गुरुवार, 23 मार्च 2023

ईद पर तरही मुशायरे के लिए मिसरा

दोस्तो हमारे भारत में सबसे अच्छी बात यह है कि यहाँ पर हमारे पर्व, त्यौहार हमें अकेले या उदासी में घिरने ही नहीं देते। एक त्यौहार जाता है तो एक आ जाता है। शायद हमारे पूर्वजों ने इनका निर्धारण इस प्रकार किया था कि इंसान को एकाकीपन की एकरसता से दूर किया जाए। अब देखिए न होली का त्यौहार विदा लेकर गया है तो एक साथ दो पवित्र दिन आ गये हैं। इधर रमज़ान शुरू हो रहे हैं तो उधर नवरात्रि का पर्व भी। दोनों ही कठिन व्रतों के पर्व हैं। आराधना के, इबादत के पर्व हैं। इस बार रमज़ान मार्च में ही प्रारंभ हो गये हैं। अप्रैल के अंत में ईद होगी। बरसों पहले की याद है जब मेरी परीक्षाओं के समय में ईद आई थी। असल में इस्लाम तथा हिन्दू, दोनों धर्मों में चाँद के हिसाब से वर्ष का निर्धारण होता है। लेकिन चंद्रवर्ष होता है 354 दिनों का और सूर्य वर्ष होता है 365 दिनों का। हिन्दू धर्म में अधिक मास की व्यवस्था है  जिससे सूर्य और चंद्र वर्ष में जो 11 दिनों का अंतर है उसे तीन वर्ष बाद बैलेंस कर दिया जाता है। हर तीन वर्ष (असल में 32 महीने 16 दिन बाद) बाद एक अधिक मास आ जाता है तीस दिनों का, जो पीछे हो रहे चंद्र कैलेंडर को एक बार फिर सूर्य कैलेंडर से सम कर देता है। इस्लामिक कैलेंडर में भी हज़रत मोहम्मद साहब के समय ऐसा ही होता था (ऐसा मैंने पवित्र क़ुरान की भूमिका में पढ़ा है) लेकिन बाद में इस्लाम में अधिक मास की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। इसके कारण यह होता है कि चंद्र और सूर्य कैलेंडर का सम नहीं हो पाता और चंद्र कैलेंडर सूर्य कैलेंडर से 11 दिन पीछे हर वर्ष होता जाता है। लगभग 32 से 33 साल लगते हैं एक चक्र को पूरा होने में। मतलब यह कि अगर 1990 में मार्च-अप्रैल में पवित्र रमज़ान का महीना आया होगा, तो अब 2023 में मार्च अप्रैल में आ रहा है। हिन्दू धर्म में इसीलिए ऐसा होता है कि होली का पर्व पहले मार्च के तीसरे सप्ताह में आता है, अगले वर्ष दूसरे सप्ताह में, फिर पहले सप्ताह में आता है, इससे पहले कि यह चौथे वर्ष फरवरी में पहुँचे, एक अधिक मास आ जाता है और होली एक बार फिर मार्च के अंतिम सप्ताह में पहुँच जाती है। जैसे इस बार होली मार्च के प्रथम सप्ताह में है और इसी वर्ष अधिक मास, जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा। इस कारण 2024 में होली एक बार फिर 25 मार्च मतलब अंतिम सप्ताह में पहुँच जायेगी। यदि इस्लाम में भी अधिक मास की यह व्यवस्था हो तो ईद भी इसी प्रकार सूर्य कैलेंडर के हिसाब से सम पर बनी रहे।

ईद पर तरही की परंपरा इस ब्लॉग पर रही है, तो आइए इस बार उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ईद के मुशायरे की तैयारी में लिए मिसरा घोषित किया जाये। इस बार बहुत प्रचलित बहर में यह मिसरा कहा गया है। बहरे-हज़ज मुसमन सालिम एक बहुत ही प्रचलित बहर है, जिस पर बहुत ग़ज़लें कही जाती हैं। यह एक बहुत मधुरता से गायी जाने वाली बहर है, जिसका तरन्नुम भी बहुत शानदार होता है। तो इस बार हम इसी बहर पर काम करेंगे।

हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है

जैसा कि आपको बहर से ही पता चल रहा है कि 1222-1222-1222-1222 के वज़्न पर मिसरा है। इस बार मिसरे में रदीफ़ है “है” और क़ाफ़िया है “अर” की ध्वनि जैसे घर, डर, बाहर, अंदर, शायर, पत्थर, समंदर, मुक़द्दर, मुनव्वर, मतलब 2 के वज़्न पर जैसे “घर, डर”, 22 के वज़्न पर “बाहर, मंज़र”, 122 के वज़्न पर  “समंदर, मुनव्वर” या 2122 के वज़्न पर  “लाव-लश्कर” जैसे आप क़ाफ़िये ले सकते हैं। 

पिछली बार कुछ लोगों ने कहा था कि बहर के साथ कुछ प्रसिद्ध गीत भी दिये जाएँ ताकि पहचानने में आसानी हो तो इस बार बार इस बहर के कुछ प्रसिद्ध गीत-

बहारों फू - ल बरसाओ - मेरा महबू - ब आया है

1222-1222-1222-1222

या फिर एक और गीत यह भी है-

ख़ुदा भी आ – समाँ से जब – ज़मीं पर दे - खता होगा

1222-1222-1222-1222

सोमवार, 13 मार्च 2023

आइए आज मनाते हैं बासी होली भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल के साथ

इस बार मिसरा कुछ कठिन होने के कारण प्रतिभागियों की संख्या कम ही रही। उस पर यह भी हुआ कि रदीफ़ और क़ाफ़िया का मेल भी ज़रा कठिन था। असल में इस बार इस बात का ख़तरा बहुत ज़्यादा था कि ज़रा सी असावधानी से रदीफ़ असंबद्ध हो जाएगा। मतलब यह कि उसका पूरे मिसरे से कोई संबंध ही नहीं बचेगा, उसके बिना भी मिसरा मुकम्मल रहेगा। कुछ शायद यह भी कारण रहा और य​ह भी कि इस बार समय भी कुछ कम दिया गया तरही के लिए। जो भी हो फिर भी कई लोग आ गए और मुशायरा हो गया ठीक प्रकार से। हाँ इस बार आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी पहली बार अनुपस्थित रहे हैं, जबसे हमने तरही प्रारंभ की है तब से ऐसा कभी नहीं हुआ। उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता हो रही है, यदि कोई मित्र उनके बारे में जानकारी प्रदान कर पाएँ तो बहुत अच्छा। उनको किए गए मेल का भी उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है।
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
आइए आज मनाते हैं बासी होली भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल के साथ।
भभ्भड़ कवि भौंचक्के
मैं भी ख़तरे में हूँ साथी जब तक तू ख़तरे में है
जुम्मन कैसे चैन से सोये गर अलगू ख़तरे में है
सब अपना सुख-दुख बाँटें यह उनको है मंज़ूर नहीं
पीर-पराई में बहता जो वह आँसू ख़तरे में है
धीरे-धीरे बढ़ता ही आता है नफ़रत का पानी
हम जिस पर हैं प्रेम का वह सुंदर टापू ख़तरे में है
गोदी वालों नया शगूफ़ा जल्दी से कोई छोड़ो
दाढ़ी वाले बाबा का काला जादू ख़तरे में है
कुछ भी नहीं किया हो लेकिन 'आएगा तो फिर वो ही'
उसको बस इतना तो कहना है- 'हिन्दू ख़तरे में है'
जो भी चमकेगा वह उनकी आँखों में चुभ जाएगा
चंदा, सूरज, हर इक तारा, हर जुगनू ख़तरे में है
स्याह 'घृणा-जल' का चलता व्यापार अयोध्या नाम से अब
अविरल, निर्मल, रामप्रिया, पावन सरयू ख़तरे में है
संसद-वंसद, नेता-वेता, मंत्री-वंत्री के कारण
चम्बल, बीहड़ ख़तरे में हैं, हर डाकू ख़तरे में है
हम सब आदम की संतानें यह 'सुबीर' तुम याद रखो
कोई है ख़तरे में तो अपना ही लहू ख़तरे में है

तो यह है भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल, यदि ठीक लगे तो दाद दीजिए नहीं तो कोई बाध्यता तो नहीं है। भभ्भड़ कवि का नया उपन्यास 'रूदादे-सफ़र' पढ़ना चाहें तो अमेज़न पर जाकर ऑर्डर कर सकते हैं। https://www.amazon.in/dp/B0BXP1VZXM


शनिवार, 11 मार्च 2023

आइए आज मनाते हैं बासी होली तिलक राज कपूर जी की सुंदर ग़ज़ल के साथ।

धीरे-धीरे आकर ट्रेन पकड़ने वालों की ग़ज़लें अब प्राप्त हो रही हैं। चूँकि हमारे यहाँ रंगपंचमी तक या यूँ कहें कि शीतला सप्तमी तक होली का पर्व मनाया जाता है। शीतला सप्तमी पर होली पर पानी छिड़क कर उस आग का ठंडा किया जाता है। और उसके साथ ही होली पर्व का समापन हो जाता है। इसलिए हम भी शीतला सप्तमी तक तो होली मना ही सकते हैं।
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
आइए आज मनाते हैं बासी होली तिलक राज कपूर जी की सुंदर ग़ज़ल के साथ।

तिलक राज कपूर
सोंधे सोंधे रिश्तों वाला हर जादू ख़तरे में है।
सम्बन्धों को मीठा करता हर पहलू ख़तरे में है।
फेर समय का कैसा है, जो था धांसू, ख़तरे में है
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है।
रंग भरी पिचकारी लेकर बच्चे घर में ढूंढ रहे
अम्मी को तो रंग डाला है अब अब्बू ख़तरे में है।
दरवाज़े पर हुड़दंगी हुरियारों की है भीड़ जमा
बचने की कोशिश करनी है, कर ले तू ख़तरे में है।
मिष्ठान्नों पर रंगबिरंगी पैकिंग का जादू देखा
गुड़धानी, गुझिया, खुरमा वाला जादू ख़तरे में है।
मतले में ही बहुत सुंदरता से रिश्तों के धीरे-धीरे छीजते जाने की कहानी बहुत सुंदरता के साथ कही है तिलक जी ने। सचमुच जो कुछ हमारे संबंधों को मीठा करता था, वह सब कुछ अब ख़तरे में ही है। हुस्ने मतला में बहुत अच्छे से गिरह बाँधी गई है। अम्मी और अब्बू को रंग लगाने की बच्चों की कोशिश का प्रयोग अगले शेर में दिल को ख़ुश कर रहा है। और होली का पूरा चित्र खींच रहा है अगला शेर जिसमें होली के हुरियारों की पूरी भीड़ दरवाज़े पर जमा है और बचने वाला बचने की कोशिश में लगा हुआ है। अंतिम शेर में एक बार फिर होली के समाप्त होते रीति-रिवाजों की बात कही गई है। सचमुच अब ऐसा ही लगता है कि होली का जादू अब ख़तरे में ही है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

आज तिलक जी की ग़ज़ल ने बासी होली का रंग जमा​ दिया है। आप भी दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल का जो फिलहाल अपने उपन्यास "रूदादे-सफ़र" के प्रचार में लगे हुए हैं।  https://www.amazon.in/dp/B0BXP1VZXM

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

आइए आज मनाते हैं बासी होली डॉ. रजनी मल्होत्रा नैयर, गुरप्रीत सिंह 'जम्मू' और सौरभ पाण्डेय के साथ।

होली का मुशायरा हर बार की तरह हर तरह के रंगों का गुलदस्ता लेकर आया है। रंगों का यह त्योहार उमंग और उल्लास से भरा होता है। इस बार हमने इस त्योहार की उन परंपराओं को मिसरे में लिया है, जो परंपराएँ पीछे छूटती जा रही हैं। उमंग और उल्लास से भरी हुई पुरानी होलियों की यादों को अपने मुशायरे में इस बार जगह प्रदान की है। होली असल में एक संधिपर्व होता है, जो ग्रीष्म और शिशिर के संधिकाल में आता है। जिस प्रकार दीपावली आती है, वर्षा और शिशिर के संधिकाल में। आइए आज अपने तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं।
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
आइए आज मनाते हैं बासी होली डॉ. रजनी मल्होत्रा नैयर, गुरप्रीत सिंह 'जम्मू' और सौरभ पाण्डेय के साथ।

डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर
धीरे धीरे सारे पर्वों का जादू ख़तरे में है
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
बिन सोचे धो डाला तूने चौराहे के गुंडों को
वो सब तुझ पर टूट पड़ेंगे अब तो तू ख़तरे में है
कितनी अंधी और करेगी भौतिकता की दौड़ हमें
जीवनदायी साफ़ हवा, पानी हर सू ख़तरे में है
बनकर आया जिन बच्चों को बेच दिया करती हैं जो
आया से पलने वाला वो  हर बाबू  ख़तरे में है
गैस, शुगर, बीपी सबको, कैसा सबका जीवन है ये
बेदम साँसें थमती धड़कन बेकाबू ख़तरे में है
मतले में ही गिरह को बहुत सुंदर तरीक़े से लगा कर उसी चिंता की तरफ़ इशारा किया गया है, जो चिंता हम सब की चिंता है कि हमारे जीवन से पर्व समाप्त हो रहे हैं। उसके बाद चौराहे के गुंडे को धोने के बाद के ख़तरे की तरफ़ ठिठौली में इशारा किया गया है। पर्यावरण की चिंता आज हमारी प्राथमिकताओं के होनी चाहिए, साफ हवा और पानी कब तक मिलता रहेगा यह सोचना चाहिए। अगले शेर में बिन माँ-बाप के पल रहे बच्चों के सिर पर मँडरा रहे ख़तरे की बात अच्छे से कही गई है। और अंतिम शेर तो जैसे हमारे समय का एक कड़वा सच है। बहुत ही शानदार ग़ज़ल वाह वाह वाह।

गुरप्रीत सिंह 'जम्मू'
जानवरों के घर, उनके पुरखों की भू खतरे में है
जंगल की तो बात ही छोड़ो अब तो ज़ू खतरे में है
तुझ को लगता है सरहद के पार अदू खतरे में है
अपना मुस्तकबिल तो देख ले भईए तू खतरे में है
माली को बस एक ही रंग के फूल चाहिएं गुलशन में
यानी सब फूलों की मिली जुली खुशबू खतरे में है
राजा जी की सोच से सब का सहमत होना है लाज़िम
जो उसके विपरीत दिखेगा वो पहलू खतरे में है
जब खतरे में होती है नेताओं की कुर्सी तो वो
चिल्लाते हैं मुस्लिम खतरे में, हिंदू खतरे में है
देश की जनता धीरे धीरे जाग रही, हक मांग रही
अब सत्ता और सत्ता का हर इक पिट्ठू खतरे में है
आप गुरु जी ठीक ही फरमाते हैं, सच्ची बात है ये
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू खतरे में है
उसके पीछे पड़ने वाला है सारा सरकारी तंत्र
उसने सच तो बोल दिया पर अब 'जम्मू' खतरे में है
मतले में पर्यावरण की चिंता पर बहुत अच्छे से बात कही गई है। और हुस्ने-मतला में अदू की चिंता छोड़ कर अपना घर बचाने की सलाह सुंदरता से दी गई है। एक ही रंग के फूलों वाली बात क्या शानदार कटाक्ष है हमारे आज के रहनुमाओं पर, ख़ूब। और राजाजी की सोच से सहमति वाला इसी रंग का अगला शेर भी एकदम सटीक प्रहार है, कमाल। कुर्सी जब ख़तरे में आए तो हिंदू मुस्लिम करने की चाल को अगले शेर में बख़ूबी उजागर किया गया है। देश की जनता के जागने और हक़ माँगने पर इतना ही कहा जा सकता है... आमीन। गिरह का शेर क्या नए तरीक़े से लगाया गया है, एकदम बातचीत के अंदाज़ में, कमाल कमाल। और मकते का शेर भी हमारी वर्तमान सत्ता की कार्यप्रणाली को एकदम खोल कर सामने ला रहा है। वाह वाह वाह, शानदार ग़ज़ल।

सौरभ पाण्डेय
छोड़ो यारा क्या कहना किनके पहलू खतरे में हैं
भ्रष्ट प्रशासक, गुंडे नेता, खल-साहू खतरे में हैं
सब ही चाहें चैन-अमन की बंसी बाजे गली-गली
चैन-अमन के अर्थ मगर, सुन लो दद्दू, खतरे में हैं
एक समय था मिलजुल फगुआ खेल-खेल सब गाते थे
फोन-मुबाइल से त्यौहारों के जादू खतरे में हैं
अब तक नदिया बेचारी थी, लेकिन नाम कमाई थी
अब तो जल, जल-जीवन क्या, तट औ’ बालू खतरे में हैं
सूने हैं चौपाल बगीचे संस्कारों के ढंग गजब
रंग अबीर गुलाल फाग रसिया टेसू खतरे में हैं
पत्रों में तब हाल दिलों का अक्षर-अक्षर चूता था
मैसिज की अब होती भाषाएँ चालू, खतरे में हैं
अपने-अपने सूबे के सब राजे क्या, महराजे हैं
लेकिन अब मनबढ़ुओं के सब टिम्बकटू खतरे में हैं
मतले में ही विरोधाभास के साथ कटाक्ष को अच्छे से पिरोया गया है। अगले शेर में चैन-अमन को लेकर एक बार फिर बहुत अच्छे क़ाफ़िये का प्रयोग करते हुए ग़ज़ल के अंदाज़ में बात कही गई है। मोबाइल के आने से पर्वों का आनंद किस प्रकार कम हो रहा है उसको लेकर पूरी चिंता के साथ अगला शेर सामने आता है। प्रकृति का दोहन करता मानव और नदी से बालू निकाल कर पर्यावरण को असंतुलित करता इंसान, अगला शेर हमारे आने वाले भयावह कल की चेतावनी के रूप में है। अगला गिरह का शेर छीजते हुए रिश्तों की बात को सुंदरता के साथ कह रहा है। पत्र और सोशल मीडिया मैसेज के बीच का अंतर बताता हुआ अगला शेर अंदर से भावुकता पैदा कर रहा है। और अंतिम शेर एकदम तीखे तीर की तरह पार उतर रहा है। वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।

तो आज के तीनों रचनाकारों ने होली का रंग जमा दिया है। आप भी दाद दीजिए और होली का आनंद लीजिए। बासी होली मनाने इस बार भभ्भड़ कवि भौंचक्के भी आ सकते हैं। फ़िलहाल भभ्भड़ कवि भौंचक्के अपने इस नये उपन्यास 'रूदादे-सफ़र' के प्रमोशन में जुटे हैं, जिसकी अमेज़न पर प्रीबुकिंग इस लिंक पर प्रारंभ हो चुकी है-  https://www.amazon.in/dp/B0BXP1VZXM पढ़ने की इच्छा हो तो पिता-पुत्री के भावनात्मक संबंधों पर आधारित यह उपन्यास आप भी बुक कर सकते हैं। 







मंगलवार, 7 मार्च 2023

आइए आज मनाते हैं होली गिरीश पंकज, धर्मेंद्र कुमार सिंह, सुधीर त्यागी, संजय दानी और रेखा भाटिया के साथ।

दोस्तों इस बार बहुत व्यस्तता रही है, और शायद इस बार व्यस्तता सभी की रही है, इसलिए इस बार तरही पर रचनाएँ बहुत कम आई हैं। इसका कारण यह भी हो सकता है कि इस बार का मिसरा थोड़ा कठिन सा है। सबसे पहले तो इसकी बहर ही कुछ उलझन पैदा कर रही है, ऐसा कुछ लोगों ने बताया। उसके बाद इस बार का क़ाफ़िया और रदीफ़ भी थोड़ी उलझन कर रहे हैं। ख़ैर जो भी हो, कुछ शायरों ने तो अपनी रचनाएँ भेजी हैं, जिनके साथ हम होली का यह तरही मुशायरा मनाएँगे। मैं भी इस बार बहुत थकान में हूँ। आज ही पुस्तक मेले से लौट कर आया हूँ, कल होली है इसलिए आज ही यह तरही कर रहा हूँ। हर बार की तरह होली की पोस्ट लगाने की कोशिश की, लेकिन थकान ने रोक दिया। ख़ैर जो है जैसी है, होली तो हमको मनानी ही है। यह भी तय है कि बहुत से लोग बाद में अपनी ग़ज़लें भेजेंगे, जिनके साथ हम होली का बासी तरही मुशायरा मनाएँगे।


"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
आइए आज मनाते हैं होली गिरीश पंकज, धर्मेंद्र कुमार सिंह, सुधीर त्यागी, संजय दानी और रेखा भाटिया के साथ।

गिरीश पंकज
प्यार-मोहब्बत-भाईचारा अब हर सू ख़तरे में है
इतने बंट गए लोग यहाँ हिंदी-उर्दू ख़तरे में है
मत इतना निश्चिंत तू हो के आग लगी है दूर कहीं
तुझ तक भी आग ये पहुँचेगी बन्दे सुन तू ख़तरे में है
महंगाई की डायन बढ़ती चली आ रही है देखो
रामभरोसे, राधा, माधव और ननकू ख़तरे में है
ये विकास की नई गन्दगी नष्ट करेगी दुनिया को
नीलगगन बस बचा हुआ है अभी तो भू ख़तरे में है
नफरत की आंधी में अब तो उत्सव भी रोते पंकज
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”

 मतले में ही बहुत अच्छे से हमारी आज की सबसे बड़ी समस्या को चित्रित किया गया है। हिन्दी और उर्दू के बीच की समस्याएँ दोनों के लिए ही ख़तरा हैं। और अगला शेर भी उसी क्रम को आगे बढ़ाता हुआ है कि दूसरे के घर की आग को देख कर निश्चिंत मत रहिए। और उसके बाद महँगाई की डायन के प्रकोप से काँपते हुए घरों की बात है। फिर विकास की गंदगी से नष्ट होते हुई दुनिया को बहुत अच्छे से शेर में कहा गया है। मकते के शेर में गिरह बहुत सुंदरता के साथ बाँधी गई है। वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।


धर्मेन्द्र कुमार सिंह
जनता समझ रही बस पूँजी का जादू ख़तरे में है
कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है
झेल रहे इस कदर प्रदूषण मिट्टी, पानी और हवा
रंग, अबीर, गुलाल, फाग रसिया टेसू ख़तरे में है
इनके बिन दुनिया में सबकुछ रंगहीन हो जाएगा
भाईचारा, प्यार, वफ़ा इनका जादू ख़तरे में है
मालिक निकला चोर उचक्का दुनिया ने मुँह पर थूका
नौकर बोल रहा मेरा सोना बाबू ख़तरे में है
बेच दिया उपवन माली ने कब का अब तो ये लगता
बंधन में हैं फूल और उनकी ख़ुश्बू ख़तरे में है
जिसने अपनी छाती से ही तोपों का मुंह मोड़ दिया
नोट कुतरते चूहों को लगता बापू ख़तरे में है
बोझ उठाकर पूंजी सत्ता का बेचारा वृद्ध हुआ
मारा जाएगा `सज्जन’ अब तो टट्टू ख़तरे में है

 वाह क्या ग़ज़ब किया है मतले के शेर में जनता का नादानी पर बहुत ही सुंदरता के साथ कटाक्ष किया गया है। और अगले ही शेर में पर्यावरण की बात को बहुत अच्छे से गिरह में बाँधा गया है। सच कहा गया कि प्यार वफ़ा भाईचारा इन सबके बिना सच में रंगहीन हो जाएगी दुनिया। मालिक और नौकर वाले शेर में क्या छुपा कर व्यंग्य किया गया है, बहुत ख़ूब। माली, उपवन और फूलों का शेर देश के आज के हालात का पूरा ब्यौरा दे रहा है, वाह। नोट कुतरते चूहों के साथ बापू का क़ाफ़िया सुंदरता के साथ आया है। और टट्टू तो कमाल आया है मकते में। वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।


डॉ. सुधीर त्यागी
फागुन में गदराए फूलों की ख़ुशबू ख़तरे में है,
ढोल, नगाड़े, ताशे अब सब का जादू ख़तरे में है।
फीकी रंगत त्योहारों की बाज़ार सभी पे हावी,
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है।
पस मंज़र है एक समंदर खोई-खोई आँखों में,
बर्फ़ जमी है आँखों से दिल तक आँसू ख़तरे में है।
इश्क़ निभाना इश्क़ गँवाना खुश होकर लम्हे जीना,
किस पहलू की बात करूँ मैं हर पहलू ख़तरे में है।
रोशनी तेरे खास मुहाफिज़ जलते कुमकुमे लील गए,
दीयों की क्या बात करें अब तो जुगनू ख़तरे में है।

 मतले में ही होली का पूरा चित्र प्रस्तुत किया गया है। वह होली जो हमारी स्मृतियों में बसी हुई है उस होली का पूरा चित्र। और अगले ही शेर में गिरह का शेर बहुत ही सुंदरता के साथ बना है। समंदर का आँखों में होना और उसके बाद बर्फ़ तथा आँसू का पूरा चित्र बहुत ही कमाल का है। इश्क़ में होना और इश्क़ में नहीं होना फिर याद करना, वहा क्या ही सुंदर तरीक़े से कहा गया है सब कुछ। और अगले शेर में हमारे पिछली दीवाली वाले मिसरे को यहाँ लाकर यादों को ताज़ा किया गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।


डॉ संजय दानी दुर्ग
रंग अबीर गुलाल फाग रसिया टेसू ख़तरे में है।
अपने त्यौहारों की बगिया की ख़ुशबू ख़तरे में है।
अब सरकार शराब को पूरी तरह बंद करेगी जल्द,
मुझको लगता है के मोहल्ले के मंदू ख़तरे में है।
तूने छह बहनों वाली औरत से शादी क्यूँ कर की,
मैं दावे से कह सकता हूँ सुन अब तू ख़तरे में है।
जब से बेहद तेज़ उजाले देने वाले बल्ब हुए,
तब से अपना चमकीला साथी जुगनू ख़तरे में है।
जबसे शहर की जनता पनीर की दीवानी हो बैठी है,
तब से सदा बहार हमारा ये आलू खतरे में है। 

सच कहा है कि अपने त्यौहारों की बगिया की सारी ख़ुश्बुएँ अब ख़तरे में ही हैं। अच्छे से मकते में ही गिरह को बाँधा गया है। होली के हास्य को अगले ही शेर में शराबबंदी और मंदुओं की परेशानी में चित्रित किया गया है। और हास्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए छह बहनों वाली महिला से शादी करने की बात को कहा गया है। बल्बों की दुनिया में जुगनुओं के सामने आ रही लुप्त होने की समस्या को अगला शेर अच्छे से कह रहा है। और पनीर के सामने आलू के संकट में घिर जाने की बात भी अच्छे से कही गई है। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।


रेखा भाटिया
आज बलम हुए हैं रसिया वीकेंड का दिन है भैया
देख बगिया में डाली-डाली पंछी, पीली-पीली धूप
देख पेड़ों पर खिले जामुनी, सफ़ेद, गुलाबी फूल
आया बसंत दिन हुए नरम-गरम याद आया फागुन
मन पंछी फाग गा रहा परदेस में देस याद आ रहा
वहाँ पहाड़ों पर खिले होंगे टेसू, चंपा, बसंत रानी
होली आते छा जाती थी बसंत उत्सव की मस्ती
खिलता तन-मन साजन-सजनी खेलते प्रेम होली
भर पिचकारी प्रेम के रंगों की रूठने -रिझाने की
पकड़े गए आया खतरे में रंग गुलाल, अबीर का
वही सजनी बनी पत्नी निष्ठावान साजन पति की
आज बलम हुए हैं रसिया वीकेंड का दिन है भैया
आ सजनी मिलकर यादों को थोड़ा ताज़ा कर लें
आ दो चुंबन धर दूँ, गालों पर थोड़ा गुलाल मल दूँ
देख धरा पर, मौसम का मिज़ाज़ है बहुत यौवन पर
आँखें तरेर इठलाती इतराती अकड़ कर बोली पत्नी
ओ बाबू दूर हो, तुम संग न खेलूँ मैं रंग गुलाल, अबीर
ऑर्गेनिक लाल रंग मेरे बालों का, मँहगा है मैनीक्योर
फूलों वाला इत्र, लोशन लगाकर मुझे न भाये रंग निगोड़े
छोड़ ठिठोली शाम होने आई है अभी तो पार्टी टाइम है
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है भैया 

 होली का पूरा चित्र प्रस्तुत कर रही है यह कविता, जिस कविता में भाव भी हैं और हास्य भी है। जिसमें बसंत है, पहाड़ हैं, रंग है, धूप है। और इन बिम्बों को लेकर बहुत सुंदरता के साथ बात कही गई है। साथ ही प्रेमी के साथ छेड़छाड़, गालों पर गुलाल मल देने की बात और चुंबनों से होली मनाने की बात भी इस कविता में प्रेम के रंग लेकर आती है। और मैनीक्योर, ऑर्गेनिक लाल रंग के माध्यम से सहज हास्य भी उत्पन्न किया गया है। बहुत ही सुंदर कविता, वाह वाह वाह।

होली है भाई होली है रंगों वाली होली है। आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आज के पाँचों रचनाकारों ने होली का रंग जमा दिया है। आप भी दाद दीजिए। और यदि आगे रचनाएँ आती हैं, तो हम होली के बासी मुशायरे का भी आनंद लेंगे।

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