मित्रों एक वर्ष बीत गया और दीपावली का त्योहार एक बार फिर से आ गया है। इस बीच इस ब्लॉग ने भी अपनी स्थापना के दस वर्ष पूरे कर लिए। वर्ष 2007 में इस ब्लॉग की शुरूआत हुई थी माह अगस्त के अंति सप्ताह में, इस प्रकार ये दस वर्ष हँसते खेलते बीत गए। आई पी एल से उधार लेते हुए कहता हूँ – ये दस साल आपके नाम। बीतना समय की प्रकृति है और वह बीतता ही है। पीछे छोड़ जाता है कई सारी खट्टी मीठी यादें। इस बीच कई रिश्ते बने, कई लोग मिले जिनसे मिलकर ऐसा लगा कि जन्मों जन्मों का संबंध है। एक परिवार जैसा बन गया। इस परिवार ने मिलकर सारे त्योहार मनाए। फिर ये भी हुआ कि कुछ लोग दूर हो गए। कुछ को ईश्वर ने अपने पास बुलाकर हमसे दूर कर दिया तो कुछ मन से दूर हो गए। जो दूर हो गए वे भी हमारे ही हैं। असल में सच कभी भी निरपेक्ष सच नहीं होता, वह हमेशा सापेक्ष सच होता है। हर व्यक्ति का अपना सापेक्ष सत्य होता है। इसलिए ज़रूरी नहीं होता कि जो किसी एक का सापेक्ष सच है वो दूसरे का भी हो। कोई भी सत्य पूर्ण या अंतिम सत्य नहीं होता, उसे सापेक्ष होना ही होता है। दुनिया में सापेक्ष सत्यों की ही लड़ाई है। हम सब अपने-अपने सापेक्ष सचों को अंतिम मान कर उसी को दूसरों से भी मनवाने की कोशिश में लगे रहते हैं। और नतीज़ा यह होता है कि रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है।
आइये आज बात करते हैं दीपावली के त्योहार की। दीपावली का त्योहार एक बार फिर से आ गया है और एक बार फिर से हम सब सब कुछ भूल कर कुछ दिनों के लिए उत्सव की मस्ती में डूबने को तैयार हो चुके हैँ। दस सालों से इस मस्ती का एक और ठिकाना भी होता है और वो होता है इस ब्लॉग पर आयोजित होने वाला यह तरही मुशायरा। सब लोग जिस उमंग से जिस उत्साह से इसमें भाग लेते हैं उसीके कारण यह मुशायरा हर वर्ष यादगार हो जाता है।
कुमकुमे हँस दिए, रोशनी खिल उठी
इस बार बहर वही ली जा रही है जो होली पर भी ली गई थी। असल में जब दीपावली की तरही का विचार आया तो सबसे पहले जो मिसरा दिमाग़ में बना वो यही था। इसके बाद बहुत सोच विचार किया कि कुछ और कर लिया जाए लेकिन बहरे मुतदारिक मुसमन सालिम के अलावा कोई और ठौर नहीं दिखा। तो फाएलुन फाएलुन फाएलुन फाएलुन पर ही इस बार का तरही मुशायरा करने का तय कर लिया। रोशनी में जो ई की मात्रा है वो हमारे काफिये की ध्वनि होगी मतलब ज़िंदगी, शायरी, रोशनी आदि आदि। और खिल उठी रदीफ होगा।
तो यह है दीपावली का होमवर्क अभी काफी दिन हैं तो उठाइये काग़ज़ कलम और तैयार हो जाइए। मिलते हैं दीपावली के मुशायरे में।