सोमवार, 29 जून 2009
रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से, कौन देता है कोई नहीं जानता लेकिन कोई है तो सही जो पुकारता है और कवि, शायर, कहानीकार उसको तलाशता रहता है ।
तरही मुशायरा - इस बार के तरही को लेकर कई अच्छी रचनाएं मिल रही हैं । सुधा ओम ढींगरा जी ने उस मिसरे को लेकर एक बहुत ही सुंदर कविता लिख भेजी है । कविता ऐसी है कि पलकों की कोरें नम हो जायें । कुछ ग़ज़लें भी बहुत जबरदस्त मिलीं हैं । दरअसल में इस बार का मिसरा हांट करने वाला मिसरा है । हम सबके, हम जो रचनाकार हैं हम सबके साथ ही ये होता है कि हमको ऐसा लगता है जैसे कोई हमें आवाज़ दे रहा है । कौन है हम भी नहीं जानते लेकिन आवाज़ सुनसान रातों में हम सुनते हैं । आवाज़ उस पार की, आवाज़ जो हमें खींचती है बुलाती है । ये ही आवाज़ कई बार रचनाकार के लिये पीड़ादायी हो जाती है । कभी कोई गुरुदत्त आत्महत्या कर लेता है तो कभी कोई मीनाकुमारी शराब में डूब जाती है तो कभी कोई मुकुल शिवपुत्र नैराश्य में समा जाता है । बच्चन जी की पत्नी का जब निधन हुआ तब वे भी उसी नैराश्य में थे और उसी नैराश्य को उन्होंने कविता में ढाल दिया । मुकुल शिवपुत्र जी की भी पत्नी का निधन असहज परिस्थितियों में हुआ और वे टूट गये । बात वही है कि कोई आवाज़ देता है उस पार से । मेरी हमेशा से इच्छा रही है कि मैं किसी ऐसे शहर में रहूं जहां नदी हो, तालाब हो और पहाड़ हों । लेकिन मेरे शहर में ये तीनों ही नहीं हैं । मगर फिर भी रात के सन्नाटे में यूं लगता है कि नदी आ गई है और उस पार से कोई पुकार रहा है । शायद साहिर लुधियानवी का शेर है प्यास जो मेरी बुझ गई होती, जिन्दगी फिर न जिन्दगी होती । तरही का आयोजन होने ही वाला है सो जल्द रचनायें भेजें ।
बहरे मुजारे - बहरे मुजारे के बारे में हमने पिछली बार कुछ बातें कीं थीं और मैंने कहा था कि ये जो बहरे हजज की लगभग जुड़वां बहन है ये हजज जैसी ही है । किन्तु बहरे हजज जहां मुफरद बहर है वहीं ये मुरक्कब है । इसे रमल और हजज के एक एक रुक्न से बनाया गया है । 1222-2122-1222-2122
बहरे मुजारे की कई सारी उप बहरें हैं जिनमें एक है बहरे मुजारे मुसमन अखरब । ये भी गाई जाने वाली बहर है और इस पर काफी अच्छी ग़ज़लें कहीं गईं हैं । इसका वज़न होता है 221-2122-221-2122, बहर में चार रुक्न हैं इसलिये असका नाम होता है मुसमन और इसमें जो रुक्न है 221 जिसको कि हम मफऊलु कहते हैं वो होने के कारण इसके नाम में अखरब जुड़ गया है । बहर कव्वालियों में काफी उपयोग में लाई जाती है । कववाली के बारे में आप ये जानते ही होंगें कि कव्वाली में भी ग़ज़लें ही पढ़ी जाती हैं किन्तु गा कर पढ़ी जाती है । एक जमाने में फिल्मों में ऐसी कव्वालियां बनीं जो आज तक लोगों के जेहन में हैं । खैर तो ये है बहरे मुजारे जिसका कि वज़न है मफऊलु-फाएलातुन-मफऊलु-फाएलातुन । एक उदाहरण देखें जाना न छोड़ के तू यूं राह में कभी भी । मिसरा भले ही बहर में हैं लेकिन कहन का दोष है । मगर हम चूंकि बहर की बात कर रहे हैं सो ये बहरे मुजारे मुसमन अखरब का एक उदाहरण है । आशा है आपको समझ में आ गया होगा । चलिये अब इस पर कुछ ग़ज़लें तलाशिये और तकतीई करके भेजिये । या हो सके तो इस बहर पर एकाध शेर लिख कर कमेंट बाक्स में लगाइये । अगले पाठ में हम बातें करेंगें मुजारे की अगली उपबहर की ।
सूर्यग्रहण - आने वाली 22 जुलाई को हमारे देश में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है । ये पूर्ण सूर्य ग्रहण अपने तरह का अनोखा होगा । इस पूर्ण सूर्य ग्रहण की केन्द्रीय रेखा हमारे जिले से होकर जा रही है । हमारे जिले का ग्राम गूलरपुरा इस केन्द्रीय रेखा के ठीक नीचे आ रहा है ।यदि आप भी पूर्ण सूर्य ग्रहण का आनंद लेना चाहते हैं तो पधारें । हां मगर मानसून यदि मजा बिगाड़े तो हम कुछ नहीं कर पायेंगें । इस ग्रहण पर मैंने एक शोध पत्र तैयार किया है किसी खगोल विज्ञान की संस्था के लिये । जल्द ही उस शोध पत्र के कुछ हिस्से आपको भी पढ़वाता हूं । 22 जुलाई को सुबह सूर्य उदय के साथ ही ये ग्रहण लगेगा और पूर्ण सूर्य ग्रहण लगभग तीन मिनिट अवधि का होगा । गूलरपुरा सीहोर से लगभग तीस किलोमीटर है । वैसे सीहोर शहर में भी पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देगा । किन्तु ग्रहण की केन्द्रीय रेखा ( सेण्ट्रल लाइन आफ इकलिप्स) गूलरपुरा पर से होकर गुजरेगी । मेरा प्रयास रहेगा कि उस दिन गूलरपुरा में रह कर वीडियो शूटिंग करूं पूरे ग्रहण की ।
पहली बरसात - हमारे इलाके में मौसम की पहली बरसात हो गई है । रविवार को लगभग एक घंटे खूब बरसे बादल । नानी कहती हैं कि पहली बरसात में नहाने से घमोरियां मिट जाती हैं । सो हमने भी परी पंखुरी और मोहल्ले के बच्चों के साथ पूरे घंटे भर नहांने का आनंद लिया । जब तक छींकें नहीं आने लगीं । मुझे छत से गिरते पानी के नीचे खड़े होने में पहले भी मजा आता था और अब भी आता है । बरसात में नहाने का अपना ही आनंद होता है । संयोग ये था कि रविवार को बरसात हुई अगर किसी और दिन होती तो कौन नहा पाता । बच्चों को प्रकृति के पास रहना सिखाना चाहिये । उनको बरसात में भीगने का आनंद जरूर बताना चाहिये । बस यही सोच कर बरसात में एक बार जरूर आनंद लेता हूं बच्चों के साथ । पंकज उदास की गाई एक ग़ज़ल बहुत याद आती है । उसने मुझे ख़त लिक्खा होगा अश्कों से तनहाई में, आंख का काजल फैला होगा मौसम की पहली बारिश में ।
सप्ताह का गीत - ये गीत वैसे तो फिल्म पुराना मंदिर में किसी और गायक ने गाया था लेकिन उसीको जग पाकिस्तानी गायक सज्जाद अली ने गाया तो रंग ही बदल गया । मूल गीत से जियादह अच्छा कवर वर्शन हो सकता है ये इस गीत को सुन कर पता लगता है । इस गीत के साथ मेरी कई कोमल भावनाएं जुड़ी हैं । ये गीत आज भी मेरी आंखें नम कर देता है । इस गीत के बोल मुझे बहुत पसंद हैं । सज्जाद अली की आवाज़ भी बहुत मीठी है । आप भी सुनें ये गीत यहां
शुक्रवार, 12 जून 2009
ओम व्यास जी को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में ले जाया गया है, श्री अशोक चक्रधर जी के अनुसार मामूली सा सुधार भी दिख रहा है । आइये ओम जी के लिये प्रार्थना करें ।
वैसे तो प्रारंभ से ही श्री अशोक चक्रधर जी ओम जी को दिल्ली ले जाने के पक्ष में थे लेकिन भोपाल के पीपुल्स हास्पिटल के डाक्टरों ने उसकी इजाज़त नहीं दी । कल इंदौर के ख्यात न्यूरोसर्जन ने भोपाल आकर श्री ओम जी को देखा और उसके बाद श्री ओम जी को दिल्ली ले जाने की इजाज़त दे दी । जैसा मैंने पहले बताया था कि ओम जी के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पूरी गंभीरता बरत रही है । उसके पीछे एक कारण ये है कि मध्यप्रदेश के संस्कृति मंत्र श्री लक्ष्मीकांत शर्मा स्वयं भी काव्य प्रेमी हैं । वे पूरी रात मंच के सामने दरी पर बैठकर कविता का आनंद लेते हैं ।
अशोक चक्रधर जी और ओम जी के प्रम का मैं स्वयं साक्षी एक दो बार रहा हूं । अशोक जी को ओम जी गुरूदेव कह कर बुलाते हैं । ग्वालियर के एक कवि सम्मेलन में जहां मैंने ओम जी के संचालन में पहली बार काव्य पाठ किया था वहां पर संचालन करना था श्री अशोक चक्रधर जी को किन्तु उन्होंने मंच पर आते ही कहा ओम चलो माइक संभालों । ओम जी ने उत्तर दिया गुरूदेव आपके होते हुए मैं कैसे कर सकता हूं । संचालन को लेकर दोनों के बीच प्रेम भरी काफी बहस हुई और अंत में अशोक जी के आदेश को मानते हुए ओम जी ने संचालन किया । ओम जी ने पूरे संचालन के दौरान अशोक जी से पूछ पूछ कर संचालन किया । किसी कवि को बुलाने से पहले वे कागज की पर्ची पर कवि का नाम लिखकर अशोक जी के पास भेजते और उनसे स्वीकृति लेकर ही उस कवि को माइक पर बुलाते । ये अद्भुत दृष्य देखकर मैं दंग था । एक दो बार अशोक जी ने कहा भी ओम आप अपने हिसब से क्रम दे दो लेकिन ओम जी नहीं माने । गुरू शिष्य की ये जुगलबंदी देखकर मैं दंग था । अन्यथा तो होता ये है कि संचालन को लेकर तो कवियों में बाकायदा झगड़ा होता है कि हम करेंगें । ओम जी की विनम्रता और अशोक जी की सज्जनता देखकर काफी कुछ सीखने मिला उस दिन ।
अशोक चक्रधर जी से अभी बात हुई उन्होंने कहा पंकज ओम जी को अपोलो में ले आये हैं और यहां पर बहुत मामूली सा सुधार भी दिख रहा है । श्री चक्रधर जी उस समय अपोलो में ही थे और डाक्टरों के साथ ओम जी को लेकर चर्चा कर रहे थे । इसलिये मैंने भी अधिक बात करना मुनासिब नहीं समझा । किन्तु ये सुन कर तसल्ली मिली कि ओम जी की हालत में बहुत मामूली सा सुधार है । मामूली सा सुधार होने का मतलब है कि ईश्वर कुछ सुनवाई कर रहा है । कल अपोलो हास्पिटल की विशेष एयर एंबुलेंस ओम जी को लेने भोपाल आई थी और उनको लेकर भोपाल से दिल्ली रवाना हो गई । श्री ओम जी के इलाज का पूरा खर्च मध्यप्रदेश सरकार उठा रही है । श्री लक्ष्मीकांत शर्मा जी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं इस पूरे मामले को अपनी निगरानी में देख रहे हैं । अशोक चक्रधर जी दुर्घटना वाले दिन ही इस बात पर जोर दे रहे थे कि ओम जी को अपोलो अस्पताल ले जाया जाये । वे उस दिन भी अपोलो के संपर्क में थे । किन्तु उस दिन ये संभव नहीं हो पाया । अशोक जी उसके बाद से ही प्रयास में थे के ओम जी को दिल्ली लाया जाये । वैसे तो प्रदेश सरकार ने कहा है कि ओम जी को अगर विदेश भी भेजना पड़ा तो उसका खर्च भी सरकार उठायेगी ।
ग्वालियर के कवि सम्मेलन में सभी दिग्गज थे । ओम जी ने मुझे कमरे में बुला कर कहा पंकज सब बड़े नाम हैं इसलिये कवि सम्मेलन का प्रारंभ तुम से ही होगा । कवि सम्मेलन का प्रारंभ करना मुश्किल काम होता है । उन्होंने कहा कि चिंता मत कर मैं 20 मिनिट की भूमिका बांध के तुझे उतारूंगा । उस दिन ओम जी ने ग्वालियर में मेरी ससुराल को लेकर 20 मिनिट की ऐसी भूमिका मुझे लेकर बांधी की बाद में काव्य पाठ के दौरान मुझे खूब तालियां मिली । ऐसे हैं मेरे अग्रज ओम व्यास जी ।
और अंत में ये फिल्म हरी दर्शन का लता जी का ये गीत ओम जी के लिये आप सब भी मेरे साथ मिलकर ओम जी के लिये प्रार्थना करें ।
बुधवार, 10 जून 2009
और ये रहा तरही मुशायरे का हासिले मुशायरा शेर जिसका चयन किया है उस्ताद शायर और अरूज के विद्वान श्रद्धेय प्राण शर्मा जी ने । पढि़ये प्राण जी की एक पचास साल पुरानी ग़ज़ल ।
( अगर ये ब्लाग इंटरनेट एक्सप्लोरर में एरर दे तो इसे मोजिला फायर फाक्स या गूगल क्रोम में खोलें ।)
ओम व्यास जी की हालत अभी भी स्थिर है तथा डाक्टर अभी भी कुछ नहीं कह पा रहे हैं । सर पर, दोनों जबड़ों पर, आंख में तथा पैरों में घातक चोट होने के कारण वे अभी भी कोमा में हैं तथा वेंटीलेटर पर उनको रखा गया है । श्री ओम व्यास जी को देख कर लौट रहे वरिष्ठ कवि और प्रसिद्ध मंच संचालक श्री संदीप शर्मा कुछ देर के लिये मेरे पास रुके उनकी भाव भंगिमा ने बताया कि ईश्वर एक और अनर्थ करने के मूड में है । आइये ईश्वर से प्रार्थना करें कि अब वो बस करे । जानी बैरागी को अब आइ सी यू से हटा लिया गया है ये राहत की बात है । संदीप जी आते ही गले मिले और आंसू भरी आंखों से बोले पंकज भाई ये बहुत कठिन समय है हम लोगों के लिये ।
इस बार के तरही मुशायरे में बहर मुश्किल थी लेकिन फिर भी अच्छा काम उस पर हुआ । इस बार जज की कुर्सी पर उस्ताद शायर तथा इल्मे अरूज के विद्वान श्रद्धेय श्री प्राण शर्मा जी विराजमान थे तथा उन्होंने ही इस बार के हासिले मुशायरा शेर का चयन किया है ।
उस्ताद शायर तथा इल्मे अरूज़ के विद्वान श्री प्राण शर्मा जी तथा उनकी चर्चित पुस्तकें
प्राण जी के बारे में कुछ कहना सूरज को चराग दिखाने के समान होगा । फिर भी बता दूं कि 13 जून 1937 को वज़ीराबाद (अब पकिस्तान में) जन्मे प्राण शर्मा 1955 से लेखन में सक्रिय हैं । आप हिन्दी ग़ज़लों और गीतों में शब्दों के विलक्षण प्रयोग के लिए जाने जाते हैं । यही नहीं आपके ग़ज़ल विषयक आलेख और पुस्तकें भी चर्चा में हैं । ग़ज़ल कहता हूँ (ग़ज़ल संग्रह) तथा सुराही (मुक्तक संग्रह) इनकी प्रसिद्ध तथा चर्चित किताबें हैं । विश्व भर की सभी प्रमुख हिन्दी पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं । साहित्य कुंज पर आपका मुक्तक संग्रह सुराही पढ़ा जा सकता है जिसमें अधिकाँश मुक्तक १९६० -१९६२ के बीच में लिखे हुए हैं ।उनकी कविताओं को यहां पढ़ा जा सकता है । वे स्वयं अपने बारे में कहते हैं १९६५ में मैं uk में आया था । कई सालों तक मैं हिंदी साहित्य से कटा रहा, धन कमाने के चक्कर में । मुझे याद आता है कि १९६५ में में मैंने एक ग़ज़ल ( जो कादम्बिनी में छपी थी ) कही थी ।
उसका मतला था--
हरी धरती, खुले , नीले गगन को छोड़ आया हूँ
कि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन को छोड़ आया हूँ
कुछ सालों से फिर से लिखने-लिखाने में सक्रिय हुआ हूँ । ढलती उम्र है । चाहता हूँ कि कुछ अच्छा कह जाऊं.
प्राण जी ने अपने निर्णय के साथ जो पत्र भेजा है उसमें वे लिखते हैं
"तरही ग़ज़ल " का आयोजन मुझे बहुत जिआदा पसंद आया है । इस आयोजन से आप जो लड़कों और लड़कियों में ग़ज़ल कहने के बीज रोप रहे हैं, वह निस्संदेह एक ऐतिहासिक कार्य है । जनाब गौतम राजरिशी, नीरज गोस्वामी, समीर लाल समीर, प्रकाश सिंह अर्श, कंचन चौहान, अंकित सफर, रविकांत पांडे, दिगम्बर नासवा जैसे गज़लकार आपकी ही देन हैं । आपका ये "क्रांतिकारी "कदम है । आपका अनुसरण अब कई कर रहे हैं लेकिन आपका जो प्रयास है की हर कोइ ग़ज़ल सीख कर ही निकले आपके स्कूल से , ये बात अलग करती है आपको सबसे । कठिन लेकिन सराहनीय काम है आपका । मैं आपके इस काम से बहुत प्रसन्न हूँ । मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं । एक काम सौंपा आपने मुझे । मुश्किल है फिर भी करना ही पड़ेगा आपके आदेश से । सभी शायरों ने वज़न में शेर कहें हैं । ये प्रसन्नता की बात है । शायरों ने कुछ हट कर अपने अपने अनोखे अंदाज़ में कहा है ।
और सरताज शेर के बारे में श्री प्राण शर्मा जी लिखते हैं
इस शेर में "खामोशी " और "शोर " का तारतम्य खूब है । समर्पण की उद्दात भावना है । किसी बात को स्पष्ट शब्दों में व्यक्त न करके "प्रतीकों " से कहा गया है । बहुत खूब । प्रिय सुबीर भाई, कृपया शेर लिखने वाले को मेरी हार्दिक बधाई अवश्य दीजियेगा । चूँकि उसमें बहुत संभावनाएं हैं इसलिए उससे बहुत आशाएं भी हैं । ( प्राण जी ने शेर लिखने वाले इसलिये लिखा कि उनको भी नहीं पता था कि शेर किसका है । मैंने उनको बेनामी शेर भेजे थे चयन के लिये । शेरों के साथ ये नहीं लिखा था कि ये किसके शेर हैं । )
तो कौन सा शेर है हासिले मुशायरा शेर अंदाजा लगायें । बिल्कुल सहीं पहचाना । कंचन चौहान के शेर को प्राण जी ने हासिले मुशायरा शेर घोषित किया है । कंचन लखनऊ में रहती हैं और केन्द्र सरकार के कार्यालय में हिंदी अनुवादक के रूप में कार्यरत हैं । कंचन को शिवानी, अमृता प्रीतम और महादेवी वर्मा को पढ़ना भाता है । समूचे ब्लाग जगत की चहेती कंचन कभी कभी कोई ऐसी भी पोस्ट अपने ब्लाग पर लिख देती हैं जो सबको चौंका देती है । इस बार के मुशायरे का हासिले मुशायरा बनने वाला कंचन चौहान का शेर है ।
पाके शोर करता है, है अजब ये सागर भी
देके कुछ नहीं कहती है लहर की खामोशी
बधाइयां हो बधाइयां कंचन को
जीत की खुशी । मार लिया मैदान ।
प्राण साहब जैसे उस्ताद ने कंचन का चयन किया है खुश तो होना ही है ।
एक और शेर जो हासिले मुशायरा बनते बनते रहा गया तथा कुछ नंबरों से पीछे रहा है उसे भी प्राण जी ने नंबर दो पर रखा है । शेर है रविकांत का
साथ -साथ चलकर भी दूरियां न मिट पाईं
पीर की बनी पोथी हमसफर की खामोशी
रविकांत को भी बधाइयां । दूसरे नंबर पर रहना, पहले नंबर पर आने का जुनून पैदा करता है ।
आज के ये दोनों शेर ग़ज़ल की कक्षाओं की तरफ से ओमप्रकाश आदित्य जी, नीरज पुरी जी और लाड़ सिंह गुर्जर जी को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित । वे जहां भी होंगें इन नये रचनाकारों के फन को देखकर संतुष्ट होंगें की साहित्य की परंपरा को उनके बाद भी कायम रखने वाले युवा सामने आ रहे हैं । तीनों को हमारी श्रद्धांजलि ।
और अब विजेताओं के लिये आशीर्वाद स्वरूप आदरणीय प्राण जी ने अपने संग्रह से एक लगभग पचास साल पुरानी ग़ज़ल निकाल कर भेजी है आप सब इस ग़ज़ल का आनंद लें और मुझे आज्ञा दें ।
दिल पे क्या-क्या लिखा नहीं जाता
पर ये पन्ना भरा नहीं जाता
आग पर तो चला हूँ मैं भी पर
पानियों पर चला नहीं जाता
अपने बच्चे को कैसे माँ दे दे
दिल का टुकड़ा दिया नहीं जाता
मांगते हो तुम अपना दिल मुझ से
दे के तोहफा लिया नहीं जाता
यूँ तो सुनता हूँ शोर दुनिया का
शोर घर का सुना नहीं जाता
हंसने को जी तो चाहता है पर
क्या करूँ नित हंसा नहीं जाता
माफ़ उसको तो कर दिया मैंने
दिल से लेकिन गिला नहीं जाता
दूर कितनी निकल आये हैं हम
"प्राण" अब तो मुड़ा नहीं जाता
इस गज़ल़ को सुनने के बाद अब कुछ और नहीं कहा जा सकता । प्राण साहब का आभार हमारे लिये समय निकालने के लिये और नये लिखने वालों को प्रोत्साहित करने के लिये । और हां ये कि इस बार के तरही का मिसरा है रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से । मज़े की बात ये है कि इतना आसान लगा कि दो गज़लें तो आ ही चुकी हैं ।
सोमवार, 8 जून 2009
ओमप्रकाश आदित्य जी, नीरज पुरी जी और लाड़सिंह गुर्जर जी को ब्लाग जगत के सभी कवियों की ओर से श्रद्धांजलि, ओम व्यास ओम जी और जानी बैरागी जी के लिये हम ईश्वर से प्रार्थनारत हैं ।
मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग के कवि सम्मेलन विदिशा से भोपाल लौटते समय जिस इनोवा गाड़ी में श्री ओमप्रकाश आदित्य जी, श्री नीरज पुरी जी, श्री लाड़सिंह गुर्जर जी, श्री ओम व्यास ओम जी और श्री जानी बैरागी जी सवार थे उसको किसी अज्ञात वाहन ने सुबह साढ़े पांच बजे टक्क्र मार दी और टक्कर इतनी भीषण थी कि देश के वरिष्ठतम कवि दादा ओमप्रकाश जी आदित्य, हास्य के कवि श्री नीरज पुरी जी और श्री लाड़सिंह गुर्जर जी की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई और हास्य सम्राट ओमप्रकाश ओम इस समय भोपाल के पीपुल्स अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं साथ ही धार के कवि श्री जानी बैरागी जी भी गंभीर अवस्था में भर्ती हैं । समूचे ब्लाग जगत के कवियों की ओर से श्री आदित्य जी श्री पुरी जी और श्री गुर्जर जी को श्रद्धांजलि ।
छंदों के बेताज बादशाह दादा ओमप्रकाश आदित्य जी को मेरा प्रणाम और श्रद्धांजलि ।
अपनी अनूठी शैली के हास्य कवि और एक अच्छे मित्र भाई नीरज जी को श्रद्धांजलि ।
अपने ही क्षेत्र के श्री लाड़सिंह गुर्जर को मेरी श्रद्धांजलि ।
मन बहुत दुखी है इन सबके लिये क्योंकि सबके साथ कभी न कभी मंच पर रहने का मौका मिला है ।
इन के लिये मन ईश्वर से दुआ कर रहा है कि कुछ चमत्कार कर इन दोनों के प्राणों की रक्षा कर दे । आइये आप भी मेरे साथ श्री ओम व्यास ओम जी तथा श्री जानी बैरागी जी के लिये ईश्वर से प्रार्थना करें । ओम जी से मेरे पारिवारिक संबंध हैं तथा उनसे आत्मीयता का एक रिश्ता है । मुझे याद पड़ता है कि जब भी उनके संचालन में मैंने कविता पढ़ी है तो उन्होंने पूरे समय मेरा हौसला बढ़ाया है । आज जब वे भोपाल के पीपुल्स अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्षरत हैं तो शायद आपकी दुआएं ही चमत्कार कर सकती हैं ।
श्री ओम व्यास ओम जी श्री जानी बैरागी जी ।
मंगलवार, 2 जून 2009
मेरे कारोबार में सबने बड़ी इमदाद की, दाद लोगों की, गला मेरा, ग़ज़ल उस्ताद की
( सूचना: ये ब्लाग हो सकता है इंटरनेट एक्सप्लोरर में न खुले, अत: मोजिला या क्रोम में खोलें )
तरही मुशायरा ठीक से संपन्न हो गया है और अब चलिये आगे चलते हैं । ये बहुत अच्छी बात है कि इन दिनों ग़ज़ल की धूम मची हुई है । हर तरफ हर ब्लाग पर ग़ज़लों का चलन साफ दिखाई दे रहा है । और ये भी कि सीधे और सादे लहज़े में ग़ज़ल लिखने पर ज़ोर दिया जा रहा है । आज कुछ आगे बात करते हैं । आठ दस साल पहले जब मैं पूरी तरह से पत्रकार था तब मैं एक कालम लिखता था जिसमें बिंदुवार चर्चा होती थी आज कुछ वैसा ही करने की इच्छा है ।
मुजारे - बहरे मुजारे दरअसल में एक मुरक्कब बहर है । मुरक्कब बहर वो होती है जिसका सालिम बहर में एक से ही रुक्न नहीं होते बल्कि अलग अलग रुक्नों का योग होता है । जैसे बहरे हजज एक मुफरद बहर है, मुफरद बहर वो होती है जिसकी सालिम एक ही रुक्न से बनती है । हजज का स्थिर रुक्न है मुफाईलुन, अत: सालिम में केवल मुफाईलुन ही होगा । मतलब ये कि मुफरद बहर वो बहर जिसके स्थिर रुक्न एक ही प्रकार के होंगें और मुरक्क्ब वो जिसके स्थिर रुक्न एक से अधिक प्रकार के हो सकते हैं । जैसे बहरे मुजारे की ही बात करें तो इसके रुक्न इस प्रकार हैं मुफाईलुन-फाएलातुन-मुफाईलुन-फाएलातुन ये बहरे मुजारे की सालिम बहर है अर्थात दो प्रकार के रुक्नों से इसको बनाया गया है जिसमें से एक रुक्न है बहरे हजज स्थिर रुक्न और दूसरा है बहरे रमल का स्थिर रुक्न । एक और रोचक जानकारी ये है कि बहरे रमल और हजज ये सबसे लोकप्रिय बहरें हैं और बहुत सारा काम इन्हीं में हुआ है । अब जानें कि मुफरद और मुरक्कब बहरों में क्या फर्क है । फर्क दिखता है सालिम बहरों में
आइये तीनों बहरों की एक मुसमन सालिम बहर देखें
हजज़: मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन
रमल: फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन
मुजारे: मुफाईलुन- फाएलातुन- मुफाईलुन- फाएलातुन
इस प्रकार देखा जाये तो बहरे मुजारे वास्तव में बहरे हजज़ और बहरे रमल का वर्ण संकर है । बहरे मुजारे में जो रुक्न होते हैं वे भी लगभग वैसे ही होते हैं जो कि बहरे हजज़ में होते हैं । इनकी बात करते हैं अगले अंक में ।
तरही मुशायरा - तरही मुशायरा हो गया है और अब उसकी समीक्षा शीघ्र ही की जायेगी साथ ही हासिले मुशायरा शेर भी चयन किया जायेगा । वैसे एक मुश्किल सी बहर पर काम करना था और जिसे सभी ने बहुत मेहनत करके पूरा किया है । कई सारे शेर तो बहुत ही उच्च कोटि के निकल कर आये हैं ।पूरे मुशायरे की समीक्षा जल्द ही करने का प्रयास किया जायेगा । अब बात करते हैं ये कि आगे क्या किया जायेगा । तो आगे के लिये ये सोचा है कि तरही तो होगी किन्तु उसमें मिसरा किसी बनी हुई ग़ज़ल का नहीं लिया जायेगा बल्कि यूं ही हवा में से लिया जायेगा । जैसे इस बार के लिये जो सोचा है वो ये है रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से । ये यूं ही हवा से पकड़ी हुई पंक्ति है जो एक बार जेहन में आई थी और अच्छी लगी थी । बहरे रमल मुसमन महजूफ पर है ये और मेरे विचार से इसमें काफिया आर है और रदीफ से । वजन फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन है । बहुत आसान बहर और बहुत ही आसान रदीफ काफिया है इस बार क्योंकि पिछली बार कुछ कठिन हो गया था ।
यूनुस भाई का आभार - रेडियो वाणी वाले यूनुस भाई से मैंने कुछ गीतों को सुनने की इच्छा व्यक्त की थी । चार पांच गीत थे जिनको मैंने बरसों से नहीं सुना और कहीं मिलते भी नहीं है वे गीत । यूनुस भाई ने तुरंत ही इच्छा पूरी कर दी और बताया कि वे गीत उन्होंने 7 जून के छायागीत कार्यक्रम में शामिल किये हैं । छायागीत मेरा सबसे पसंदीदा कार्यक्रम है रेडियो का जो रात 10 बजे आता है । अब उलझन ये है कि उन गीतों को रेडियो से कम्प्यूटर में रिकार्ड कैसे किया जाये । आपमें से कोई जानता हो तो बताये या मेरे लिये उन गीतों को आने वाली 7 जून को रात 10 बजे विविध भारती के छायागीत से रिकार्ड कर सकता हो मैं आभारी रहूंगा । मैं अगर करना भी चाहूं तो पता नहीं शिवराज सिंह चौहान ( बिजली) मुझे करने देंगे या नहीं ।
नीरज जी का लाल नीला - वैसे तो नीरज जी का ब्लाग एक ऐसा मल्टीप्लैक्स है जिसमें जो भी फिल्म लगती है वो हिट हो जाती है । इस बार सोमवार को उन्होंने लाल नीला प्रयोग किया है । नीरज जी ने मुझसे पूछा कि यदि आप मिसरा उला लिखते तो कैसे लिखते । मैं आश्चर्य इस पर कर रहा हूं कि जब मैंने ग़ज़ल को देखा तो नीरज जी ने लगभग वही भाव रखे मिसरा उला में जो शायद मैं रखता । शब्दों का चयन हो सकता हो थोड़ा अलग होता या नहीं भी होता किन्तु मेरे विचार में भाव लगभग वही रहते जो नीरज जी ने रखे । हो सकता है मैं भी इस प्रकार की गिरह नहीं लगा पाता जैसी नीरज जी ने इस शेर में लगाई है
गहरी उदासियों में आई यूं याद तेरी, जैसे कोई सितारा टूटा हो झिलमिलाकर
सप्ताह का शेर- जनाब राहत इंदौरी साहब का ये शेर मुझे बहुत पसंद आता है ।
मेरे कारोबार में सबने बहुत इमदाद की, दाद लोगों की, गला मेरा, ग़ज़ल उस्ताद की
सप्ताह के चित्र - आज सप्ताह के चित्र में दो चित्र ये खास हैं मेरे लिये । कुछ सालों पहले जब मुझे सीहोर के कालेज में प्रेमचंद जयंति पर व्याख्यान के लिये बुलाया गया तो एक अजीब सा एहसास हो रहा था । उसी कालेज में व्याख्यान जहां पढ़ा हूं । उस पर ये कि ठीक उसी कमरे में आयोजन जहां पर कालेज के ठीक पहले साल की कक्षाएं लगती थीं । और ये भी कि ठीक सामने श्रोताओं में वे लोग बैठे थे जो उस समय मुझे पढ़ाया करते थे । वे वहां बैठे थे जहां मैं बैठता था और मैं वहां खड़ा होकर भाषण दे रहा था जहां वे होते थे । ये एक न भूलने वाला अनुभव था जो जीवन भर याद रहेगा । दूसरी पंक्ति मैं बैठी हैं उस समय मुझे केमेस्ट्री पढ़ाने वाली तथा मुझे सबसे जियादह स्नेह देने वाली मैडम सुनंदा ढोंक ( नीली साड़ी में ) ।
वैसे तो इच्छा है कि आपको हर सप्ताह एक सप्ताह का गीत भी सुनाऊं इस बार के लिये एक गीत भी छांट कर रखा था लेकिन उसको ठीक से होस्ट नहीं कर पा रहा हूं । पूर्व में जहां पर मैं होस्ट करता था वो सर्वर काम नहीं कर पा रहा । आप लोग कुछ सुझाएं कि आडियो होस्टिंग के लिये कहां पर प्रयास करूं । हो सके तो लिंक भेजें ।