शनिवार, 25 दिसंबर 2021

आइये आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीन रचनाकारों राकेश खण्डेलवाल जी, सुलभ जायसवाल और गुरप्रीत सिंह के साथ।

दोस्तो इस बार मुशायरा बहुत अच्छी ग़ज़लों का समावेश किए हुए है। इस बार की बहर गाने में बहुत अच्छी ग़ज़ल है। कभी सोचा था कि इस ग़ज़ल पर प्रयोग करूँगा कि सारे रुक्न अपने आप में स्वतंत्र हों, मतलब हर रुक्न पूरा हो रहा हो, ऐसा न हो कि किसी रुक्न में आधा शब्द हो और बाकी आधा दूसरे रुक्न में जा रहा हो। जैसे आज गुरप्रीत सिंह का एक मिसरा है 'निकलते, निकलते, बचा था, मेरा दम' इसमें चारों रुक्न एकदम पूर्ण हैं और एक दूसरे से स्वतंत्र हैं। कभी यह भी सोचा था कि इसके साथ ही एकदम शुद्ध मात्राओं वाली ग़ज़ल भी कहूँगा, मतलब जिसमें कहीं किसी मात्रा को गिरा कर न पढ़ना पड़े, सारी मात्राएँ अपने असली वज़्न पर ही हों। लेकिन यह दोनों काम ज़रा मुश्किल हैं, और ऐसा करने पर कहन पर पकड़ छूट जाती है। ऊपर वाले मिसरे में बाकी सब मात्राएँ तो शुद्ध हैं बस आख़िरी रुक्न में मेरा का मे गिराना पड़ रहा है। एक ज़रा मुश्किल काम तो है कि ऐसी ग़ज़ल कहना जिसमें सारी मात्राएँ भी शुद्ध हों और रुक्न भी स्वतंत्र और शुद्ध हों। कभी कोशिश की जाएगी इस तरह का प्रयोग करने की। जैसे-
न जाने, कहाँ से, कहाँ तक, चलेंगे
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
आइये आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीन रचनाकारों राकेश खण्डेलवाल जी,  सुलभ जायसवाल और गुरप्रीत सिंह के साथ।
गुरप्रीत सिंह
मुझे दिल का दौरा न पड़ जाए बेगम।
न आया करो सामने मेरे इकदम।
उठाया था जब मैंने घूंघट तुम्हारा,
निकलते निकलते बचा था मेरा दम।

हुई जब से शादी तो मूषक भए हैं,
कभी दोस्तो हम भी होते थे सिंघम।
मैं पीता हूं बेगम की ज़हरी नज़र से,
तू होगा शराबी, मगर मुझ से कम-कम।

गुलाबों की बोतल खुले है रोज़ाना,
''यहां सर्दियों का गुलाबी है मौसम।"
वो मुझको समझती है बस एक जोकर
जो मेरी निगाहों में है दिल की बेगम।
गुरप्रीत सिंह ने इस बार हजल पर हाथ आजमाने की कोशिश की है और बहुत अच्छे से की है। मतले में ही एकदम भयंकर किस्म की चेतावनी दी गई है, अब यह चेतावनी भयंकर रूप के कारण है या किसी और कारण से, यह समझना होगा। मगर अगले ही शेर में बात साफ हो गई कि घूँघट उठाने पर दम निकलते निकलते ही बचा था। दुनिया का सबसे बड़ा सच अगले शेर में है जो दुनिया के हर पुरुष की सिंघम से मूषक तक की यात्रा का चित्रण है। अगले शेर में एक बार फिर विस्मयादिबोध है कि यह जो ज़हरी नज़र है यह असल में क्या है, जिसके सामने दुनिया का हर शराबी कमज़ोर साबित हो रहा है। गुलाबों की बोतल खुलने से मौसम गुलाबी हो जाना भी एकदम कमाल है। और अंतिम शेर में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सच चित्रित किया गया है जिसमें हम सब की कहानी को शब्द दिए गए हैं। बहुत ही सुंदर वाह, वाह, वाह।
सुलभ जायसवाल
कभी दूर हमसे न जाना ओ हमदम
तुम्हीं से है हिम्मत तुम्हीं से है दमख़म
तुम्हारी ही बातें तुम्हारे फ़साने
तुम्हारे बिना कब कहाँ रह सके हम

खिली धूप में भी है कनकन हवाएँ
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
निकल कर रजाई से उपवन में देखा
सुबह पत्तियों पर चमकती हैं शबनम

दिनों बाद निकला है सूरज यहां पर
वगरना पहाड़ों पे पसरा था मातम
लगे ना कोई लॉकडाउन अचानक
सफर आख़री हो न लाचार बेदम

कभी घूम के आओ लद्दाख तिब्बत
वहाँ भी है दुनिया जहाँ राह दुर्गम 
दूर नहीं जाने की बात कहता मतला बहुत अच्छा है, जब हम प्रेम में होते हैं तो सचमुच हमारा शक्ति केन्द्र वही होता है। अगले ही शेर में प्रेम की सचाई है कि जब हम प्रेम में होते हैं तो हमारे पास बस उसी के फ़साने उसी की बातें होती हैं। अगले शेर में कनकन हवाओं का प्रयोग बहुत सुंदर बना है। हमारे यहाँ लोक में कनकन हवाओं की बात होती है, लोक के शब्दों के प्रयोग से रचनाएँ सुंदर हो जाती हैं। रजाई से निकल कर शबनम को देखने का शेर अच्छा है। पहाड़ों पर सूरज निकलने एकदम मौसम बदल जाने का प्रयोग बहुत सुंदर है, सच में पहाड़ों पर सूरज निकलने से बहुत कुछ बदल जाता है। कोराना के लॉकडाउन का चित्रण करता अगला शेर अच्छा बना है, उम्मीद है कि यह दुआ क़बूल होगी। और अंत में लद्दाख के बहाने बड़ी बात कही गई है कि जहाँ रास्ते दुर्गम होते हैैं, वहाँ भी ज़िंदगी होती है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह, वाह, वाह।
राकेश खंडेलवाल
सजाई है तुमने ग़ज़ल की ये महफ़िल
यहां सर्दियों का गुलाबी है मौसम
यहां ताकते रह गए खिड़कियों से
कहाँ सर्दिया का गुलाबी है मौसम ?


नहीं छोड़ती स्याही चौखट कलम की
नहीं भाव फिसलें अधर की गली में
कहें कैसे गज़लें ? तुम्ही अब बताओ
घुले शब्द सब, चाय की केतली में
सुबह तीन प्याली से की थी शुरू फिर
दुपहरी तलक काफियों के ही मग हैं
अभी शाम को घर पे पहुंचेंगे तब तक
तबीयत रहेगी उलझ बेकली में

यहां तो हवाएं हो चालीस मीली
मचाती है दिन में ओ रातों में उधम
कहाँ है बताओ गुलाबी वो मौसम


चुभे तीर बन कर ये बर्फीले झोंके
गए छुट्टियों पर हैं सूरज के घोड़े
नहीं धूप उठती सुबह सात दस तक
इधर चार बजते , समेटें निगोड़े
बरफ से भी ठंडी हैं बाहर फ़िजये
 इकल करके देखें वो हिम्मत नहीं है
जुटाए जो साधन लड़े सर्दियों से
सभी के सभी हैं लगें हमको थोड़े

गया पारा तलघर समाधि लगाने
तो लौटेगा बन करके बासंत-ए-आज़म
नहीं है गुलाबी ज़रा भी ये मौसम


ठिठुर कँपकँपाती हुई उंगलियां अब
न कागज़ ही छूती, न छूती कलम ही
यही हाल कल था, यही आज भी है
है संभव रहेगा यही हाल कल भी
गये दिन सभी गांव में कंबलों के
छुपीं रात जाकर लिहाफ़ों के कोटर
खड़ीं कोट कोहरे का पहने दिशायें
हँसे धुंध, बाहों में नभ को समोती

अभी तो शुरू भी नहीं हो सका है
अभी तीन हफ्ते में छेड़ेगा सरगम
तो नीला, सफेदी लिए होगा मौसम

राकेश जी के गीत मौसम का पूरा चित्र खींचते हैं। वे अमेरिका में रहते हैं, इसलिए गुलाबी सर्दियों की तलाश की बात उनके गीत में इसीलिए आई है क्योंकि वहाँ सर्दियाँ ऐसी गुलाबी नहीं होती हैं। पूरा दिन व्यस्तता में बीतता है, जहाँ कॉफी के प्याले पर प्याले पिए जाते हों अपने आप को गरम रखने के लिए, जहाँ चालीस मील प्रति घंटे की रफ़्तार से सर्द हवाएँ चल रही हों, वहाँ सच में गुलाबी सर्दियाँ कैसे होंगी। अगले ही बंद में सूरज के घोड़ों के छुट्टी पर होने का प्रयोग है। सात बजे तक धूप के सो कर नहीं उठने का प्रयोग अनूठा है। पारा तलघर में समाधि लगाने गया हो तो कैसे भला गुलाबी सर्दियों की बात की जा सकती है। रात लिहाफ़ों के कोटर में जाकर छुपी है और कोहरे का कोट पहन कर दिशाएँ खड़ी हैं, बहुत ही सुंदर प्रयोग हैं ये। और उस पर धुंध का बाहों में नभ को समोना बहुत ही सुंदर है सारा दृश्य चित्र। बहुत ही सुंदर गीत है, वाह, वाह, वाह।
आज भी तीनों रचनाकारों ने एकदम सर्दी को बुला ही लिया है। तीनों रचनाओं ने पूरे दृश्य मौसम के खींच दिए हैं। ऐसा लग रहा है जैसे हम बर्फ़ से लदे हुए पहाड़ों पर मुशायरा कर रहे हैं। आप दाद दीजिए तीनों रचनाकारों को और प्रतीक्षा कीजिए अगले अंक की।

20 टिप्‍पणियां:

  1. तीनो रचनाकारों को पढ़ना सुखद लगा।
    गुरप्रीत जी का तीसरा शेर ---हुई जबसे शादी वाह! वाह!सबके जीवन पर उतरने वाला एक व्यवहारिक शेर।

    सुलभ जायसवाल जी का मतला और मकता बाका वाह !बहुत खूब ।

    राकेश जी का
    छुपी रात जाकर लिहाफों के कोटर
    खड़ीं कोट कोहरे का पहने दिशाएं
    बहुत खूब है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. ऊपर टाइपिंग त्रुटि "बाका शब्द कृपया न पढ़ा जाए।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही उम्दा । तीनों रचनाकारों को पढ़ना अच्छा लगा , शेर द्वारा सर्दी मौसम की राहत और परेशानी दोनो से वाकिफ़ हुए।
    कमाल के शेर सारे

    जवाब देंहटाएं
  4. # गुरप्रीत सिंह :
    ख़ूब लिखा है जी, तबियत ख़ुश हो गई।
    " प्राजी ग़ज़ब कीता तुस्सी ने यकदम
    शुरु से ता आख़िर है बेगम ही बेगम!"

    जवाब देंहटाएं
  5. सुलभ जायसवाल:
    बहुत अच्छे अश्आर निकाले है, सुलभ जी।
    ("सफर राहे दुर्गम की करवादी तुमने
    जवां हौसला है जवानी का आलम"
    "बचो भीड़ से पहने रक्खो हिजाब
    अभी लॉकडाउन का ख़तरा है क़ायम")

    जवाब देंहटाएं
  6. राकेश खंडेलवाल :
    "नहीं छोड़ती स्याही चौखट कलम की
    नहीं भाव फिसलें अधर की गली में
    कहें कैसे गज़लें ? तुम्ही अब बताओ
    घुले शब्द सब, चाय की केतली में
    सुबह तीन प्याली से की थी शुरू फिर
    दुपहरी तलक काफियों के ही मग हैं
    अभी शाम को घर पे पहुंचेंगे तब तक
    तबीयत रहेगी उलझ बेकली में" ....

    हर पंक्ति हर मिसरा ग़ज़ल ही तो है.... और आप पूछ रहे है कि ग़ज़ल कैसे कहे ?
    इस सादगी पे कौन न मर जाए ए ख़ुदा!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हुज़ूर, हम तो केवल आपके नक़्शे पा पर चलने की कोशिश कर रहे हैं वगरना हमें तो न काफिया आता है न बह्र।
      पंकज जी भी सिखाते सिखाते थक गए परन्तु ग़ज़ल हमारी परछाईं तलाक नहीं छूती।
      सादर शिक्रिया

      हटाएं
  7. गुरप्रीत जी की बेमिसाल हजल ... सर्दी के मौसम में तड़का लगा दिया ...
    बहुत कमाल के शेर कहे हैं ...
    सुलभ जी के सभी शेर दिलचस्प, बेमिसाल ... लद्दाख, तिब्बत वाला शेर तो बहुत कमाल हुआ ...
    बहुत बधाई सुलभ जी को ...
    आदरणीय राकेश जी ने तो सर्दी के भी बेहद खूबसूरत अंदाजों को शब्दों में उतार दिया ...
    सभी को बहुत बहुत बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
  8. गुरप्रीत सिंह जी अब हम सबके बीच धमाकेदार उपस्थिति देते हैं. आज की ग़ज़ल जो कि बेगम को समर्पित हैं उनके प्यार को उनके घर संभालने, उनके द्वारा शौहर को जिम्मेदार बनाने की तस्वीर पेश करते हैं.
    अलग अनोखी हज़ल है. बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय राकेश जी ने मौसम का हाल खबर अपने चिंतन अपने अंदाज में हम सब से साझा किया है. अति सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  10. गुरप्रीत जी बल्ले बल्ले... क्या मजे की हज़ल कही है तबीयत चकाचक हो गई.. वाह सिंघम जी वाह...वो मुझको समझती है बस एक जोकर
    जो मेरी निगाहों में है दिल की बेगम
    ये शेर सभी पतियों की व्यथा को बयाँ करता है 😂🤣😂
    सुलभ जी को बहुत अर्से बाद पढ़ा...वो हमारे पुराने साथी हैं और बरसों से अपनी ग़ज़लों से हमें आनंदित करते रहे हैं
    खिली धूप में भी है कनकन हवाएँ
    यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
    शेर में क्या कमाल की गिरह लगाई है...भाई वाह !!
    राकेश भाई की तारीफ करते करते हम तो भाई थक चुके हैं । कविता के सचिन तेंदुलकर हैं, जब भी कविता करते हैं हमेशा कमाल करते हैं...

    चुभे तीर बन कर ये बर्फीले झोंके
    गए छुट्टियों पर हैं सूरज के घोड़े
    नहीं धूप उठती सुबह सात दस तक
    इधर चार बजते , समेटें निगोड़े
    बरफ से भी ठंडी हैं बाहर फ़िजये
    इकल करके देखें वो हिम्मत नहीं है
    जुटाए जो साधन लड़े सर्दियों से
    सभी के सभी हैं लगें हमको थोड़े
    उनकी ये पंक्तियां पढ़के ठंड से कँपकँपी छूटने लगी है...ये है कविता का असर ...जय हो राकेश भाई।


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भाई साहब। इसीलिये तो आपसे कह रहे हैं की जयपुर की सर्दी से बचने के लिए यहां आ जाइये। एक मौसम यहां बिता लेंगे तो जयपुर में कभी सर्दी नहीं लगेगी।
      आपकी राहों में मुलायम बर्फ की फुहियाँ बिछाये य हुए हैं . सादर धन्यवाद

      हटाएं
  11. बहुत ही अच्छी हज़ल कही है गुरप्रीत जी ने। इसके बाद सुलभी जी की प्रेम में पगी ग़ज़ल उसके बाद राकेश जी का सुन्दर गीत। बहुत ही शानदार ढंग से मुशायरा आगे बढ़ रहा है। तीनों रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. गुरप्रीत जी की हर पेशकश एक नए ही रंग में आती है. सुलभ की ग़ज़लों के मुरीद हम पहले से ही हैं

    जवाब देंहटाएं
  13. गुरप्रीत की हास्य ग़ज़ल में उसी छेड़खानी की अभिव्यक्ति है जो पति-पत्नी के संबंधों को प्रगाढ़ बनाती है (अगर समझदारी का अभाव न हो)। सर्दी में रिश्तों की गर्मी बढ़ाती हुई इस ग़ज़ल के लिये बधाई।

    सुलभ की ग़ज़ल में मतले का शेर जहाँ 1 और 1 11 कि बात कहता है वहीं अंतिम शेर में दुर्गम स्थलों की दुनिया का अलग ही आनंद होने की बात करता है। बहुत खूबसूरती से व्यक्त किये गये हैं चयनित विषय। बहुत-बहुत बधाइयाँ।

    राकेश जी के गीतों का तो एकछत्र साम्राज्य रहता है इस मंच पर। विषय का चयन, दृश्यों का चयन और उन्हें जीवंत करने के लिये शब्दों का चयन; हर दृष्टि से आकर्षक एक और गीत। बहुत-बहुत बधाई इस मधुर गीत के लिये।

    जवाब देंहटाएं

परिवार