शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

आज का दिन मैं चाहता हूं कि इस युवा पीढ़ी के नाम रहे जिसका प्रतिनिधित्‍व ये दोनों युवा शायर कर रहे हैं , वीनस और सफर ।

तरही मुशायरा बहुत दिनों से यूं रुका था जैसे कोई बात कहीं पर रुक जाये और फिर लाख कोशिशों के बाद भी हो न पा रही हो । ख़ैर कहते हैं न कि जब जब जो जो होना है तब तब सो सो होता है । तो हम तरही मुशायरे से होकर गुज़र रहे हैं तीन शायरों का बेहतरीन प्रदर्शन कल देखा और आज  दो शायर आ रहे हैं । मैं अपनी कहूं तो चूंकि मैं रामधारी सिंह दिनकर जी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं इसलिये मैं ये मानता हूं कि जो कविता आज के दौर को चित्रित नहीं कर रही है वो कविता कहीं नहीं पहुंच पा रही है । इसीलिये मुझे तीखें तेवरों वाली ग़ज़लें भी पसंद आती हैं । जाने क्‍यों मुझे ऐसा लगता है कि ग़ज़ल को भी अब मुकाबले में उतरना ही होगा आम आदमी के पक्ष में व्‍यवस्‍था के खिलाफ़ । अब ग़ज़ल को भी उसी भाषा में बात करना होगा कि सिंहासन खाली करो के जनता आती है । हमारे पहले दौर के तीनों ही शायरों कंचन, अभिनव और संजय ने काफी तीखे तेवरों में जनता की बात की है । कवि यही तो होता है कि वो दोनों ही पक्षों को निशाने पर रखे और हमारे तीनों ही शायरों ने व्‍यवस्‍‍था के साथ्‍ा जनता को भी नहीं बख्‍शा । एक बार फिर तालियां । और चलते हैं दूसरे दौर के शायरों के साथ ।

माड़साब : सबसे पहले आ रहे हैं हमारे एक शायद सबसे कम उम्र के प्रतियोगी । अंकित सफर की एक विशेषता ये है कि उनकी तस्‍वीरें बहुत सुंदर आती हैं । और ग़ज़लें भी उत्‍साह में लिखते हैं । अंकित का पता ठिकाना ये है अंकित जोशी "सफ़र" १७७२/६, ट कालोनी, पंतनगर, उधम सिंह नगर उत्तराखंड-२६३१४५ मोबाइल:- ०९९२१९४१७८४

अंकित जोशी "सफ़र"

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अच्छी हो या गन्दी जनता.
हम सब से ही  बनती जनता.

नेताओं को चुनती जनता.
अंधी बहरी गूंगी जनता.

बीच सड़क पे खून हुआ एक,
बोले कुछ न गूंगी जनता.

है ग़म फ़िर भी हँसता जोकर
ताली पीटे अंधी जनता.

छोटे से मुद्दे पे दंगा,
आग बनी चिंगारी जनता.

मुफ्त बटी वोटों की खातिर,
दारु, लाइट, साड़ी जनता.

अपनी ताकत ख़ुद ना जाने,
मूरख पागल कैसी जनता.

कल कुछ बम फटने के कारन,
दिखती है सहमी सी जनता.

तनहा जो करना है मुश्किल,
आसा है कर सकती जनता.

माड़साब : मैंने कहा था कि अंकित उत्‍सा‍ह में लिखतें हैं और अच्‍छी बात ये है कि इन्‍होंने मुशायरे के तेवर को बनाये रखा है । मतला अच्‍छा है और अपने पर भी सवाल उठाने का साहस किया गया है जो कवि का पहला गुण होता है । तालियां छोटे बच्‍चे के लिये और हम चलते हैं एक और कम उम्र के प्रतियोगी की तरफ आ रहे हैं वीनस केसरी । ये कुछ गुमे हुए से प्रतियोगी हैं । गुमे हुए से का मतलब है कि ये अक्‍सर खो जाते हैं और फिर अचानक प्रगट हो जाते हैं । सबसे अच्‍छी बात ये है कि इनके पास सवाल हैं जो हर जिंदा आदमी के पास होने चाहिये ।

वीनस केसरी :

venus

जब सोते से जागी जनता
फ़िर तूफां औ आंधी जनता
नेता जी मन ही मन सोंचे
कब किसकी महतारी जनता
गांधी जी के तीनों बन्दर
अंधी बाहरी गूंगी जनता
गणतंत्र  दिवस हर चौराहे
जन गण मन दुहराती जनता
नवमी पूजन ईद दशहरा
कब बम से भय खाती जनता

अब भारत में हक के खातिर
घिस घिस कर फट जाती जनता
लूली लंगडी टेढी बाकुल
अंधी बहरी गूंगी जनता
कोसी हो या यमुना देखो
सब में बहती जाती जनता
अंधी नगरी चौपट  राजा
क्या कर ले व्यापारी जनता
कहने को सब कुछ मिलता है
पर कब कुछ है पाती जनता
नेता जी की टोपी में है
अगड़म बगड़म ठूसी जनता
अब संसद के हर खंभे को
अपना दुःख बतलाती जनता
जब चारा भी नेता खालें
तब क्या खाए भूखी जनता
मुर्गा बकरा नेता खाते
ईंटा पत्थर खाती जनता
सरकारी काली पन्नों में
जीती औ मर जाती जनता

माड़साब : हूं अच्‍छे शेर निकाले हैं । कुछ शेर बहर से इधर उधर हो रहे हैं । लेकिन तरही मुशायरे का नियम है कि जो कुछ जैसा हो वैसा ही प्रस्‍तुत किया जायेगा । कुछ शेर अच्‍छे तेवरों में हैं । विशेषकर सरकारी काले पन्‍नों में जीती औ मर जाती जनता तो बहुत अच्‍छा निकाला है । हिंदुस्‍तान की आम जनता का मानो पूरा चित्र की खींच कर रख दिया है वीनस ने । तालियां तालियां और तालियां । आज केवल ये दो ही क्‍योंकि आज का दिन मैं चाहता हूं कि इस युवा पीढ़ी के नाम रहे जिसका प्रतिनिधित्‍व ये दोनों युवा शायर कर रहे हैं । वीनस और सफर । दोनों पर हमें आने वाले कल की उम्‍मीदें हैं । और दोनों ही अपने शेरों में हमें निराश नहीं कर रहे हैं । तो स्‍वागत करें हमारी आने वाले कल की कविता का । मन से पढ़ें इन दोनों को और खूद दाद दें । जै राम जी की ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह...

    अंकित और वीनस जी के तो हम जबरद्स्त फैन बन चुके हैं पहले से...और ये दोनों गज़ले तो उफ़...
    अंकित के इस शेर ने
    "मुफ्त बटी वोटों की खातिर,
    दारु, लाइट, साड़ी जनता"....ने सारी कसर निकाल दी

    और वीनस जी जब कहते हैं कि
    "कोसी हो या यमुना देखो
    सब में बहती जाती जनता"
    और
    "सरकारी काली पन्नों में
    जीती औ मर जाती जनता"
    ..तो बरबस मुँह से वाह-वाह निकल जाती है

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया आपका , युवा शायरों को सामने लाने का...इनका लिखा अक्सर पढने को मिलता रहता है लेकिन तरही मुशायरे में इनके गाडे झंडे देख कर सुखद आश्चर्य हुआ....शायरी का भविष्य इन युवाओं के बल पर ही तो है...मेरी और से ढेरों बधाईयाँ...ये खूब लिखें और नाम रोशन करें ये ही दुआ है...
    नीरज

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  3. गुरूदेव के सान्निध्य में अच्छी फसल तैयार हो रही है। मेरे जैसे अनाड़ी एवं नए पथिकों के लिए इससे ज्यादा उत्साहवर्द्ध्क बात और क्या हो सकती है। वीनस जी और अंकित जी बधाई के पात्र है। तेवर और कथ्य दोनों का सामंजस्य आनंदित करनेवाला है।

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  4. dono hi guru bhaiyo.n ko sneh...!
    है ग़म फ़िर भी हँसता जोकर
    ताली पीटे अंधी जनता.

    sher bahut achchha laga

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  5. नमस्कार गुरु जी,
    मैं अपने आपको बहुत खुशनसीब मान रहा हूँ जो इतने बड़े विद्वानों के बीच में अपनी बात कह पा रहा हूँ, मेरी तस्वीर की तारीफ के लिए शुक्रिया कभी-कभी गलती से अच्छी तस्वीर आ जाती हैं.
    आपके आशीर्वाद और ज्ञान के बिना मैं बहर में नही लिख पाता.
    वीनस जी ने बहुत ही जानदार शेर कहें है.
    गौतम जी तो बड़े भाई के समान है, मेरी हर गलती से मुझे रूबरू करवाते हैं, नीरज जी का मार्ग-दर्शन हमेशा मिलता रहता ही जो मुझे अच्छे से अच्छा लिखने की प्रेरणा देता है और रविकांत जी कितनी खूबसूरती से अपने को अनाडी कह रहे हैं मगर हकीकत तो सब जानते ही है.

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  6. "हम है नेता, हम है जनता"
    नींद से जागी आज है जनता.
    kabile treef hai Ankit evam Veenas ke liye hue yuwa kadam jo pukhtagi se kafila banaye ja rahe hai. Yeh to agni path hai, sahas jodkar unke path par kafile bante dikhyi denge. Meri tammam shubhkamnayein in judwa shayron ke liye hai.
    मन की ये भावनायें, शब्दों में हैं पिरोई
    है ये बड़ी रसीली, शाइर गज़ल तुम्हारी.

    अहसास की रवानी, हर एक लफ्ज़ में है
    है शान शाइरी की, शाइर गज़ल तुम्हारी.
    देवी नागरानी

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