श्री रमेश हठीला जी की कविता हंस में जनवरी के अंक में प्रकाशित हुई है । हठीला जी हिंदी के अच्छे गीतकार हैं तथा उतने ही मधुर कंठ से गायन भी करते हैं । हठीला जी एक अच्छे मित्र भी हैं । उनका एक काव्य संग्रह बंजारे गीत के नाम से पिछले दिनों शिवना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है । फक्कड़ स्वभाव के बला के स्वाभिमानी व्यक्ति हैं वे । कई सारी बीमारियां पाले हैं ह्रदय रोग है दो बार आपरेशन हो चुके हैं, मधुमेह है, जनम से ही एक किडनी नहीं है तिस पर भी ये कि किसी की सहायता नहीं लेनी । जब उनके आपरेशन के लिये मध्यप्रदेश सरकार ने एक लाख की राशि स्वीकृत कर उनके पास डीडी भेजा तो वे उसे सधन्यवाद कलेक्टर को जाकर वापस कर आये । ये अपनी तरह का अलग ही प्रकरण था । वे बहुत अच्छे दाल बाफले बनाते हैं तथा उनका व्यवसाय ये ही है । दिल्ली से लेकर मद्रास तक वे बाफले बनाने के लिये बुलाये जाते हैं । जिन लोगों ने रेणु जी की कहानी ''ठेस'' पढ़ी हो तो उसमें जो सिरचन का पात्र है ठीक वैसे ही हैं हठीला जी । आज भी अपने जीवन यापन के लिये दाल बाफले इस उम्र में भी बनाते हैं । कविता के लिये बला के समर्पित हैं और आयोजनों के लिये तो एक पैर पर तैयार रहते हैं । नियमित रूप से स्थानीय समाचार पत्रों में किसी एक समाचार को पकड़ कर उस पर कुंडलियां लिखते हैं जो रोज छपती है । कभी सरकिट कवि के नाम से, कभी बिच्छु कवि के नाम से, कभी ठलुवा कवि के नाम से तो कभी और किसी नाम से । उनकी बिटिया मोनिका हठीला देश की ख्यात मंचीय कवियित्री हैं । हठीला जी की एक कविता हंस के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई है । साथ ही उनकी पुस्तक की चर्चा कादम्बिनी, नवनीत के जनवरी अंक में हैं । समीर जी जब सीहोर में आये थे तो हमने उनके स्वागत में एक छोटा सा कार्यक्रम रखा था किन्तु श्री हठीला जी ने मुझे बताये बिना कब छोटे से कमरे से स्थान परिवर्तन कर बड़े हाल में कर दिया मुझे पता ही नहीं चला । बाद में जब मैंने पूछा कि ये कार्यक्रम को कमरे से हाल में क्यों किया तो उनका जवाब था '' आपके मित्र का सम्मान मतलब हम सबका मान है '' । हंस में उनकी जो कविता प्रकाशित हुई है वह मात्रिक छंद पर है और ग़ज़ल के स्वरूप में है । किन्तु इसमें मात्राएं गिन कर लिखा जाता है । कुल ग्यारह दीर्घ हैं । यद्यपि अब तो ये भी ग़ज़ल में शामिल की जाने लगी है । मात्राएं गिन कर लिखने की परंपरा कहीं कहीं ग़ज़ल में आ ही गई है । जबकि ग़ज़ल में मात्राओं की गिनती के साथ क्रम भी देखा जाता है । जबकि छंद में केवल गिनती से काम होता है । ये है उनकी कविता ज़रूर पढ़ें और यदि बधाई देने योग्य लगे तो 09977515484 पर ज़रूर दें ।
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गुरु देव प्रणाम,
जवाब देंहटाएंरमेश हठीला जो को पढ़ा उनके बारे में जानकर बहोत ही सुखद अनुभूति हुआ ..उनके छंद को पढ़ा साथ में छंद लेखन के बारे में भी जानकारी मिली बहोत ही अच्छा लगा ...इसके लिए आप सबका आभारी हूँ..
अपनी नई ग़ज़ल पे आपकी टिप्पणी के लिए प्रतीक्षारत..
आपका
अर्श
बहुत अच्छे .."ढिँडोरा पिटवा दो" से
जवाब देंहटाएंक्या लय और समाँ बाँधा है -
पढवाने का बहुत शुक्रिया पँकज भाई
-लावण्या
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंमन को भा गया
लगा गाजर का हलुवा खा गया
इतना स्वाद आ गया
कड़वाहट को कहने का अंदाज भा गया
।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंमन को भा गया।।
लगा गाजर का हलुवा खा लिया
इतना स्वाद आ लिया।
कड़वाहट को कहने का अंदाज भा गया।।।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंमन को भा गया
लगा गाजर का हलुवा खा गया
इतना स्वाद आ गया
कड़वाहट को कहने का अंदाज भा गया
।
गुरूजी की कृपा से बंजारे गीत पढ़ने का सुअवसर मिला। श्री हठीला जी का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों प्रभावित करते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अदभुत काव्य है जो वास्तविक युग की कटुता लिए हुए है
जवाब देंहटाएं---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
bahut badhiya...!
जवाब देंहटाएंवाह गुरू जी मजेदार रचना...."बंजारे-गीत" तो आपकी कृपा से पढ़ ही चुका हूं पहले
जवाब देंहटाएंऔर छंद की इस नयी जानकारी भी हैरान कर गयी.यानी कि पहले ये दीर्घ वाला छंद गज़ल की बहरों में शुमार न था
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंआपकी पिछली पोस्ट और ये पोस्ट एक ही कहानी के दो भाग लगे
पढ़ कर लगा जैसे आपने एक बात कही और फ़िर उस बात का एक अच्छा सा उदाहरण दिया
(((बस एक ही बात है कि ग़ज़ल में कहन का आनंद होना ही चाहिये । दूसरी बात ये कि कहा गया है कि साहित्य समाज का दर्पण
है, तो दर्पण का अर्थ है कि जो कुछ सामने है उसकी ही छवि, उसका ही बिम्ब दिखाने का
काम करने वाला । उसमें कोई छेड़ छाड़ नहीं हो । दर्पण वो जो मेकअप करने का काम नहीं करे जो कुछ भी सामने हो उसीको दिखा दे । )))
रमेश हठीला जी की यह रचना वास्तव में समाज का आइना है
तरही mushayra के लिए अभी मैंने कुछ नही लिखा है कोशिश करूंगा की १३ tareekh तक homework पूरा करके आपको bhej सकूं
आपका वीनस केसरी
प्रणाम ऐसे विलक्षण कवि हठीला जी को और साधुवाद आप को जो उनकी रचना और व्यक्तित्व से परिचय करवाया...आजकल ऐसे इंसान मिलते कहाँ हैं?इश्वर उन्हें सदा स्वस्थ रखे...
जवाब देंहटाएंनीरज