रविवार, 23 अक्तूबर 2022

आइए मुशायरे के क्रम को आगे बढ़ाते हैं देवी नागरानी, सौरभ पाण्डेय, गिरीश पंकज, संजय दानी, निर्मल सिद्धू तथा राकेश खंडेलवाल जी के साथ

आइए मुशायरे के क्रम को आगे बढ़ाते हैं देवी नागरानी, सौरभ पाण्डेय, गिरीश पंकज, संजय दानी, निर्मल सिद्धू तथा राकेश खंडेलवाल जी के साथ। इस बार भा हमेशा की तरह जैसा ही हो रहा है कि जैसे ही दीपावली के मुशायरे की पहली पोस्ट लगाई वैसे ही रचनाकार दौड़ते हुए ट्रेन पकड़ने आ रह हैं, हमारी यह ट्रेन तो वैसे भी धीमी गति की खिलौना ट्रेन है, इसे आप कभी भी दौड़ते हुए पकड़ सकते हैं, तो जो रचनाकार कल की पोस्ट के बाद दौड़ते-हाँफते आए हैं ट्रेन में उनका भी स्वागत है। बनी रहे यह रचनात्मकता और बना रहे यह संग-साथ का आनंद। असल आनंद तो इसी संग साथ का होता है। अवसर आते रहें तो यह संग साथ आनंदित करता रहता है।
क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में 

देवी नागरानी
देखो समझो फूल काँटे का चलन संसार में
राह जीने की मिलेगी आपको व्यवहार में
चार पैसे आते ही बदला चलन और चाल भी
जाने कैसे आ गया बदलाव फिर गुफ़्तार में
आदमी का आदमी से दिल का नाता है जुड़ा
मोती दिल दिल का पिरो लो धड़कनों की तार में
सोचो के मंझधार में वो बह गई क्यों, क्या पता
जाने ऐसा क्या था देखा उसने बहती धार में
जब ज़ुबां की बात ‘देवी’ ना समझ पाओ कभी
भावनाएँ ढूँढ लेना इन लिखे अश्आर में
मतले के साथ ही ग़ज़ल बहुत सुंदरता के साथ प्रारंभ होती है, फूल और काँटों का चलन यदि हम समझ जाएँ तो हमारे लिए जीना सच में बहुत ही आसान हो जाएगा, फिर हम किसी के व्यवहार पर खिन्न नहीं होंगे। और चार पैसे आते ही बातचीत में आया हुआ परिवर्तन एक कड़वा सच है। इंसानियत के नाम अगला शेर जो कह रहा है कि आदमी और आदमी के बीच दिल का नाता है। मँझधार में बहने वाले एक रहस्य छोड़ जाते हैं अपने पीछे कि आखिर ऐसा क्या आकर्षण वो देखते हैं नदी की धार में जो उसके साथ ही बह जाते हैं। और अंत में वही सच जो एक रचनाकार का सबसे बड़ा सच होता है कि उसको उसकी रचनाओं से ही जाना जाए। वाह वाह वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल।


सौरभ पाण्डेय
देखिए तो क्या अजूबे हो रहे संसार में ..
पत्थरों को काँच के घर मिल रहे उपहार में
झूठ जुमले बेहिसी बेपर उड़ानों का समाँ
शेखचिल्ली लौट आया क्या खुले दरबार में ?
क्या पता होगा तुम्हें क्या-क्या नजारे लूट कर
हो गया हूँ आजकल मसरूफ मैं घर-बार में
बोल दूँ तो आईना बेसाख्ता घबरा उठे
देख लूँ मैं तो हिमालय भी झुके व्यवहार में 
सोच कर तो उठ रहे थे अब न लौटेंगे कभी 
बोझ काँधों पर लिये उलझे रहे आभार में
दुधमुँही किरनें सुबह की नाप लें सारा गगन 
कुमकुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्यौहार में
मूँद कर आँखें जगत से एक जग ऐसा मिला
जो न पाया था कभी संसार के विस्तार में
हमारे आज के समय पर बहुत गहरा तंज़ करते हुए मतले के साथ ग़ज़ल शुरू होती है, और फिर अगला ही शेर उसी तंज़ को एक मुकम्मल रूप प्रदान करता है शेख चिल्ली के नाम का बहुत ही सुंदरता के साथ उपयोग किया गया है। और फिर अगला शेर हम सबके जीवन की कहानी है सच में यही तो होता है जीवन, जिसमें हम बहुत से नज़ारे लूटने के बाद अंत में घर गृहस्थी के होकर रह जाते हैं। ख़ुद्दारी के भाव से भरा अगला शेर हिमालय को भी झुकाने की बात कर रहा है। और फिर वही कहानी कि नहीं लौटने की बात करते हुए फिर फिर लौटना होता है। गिरह का शेर बहुत ही नफ़ासत और नज़ाकत के साथ बुना है। और अंत का शेर तो फलसफे के कारण बहुत बड़ा बन गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह। 
 
गिरीश पंकज
तुम अनोखी रौशनी भर लो ज़रा किरदार में
ज़िंदगी जीने लगो बस इस जहाँ के प्यार में
हो कहीं पर भी अंधेरा दीप जा के हम धरें
सिर्फ उजियाला रहे क्यों आज अपने द्वार में
हाथ अपने तुम उठा दो बस दुआ में देखना
"क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में"
चंद लोगों की खुशी के वास्ते पीछे रहे
जीत का अकसर मज़ा हमने लिया है हार में
साँस जब तक चल रही है काम कुछ बेहतर करें
बस यही रह जाएगा इक दिन यहाँ संसार में
हम उठें रौशन करें अब तो अंधेरे घर सभी
क्यों कोई मुफ़लिस रहे 'पंकज' यहाँ अंधियार में
मतले में बहुत सुंदरता के साथ ज़िंदगी को प्यार में बिताने की बात कही गई है। और अगले शेर में पूरी दुनिया से अंधकार हटाने की बात सुंदर है, केवल अपनी ही देहरी पर उजाला करने की क्यों सोची जाए। दुआ के लिए हाथ उठाने की बात और उससे कुमकुमों के जल उठने का प्रतीक भी बहुत सुंदर बना है ​गिरह के शेर में। किसी दूसरे की खुशी के लिए स्वयं हारने का भी एक अलग आनंद होता है, वह जानने के लिए दूसरों के लिए जीना सीखना पड़ेगा। और अपने पीछे कुछ ऐसे काम कर जाने की बात भी बहुत सुंदर बनी है क्योंकि हमारे बाद बस वही बचा रह जाएगा। और मकते के शेर में सारी दुनिया से अंधकार को हटाने की भावना बहुत सुंदर है। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल। 


निर्मल सिद्धू
दीप-माला सज रही है हर गली-बाज़ार में
आतिशों के गीत गूंजे अर्श के दरबार में
रोशनी हो जायेगी अब हर तरफ़ संसार में
क़ुमक़ुमे यूं जल उठेंगे नूर के त्योहार में
झूमती गाती दिवाली, दीप ख़ुशियों के सजे
भूल के शिकवे गिले सब मिल के नाचो प्यार में
ये उजाला पर्व हमको है सिखाता आज भी
लाभ होता है बहुत ही प्रेम के व्योपार में
देख दुनिया की ये हालत आज निर्मल भी कहे
क्यों न बांटे मिल के हम सब प्यार ही उपहार में
मतले में दीपावली के त्योहार का जैसे शब्द चित्र खींच दिया गया है। और हुस्ने मतला में भी बहुत सुंदरता के साथ गिरह को बाँधा गया है। दीप जब खुशियों के सज जाते हैं तो उत्सव का आनंद एकदम दोबाला हो जाता है। सारे शिकवे और गिले जब भुला दिए जाते हैं, तब ही तो उत्सव का आनंद आता है। और प्रेम के व्यापार में होने वाले लाभ की बात बहुत ही सुंदरता के साथ कही गई है। यह एकमात्र ऐसा व्यापार है जिसमें अंतत: लाभ ही होता है। और मकते के शेर में बहुत ही निश्छल भावना है कि क्यों न हम सब उपहार में केवल प्रेम ही बाँटें, जिससे सारी दुनिया में प्रेम और प्यार फैल जाए। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।


डॉ संजय दानी
कुमकुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्यौहार में,
रौशनी हरदम रहेगी देश के अधिकार में।
सिर्फ़ मेहनत की कमाई रास आती है सदा,
कौन खुश रह पाया जग में यारों भ्रष्टाचार में।
कुछ फटाके फोड़ें इस त्यौहार में मिल जुल के हम,
औ मदद का रास्ता भी हम चुनें व्यवहार मेँ।
हो सजावट बाहरी भी देखने लायक मगर,
हो न कमज़ोरी दिलों की नींव के आधार में ।
अब कुचलना होगा दानी पाप की तस्वीर को,
हम सभी बैठेंगे फिर से पुण्य के दरबार में।
मतले में ही देश के अधिकार में सदा रोशनी रहने की बात बहुत ही सुंदरता के साथ कही गई है। मेहनत की कमाई को रोशनी में रखने वाला शेर बहुत सुंदर है सच बात है कि भ्रष्टाचार से कभी कोई सुखी नहीं रह पाया। और अगले ही शेर में पटाखे चलाने की बात तथा उसके साथ व्यवहार में मदद का रास्ता चुनने की बात भी बहुत ही सुंदरता के साथ कही गई है। और अगले शेर में बाहरी सजावट के साथ यह भी ध्यान रखने की बात कही है कि नींव के आधार में किसी प्रकार की कोई कमी न रह पाए। और मकते के शेर में पाप को मिटा कर पुण्य की सत्ता फैलाने की बात बहुत सुंदरता के साथ कही गई है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

 
राकेश खंडेलवाल
आपने जो दावते अशआर भेजा शुक्रिया है
कह बजाते हैं सभी आदाब इस दरबार में
क्या दिया मिसरा हुज़ूरे शायरे आज़म कि वाह
कुमेकुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
आज तक तो टालते आए हमें फ़ोटो दिखा
अब मिठाई के बिना मानूँ नहीं इस बार मैं
पाँच दिन होती दिवाली तो ग़ज़ल भी पाँच हों
इसलिए ही भेजता रचनाएँ लिख कर चार मैं
पाँचवीं भक भों का ज़िम्मा कह रहा इस बार मैं
कल न जाने हाथ में आए न आए ये कलम
इसलिए तरही में मिसरे कहता अंतिम बार मैं
राकेश जी ने शायद पहली बार ग़ज़ल कही है। और क्या खूब कही है। बहुत ही सुंदरता के साथ पहला ही शेर दावते अशआर की बात कह रहा है। और अगले ही शेर में एकदम नए तरीक़े से गिरह बाँधी गई है। अगले शेर में मिठाई की फोटो के स्थान पर मिठाई खोन की बात बहुत भोलेपन से कही गई है। पाँच दिन की दीवाली में पाँच ही रचनाएँ होना चाहिए यह भावना बहुत ही सुंदर है, लेकिन लिखना तो राकेश जी जैसे रचनाकार के ही बस की बात है। उस पर भी मिसरा सानी के बाद एक और मिसरा सानी ग़ज़ब। लेकिन अंतिम शेर को लेकर मेरी असहमति है राकेश जी, आप ख़ूब दीर्घायु हों और ख़ूब लिखते रहें यही कामना है। बहुत ही सुंदर है ग़ज़ल वाह वाह वाह।  
आज के रचनाकारों ने समाँ बाँध दिया है दीपावली के पर्व को साकार कर दिया है। आप भी खुलकर दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

11 टिप्‍पणियां:

  1. आज तो सुबह सुबह एक से बढ़ कर एक गजलों का सिलसिला है ... सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें ...
    देवी जी की गज़ल ज़िन्दगी के कई पहलुओं, रिश्तों को बखूबी कहती है ... जीवन के अर्थ बताती है ...
    आदर्नुय सौरभ जी ने तो मतला ही बेमिसाल कह दिया है ... पत्थरों को काँच के घर ... क्या बात सर जिंदाबाद ... दुधमुंही ... एक और गज़ब का शेर ... वाआआआआअह .... वाह ...
    गिरीश जी ने बहुत सुन्दर बात कही ... किरदार में मिठास / रौशनी आ जाये तो जीवन बदल सकता है ...
    निर्मल जी और संजय जी की गजलों के सन्देश साफ़ पढ़े जाते हैं ... व्यवहार और मेलजोल स्वयं पर विश्वास सच में बदलाव लता है ... बेहतरीन गजलें दोनों ...
    राकेश जी का गीत बोनस है हमारे लिए ... बहुत कुछ कह दिया है उन्होंने ... हम तैयार हैं चार उनकी और एक महाकवि की गज़ल के लिए ...
    सभी को बहुत बहुत बधाई इन बेमिसाल गजलों के लिए ...

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  2. देवी नागरानी जी का मतला वाह! सौरभ पांडे जी का शेखचिल्ली,गिरीश पंकज जी का शेर , हो कहीं भी अँधेरा...., निर्मल सिद्धू जी का भूल के शिकवे गिले....! संजय दानी जी का शेर ,हो सजावट बाहरी..., राकेश जी का मतला बहुत खूब।

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  3. आज नरक चतुर्दशी के शुभ अवसर पर प्रस्तुत हुई रचनाओं में मेरी रचना का शुमार होना रोमांचित कर रहा है.

    बस, ट्रेन क्यों कहना जी, हमारा आयोजन तो रुनगुन धुन गाती, झूले झुलाती, मंथर गति चलती बैलगाड़ी है. जब, जैसे, जहाँ मन हुआ, भाव में आ गये. और सहयात्री हो गये.

    आ० देवी नाग रानी जी, आ० गिरीश पंकज जी, आ० निर्मल सिद्धू जी, आ० संजय दानी जी और उर्वर मनस,आ० राकेश खण्डेलवाल जी को उनकी गजलों के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
    .
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  4. देवी निगरानी जी, सौरभ जी, गिरीश जी, निर्मल जी, संजय जी और राकेश जी को बहुत बहुत मुबारकबाद । बहुत अच्छा मुशायरा चल रहा है ।

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  5. बहुत सुंदर रचनाएं हैं सभी रचनाकारों की। सभी को बहुत बहुत बधाई। आदरणीय सौरभ जी को "पत्थरों को कांच के घर मिल रहे उपहार में" इस शेर के लिए विशेष बधाई।

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