शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं प्रवासी रचनाकार गुणी कवयित्री रेखा भाटिया के साथ, जो अमेरिका से हमारे बीच उप​स्थित हुई हैं

चूँकि अभी देव प्रबोधिनी एकादशी नहीं हुई है, इसलिए हम कह सकते हैं कि दीपवली का पर्व अभी भी जारी है। वैसे तो दीपावली का पर्व पूरे अठारह दिन का होता है, जो धन तेरस से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस हिसाब तो अभी दीपावली के इस पर्व के और भी कुछ दिन बचे हुए हैं। अभी तो हम कार्तिक पूर्णिमा तक दीपावली का पर्व मना सकते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान के बाद पर्व संपन्न होता है।

इन चराग़ों को जलना है अब रात भर

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं प्रवासी रचनाकार गुणी कवयित्री रेखा भाटिया के साथ, जो अमेरिका से हमारे बीच उप​स्थित हुई हैं। 

रेखा भाटिया
 
दिन के फूलों को ढलना है अब रात भर
और कलियों को खिलना है अब रात भर
मछलियाँ पेड़ पर, पानियों में विहग
सृष्टि को ही बदलना है अब रात भर

नींद तो उड़ चुकी, ख़्वाब भी गुम हुए
सिर्फ़ डर को ही पलना है अब रात भर
ज़िंदगी के नशे में है घायल ये मन
मोम बन कर पिघलना है अब रात भर

उत्सवों का है मेला फ़कत ज़िंदगी
रौशनी से बहलना है अब रात भर
है चुनावों की बेला, खरा क्या करे
खोटा सिक्का उछलना है अब रात भर

जाग उठे हैं वो जो कब से सोए ही थे
जाग कर उनको चलना है अब रात भर
रौशनी तेरे हिस्से की मुझसे है ली
'इन चराग़ों को जलना है अब रात भर'


मतले में ही दिन भर के खिले हुए फूलों के रात भर मुरझाकर ढलने और नयी कलियों के खिलने के बहाने बहुत अच्छे से ज़िंदगी का दर्शन प्रस्तुत किया गया है। और अगले ही शेर में उलटबाँसी विधा का बहुत अच्छे से प्रयोग कर स्वप्न विज्ञान को दिखाया है। जब आँखों से नींद और ख़्वाब दोनों चले जायें तो सिर्फ़ डर ही शेष रह जाता है। ज़िंदगी का अपना ही एक नशा है जो जब उतरता है तो घायल मन मोम सा पिघलता रहता है। हमारी ज़िंदगी उत्सवों का एक मेला ही तो है, हम सब रौशनी से जिसमें रात भर बहलते रहते हैं, बहुत ही सुंदर। अमेरिका में भी चुनाव का समय है, ऐसे में चुनाव के दौरान खरों का छुप जाना और खोटे का सामने आ जाना, बहुत सुंदर। जब तब इंसान सोया रहता है, तब तक सफ़र उसके हिस्से में नहीं आता, मगर जागते ही उसको सफ़र में उतर जाना पड़ता है, सुंदर दर्शन जीवन का। और अंत में प्रेम के शेर में बहुत ही सुंदर गिरह बाँधी गयी है तरही मिसरे की। वाह वाह वाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल।

तो आज की इस सुंदर ग़ज़ल ने जैसे दीपावली का माहौल ही रच दिया है। आप दिल खोल कर दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

1 टिप्पणी:

परिवार