में बहा दूं तो

कुछ फूल मुहब्बत के मुमकिन है के खिल जाएं
यादों के पिटारे से इक लम्हा गिरा दूं तो

उलफ़त के परिंदे तो मर जाएंगे ग़श खा कर
मैं रात के आँचल से जो चाँद उड़ा दूं तो

बातों में तेरी सरसों, खुशबू में तेरी सरसों
मैं सांस न ले पाऊँ गर तुझको भुला दूं तो

तुमको भी मुहब्बत है हमको भी मुहब्बत है
ये राज भरी महफ़िल में सब को बता दूं तो

अब इनको कोन सिमझाए कि मांग को तारों से सजाना तो दूर की बात हेगी, तुम पेले इनकी मांग ही पूरी कर दो। ये जो सादी होती हेगी जे दरअसल में मांग पूरी करने का ही ठेका है। जो आपने मांग भरी है अभी अभी सिंदूर से तो आपका समझाया गया हेगा कि अब आपको मांग भरते ही रेना है। ओर जे सरसों उते धुबई में कां से आ गई रेत में । रेत में सरसों खिला के लोग लुगाइन को भेकूफ बना रय हो। काय का हमें नई पता, हमने फोटो में धुबई देखी हेगी। धुबई में को ई सरसों फरसों नइ खिलती। मियां घर में से चमगादड़ उड़ा रय हो और दुनिया को बता रय हो कि उल्‍फत के परिंदे उड़ा रय हो। काय क्‍या हम शकल से ऐसे दिखते हैं। और दिखते हैं तो दिखते हैं पर ऐसे हैं नहीं । और चलो हों भी तो क्‍या दुनिया को बताओगे। हां नहीं तो।

सूचना : जा बारे को ज्ञानपीठ सिम्‍मान उते भोपाल के कोउ तिलकराज को दओ जा रओ हेगो। काय कि बे जो हेंगे बे कभ्‍भी से ज्ञान की तरफ पीठ करके बैठे हेंगे। और ज्ञान को पीट पीट के भगा भी रय हैं। सूचना सिमापत ।

Digamber Dinesh 3

काय के जिनका बड़ा फोटू ते ऊपर लगो हेगो पर पैचान के लिये एक पासपोर्ट साइज को फोटू इतइ भी लगा दओ हेगो कि पैचानने में आसानी रए आपको कि कविता सुनने को बाद किसको मारबो हेगो।

दिनेश कुमार

मैं रंग मुहब्बत का इस दिल पे लगा दूँ तो
अहसास जवाँ रुत का तुमको भी करा दूँ तो

यौवन के मैं आँचल को हल्के से हवा दूँ तो
बादाए जवानी को नज़रों से पिला दूँ तो

फागुन का महीना है, दस्तूर है मौका भी
मैं प्यार के शरबत में कुछ भांग मिला दूँ तो

बेचैन बहुत करती होंठों की तेरे लाली
इस लाली को मैं अपने होंठों से मिटा दूँ तो

तुम सामने हो मेरे मदहोश मेरा दिल है
बाँहों में तुम्हें भरकर दुनिया ही भुला दूँ तो

आँखों में तुम्हारी भी इज़हारे मुहब्बत है
आईना मैं बन जाऊँ और सच को दिखा दूँ तो

रुसवाई तो मुमकिन है महबूब मगर फिर भी
जो तुझ पे ग़ज़ल लिक्खी सर-ए-बज़्म सुना दूँ तो

काय के हमको तो कुछेक लाइनों पे जम के सरम आई हेगी। हमाइ तो इच्‍छा हेगी कि कुछेक लाइनों को हम कोइ सो सर्टिफिकेट दे दें कि इन लाइनों को केवल भयस्‍क लोग ही सुन सकते हैं। सुन सकते हैं और सकते में आ सकते हैं। जे बात तो हमको समझनी ही पडेगी के अगले ने अपना कोई पुराना पत्र निकाला है जो जिवानी के दिनों में ( अगर जिवानी आई थी तो) लिखा होगा । पत्र में रदीफ और काफिया फिट कर घझल बना के पेल दिया गया हेगा। आप सब लोग लुगाइन के गले की कसम इत्‍ती बुरी घझल हेगी कि हमें तो झां तक बदबू आ रइ हेगी। मगर अपने को क्‍या अपने को तो सुनना है। काय की सजा जो मिली हेगी।

सूचना : अपने इते को खजेलो कुत्‍तो टॉमी कल से पगरा कओ हे। गुम भी गओ हे। जिस किसी लोग लुगाइन को टॉमी मिले वो टॉमी को लेके इते ना आएं, जब टॉमी दिखे तो बा से अपनी टांग कटवा लें और फिर चौदह इंजेक्‍शन लगवा लें काय कि जेई टॉमी को इलाज हेगो। सूचना खतम भई।

ganesh ji

ज्‍ज्‍ज्‍जे ब्‍ब्‍ब्‍बात, गनेज्‍जी सियाद अपने इते पेली बार आ रय हेंगे। भोत सारा काम करते हेंगे। इत्‍ते काम करबे के बाद जब सुस्‍ताते हेंगे तो ऐसे फोटू खिंचवा लेते हैं।

ई. गणेश जी "बागी"

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो
चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो.

इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.

क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा
गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.

ये बात समझ लेना चाहत है मेरी सच्ची
सपनों में अगर आकर रातों को जगा दूँ तो.

तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?

गनेज्‍जी ने नूं केने तो अच्‍छी कई है घझल पर अपनी तो किछु भी सिमझ में नइ पड़ी हेगी। काय कि अपने बड़े लोग केते हैं कि जदी कोई बात सिमझ में नहीं आ रइ है तो सिमझो क‍ि कोई भोत बड़ी बात हेगी। तो अपन भी सिमझ रय हैं कि कोई न कोई बडी बात गनेज्‍जी ने कइ हेगी। अब जे बड़ी बात कोन सी हेगी जे समझने के लिए अपन ने अपने इते के पुलिस बारे को ठेका दे दओ है। काय कि हमे बस जे समझा दो कि गनेज्‍जी ने कोन सी बड़ी बात के दई है । काय कि कोउ हमउं से पूछ ले कि बताओ तो हम का बताएंगे। हमें किछू किछू लग तो रओ है कि हम किछू बन गए हेंगे। का बन गए हेंगे वो इते नइ बता सकते हैं। पर कोई बात नहीं घझल सुनो और मजे करो ।

सूचना : जा दफा अपने इते को चुनाव हो रओ हैगो कि कौन को जा बार होली पे गधे पर बिठा कर जलूस निकालनो हेगो। हम भी खड़े हैं और हमाओ निसान है खच्‍चर। तो खच्‍चर को बटन दबा के गधे को........ हमाओ मतलब है हमें जिताओ। सूचना सिमापत भई ।

sanjay

उते छत्‍तीसगढ़ के डाक्‍टर लोगों ने सुवाइन फूलू से बचबे को नओ तरीको निकालो हेगो। डाक्‍टर साब भी बा तरीके को ही डेमो आप सभन को दे रय हैं।

डा संजय दानी

मैं हुस्न की इज़्ज़त इस होली में बढा दूं तो
औ अपनी जबीं उनके पैरों पे झुका दूं तो।

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूं तो,
या इश्क़ का चखना तुमको आज चटा दूं तो।

माना तेरा भाई भी इस शहर का गुंडा है,
मैं उसको शराफ़त की बंदूक थमा दूं तो।

गो तेरा मुहल्ला ये  सदियों से शराबी है,
मैं भांग की अच्छाई लोगों को बता दूं तो।

तुम शादी की बातें सुन डर जाती हो क्यूं आखिर 
मैं तुमको सुखी, हंसते जोड़ों से मिला दूं तो।

तुम सुख की हवाओं से करती हो मुहब्बत क्यूं,
मैं ग़म के चराग़ों का गर जलवा दिखा दूं तो।

क्यूं होली के दिन तुम यूं  आती हो मेरे आगे
दानी मैं नशे में गर ईमां ही डिगा दूं तो।

डाकटर साब को कोउ ने बताओ नहीं हेगों कि पांव में भोत सारे भाइरस होते हैंगे। पैरों में जबीं झुकाओगे तो कोनो भाइरस चिपक जाएगो। और आपके गले की कसम इलाज कराने दूसरे डाकटर के पास जानो परेगो, काय कि आप से तो किछु होबे से रओ। आप तो मरीज को इलाज भी दूसरे डाकटर से मोबाइल पे पूछ पूछ के करते हो। और ईमान से आपको इलाज तो दूसरे डाक्‍टर भी नहीं करबे बारे, काय कि उनको जे तो पता ही हेगा कि फीस वीस तो किछु मिलने से रही। तो भैया हमें तो आपको जेई सिमझाना है कि पैरों पे ज़बीं वबीं मत झुकाओ ( एक तो कोई हमें पेले जे ज़बीं को मतलब सिमझाए) जहां पे भी आपकी ज़बीं हेगी उसे भंई रेबे दो। काय नुसकान करवा चाय रय हो।

सूचना : सिबना परकासन ने निरनय लियो हेगो कि जो कोई भी सबसे पेले होली पे दाद खाज खुजली देबे टिप्‍पणी में आएगो उसको सिबना की पुस्‍तक 'अंधेरी रात की चिमनी' दी जाएगी। चिमनी अलग से दी जाएगी और किताब अलग से। सूचना समापित।

sarvjeet

काय कि जे भी पेली बार आ रइ हेंगीं तो जा लाने जे तलवार लेके आईं हैं कि कोऊ अगर दाद खाज ना दे तो तलवार दिखा दिखा के अपनी घझल पे दाद खाज ले लेंगीं।

सर्वजीत सर्व

भीगी हुई आँखों को, मैं हंसना सिखा दूँ तो..?
ग़म सबसे छुपाने की, तरकीब बता दूँ तो ..?

है नूर सा उस रुख पर ,शोखी भी हया भी है
मैं रंग मुहब्बत  का, थोड़ा सा लगा दूँ तो ..?

फागुन की हुई आहट ,दर खोल दिया मैंने
फूलों से भरी चादर, आँगन में बिछा दूँ तो ..?

जिन आँखों ने शायद, कोई ख़्वाब नहीं देखा
इक ख़्वाब तिरे जैसा, इनको भी दिखा दूँ तो ..?

कुछ बोल न पाऊं मैं , जब पास हो वो मेरे , 
धड़कन मैं मेरे दिल की, तब उसको सुना दूँ तो..?

क्यूँ चाँद ये शरमीला, अब छत पे नहीं आता
आँचल से अगर अपना, चेहरा मैं छुपा दूँ तो..?

रख रात के शाने पे, सर अपना वो सोया है 
चुपके से कहो आ कर, गर इसको जगा दूँ तो ..?

हमें तो इत्‍ती सी बात पता हेगी कि आपने उते ''दुनिया भर की किताब मेला'' में भोत ही अच्‍छा सरसों का साग और मक्‍का की रोटी खिलाई थीं। अब झूठ तो हम कभी बोलते नहीं सो जे बात कि सरसों की साग जो थी वो इस घझल से लाख गुना अच्‍छी थी। नइ नइ जे बात नइ है कि घझल में कोनो खराबी है। नइ नइ आप तो बुरा मान रहीं हेंगीं। हमने नहीं कहा कि घझल ख्‍राब है हमने तो इत्‍ती सी बात कही है कि सरसों को साग जियादा अच्‍छा था। अब देखो जा में बुरा मानने की कोनो बात नहीं हेगी। आपकी घझल पे दाद खाज खुजली हम सब कुछ दे रए हैं पर बात क्‍या है कि सरसों की साग की तो बात ही अलग थी। तो हम मन में सोच सरसों के साग को रए हैं और दाद घझल पे दे रए हैं।

सूचना - काय कि हमाए गांव के लोग हमसे के रए हैं कि हम अपने गांव के सबसे सुंदर भ्‍यक्ति हेंगे। पर फिर भी आप सबके आसिर्वाद की जिरूरत हेगी। हम जो हैं हम फिल्‍मों में काम करबे जा रय हेंगे। एक फिल्‍म में हमको काम भी मिला है। भोत सारे घोड़ों के सीन में हम खाल पहन के घोड़े बनेंगे।

तो जे तो हो गई आज की बात । कल मिलते हैं कुछ और लोग लुगाइन के साथ । तब तक देखते रहिए खाज तक।

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