शुक्रवार, 28 सितंबर 2007

लता मंगेशकर महोत्‍सव : अठहत्‍तर वर्ष में इतनी मीठी आवाज़ ये सरस्‍वती का चमत्‍कार नहीं है तो ओर क्‍या है

लता जी की महत्ता, एक बार हमारे पड़ौसियों ने सिद्ध कर दी थी, जब उन्होंने कहा, कि लता मंगेशकर दे दो, कश्मीर ले लो परन्तु उन्हें यह नहीं पता था, कि भारत के लिये जितना काश्मीर आवश्यक है, भारतवासियों के लिए उतनी ही लता मंगेशकर आवश्यक है। लता जी जब संसद हॉल में खड़ी होकर सारे जहाँ से अच्छा गाती हैं, तो संसद हॉल स्तब्ध खड़ा होकर, इस महान्‌ गायिका के स्वर का जादू महसूस करता है। मुझे याद है, जब लता जी १४ अगस्त, १९९७ की रात्राी १२ बजे, संसद हॉल में सारे जहां से अच्छा गा रही थीं, तब देश के कोने कोने से आये सांसद और गणमान्य जन उन्हें बच्चों की सी उत्सुकता से, खड़े हो हो कर देख रहे थे। लताजी, राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार लेते समय जब कहती हैं, कि मैं नेहरू जी की स्मृति में ऐ मेरे वतन के लोगों की चंद पंक्तियों गाऊँगी, तो उपस्थित भद्रजन इस तरह तालियाँ पीटते हैं, मानों कोई कुबेर का खजाना मिलने वाला हो।
लता जी एक बार एक गीत की रिकडिर्ंग कर रहीं थीं, शाम की फ्लाइट से उन्हें लंदन भी जाना था, लगभग दस बार रिहर्सल के बाद, संगीतकार, रिकार्डिंस्ट सभी सन्तुष्ट थे, पर लता जी सन्तुष्ट नहीं थीं, उन्होंने कहा, इसे फायनल मत करना, मैं लन्दन से लोट कर फिर रिकर्डिंग करुंगी। सचमुच वह लंदन से लौंटीं, और गीत की पुनः रिकर्डिंग की, और पूरी तरह सन्तुष्ट होने के बाद ही गीत को फायनल किया, इसी कारण तो लता-लता है। २८ सितम्बर 07 को लता जी उम्र के ७8 वर्ष पूर्ण कर लेंगीं, कितनी ही अभिनेत्रिायाँ जिन्हें लता जी ने स्वर दिये, दौड़ से बाहर होकर घर बैठी हैं, उनकी पुत्रिायाँ फिल्मों में काम कर रही हैं, लता जी उन्हें भी स्वर दे रही हैं। हमारी तो ईश्वर से यही प्रार्थना है, कि तीसरी पीढ़ी भी जब फिल्मों में आये, तो लता जी उसे भी स्वर प्रदान करें। सचमुच हम भाग्यवान हैं, कि इतना महान्‌ कलाकार अपनी अमृतवाणाी से हमें सरोबार किये हुये है। दिल से में लता जी, गुलज+ार और ए. आर. रेहमान की त्रिावेणी ने मधुर गीत जिया जले की उत्पत्ति की है, वन्दे मातरम्‌ ९८ के गीत क्या नाम है अपना जहाँ में खड़े हैं कहाँ पर हम में लता जी की सवालिया आवाज में, जो अवसाद झलकता है, वह हम भारत वासियों को खुद पर सोचने के लिये मजबूर करता है, हालांकि लता जी के गीतों में अवसाद बहुत कम नजर आता है।
लता जी की आवाज+ इस नश्वर संसार की एक अनश्वर शैः है। राज बब्बर जब फिल्म कर्मयोद्धा बना रहे थे, तब उसमें लता जी का एक खूबसूरत गीत था, परन्तु जिस आडियो कम्पनी द्वारा कैसेट जारी किया जाना था, वहाँ एक गायिका का एकाधिकार था, अतः उस गीत को, उसकी आवाज में डब किये जाने का प्रस्ताव आया, परन्तु राज बब्बर नहीं माने, आखिर उस फिल्म का ऑडियो कैसेट तो जारी हुआ, परन्तु उसका कोई प्रचार नहीं हुआ। किसी ने जब राज बब्बर से पूछा, कि अपने निर्माता के रूप में अपनी पहली फिल्म के साथ, ऐसा क्यों होने दिया ? तो उनका जवाब था - ''जब से मैंने होश संभाना, तब से ही यह आवाज मेरे साथ हम सफ़र की तरह चल रही है, अब जब मैं निर्माता बन रहा था, मेरा सबसे बड़ा सपना यही था, कि लता जी मेरी फिल्म में गीत गायें।

1 टिप्पणी:

  1. जी हाँ, यह तो निश्चित ही इश्वरीय चमत्कार ही है और धरा का अभिमान!!

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