गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

होली का तरही मुशायरा :- आज आ रही है एक चांडाल चौकड़ी जिसमें शामिल हैं गिरीश पंकज, डॉ. मोहम्‍मद आज़म, राजेन्‍द्र स्‍वर्णकार और जोगश्‍वर गर्ग । सनम की गली में जूते खाने ।

( नोट : होली तक के लिये समूचे भारतवर्ष में किसी भी प्रकार के दिमागी काम पर रोक लगा दी गई है । वे सारे लोग जो कि होली के अवसर पर किसी भी प्रकार से दिमाग का उपयोग करते पाये जाएंगें उनका रोमगोपाल वर्मा की आग फिल्‍म पूरे सप्‍ताह भर दिखाई जायेगी । होली दिमाग का नहीं दिल का मामला है । )

अरे राम ये हो क्‍या रहा है । क्‍या समूचे पृथ्‍वी के पानी में ही भांग घुल गई है । हम तो सोच रहे थे कि चलो बड़े लोग हैं उनको तो होली के मौसम में सठियाना होना ही है । लेकिन ये क्‍या ये तो बच्‍चों की पूरी टोली भी चली आ रही है । हमहूं का कौनो खबर नहीं कि किसके बच्‍चे हैं कहां से आये हैं हमका तो बस इतरा पता है कि कल से धमाल कर रहे हैं कि हमका भी गजलवा पेलनी है । हमने बहूत समझाया कि नाहीं बचुवा ई जो गजल होती है ये बच्‍चों के खेलने की चीज नहीं होती है, लग जाये तो खून निकल आता है । पर मानत ही नहीं हैं कह रहे हैं जब अइसन अइसन लोग लुगाई भंगिया पी के गजलवा लिखिस रहिन तो हम कौनो से कम नहीं हैं । हम भी पेलेंगें और दमादम पेलेंगें । ऊ में है का एक ठो काफिया और एक ठो रदीफ, बस । हम तो रोते भी इसी बहर में हैं जब रात को भूख लगती है बताएं का उं आं अ आं आं, उं आं अ आं आं, उं आं अ आं आं, उं आं अ आं आं । खैर बहर में रोकर इन चारों की चांडाल चौकड़ी ने आज का मुशायरा अपने नाम कर लिया है । सुनिये ।

आज का होली विचार : सिकंदर से पंगा लो, नेपोलियन से पंगा लो, हिटलर से पंगा लो लेकिन कभी भी भूल कर छोटे बच्‍चों से पंगा मत लो ।

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गिरीश पंकज,जोगश्‍वर गर्ग, डॉ. मोहम्‍मद आज़म, राजेन्‍द्र स्‍वर्णकार

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गिरीश्‍ा पंकज

वहां पहलवान जाने कितने मिले टहलते तेरी गली में
उतर गया है बुखारा सारा पड़े वो जूते तेरी गली में

चढ़ी जवानी में भंग ऐसी नशा कभी भी उतर न पाया
इसीलिये ही जवान दिखते हैं आज बूढ़े तेरी गली में

जो हमने काला ये मुंह किया तो वो लाल-पीली सी होके बोलीं
के अब न खेलेंगे हम तो होली लला जी आके तेरी गली में

सभी भंगेड़ी, सभी गंजेड़ी बसे हैं आकर लगे यहीं पर
मिला के गोबर में थोड़ा कीचड़ नहाए मिल के तेरी गली में
दिखे है टुनटुन-सी तेरी मम्मी कहूं क्‍या तुझसे बताऊं मैं क्‍या
लड़ाए नैना बनाए बतियां ग़ज़ब वो ढाए तेरी गली में

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डॉ. मोहम्‍मद आज़म

सुन ऐ सियासत हो खैर तेरी लुटा के पैसे तेरी गली में
कई उचक्‍के भी गन गय हैं शरीफज़ादे तेरी गली में

शरीफ जैसा हूं बन के रहता मैं आऊं कैसे तेरी गली में
इधर खड़े हैं, उधर खड़े हैं सभी कमीने तेरी गली में

है तेरी औक़ात कितनी ऊंची इसी से मालूम हो रहा है
कली है बिखरी, न फूल बिखरे, हैं बिखरे जूते तेरी गली में

गय था इक रोज़ तुझसे मिलने, पकड़ लिया तेरे भाइयों ने
उतार डाला ख़ुमारे उल्‍फ़त वो मारे डंडे तेरी गली में
पयामे उल्‍फ़त, सलामे उल्‍फ़त, हूज़र तेरे मैं कैसे लाता
हैं शेर कुत्‍ते तेरी गली के जो काट खाते तेरी गली में
तू है सितमगर, तू मेहरबां है तू नर्म दिल है तू संगदिल है
ज़बान जितनी बयान उतने तिरे ही चर्चे तेरी गली में
अबीर छिड़कें, गुलाल छिड़कें, मनाएं खुशियां मनाएं होली
नशा चढ़े भांग का कुछ ऐसा न होश आये तेरी गली में

हो चाहे मुस्‍लिम हो चाहे हिंदू ग़रीब हो या अमीर कोई
भुला के होली पे फ़र्क सारे हों एक जैसे तेरी गली में

दिलों को आपस में जोड़ दें जो हैं रंग होली के गोंद जैसे
तू रंग उस पर भी डाल देना जब आज़म आए तेरी गली में

 

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राजेन्‍द्र स्‍वर्णकार

हमारी मारी गई थी मत , जो...मटकते आए तेरी गली में
मगर ये क्या ! दिन में  हमने देखे चमकते तारे तेरी गली में

तुम्हारे घर के अभी तो हमने लगाए भी थे न चार चक्कर
रईसजादे हमारा भुरता लगे बनाने तेरी गली में

जड़े दनादन हजार घूंसे , जनानियों ने परोसे सेंडल
ये पूतना-कंस-रावणों के नये नमूने तेरी गली में

किसी ने जबड़े ही तोड़ डाले , किसी ने कपड़े भी फाड़ डाले
बनाया शाहरूख से हमको शेटी ,  ये बाल उजड़े तेरी गली में
नहीं पछाड़े यों कपड़े धोबी , लगी वो धोबी पछाड़ हमको
धुलाई सबने हमारी यों की गजब हैं गुंडे तेरी गली में
हमारे मुखड़े पे मल के कीचड़ , गधे पे हमको बिठा' घुमाया
भरे हुए हैं कसाई सारे जहान भर के तेरी गली में

रगड़ के हम नाक , छूट' दौड़े , इशक से तौबा है अब रजिंदर
उतर  गया है बुखार सारा पड़े वो जूते तेरी गली में

 

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जोगेश्‍वर गर्ग

महाबली भी झुकाए मस्तक जब आ रहे हैं तेरी गली में
हुज़ूर हम भी वही रवायत निभा रहे हैं तेरी गली में

तेरी गली में कभी कहीं भी न हो अन्धेरा न हो अन्धेरा
इसीलिये हम जिगर की होली जला रहे हैं तेरी गली में

न वो पिलाते दबाव दे कर न हम बहकते यूं भंग पी कर
बजा बजा कर वो चंग हमको नचा रहे हैं तेरी गली में

न रंग ऐसे कभी उड़े थे न ढंग ऐसे कभी दिखे थे
गुलाबजल की जगह पे कीचड लगा रहे हैं तेरी गली में

बजा रहे हैं वो तालियाँ भी सुना रहे हैं वो गालियाँ भी
वो खुद ही खुद को बना के जोकर हंसा रहे हैं तेरी गली में

हजार जूते हजार गाली लिए खड़े वो सजाये थाली
न यार कोई खिला रहे हैं न खा रहे हैं तेरी गली में

मचा हुया है अजब अनोखा रहस्य सा इक तेरे शहर में
हजार बातें करोड़ किस्से न जाने क्या है तेरी गली में

वो जो कभी भी हँसे नहीं थे वो जो कभी भी फंसे नहीं थे
वो आज आलम बेहूदगी का मचा रहे हैं तेरी गली में

तेरी गली से निकल गए जो उन्हें ठिकाना कहाँ मिलेगा
जगह मुकम्मल उन्हें भी मुश्किल जो आ रहे हैं तेरी गली में

न "जोग" कोई न कोई "ईश्वर" न आज "जोगेश्वरों" की जुर्रत
न समझदारी न होशियारी दिखा रहे हैं तेरी गली में

वाह वाह क्‍या ही शेर निकाले हैं । जोगश्‍वर जी कुछ टुन्‍न जियादा थे सो रदीफो काफिया बदल गया । मगर फिर भी निभा ले गये । तो देते रहिये दाद खाज़ खुजली सब कुछ ।

सूचना - कल जब लक्ष्‍मण जी मंच के पीछे से बीड़ी पीकर मंच पर मेघनाथ युद्ध के लिये आ रहे थे तो किसी ने उनको गन्‍ने की गंडेरी फैंक कर मारी । जब उनने पूछा कौन तो जवाब मिला कि भूत । ये भूत पिछले साल भी गंडेरी फैंक कर गया था इस साल भी आया है । भूत से निवेदन है कि पूरा गन्‍ना फैंके ताकि खाने के काम आ सके ।

सूचना - कल हरियाणा से किसी समाचार पत्र की सम्‍पादिका जी का फोन आया था वे कह रहीं थीं कि वे होली के तरही को अपने होली विशेषांक में स्‍थान देना चाह रहीं है । स्‍वीकृति चाहती थीं सो हमने दे दी । अब हरियाणा वालों की जिम्‍मदारी है कि वो उस समाचार पत्र को बाकियों तक पहुंचायें ।

सूचना - कल हमार बचुवा का जिन्‍नमदिन हइबल । गोबर भेजें । कीचड़ भेजें । मगर शुभकामनाओं के साथ भेजें । कल बचुवा सन्‍नारियों के बीच आपन गजलवा पढि़ल ।

सूचना - दुर, का समझ लिहिन है हमका । जाओ नहीं देते कोई सूचना । रो रो डुकरियां गीत गाएं मोड़ा मोड़ी के हंसी आए ( नानी की कहावत) ) कल नानी की एक और कुछ घटिया सी कहावत के साथ मिलते हैं ।

28 टिप्‍पणियां:

  1. क्‍या पंकज भाई, सुब्‍ह-सुब्‍ह! हे राम! अब दिन कैसे कटेगा। आपने इतने प्‍यारे बच्‍चों को चंडाल चौक‍ड़ी कह दिया।
    अब इन्‍हें विस्‍तार से पढ़कर लौटता हूँ। समझ तो लूँ कि ऐसा क्‍या है इनमें जो जो ये विशेषण प्राप्‍त किया है।

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  2. हा हा!! सभी प्यारे प्यारे बच्चे...तुतलाते हुए बड़ा सुर में बोल गये...नशे में होली जो न करवाये...


    मजा आ गया....:)

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  3. आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं ,

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  4. हाय रे हाय रे हाय रे

    सब बचुवन सब होली में चंडाल रूप में आ गईल... अब का होई...

    ऐसन रस बरसल ग़ज़ल में... हम नतमस्तक हो गैनी... डा. आजम साहब... और गिरीश साहब... थोडा धीरे धीरे पढ़ा न.

    हम पानी पीकर आवत बानी.

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  5. सुबीर इन चार दिग्गजों के उलाहने सहने का दम नही है ये तो उस्तादों के उस्ताद बच्चे हैं क्या रंग फेंके हैं हम तो अपनी आँखें ही मलते रह गये ---- आज पता चला कि सही मे हज़ल क्या है तीनो के शेरों मे नज़ाकत भी है और हुडडंग भी इतनी भाँग पी कर भी इनके होश ठिकाने पे हैं घूर आश्चर्य
    पंकज जी के शेर
    सभी भंगोडी सभी नशेडी-----
    देखे है टुनटुन -------
    वाह वाह क्या बात कही।
    और डा. आजम जी के मतले से आगे नही बढ रही हूँ देखिये खुद को कितना शरीफ समझ रहे हैं वो तो उनको पडे हुये जूतों से ही पता चल रहा है ।
    प्यामे उल्फत सलामे उलफत-----
    गया था इक रोज़-------ये इनकी श्राफत का सबूत देखिये। पूरी गज़ल ही बहुत बडिया है
    राजेन्द्र जी को पहली बार पढा है शायद मगर वो भी उस्ताद हैं
    मारी गयी थी मत------ क्या होली पर भांग पी कर भी मत रहती है --- इतनी क्या मुफ्त की समझ कर पी गये?
    तभी तो
    जडे दनादन ----
    किसी ने जबडे----- ये जरूर मेरे-- ये जरूर मेरी कल वाली फौज का काम है। बहुत अच्छी लगी हज़ल
    और गर्ग जी ने तो और भी कमाल कर दिया
    न वो पिलाते----- वाह खुद पीने का आरोप भी उन पर जड दिया क्या बात है
    न रंग ऐसे उडे----- सही कहा ऐसी होली हमने तो पहले नही देखी थी इन सब को बहुत बहुत बधाई मेरी फौज के सिपाहिओ आओ अब जूतों से इन की आर्ती उतारो। और सुबीर के लिये कीचड लाना मत भूलना।

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  6. बहुत खूब है आज की महफ़िल :) एक गाना याद आ रहा है... " जो हमने दास्तान अपनी सुनाई ... " :)
    सुबीर भईया, आपके sense of humor के लिए जब तक हम कोई नया दाद फार्मूला नहीं निकाल लेते तब तक आप वही पुरानी वाह !! वाह!! से काम चलाईये ...
    गिरीश जी, आज़म जी, राजेन्द्र जी और गर्ग साहब आप सभी दाद क़ुबूल फरमाएं.
    ---
    कुछ शेर नए और बहुत अच्छे लगे, कई और भी बहुत सुन्दर हैं पर उन्हें नीचे नहीं लिख रहे क्योंकि वे "आप बीती " टीम के Universal sentiments लगते हैं :)
    जो हमने काला...
    पयामे उल्फत...
    तू है सितमगर... ( ये सुपर हिट )
    हो चाहे मुस्लिम...
    दिलों को आपस में...
    जड़े दनादन हज़ार...
    हजूर हम भी वही... (वाह !)
    ना हो अन्धेरा, ना हो अन्धेरा... (क्या बात है!)
    हज़ार बातें,करोड़ किस्से... ( ये 'सितमगर' वाले भाव लिए हुए , वाह!)
    -----
    सुबीर भैया अब आपको क्या कहें... आप तो आप ही हैं :) :)
    सादर...

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  7. चारों महारथियों की हज़ल पर क्रमबद्ध टिप्‍पणी:
    गिरीश पंकज़, हज़ल तुम्‍हारी, पढ़ी तो बूढ़े, चढ़ा के भंगिया
    जवान होने की एक पुडि़या, चले हैं लेने, तेरी गली में।

    खुली है कक्षा, पढ़ो तो आकर, बड़े कमीने पढ़ा रहे हैं,
    ये डाक्‍टर, पर कभी ना आये, नरस पे लटके, तेरी गली में।

    डॉ आज़म साहब ने हज़ल में भी ग़ज़लियत ला ही दी। हो चाहे मुस्‍लिम, हो चाहे हिंदू... और दिलोंको आपस..... सवा सेर के शेर। शेर के हिसाब से कम हो गया वज़न, चलता है होली में, दिल ना माने तो सवा टन का कर लो अपन तो तुक मिला रहे थे।

    क्‍यूँ पूतना, कंस के वंशजों की बुलाके रक्‍खी थी फ़ौज तुमने
    भाई रजिन्‍दर, पिटे हैं इतने, कि इश्‍क हारे, तेरी गली में।

    हँसे नहीं जो, फँसे नहीं जो, कहॉं भला, नर बचे हैं ऐसे
    महाबली हो, या तिफ़्ल कोई, सभी हैं हारे, तेरी गली में

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  8. राम राम ऐसे बच्चे हों तो ...... तो भगवान सब को दे .. क्या कमाल के शेर निकाले हैं ... हर कोई एक दूजे से बढ़ कर है ... हम जैसे नोसिखिए कुछ कहें इनके बारे में ...... हमारी क्या मज़ाल ....
    बस आनंद लेने आ रहे हैं हम तो ... दिन में कई बार पढ़ते हैं ... हंसते हैं लौट जाते हैं ... फिर वापस आते हैं ... भई कमाल का मुशायरा है .... ऐसा सफल आयोजन तो गुरुदेव आपके बस की ही बात है .....

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  9. हंसने से फुर्सत मिले तो न करें टिपण्णी...पूरे के पूरे हिल रहे हैं और दूर से देखने वाले हैरान हैं की क्या हो गया ये आदमी को...होली से पहले ही पगला रहा है...बहुत धाँसू तरही जा रही है गुरुदेव...ये नटखट बालक तो अच्छे अच्छों के कान काट रहे हैं...
    गिरीश जी का " चढ़ी जवानी में भंग...", डा.आज़म का " तू है सितमगर...", राजेंद्र जी का " जड़े दनादन...", जोगेश्वर जी का " तेरी गली से निकल गए..." शेर नहीं बब्बर शेर हैं जो दहाड़ रहे हैं और हम जैसों के पेट में बल डाल रहे हैं...

    नीरज

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  10. वाह गुरु जी मजा आ रहा है इस बार की तरही में इन बच्चों की हजलों को पढ़कर...होली की शुभकामनाएँ

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  11. गुरु देव पाँव लागी

    आज त जोगेस्वर बाबू का पढ़ के भांग के मजा दुगना होय गवा बहुत दिन से दिल में हसरत रही की बाबू जी का हिया तरही में पढ़ी
    का आप लोगन का पता है इन्हूं पाभी बाबू के तरहा बहुत खेले खाए हैं तीन बार एम्.एल.ए के कुरसी पे बैठ चुके है तबहू आपण फोटो ऐसा चेपे हैं बिलाग में के लागल बानी अभिन कारज जात होय, हम त बूझीं ने पाए रहे

    बाकी बात रात का दुई गोला चढावे के बाद

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  12. राजेंद्र स्वर्णकार जी और जोगेश्वर गर्ग जी को पढ़कर मजा हा गिया

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  13. hahahahahaha...........holi ke rang aur wo bhi ek se badhkar ek............mazaa aa gaya.

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  14. chadhaa diya hai rang sab par, gajab hai pankaj ki 'tunn' mahafil/ ham bhi bigade are achanak yaar aa ke teri galee me.

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  15. होली की मस्ती पूरे चरमोत्कर्ष पर है। हम तो उलझ गये हैं गुरुदेव इन जबरदस्त हज़लों में, आपके फोटोशाप की कलाकारी में, वन-लाइनर में...

    और आज तो वैसे ही खुशी इतनी जबरदस्त है उस खबर को सुनकर कि क्या कहें।

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  16. @ और आज तो वैसे ही खुशी इतनी जबरदस्त है उस खबर को सुनकर कि क्या कहें

    अरे गौतम भईया हमका ना बताइयेगा का की कौन सी खुस खबरी

    अकेले अकेले खुस हो लिए ?

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  17. नन्हे मुन्नों ने तो कमाल कर दिया.नन्हे से मुन्ने से अच्छे से बच्चे से प्याले प्याले... आदरणीय गिरीश जी ,इस उम्र में भी...कमाल है भाई---पूत के पाँव तो पलने में दिखाई दे रहे है...अभी से फिआंसी की मम्मी को टुनटुन ???
    और परम आदरनीय आजम साहब...आपने तो अपने बचपन में भी कमाल के शेर लिखे है...सियासत वाला और शरीफ जैसा वाला कमाल के है...पयामे उल्फत तो गजब है...और सबसे सुन्दर है--तू है सितम गर तो है मेहरबान वाला---जबान जितनी बयान उतने की गिरह पर तो उछल पड़ा मैं...वाह वाह!!
    ...राजेन्द्र जी का शर्ट कहाँ है???...धोबी ले गया शायद...पछाड़ने के लिए...कमाल इस बात का है कि शाहरूख से शेटी बन गए...वाह!

    जोग्र्श्वर जी,का फरक बहुत अच्छा लगा है-नया है कल ही मेले में लिया था...
    आपकी हजार बातें करोड़ किस्से पर खूब तालियाँ बजी ...वाह वाह!

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  18. तरही वाकई नदी की तरह अपने उफान पर है ,.इन चारो धुरंधरों ने क्या खूब होली खेली है गुरु देव... मजा आगया ...गिरीश जी ने पहला शब्द ही पहलवानी से कर दी बच्चे जब ये कहें तो हदें पार कर देने वाली बात कर देते हैं... और दुसरे शे'र पर खुद को ठिठका सा पा रहा हूँ फिर से...
    आज़म साहब के तो हम पहले से ही फेन हैं और इस बारी होली विशेष पर और कहां की शायरी कही है इन्होने ... सलाम करता हूँ इनको ...
    स्वर्णकार साहब वाकई शिल्पकार हैं... पहली मर्तबा ही पढ़ रहा हूँ इनको ... और फिर अपने सरे ही शे'रों को धता बता रहा हूँ ..
    गर्ग साहब ने सबसे ज्यादा चकित किया है आज की तरही में ... सभी को होली की वेशेष तौर से बधाई... मगर खुशखबरी नहीं बतायी जा रही है ये गलत है गुरु देव ये तो पारदर्शिता वाली बात नहीं हो रही है के एक को पता रहे और दुसरे को भनक भी ना लगे... मुझे बेचैनी हो रही है ... और रात भर सो नहीं पाउँगा...
    होली की फिर से बधाई सभी को...


    अर्श

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  19. ha ha ha ....holi hudang ko aapane to pure jor par laa diya !! bahut sahiiiiii..........Aabhar!

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  20. मोहम्मद आज़म गिरीश पंकज गरग जोगेश्वर हैं साथ मेरे
    सुबीर पंकज की प्रेरणा से जमे हैं बच्चे तेरी गली में

    सभी चचा ताऊ ताई बहनों का आभार हौसला बढाने के लिए ...

    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  21. हमहू यहीं है

    गुरु जी हमका भी नहीं बताए अब कल तक.........

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  22. बस जोगेश्वर जी से चैटिया रहे हैं :)

    तिलक जी से चैटिया चुके :)

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  23. अर्श भाई को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाये

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  24. पंकजजी !
    बड़े जिद्दी और अड़ियल है आप भी. बस अपने मन की करवा के ही मानते हैं. ये बहुत गलत बात है. मेरी हज़ल पे कमेन्ट मार कर आपने सारा नशा उतार दिया. फिर से किलो भर भंग घोंट कर पीनी पडी तब कहीं जा कर ससुरा दिमाग ठिकाने आया. भंग का बिल भेज रहा हूँ. अपने पट्ठे वीनस के हाथ भिजवा देना ईमानदारी से. उसे ताईद कर देना बीच में कमीशन नहीं मारे. [ क्योंकि कमीशन खाना सिर्फ हमारा अधिकार है. हा हा हा ] आप तो जानते ही हैं चोर पर मोर not alowwed .
    और हाँ, आयन्दा से मेरी ग़ज़ल पर कमेन्ट मारने की हिमाक़त मत करना. इस बार तो होली है इसलिए माफ़ किये देते हैं.
    ओफ्फो ! नाराज़ हो गए क्या? तो आप भी मेरे इस कमेन्ट को होली समझ कर माफ़ कर दो यार! अरे! अब भी मुंह फुलाए बैठे हो? बड़े वो हो. चलो आपकी जिद पूरी कर ही देते हैं. ये लीजिये आपके रदीफ़ काफिये पर दो शेर. अब तो खुश? अब दो दाद खुज़ली और............
    सब को होली की बहुत बहुत शुभ कामनाएं!

    सुबह सवेरे भरी दुपहरी लगाए फेरे तेरी गली में
    घुसें किधर से छुपें किधर को हजार पहरे तेरी गली में
    गए बरस हम किसी तरह से पहुँच गए थे तेरी गली में
    उतर गया है बुखार सारा पड़े वो जूते तेरी गली में

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  25. बस देखते रह जाओ। वाह क्या कमाल की कलाकारी है। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  26. बस देखते रह जाओ। वाह क्या कमाल की कलाकारी है। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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