गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

आइए आज बासी दीपावली का आयोजन करते हैं दो गुणी रचनाकारों तिलकराज कपूर जी और इस्मत ज़ैदी जी की बहुत सुंदर ग़ज़लों के साथ।

 

बासी दीपावली की अपनी एक परंपरा रही है और हमारे ब्लॉग पर तो सारे ही बासी त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। कई बार तो बासी त्योहार में ताज़ा त्योहार से अधिक धूमधाम हो जाती है। इस बार भी कुछ रचनाकारों ने दौड़ते भागते, अगले स्टेशन पर गाड़ी पकड़ी है तरही की। इसका भी अपना ही आनंद है कि जिस स्टेशन पर आपको ट्रेन पकड़नी थी आप उस स्टेशन पर पकड़ नहीं पाए तो गाड़ी लेकर अगले स्टेशन की तरफ़ दौड़ पड़े और अगले स्टेशन पर आप ट्रेन में चढ़ते हैं। कई बार इन्हीं सब एडवेंचर्स में जीवन का आनंद छिपा होता है। तो इस बार भी हमारे दो प्रतिभावान रचनाकार तरही के बासी स्टेशन पर अपनी बहुत सुंदर रचनाओं के साथ तरही की गाड़ी पकड़ रहे हैं। 

क़ुमकुमे यूँ जल उठेंगे, नूर के त्योहार में  

आइए आज बासी दीपावली का आयोजन करते हैं दो गुणी रचनाकारों तिलकराज कपूर जी और इस्मत ज़ैदी जी की बहुत सुंदर ग़ज़लों के साथ।


तिलकराज कपूर

पूछते हो हुस्न क्या दिखता है नूर-ए-यार में
देख लो, दिखता है वो ही, दीप के त्योहार में।

देखकर सबको गुमां होगा कि सब है खुशनुमा
क़ुमकुमे यूँ जल उठेंगे, नूर के त्यौहार में।
शेर उसके इस कदर पैने कि दिल तक चीर दें
धार ये मिलती नहीं है तीर में तलवार में।
जब तलक छाई है चेहरों पर उदासी की परत
क्या करूँ ये रौनकें बिखरी हुईं बाज़ार में।
जानकर कोई खबर करना नहीं जब कुछ तुम्हें
छानते फिरते हो फिर क्या रात दिन अखबार में।
स्वप्न से दूरी रखे देखी हक़ीक़त जागती
आपको दिखती नहीं जो बैठकर सरकार में।
ऐ हुकूमत बच के रहना भूख के इस रूप से
हड्डियों सा जिस्म है बदला हुआ अंगार में।
ख़्वाब में सोया हुआ इस शह्र में हर शख़्स था
जागती आंखें लिया पहुंचा नहीं दरबार में।
वायदे जितने किये थे याद उसको अब नहीं
जब से शामिल हो गया है मतलबी सरकार में।
रोज हो जिसको कमाना पेट भरने के लिए
फ़र्क क्या उसको दिखे कहिये भला इतवार में।
अब किसी की बात पर इसको यकीं होता नहीं
चोट ऐसी खा चुका दिल प्यार के व्यापार में।
देर आयद दुरुस्त आयद शायद इसी को कहते हैं। मतले में ही इश्क़ का रोशन रूप कितना खिल कर सामने आया है। नूर-ए-यार की तुलना दीप के त्योहार से ग़ज़ब। और फिर उसके बाद का गिरह का शेर गहरे व्यंग्य के साथ गूँथा गया है। सच कहा है कि जो काम एक शेर कर जाता है वह तीर और तलवार से कहाँ संभव है भला। और फिर ये कि जब तक एक भी चहेरे पर उदासी है तब तक हम कैसे बाज़ार के उत्सव में डूब सकते हैं। ख़बर से कोई मतलब नहीं फिर भी ऐसे कई हैं जो अख़बार के पहले पेज से अंतिम तक पूरा छानते हैं उसे। अगले दो शेर एक बार फिर व्यंग्य और चुनौती के रूप में सामने आते हैं। और ख़्वाब में सोया शहर तथा उसके बाद सरकार में शामिल होने वाला शेर बहुत कमाल का है- यथा राजा तथा प्रजा को चरितार्थ करते हैं यह दोनो शेर। और अंत का शेर एक बार फिर से मुड़ता है इश्क़ की तरफ़ और चोट खाए दिल का फ़साना कहता है जिसे किसी पर यक़ीं नहीं। बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है, वाह, वाह, वाह। 


इस्मत ज़ैदी 

आप ने क्यों ला के छोड़ा है हमें मँजधार में
हम ने तो कोई कमी रक्खी नहीं ईसार में

हक़ को समझेगा भला अब कौन इस बाज़ार में
जबकि सिक्का चल रहा हो झूट का व्यापार में
रोज़ो शब जो मेरी फ़िक्रों में रहा था मुब्तला
आज शामिल हो गया वो भी मेरे अग़यार में
क्यों खड़ी कर लीं फ़सीलें तुम ने अपने इर्द गिर्द
आओ इक रौज़न बना लें हम किसी दीवार में
जिस तरह से हाथ में हों हाथ और विश्वास भी
"क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्यौहार में"
इस तरह हालात ने करवट पे करवट ली कि बस
मुज़्तरिब गोशे निकल आए मेरे अफ़कार में
आप ने तो कर लिया तर्क ए ताल्लुक़ बरमला
डाल दी हैं क्यों दरारें प्रेम के आधार में
जीत लेना चाहती हो ज़ह्नो दिल को तुम अगर
ऐ शिफ़ा बस कर लो शामिल हुस्न ए ज़न किरदार  में

जिनके लिए हम अपने हितों तक का बलिदान करने से गुरेज़ नहीं करते, वे ही हमें छोड़ कर मंजधार में चले जाते हैं, बहुत बड़ा दर्शन छिपा है इस मतले में। और अगले ही शेर में सच और हक़ की सिमटती दुनिया तथा झूट का बढ़ते साम्राज्य पर गहरी चोट की गई है। कितना पीड़ादायी होता है उन लोगों का अचानक अजनबी हो जाना जो कल तक दिन रात हमारे मन का हिस्सा बने हुए थे। अगला शेर बहुत कमाल का शेर है हम सब अपने बीच में जो दीवारें उठाते जा रहे हैं अब समय है कि उनमें छोटे-छोटे रोशनदान, झरोखे, दरारें, सूराख़ बनाए जाएँ ताकि हम एक-दूसरे को देख सकें। हाथ में हाथ और एक-दूसरे पर विश्वास हो, तभी तो नूर के क़ुमक़ुमे जलते हैं बहुत ही सुंदर गिरह का शेर। और अगला शेर कितना सच्चा शेर है कि भले ही संबंध विच्छेद हो जाएँ, टूट जाएँ, लेकिन प्रेम के आधार में दरारें नहीं आना चा​हिए। और दर्शन शास्त्र की सुंदरता से रोशन उतना ही सुंदर मकते का शेर। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह, वाह, वाह।  

आज के दोनो ही रचनाकारों ने तरही का पूरा रंग जमा दिया है। शानदार ग़ज़लों से एकदम समाँ बाँध दिया है। आप भी दाद दीजिए इन दोनों ग़ज़लों पर और इंतज़ार कीजिए तरही के अगले बासी अंक का। 



5 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों रचनाकारों को शानदार लेखन के लिए बधाई।

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  2. बधाई दोनों ग़ज़लकारों को उनकी अच्छी रचनाओं के लिए।

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  3. दो बेहतरीन प्रस्तुतियों के लिए दोनों को बधाई और शुभकामनाएं

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  4. दिगाजों को पढना भी अपने आप में एक सुखद अनुभव है ...
    सदा कहाँ और नई सी बातें बाखूबी मिल जाती हैं उनके कलाम में ... आदरणीय तिलक राज जी और इस्मत दी की कमाल की गजलें ... दीपोत्सव की सभी को बधाई ...

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  5. बहुत सुंदर रचनाएं हैं दोनों रचनाकारों की। बहुत बहुत बधाई आदरणीय तिलकराज जी और आदरणीया इस्मत जी को।

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