जालियावालां बाग को भले ही देश में हुए सबसे बड़े नृशंस नरसंहार के रूप में जाना जाता है लेकिन सच ये है कि कई और भी नरसंहार हुए जो इतिहास में वो स्थान नहीं ले पाये जो मिलना था। मध्यप्रदेश के सीहोर में 14 जनवरी 1858 को जनरल ह्यूरोज द्वारा मैदान में खड़ा करके देशभक्त 356 क्रांतिकारी सिपाहियों को गोली से उड़ा देना भी एक ऐसी ही घटना है । ह्यूरोज वही है जिसने बाद में सीहोर से आगे जाकर झांसी की रानी के साथ युद्ध किया था । हर वर्ष 14 जनवरी 1858 को सीहोर के लोग उन 356 शहीदों की समाधि पर जाकर वहां अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं । इतने बड़े बलिदानी स्थल पर ना तो कलेक्टर न एसपी ना एसडीएम कोई भी सरकारी व्यक्ति आकर सरकार की ओर से श्रद्धासुमन नहीं अर्पित करता है । केवल वे मुट्ठी भर लोग आते हैं जो कि देश से प्यार करते हैं । वे यहां पर आते हैं और अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं । उसके बाद वर्ष भर ये समाधियां उपेक्षित पड़ी रहती हैं ।
1857 का हिन्दुस्तान के इतिहास में एक प्रमुख स्थान है अंग्रेज इतिहासकार भले ही कहते रहें कि 1857 में तो राजा और रजवाड़ों ने विद्रोह किया था मगर सच ये ही है कि 1857 का विद्रोह वास्तव में एक जन क्रांति था । मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में तब एक कंपनी तैनात थी तथा यहां पर एक अंग्रेज पोलेटिकल एजेंट फेडरिक एडन पदस्थ था 1 जुलाई को इन्दौर में क्रांति हो जाने के बाद सीहोर में भी इसके संकेत मिल रहे थे मगर भोपाल की तत्कालीन नवाब सिकंदर बेगम अंग्रेजों की भक्त थीं और अस लिये अंग्रेज विश्वस्त थे कि कुछ होगा तो हमें भोपाल नवाब की मदद तो मिलेगी ही । मगर जुलाई खत्म होते न होते तो सीहोर में भी क्रांति की चिन्गारियां फूटने लगीं थीं ।
इन्दौर से भाग कर भोपाल नवाब की शरण में जा रहे अंग्रेजों को सीहोर के सिपाहियों ने पीटना प्रारंभ कर दिया था नवाब सिंकंदर बेगम ने विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया मगर आजादी के मतवाले कब हारने वाले थे । अंतत: 6 अगस्त 1857 को सीहोर जहां पर अंग्रेजों की मध्य क्षेत्र की सबसे बड़ी छावनी थी के सिपाहियों ने क्रांति को पूर्ण कर दिया और सीहोर पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया । तब सीहोर की कोतवाली पर दो झंडे फहराए गए थे जो सीहोर की क्रांतिकारी सरकार जिसका नाम सिपाही बहादुर था के प्रतीक थे । एक भगवा झंडा था जो कहलाया निशाने महावीर और एक हरा झंडा जो कहलाया निशाने मुहम्मदी । और इस तरह सीहोर में बनी सिपाही बहादुर सरकार जो चलती रही इस सरकार का नेतृत्व किया था दो जांबाज सिपाहियों ने एक था हवलदार महावीर कोठ और दूसरे वली शाह । उस समय का इतिहास बताता है कि किस प्रकार का सांपद्रायिक सौहार्द्र था देश में । कोतवाली पर दो रंगों के झंडे एक हरा निशाने मोहम्मदी और एक भगवा निशाने महावीरी । दो लोगों के हाथ में कमान एक हिंदू और एक मुसलमान । अंग्रेजों ने अपने सबसे बर्बर ह्यूरोज को इस क्रांति को कुचलने भेजा था । जो मुंबई से चलकर यहां आया था । 14 जनवरी 1958 तक तब तक जब तक की हयूरोज ने आकर विद्रोह को कुचल नहीं दिया । हृयूरोज ने इन सभी देशभक्तों को चांदमारी पर एकत्र किया और गोलियों से छलनी करवा दिया । पास ही बह रही सीवन नदी इन देशभक्तों के लहू से लाल हो गई थी । जालियावालां बाग के समान ये भी एक बड़ा नरसंहार था ।
आज वही 14 जनवरी है जब सीहोर में 356 क्रांतिकारियों का लहू बहा था । आइये सीहोर वासियों के साथ आप भी उन सब ज्ञात अज्ञात को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करें ।
सभी शहीदों को शत शत नमन!
जवाब देंहटाएंगुरु देव प्रणाम,
जवाब देंहटाएंउन वीर शहीदों को मेरा सत सत सलाम.........
आपका
अर्श
जानकारी के लिए आभार. हम अपने श्रृद्धासुमन इन गुमनाम शाहीदों को अर्पित करते हैं.
जवाब देंहटाएंआपका आभार.
सच में इतिहासकारों ने बड़ी भूल कि जो इस बारे में अभी तक कभी पढने को नहीं मिला.. धन्यवाद आपका जो आपके सौजन्य से यह पढने को मिला..
जवाब देंहटाएंशहीदों को श्रद्धांजलि
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंसीहोर के शहीदों को शत-शत नमन.
मकर संक्रांति की शुभकामनायें.
हार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंहमारा इतिहास ऐसी अनगिनत बातों से अनजान है, अनगिनत वीरों के बलिदानों ने सींचा है इस आज़ादी को, सिरोह की यह घटना के बारे मैं भी और मुझे लगता है बहुत से लोग अनजान थे.
जवाब देंहटाएंशत शत नमन उन वीरों को
हार्दिक श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ . .
जवाब देंहटाएंहमारे श्रधा सुमन इन अनजाने वीर शहीदों के लिए...लेकिन शहीदों की उपेक्षा की बात मन को बहुत दुखी कर जाती है...कहाँ तो हम पढ़ा करते थे की" शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का येही बाकी निशां होगा" और सत्य ये है की मेले की बात दूर की है वहां कोई अब आता जाता ही नहीं है...कितने शर्म की बात है...
जवाब देंहटाएंनीरज
ये तो अद्भुत जानकारी है गुरू जी। बहुत कम लोगों को मालूम होगा इस बारे में तो। आश्चर्य है कि ये घटना-इतनी बड़े घटना,अब तलक मुख्य ऐतिहासिक पन्नों से कैसे छुपी हुई है।
जवाब देंहटाएंसीहोर की जनता के साथ अपनी भी श्रंधाजली
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढने के बाद जब टिप्पडी करने लगा तो पाया की जो कहना चाहता हूँ दिगंबर जी ने हूबहू वाही सब कुछ पहले ही लिखा है इस लिए उनकी ही बात को दोहरा रहा हूँ
हमारा इतिहास ऐसी अनगिनत बातों से अनजान है, अनगिनत वीरों के बलिदानों ने सींचा है इस आज़ादी को, सिरोह की यह घटना के बारे मैं भी और मुझे लगता है बहुत से लोग अनजान थे.
शत शत नमन उन वीरों को
आपका वीनस केसरी
आज़ादी की सांस मिल;ई है हमको जिनके बलिदानों से
जवाब देंहटाएंउन्हें एक दिन नहीं वर्ष में, हर दिन रखना याद जरूरी
हम नतमस्तक और जन्म भर आभीरी उन क्रान्तिवीर के
जिनके शोणित ने सीहोरी धरा रंग कर की सिन्दूरी
मकर सँक्राति पर आपको सपरिवार शुभकामनाएँ औरेी होर के क्रान्तिवीरोँ के बलिदान का पुण्य स्मरण करवाने के लिये आभार -
जवाब देंहटाएंभारत माता की जै ..