गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

चले जा रहे हम हैं ठेले पे लद कर, खुदा यूं किसी की न मय्यत उठाए । श्रोताओं के बहुत अनुरोध पर आ रहे हैं श्री भभ्‍भड़ कवि 'भौंचक्‍के अपनी एक ग़ज़ल और एक हज़ल लेकर ।

इस बार के तरही को लेकर मन बहुत ही गार्डन गार्डन है । जितने उत्‍साह के साथ लोगों ने इसमें भाग लिया उससे मैं अभिभूत हूं । सबसे बड़ी बात ये है कि सबने मुशायरे में इस प्रकार से भाग लिया जैसे ये उनका अपना ही कार्यक्रम है । सच है ये आप सबका ही तो कार्यक्रम है । कुछ दिनों पूर्व सुखनवर के संपादक श्री अनवरे इस्‍लाम जी से मैंने कहा था ' अनवार भाई सुखनवर पत्रिका तो हमारी है, आप तो हमारे प्रतिनिधि के रूप में उसे संभाल रहे हैं ।' वही बात आज यहां भी कहता हूं कि ये तरही मुशायरा, ये ब्‍लाग तो आपका है, मैं तो केवल एक प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहा हूं । आशा है कि आप सबका स्‍नेह उसी प्रकार मिलता रहेगा । अगले तरही के मिसरे पर काम चल रहा है और अगली पोस्‍ट में अर्थात शनिवार को वो प्रस्‍तुत कर दिया जायेगा । और ठीक पंद्रह फरवरी से हम होली का तरही प्रारंभ कर देंगें । आप सब तो जानते हैं कि होली के अंतिम दो अंक कुछ खास होते हैं जो नहीं जानते वे पिछले साल का  होली अंक 1  और होली अंक दो जाकर देख सकते हैं ।

नये साल के तरही मुशायरे का तो पिछली बार ही आदरणीय तिलक राज कपूर जी और निर्मला दी ने शानदार समापन कर दिया था । लेकिन कई बार कवि सम्‍मेलन समाप्‍त हो जाने के बाद भी एक दो कवि जिनको भड़ास निकालने का मौका नहीं मिलता है वे खाली हाल में माइक पकड़ कर प्रारंभ हो जाते हैं । सुनने वाला भले कोई न हो लेकिन वे पेलते रहते हैं । तो ऐसे ही एक कवि हैं भभ्‍भड़ कवि 'भौंचक्‍के' इनको भी पेलने का मौका नहीं मिला सो वे भी कार्यक्रम समाप्‍त होने के बाद माइक पर आ गये हैं पेलने । एक ग़ज़ल लाये हैं और उनका ऐसा कहना है कि होली के मुशायरे में चूंकि केवल हज़ल ही होंगीं इसलिये वे एक ह़ज़ल भी लाये हैं ताकि लिखने वालों को ह़ज़ल के बारे में समझ में आ जाये ।

कानूनी सूचना - इस रचना को पढ़कर यदि आपको किसी प्रकार की मानसिक क्षति होती है या यदि आप अपने बाल नोंच लेते हैं तो उसके लिये ये ब्‍लाग किसी भी प्रकार से जिम्‍मेदार नहीं होगा, सारी जवबादारी श्री नीरज गोस्‍वामी जी की होगी जिन्‍होंने नीचे लिखी बातों से भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के का हौसला बढ़ा दिया । यदि आप कोई भी कानूनी कार्रवाई करना चाहें तो वह श्री गोस्‍वामी पर करें ।

(श्री नीरज गोस्‍वामी ) विश्व विख्यात परम आदरणीय प्रातः स्मरणीय श्री श्री 1008 श्री " भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के' " की रचना को पढने का सुअवसर अगर आप अपने पाठकों को नहीं देंगे तो ये उनके प्रति अन्याय होगा. उन्होंने पिछले चौंतीस सालों से दुनिया को भौंचक्का करने का जो पावन कार्य आरम्भ किया था उसे वो आज तक निभा रहे हैं...उन्हें पढ़कर पहले हम ही भौंचक्के हुआ करते थे बाद में हमारे पुत्र उनके लेखन से भौंचक्के हुए और अब मिष्टी उनके शब्द जाल में फंस भौंचक्की हुई घूम रही है...ऐसे वानर श्रेष्ठ अरेरेरे...मानव श्रेष्ठ कविराज की रचना को जल्द प्रकाश में लाईये गुरुदेव. विलम्ब प्राण हरने वाला लग रहा है.

तो लीजिये समापन के बाद आ रहे हैं भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के

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श्री भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के

पहले इस एंगल से एक ग़ज़ल पेश करता हूं, आभारी हूं सबका कि आयोजकों के घनघोर विरोध के बाद भी मुझे पढ़ने का मौका दिया । वैसे मैंने सवा तीन सौ शेर निकाले थे लेकिन समय की कमी को देखते हुए कुछ ही पेश कर रहा हूं ।

ग़ज़ल

वो जां बख्‍़श दे या कि सूली चढ़ाए
खड़े उसके कूचे में हैं सर झुकाए

मेरा नाम जुगनू है, सूरज से कह दो
मेरी आंच से वो कहीं जल न जाए

जवानी, अदा, नाज़, नखरों का बोझा
लदा हो तो फिर क्‍यों कमर बल न खाए

लिपट कर पहाड़ों से कोहरा है सोया
हवा से ये कह दो अभी ना जगाए

वो पागल का कि़स्‍सा सुनाने का कह के
मेरी ही कहानी मुझी को सुनाए

अंधेरे की सरगम पे सांसों की लय में
तेरा जिस्‍म गाए, मेरा गुनगुनाए

तेरी याद भी है महाजन के जैसी
जो कुर्की का नोटिस लिये संग आए

पिघलता है कुछ बर्फ सा धड़कनों में
हुआ क्‍या है मुझको कोई तो बताए

क़यामत, क़यामत, क़यामत, क़यामत
वो पलकें उठा कर नज़र जब मिलाए

ये सर पे पसीना ये उखड़ी सी सांसें
ये क्‍या रोग पाला है बैठे बिठाए

हुई दिल की देहरी पे अन्‍जान आहट
नज़र आ रहे हैं दरीचों पे साए

लबों की छुअन से लरजना बदन का
कसा तार वीणा का ज्‍यों झनझनाए

तपिश सौंधी सौंधी सुलगती है कब से
कोई आके शबनम की बूंदें बिछाए

इधर आ रहा कोई कॉमेट है शायद
ख़ला का अंधेरा बहुत सनसनाए

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और अब दूसरे एंगल से एक हज़ल । उसमें मैंने पांच सौ निन्‍यानवे शेर निकाले थे लेकिन समय कम है सो कुछ पेश कर देता हूं । ( सारे शेर 14 फरवरी के पावन दिवस को समर्पित हैं । )

हज़ल

हमारे ही दिल का वो भुर्ता बनाए
छिड़क कर नमक फिर हमीं को खिलाए

गए साल तो सिर्फ जूते हैं खाए
न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए

यूं पहलू में आ नाक भौं मत सिकोड़ो
हुए दस ही दिन तो हैं हमको नहाए

हसीनाओं के बाप मरते नहीं क्‍यों
कहां से ये अमरौती खाकर हैं आए

वो चिमटे से मारे वो बेलन से पीटे
जो सीना बचाऊं तो सर पे चलाए
 

ये दिल जैसे कूकर है तेरी गली का
तुझे जब भी देखे बहुत दुम हिलाए

ज़रा अपने कमबख्‍़त भाई से कह दे
कभी दूल्‍हा भाई भी कहके बुलाए

तेरे सौ हैं आशिक़, सवा सौ दीवाने
खड़े हम भी क्‍यू में हैं नंबर लगाए

ये है डायलर टोन या तेरे अब्‍बू
करूं काल जब भी तो गाली सुनाए

चले जा रहे  हम हैं ठेले पे लद कर
खुदा यूं किसी की न मय्यत उठाए

तेरी याद खटमल सी ख़ूं चूसती है
ये मच्‍छर सी कानों पे आ भिनभिनाए

है दिल मोड पर बाइब्रेशन के आया
तू जब पास आये तो ये थरथराए 

किया है अटैच अपना दिल मेल के संग
कहीं एंटी वायरस न इसको उड़ाए

ये है दोस्‍त कैसा, मेरी कब्र पे जो
धतूरे के फूलों की माला चढ़ाए

अब आप लोगों ने ही बुलाया है तो आप ही झेलो ये थोक के शेर । मैं तो अब दाद देने से रहा आयोजन समाप्‍त होने के बाद । तो आज तरही मुशायरे का ये अंक विधिवत बंद किया जाता है । अगली पोस्‍ट में अगला मिसरा होली का और कई सारी बातें । मुझे आज्ञा दीजिये और हां भभ्‍भड़ कवि से माइक जल्‍दी छीन लीजियेगा नहीं तो पेलते ही रहेंगें ये ।

42 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा!! हज़ल ने होली का रंग चढ़ाना शुरु कर दिया मास्साब अभी से...बेहतरीन मजा आ गया ऐसे समापन से... होली में टंकी में इनको ही डुबायेंगे सबसे पहले!! :)

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  2. shri bhabhad ji ,bahut khoob,ek mazahiya shayer aur aisi sanjeeda ghazal .....ye combination zara kam hi dekhne ko milta hai.
    matla to khooobsoorat hai hilekin...
    ''mera naam jugnoo..........''
    bahut umda sher hai,
    hazal ka matla hi sab par bhaari hai
    ya ''chale jaa rahe ham......''mazah men samaj ki visangatiyon ka aisa sammishran wah!
    pankaj ji aapko bhi badhai

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  3. बाप रे गुरु देव इस भौचके कवी महाराज ने तो नाक में दम कर दिया दिया हिया पहले तो इस नायाब ग़ज़ल से और हस के लोट पोट हो रहा हूँ हज़ल सुन कर ... फिर से आता हूँ शाम को ज्यादा बर्दास्त नहीं कर पा रहा मुकदमा ठोकने जा रहा हूँ नीरज जी पर ..


    अर्श

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  4. ह हा हा , ह हा हा, ह हा हा , ह हा हा
    पकड पेट हम तो ठहाके लगायें

    गज़ब की हज़ल है गज़ब के कवि
    ले लो भौचके जी हमारी दुयायें

    सुबीर जी पहली बार इनका परिचय मिला है अगर कुछ और भी इनके बारे मे बताते तो बहुत अच्छा लगता। हैरान हूँ और निशब्द भी । नीरज जी से कहूँगी कभी इनके बारे मे जरा विस्तार से नये लेखकों के लिये लिखें। आपतो मेरी सामर्थ्य जानते ही हैं कि इन की गज़ल के बारे मे शब्द नही मगर दिल से दाद दे रही हूँ आज इस मुशायरे को पढ कर किसी और ब्लाग पर जाने का मन ही नही हो रहा। जी चाहता है इस हज़ल और गज़ल को ही पढे जायें । भौंचके जी को नमन और बधाई । आपका भी धन्यवाद और आशीर्वाद्

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  5. hajal likhana kathin kaam hai. log has pade, aise sher hone chahiye. bhauchakke ne to bhauchakka hi kar diya. achcha laga. inse prerit ho kar ab mai bhi ek-do hazale pelane ki koshish karoonga. holi bhi aa rahi hai, isee vaqt 'mood' banata hai apana. dekhe, kya hota hai. filhal bhauchakke ne khush kar diya. hasy bhi zaroori hai shayaree mey..

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  6. पहले ग़ज़ल के लिए टिपण्णी:
    आदरणीय श्री भ.भ. भाई साहब, आपकी ग़ज़ल पढ़ के मन प्रसन्न हो गया :)
    पूरी ग़ज़ल मुकम्मल !
    जो शेर बहुत-बहुत सुन्दर लगे और शायद याद रह जाएं उनको लिख रही हूँ :
    "मेरा नाम जुगनू... " वाह! क्या आत्मविश्वास है, दाद कबूल फरमाईये!
    "लिपट कर पहाड़ों से ..." उफ्फ्फ ये इतना नाज़ुक कि डर लग रहा है कि कहीं इस कमेन्ट की टाइपिंग की आवाज़ से शेर में छुपा हुआ कोहरा कहीं उठ ना जाए... बहुत बहुत सुन्दर!!
    "ये सर, ये पसीना ... " बहुत ही प्यारा, graphic सा शेर, बधाई!
    कुछ अन्य है जिनके बारे में बस मुस्कुराना उचित समझती हूँ .... , तो ये लीजिये :) :) :) :) :) :)...
    जीते रहिये!
    सादर ...शार्दुला

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  7. हँसते हँसते जैसे तसे लिख रह हूँ... क़यामत क़यामत क़यामत, सच मच क़यामत आ चुकी है.

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  8. आपकी ये हज़ल बिना इस चेतावनी के प्रेषित की गयी कि अगर इसे आफिस के लंच में पढेंगे तो नौकरी से निकाले जाने का ख़तरा है ... क्योंकि थोड़ा हँसना तो ठीक है पर इतना हंसने पे etc etc ... ये सब नहीं लिखा आपने, सो श्री 'भ क्यूब' और उनको उकसाने वाले सभी बंधुओं और बांधवों... एक मुकद्दमा दायर किया है... जो केवल सिंगापुर के jurisdiction में सुना जायेगा, तो आप सब तैयार हो जाईए ...
    ... उफ्फ्फ्फ़ "भ क्यूब" ... आप तो गए :)
    जब हँसना ख़त्म हो जायेगा तो टिपण्णी भी लिख देंगे :) :) :)
    Vibration mode and anti virus is really cute :):)
    भौत-भौत भदाई भ. भ. भ !!!

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  9. नीरज जी ,
    कहाँ इनका कूचा बतायें बतायें
    अदब से जहाँ जा के हम सर झुकायें :)

    पूरा तरही मुशायरा पढ़ा ख़ूब आनंद के साथ ..पकंज जी बहुत शुक्रिया ..

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  10. गुरूजी जुलुम हो रहा हिया आज. नीरज सर कहाँ है... यहाँ ऑफिस में चार चार विंडो, अत्यंत गम्भीर इमेल्स, ऑनलाइन मीटिंग/चाटिंग चल रहा है. और मैं ग़ज़ल/हज़ल वाली इस मंच को बंद नहीं कर पा रहा हूँ.

    आज तो मेरी शाख पे बट्टा लगेगा. अपने आप को बड़का मल्टी-प्रोसेसर समझते थे. जल्दी जल्दी टिप्पिया कर काम पर वापस लौटते हैं... क़यामत भईक़यामत

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  11. ग़ज़ल सम्राट भौंचक्के जी ने अपने नाम को सार्थक कर दिया ग़ज़ल और हज़ल दोनों पढ़ कर दिमाग भौं भौं कर चक्कर लगा रहा है...जीवन में भौंचक्के होने का आनंद इस से पहले कभी नहीं आया...क्या ही अच्छा हो अगर इनकी चरण धूलि कुरियर से मुझे भिजवा दें...शपथ खा कर कहता हूँ की उस चरण रज को माथे पे लगा ऐसे शेर कहूँगा की ग़ालिब कब्र में से बाहर निकल कर अगर वाह वाह करते नज़र ना आयें तो अपना नाम बदल दूंगा...(क्या रखूँगा अभी सोचा नहीं है).

    "मेरा नाम जुगनू है ....","लिपट कर पहाड़ों से कोहरा...","अँधेरे की सरगम पे.....","हुई दिल की देहरी पे...", "लबों की छुअन से....", जैसे शेर बरसों में पढने को मिलते हैं...और जब मिलते हैं तबियत बाग़ बाग़ कर देते हैं...शायरी का पूरा लुत्फ़ आ जाता है.

    हज़ल लिखना मानो नये चुटकुले को ईजाद करने जैसा है...हम चुटकुले सुन कर हँसते हैं लेकिन कभी आपने सोचा है की चुटकुला खास तौर पर असरदार चुटकुला बनाना कितना मुश्किल काम है...आप कोशिश करके देखिये नानी याद आ जाएगी. "हमारे ही दिल का...", "ये दिल जैसे कूकर..."," ये है डायलर टोन...", " ये दिल मोड पर...", शेर कहने में मुझे यकीन है की भौंचक्के जी को पसीने आ गए होंगे... आप खुद देखिये ऐसे लाजवाब शेर कह कहने में कितना सोचना पड़ा होगा उनको.आप उनके चित्र को देखिये क्या हालत हो गयी है बिचारों की, वो सोचने की स्थाई मुद्रा में आ गए हैं....सोचने के प्रयास में सिगरेट की ऐसी की तैसी भी किये जा रहे हैं... कुछ भी कहिये भौंचक्के जी महान हैं लेकिन ऐसी आत्मा ने भारत में जन्म लिया है इसलिए अनजान हैं कहीं अमेरिका में पैदा हुए होते तो अब तक दुनिया में छा गए होते.

    आभार मानते हैं आपका जो ऐसी विभूति को प्रकाश में लाये.

    नीरज

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  12. गजब गुरु जी ..! इसे कहते हैं कुशल संचालन...! अंत अगर भला ना हो तो कुछ भला नही रहा जाता।

    गज़ल ने हार्ट अटैक कराया और हज़ल ने ब्रेन हैमरेहज..!
    अब क्या कहें कैसे कहें। हतप्रभ है।


    गजल और हजल ये है हमको फँसाये
    कहा कुछ ना जाये, रहा भी ना जाये।


    शब्द नही है कितने सेंटी हुए और कितना कॉमिक ये बताने को

    लिखना थोड़, समझना ढेर वाले फॉर्मूले पर चलना होगा आज....!


    आह आह आह आह आह आह आह आह आह आह आह आह
    वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह

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  13. ग़ज़ल और हज़ल दोनो ही कमाल के हैं गुरुदेव ........... उस्ताद उस्ताद ही होते हैं चाहे ग़ज़ल हो या हज़ल या कुछ और .......... हंसते हंसते पेट में दर्द हो रहा है ......... साथ में बैठे लोग सब आनंद ले रहे हैं हज़ल का .......... आपने तो होली का माहॉल अभी से ही बना दिया .......... आज ही रंग लाना पढ़ेगा ........
    इस मुशायरे को आप ने जिस बुलंदी पर पहुँचाया है वो क़ाबिले तारीफ़ है ......... आप के ही बस का था ये ......... अब अगले मुशायरे का इंतेज़ार है ...........

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  14. उँ-हूँ। मैं कतई सहमत नहीं एक भी टिप्‍पणी से।
    पहली बात तो ये कि ये महाशय भौंचक्‍के नहीं, भौंचक्‍के तो सभी पढ़ने वाले हैं। दूसरी बात ये कि ये महाशय भौंचक्‍के नहीं उचक्‍के हैं, सब कुछ उठाकर लेकर ले गये, पूरा का पूरा मुशायरा।
    और तो और मेरे आस-पास तो अमज़द खान की आत्‍मा भटक रही है, पूछती है 'कितने आदमी थे'; मैं कहता हूँ 'एक'; वो कहता है 'वो एक, और तुम इतने सारे, शायर हो कि कायर, जाओ वापिस लूट कर लाओ'; मैं कहता हूँ 'भाई गब्‍बर अब तुम ठहरे निपट गँवार, तुम्‍हें इतना भी नहीं पता कि मुशायरा जब लुटता है तो कहॉं-कहॉं जाता है, अरे भाई मुशायरा लुटकर अवाम के दिलो-दिमाग में ऐसा घुसता है कि जीवनपर्यन्‍त नहीं निकलता और तुम कहते हो वापिस ले आओ, अरे भाई अब तुम खुद ही वापिस आकर कोशिश करलो, हमसे अब तुम्‍हारे ये उटपटॉंग हुक्‍म नहीं बजाये जाते'।
    बड़ी मुश्किल से निज़ात पाई है भाई तब यह टिप्‍पणी लिख पा रहा हूँ।

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  15. बहुत पहले "समोसा कवि" और "कवि चोंच" को पढ़ा था। अपने भभ्भड़ कवि इनके चचेरे या मौसेरे भाई प्रतीत हो रहे हैं। "चित्रकूट के घाट पर, भई भैंसन की भीड़। तुलसीदास चारा लिये, सानी देत रघुवीर॥" की परंपरा के जाज्वल्यमान नक्षत्र कविशिरोमणि अनंत विभूषित स्वनामधन्य श्री भभ्भड़ कवि को प्रणाम करता हूं।
    अभी-अभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है जिस पर अमल किया जाये तो अतिशीघ्र संपूर्ण भारत को अपराधमुक्त किया जा सकता है। करना बस ये है कि खतरनाक से खतरनाक अपराधी को बस भभ्भड़ महाशय के साथ एक दिन रख दिया जाय। मज़ाल है कि वो भभ्भड़ कवि की गज़ल/हज़ल सुनने के बाद और कुछ करने के काबिल बचे!!...."वो लुट गया जिसने भी रखा तेरे कूचे में कदम, इस तरह की भी कहीं राहजनी होती है".....होली में भभ्भड़ कवि क्या गुल खिलाते हैं इसका इंतज़ार रहेगा। फ़िलहाल तो हम लुटे-पिटे बैठे हैं!!!

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  16. मेरे पास कहने को शब्‍द नही हैं कि मे क्‍या कहू मजे आ गया, मेरे बाप तुस्‍सी ग्रेट हो , तोफा कबूल सोनू

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  17. हंसके हंसाके ठहाके ठहाके ठहाके ठहाके
    हज़ल पढ़के अब तो ये रुकने न पाए

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  18. भौंचक्के जी को प्रणाम,
    पूरी ग़ज़ल ही एक ब्लास्ट है, हर शेर सुपर्ब
    "मेरा नाम जुगनू है ....","लिपट कर पहाड़ों से कोहरा...","वो पागल का किस्सा..........", "अँधेरे की सरगम पे.....","हुई दिल की देहरी पे...", "लबों की छुअन से....", "ये सर, ये पसीना........" तकरीबन सारे ही तो कह दिए, एक से बढकर एक हैं.
    ये लीजिये अभी ग़ज़ल के रंग से निकल नहीं पा रहे हैं और भौंचक्के जी हज़ल लेके भी हाज़िर हैं...............अरे जनाब जीने देंगे या नहीं,
    हज़ल का हर शेर रंग बिरंगे गुब्बारों सा है, जो सभी को पड़ रहा है और जम के रंग रहा है.
    मज़ा आ गया................

    @ सोनू भैय्या, एक बार तो आप कांकरहेरा में तोहफा क़ुबूल करवा चुके हैं (याद कीजिये विडियो वाला)...............क्या फिर से वो घटना घट गयी है.

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  19. BHAUNCHAKKA KEE KHOOBEE DEKHIYE
    KI UNHONNE SABKO BHAUBCHAKKA KAR
    DIYA HAI.BAHUT KHOOB !

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  20. BHAUNCHAKKA JEE KEE KHOOBEE DEKHIYE
    KI UNHONNE SABKO BHAUNCHAKKA KAR
    DIYA HAI.BAHUT KHOOB!

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  21. तरही की जितनी शानदार शुरुआत रही अन्त भी उतना ही शानदार हुआ.बधाई सफ़ल आयोजन के लिये.

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  22. मामला तो ठोकना ही पड़ेगा...ई तो बहुत्तई गड़बड़ बात है,भभ्भड़ जी के फोटो के बदले आप ई किसका फोटुआ लगा दिए हैं..कृपया असली तस्वीर लगाइए...

    बाकी ग़ज़ल औ हज़ल का तो का कहें...रसीला खट्टा मीठा चटपटा सब रस एक साथ मिल गया..मन तृप्त हो गया...
    बहुतै बहुतै लाजवाब !!!

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  23. गुरु देव इस भभ्भड़ महाराज ने तो हद ही कर दी है ,एक तो ग़ज़ल तो ग़ज़ल ऊपर से हज़ल पेल नाक में दम कर दिया मगर अब अपनी शक्ल पूरी नहीं दिखा रहे हैं ... हर शे;र में कामयाबी जिस तरह से इन्होने हासिल किया है उसके लिए सादर चरण स्पर्श ...
    हज़ल ने तो अभी से मौसम बना दिया है होली का ... मंच संचालन का खूब तज़रबा है लगता है इस भभ्भड़ महाराज को जिस तरह से उन्होंने तरही की शुरुयात की वो तो खुद में अद्भूत बात थी मगर अब जिस तरह से वो तरही का समापन करवा रहे है वो और भी भौंचक्का कर देने वाला है .... किसी भी मंच संचालक के लिए यही बात सच्चाई की होती है , सुनाने वाला रासिख होता है ये तो जानता हूँ मगर मंच संचालक ही किसी भी सभा को अपने तरह से सुपर हिट करने वाला होता है .. वो जिस तरह से संचालन करेगा लोग उसी हिसाब से चलेंगे.. और यही सबसे बड़ी खुभी है ... सलाम इस अद्भूत कला को ...
    सुबह से सोच ही रहा हूँ इस तरह की प्रतिभा ऊपर से ही प्राप्त होती है मगर सभी ना कर लेते ऐसी बात और तो फिर कुछ फ्लॉप ही न होता ...
    सोनू ने सही ही कहा है तुस्सी ग्रेट हो जी .. :) :)


    अर्श

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  24. " ये दिल जैसे कूकर है 'तरही ' की गली का
    ये ग़ज़ल सारी पढ़कर हम तो सीटी बजाएं "
    वाह वाह वाह ! ऐसी मिठास , ऐसा अपनापन तो सिर्फ भारतीय आम और हम सभी के साझे ब्लॉग
    " सुबीर संवाद सेवा ' पर आकर ही पाया है ...जीते रहीये, और कभी इन नगीनों की रोशनियों को कुंद
    न होने दें के यूं ही दौर चलता रहे ,
    सभी मुस्कुराते रहें ,
    ग़ज़ल सुनाते रहें ,
    प्यार की डोर को हम सम्हाले रहें
    बहुत खूब रहा मुशायरा ..........
    अब, होली का इंतज़ार रहेगा .....................
    बहुत स्नेह व सभी को इसी तरह अपनापन बांटते रहने की उम्मीद इल्तजा सहित .
    - लावण्या

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  25. खुदाया खुदाया खुदाया खुदाया
    कोई हमको इनका पता तो बताये
    जहां जा भरें हम दुआओं से झोली
    खड़े होंयें सजदे में सर को झुकाये
    गज़ल के तरीके, हज़ल कास लीका
    भला इनसे बेहतर कोई क्या बताये

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  26. haha haha h ah...mujhe afsos ho raha hai ki main pehle yahan kyon nahi aai.....
    uff hans hans kar bura haal ho gaya.

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  27. पंकज जी आदाब
    शायरी में हज़ल कहना आसान काम नही है
    हर शेर गुदगुदा रहा है
    बधाई

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  28. श्री 'भौंचक्के' जी की ग़ज़ल तो एक ही सांस में पढ़ गया, एक निहायत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है. पर परेशानी यह है की उनकी पूरी हज़ल पढ़ना आसान नहीं, एक शेर पढ़ते ही हँसी रुके तो अगला शेर पढ़ें. ख़ैर, जैसे तैसे हँसी पर क़ाबू करके पूरी हज़ल पढ़ी तो और भी हँसी का हाल बेहाल!
    अब महसूस होता है कि 'भौंचक्के' जी के कलाम के बिना नए साल के तरही का मुशायरा अधूरा रह जाता. श्री भभ्भड़ 'भौंचक्के' जी दाद कुबूल कीजिए और साथ ही सुबीर जी का धन्यवाद जो उनकी ग़ज़ल और हज़ल पढ़वाने का अवसर दिया.

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  29. भभ्भड कवि जी की प्रशंसा में मैंने चार पंक्तिया लिखी है जो नीचे निवेदन है पर चूँकि इनके अधिकांश प्रशंसक विदेशों में है अत: गूगल ट्रांसलेशन की सहायता से उनका अंग्रेजी अनुवाद भी सादर प्रस्तुत है...आप से निवेदन है कि भौचक जी को अपनी रचनाओं के अंग्रेजी अनुवाद के लिए मेरे पास भेजने का आग्रह करावें..माइक सहित वे ,मैं और गूगल जी फ्री है..पेश है उनके सम्मान में चार लाइने--

    कभी तो ये दिल का जो भुरता बनाए
    कभी बन ये जुगनू जो सूरज जलाए
    महाशय ये भभ्भड़ महाकवि ये भौचक
    गजल से हजल तक सफर जो कराए
    वो पागल का किस्सा वो नखरों का बोझा
    गए जान से हम, जो हम को सुनाए
    ये ठेला है अशआर जो ठेले पे लद के
    बहुत खूब गिरह में मय्यत ले आए

    So this is a heart that never made squash
    This little light that lit the sun never become
    Sir this hustle that stunned Mahakvi
    Who made the journey from Hazl Ghazals
    He's crazy story he's burden Nkron
    We have lives, we shared the
    It's trolley handcart on the Asar of Ld
    Great Mayyt brought in nodule

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  30. कहॉं थे अभी तक लुकाए छुपाए
    अजब हैं गजब हैं ये भभ्‍भड जो आए


    हर एक शेर इनका है भौंचक कराए
    बहुत शुक्रिया जो भभ्‍भड को लाए

    अदा है निराली गजब है रवानी
    शेरों के बोरों को उलटते जाएं

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  31. वाहा वाहा राम जी... ग़ज़ल-हज़ल क्या बनाई....
    सब गजलों से बड़ी यहाँ पर.. भौंचक्के(जी) की झिलाई....
    जय हिंद...

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  32. वो मारा पापड वाले को

    फटा पोस्टर निकला हीरो

    हम तो निकल लिए लंगोट बाँध कर सन्यासी होने

    गुरु जी ये तो घोर अन्याय हो रहा था हम सब पर भभ्भड़ जी महाराज को आप पैंट की पीछे वाली पाकेट में छुपा के रखे थे और अच्छा लुहुआ रहे थे कि दिखाए की नहीं दिखाए की....
    नहीं आगे से ये नहीं चलने का

    अब तो तरही के पहले भभ्भड़ जी को विशेष अतिथी के रूप में ससम्मान सुनावैयेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम धरना प्रदर्शन से भी पीछे नहीं हटेंगे अभी आज आपने मुंबई में संजय निरूपम की शिव सेना के लिए जो धमकी दी गई है सूना ही होगा उससे ही हमारे भी समझा जाये

    अगला तरही मुशायरा १५ फरवरी से शुरू होगा और आज ५ तारिख हो भी गई गुरु जी कहे बच्चा लोग की जान लेने पर तुले हैं इतनी जल्दी कैसे लिख पाएंगे :(:(

    भभ्भड़ जी महाराज की गजल पर कुछ कहने की औकात नहीं है
    और हजल पर कुछ कह नहीं पा रहे है क्योकी बहुत गलत समय पर पढ़ी है रात के ४.२० बज रहे है और पूरा घर सो रहा है और हम रजाई के नीचे मुह को पकड़ के बहिठे है :(:(
    मिसरे का इंतज़ार है और गजल का सफर ब्लॉग पर पोस्ट का भी

    आपका वीनस केशरी

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  33. बहुत खूबसूरत है ये ग़ज़ल
    मजा आ गया है पढ़ कर हज़ल

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  34. .... उम्दा,लाजबाव,बेजोड,प्रभावशाली,प्रसंशनीय!!

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  35. भौंचक्के जी तो सचमुच भौंचक्का कर के रख दिया है गुरुदेव...अपनी ग़ज़ल से भी और हज़ल से भी।

    अभी सफर में हूं तो संक्षिप्त टिप्पणी कर पा रहा हूं जल्दी-जल्दी।

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  36. HASYA KA VISFOT HO GAYA, BAHUT VISFOTAK NIKLE YE BHABHAD KAVI JI, BAR BAR PADHNE KO MAN KARTA HAI. WAH.

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  37. बेहतरीन ग़ज़ल भौचक्के जी। प्रशंसनीय। बहुत सलीके से गहे गये अश’आर।
    मेरा नाम जुगनू है....
    लिपट कर पहाड़ों से ....
    वो पागल का किस्सा ....
    अंधेरे की सरगम ....
    हुई दिल की देहरी ...
    लबों की छुअन से .....
    इधर आ रहा ...
    सब एक से एक शेर
    ग़ज़लकार को हर्दिक बधाई!
    जिसे हज़ल कहा गया है वह भी मजेदार है।
    है दिल मोड पर वाइब्रेशन ....
    किया अटैच ...
    नये प्रतीकों का बेहतर प्रयोग।
    पुनः ढेर सारी बधाई!

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